किसानों की इतनी उपेक्षा !
लोकतंत्र की दुहाई देकर सरकारों में सम्मिलित लोग और सरकारी कर्मचारी भोग रहे हैं देश के संसाधन एवं संपत्ति और गरीबों को दिखा रहे हैं ठेंगा ऐसा पक्षपाती लोकतंत्र सहना आम जनता की आखिर क्या मजबूरी है ?
ऐसी संवेदना शून्य सरकारों एवं सरकारी कर्मचारियों के विरुद्ध जनता को लड़ना होगा एक बड़ा युद्ध !जो मुशीबत में भी देश की संपत्ति देश वासियों के काम नहीं आने देते ! सरकार के खर्चे हों या सरकारी कर्मचारियों की सैलरी बढ़ाने के लिए पैसा ही पैसा है किसानों मजदूरों गरीबों को मुशीबत के समय भी दी जाने वाली सहायता राशि इतनी कम होती है कि वो सहयोग कम मजाक ज्यादा लगता है !
किसानों को सिक्योरिटी, सुविधाएँ ,संसाधन उनके बच्चों को शिक्षा, चिकित्सा,रोजगार आदि कोई चीज ऐसी नहीं दिख रही है जिससे किसानों को भी लगे कि सरकार हमारे विषय में भी आत्मीयता पूर्वक कुछ करने को तैयार है ,रही बात बातों की तो बातों का क्या कहते तो सभी हैं किंतु कुछ होते भी तो दिखाई पड़े !
लोकतंत्र की दुहाई देकर सरकारों में सम्मिलित लोग और सरकारी कर्मचारी भोग रहे हैं देश के संसाधन एवं संपत्ति और गरीबों को दिखा रहे हैं ठेंगा ऐसा पक्षपाती लोकतंत्र सहना आम जनता की आखिर क्या मजबूरी है ?
ऐसी संवेदना शून्य सरकारों एवं सरकारी कर्मचारियों के विरुद्ध जनता को लड़ना होगा एक बड़ा युद्ध !जो मुशीबत में भी देश की संपत्ति देश वासियों के काम नहीं आने देते ! सरकार के खर्चे हों या सरकारी कर्मचारियों की सैलरी बढ़ाने के लिए पैसा ही पैसा है किसानों मजदूरों गरीबों को मुशीबत के समय भी दी जाने वाली सहायता राशि इतनी कम होती है कि वो सहयोग कम मजाक ज्यादा लगता है !
किसानों को सिक्योरिटी, सुविधाएँ ,संसाधन उनके बच्चों को शिक्षा, चिकित्सा,रोजगार आदि कोई चीज ऐसी नहीं दिख रही है जिससे किसानों को भी लगे कि सरकार हमारे विषय में भी आत्मीयता पूर्वक कुछ करने को तैयार है ,रही बात बातों की तो बातों का क्या कहते तो सभी हैं किंतु कुछ होते भी तो दिखाई पड़े !
राजनैतिक निगाहों में किसानों
की जिंदगी की कीमत इतनी कम क्यों हैं ?और नेता एवं बाबा इतने बहुमूल्य
क्यों हैं जो उन्हें तो चाहिए सिक्योरिटी किन्तु किसानों नहीं आखिर क्यों ?अपने ही देश में किसानों के साथ इतने सौतेलेपन का व्यवहार आखिर क्यों ?किसानों की सुरक्षा एवं सुविधाओं के लिए आखिर क्या इंतजाम हैं और नेताओं बाबाओं को आखिर क्यों चाहिए सिक्योरिटी ?नेता अपना घर भर रहे हैं और बाबा
अपने आश्रम !फिर इन्हें क्यों चाहिए अलग से सिक्योरिटी ?देश की जनता आखिर
इनके अपव्ययों को क्यों बर्दाश्त करे ?ये दोनों देश के लिए कर आखिर क्या
रहे हैं जबकि किसान आज भी देश की भूख मिटा रहा है उसकी इतनी उपेक्षा क्यों ?
देश का किसान मजदूर तथा सभी प्रकार के आम आदमियों के लिए आखिर सुरक्षा की व्यवस्था क्या है और जो है उसे सरकार यदि नेताओं और बाबाओं के लिए पर्याप्त नहीं मानती है तो ऐसी सुरक्षा व्यवस्था को सरकार किसानों या आम जनता के लिए कैसे पर्याप्त मानती है ! जिस सुरक्षा से देश के नेता और बाबा अपने को सुरक्षित नहीं मानते इसीलिए उन्हें अलग से सिक्योरिटी चाहिए होती है उस सुरक्षा के भरोसे किसान कैसे सुरक्षित माने जा सकते हैं ! किसानों मजदूरों आम आदमियों की जिंदगी के प्रति इतनी उपेक्षा की भावना आखिर क्यों है ? समाज को समझाने के लिए नेता संविधान(कानून व्यवस्था ) की दुहाई देते हैं और बाबा भगवान की किंतु जब अपने पर बन आती है तो नेताओं का भरोसा कानून व्यवस्था से उठ जाता है और बाबाओं का भगवानों से और दोनों अपने लिए सिक्योरिटी माँगने लगते हैं आखिर क्यों ?
ऐसे नेताओं एवं धार्मिक लोगों को जो राष्ट्रवाद और धर्मवाद के नाम पर दूसरों को आग में कुदाने के लिए तो बहादुरी की बड़ी बड़ी बातें करते हैं किंतु जब बात अपने पर आती है तो अच्छे अच्छे आश्रमों में रहते हुए भी सरकारी सिक्योरिटी की खोली में घुस जाते हैं आखिर क्यों ?
जिन्हें भगवान पर भरोसा नहीं रहा फिर साधू किस बात के !दूसरी ओर किसान मजदूर और आम लोग भगवान पर बहुत भरोसा करते हैं भगवान भरोसे रहने वाले किसान डरपोक बाबाओं और नेताओं से लाख गुना अच्छे होते हैं वो खेतों खलिहानों में रात विरात निर्भीक विचरण करते हैं । क्या सरकार ने उनकी सुरक्षा के विषय में कभी सोचा है और यदि हाँ तो क्या ? जो किसान पूष माघ (जनवरी फरवरी )की कटकटाती ठंड में खुले जंगल में रात
में भी काम किया करते हैं कई बार हिंसक जीव जंतु भी खेतों में घुस आते हैं किन्तु यदि
उस किसान से कोई पूछे कि ऐसी अँधेरी रात्रि में आप यहाँ अकेले हो अगर शेर आ जाए तो आप
क्या करोगे !तो वो कितने भरोसे से कहता कि अभी तक भगवान बचाते रहे हैं आगे
भी उन्हीं के भरोसे हैं क्या भगवान पर ऐसा विश्वास दिखता धार्मिक लोगों में
!फिर भी सरकारें आज तक ऐसे किसानों की सहायता के लिए कुछ सोच पाई हैं जिससे किसानों को अपनी जिंदगी के साथ न खेलना पड़े ?
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