आधुनिक हाईटेक सत्संगों के साइड इफेक्ट हैं बलात्कार ! सत्संगों में या तो इतनी भीड़ नहीं होती और यदि होती तो समाज में इतने बलात्कार नहीं होते !
'सत्संग में शामिल होने वाले नहीं करते यौन हमले'-मोरारी बापू (NBT)
हे संत श्रेष्ठ मोरारी बापू जी ! आपका कहना बिलकुल सही है और सत्संग में ये क्षमता है भी कि प्रकार की मनो विकृतियों सत्संग से लगाम लगाई जा सकती है किंतु वो भी सत्संग भी आप जैसे बीतरागी विरक्त संतों का हो तभी ऐसा संभव है किसी की आलोचना करना सुनना या धार्मिक प्रपंचों में सम्मिलित होना आपका स्वाभाव नहीं है यह जानते हुए भी चूँकि आप भी समाज के ही एक अंग हैं इसलिए आपको यह भी पता होगा कि सत्संग आज कल कैसे कैसे हो रहे हैं सत्संगों के नाम पर जिस प्रकार सेआज कल न केवल धर्म को व्यापार बनाया जा रहा है अपितु धर्म की आड़ में बासना(Sex) का कारोबार जिस प्रकार से फल फूल रहा है ऐसे सत्संगों से जनता बचे कैसे पहले तो ये समझ दीजिए बाद में सत्संगों का महत्त्व तो सुनना ही है !
आज आश्रमों सत्संग शिविरों का दुरुपयोग करते हुए गैर जिम्मेदार लोग पराई लड़की या पत्नी के साथ अपनी धर्म भावना प्रदर्शित करके ठहर जाते हैं जहाँ कोई शक भी नहीं करता है और इसी बहाने इतने दिनों तक साथ साथ बिता लेते हैं समय !ऐसे पुरुषों लड़कों या महिलाओं लड़कियों पर कोई शक भी नहीं करता है बल्कि इनके घर वाले इस बात के लिए प्रशंसा कर रहे होते हैं कि चलो सत्संग में तो जाते हैं !किंतु ऐसे सत्संगों से समाज बिखरता है परवार टूटते हैं किन्तु जनता के पास इतना विवेक नहीं है कि वो इस बात पर भी ध्यान दे !इसीलिए ऐसे कामियों ने सत्संग शिविरों के नाम पर रैलियाँ करनी शुरू कर दी हैं जिनकी दिखाई पड़ती हैं भारी भीड़ें किंतु ये जन सैलाव यदि वास्तव में सत्संगों का होता तो या तो इतनी भीड़ नहीं होती और यदि होती तो बलात्कार नहीं होते !
वैसे भी
जो बाबा ब्यभिचारी हैं वो समाज के
सहयोग से ही ऐसे हुए हैं उन्हें यहाँ तक पहुँचने के लिए धन देने वालों ने धन
दिया,मन देने वालों ने मन दिया तन देने वालों ने तन दिया कुछ लोगों ने तो
जीवन ही दे दिया है ये सच्चाई है फिर भी दोष केवल बाबाओं का ही है क्या?
माना
कि योग बहुत अच्छी एवं भारत की अत्यंत प्राचीन विद्या है किंतु कलियुग में
कुछ योगरिसर्चियों ने ब्याभिचारयोग और ब्यापारयोग आदि के रूप में योग की
विभिन्न प्रजातियाँ विकसित की हैं वास्तव में ये लोग धन्य हैं इसी रूप में
सही कम से कम तरक्की तो कर रहे हैं क्योंकि पुराने योगियों को तो तरक्की
करनी भी नहीं आती थी उन्हें तो केवल खाली
मूली योग की ही जानकारी रही होगी इसीलिए वे बेचारे उतनी तरक्की नहीं कर
पाए और दूसरीबात उन्हें उतनी गालियाँ देना भी नहीं आता होगा इसीलिए वो राजा
या राजमंत्री या राजा के कृपा पात्र नहीं बन सके खैर ,योग की महिमा
अपरम्पार है किन्तु योग के साथ ऐसा व्यवहार होगा ये उन पवित्र पूर्वजों ने
कभी नहीं सोचा होगा !संभवतः इसी लिए कह दिया होगा कि -योगश्चित्त वृत्ति निरोधः !
