शिक्षा मंत्री सिसोदिया की छापेमारी में प्रिसिंपल सस्पेंड-एक खबर
सिसोदिया जी !आप आर्थिक घपले घोटाले तो देखिए ही साथ ही यह भी याद रखिए कि भीषण शर्दी गर्मी और बरसते पानी में भी सुबह सुबह माता पिता अपने बच्चे तैयार करके स्कूल भेज आते हैं किंतु कई बार ऐसा होता है कि बच्चे पाँच घंटे बैठकर चले आते हैं स्कूल से जहाँ कोई कक्षा में देखने ही नहीं जाता है उन बच्चों को ! उनके बिगड़ते भविष्य एवं माता पिता की बेबसी को देखकर मैं अक्सर भिन्न भिन्न स्कूलों में चला जाता हूँ नैतिकता का उपदेश करने इतना ही मैं कर भी सकता हूँ अन्यथा वो लोग हमें घुसने भी नहीं देंगे अपने स्कूलों में ! किन्तु मेरी सुनता कौन है !महोदय ! राष्ट्रीय राजधानी में कई जगह तो शिक्षक ही विषय से अनभिज्ञ हैं !
श्रीमानजी ! पाँच दस हजार में प्राइवेट स्कूलों को यदि शिक्षक मिल जाते हैं तो सरकार चाहे तो सरकार को भी मिल सकते हैं उसी सैलरी में भरपूर शिक्षक!फिर सरकार अधिक सैलरी देकर कम शिक्षक क्यों उपलब्ध करा पा रही है स्कूलों को ? सरकारी प्राइमरी स्कूल के एक शिक्षक की सैलरी में कम से कम चार वो शिक्षक मिल सकते हैं जो प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाते हैं जिनकी शिक्षा पर सरकार एवं सरकारी शिक्षक भी इतना भरोसा करते हैं कि अधिकांश लोग अपने बच्चे प्राइवेट स्कूलों में उन्हीं के यहाँ पढ़ाते हैं ऐसे भरोसेमंद शिक्षक यदि कम सैलरी में मिलते हों तो अधिक सैलरी देकर भी उन शिक्षकों को रखने की सरकार की मजबूरी क्या है जिनकी लापरवाही विश्वविदित हो !जिनसे जनता का विश्वास इतना टूट चुका हो कि हर कोई अपने बच्चे को प्राइवेट में ही पढ़ाना चाहता है जो सरकारी में भी अपने बच्चे पढ़ा रहा है तमन्ना उसकी भी है कि वो भी प्राइवेट में ही पढ़ावे !समाज की ये धारणा है सरकारी स्कूलों के प्रति !फिर सरकार की ऐसी मजबूरी क्या है कि वो ऐसे ही लापरवाह शिक्षकों से चिपकी रहना चाहती है आखिर शिक्षा व्यवस्था को ऐसी गैर जिम्मेदारी से मुक्त करने का क्या कोई विकल्प ही नहीं बचा है !इनके ट्रेंड होने का बच्चों को क्या लाभ ! इनसे तो भले वो अंट्रेंड शिक्षक जिन्होंने जनता का विश्वास तो बना और बचा रखा है !इन्हें तो विश्वास की भी चिंता ही नहीं लगती है !
बंधुओ !इतनी ही सैलरी में अधिक लोगों की बेरोजगारी दूर की जा सकती है उतने ही धन में स्कूलों को जिम्मेदार और अधिक शिक्षक मिल सकते हैं जो बेरोजगारी का दंश झेलते झेलते पैसे की कीमत समझने लगे होंगे जो बच्चों को आत्मीयता एवं परिश्रम पूर्वक पढ़ाने वाले शिक्षक होंगे क्योंकि उन्हें नौकरी छूट जाने का भय भी तो होगा !
