सत्तासीन नेताओं को पता कैसे लग जाता है कि अब विकास हो गया है चलो अब रैली करते हैं ?
राजनैतिक देवता तो अपने कैलास से उतरते नहीं हैं जनता को उनके दर्शन दुर्लभ होते हैं पत्र व्यवहार बड़ा कठिन होता है फिर भी सब कुछ जान जाते हैं
!
महँगाई बढ़ती जा रही हो,सड़कें टूट रही हों ,अपराध बढ़ रहे हों फिर भी
सत्तासीन नेता कैसे बता देते हैं कि भारी विकास हो रहा है ?आखिर ये देवता जान
कैसे जाते हैं !
यही नेता जब विपक्ष में होते हैं तब इसी परिस्थिति को जंगलराज,महंगाई ,भ्रष्टाचार आदि न जाने क्या क्या बोला करते हैं किंतु सत्ता शीर्ष पर पहुंचते ही उन्हें अच्छे दिनों का एहसास हो जाता है और चारों और राम राज्य दिखाई पड़ने लगता है आखिर कैसे ?
बंधुओ !परिस्थितियाँ वही होती हैं किंतु अंतर इतना होता है कि तब हम उस व्यवस्था में सम्मिलित नहीं होते हैं और अब सम्मिलित हैं तब इसका एहसास नहीं था अब है बस !
एक बात और है जब विपक्ष में होते हैं तो वोट मांगने के लिए घर घर जाना होता है जगह जगह धक्के खाने होते हैं तब पता लगता रहता है आटा दाल का भाव ! किंतु सत्ता में आते ही भोजनपानी फ्री होता है क्या लेना देना महंगाई से !
सत्ता में आने के बाद अधिकारी उनकी गाड़ियों के आगे पीछे चलते है साइरन बजाते हुए ,चिकने रोडों से निकाले जाते हैं सत्तासीन राजनैतिक देवी देवता ! पूरी रोड में दोनों तरफ खड़े पुलिस के आला अधिकारी कर्मचारी धड़ाधड़ ठोंक रहे होते हैं सलाम !
यह सब देख कर पहले गली मोहल्ले में धक्के खाकर देश की हकीकत देखने वाला नेता अधिकारियों के द्वारा स्वरचित आर्टिफीशियल विकास देखकर बाग़ बाग़ हो उठता है उस दिन उसे अपने रामपन एवं अपने राज्य की तुलना राम राज्य से करने के लिए ढिंढोरा पीटने का मन हो उठता है ! जिन्हें सुनकर जनता को लगता है कि ऐसा क्या हो गया जिसके लिए दुंदुभी बजाई जा रही है बोले क्यों ? पता लगा कि नेता जी ने विकास किया है ! वाह बहुत सुन्दर !चलो उन्हें लगने तो लगा विकास हो गया है उनकी आत्मा को शान्ति मिले हम तो पिछले 70 वर्षों से दिन काट ही रहे हैं तो आजतक कुछ बदलता दीखा नहीं और थोड़ा बहुत तो सभी करते हैं !चलो विकास हुआ तो सही हमारा नहीं नेता जी का हुआ यह भी अच्छा ही है ।
राजधानी में रामराज्य !
दिल्ली वालों के लिए डबल सौभाग्य ! केंद्र हो या प्रदेश सरकार दिल्ली
वालों पर सबकी अपार कृपा है !बाकी आप लोग दिल्ली के भी समाचार
तो पढ़ते ही
होंगे ! दो सरकारों के बीच रगड़े जा रहे हैं बेचारे ! दिल्ली वालों
की भी
खबर लेते रहना देश वासियो ! दिल्ली के दंगल में कौन पहलवान
किसको कब पटक दे
क्या पता ! ताल तो दोनों तरफ से ठोकी जा रही है
कुस्ती कठिन है ! इतनी
हमदर्दी पचा नहीं पा रहे हैं दिल्ली के लोग !
भगवान 4 वर्ष 9 महीने दिल्ली
वालों पर अभी और भारी हैं !भगवान करे
ठीक ठीक ही बीत जाएँ दिल्ली वालों के
आने वाले दिन !
' पीठ थपथपावन दिवस 'अर्थात 25-5-2015आप सभी मित्रों को बहुत बहुत बधाई !
यह त्यौहार आज बड़े धूम धाम से मनाया जा रहा है इस पवन पर्व पर अपने मुख
मियाँ मिट्ठू बनना होता है अर्थात अपने मुख से अपनी प्रशंसा उन बातों के
लिए करनी होती है जो आज तक तो न ही कर सके हों और आगे भी जल्दी जल्दी करने
की उम्मीद कम ही दिख रही हो फिर भी आगे आने वाले चुनावों का सामना करने की
कठिन चुनौती सामने खड़ी हो और जनता के बीच जाने की हिम्मत न पड़ रही हो !ऐसे
धर्म संकटों से निपटने में राजनेताओं के लिए इस " पीठथपथपावनदिवस" का महान महत्त्व है ।
यदि हम और हमारे लोग सत्ता में तो 'अच्छे दिन' !
