Sunday, 22 March 2015

किसानों को आर्थिक सहायता या उपहास ! देश की आजादी में इनका कोई योगदान नहीं है क्या ?

                  किसानों की इतनी उपेक्षा !
   लोकतंत्र की दुहाई देकर सरकारों में सम्मिलित लोग और सरकारी कर्मचारी भोग रहे हैं देश के संसाधन एवं संपत्ति और गरीबों को दिखा रहे हैं ठेंगा ऐसा पक्षपाती लोकतंत्र सहना आम जनता की आखिर क्या मजबूरी है ? 
   ऐसी संवेदना शून्य सरकारों एवं सरकारी कर्मचारियों के विरुद्ध जनता को लड़ना होगा एक बड़ा युद्ध !जो मुशीबत में भी देश की संपत्ति देश वासियों के काम नहीं आने देते ! सरकार के खर्चे हों या सरकारी कर्मचारियों की सैलरी बढ़ाने के लिए पैसा ही पैसा है किसानों मजदूरों गरीबों को मुशीबत के समय भी दी जाने वाली सहायता राशि इतनी कम होती है कि वो सहयोग कम मजाक ज्यादा लगता है !
    किसानों को सिक्योरिटी, सुविधाएँ ,संसाधन उनके बच्चों को शिक्षा, चिकित्सा,रोजगार आदि कोई चीज ऐसी नहीं दिख रही है जिससे किसानों को भी लगे कि सरकार हमारे विषय में भी आत्मीयता पूर्वक कुछ करने को तैयार है ,रही बात बातों की तो बातों का क्या कहते तो सभी हैं किंतु कुछ होते  भी तो दिखाई पड़े !
     राजनैतिक निगाहों में किसानों की जिंदगी की कीमत इतनी कम क्यों हैं ?और नेता एवं बाबा इतने बहुमूल्य क्यों हैं जो उन्हें तो चाहिए सिक्योरिटी किन्तु किसानों नहीं आखिर क्यों ?अपने ही देश में किसानों के साथ इतने सौतेलेपन  का व्यवहार आखिर क्यों ?किसानों की सुरक्षा एवं सुविधाओं के लिए आखिर क्या इंतजाम हैं और नेताओं  बाबाओं को आखिर क्यों चाहिए सिक्योरिटी ?नेता अपना घर भर रहे हैं और बाबा अपने आश्रम !फिर इन्हें क्यों चाहिए अलग से सिक्योरिटी ?देश की जनता आखिर इनके अपव्ययों को क्यों बर्दाश्त करे ?ये दोनों देश के लिए कर आखिर क्या रहे हैं जबकि किसान आज भी देश की भूख मिटा रहा है उसकी इतनी उपेक्षा क्यों ?

     देश का किसान मजदूर तथा सभी प्रकार के आम आदमियों के लिए आखिर सुरक्षा की व्यवस्था क्या है और जो है उसे सरकार  यदि नेताओं और बाबाओं के लिए पर्याप्त नहीं मानती है तो ऐसी  सुरक्षा व्यवस्था को सरकार किसानों या आम जनता के लिए कैसे पर्याप्त मानती  है ! जिस सुरक्षा से देश के नेता और बाबा अपने को सुरक्षित नहीं मानते इसीलिए उन्हें अलग से सिक्योरिटी चाहिए होती है उस सुरक्षा के भरोसे किसान कैसे सुरक्षित माने जा सकते हैं ! किसानों मजदूरों आम आदमियों की जिंदगी के प्रति इतनी उपेक्षा की भावना आखिर क्यों है ? समाज को समझाने के लिए नेता संविधान(कानून व्यवस्था ) की दुहाई देते हैं और बाबा भगवान की किंतु जब अपने पर बन आती है तो नेताओं का भरोसा कानून व्यवस्था से उठ जाता है और बाबाओं का भगवानों से और दोनों अपने लिए सिक्योरिटी माँगने लगते हैं आखिर क्यों ?

  ऐसे नेताओं एवं धार्मिक लोगों को जो राष्ट्रवाद और धर्मवाद के नाम पर दूसरों को आग में कुदाने के लिए तो बहादुरी की बड़ी बड़ी बातें करते हैं किंतु जब बात अपने पर आती है तो अच्छे अच्छे आश्रमों में रहते हुए भी सरकारी सिक्योरिटी की खोली में घुस जाते हैं आखिर क्यों ?

