Monday, 30 November 2015

आरक्षण से सवर्णों का स्वाभिमान भले चला जाए किंतु भला कभी नहीं हो सकता ! इसलिए सवर्ण लोग आरक्षण की जगह नैतिक कमाई में ही करें संतोष !

  जातिवादी सरकारें अब स्कूलों में भी खेलने लगी हैं बचपन बाँटने का खतरनाक खेल !
    अब तो सरकारें ये भी तो बता दें कि किस दिन किस जाति के बच्चे स्कूल पढ़ने आवें !इससे और कुछ हो न हो किंतु सवर्णों के बच्चे बेचारे जलील होने से तो बच ही  जाएँगे !
      बंधुओ !आरक्षण का जहर स्कूलों तक न पहुँचने  दिया जाता तो  अच्छा होता !  सरकारी स्कूलों में किसी को एससी के नाम पर पैसे मिलते हैं किसी को माइनॉरिटी  के नाम पर और सवर्णों के छोटे छोटे बच्चे ताकते रह जाते हैं वे बेचारे नहीं समझ पाते कि  सरकारें किस पाप का दंड दे रही हैं उन्हें !
     सवर्णों के छोटे छोटे बच्चे स्कूलों से मायूस होकर लौटते हैं घर और पूछते हैं अपने माता पिता से कि एससी या माइनॉरिटी  बनने के लिए क्या पढ़ाई पढ़नी पड़ती है ? माँ ने पूछा क्यों ?बच्चे ने उदास होकर कहा माँ मुझे भी बनना है एससी और माइनॉरिटी  दोनों !माँ ने कहा तू कैसे बन सकता है? बच्चे ने कहा माँ मेहनत करके पढ़ाई लिखाई करूँगा तब भी नहीं बन सकता क्या !माँ ने कहा तुम कभी नहीं बन सकते !बच्चे ने पूछा क्यों  ?तो माँ ने कहा बेटा ये सब कुछ बनने के लिए कुछ पढ़ना वढ़ना नहीं अपितु बेवकूफ रहना होता है । बच्चे ने कहा कि क्यों ?तो माँ ने कहा बेटा भगवान न करे कि  सरकार से भीख माँगने के लिए
किसी को ये तरह तरह के वेष धरने पड़ें !
      बेटा !ये सबकुछ बनने के लिए बड़े झूठ बोलने पड़ते हैं पहले कहना पड़ता है कि मैं  सवर्णों के कारण गरीब हूँ क्योंकि उन्होंने मेरा पहले शोषण किया था किंतु बेटा आजतक ये झूठे ये नहीं बता पाए कि सवर्णों ने इनका शोषण किया कब और कैसे था कितना किया था और वो धन गया कहाँ यदि सवर्णों ने ऐसा किया होता तो वो लोग क्यों गरीब होते !दूसरी बात सवर्णों की संख्या तो कम थी जब  वे शोषण कर रहे थे तब बहु संख्यक लोगों ने उन्हें ऐसा करने क्यों दिया ?आदि बातों के उनके पास  जवाब नहीं होते !
       इसी प्रकार एक तरफ तो ये लोग अपने घर गृहस्थी का खर्च चलाने के लिए सरकारों के आगे हाथ फैलाया करते हैं ये खुद स्वीकार करते हैं कि हम अपने बल पर अपनी तरक्की नहीं कर सकते हमें घर चलाने के लिए के लिए सरकार की मदद चाहिए !तो दूसरी ओर चुनाव लड़कर विधायक मंत्री आदि सब कुछ बन जाना चाहते हैं ऊपर से कहते हैं कि हम तो देश की तरक्की करेंगे !अरे !अपनी तरक्की अपने बल पर कर नहीं  सकते उसके लिए तो आरक्षण चाहिए किंतु देश की तरक्की करने की गारंटी लेते हैं । बहुत झूठ बोलते हैं ये लोग !
        वैसे भी ऐसा झूठ साँच बोलकर पाया गया धन न तो अपने काम आता है और न ही बच्चों की तरक्की के काम और न ही इससे स्वाभिमान ही बन पाता है इसलिए तुम पैसे मांगने या दयादोहन करने के लिए एससी ,माइनॉरिटी आदि कुछ भी न बनो  परिश्रम  करके तरक्की करो और स्वाभिमानी जीवन जियो !
    सरकारों की आरक्षण आदि कृपा के बलपर जीवित रहने वाले लोग पेट तो भर सकते हैं किंतु तरक्की कभी नहीं कर सकते और न ही स्वाभिमान ही बचाकर रख सकते हैं रही बात पेट भरने की तो वो तो पशु भी भर लेते हैं मानव का कर्तव्य तो स्वाभिमानपूर्वक अपनी तरक्की स्वयं करना है । 
      माँ की ये  सब बातें सुनकर बच्चा सच्चाई समझते ही खुश होकर शांत हो गया !
       
      


दिल्लीवालों का भरोसा जीतने के लिए भी सरकार और सरकारी तंत्र कुछ करे !