जो विपक्ष में उनके बुरे दिन और आम जनता के हमेंशा एक जैसे दिन 'अपने मुख से अपनी प्रशंसा !' बंधुओ ! कहते कुछ अजीब सा नहीं लगता है ?
पहले अपनी प्रशंसा अपने मुख से करने वालों को अच्छी निगाहों से नहीं देखा
जाता था किंतु राजनीति में किसी की अच्छी बुरी निगाहों की परवाह किसको होती
है यहाँ तो " अपना मन चंगा तो कठौती में गंगा "
अपनों के लिए कुछ अच्छा करके कहने की अपनी परंपरा नहीं है !
यदि जनता को अपना समझा जाए और उनके लिए कुछ अच्छे काम कर ही दिए जाएँ
जिसके लिए जनता चुनकर भेजती है तो फिर करके कहना क्यों ?पहले मर्यादा थी
लोग ऐसा नहीं किया करते थे और जो कह् देते थे उनका कहाँ रह जाता था सम्मान
!लोग कहा करते थे कि यदि कह ही दिया तो करे न करे का क्या फायदा ?किंतु
राजनीति में काम करने कितने लोग आते हैं !यहाँ तो योजनाएँ बना बना कर जनता
को बताना और विपक्ष को गरियाना होता है बस बीत जाते हैं पाँच वर्ष !
अयोग्य चाटुकार लोग राजनीति से समाप्त करते जा रहे हैं नैतिकमूल्य !
एक हिन्दू वादी पार्टी में सम्मिलित होने एकबार मैं गया राजधानी के उस कार्यालय में जिन नेता जी से फोन पर बात हुई थी उन्हीं से जाकर मिला हमने उन्हें अपने सारे डिग्री प्रमाण पत्र एवं सामाजिक कार्य
दिखाए अपनी लिखी हुई किताबों की एक एक प्रति भेंट की, संयोग से उसमें एक
दुर्गा सप्तशती भी थी जो हमने दोहा चौपाई में अनुवाद की है !उन्होंने उसे
देखते ही कहा तो ये आपने लिखी है! मैंने कहा हाँ मान्यवर !उन्होंने तपाक से कहा कि
तुम चंडीपाठ वाले लोग रंडीपाठ वाली राजनीति में क्या करने के लिए आना
चाहते हो ! खैर, अपना नंबर दे दो देखेंगे बाद में ! संभवतः अब वो कहीं राजनीति की इतनी ऊँची जगह बैठे होंगे जहाँ से हम जैसे छोटे लोग दिखाई ही कहाँ पड़ते होंगे ! अब वो मिलेंगे कुछ वर्ष बाद जब धरती पर आएँगे !
अँधा जब देखे तब भरोसा करे !
प्रधान मंत्री जी अपनी सरकार को अच्छा बतावें या मुख्यमंत्री जी हमलोग तो बने ही उनकी प्रशंसा सुनने के लिए हैं और कर भी क्या सकते हैं !कम से कम ये लोग कुछ करने को कह तो रहे हैं हमें तो इसी बात की ख़ुशी है !
अच्छे नेताओं को भी अपने अच्छे कामों पर भीड़ देखे बिना भरोसा कहाँ होता है !
अपने किए हुए अच्छे कामों पर यदि भरोसा ही हो तो रैली रैला क्यों ? जो काम आप ने किए जनता ने समझे बस बात खत्म । आखिर जनता के लिए किए गए कामों पर ढिंढोरा आप क्यों पीटते फिरें ! अब अच्छी बुरी टिप्पणी जनता की तरफ से आने की प्रतीक्षा तो की जानी चाहिए किंतु राजनीति में इतनी समाई कहाँ होती है किसी को !
धन्य हैं लोकतंत्र के रखवाले जुबान बहादुर लोग !
यहाँ तो जिसे परीक्षा देनी होती है वाही इक्जामनर होता है वही कापियाँ
जँचता है वही रिजल्ट घोषित करता है वही मैरिट बनाता है और वही अपने को सर्व
श्रेष्ठ राजनेता सिद्ध कर लेता है !बारी राजनीति !बारे राजनेता !!धन्य हैं
लोकतंत्र के जुबान बहादुर लोग !!!
जनता की समस्याएँ सत्तासीन राजनैतिक देवताओं तक पहुँचती आखिर कैसे होंगी ?
वो तो अपने कैलास से उतरते नहीं हैं जनता को उनके दर्शन दुर्लभ होते हैं पत्र व्यवहार बड़ा कठिन होता है ।फिर भी जान जाते हैं
महँगाई बढ़ती जा रही हो हो,सड़कें टूट रही हों ,अपराध बढ़ रहे हों फिर भी
सत्तासीन नेता कैसे बता देते हैं कि भारी विकास हो रहा है ?ये देवता जान
कैसे जाते हैं ! कोई अल्प संख्यक हो, दलित हो, विकलाँग हो उनके पत्रों का
जवाब देने में अच्छा भी लगता है जब मीडिया दयालू कृपालु जैसी छवि बना रहा
होता है ! बाकी लोगों से पत्र व्यवहार कैसा ?
