तीन बार साईं साईं कहो तो दो बार 'ईसा''ईसा'शब्द निकलता है आखिर क्यों ?सा'ईंसा''ईंसा' ईं ! साईं साईं बार बार कहो तो 'ईसा' 'ईसा' लगातार निकलता है ये साईं आखिर थे कौन ?और इनका नाम साईं रखा किसने !
बंधुओ! साईं का जन्म कहाँ हुआ था ,ये किस धर्म को मानने वाले थे और यदि किसी धर्म को मानने वाले थे तो क्या उस धर्म के तीर्थ स्थलों में जाते थे! उसके धर्माचार्यों से मिलते थे! उसके धर्म ग्रंथों को पढ़ते थे! उनका उपदेश करते थे,इनका नाम साईं क्यों और किसने रखा, इतने कम समय में इनके प्रचारक इतने अधिक कैसे हो गए ! कैसे लुटाया जाने लगा इनपर अनाप सनाप पैसा!और जब इनसे जुड़े ही गरीब लोग थे उन्हीं के बीच ये काम करते थे तो उन गरीबों के पास साईं को मालामाल करने के लिए धन आता आखिर कहाँ से था ?
आखिर पूरे देश के सनातन धर्म मंदिरों में साईं की प्रतिमा घुसेड़ देने की इतनी जल्दी इन्हें क्यों और किसे है साईं के प्रचार प्रसार में आखिर क्यों बहाया जा रहा है इतना धन ! साईं को भगवान बनाने की ही योजना पर क्यों बहाया जा रहा है पानी की तरह पैसा ! इनकी मजबूरी ऐसी आखिर क्या है ,साईं को घर घर गाँव गाँव फैलाना जरूरी आखिर क्यों है ?जब इनके पास इतना पैसा है तब तो ये अलग भी बनवा सकते थे साईं के मंदिर किन्तु सनातन धर्म के मंदिरों की मर्यादा को छिन्न भिन्न करने के पीछे इनका लक्ष्य आखिर क्या है सनातन धर्म के मंदिरों में सनातन धर्म शास्त्रों के अनुशार बनी प्राचीन परंपराओं के पालन में साईंयों के द्वारा व्यवधान आखिर क्यों पैदा किया जा रहा है, कहाँ से आ रहा है साईं मंदिरों में चढ़ावा नाम का इतना चंदा ?साईं जब सभी धर्मों को मानते थे तो सभी धर्म साईं को क्यों नहीं मानते हैं सनातन धर्म से साईं का ऐसा क्या लगाव था जो कि सनातन धर्म पर ही आज थोपे जा रहे हैं साईं,आखिर साईं नाम की शरारत का बोझ सनातन धर्म ही अकेले क्यों ढोवे ?
ईसाई धर्म से इनका कोई विशेष सम्बन्ध था क्या ?कहीं ये वास्तव में ईसाई धर्म के प्रचारक ही तो नहीं थे पिछले समय आजादी के आंदोलन को सफल बनाने में धर्म एवं धर्माचार्यों की महत्वपूर्ण भूमिका रही थी और उन लोगों को खदेड़ कर देश को स्वतन्त्र कराने में इसी सनातन धर्म के द्वारा लोगों को संगठित करने में विशेष सफलता मिली थी कहीं उसी से भयभीत होकर ईसाई धर्म प्रचारकों के द्वारा इस साईं धर्म की स्थापना तो नहीं की गई है जिससे सनातन धर्मस्थलों को नष्ट भ्रष्ट करके वहाँ केवल साईं का बोलबाला हो, वहाँ साईं का गुणगान करते हुए लाउड स्पीकर ही बजाए जाएँ और उन सनातन मंदिरों की पहचान साईं के नाम से बनाई जाए!
सनातन देवी देवताओं की उपेक्षा करते करते या उनका कद छोटा करते करते उनका आस्तित्व ही समाप्त कर दिया जाए !यदि ऐसा न होता तो इनका स्थान शिर्डी ही बना रहता जिसे जाना होता वो वहीँ शिर्डी ही चला जाता किन्तु साईं के प्रचार प्रसार की जल्दबाजी ,एवं उसके प्रचार प्रसार के लिए लुटाया जा रहा पैसा एवं चढ़ावा के नाम पर जुटाया जा रहा चंदा ये सब कुछ किसी विधर्मी की किसी अप्रिय योजना का कहीं हिस्सा तो नहीं है !