   भ्रष्टाचार को व्यापार माननेवाले अपराधी हों या अधिकारी इन्हें चिन्हित कैसे किया जाए और कार्यवाही ऐसी क्या हो जिसे देखकर औरों को भी सबक मिले !दिल्ली में अभी तक तो शिकायत करने वालों पर ही भारी पड़ते हैं अपराधी !गुंडई रोकने और आम आदमियों का भरोसा जीतने के लिए भी कुछ करे सरकार ! जिम्मेदारियाँ तो तय हों !!
     इस समय पूर्वी दिल्ली में  बिल्डिंग से संबंधित किसी समस्या के लिए EDMC वाले कहते हैं दिल्ली सरकार से कहो दिल्ली सरकार कहती है कि ये काम मोदी सरकार का है अंत में निरपराध होते हुए भी पीड़ित व्यक्ति को केस करने की सलाह दी जाती है जिसमें खर्चा वो करे जिसका कोई अपराध न हो वही लोगों से हाथ पर जोड़ते घूमे अंत में अपराधियों के द्वारा धमकाया वही जाए सबसे डर कर केस वापस ले ले फिर निराश हताश होकर सहता रहे अपराधियों के जुल्म !इसे कानून का शासन कहा जाए या अपराधियों का ? 
       इसके उदाहरण तो अनेकों होंगे किंतु मेरी जानकारी में है पूर्वी दिल्ली की ऐसी ही एक बिल्डिंग एवं इसमें रहने वाले हैरान परेशान डरपोक लोग !इनकी प्रशासन से एक ही शिकायत है कि अपराधियों के विरुद्ध कम्प्लेन करने वालों को धमकियाँ तो तुरंत मिलने लगती हैं काम हो या न हो! इसलिए कितनी भी मुशीबत उठाएँगे किंतु कम्प्लेन नहीं करेंगे !
  पूर्वी दिल्ली कृष्णा नगर में k-71 दुग्गल बिल्डिंग नाम से एक चार मंजिला बिल्डिंग है जिसमें सोलह फ्लैट हैं बिल्डर सारे फ्लैट बेचकर चला गया था ! सामूहिक छत होने के कारण शर्दी में धूप सेकते एवं गर्मियों में बिजली चले जाने पर लोग खुली हवा में छत पर लेट जाया करते थे !किंतु आज की स्थिति ये है कि ऊपर की मंजिल में रहने वाले मात्र दो लोगों ने छत पर जाने आने का रास्ता बंद कर दिया है ताला लगा दिया है ताली उनके पास है यहाँ तक कि अब तो टंकियों में पानी तक नहीं भरा जा सकता इतने डेंगू आदि का शोर मचा रहा किंतु टंकियाँ  साफ नहीं कराई  जा सकतीं !फ्लैटों में रहने वाले दस बारह परिवार पानी के बिना बुरी तरह से परेशान हैं किंतु उन लोगों की धमकियों से डरे सहमे बेचारे शिकायत छोड़िए अब तो अपनी परशानी भी बताने में डरने लगे हैं  बिल्डिंग वाले जैसे जैसे डरते जा रहे हैं वैसे वैसे वो लोग अपनी पदोन्नत्ति करते जा रहे हैं ।उनके कथनानुशार ववो दिल्ली सरकार क्या केंद्र सरकार को कुछ नहीं समझते जिसे जहाँ जो शिकायत करनी हो सो कर ले उनका क्या बिगाड़ लेगा !श्री मान जी अब तो अपने को SHO बताने लगे हैं और कहने लगे हैं कि छत मैंने खरीद ली है किंतु पिछले बीस वर्षों से जो टंकियाँ रखी हैं वो जबर्दश्ती बंद की जा सकती हैं क्या ?किंतु उनसे कोई ये पूछने वाला नहीं है कि छत में ताला तुमने लगाया कैसे क्या अधिकार था तुम्हारे पास ?ऐसे तो कल बेसमेंट वाले बेसमेंट बंद कर देंगे लोग अपने अपने दरवाजे सामने की सीढ़ियाँ बंद कर देंगे उन्हें कैसे रोका  जाएगा !
     शुरू से हुआ कुछ ये कि बिल्डिंग के जब सारे फ्लैट बिक गए उसके कुछ वर्ष बाद बिल्डिंग में रहने वालों की जानकारी के बिना बिल्डर से किसी ने आधी छत खरीद ली और उस पर बिल्डिंग में रहने वालों से बिना कोई सलाह मशविरा किए बिना ही एक मोबाईल टावर लगवा दिया जिसका किराया वो लेता है जबकि वो बिल्डिंग में रहता भी नहीं है और न ही बिल्डिंग में उसका कोई फ्लैट ही है ।  शुरू में कहा गया था कि बिल्डिंग के मेंटिनेंस के रूप में 4000 रूपए महीने एवं एक गार्ड देख रेख के लिए बिल्डिंग वालों को दिया  जाएगा उस हिसाब से अब तक लाखों में बनते हैं किंतु न तो कुछ दिया गया और न ही कोई गार्ड आया  !
  •       रेडिएशन का खतरा है या नहीं सुना है कि इस पर रिसर्च चल रही है किंतु यदि बाद में पता लगा कि रेडिएशन का खतरा है तो ये खतरा बिल्डिंग में रहने वाले लोग अभी तक क्यों भोगते आ रहे हैं जबकि उनका उस टावर से कोई लेना देना नहीं है किराया वो ले रहा है और खतरा बिल्डिंग वाले उठा रहे हैं ।इसका जवाब देने के लिए कोई अधिकारी तैयार नहीं है ।
  •  दूसरी बात टावर में अक्सर कुछ न कुछ ठीक करने के बहाने  अपरिचित लोग बिल्डिंग में बिना पूछे बताए घुसते रहते हैं अगर वो कभी कोई बारूद रख कर भी चले जाएँ तो पता तभी चलेगा जब विस्फोट होगा । लापरवाही सरकार की भोग रहे हैं बिल्डिंग वाले ! इसके लिए जिम्मेदार आखिर कौन है ? 
  • बिल्डिंग वालों ने अपरिचित देखकर कई बार एतराज किया तो वो लड़के लड़ने लगे तब पुलिस बोलाई गई किंतु पुलिस को उन लोगों ने प्रसन्न कर लिया और  दसपाँच लोग लेकर बिल्डिंग में रहने वालों को वो लोग धमका गए खबरदार जो अबकी शिकायत की आदि आदि और भी बड़ी बड़ी धमकियाँ !तब से बिल्डिंग वाले बेचारे पूरी तरह शांत हो गए हैं अब कोई कुछ भी करे उनकी बला से !किंतु बिल्डिंग की सुरक्षा के लिए क्या ये सही है !
     दिल्ली प्रशासन की ये लापरवाही देखकर पीड़ित सक्षम लोग तो बिल्डिंग छोड़कर चले गए हैं कुछ किराए पर उठकर बाहर रहने को मजबूर हैं जबकि अक्षम लोग अभी भी यहीं रह रहे हैं कहाँ जाएँ वो ?अब तो कहीं कोई शिकायत करके भी रिस्क नहीं लेना चाहते हैं यहाँ तक कि आज उन पर क्या बीत रही है पूछने पर भी वो बताने में डरते हैं। उन्हें MCD या पुलिस आदि प्रशासन पर भरोसा तो अब बिलकुल नहीं रहा इसलिए सारी समस्याएँ सह रहे हैं बेचारे !
  बिल्डिंग वालों की इसी कमजोरी का लाभ उठाने के लिए बिल्डिंग में सबसे ऊपर जिनका फ्लैट है वो अब अपने को ShO बताने लगे हैं अब उन्हें भी चाहिए धन ! उन्होंने टावर लगने से बची आधी छत पर भी लगभग पिछले एक वर्ष से किसी को टंकियाँ देखने जाने तक के लिए मना कर रखा है !दूसरी ओर छत पर कुछ जगह और खाली है उसके नीचे रहने वाले व्यक्ति अब अपने को वकील कहने लगे हैं उन्हें भी कुछ चाहिए अन्यथा उनके लिए टंकियाँ रखने की बात तो  दूर छत पर से पानी का पाइप भी नहीं निकलने देते हैं लापरवाह अधिकारियों की कृपा से ये रौब है उनका !इस प्रकार से उन दोनों लोगों ने बिल्डिंग वालों का सामूहिक ताला बदल दिया है अब छत पर जाने के लिए लोग उन्हीं लोगों की कृपा पर आश्रित हैं , ताली उन्हीं लोगों के पास है !इतना डेंगू का शोर मचा रहा टंकियाँ साफ रखने के लिए बड़े बड़े विज्ञापन दिखाई सुनाई पड़ते रहे किंतु उन लोगों ने साफ साफ कह दिया कि जिससे जिसको शिकायत करनी हो कर दे मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता !आदि आदि !
   पहले भी कुछ वर्षों से कभी टंकियाँ फाड़ दी जाती रही हैं कभी गोबर कुत्ते की बीट कूड़ा आदि डाल दिए जाते रहे हैं यहाँ तक कि एक बार तो मरी हुई बिल्ली  जो पहले छत पर पड़ी हुई देखी गई थी वो उठाकर टंकी में डाल दी गई थी लोग उसी पानी से बर्तन धोते नहाते कुल्ला आदि करते रहे । जब बिल्ली  बिलकुल गल गई तब बिल्डिंग वालों को पता लगा तब साफ कराई  गईं टंकियाँ !   
    अब तो वो लोग यहाँ तक कहने लगे हैं कि छत हमने खरीद ली है और बिल्डिंग वालों को धमकाकर पानी बिलकुल बंद कर रखा है कई महीनों से ये यातनाएँ झेल रहे लोग आज भी  उन लोगों के विरुद्ध मुख खोलने को तैयार नहीं हैं !
   बिल्डिंग दिनोंदिन पुरानी होती जा रही है कभी कभी वेसमेंट में पानी भर जाता है लोग डरते हुए भी उसे इसलिए ठीक नहीं करवा रहे हैं कि बिल्डिंग का मेन्टीनेंश जो तय हुआ था वो या तो टावर वाले दें बिल्डिंग की रिपेयरिंग करवायी जाए अन्यथा टावर तुरंत हटाया जाए तो हम लोग खुद रिपेयरिंग करवा लेंगे !
     अंधेर तो ये है कि अब तो सबसे नीचे की फ्लोर वाले भी वेसमेंट में ताला डालने की चर्चा करने लगे हैं वहाँ पीने के पानी की मोटरें लगी हैं जिनसे काम चल रहा है ! यहाँ एक दो लोग व्यापारिक कार्य कर रहे हैं उन्हें उतनी दिक्कत नहीं है !इसलिए वो क्यों बोलें ! कुल मिलाकर बिल्डिंग वालों को न तो कानून व्यवस्था का भय है और न ही कानून व्यवस्था पर भरोसा ही है इसलिए वो किसी एप्लीकेशन पर साइन तक करने से डरते हैं इतने डराए धमकाए जा चुके हैं । 
       अब तो सरकार  की  ईमानदारी पर ही भरोसा है कि वो सक्षम अधिकारियों को भेजकर वस्तुस्थिति समझें और रहने वाले लोगों से उनकी परेशानियाँ पूछें छत खोलवावें टंकियों की स्थिति देखें स्वतः पता चल जाएगा लोगों की परेशानियों का ! लोगों से सच्चाई समझने के लिए उन्हें विश्वास में लेना होगा क्योंकि शासन प्रशासन से कई बार धोखा खा चुके हैं वो लोग ! इसलिए वो इतनी आसानी से कुछ भी बोलने को तैयार नहीं हैं । 
     हैरान परेशान लोग जा हमसे शिकायत करते हैं तो हमने कई बार कम्प्लेन किए किंतु कार्यवाही तो हुई नहीं हमें धमकियाँ मिलने लगीं !फिलहाल आज मैं भी सामने नहीं आना चाहता हूँ । सरकार सक्षम है उसके पास संसाधन हैं वो चाहे तो इन  लोगों  की मदद कर सकती है या कोई मीडिया कर्मी मदद करना चाहे तो वो उद्घाटित कर सकता है सम्पूर्ण वृत्त !
         श्रीमान जी !मैं किसी से कोई कम्प्लेन नहीं कर रहा मैं तो जिम्मेदार लोगों को केवल सूचित कर रहा हूँ हमारा कर्तव्य अपराध के विरुद्ध आवाज उठाने वाले समाज सेवी पत्रकारों के साथ साथ निगम ,क्षेत्रीय विधायक श्री बग्गा जी एवं सांसद श्री महेशगिरी जी तथा  दिल्ली सरकार के जिम्मेदार लोगों को सूचित करना है यदि किसी के मन में कानूनी मदद करने की इच्छा हो और मदद करना चाहे तो बिल्डिंग के लोग आप सभी के आभारी होंगे !

      
      

                                                                                                       

Sunday, 29 November 2015

 शरद यादव जी ! बिहार की गद्दी सौंपिए किसी दलित को अन्यथा दलितों के शोषण का ढिंढोरा पीटना बंद कीजिए !
दलितों को किस्तों में  आरक्षण देने से अच्छा है कि उन्हें सौंपी जाए देश और सभी  प्रदेशों की वागडोर !इसकी शुरुआत बिहार से तत्काल की जाए !
     दलितों का दुःख दूर करने की पवित्र पहल ! 
  सभी पार्टियों के नेता और सभी सरकारों के मंत्री अपने पद पदवी दलितों को सौंपे सभी अधिकारी अपने अपने विभाग के किसी महादलित को दें अपना पद !जातिवाद को मिटाने की इच्छा रखने वाले नेता लोग ईमानदारी पूर्वक अपने बेटा बेटियों की शादियाँ दलितों के यहाँ करें अन्यथा झूठे नारे लगाने बंद करें !   देश में जो सबसे अधिक गरीब महादलित हो उसे राष्ट्रपति बनाया जाए उससे जो नंबर दो पर हो उसे प्रधानमंत्री ऐसे ही क्रमवार सारे पद बाँटे जाएँ ! राजनैतिक पार्टियों की कमान नेता लोग गरीब दलितों के हाथ में सौंपें see more....http://samayvigyan.blogspot.in/2015/11/blog-post_35.html

शरदयादव जी जातिवाद फैलाकर जीते हैं चुनाव ,अब जातिवाद के विरुद्ध भाषण दे रहे हैं ! बारी राजनीति !!
   शरदयादव जी ! जातिगत आरक्षण भी तो जातिवाद ही है  आरक्षण देने के लिए आखिर जातियों की जरूरत क्यों पड़ती है हिम्मत है तो जातिवाद समाप्त करने के लिए जातिगत आरक्षण का भी विरोध कीजिए अन्यथा जातिवाद का रोना मत रोइए !
    दलितों का सबसे बड़ा हिस्सा भ्रष्टाचारी  नेताओं के घरों में दबा पड़ा है जो बिना किसी रोजगार व्यापार के अरबोंपति हो गए हैं अाखिर कहाँ से आता है ये धन शरद यादव जी हिम्मत है तो ऐसे नेताओं के विरुद्ध बोलिए और उनके घरों से निकालिए दलितों के हिस्से का धन !
  जिन लालू जी ने पशुओं तक का चारा न छोड़ा हो उन्होंने  दलितों को बक्स दिया होगा क्या ?उनके साथ see more...http://samayvigyan.blogspot.in/2015/11/blog-post_27.html

Friday, 27 November 2015

शरदयादव जी जातिवाद फैलाकर जीते हैं चुनाव ,अब जातिवाद के विरुद्ध भाषण दे रहे हैं ! बारी राजनीति !!