कुल मिलाकर वर्तमान समय में भारत सरकार के प्राइमरी स्कूलों से समाज का विश्वास जब इतना टूट चुका है फिर इस शिक्षा व्यवस्था को अकारण ढोने का क्या लाभ !ऊपर से ऐसी शिक्षा की प्रशंसा के लिए इतने इतने महँगे विज्ञापन दिए जा रहे हैं आखिर क्यों ?जनता के पैसे का ये हाल !जहाँ किसी की जवाबदेही ही नहीं है ।
जब सरकारी विद्यालयों में कोई देखने सुनने वाला ही नहीं है किसी की किसी भी
प्रकार की कोई जिम्मेदारी ही नहीं है।अधिकारियों का काम केवल मीटिंग करना और शिक्षकों का काम उनकी हाँ हुजूरी करना उनके यहाँ परिक्रमा करते रहना बस ! बच्चों का किसी से क्या लेना देना ! बच्चे स्कूलों में जाते हैं भोजन
वाले भोजन दे जाते हैं बच्चे खा लेते हैं अध्यापकों को समय मिला तो स्कूलों
में या कक्षाओं में चक्कर लगा गए कुछ राइटिंग वगैरह लिखने को बता गए नहीं
समय मिला तो कोई बात नहीं !अभिभावक कुछ कह नहीं सकते अधिकारी कोई आता नहीं
है आता भी है तो चाय पानी करके चला जाता है कक्षाओं में गया भी तो चला गया
बस ड्यूटी पूरी हो गयी!वापस लौट गया अधिकारी !क्या यही है शिक्षा का
अधिकार ?
कहीं ऐसे चलते हैं स्कूल!क्या ऐसे होती है पढ़ाई!इस विद्यालय में यदि
अधिकारी जी के अपने पिता जी का पैसा लगा होता तो क्या अधिकारी महोदय ऐसे ही
चला लेते विद्यालय ?
अधिकांश सरकारी प्राथमिक विद्यालयों की स्थिति यह है कि वहॉं शिक्षा के
नाम पर केवल खाना पूर्ति हो रही है प्रायः विद्यालय साढ़े सात बजे खुलते हैं
किंतु प्रायः आठ सवा आठ बजे तक अध्यापक पहुँच पाते हैं विद्यालय। आपस में
मिलते जुलते एवं आफिस में जाकर उपस्थिति का रजिस्टर लेते देते
प्रधानाचार्य जी की खैर कुशल पूछते पूछते बीत जाता है बीत जाता है आधा पौना
घंटा,कक्षा में पहुँचते पहुँचते नौ सवा नौ बज ही जाते हैं! बच्चों की
किताब खोलकर उन्हें राइटिंग आदि लिखने को या किसी कापी किताब से कोई सवाल
लिखने लगाने को बता दिया जाता है।इसी बीच साढ़े नौ बजे लंच हो जाता है जो
साढे़ दस से ग्यारह बजे के बीच तक कहीं पूरा हो पाता है मुश्किल से ! इसके
बाद बारी बारी से किसी न किसी शिक्षक को प्रतिदिन जरूरी काम लगा करता है और
वह निकल जाता है इसीप्रकार बारी बारी से एक आध लोग प्रतिदिन बीमार होने के
कारण चले जाते हैं उनको दवा लेने की जल्दी होती है इसलिए वो निकल जाते
हैं।बारी बारी से कुछ शिक्षक शिक्षिकाएँ छुट्टी की घोषणा करने को बैठे
रहते हैं किंतु अभिभावकों को पहले ही समझाया जा चुका होता है कि साढ़े बारह
बजे छुट्टी होनी है उसके एक मिनट बाद भी आपके बच्चे की हमारी कोई
जिम्मेदारी नहीं है!इसलिए अपना बच्चा समय से ले जाना!अभिभावकों को भी चिंता
रहती है कि कहीं हमारा बच्चा अकेला न छूट जाए इस बात से भयभीत अभिभावक
बारह बजे से ही स्कूल में पहुँचने लगते हैं और अपना अपना बच्चा लेकर चले
आते हैं।साढ़े बारह बजते बजते बिरले ही कुछ बच्चे बच जाते हैं बाकी जा चुके
होते हैं।
इस सारी प्रक्रिया में पढ़ने पढ़ाने का समय ही कब होता
है?और पढ़ाता कौन है पढ़ता कौन है अब तो बच्चों के रिजल्ट का भी कोई झंझट
नहीं है।शिक्षकों को भय किसका है?