जिन्हें भगवान पर भरोसा नहीं रहा फिर साधू किस बात के !दूसरी ओर किसान मजदूर और आम लोग भगवान पर बहुत भरोसा करते हैं भगवान भरोसे रहने वाले किसान डरपोक बाबाओं और नेताओं से लाख गुना अच्छे होते हैं वो खेतों खलिहानों में रात विरात निर्भीक विचरण करते हैं । क्या सरकार ने उनकी सुरक्षा के विषय में कभी सोचा है और यदि हाँ तो क्या ?         जो किसान पूष  माघ (जनवरी फरवरी )की कटकटाती ठंड में खुले जंगल में रात में भी काम किया करते हैं कई बार हिंसक जीव जंतु भी खेतों में घुस आते हैं किन्तु यदि उस किसान से कोई पूछे कि ऐसी अँधेरी रात्रि में आप यहाँ अकेले हो अगर शेर आ जाए तो आप क्या करोगे !तो वो कितने भरोसे से कहता कि अभी तक भगवान बचाते रहे हैं आगे भी उन्हीं के भरोसे हैं क्या भगवान पर ऐसा विश्वास दिखता धार्मिक लोगों में !फिर भी  सरकारें आज तक ऐसे किसानों की सहायता के लिए कुछ सोच पाई हैं जिससे किसानों को अपनी जिंदगी के साथ न खेलना पड़े ?

     पूष  माघ (जनवरी फरवरी )की कटकटाती ठंड में जिस दिन गंभीर गर्जन के साथ बरस रहे होते हैं बादल गिर रहे होते हैं ओले कड़क रही होती है बिजली इन सबके बीच खुले जंगलों के बीच खेतों खलिहानों में अपनी कटी हुई पसल समेटने के लिए ऐसी भयावनी अँधेरी रात में निकल पड़ता है किसान  ऐसे अपनी जिंदगी पर खेलने वाले किसानों के लिए सरकार के द्वारा आज तक क्या सिक्योरिटी की ब्यवस्था की गई है ?

     सावन भादौं (जुलाई अगस्त )के महीनों में जब दिन में ही रात लगने लगती है उस ऋतु की अँधेरी डरावनी रातों में बढ़ी घास के  कारण खेत और मेड़ों का अंतर कर पाना कठिन हो जाता है जहाँ किस कदम पर कौन कितना जहरीला साँप बिच्छू काट ले या मक्का ज्वार बाजरा अरहर गन्ना ढेंचा जैसी फसलें जो आदमी के शिर से ऊपर निकल जाती हैं ऐसी फसलों से कहाँ कब कितना भयानक जानवर निकल आवे और जीवन लीला समाप्त कर दे ये सब खतरे जानते हुए भी किसान अपनी फसल को बचाने के लिए कंधे पर फरुहा रखकर निकल पड़ता है अपने खेतों से पानी निकालने और फसल बचाने के लिए ऐसे किसानों को सरकार कितनी देती है सिक्योरिटी ?उन्हें तो सर्प काट ले तो कोई ढंग का अस्पताल भी नहीं होता है आस पास !क्या यही किसानों के प्रति हमदर्दी है ?ऐसे किसानों के लिए इस आजादी के मायने क्या हैं ?

     किसानों को इतना ही नहीं अपितु सरकारी लोगों का कितना दुर्व्यवहार सहना पड़ता है आफिसों ब्लॉक,बैंक,डाकखाना,तहसील,पुलिस आदि सरकार के गैर जिम्मेदार विभागों से कभी कोई आता है धमका कर या कोई नोटिस थम्हा कर चला जाता है अपना काम काज छोड़कर वो तपस्वी किसान आफिसों आफिसों में अलग अलग बाबुओं के पास भटकता घूमता है जहाँ आदतन सरकारी लोग किसी और बाबू का नाम बताकर या फोन नंबर देकर आगे टरका देते हैं अक्सर अंग्रेजी न जानने वाले किसान वो कागज लिए दर दर भटक  रहे होते हैं किंतु बिना पैसे दिए लगभग  कहीं सुनवाई नहीं होती और देश के अन्नदाता उन तपस्वी किसानों से सरकारी विभागों के लोग बहुत गंदा बर्ताव करते हैं कई बार किसान का अपना खेत लेखपाल गलती या साजिश से किसी और के नाम चढ़ा देता है उसे ठीक करने के हजारों रूपए माँगता है !खाद जिसका जितना सोर्स उसको उतनी खाद मिलती है !किसानों की समस्याओं के समाधान के लिए अविलम्ब पारदर्शी कार्यवाही हो ऐसा भी आजतक कोई सहयोगी संपर्क सूत्र नहीं दिया जा सका है आखिर क्यों !