   शरदयादव जी ! जातिगत आरक्षण भी तो जातिवाद ही है  आरक्षण देने के लिए आखिर जातियों की जरूरत क्यों पड़ती है हिम्मत है तो जातिवाद समाप्त करने के लिए जातिगत आरक्षण का भी विरोध कीजिए अन्यथा जातिवाद का रोना मत रोइए !
    दलितों का सबसे बड़ा हिस्सा भ्रष्टाचारी  नेताओं के घरों में दबा पड़ा है जो बिना किसी रोजगार व्यापार के अरबोंपति हो गए हैं अाखिर कहाँ से आता है ये धन शरद यादव जी हिम्मत है तो ऐसे नेताओं के विरुद्ध बोलिए और उनके घरों से निकालिए दलितों के हिस्से का धन !

  जिन लालू जी ने पशुओं तक का चारा न छोड़ा हो उन्होंने  दलितों को बक्स दिया होगा क्या ?उनके साथ जिन बिंदुओं पर चुनाव लड़कर आए उन्हीं के विरुद्ध अब भाषण दे रहे हैं शरद जी !

   लालू जी !जब राजनीति में आए थे तब कितनी संपत्ति थी? उनके  पासऔर आज कितनी है  आखिर ये विशाल धनराशि आई कहाँ से  किस व्यापार से हुई इतनी मोटी कमाई !ऐसा कौन सा काम किया उन्होंने ?और यदि नहीं तो ये पिछड़ों , दलितों , वंचितों , गरीबों , पीड़ितों  का हक़ ही तो नहीं है आखिर दलितों के हिस्से का धन गया कहाँ ! जिस पर ऐस  कर रहे हैं नेता जी !

शरद यादव जी ! बिहार की गद्दी सौंपिए किसी दलित को अन्यथा दलितों के शोषण का ढिंढोरा पीटना बंद कीजिए !