उपर्युक्त इन्हीं सब कारणों से
सरकारी विद्यालयों में अपने बच्चे पढ़ाने वाले अभिभावक को लोग इतनी हिकारत
की निगाह से देखने लगते हैं जैसे उसका अपने बच्चे से कोई लगाव ही न हो और
वो समाज का सबसे गया गुजरा इंसान हो!सरकारी विद्यालयों में अपने बच्चे
पढ़ाने वाले माता पिता का सामाजिक स्तर इतना गिर चुका होता है कि न वो बच्चे
से पूछ पाते हैं कि वहॉं पढ़ाई क्या होती है न शिक्षकों से!दोनों का एक ही
जवाब होता है कि यदि पढ़ाना ही था तो प्राइवेट विद्यालय में पढ़ा लेते!इसलिए
माता पिता बच्चे को भेज आते हैं ले आते हैं इसके अलावा स्कूल वालों से वो
कोई प्रश्न करें उनमें इतना साहस कहॉं होता है?क्या यही है शिक्षा का
अधिकार ?
ऐसी परिस्थिति में शिक्षा का अधिकार जैसा कानून भी आखिर क्या कर लेगा जब
शिक्षक लापरवाह होंगे अधिकारी कर्तव्य भ्रष्ट होंगे तो मुख्यमंत्री और
प्रधान मंत्री तो स्कूल स्कूल दौड़े नहीं घूमेंगे!अधिकारियों को ही अपना
नैतिक दायित्व समझते हुए शक्त होना पड़ेगा!अन्यथा यदि स्कूलों में पढ़ाई
ही नहीं होगी!तो क्या कर लेगा शिक्षा का अधिकार ?
इस बात के लिए किसी प्रमाण की आवश्यकता नहीं है कि सरकारी प्राथमिक
विद्यालयों में पढ़ाई नहीं होती है लापरवाही का आलम यह है कि वहॉं का भोजन
करके बच्चे न केवल बीमार होते हैं अपितु कई बार बच्चों के मर जाने तक की
दुखद खबरें सुनाई पड़ती हैं!अभी अभी इस तरह दुर्घटनाओं ने तो सारे देश को
हिलाकर रख दिया है!यह लगभग सबको पता है सरकारी प्राथमिक विद्यालयों में
बच्चों और शिक्षकों के बीच कोई संबंध ही नहीं बन पाता है क्योंकि बच्चों और
शिक्षकों की मुलाकातें ही इतनी कम हो पाती हैं अन्यथा बच्चे खराब भोजन
संबंधी भी अपनी बात अध्यापकों को बता सकते थे!
इसीलिए किसी से भी
पूछ लिया जाए कि वह अपने बच्चे को सरकारी विद्यालय में क्यों नहीं पढ़ाता है
वो सच सच बता देगा!आखिर किसी को शौक थोड़ा है कि वो अपने बच्चों को मोटी
मोटी फीसें देकर प्राइवेट विद्यालयों में पढ़ावे!
बाहर की बात क्या कही जाए दिल्ली के निगम से लेकर सरकारी प्राथमिक स्कूलों
तक में पढ़ाई की यही स्थिति है इस विषय में कोई अधिकारी कर्मचारी नियंत्रण
करने को तैयार ही नहीं है किसी की कोई जवाबदेही नहीं होती है, क्या किसी
भी अधिकारी का यह दायित्व नहीं बनता है कि वो अपने शिक्षकों से पूछे कि
तुम्हारे स्कूलों का सम्मान प्राइवेट स्कूलों की अपेक्षा दिनों दिन घटता
क्यों जा रहा है?किसी भी शिक्षण संस्थान की लोकप्रियता वहॉं के अध्यापकों
के बात ब्यवहार और कर्तव्य परायणता पर निर्भर करती है!सरकारी प्राथमिक
स्कूलों का सम्मान बढ़ाने की जिम्मेदारी आपकी है यदि घट रहा है तो यह
जिम्मेदारी भी आपकी ही है!