संन्यासियों को सब कुछ छोड़ कर केवल भजन करने को
शास्त्रों में क्यों कहा गया ? वस्तुतः पहले भी तो वह एक घर में रहते थे
बाद में आश्रम में रहने लगे!पहले पत्नी बच्चों के साथ थे बाद में चेला
चेलियों से घिरे रहने लगे !धन पहले कमाते थे साधू बनने के बाद भी कमाते हैं
जो तब खाते थे वो अब खाते हैं जैसे वातावरण में पहले रहते थे वैसे
वातावरण में साधू बनने के बाद भी भी रहा करते हैं ! पहले सारा दिन ब्यर्थ
के सांसारिक प्रपंच में बीत जाता था साधू बनने के बाद भी दिनचर्या वैसे ही
चल रही है चुनाव जिताने के लिए झूठ साँच बोलते घूम रहे हैं !
कोई व्यक्ति जब अपना पत्नी बच्चों सहित घर बार
छोड़कर साधू बनता है तो उसके मन और जीवन में वैराग्य का बदलाव तो आना ही
चाहिए यदि ऐसा नहीं हो पाता है तो केवल कपड़ों का कलर बदलने के लिए गृहस्थी
क्यों छोड़ना ?
क्या इसे ये नहीं कहा जा सकता है कि पत्नी बच्चों के पोषण के भय से भड़भड़ाकर कर भाग खड़े हुए हैं !
किन्तु इस भगोड़ेपन को वैराग्य या संन्यास क्यों और
कैसे कहा जाए जिसमें शास्त्रीय वैराग्य और संन्यास के लक्षण ही न पाए जाते
हों !
वैसे भी धन और बासना का परस्पर अद्भुत सम्बन्ध है
इसीलिए बासना से बचने के लिए पुराने साधू संत महिलाओं से मध्यम दूरी
बनाकर रहते थे ऐसा नहीं कि उन्हें महिलाओं से भय होता था अपितु उन्हें अपने
मन से भय होता था कि स्त्री पुरुष शरीरों की प्रकृति में अंतर होने के
कारण हमारा मन कहीं विकारों में भटक न जाए ! दूसरा खतरा वैरागी मन को धन से
होता है क्योंकि जब धन होगा तो जहाँ जहाँ धन लगता है वहाँ वहाँ मन लगता ही
है । आप स्वयं सोचिए जब आश्रम नाम का सुन्दर सा भवन होगा उसमें सुन्दर
सुन्दर बेड रूम होंगे जिनमें सुन्दर सुंदर बेड पड़े होंगे इस प्रकार से जो
साधू जो संत जो महात्मा जो संन्यासी अपनी इच्छाओं को बेड रूम और बेड तक
पहुँचने में नहीं रोक सका वो आगे खाक रोक पाएगा !बिस्तर पर लाल चद्दर बिछा
लेने से किसी को संन्यासी कैसे मान लिया जाए ।आपने भी बहुत पुराने संतों
के विषय में सुना होगा कि वे पैसे नहीं छूते थे इसका एक मात्र कारण धन एवं
धन से पनपने वाले विकारों से अपने को अलग रखना था !वो बासनात्मक विकारों
नहीं फँसना चाहते थे!
आज जो लोग आशाराम जी जैसे लोगों को दोष देते हैं मैं
उससे सहमत नहीं हूँ !अजीब सी बात है लोग ऐसे बाबाओं के आगे सब कुछ तो परोस
देते हैं और फिर चाहते हैं कि वो मुख बाँध कर रहे किसी चीज का भोग न करे
!ऐसा कैसे सम्भव है ?
उनके आश्रमों में धन है गाड़ियाँ हैं अच्छा अच्छा
खाना पीना है शौक शान का सारा सामान होता है एक महिला को छोड़कर जो आदमी
बाबा बना होता है अब उसके पीछे या चारों ओर महिलाएँ ही महिलाएँ घेरे होती
हैं फिर भी कमी पड़ती है तो समाज समय समय पर उसकी आपूर्ति भिन्न भिन्न
रूपों में करता रहता है जैसे -बाबा जी ने गुरुकुल चला दिया तो समाज अपनी
बच्चियाँ भेजने लगा,बाबा जी गरीब कन्याओं की शादी कराने लगे तो लोग अपनी
बच्चियाँ ले लेकर जाने लगे!बाबा जी अस्पताल या स्कूल चलाते हैं दवा बनाने
बेचने का धंधा कर लेते हैं तो कर्मचारियों के रूप में स्वयमेव सब कुछ
उपलब्ध रहता है।साधुओं के साधुत्व को बिगाड़ने में इन सेवा कार्यों का
महत्वपूर्ण योगदान है!इनसे सबकुछ मुदा छिपा चला करता है किसी को कोई शक भी
नहीं होता है किन्तु भांडा फूटता है तो आशाराम जी की तरह एक ही बार में
सब कबूलने लगते है कि हमारे साथ ऐसा हुआ था वैसा हुआ था !इन सारे प्रकरणों
में अपना कोई दोष ही मानने को तैयार ही नहीं होते हैं दस दस साल पुराने
मामले खुल रहे हैं अरे पूछो अभी तक कहाँ थे भाई ?बोले अभी तक तो उन्हीं के
साथ थे !!!