   किसानों मजदूरों आम आदमियों गरीबों के लिए शासन प्रशासन की सोच को अच्छा कैसे कहा जाए जिनकी जिंदगी उन सरकारी कर्मचारियों के आधीन है जो बिना काम किए सैलरी लेने के नाम से लोकविख्यात हैं यही कारण है कि पैसे वालों के बच्चे प्राइवेट स्कूलों में पढ़ते हैं बाकि उन सरकारी स्कूलों में जहाँ शिक्षकों का स्कूल पहुँचना समय से पहुँचना क्लास में पहुँचना और पहुँचकर वहाँ रुक कर कुछ पढ़ाना भी जरूरी नहीं होता ऐसे प्राइमरी स्कूलों में पढ़ते हैं किसानों, मजदूरों, आम आदमियों और गरीबों के बच्चे !ऐसे लापरवाह शिक्षकों की दिनों दिन सैलरी महँगाई भत्ता आदि और भी बहुत कुछ बढ़ाया जाता रहता है आखिर क्यों ?बेरोजगारी का आलम ये है कि एक शिक्षक की सैलरी में उतने या उनसे अधिक योग्य दो या तीन शिक्षक तक रख कर शिक्षा के स्तर को सुधारा जा सकता है इससे बेरोजगारी घटे जरूरत मंद लोगों को रोजगार मिले वो लगन के साथ काम भी करें ऐसी परिस्थिति में जब कम कीमत में काम करने वाले अच्छे शिक्षक समाज में अपनी सेवाएँ देने के लिए उपलब्ध हैं तो प्राइमरी स्कूलों की भद्द पिटवाने वाले अकर्मण्य महँगे शिक्षक रखने की सरकार की मजबूरी क्या है ?

        डाक विभाग के 60,000 पाने वाले कर्मचारी कोरियर के 6000 रूपए वालों के इतनी भी सेवाएँ जनता को नहीं देते हैं फिर भी सरकार उनकी सैलरी बढ़ाए जा रही है आखिर क्यों ?यही अंतर सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों में है दूरसंचार कंपनियों में है और लगभग सभी सरकारी विभागों में है किंतु सरकार अपने कर्मचारियों की अकर्मण्यता से  हमेंशा प्रभावित रहती है वो इतनी भरी भरकम सैलरी लेकर भी हड़ताल करते हैं तो भी सरकार उनको मनाती है उनकी माँगें मानती है आखिर क्यों जबकि आम समाज में उनसे अधिक योग्य और परिश्रमी लोग बेरोजगार घूम रहे हैं आखिर सरकार अपने ऐसे हड़ताली कर्मचारियों का हाथ के हाथ हिसाब क्यों नहीं कर देती है !और नई नियुक्तियाँ करे !

   इसी प्रकार से इतनी भारी भरकम सैलरी लेने के बाद भी रिटायरमेंट के बाद इन्हें पेंसन किस बात की ?जिसे जीवन भर सरकार ने ढोया हो उसी का बोझ बुढ़ापे में भी ढोने को तैयार रहती है सरकार !और जो सुशिक्षित लोग बेरोजगारी के भय से सारे जीवन अपने एवं अपनों पर बोझ बने रहते हैं उनके लिए सरकार की कोई जिम्मेदारी नहीं होती है आखिर क्यों ?

       किसानों मजदूरों आम आदमियों गरीबों के  सुशिक्षित बच्चे भी सोर्स और घूस देने की असक्षमता के कारण आजीवन अपमानित होते रहते हैं किंतु उन नौ जवानों की चिंता सरकार के भाषणों के अलावा और कहीं नहीं दिखती है इसप्रकार से किसानों के बच्चे शिक्षा चिकित्सा आदि में तो पिछड़ते हैं ही रोजगार में भी उनका किसी को ध्यान नहीं होता है ऐसे किसानों मजदूरों आम आदमियों गरीबों के लिए आजादी के क्या मायने होने चाहिए ! 

इसी विषय में पढ़ें मेरा यह लेख भी -

      किसानों की उपेक्षा करके आज बाबाओं और नेताओं को आखिर क्यों मिलनी चाहिए सिक्योरिटी ? देश के अन्नदाता किसानों की उपेक्षा करके नेताओं और बाबाओं पर खर्च हो रहा है सरकारी धन आखिर क्यों ?seemore... http://samayvigyan.blogspot.in/2015/03/kisaan.html

 

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