सरकारी शिक्षकों से यह क्यों नहीं
पूछा जाना चाहिए कि आखिर आम जनता का विश्वास आप क्यों नहीं जीत पा रहे हैं
?प्राइवेट स्कूलों के शिक्षकों की अपेक्षा क्या तुम कम पढ़े लिखे हो या तुम
पढ़ा नहीं सकते!या उनसे आपकी शिक्षा कम है या आप ट्रेंड नहीं हैं या आपको
सैलरी उनसे कम मिलती है! आखिर स्कूल की ड्यूटी देने और जिम्मेदारी निभाने
में लापरवाही क्यों?इसके साथ साथ सरकारी शिक्षकों से यह भी पूछा जाना चाहिए
कि यदि तुम्हारे यहाँ फीस या एडमीशन फीस भी नहीं ली जाती है भोजन भी बँटता
है ऊपर से पैसे भी दिए जाते हैं।
प्राइवेट स्कूलों के शिक्षकों की अपेक्षा आपकी सैलरी भी कई गुना अधिक
होती है यह किस बात की लेते हो तथा यह कहाँ से आती है?श्रीमान जी यह जनता
की गाढ़ी कमाई में से टैक्स रूप में प्राप्त की गई धनराशि से पचासों हजार
रुपए महीने की सैलरी तुम्हें दी जाती है!फिर भी असक्षम अभिभावक आर्थिक
मजबूरी में अपने बच्चे को आपके यहाँ क्यों पढ़ाता है प्रसन्नता से क्यों
नहीं?
आपकी शिक्षा अधिक है आप ट्रेंड भी हैं फिर भी प्राइवेट स्कूलों से आप
क्यों पिटते जा रहे हैं! आपकी उच्च शिक्षा एवं ट्रेंड होने का क्या लाभ हुआ
समाज एवं सरकार को? सरकारी शिक्षकों से क्या यह भी नहीं पूछा जाना चाहिए
कि आखिर आप लोगों के अपने बच्चे क्यों नहीं पढ़ते हैं सरकारी स्कूलों में
?यदि वो न मानें तो एक बार इस बात की ईमानदारी पूर्वक जाँच क्यों न करा ली
जाए!
फिर हाल कहा जा सकता है सरकारी स्कूलों में बच्चों की न तो पढ़ाई है
और न ही किसी की जिम्मेदारी !भगवान भरोषे चल रहे हैं स्कूल!जनता के नाम पर
जनता का पैसा सरकारी शिक्षकों को सरकारें उधर बाँटती जा रही हैं इधर मीडिया
वालों को बताती जा रहीं हैं।
करिए भैया खूब प्रचार
यह है शिक्षा का अधिकार
भोजन बाँट रही सरकार
सबके सब बच्चे बीमार !
पहले गृहस्थों को महात्मा एवं नौजवानों को अध्यापक ही संयम और सदाचार
पूर्वक सच्चरित्रता की शिक्षा देते थे।साथ ही दुराचरणों की निंदा करते
थे।अब निन्दा करने वालों के चारों तरफ वही सब होता दिख रहा है, निन्दा किसकी कौन और क्यों करे?अध्यापक
वर्ग की स्थिति यह है सरकारी प्राथमिक स्कूलों में पढ़ाई नहीं होती इस विषय
में कोई अधिकारी कर्मचारी नियंत्रण करने को तैयार ही नहीं हैं क्या उसका यह
दायित्व नहीं बनता!सरकारी शिक्षकों से पूछा जाना चाहिए कि यदि
तुम्हारे यहाँ भोजन भी बँटता है पैसे
भी दिए जाते हैं।फीस या एडमीशन फीस भी नहीं ली जाती है और जनता की गाढ़ी
कमाई में
से टैक्स रूप में प्राप्त की गई धनराशि से सैलरी
तुम्हें दी जाती है !उन शिक्षकों से यह क्यों नहीं पूछा जाना चाहिए कि आखिर आम जनता का विश्वास आप क्यों नहीं जीत पा रहे हैं ?आखिर वो अपना आदर्श शिक्षकों को न मानें तो किसे मानें!जब शिक्षक
ही काम चोर होंगे तो बच्चे कैसे होंगे ईमानदार ? प्राइवेट स्कूलों में
हर कोई अपने बच्चे को पढ़ा नहीं सकता सरकारी स्कूलों में यदि पढ़ाई नहीं
होगी तो खाली दिमाग कुछ भी कर सकता है!वह सहने के लिए समाज को हमेशा तैयार
रहना होगा!इन बच्चों का भविष्य बिगाड़ने वाले शिक्षकों के साथ साथ समाज के
वे लोग भी जिम्मेदार हैं जो ऐसा देखते हुए भी सह रहे हैं ।किसी कवि ने लिखा
है कि
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