आज दिल्ली रेलवे स्टेशन गया था वापस मेट्रो से आ रहा था तो हमारे पास ही कोई बुजुर्ग फादर (ईसाई धर्म प्रचारक) बैठे थे हमारा आपस में एक दूसरे से परिचय हुआ जब उन्हें पता लगा कि मैं लेखक हूँ तो उन्होंने कई सामाजिक ,राजनैतिक और शैक्षणिक आदि सार गर्भित विषय उठाए चर्चा चलती रही बाद में बात जब साईं पर आई तो उन्होंने कहा कि साईं पर लोग बेकार में शोर मचा रहे हैं वस्तुतः साईं ईसाई धर्म प्रचारक थे, साईं का जन्म भले ही किसी मुस्लिम परिवार में हुआ हो किन्तु वे वस्तुतः ईसाई धर्म प्रचारक ही थे इसीलिए इन्होंने देश की परतंत्रता के समय अंग्रेजों के विरुद्ध कभी कोई आवाज नहीं उठाई और न ही भारत के स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों का कभी किसी प्रकार से कोई साथ ही दिया अन्यथा जो इतना सिद्ध व्यक्ति होता तो देश के लिए कुछ कर्तव्य तो उसका भी बनता था किन्तु आजादी के आंदोलन में उनके किसी प्रकार के सहयोग के प्रमाणित कोई साक्ष्य नहीं मिलते हैं आखिर क्यों ?
भारत की आजादी की लड़ाई में सनातन धर्म से जुड़े लोगों ने सनातन धर्मी समाज को जब धार्मिक दृष्टि से संगठित करना प्रारम्भ कर दिया था उस समय इसी की काट के लिए ईसाई धर्म प्रचारकों को सनातनी समाज को अपने पक्ष में संगठित करने का काम सौंपा गया था इनका काम था कि भारतीय समाज में प्रचलित समाज के सभी वर्गों को अपने साथ जोड़ें अपने आचरणों सेवा एवं सहयोग से उन्हें अपनी ओर प्रभावित करें और उन्हें साईं साईं कहना सिखावें क्योंकि तीन बार साईं कहो तो दो बार 'ईसा 'निकलता है और बार बार साईं कहो तो 'ईसा' 'ईसा' ही निकलता है वस्तुतः साईं किसी व्यक्ति का नाम नहीं था शिरडी वालों का नाम भी साईं नहीं था उनका नाम कुछ और ही रहा होगा किन्तु उनमें से किसी के व्यक्तिगत नाम और पते का प्रचार करना अलाउड नहीं था हर किसी को अपने विषय की जानकारी गुप्त रखनी होती थी इन्हें सेवा कार्यों के लिए अक्सर गरीब जनता के समूह चुनने होते थे और गरीबों एवं अशिक्षितों को ही अपने साथ जोड़ना होता था । ये सच है और सबको पता भी है कि इनका वास्तविक नाम साईँ बाबा नहीं था और इनका वास्तविक नाम क्या था ये कभी किसी को बताते भी नहीं थे इनका धर्म क्या था वो भी कभी किसी को नहीं बताते थे चूँकि इन्हें ग़रीबों के बीच छिपकर ईसाई धर्म का प्रचार करना होता था ये चमत्कार करने के नाम पर लोगों की आवश्यकता की चीजें लोगों को बाँटा करते थे जिन्हें पाकर गरीब लोग इन्हें अपना मसीहा मानने लगे थे लोग पूछते थे कि बाबा आपके पास ये सामान कहाँ से आता है अर्थात कौन दे जाता है तो वे"सबका मालिक एक"जैसा कुछ कहकर किसी अज्ञात सत्ता की ओर इशारा कर देते थे यह सब रहस्यात्मक देख सुनकर भोले भाले लोग उन्हें धीरे धीरे सिद्ध साधू और भगवान आदि जिसे जो ठीक लगा सो कहने लगे उन्होंने अपने ऊपर किसी धर्म का लेवल नहीं लगने दिया अर्थात रहते मस्जिद में थे किन्तु उसे कहते द्वारका माई थे इससे हिन्दू मुशलमान दोनों ग्रुप खुश रहते थे इसी प्रकार से हिन्दुओं को पटाने के लिए कुछ देवी देवताओं की मूर्तियाँ रख लेते थे और मुस्लिमों के लिए मजार बना रखी थी सभी वर्ग के लोग इनके यहाँ आते थे ये उन्हें अपने सेवा कार्यों से प्रभावित किया करते थे !ज्यादा किसी से कुछ बोलते नहीं थे किसी धर्म के धर्म स्थान में जाते नहीं थे किसी धर्म ग्रन्थ को पढ़ते नहीं थे किसी धार्मिक महापुरुष से मिलते नहीं थे ये चुप चाप ईसाई धर्म के प्रचार प्रसार में लगे रहते थे ।
गरीब बस्तियों में ग़रीबों को प्रभावित करने के लिए अपने रहन सहन आचार व्यवहार से सबको खुश रखना ही होता है ग्रामीण गरीबों में बहुत लोग चिलम पीते थे तो उन्हें खुश करने के लिए बाबा चिलम भी पीने लगे धीरे धीरे लोगों को विश्वास में लेकर उन्हीं बाबा को समाज के किसी व्यक्ति के मुख से साईं शब्द पहली बार कहलाया गया अब तो उनके प्रति समर्पित सभी लोग उन्हें साईं साईं कहने लगे उससे सा'ईंसा''ईंसा' ईं निकलने लगा ! किन्तु इसके बारे में वे कभी किसी को कुछ बताते नहीं थे ,इसी प्रकार से ये गरीब बस्तियों में गरीब लोगों के साथ जुड़कर उनसे हिल मिलकर पहले उनका मन जीतते थे इसके बाद उन्हें अपना बना लिया करते थे ! इसी प्रकार से जगह जगह वेष बदल बदल कर ईसाई धर्म के अनेकों प्रचारक गरीब बस्तियों में या आदि वासी क्षेत्रों में ईसाई धर्म का विस्तार करने में सफल हुए हैं आज भी सेवाकार्य उसी प्रकार से चलाए जा रहे हैं !