दलितों को किस्तों में  आरक्षण देने से अच्छा है कि उन्हें सौंपी जाए देश और सभी  प्रदेशों की वागडोर !इसकी शुरुआत बिहार से तत्काल की जाए !
     दलितों का दुःख दूर करने की पवित्र पहल !  
  सभी पार्टियों के नेता और सभी सरकारों के मंत्री अपने पद पदवी दलितों को सौंपे सभी अधिकारी अपने अपने विभाग के किसी महादलित को दें अपना पद !जातिवाद को मिटाने की इच्छा रखने वाले नेता लोग ईमानदारी पूर्वक अपने बेटा बेटियों की शादियाँ दलितों के यहाँ करें अन्यथा झूठे नारे लगाने बंद करें !   देश में जो सबसे अधिक गरीब महादलित हो उसे राष्ट्रपति बनाया जाए उससे जो नंबर दो पर हो उसे प्रधानमंत्री ऐसे ही क्रमवार सारे पद बाँटे जाएँ ! राजनैतिक पार्टियों की कमान नेता लोग गरीब दलितों के हाथ में सौंपें !पार्टी संविधान में संशोधन किए जाएँ और चुनावों में सभी टिकटें केवल दलितों को दी जाएँ मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री एवं सभी मंत्रियों के पद केवल दलितों के लिए आरक्षित किए जाएँ ! जिस पार्टी का अध्यक्ष दलित न हो उसका बहिष्कार किया जाए !
     किसी के शोषण के लिए सवर्णों को बदनाम करना बंद किया जाए !सवर्णों को सरकारों  की किसी कृपा की जरूरत नहीं है पिछले साठ सालों में आत्मगौरव के साथ अपनी आजीविका चलाते रहे आगे भी मर नहीं जाएँगे किंतु प्रतिभाओं को रौंद करके तुष्टीकरण की राजनीति यदि फलवती होती है तो सवर्णों को स्वीकार्य है! अगर सवर्ण अपनी प्रतिभा को सँभाल कर रख पाए तो कहीं भी जाकर कमा खा लेंगे !माँस नहीं मेहनत हर किसी को प्यारी है सवर्णों को आरक्षण चाहिए नहीं प्रतिभाओं के स्वागत के लिए विश्व आँचल पसारे खड़ा है |
  जातिवाद से उतना खतरा नहीं है जितना राजनीतिवाद  से है!इसलिए जातिवाद समाप्त करने के लिए राजनैतिक पार्टियों के मुखिया अपने अपने पार्टी पदों पर बतावें दलितों को !उन्हीं के सामने हाथ जोड़कर अपने लिए सेवा पूछें जो वो बतावें वो नेता करें !यदि ऐसा नहीं कर सकते तो दलितों के उत्थान की झूठी बकवास बंद करें !
      जातिवाद न तो खाने खिलाने में है और न ही छुआ छूत में अपितु जातिवाद लोगों की सोच में घुसा हुआ हुआ है जिसे समाप्त करना हँसी खेल नहीं है जातिवाद यदि छुवा छूत  में होता तो आज बजार से ख़रीदा गया नमकीन विस्कुट होटल का खाना कितने लोग नहीं खा रहे हैं अर्थात सभी खा रहे हैं किस जातिधर्म के लोग बना रहे हैं कोई पूछता है क्या या पैकिट पर लिखा होता है और कंपनियाँ गंगाजल छिड़क कर तब बेचती हैं इसलिए जातिगत अस्पृश्यता की अब कहीं कोई चर्चा नहीं है फिर जातिगत आरक्षण क्यों ?
     अब बात विवाहादि संबंधों की  से  सम्बन्ध बनाकर शारीरिक संबंधों तक पहुँचते हैं तो क्या वो पहले जातियाँ पूछते हैं तब जुड़ते हैं केवल विवाहादि संबंधों में कुछ लोग इन बातों का ध्यान देते हैं बहुत लोग नहीं भी देते हैं !फिर जातिगत आरक्षण क्यों ?हर समाज में हर प्रकार के लोग होते हैं लोगों की अलग अलग सोच होती है उसी हिसाब से वे व्यवहार करते हैं उसमें केवल सवर्ण और ब्राह्मण ही नहीं हैं अपितु सभी लोग हैं ।
   डॉक्टर भीम राव अंबेडकर साहब के साथ हो सकता है कुछ लोगों ने अप्रिय व्यवहार किया हो किंतु ब्राह्मण शिक्षक महादेव अम्बेडकर जो उनसे विशेष स्नेह रखते थे उनके कहने पर अम्बेडकर ने अपने नाम से सकपाल हटाकर 'अम्बेडकर' जोड़ लिया था उस अम्बेडकर नाम से उन्हें कभी घृणा नहीं हुई जबकि वो उस ब्राह्मण शिक्षक की जाति  या उपनाम जो भी रहा हो जो अम्बेडकर साहब से बहुत स्नेह करते थे । आखिर उस ब्राह्मण के स्नेह को भुला क्यों दिया जाए जिससे पता लगता है कि ब्राह्मणों ने कभी किसी प्रतिभा का दमन नहीं किया है अपितु उसे प्रोत्साहित ही किया है किंतु प्रतिभा हो तब न !
    प्रतिभा संपन्न लोग आज भी दलित वर्ग के होने के बाद भी किसी आरक्षण के मोहताज नहीं हैं और उन्होंने अपना विकास अपनी प्रतिभा के बल पर किया है सम्मान उस विकास से मिलता है उसी से आत्मगौरव बनता है जिसे कोई दूसरा मिटा नहीं सकता !
  जातियों की खोज महान जाति वैज्ञानिक महर्षि मनु ने जब की थी तब जिन दलित जातियों को ज्ञान गुण और प्रतिभा के आधार पर कमजोर मानकर उन्हें चतुर्थ श्रेणी में रखा था लाखों वर्षों बाद आज भी दलित वर्ग महर्षि मनु की अवधारणा को झुठला नहीं सका है आज भी सरकारें महर्षि मनु के मत पर ही मोहर लगाती जा रही हैं अर्थात मनु बचनों को ही मानने पर मजबूर हैं मनु भी दलितों को कमजोर मानते थे वर्तमान सरकारें भी दलितों को कमजोर मान रही हैं जैसे मनु केवल कुछ लोगों को कमजोर न मानकर अपितु उन कमजोर लोगों की एक जाति बना दी थी मानों उन्होंने ऐसा मान लिया था कि लाखों वर्ष बाद तक इनकी संतानें भी अपने बल पर तरक्की नहीं कर सकेंगी आज सरकारें भी लगभग यही मान रही हैं अन्यथा साथ साल से चले आ रहे आरक्षण की कोई समय सीमा तो होनी चाहिए किन्तु सरकारों को महर्षि मनु की तरह ये भरोसा ही नहीं हो पा  रहा है कि दलित वर्ग कभी अपने बलपर भी आगे बढ़ पाएगा इसीलिए आरक्षण बढ़ाए जा रही हैं !किंतु दलितों में कमजोरी किस बात की है ये न मनु लिखकर  गए हैं और न ही सरकारें बताने को तैयार हैं आखिर क्यों ?   अगर कुछ जातियों की उपेक्षा हुई तो उसका कारण क्या था शोध इस विषय पर होना चाहिए क्योंकि जिन जातियों को सतयुग में मनु ने चतुर्थ श्रेणी में रखा था उन्हीं जातियों को इस युग में भी सरकारें कमजोर मान रही हैं क्यों ?
    जो नेता दलितों को वास्तव में आगे बढ़ाना चाहते हों वो अपनी पार्टी का अध्यक्ष किसी दलित को बनावें और पार्टी के सभी चुनावों में अधिकाँश टिकटें दलितों को दें मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री का पद दलितों के लिए आरक्षित करें!लेकिन सवर्णों को बदनाम करना बंद करें !किसी के पिछड़ेपन से सवर्णों का कोई लेना देना ही नहीं है सवर्ण मेहनत कर के कम खा रहे हैं उन्हें किसी आरक्षण का लालच नहीं है, रही बात दलितों की तो दलितों का धन जिन्होंने लूटा है उनके घरों की तलाशी ली जाए और उन्हीं से पूछा  जाए दलितों की दलाली में नेता अरबपति हो गए ! नेताओं से कोई पूछे कि इनके आयस्रोत क्या हैं ये धंधा करते कब हैं ?
    आरक्षण माँगने वालों का स्वास्थ्य परीक्षण हो कि इनमें ऐसी कमी क्या है कि ये सवर्णों की तरह अपने बल पर अपनी तरक्की क्यों नहीं कर सकते ?आखिर इन्हें इतना कमजोर क्यों समझा जा रहा है ? और किसी में कोई कमी दिखाई पड़े तो उसका इलाज कराया जाए अन्यथा ऐसे कमजोर बताकर दलितों के साथ ये अपाहिजों जैसा वर्ताव आखिर कबतक किया जाएगा !क्यों चाहिए उन्हें जातिगत आरक्षण ?और आरक्षण या किसी भी प्रकार की सुविधाएँ जबतक जातियों के आधार पर दी जाएँगी तब तक जातिवाद मिटाना कठिन ही नहीं अपितु असंभव भी है ।यदि ऐसा न होता तो अभी तक दलितों को दिए गए अधिकार और धनात्मक सुविधाएँ गईं आखिर कहाँ !क्यों नहीं हो सकी दलितों की तरक्की ?
    दलितों के हितैषी राजनेताओं से पूछा जाए कि आप कमाते कैसे हैं आपका धंधा क्या है और आप अपना व्यापार करते कब हैं क्या आपके व्यापार में केवल मुनाफा ही होता है आखिर कैसे जी लेते हैं बिना कुछ किए इतनी मौजमस्ती की जिंदगी !और लोगों को बताते हैं कि जातिवाद के कारण कुछ लोग पिछड़ गए किंतु सच बोलिए महोदय ! पिछड़े केवल कुछ लोग ही नहीं हैं पिछड़ा तो पूरा देश है हाँ जिसने नेताओं को सलाम ठोंका वो आगे बढ़ गया !यहाँ लोगों के पिछड़ने का कारण राजनैतिक निकम्मापन  है !नेताओं के आय स्रोतों की जाँच हो तो पता चल जाएगा कि जातिवाद से उतना खतरा नहीं है जितना राजनीतिवाद  से  है चुनावों से पहले जिन पार्टियों या सरकारों के जिन नेताओं को भ्रष्टाचारी घोटालेवाज कहकर उन्हें जेल भेजने की बात कही जाती है चुनाव जीतने के बाद वही नेता दुम दबाकर बैठ जाते हैं मानों उन्हें भी भविष्य में अपने घोटालों की जाँच न हो जाए इसका डर हो !कोई नेता जल्दी जल्दी किसी नेता की जाँच नहीं करवाना छठा है भले ही वो विरोधी पार्टी का ही क्यों न हो !क्योंकि राजनीति में आते समय प्रायः नेता किराया उधार लेकर ही आते हैं और जब तक राजनीति में रहते हैं तब तक कोई धंधा व्यापार कर नहीं पाते हैं फिर भी सारी  सुख सुविधाएँ भोगते भोगते अरबपति कब बन जाते हैं ये रहस्य उन नेताओं को भी नहीं पता होता है जबकि इसी रहस्य में दफन है गरीबों का भाग्य !
    बंधुओ !इस रहस्य का उद्घाटन न हो जाए जो सारी  पोल खुल जाए राजनैतिक कैरियर चौपट हो जाए ये नेताओं की सबसे बड़ी चिंता होती है यही कारण  है कि दलितों का मुख चतुराई पूर्वक सवर्णों की ओर मोड़ा करते हैं कि तुम्हारा शोषण इन्होंने किया है जबकि किया उन्होंने है जो सवर्णों को बदनाम करते हैं ।
सवर्णों के स्वाभिमान को विश्व जनता है कि इन्होंने कभी आरक्षण नहीं माँगा है अन्यथा भिखारी समझ कर सवर्णों से भी लोग घृणा कर रहे होते देश विदेश के लोग ! आरक्षण माँगने वालों से पूछा जाए कि उनके शरीरों में ऐसी कमी क्या है कि वे अपने बल पर आगे नहीं बढ़ सकते उन्हें आगे बढ़ने के लिए आरक्षण की बैशाखी चाहिए और सवर्ण लोगों में ऐसी बहादुरी क्या है कि इस देश में सवर्णों के लिए कुछ नहीं चाहिए !
     हे दलित बंधुओ!सम्मान यदि तुम्हें भी सवर्णों की तरह चाहिए तो सवानों की तरह ही आप भी आरक्षण को ठुकरा दीजिए और म्हणत करके कमाइए खाइए अपनी भुजाओं का भरोसा कीजिए देखो अभी सम्मान बनता है कि नहीं किंतु आरक्षण सरकारी कृपा है और किसी की कृपा के सहारे जीने वाले का स्वाभिमान कैसा ?
      आज सवर्णों के लिए कोई योजना नहीं है कोई सुविधा नहीं है कोई आरक्षण नहीं है फिर भी कभी किसी से आरक्षण की भीख नहीं माँगते अपने परिश्रम से कमाते खाते हैं यही कारण है कि किसी नेता से या किसी पार्टी से कभी दब के बात नहीं करते इसी कारण उनका सम्मान बना है अन्यथा सेवकों को सुख और भिखारियों को सम्मान और नशेड़ी को धन ,और ब्यभिचारियों को सद्गति कभी नहीं मिला करती है !
   बंधुओ ! सवर्णों के विरुद्ध आरक्षण एक षड्यंत्र के तहत लाया गया था ताकि सवर्णों को पीछे धकेला जाए इनका सम्मान घटाया जाए उन्हें गरीब बनाया जाए ताकि सवर्ण लोग भी नेताओं के सामने भिखारियों की तरह गिड़गिडाएँ किंतु स्वाभिमानी सवर्णों ने संघर्ष पूर्वक अपना विकास करके दिखा दिया है या संघर्ष कर रहे हैं किंतु लालच देने वाले नेताओं के सामने घुटने नहीं टेके हैं !
    यदि हमारे सभी देशवासी आरक्षण को ठोकर मारकर लालच देने वाले नेताओं को दुदकार कर दरवाजे से भगाना शुरू कर दें तो देखो अभी भ्रष्टाचार समाप्त होता है कि नहीं !देखो देश की तरक्की होती है कि नहीं !
    ऐसे नेता लोग दलितों की दीन दशा दिखाकर माँगते हैं और खुद खा जाते हैं इससे देश का धन न दलितों के काम आ रहा है और न देश के बिना किसी घोषित आय स्रोत के भी दलित धन से नेता अरबपति होते जा रहे हैं राजनीति में आते समय इनके पास कुछ था नहीं और राजनीति में आने के बाद कुछ धंधा व्यापार कर नहीं सके फिर भी अरबपति आखिर ये दलितों का धन नहीं तो है किसका  !सवर्णों के नाम पर तो कभी कोई अनुदान पास नहीं न हुआ जो वो खा जाएँगे ! ये दलितों का ही हिस्सा मार जाते हैं और सवारों की बुराई करके दलितों को फुसला कर उनका वोट भी ले लेते हैं किंतु उन्हें कभी कुछ देते नहीं हैं पिछले साठ  सालों से यही खेल खेले जा रहे हैं !
     दलितों को नेताओं से पूछना चाहिए कि हमारे हिस्से का धन तुम्हारे पास पहुँचा कैसे !और आज किस मुख से मांगने आए हो वोट ?
    ये आरक्षण की आग लगाई तो नेताओं ने ही है !अब गुर्जरों को क्यों न मिले आरक्षण उन्हें भी दिया जाए और भी जो बचे खुचे अपने को कमजोर मानने वाले लोग हों उन्हें भी दिया जाए !
 जहाँ तक बात सवर्णों की है भारतीय राजनेता सवर्णों के विरुद्ध आरक्षणी साजिश रचने का कितना भी कुचक्र रचते रहें किंतु विश्व जनता है कि सवर्णों ने अपने देश में रहकर सरकारों के द्वारा रचे जा रहे सभी प्रकार के जातीय अत्याचार सहकर भी कठिन परिश्रम करके अपना विकास किया है ।  

       
   

Sunday, 22 November 2015

nitiish

नितीश जी का लोकतंत्र विरोधी बंशवादी गिरोह उन्हें PM बनाने की बात करके चढ़ा रहा है बाँस पर !!
 गलतियाँ करेंगे अयोग्य नेता पुत्र और माफी माँगेगे नितीश कुमार ऐसे चलेगी बिहार सरकार !
    यदि पाँच वर्ष चलगई तो मनमोहन सिंह जी की तरह होगा राजनीति से किनारा अपर नहीं चला तो फिर जनता का सहारा !
   जिनके पास CM बनने की संख्या अपनी नहीं है उन्हें PM बनाने की बात बारे फारुख साहब !बारे सहयोगी बारी हमदर्दी !किंतु सरकार की सारे शक्तिवान मंत्रालय अपनी ओर खींच ले गए हैं लालू जी ।उन्होंने तो मनमोहन सिंह जी जैसा बनाकर रखा है नीतीश जी को ।  दूसरी बात राहुलगाँधी जी ,फारूक अब्दुल्ला जी ,शरद पवार जी , मुलायमसिंह जी, सुखबीरसिंह बादल,केजरीवाल जी तथा सुना है कि शिव सेना आदि लोकतंत्र  की दुहाई देने वाले  ये अधिकांश वो लोग थे जिन्हें केवल वोट लेने के लिए ही याद  रहता है लोकतंत्र !
    लालू जी की पार्टी के विधायक कैसे सहते हैं इतना अपमान !see more....http://sahjchintan.blogspot.in/2015/11/pm.html


