किंतु अन्ना जी !गलत लोग न हों तो कैसे चलेगी राजनीति क्या मुट्ठी भर अच्छे लोग चला लेंगे देश !अच्छे लोग राजनीति में आवें कहाँ से और उन्हें यहाँ घुसने कौन देगा और घुस भी जाएँ तो टिकने कौन देगा ?
अन्ना जी !केजरीवाल कहाँ से ले आते अच्छे आदमी !आप तो ऐसे बोल रहे हैं जैसे गलत आदमी केजरीवाल ने ही बनाए हैं अरे ! इस देश की मंडी में जो मिल रहा है केजरी वाल भी वही तो लाएँगे । देश की सामाजिक एवं राजनैतिक मंडी में अधिकांश मॉल ही बेईमानी पसंद है तो केजरीवाल क्या करें !!
अन्ना जी !अच्छे लोगों की संख्या देश में इतनी कम है कि उनके साथ चलकर राजनीति नहीं की जा सकती ! क्योंकि लोकतंत्र में संख्या का ही महत्त्व होता है यहाँ तो गुण नहीं अपितु शिर गिने जाते हैं शिरों की संख्या हमेंशा उनके पास होती है जो ईमानदार होने की अपेक्षा ईमानदार दिखने में सफल होते हैं वो कितने ही बड़े अपराधी क्यों न हों !राजनीती में सफल होने के लिए कई लोग विरोधियों की हत्या किया या कराया करते हैं और सौ करोड़ देश वासियों के विकास की कसमें खाया करते हैं !लोग भरोसा भी कर लेते हैं !
गलत लोग आसानी से मिल भी जाते हैं जितने चाहो उतने मिल जाते हैं जैसे जैसे दुर्गुण संपन्न चाहिए वैसे मिल जाते हैं !गलत लोगों को जोड़ अच्छे इसके केजरीवाल जी ही अकेले नहीं हैं हर राजनैतिक पार्टी जोड़ती गलत लोगों को ही है किंतु अच्छे लोग चूँकि कुशल होते हैं प्रतिभा संपन्न होते हैं इसलिए वे जबर्दस्ती भले घुस जाएँ अन्यथा पार्टियों का स्थापित नेतृत्व हमेंशा ऐसे लोगों को अपने साथ जोड़ना चाहता है जो उनसे अयोग्य उनसे मूर्ख उनसे काम अच्छा बोलने वाले उनसे कम अच्छे प्रतिभावाले लोगों की संख्या अधिक से अधिक हो ताकि वो कभी भी संख्या बल से पार्टी के बुद्धिमान कार्यकर्ताओं पर अंकुश लगा सकें !
शिक्षा से जुड़े लोग शिक्षा में भ्रष्टाचार रहे हैं साधू संतों में भी व्यापारी घुस आए हैं साधु होकर हजारों करोड़ का व्यापार फैलाए फिर रहे हैं योग की जगह व्यायाम बेच रहे हैं !जिनके अपने आचरण ऐसे हों वो सदाचारी समाज का निर्माण कैसे कर सकेंगे ! शिक्षक और संत ही संस्कार निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निर्वाह कर सकते हैं किंतु दोनों में भारी भ्रष्टाचार है!बाबा भ्रष्ट होकर व्यापार कर रहे हैं शिक्षक भ्रष्ट होकर प्यार कर रहे हैं जवान भटक कर बलात्कार कर रहे हैं नेता बिगड़कर भ्रष्टाचार कर रहे हैं अब समाज को संस्कार दे कौन !लोगों में स्वयं ईमानदारी के भाव जागते नहीं हैं उसका मूल कारण है कि आम लोग ईमानदारों की अपेक्षा भ्रष्टाचारियों को सफल होता हुआ अधिक देखते हैं -
भ्रष्टाचारियों के पास पैसे हैं ,पद हैं, प्रतिष्ठा है प्रसिद्धि है और सदाचार में क्या है ?
गलत लोग न हों तो कैसे चलेगी राजनीति क्या मुट्ठी भर अच्छे लोग देश चला लेंगे !
अच्छे लोगों का निर्माण करने के लिए खाली कौन है ?कैसे होगा भले लोगों का निर्माण !
नेताओं और किसानों में भी इतना ही अंतर है -
अच्छे लोगों का निर्माण करने के लिए खाली कौन है ?कैसे होगा भले लोगों का निर्माण !
नेताओं और किसानों में भी इतना ही अंतर है -
किसानों की गलती क्या है यही न कि वो मेहनत से ईमानदारी पूर्वक कमाना खाना चाहते हैं !
नेताओं की अच्छाई यही है कि ईमानदारी की बातें कर के भ्रष्टाचार से धन कमाते हैं सब सुख सुविधाएँ भोगते हैं पद प्रतिष्ठा प्रसिद्धि पाते हैं नेता को परिवार के भरण पोषण के लिए व्यापार या काम काज भी करना पड़ता किंतु भ्रष्टाचार के बल पर दो दो रूपए को मोहताज रह चुके नेता आज अरबों पति हैं उनके पास न कोई व्यापार है और न ही व्यापार करने का समय !भ्रष्टाचारियों को देश सब सुख सुविधाएँ दे रहा है और सदाचारियों को मुआबजे के तीस पैंतीस रुपए के चेक !
इसलिए जब तक अच्छे लोगों की संख्या नहीं बढ़ेगी तब तक समाज और राजनीति में अच्छे लोगों की संख्या कैसे बढ़े !और संख्या बढे बिना अच्छे लोग अच्छी बात भी बोलेंगे तो दबका कर बैठा दिए जाएँगे लोकतंत्र में संख्या का महत्त्व होता है अच्छे लोगों की संख्या बहुत कम है दूसरा वो मुर्दों की तरह ढोए नहीं जा सकते !अच्छे लोग अपनी बात भी रखेंगे ! इस भय से नेता लोग अपनीभ्रष्ट पार्टियों में अच्छे लोगों को घुसने भी नहीं देते हैं !मैंने भी प्रयास किया था किंतु किसी पार्टी को पसंद नहीं आया । आप भी देखें हमारे दोष जिनके कारन राजनैतिक पार्टियां हमें पचा नहीं रही हैंsee more... http://jyotishvigyananusandhan.blogspot.in/p/blog-page_7811.html
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