उन वृद्ध फादर ने कहा कि इसी प्रकार के धर्म प्रचार प्रसार के काम से अभी मैं उत्तर प्रदेश गया था वहीँ से आ रहा हूँ उन्होंने बताया कि जौनपुर जिले में , केराकत तहसील के - डोभी के भुङली गाँव में और गाजीपुर जिले मे सैदपुर तहसील के मौधा नामक गाँव से शुरू होकर जौनपुर जिले तक अभी भी इसी प्रकार से बड़े जोर शोर से सेवाकार्यों के माध्यम से ईसाई धर्म का प्रचार प्रसार अभियान बड़ी तेजी से चलाया जा रहा है हमें भी वहीँ पर बोलाया गया था वहीँ से अभी मैं आ रहूँ वहाँ काम संतोष जनक ढंग से चलाया जा रहा है ! हम लोग सेवा कार्यों से जनता का मन जीतते हैं जबरदस्ती नहीं सेवा करना हिन्दुओं के बश का नहीं है धर्म के नाम पर हिन्दू लोग बेकार का केवल शोर मचाते हैं साईं ने गरीबों की सेवा की और उनका सभी प्रकार से सहयोग किया तब लोग उन्हें मानने लगे थे ऐसे ही कोई किसी को नहीं मानने लगता है ।
आज हिन्दू लोग साईं को लेकर पागल हो रहे हैं आखिर ये भी तो देखना चाहिए कि ईसाई धर्म ने गरीब भारतीयों की कितनी मदद की है कितने सेवा प्रकल्प चला रखे हैं मदर टेरेसा किसी साईं बाबा से कम थीं क्या अभी भी इस देश में हजारों लोग भिन्न भिन्न क्षेत्रों में अलग अलग प्रकार से अभियान चलाए हुए हैं किसी भगवान ने लोगों की कोई मदद नहीं की है किन्तु यदि ईसा के उपासक सेवा कार्यों में लगे हैं तो उनकी पूजा प्रार्थना में क्या बुराई है ?
बंधुओ !मैंने यह सब धैर्य पूर्वक सुना इसके बाद बिना किसी पूर्वाग्रह के आपके सामने प्रस्तुत कर रहा हूँ किन्तु यदि साईं का सच वास्तव में ईसा ही है तो कितना दुखद है और सनातन धर्मियों के साथ कितना बड़ा विश्वास घात है । दूसरी बात जो हिन्दू संगठन साईं के विषय में आखें बंद किए हुए बैठे हैं उन्हें अब सोच लेना चाहिए कि अब उनके हाथ से बहुत कुछ निकल चुका है !वैसे भी यदि फादर की ये बातें सही मान ही ली जाएँ जिन्हें सत्यापित करने लायक मेरे पास कुछ नहीं है फिर भी यदि ये कुछ प्रतिशत भी सच है तो साईं नाम का यह सनातन धर्मियों पर बड़ा धार्मिक हमला है जिससे समय रहते सचेत होना बहुत जरूरी है !और इन बातों पर गंभीरता पूर्वक विचार किया जाना चाहिए ।
साई ईसाई धर्म प्रचारक हीथा गुप्त योजना केतहत ईसाई एजेन्ट इसे सनातन धर्म सेजोड कर काँग्रेस के मिसन को पूरा कर रहे है
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