 लालू जी से पेट लड़ाकर दिल्ली पहुँचे केजरीवाल जी का शुद्धीकरण हो तो कैसे ?अन्ना जी के बचनोदकी छींटे क्या पवित्र कर सकेंगे उन्हें !
बंधुओ !  जिन लालू जी का नाम लिए बिना भ्रष्टाचार विरोधी बड़ी से बड़ी गाली अधूरी मानी जाती हो उन 'शकुनीश्री' से पेट लड़ाकर  आए केजरीवाल जी !लोकतंत्र के लिए ये कोई छोटी घटना तो नहीं है !लालू जी यदि भ्रष्टाचारी हैं तो पेट क्यों लड़ाया गया और यदि वे ऐसे नहीं हैं तो उन पर इस तरह के आरोप क्यों लगाए गए !
    इससे  ये बात तो अब पूरी तरह स्पष्ट हो ही गई है कि अन्ना आंदोलन से अरविंद केजरीवाल जी के जुड़ने का लक्ष्य  भ्रष्टाचार का विरोध करना न होकर अपितु  केवल मुख्यमंत्री बनना था ! इस प्रकार अनेकों प्रकार से केजरीवाल जी की सच्चाई समाज के सामने आ जाने के बाद उन पर अविश्वास होना स्वाभाविक है !इसलिए अब यह जानना बहुत जरूरी हो गया है कि अन्ना जी के आंदोलन का उद्देश्य  क्या केवल केजरीवाल जी को ही राजनीति में लांच करना मात्र था ?और यदि ये सच है तो जनता के विश्वास के साथ ऐसा छल किया क्यों गया और यदि ये सच नहीं है तो रामलीला मैदान में आंदोलन के समय बात बात में पिनकने वाले अन्ना हजारे जी अब मौन क्यों हैं ? उन्हें समाजsee more....http://sahjchintan.blogspot.in/2015/11/blog-post_61.html

नितीश जी के शपथ ग्रहण समारोह के महत्त्वपूर्ण आकर्षक अंश !
 अशिक्षित मंत्री अपने अनुशार चलाएँगे IAS अफसरों को !अफसरों का मनोबल कैसे बढ़े ! ये व्यवहार किसी अपमान से कम है क्या ?
    इन नेता पुत्रों को खुद कुछ करना नहीं आएगा आप स्वयं सोचिए कि ये यदि कुछ करने लायक ही होते तो पढ़ लिख न लेते ! गरीबों के बच्चे भी  तो पढ़ जाते हैं ये तो सब सुख सुविधा पाने वाले मुख्यमंत्री के बेटे हैं तब भी जब ये पढ़ नहीं पाए तो कल्पना कीजिए कितने नकारा रहे होंगे ये नेतापुत्र  ! ऐसे लोगों को काम काज की समझ ही नहीं है अफसरों को काम करने देंगे ये !फोकट की टाँग अड़ाते रहेंगे हर जगह ! बिहार बासियों ने लिया एक गलत और दुर्भाग्यपूर्ण निर्णय ! ऐसे ही अदूरदर्शी और see more...http://sahjchintan.blogspot.in/2015/11/blog-post_47.html




Friday, 20 November 2015

अफसरों का ये दुर्भाग्य ही है कि उन्हें ऐसे नकारा नेतापुत्रों की जी हुजूरी करनी पड़ती है जो शपथपत्र भी न पढ़ पाते हों !

इसे लोकतंत्र का सम्मान कहें या शिक्षा का अपमान !                                                     शिक्षा की जब दुर्दशा ही होनी है तो क्यों शिक्षा ? क्यों परीक्षा ?शिक्षा के लिए बड़ी बड़ी योजनाएँ क्यों ?जिन नेतापुत्रों की शिक्षा चपरासियों जैसी हो उन्हें मंत्री !उपमुख्यमंत्री या मुख्यमंत्री !जैसे बड़े पदों पर सुशोभित किया जाना कहाँ का न्याय है !ऐसे लोग सदन की चर्चा समझ सकेंगे क्या ?प्रश्न पूछ सकेंगे और उत्तर दे सकेंगे ! अशिक्षित लोग सदन में न कुछ बोल पाते हैं न और न समझ पाते हैं और समझे बिना पूछें क्या ?खाली बैठे बैठे बोर हुआ करते हैं !कभी कभी प्रसंग वश सदन की सार्थक चर्चा में स्वाभाविक मतभेद होने के कारण चर्चा में उत्तेजना बढ़ ही जाती है लोग जोर जोर से बोलने लगते हैं ऐसे में इन खाली बैठे अशिक्षित नेताओं की नींद टूटती है अपने आदर्श नेताओं को चीखते  चिल्लाते देखकर उत्तेजना तो इन्हें भी आ ही जाती है इन्हें ये समझते देर नहीं लगती है कि 'झगड़ा हो गया है' तो ये भी अपने स्तर से सँभाल लेते हैं मोर्चा !वो  चाहें गाली गलौच देना हो या स्पीकर के सामने से कागज खींच कर लाना हो या फिर माईक फेंकने से लेकर कुर्सी फेंकना हो यहाँ तक कि कुस्ती लड़ने से लेकर चाँटा मारने तक में इन्हें कोई संकोच नहीं होता है झगड़ा तो झगड़ा !इसके अलावा अशिक्षित नेता सदन की गम्भीर चर्चाओं में और किस काम के !
     बंधुओ!ऐसे लोगों को नेता बनाने की मजबूरी क्या होती है पता नहीं !मेरे हिसाब से सदन में चर्चा करना तो इनके बश का नहीं ही होता है !
    वैसे भी मुख्यमंत्री माता पिता के जो  पुत्र सभी प्रकार की सुख सुविधाओं  में पल बढ़ कर भी पढ़ न पाए हों कितने अयोग्य रहे होंगे वे !ऐसे गुण विहीन क्षमता विहीन अनुभव विहीन नकारा नेता पुत्रों की जी हुजूरी करनी पड़े उन बड़े बड़े अधिकारियों को जिन्होंने अपनी एक एक स्वाँस शिक्षा साधना में लगाई हो !ये उन अधिकारियों की शिक्षा का कितना बड़ा अपमान है ? 
   किसी छात्र को अफसर बनने के लिए बड़ी कठोर साधना करनी पड़ती है  पढ़ने के लिए बचपन में ही न केवल घर द्वार छोड़ कर  दूर जाना पड़ता है अपितु शिक्षा के लिए घर द्वार भूलना भी पड़ता है!सब सुख भोग की भावनाओं का विसर्जन करना पड़ता है!अपनी सारी इच्छाओं को मारना पड़ता है केवल इतना ही नहीं कहाँ तक कहें कुछ बनने के लिए विद्यार्थी को भावनात्मक रूप से एक बार मरना पड़ता है! यदि कुछ बन कर निकल पाया तो यह उसका नूतन अर्थात नया जन्म  होता है, यदि नहीं बन पाया तो वह इतना टूट चुका होता है कि उसे अपना मन मारकर आजीवन जीवन ढोना पड़ता  है ! 

     ऐसे बलिदानी विद्यार्थियों को खाने का स्वाद,  स्वजनों से संवाद एवं हास्य विनोद की भावनाओं पर नियंत्रण करते हुए पूर्ण संयमित जीवन जीना पड़ता है! जब नींद बलपूर्वक अपनी चपेट में ले ले तो रात्रि और जब विद्यार्थी बलपूर्वक अपनी नींद को धक्का देकर भगा दे वहीँ सबेरा हो जाता है! सच्चे विद्यार्थी के जीवन में इस सूर्य के उदय अस्त का कोई महत्त्व नहीं होता उनका अपना सूरज अपना मन होता है रात-रात भर जगने का हर क्षण दिन के समान होता है इस व्रती जीवन की तुलना केवल एक सच्चे साधक से की जा सकती है!

   लोकसभा या विधान सभाओं में लड़ने - झगड़ने वाले ,शोर मचाने वाले ,माइक फेंकने या कुर्सी मारने वाले  नेता लोग किसी  मज़बूरी में तो ऐसा नहीं करते हैं आखिर उन्हें भी उन्हीं के अनुशार क्यों न समझा जाए !   
 आज राजनीति के बिना किसी भी क्षेत्र में किसी का भी गुजारा नहीं है यदि कोई सीधा शालीन समझदार आदमी राजनीति न भी करना चाहे तो दूसरे लोग उसके साथ राजनीति करके उसे फँसा देंगे इसलिए उसे चाहकर या अनचाहे भी करनी होती है राजनीति !किंतु राजनैतिक जगत में आज अधिकांश कैसे लोग सक्रिय हैं ये किसी से छिपा नहीं है स्वदेश से लेकर विदेश तक हमारी लोकसभा या विधानसभाओं की कार्यवाही देखने वालों को अच्छी तरह से पता है कि भारतीय राजनीति जिस ओर बहक  चुकी है यदि समय रहते उसे रोका  न गया तो परिस्थितियाँ ज्यादा भी बिगड़ सकती हैं ।           आज सांसदों विधायकों से कहा जाता है कि आप चर्चा में भाग लें किंतु चर्चा के लिए ज्ञान अनुभव और अध्ययन की आवश्यकता होती है किंतु जिसके पास ये तीनों न हों वो वहाँ बैठकर क्या करे !और चुप  कहाँ तक बैठे ! इसलिए  लोकसभा या विधान सभाओं में अपनी अपनी कला योग्यता का प्रदर्शन हर कोई करना चाहता है जिसे भाषण देना आता है सो भाषण देता है और जिसे गाली देना आता है सो गाली देता है !जिसे कुस्ती लड़ना आता है सो उठापटक करता है इसी पाकर से माइक फेंकने के स्पशलिस्ट माइक फ़ेंक कर मारते हैं और कुर्सी फेंकने की कला के विशेषज्ञ कुर्सी फ़ेंक फ़ेंक कर मारते देखे जाते हैं , कई बार कुछ विधान सभाओं में कुछ सदस्य लोग अपने मोबाईल में ब्लू फ़िल्म देखते भी देखे गए !इसी प्रकार से कार्यवाही के बीच कुछ लोग सो जाते हैं बेचारों को नहीं समझ में आती है वो सार गर्भित चर्चा तो कैसे समझें और क्या करें ! 
    कुल मिलाकर संसद और विधान सभाएँ चूँकि देश और प्रदेश के सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व करती हैं ऐसी परिस्थिति में देश और प्रदेशों में जितने भी प्रकार के लोग होते हैं सभी कलाओं से संपन्न लोग यदि कहीं एक जगह बैठेंगे तो वहाँ चर्चा तो कम बाजारों और मेलों  जैसा वातावरण ही मुश्किल से बन पाएगा फिर हाय तोबा क्यों ?
   बंधुओ !मैंने खुद चार विषय से MA किया है BHU से Ph.D. किया है विभिन्न विषयों में सौ से अधिक किताबें लिखी हैं उनमें कई काव्य हैं हमारी लिखी हुई 27 किताबें प्रारंभिक कक्षाओं के पाठ्यक्रमों में पढ़ाई भी जा रही हैं और भी बहुत कुछ है- (See More  About Me http://jyotishvigyananusandhan.blogspot.in/p/blog-page_7811.html  )
        इतने सबके बाद भी अच्छी अच्छी राजनैतिक पार्टियों से जुड़ने के लिए गया वहाँ के मठाधीशों को अपनी योग्यता प्रमाण पत्र दिखलाए उनकी कापियाँ भी दीं अपनी लिखी हुई किताबों की प्रतियाँ भी उन्हें भेंट कीं इसके बाद उनसे उस राजनैतिक पार्टी में अपने योग्य सेवा माँगी जिसमें मेरी शिक्षा का भी सदुपयोग हो सके किंतु उन नेताओं ने अपनी पार्टी में हमें प्रवेश देना ही ठीक नहीं समझा !
    बंधुओ !जब इन राजनेताओं ने हमारे अंदर न जाने ऐसी कौन सी अयोग्यता दो मिनट में भाँप ली कि हमें अपनी पार्टी में सक्रिय रूप से जोड़ना ठीक नहीं समझा गया !ऐसी परिस्थिति में देश के और बहुत सारे पढे लिखे लोगों को राजनैतिक दल केवल सैम्पल पीस के रूप में ही रखते होंगे या फिर हमारी तरह ही मुख मोड़ लेते होंगे उनसे भी !और उन्हें भी वापस भेज दिया जाता होगा उनके घर !
   यदि सच्चाई यही है तो लोकसभा या विधान सभाओं में लड़ने - झगड़ने वाले ,शोर मचाने वाले ,माइक फेंकने या कुर्सी मारने वाले नेताओं को ही दोषी क्यों माना जाए !यदि है तो राजनीति का वर्तमान सारा सिस्टम ही दोषी है उसे सुधारने के प्रयास भी तो किए जाने चाहिए साथ ही सांसद और विधायक बनने के लिए भी शिक्षा और सदाचरण की कुछ तो खींची ही जाएँ सीमा रेखाएँ जिनका पालन मिलजुलकर सभी लोग करें !
   