यदि हम और हमारे लोग सत्ता में तो 'अच्छे दिन' !
जो विपक्ष में उनके बुरे दिन और आम जनता के हमेंशा एक जैसे दिन !
'अपने मुख से अपनी प्रशंसा !' बंधुओ ! कहते कुछ अजीब सा नहीं लगता है ?
पहले अपनी प्रशंसा अपने मुख से करने वालों को अच्छी निगाहों से नहीं देखा
जाता था किंतु राजनीति में किसी की अच्छी बुरी निगाहों की परवाह किसको होती
है यहाँ तो " अपना मन चंगा तो कठौती में गंगा "
अपनों के लिए कुछ अच्छा करके कहने की अपनी परंपरा नहीं है !
यदि जनता को अपना समझा जाए और उनके लिए कुछ अच्छे काम कर ही दिए जाएँ
जिसके लिए जनता चुनकर भेजती है तो फिर करके कहना क्यों ?पहले मर्यादा थी
लोग ऐसा नहीं किया करते थे और जो कह् देते थे उनका कहाँ रह जाता था सम्मान
!लोग कहा करते थे कि यदि कह ही दिया तो करे न करे का क्या फायदा ?किंतु
राजनीति में काम करने कितने लोग आते हैं !यहाँ तो योजनाएँ बना बना कर जनता
को बताना और विपक्ष को गरियाना होता है बस बीत जाते हैं पाँच वर्ष !
अयोग्य चाटुकार लोग राजनीति से समाप्त करते जा रहे हैं नैतिकमूल्य !
एक हिन्दू वादी पार्टी में सम्मिलित होने एकबार मैं गया राजधानी के उस कार्यालय में जिन नेता जी से फोन पर बात हुई थी उन्हीं से जाकर मिला हमने उन्हें अपने सारे डिग्री प्रमाण पत्र एवं सामाजिक कार्य
दिखाए अपनी लिखी हुई किताबों की एक एक प्रति भेंट की, संयोग से उसमें एक
दुर्गा सप्तशती भी थी जो हमने दोहा चौपाई में अनुवाद की है !उन्होंने उसे
देखते ही कहा तो ये आपने लिखी है! मैंने कहा हाँ मान्यवर !उन्होंने तपाक से कहा कि
तुम चंडीपाठ वाले लोग रंडीपाठ वाली राजनीति में क्या करने के लिए आना
चाहते हो ! खैर, अपना नंबर दे दो देखेंगे बाद में ! संभवतः अब वो कहीं राजनीति की इतनी ऊँची जगह बैठे होंगे जहाँ से हम जैसे छोटे लोग दिखाई ही कहाँ पड़ते होंगे ! अब वो मिलेंगे कुछ वर्ष बाद जब धरती पर आएँगे !
अच्छे नेताओं को भी अपने अच्छे कामों पर भीड़ देखे बिना भरोसा कहाँ होता है !
अपने किए हुए अच्छे कामों पर यदि भरोसा ही हो तो रैली रैला क्यों ? जो काम आप ने किए जनता ने समझे बस बात खत्म । आखिर जनता के लिए किए गए कामों पर ढिंढोरा आप क्यों पीटते फिरें ! अब अच्छी बुरी टिप्पणी जनता की तरफ से आने की प्रतीक्षा तो की जानी चाहिए किंतु राजनीति में इतनी समाई कहाँ होती है किसी को !
धन्य हैं लोकतंत्र के रखवाले जुबान बहादुर लोग !
यहाँ तो जिसे परीक्षा देनी होती है वाही इक्जामनर होता है वही कापियाँ
जँचता है वही रिजल्ट घोषित करता है वही मैरिट बनाता है और वही अपने को सर्व
श्रेष्ठ राजनेता सिद्ध कर लेता है !बारी राजनीति !बारे राजनेता !!धन्य हैं
लोकतंत्र के जुबान बहादुर लोग !!!
किसकी सरकार कितनी अच्छी है ये तो जनता को ही पता होगा ! किंतु नेता कैसे
जान जाते हैं कि मेरी सरकार अच्छा काम कर रही है वो तो कभी जनता से पूछने
नहीं जाते कि क्या बीत रही है तुम पर !और जनता उनसे मिल तो सकती नहीं अपनी
बात बतावे तो कैसे ?पत्रों तक का जवाब तो वापस आता नहीं है कोई अल्प संख्यक
हो, दलित हो, विकलाँग हो उसका जवाब देने से पहले मीडिया को बता दिया जाता
है कि अब जवाब दिया जा रहा है !
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