साधुओं को इस तरह के संसाधन उपलब्ध करने में समाज का एक
बहुत बड़ा वर्ग समर्पित है न जाने उसका क्या लोभ है? क्योंकि वह इतना भोला
होगा कि इस कलियुग में भी उसे कुछ पता ही नहीं है मैं इससे सहमत नहीं हूँ
!ये सब जान बूझ कर हो रहा है और बहुत जगहों पर हो रहा है जो पकड़ जाए सो
अपराधी अन्यथा सौ संतों का संत !
मैं यह भी नहीं कहूँगा कि सब जगहों पर ऐसा ही होता
है क्योंकि बहुत आश्रमों में सेवाकार्य भी सफलता एवं सच्चरित्रता पूर्वक
संचालित किए जा रहे हैं किन्तु उन्हीं की आड़ लेकर विकारवान बाबा लोग
असामाजिक गतिविधियों को भी संचालित कर रहे हैं इससे भी समाज को पूरी तरह
सतर्क रहने की आवश्यकता है अपने को सँभाल ले दोष किसी और का क्यों दिया जाए
?
यदि हम धर्म ग्रन्थ नहीं पढते हैं तो हमसे गलतियाँ होनी स्वाभाविक हैं जैसे -
स्मृतियों में स्पष्ट लिखा है कि इन तीन दान देने वालों को भी नरक होता है -
1. जो कोई महात्माओं को स्वर्ण अर्थात धन दान में देता है वह नरक जाता है !
2.जो ब्रह्म चारियों को पान का दान करता है वह नरक जाता है !
3. जो चोरों को अभय दान देता है वह नरक जाता है !
यथा-
यतये काञ्चनं दत्वा ताम्बूलं ब्रह्म चरिणा।
चौरेभ्यो अभयं दत्वा दातापि नरकं ब्रजेत्॥
-पराशर
जहाँ तक मेरी निजी धारणा है मैं ऐसे सभी धर्म
व्यापारी बाबाओं के आचरणों से आहत हूँ मेरा विश्वास है कि ऐसे सभी अविरक्त
महात्माओं से किसी भी रूप में जुड़े रहने वाले किसी भी स्त्री पुरुष को तब
तक विश्वसनीय नहीं माना जाना चाहिए जब तक जाँच रिपोर्ट न आ जाए क्योंकि
वैराग्य विहीन बाबाओं के आश्रमों में एक रात भी किसी ने क्या सोच कर
गुजारी?यह बात मानी जा सकती है कि किसी को शुरू के दो चार दिन चारित्र्यिक
प्रदूषण का शिकार न बनाया गया हो किन्तु वहाँ का वातावरण कैसा है इसका
आभास तो प्रारंभ में हो ही जाता है फिर भी वहाँ महीनों या वर्षों बिताना
कहाँ तक उचित था?खैर एक शिकायत मुझे मीडिया से भी है कि बिना बैराग्य वाले
धनी सभी बाबाओं में धन का सुख भोगने कि भावना तो आ ही जाती है जो सब में
ही है फिर मीडिया का क्रोध केवल आशाराम पर ही क्यों हैं यदि मीडिया का
उद्देश्य वास्तव में धर्म रक्षा है तो खुल कर एक बार आ जाना चाहिए सामने!
एक और चिंता कि बात है कि आज तक किसी टी.वी. चैनल पर किसी परिचर्चा में
कोई संत नहीं लाया गया जो अपना पक्ष भी रखता ? ये जो आर्टिफिशियल बाबा
परिचर्चाओ में सम्मिलित किए भी जा रहे हैं उनका धर्म से क्या लेना देना?