     

जो शपथ पत्र पढ़ने लायक भी न हों ऐसे नकारा नेतापुत्रों की जी हुजूरी करनी पड़ती है सरस्वतीपुत्र अफसरों को !

 इसे लोकतंत्र का सम्मान कहें या शिक्षा का अपमान !
    जिन नेतापुत्रों की शिक्षा चपरासियों जैसी हो उन्हें मंत्री !उपमुख्यमंत्री या मुख्यमंत्री !जैसे बड़े पदों पर सुशोभित किया जाना कहाँ का न्याय है !ऐसे लोग सदन की चर्चा समझ सकेंगे क्या ?प्रश्न पूछ सकेंगे और उत्तर दे सकेंगे ! अशिक्षित लोग सदन में न कुछ बोल पाते हैं न और न समझ पाते हैं और समझे बिना पूछें क्या ?खाली बैठे बैठे बोर हुआ करते हैं !कभी कभी प्रसंग वश सदन की सार्थक चर्चा में स्वाभाविक मतभेद होने के कारण चर्चा में उत्तेजना बढ़ ही जाती है लोग जोर जोर से बोलने लगते हैं ऐसे में इन खाली बैठे अशिक्षित नेताओं की नींद टूटती है अपने आदर्श नेताओं को चीखते  चिल्लाते देखकर उत्तेजना तो इन्हें भी आ ही जाती है इन्हें ये समझते देर नहीं लगती है कि 'झगड़ा हो गया है' तो ये भी अपने स्तर से सँभाल लेते हैं मोर्चा !वो  चाहें गाली गलौच देना हो या स्पीकर के सामने से कागज खींच कर लाना हो या फिर माईक फेंकने से लेकर कुर्सी फेंकना हो यहाँ तक कि कुस्ती लड़ने से लेकर चाँटा मारने तक में इन्हें कोई संकोच नहीं होता है झगड़ा तो झगड़ा !इसके अलावा अशिक्षित नेता सदन की गम्भीर चर्चाओं में और किस काम के !
     बंधुओ!ऐसे लोगों को नेता बनाने की मजबूरी क्या होती है पता नहीं !मेरे हिसाब से सदन में चर्चा करना तो इनके बश का नहीं ही होता है !
    वैसे भी मुख्यमंत्री माता पिता के जो  पुत्र सभी प्रकार की सुख सुविधाओं  में पल बढ़ कर भी पढ़ न पाए हों कितने अयोग्य रहे होंगे वे !ऐसे गुण विहीन क्षमता विहीन अनुभव विहीन नकारा नेता पुत्रों की जी हुजूरी करनी पड़े उन बड़े बड़े अधिकारियों को जिन्होंने अपनी एक एक स्वाँस शिक्षा साधना में लगाई हो !ये उन अधिकारियों की शिक्षा का कितना बड़ा अपमान है ? 
   किसी छात्र को अफसर बनने के लिए बड़ी कठोर साधना करनी पड़ती है  पढ़ने के लिए बचपन में ही न केवल घर द्वार छोड़ कर  दूर जाना पड़ता है अपितु शिक्षा के लिए घर द्वार भूलना भी पड़ता है!सब सुख भोग की भावनाओं का विसर्जन करना पड़ता है!अपनी सारी इच्छाओं को मारना पड़ता है केवल इतना ही नहीं कहाँ तक कहें कुछ बनने के लिए विद्यार्थी को भावनात्मक रूप से एक बार मरना पड़ता है! यदि कुछ बन कर निकल पाया तो यह उसका नूतन अर्थात नया जन्म  होता है, यदि नहीं बन पाया तो वह इतना टूट चुका होता है कि उसे अपना मन मारकर आजीवन जीवन ढोना पड़ता  है ! 

     ऐसे बलिदानी विद्यार्थियों को खाने का स्वाद,  स्वजनों से संवाद एवं हास्य विनोद की भावनाओं पर नियंत्रण करते हुए पूर्ण संयमित जीवन जीना पड़ता है! जब नींद बलपूर्वक अपनी चपेट में ले ले तो रात्रि और जब विद्यार्थी बलपूर्वक अपनी नींद को धक्का देकर भगा दे वहीँ सबेरा हो जाता है! सच्चे विद्यार्थी के जीवन में इस सूर्य के उदय अस्त का कोई महत्त्व नहीं होता उनका अपना सूरज अपना मन होता है रात-रात भर जगने का हर क्षण दिन के समान होता है इस व्रती जीवन की तुलना केवल एक सच्चे साधक से की जा सकती है!

   लोकसभा या विधान सभाओं में लड़ने - झगड़ने वाले ,शोर मचाने वाले ,माइक फेंकने या कुर्सी मारने वाले  नेता लोग किसी  मज़बूरी में तो ऐसा नहीं करते हैं आखिर उन्हें भी उन्हीं के अनुशार क्यों न समझा जाए !   
 आज राजनीति के बिना किसी भी क्षेत्र में किसी का भी गुजारा नहीं है यदि कोई सीधा शालीन समझदार आदमी राजनीति न भी करना चाहे तो दूसरे लोग उसके साथ राजनीति करके उसे फँसा देंगे इसलिए उसे चाहकर या अनचाहे भी करनी होती है राजनीति !किंतु राजनैतिक जगत में आज अधिकांश कैसे लोग सक्रिय हैं ये किसी से छिपा नहीं है स्वदेश से लेकर विदेश तक हमारी लोकसभा या विधानसभाओं की कार्यवाही देखने वालों को अच्छी तरह से पता है कि भारतीय राजनीति जिस ओर बहक  चुकी है यदि समय रहते उसे रोका  न गया तो परिस्थितियाँ ज्यादा भी बिगड़ सकती हैं ।           आज सांसदों विधायकों से कहा जाता है कि आप चर्चा में भाग लें किंतु चर्चा के लिए ज्ञान अनुभव और अध्ययन की आवश्यकता होती है किंतु जिसके पास ये तीनों न हों वो वहाँ बैठकर क्या करे !और चुप  कहाँ तक बैठे ! इसलिए  लोकसभा या विधान सभाओं में अपनी अपनी कला योग्यता का प्रदर्शन हर कोई करना चाहता है जिसे भाषण देना आता है सो भाषण देता है और जिसे गाली देना आता है सो गाली देता है !जिसे कुस्ती लड़ना आता है सो उठापटक करता है इसी पाकर से माइक फेंकने के स्पशलिस्ट माइक फ़ेंक कर मारते हैं और कुर्सी फेंकने की कला के विशेषज्ञ कुर्सी फ़ेंक फ़ेंक कर मारते देखे जाते हैं , कई बार कुछ विधान सभाओं में कुछ सदस्य लोग अपने मोबाईल में ब्लू फ़िल्म देखते भी देखे गए !इसी प्रकार से कार्यवाही के बीच कुछ लोग सो जाते हैं बेचारों को नहीं समझ में आती है वो सार गर्भित चर्चा तो कैसे समझें और क्या करें ! 
    कुल मिलाकर संसद और विधान सभाएँ चूँकि देश और प्रदेश के सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व करती हैं ऐसी परिस्थिति में देश और प्रदेशों में जितने भी प्रकार के लोग होते हैं सभी कलाओं से संपन्न लोग यदि कहीं एक जगह बैठेंगे तो वहाँ चर्चा तो कम बाजारों और मेलों  जैसा वातावरण ही मुश्किल से बन पाएगा फिर हाय तोबा क्यों ?
   बंधुओ !मैंने खुद चार विषय से MA किया है BHU से Ph.D. किया है विभिन्न विषयों में सौ से अधिक किताबें लिखी हैं उनमें कई काव्य हैं हमारी लिखी हुई 27 किताबें प्रारंभिक कक्षाओं के पाठ्यक्रमों में पढ़ाई भी जा रही हैं और भी बहुत कुछ है- (See More  About Me http://jyotishvigyananusandhan.blogspot.in/p/blog-page_7811.html  )
        इतने सबके बाद भी अच्छी अच्छी राजनैतिक पार्टियों से जुड़ने के लिए गया वहाँ के मठाधीशों को अपनी योग्यता प्रमाण पत्र दिखलाए उनकी कापियाँ भी दीं अपनी लिखी हुई किताबों की प्रतियाँ भी उन्हें भेंट कीं इसके बाद उनसे उस राजनैतिक पार्टी में अपने योग्य सेवा माँगी जिसमें मेरी शिक्षा का भी सदुपयोग हो सके किंतु उन नेताओं ने अपनी पार्टी में हमें प्रवेश देना ही ठीक नहीं समझा !
    बंधुओ !जब इन राजनेताओं ने हमारे अंदर न जाने ऐसी कौन सी अयोग्यता दो मिनट में भाँप ली कि हमें अपनी पार्टी में सक्रिय रूप से जोड़ना ठीक नहीं समझा गया !ऐसी परिस्थिति में देश के और बहुत सारे पढे लिखे लोगों को राजनैतिक दल केवल सैम्पल पीस के रूप में ही रखते होंगे या फिर हमारी तरह ही मुख मोड़ लेते होंगे उनसे भी !और उन्हें भी वापस भेज दिया जाता होगा उनके घर !
   यदि सच्चाई यही है तो लोकसभा या विधान सभाओं में लड़ने - झगड़ने वाले ,शोर मचाने वाले ,माइक फेंकने या कुर्सी मारने वाले नेताओं को ही दोषी क्यों माना जाए !यदि है तो राजनीति का वर्तमान सारा सिस्टम ही दोषी है उसे सुधारने के प्रयास भी तो किए जाने चाहिए साथ ही सांसद और विधायक बनने के लिए भी शिक्षा और सदाचरण की कुछ तो खींची ही जाएँ सीमा रेखाएँ जिनका पालन मिलजुलकर सभी लोग करें !
   

     

सबको मारे डाल रही है महँगाई किंतु सरकार को दया केवल सरकारी कर्मचारियों पर आई ! उनकी सैलरी बढ़ाई !!

    किसान लोग आत्महत्या कर रहे हैं , मजदूर महँगाई से मर रहे हैं ,गरीब लोग दालरोटी को तरस रहे हैं ,ग्रामीणों में महँगाई का भय व्याप्त है आखिर कैसे पालें बच्चे और कैसे करें बच्चों के शादी विवाह !
 वेतनआयोगसरकारी, कर्मचारीसरकारी, सैलरीसरकारी जितनी चाहो उतनी बढ़ा लो ! "अंधा बाँटे रेवड़ी अपने अपने को देय !" 
  ये लोकतंत्र है क्या? जहाँ जनता की राय जानने की जरूरत ही नहीं समझी जाती !जनता को तो पशुओं की तरह बाँध दिया गया है लोकतंत्र के खूँटे में ,बाबू लोग ले रहे जन अधिकारों को नीलाम करने के निर्णय !बारे लोकतंत्र !सरकारी नौकरी हो या राजनीति इसे अपने पवित्र पूर्वज सेवा मानते थे किंतु यदि सेवा है तो सैलरी किस बात की ! और सैलरी है तो सेवा कैसी !
    वैसे भी जिन्हें करोड़पति बनना है वो जाकर देखें  रोजगार व्यापार बड़े बड़े उद्योग ! कमाएँ करोड़ों अरबों कौन रोकता है उन्हें किंतु सेवाकार्य को धंधा बना देना लोकतंत्र के साथ धोखा है !उस पर भी कामचोरी उस पर भी घूस का प्रचलन!साठ हजार सैलरी लेने वाले सरकारी प्राथमिक शिक्षकों पर भरोसा न करने वाले देशवासी दस पंद्रह हजार की सैलरी वाले प्राइवेट शिक्षकों पर भरोसा करते हैं! पीएचडी किए लोग आज  चपरासी की नौकरी तलाश रहे हैं और चपरासी बनने लायक लोग गुलछर्रे उड़ा रहे हैं सरकारी स्कूलों में ! इसमें बहुत बड़ा वर्ग उनका है जिन्हें जो विषय बच्चों  को पढ़ाना है वो शिक्षकों को स्वयं नहीं आता है ।जब योग्य एवं सस्ते शिक्षक सहज उपलब्ध हैं फिर भी सरकार को ऐसे शिक्षक ही मंजूर हैं वो भी अधिक सैलरी देकर !सरकार में बैठे लोगों की अपनी जेब से जाता होता तो भी क्या ऐसा ही करते सरकारों में बैठे जनता के प्रति सरकारी गैर जिम्मेदार लोग !  
   सैलरी बढ़ाते समय ईमानदारी पूर्वक देशवासियों की ओर भी देखा जाए !देश वासियों की भी परिस्थिति समझी जाए!किसान क्या ख़ुशी ख़ुशी कर रहे हैं आत्म हत्या !इस महँगाई में बच्चे कैसे पाल रहे होंगे गरीब लोग!ये निर्लज्जता नहीं तो क्या है कि जनता के खून पसीने की कमाई से दी जाने वाली सैलरी के विषय में भी जनता की राय जाननी जरूरी नहीं समझी जाती है आखिर क्यों ? विधायकों, सांसदों और  कर्मचारियों की सैलरी बढ़ाने के लिए  कराइए जनमत संग्रह !जानिए 
जनता की भी राय !
      बंधुओ ! सैलरी किसी को भी दी जाए वो देश वासियों के खून पसीने की कमाई होती है !किसी की भी सैलरी निर्धारित करते समय क्यों न कराया जाए जनमत संग्रह !  
     ये कैसा लोकतंत्र !जहाँ जनता के मत की परवाह ही न हो !सैलरी बढ़ाने की बात सरकारी कर्मचारियों की हो या सांसदों विधायकों की इसका फैसला खुद क्यों ले लेती हैं सरकारें !भारत लोकतांत्रिक देश है इसके लिए क्यों न कराया जाए जनमत संग्रह ! 
   हजारों लाखों की सैलरी पाने वाले लोगों की सैलरी बढ़ाई  जाए  दूसरी ओर अपने भूखे बच्चों का पेट न भर पाने की पीड़ा न सह पाने वाले किसान आत्महत्या करें तो करते रहें !बारे लोकतंत्र !!
 "अंधा बाँटे रेवड़ी अपने अपने को देय !"
    बारी सरकारें बारी सरकारी नीतियाँ धिक्कार है ऐसी गिरी हुई सोच को!सैलरी बढ़ाने की सिफारिश करने वाले लोग सरकारी जिनकी सैलरी बढ़नी होती है वो लोग सरकारी जिन्हें सैलरी बढ़ाकर देनी है वो तो साक्षात सरकार हैं ही !बारे लोकतंत्र ! 
  जो सांसद विधायक नहीं हैं और सरकारी कर्मचारी भी नहीं हैं उन्हें जीने का अधिकार भी  नहीं है क्या या वे इंसान नहीं हैं क्या !वो गरीब ग्रामीण किसान मजदूर ऐसी महँगाई में कैसे जी रहे होंगें !कभी उनके विषय में भी सोचिए !
   केवल अपना और अपनों का ही पेट भरने के लिए नेता बने थे क्या !किसी बेतन आयोग की सिफारिशें हों या कुछ और बहाना बनाकर सैलरी बढ़ाने की बात हो किंतु ऐसे निर्णय सरकार और सरकारी कर्मचारी ही मिलकर क्यों  ले लेते हैं इसमें जनता को सम्मिलित क्यों नहीं किया जाता है ! 
   राजनीति हो या सरकारी नौकरी यदि ये सर्विस अर्थात सेवा है तो सैलरी क्यों और सैलरी है तो सेवा कैसी !सेवा  और सैलरी साथ साथ नहीं चल सकते !और यदि ऐसा है तो धोखा है !सांसद विधायक या सरकारी सर्विस करने वाले लोग सेवा करने के लिए गए और आज हजारों लाखों की सैलरी उठा रहे हैं फिर भी अपने को सेवक बताते हैं! देश वासियों के साथ इतना बड़ा कपट !धिक्कार है ऐसी सरकारों को जो केवल अपनी और अपने कर्मचारियों की ही चिंता रखती हों बाकी देशवासियों को इंसान ही न समझती हों !बारेलोकतंत्र !!
   सरकारों में सम्मिलित नेताओं और सरकारी कर्मचारियों की आपसी  मिली भगत से एक दूसरे की या फिर अपनी अपनी सैलरी बढ़ाने का ड्रामा सहना आम जनता के लिए अब  दिनों दिन मुश्किल होता जा रहा है जानिए क्यों ?
     प्रजा प्रजा में भेद भाव का तांडव अब नहीं चलने दिया जाएगा !जनता तय करेगी सरकारों एवं सरकारी कर्मचारियों की जिम्मेदारियाँ ! काम करने के बदले जो सरकारी कर्मचारी जनता से घूस लेकर उसका कुछ हिस्सा सरकारों को भी देते हैं बदले में सरकारें उनकी सैलरी सुविधाओं का ध्यान रखती हैं ।इसलिए ऐसे किसी भी प्रकार के आदान प्रदान का विरोध किया जाएगा !कोई  बेतन आयोग बने या कुछ और इनमें आम जनता तो सम्मिलित नहीं की जाती है वो सब सरकारी लोग  होने के कारण सरकारी कर्मचारियों की सैलरी बढ़ा लेते हैं और किसानों को दिखाते हैं पैंतीस पैंतीस रूपए के चेक रूपी ठेंगे ! बारे लोक तंत्र !
   सांसदों ,विधायकों एवं सरकारी कर्मचारियों का बेतन बढ़ाकर गरीबों को अब और अधिक जलील नहीं होने दिया जाएगा !
       भारत माता को जितने दुलारे सांसद विधायक एवं अन्य सरकारी कर्मचारी हैं उससे कम दुलारे देश के किसान और मजदूर नहीं हैं । जो किसान भारत माता के सपूतों के पेट भरता है उसे जलील करना कहाँ तक ठीक है जो मजदूर देश वासियों की सेवा के लिए अपना खून पसीना  बहाता है बिल्डिंगें बनाता है रोड बनाता है नदी नहरें बनाता है भारत माता के आँचल को स्वच्छ और पवित्र रखने के लिए देश की साफ सफाई में लगा रहता है पेड़ पौधे लगाकर खेतों में फसलें उगाकर देश को हरा भरा बनाता है वातावरण को शुद्ध बनाने का प्रयास करता है । भारत माता को सजा सँवारकर देश का सम्मान बढ़ाता है देश को गौरव प्रदान करता है देश को रोग मुक्त बनाता है सांसदों ,विधायकों एवं सरकारी कर्मचारियों का बेतन बढ़ाकर ऐसे किसानों मजदूरों को जलील किया जाना कहाँ तक ठीक है ! 