कोई भाजपा का बाबा होता है कोई कांग्रेस या किसी अन्य दल का कुछ लुटे पिटे
पत्रकार या वकील रह चुके होते हैं,या कुछ बाबा होने के बाद भी किसी सभा
सोसायटी के अध्यक्ष बने फिरते हैं किन्तु इन बवालियों का मन भजन में तो
लगता नहीं है इसलिए लाल कपड़ों में शरीर तो लिपेट लिया है किन्तु मन अपनी
पुरानी आदतें छोड़ने को तैयार नहीं है आजतक ऐसे सभी असफल आशाराम ही आशाराम
की आलोचनाओं में ज्यादा रुचि ले रहे हैं बाकी चरित्रवान संतों के पास समय
कहाँ है कि वे ऐसे प्रपंचों में फंसें !
इसी प्रकार चरित्रवान आम स्त्री पुरुषों के पास न तो
समय बाबाओं के पीछे पीछे घूमने का है और न ही उनकी निंदा या समर्थन में
साथ देने का | ऐसी महंगाई में जीवन चला पाना ही कितना कठिन है फिर भले
लोगों के पास बबई गिरी के लिए समय कहाँ है !
अब समय आ गया है जब ऐसी हरकतों पर लगाम लगनी चाहिए
जिससे धर्म की हानि संभव हो अन्यथा इन लोगों का तो कुछ नहीं बिगड़ेगा
किन्तु कुछ लोगों की ऐसी हरकतों से सच्चरित्र साधुओं पर भी अंगुलियाँ उठने
लगी हैं जो सबसे बड़ा चिंता का विषय है!
इन सब बातों के साथ साथ
यह स्वीकार करने में भी अब संकोच नहीं होना चाहिए कि अब समाज का एक बहुत
बड़ा वर्ग सेक्स के प्रति समर्पित हो चुका है जिसमें नेताओं से लेकर बाबाओ
तक ने बढचढ कर भाग ले रखा है| सेक्स के प्रति समर्पण में स्त्री पुरुषों
में लगभग समानता दिखती है अगर बाबा दुश्चरित्र हैं तो उनके प्रति समर्पित
होने वाली भीड़ का समर्पण भी देखते ही बनता है!
मलमल बाबा की
तथाकथित कृपा लूटने के लिए लालायित गिडगिडा रहे भक्तों को देखकर कई बार
मैं सोचने लगता हूँ कि आज मलमल दरवार में बात बात में रोने वाली भक्ताएं
कल चिल्लाती घूमेंगी! आखिर इस सच को समाज समझने के लिए तैयार क्यों नहीं है
कि अब युग बदल चुका है ये कलियुग है इसका प्रभाव बाबाओं पर भी पड़ा है
सदाचार का उपदेश देने वाले बाबा अब दुराचार में जेलों बंद हो रहे हैं इस
लिए बहुत संभल कर चलने कि जरुरत है !
अब समाज की सोच बिलकुल बदल
चुकी है आज सेक्स से जुड़े अधिकांश अपराधों में दोनों तरफ से पहले तो सब
कुछ ठीक चलता है किन्तु बाद में जब आपसी असंतोष पनपता है तब स्त्री
निरपराध और पुरुष अपराधी घोषित कर दिया जाता है!
गैंग रेप के
अधिकांश केशों में भी कुछ ऐसा ही घटित होता है किसी सार्वजानिक स्थल पर
अपने प्रेमी नाम के सेक्स क्षुधा से पीड़ित लड़के की अश्लील हरकतें हँस हँस
कर सहने या उसमें साथ देने वाली लड़की को देखकर देखने वालों का बेचैन होना
स्वाभाविक है इन्हीं दर्शको में यदि शरारती किस्म के कुछ लड़के एक जैसी
मानसिकता के हुए तो ऐसे जोड़ों के पीछे लग जाते हैं और जहाँ एकांत मिला वहीँ
उस अकेले प्रेमी नाम के सेक्सालु को पकड़ कर बांध देते हैं क्योंकि वे कई
होते हैं और फिर लड़की के साथ करते हैं मनमानी!
मेट्रो के फुटेज
देखने के बाद तो यह और साफ हो चुका है कि प्रेमी जोड़े मेट्रो में भी ऐसी
हरकतें करते हैं जिनके सुधरे बिना ऐसी दुर्घटनाओं पर कानून के बल पर लगाम
लगा पाना निजी तौर पर हमें दिवा स्वप्न से अधिक कुछ नहीं लगता है
!खैर...हमें तो यही कहना है की सबके सुधरने पर ही सुधर संभव हो सकता है
जादू या किसी भी प्रकार के चमत्कार की उम्मीद तो प्रशासन से भी नहीं की
जानी चाहिए!
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