    यह जानते हुए भी कि अधिकाँश सांसद ,विधायक एवं सरकारी कर्मचारी अपने अपने दायित्वों का निर्वाह ठीक से नहीं कर रहे हैं ,काम न करने, हुल्लड़ मचाने, हड़ताल करने , धरना प्रदर्शन करने तथा अपनी माँगें मनवाने एवं विरोधियों से माँफी मँगवाने की जिद में अपना समय सबसे अधिक बर्बाद करते हैं वे !वो भी सरकारी सैलरी भोगते हुए सरकारी सुख सुविधाएँ लेते हुए भी ड्यूटी टाइम में इस प्रकार के मनोरंजन में सबसे अधिक समय बर्बाद करते हैं कुछ तो सरकारी सुरक्षा के घेरे में रहते हुए भी ऐसे आडम्बर करते हैं ! ये कहाँ तक उचित है ?
आम जनता की आय के आस पास आवश्यकतानुशार रखी जाए सांसदों विधायकों एवं सरकारी कर्मचारियों की सैलरी !
      आम जनता की मासिक आय यदि दो हजार है सरकारी अफसरों कर्मचारियों की सैलरी भी अधिक से अधिक दो गुनी चौगुनी कर दी जाए किंतु उसे सौ गुनी कर देना आम जनता के साथ सरासर अन्याय है !
     यदि किसी ने शिक्षा के लिए परिश्रम किया है तो उसका सम्मान होना ही चाहिए इससे इंकार नहीं किया जा सकता किंतु किसी का सम्मान करने के लिए औरों को अपमानित करना कहाँ तक ठीक है !उसमें भी उस वर्ग पर क्या बीतती होगी जो IAS,PCS जैसी परीक्षाओं में बैठता रहा किंतु बहुत प्रयास करने पर भी सफल नहीं हो पाया !या Ph.D.की किंतु नौकरी नहीं लग पाई जबकि उसके साथी की लग गई उसकी तो सैलरी लाखों में और दूसरे को हजारों नसीब नहीं होते !आखिर उसकी गलती क्या है !वो भी तब जबकि सरकारी नौकरियों में भ्रष्टाचार का बोलबाला है जिसे रोकने में अब तक की सरकारें नाकामयाब रही हैं उसका दंड भोग रहे हैं पढ़े लिखे बेरोजगार लोग !आखिर उनकी पीड़ा कौन समझे ! 
कुछ बड़े संवैधानिक पदों पर बैठे लोगों को छोड़ कर सिक्योरिटी किसी को क्यों मिले और मिले तो हर किसी को मिले ! 
      वर्षा ऋतु में छै छै  फिट ऊँची बढ़ी फसलें में छिपे हिंसक जीवों से , आसमान से कड़कती बिजली से , पैरों के नीचे बड़ी बड़ी घासों में छिपे बैठे बिशाल सांपों से भयंकर भय होते हुए भी रात के घनघोर अँधेरे में खेत से  पानी निकालने के लिए कंधे पे फरुहा रख कर निकल पड़ते हैं किसान ! जहाँ हर पल मौत से सामना हो रहा होता है जिनके परिश्रम से देश के अमीर गरीब सबका पेट पलता  है !उनकी कोई सुरक्षा नहीं दूसरी ओर साफ सुथरे रोडों  के बीच सरकारी आवासों में आराम फरमा रहे नेताओं को दी जा रही है सिक्योरिटी इसे क्या कहा जाए !वैसे भी जिन शरीरों को रखाने के लिए जनता को इतनी भारी भरकम धनराशि खर्च करने पड़ रही हो ऐसे बहुमूल्य शरीरों का बोझ जनता पर डालने की अपेक्षा इन्हें भगवान को वापस करने के लिए ही प्रार्थना क्यों न की जाए !
 अब बात सरकारी कर्मचारियों की सैलरी बढ़ने बढ़ाने की !
    आज थोड़ी भी महँगाई बढ़ी या त्यौहार पास आए तो महँगाई भत्ता केवल उनके लिए बाकी देशवासियों को बता देते हैं कि तुम्हारा शोषण ब्राह्मणों ने किया है तुम उन्हीं के शिर में शिर दे मारो !
    भारत माता के परिश्रमी एवं ईमानदार सपूत अकर्मण्य सरकारों एवं सरकारी कर्मचारियों का बेतन बोझ आखिर कब तक ढोते रहेंगे ?
    गरीब किसान मजदूर या गैर सरकारी लोग जो दो हजार रूपए महीने भी कठिनाई से कमा  पाते हैं वो भी दो दो  पैसे बचा कर अपने एवं अपने बच्चों के पालन पोषण से लेकर उनकी   दवा आदि की सारी व्यवस्था करते ही हैं उनके काम काज भी करते हैं और ईमानदारी पूर्ण जीवन भी जी लेते हैं ।जिन्हें नौकरी नहीं सैलरी नहीं उन्हें पेंशन भी नहीं !
   अफसरों को एलियनों की तरह दूसरी दुनियाँ का जीव बनाकर क्यों परोसा जा रहा है समाज में ?आखिर उन्हें आम जनता से घुलमिल कर क्यों नहीं रहना चाहिए !आज के जीवन में अफसरों का समाज को सीधा कोई सहारा नहीं है क्योंकि अफसर जनता से मिलते ही नहीं हैं बात क्या सुनेंगे और काम क्या करेंगे !आफिसों में कमरे पैक करके बैठने वाले अफसरों से आम जनता को  क्या आशा !वो तो केवल नेताओं की भाषा समझते हैं !बाकी जनता के प्रति कहाँ होती है इंसानी दृष्टि !
  अफसर AC वाले कमरों में बिलकुल पैक होकर रहते हैं जिन्हें खोल कर नहीं रखा जा सकता इससे आम जनता अफसरों के कमरों में घुसने से डरा करती है और यदि घुस भी पाई तो वो आफिस उनके प्राइवेट रूम की तरह सजा सँवरा होता है जहाँ पहुँच कर आम जनता को अपराध बोध सा हुआ करता है उस पर  भी किसी ने थोड़ा भी कुछ कह दिया तो बेचारे  डरते हुए बाहर आ जाते हैं क्या सरकारी अफसरों का रोल केवल इतना है कि जनता को झिड़क झिड़क कर भगाते रहें बश !आखिर उनका चेंबर अलग करने की जरूरत क्या है आम जनता से घुल मिल कर काम करने में उनकी बेइज्जती क्यों समझी जाती है ?
    देश की जनसँख्या के एक बहुत बड़े बर्ग को आज तक एक पंखा नसीब नहीं है ,सरकारी आफिसों के AC रोककर उन तक क्यों न पहुँचाई जाए बिजली आखिर वो भी तो इसी लोकतंत्र के अंग हैं उनके भी पूर्वजों ने  तो लड़ी होगी आजादी की लड़ाई !उस आजादी को देश की मुट्ठी भर आवादी भोग रही है आखिर क्यों ?ऊपर से सैलरी बढ़ाने का फरमान !बारे लोकतंत्र !!
 सामाजिक सुरक्षा की आशा पुलिस विभाग से कैसे की जाए !आखिर वो भी तो सरकारी कर्मचारी ही हैं !
      आखिर पुलिस से ही ईमानदार सेवाओं की उम्मीद क्यों ? वे क्यों और कैसे बंद करें अपराध और बलात्कार ! 
     जब सरकारी शिक्षक अपनी जिम्मेदारी नहीं समझते हैं तो मदद कर रहे हैं प्राइवेट प्राथमिक स्कूल !अन्यथा उनकी संख्या दिनोंदिन बढ़ती क्यों जा रही है ! इसीप्रकार से सरकारी अस्पतालों के बदले चिकित्सा सेवाएँ सँभाल रहे हैं प्राइवेट नर्सिंग होम !सरकारी डाक विभाग की इज्जत बचा रहे हैं कोरिअर वाले ! दूर संचार विभाग विभाग की मदद कर रही हैं प्राइवेट मोबाईल कंपनियाँ !जबकि पुलिस विभाग को तो खुद ही जूझना पड़ता है आखिर उन्हें भी तो सरकारी कर्मचारी होने का गौरव प्राप्त है वो क्यों सँभालें अपने सरकारी नाजुक कन्धों पर !प्राइवेट क्षेत्रों में सरकारी की अपेक्षा सैलरी भी बहुत कम है फिर भी वे सरकारी विभागों की अपेक्षा बहुत अच्छी सेवाएँ देते हैं!फिर भी सरकारी कर्मचारियों की सैलरी बढ़ानी जरूरी है आखिर क्यों ? 
    सुविधाओं के अभाव की आड़ में काम न करने वाले सरकारी कर्मचारियों की सैलरी बढ़ाने का औचित्य क्या है ? 
    सरकारी विभागों में एक छोटी सी कमी का बहाना ढूँढ़ कर लोग दिन दिन भर के लिए अघोषित छुट्टी मार लिया करते हैं ऐसे लोगों की सैलरी बढ़ाई जाती है क्यों ?आज सरकार का कोई विभाग अपनी जिम्मेदारी निभाने को तैयार नहीं है फिर भी सरकारें बढ़ाती जाती हैं उनकी सैलरी आखिर क्यों ?
   जनता से कहा जाता है कि CFL जलाओ बिजली बचाओ !जबकि सरकारी आफिसों में AC लगाने का प्रयोजन क्या है ?
 सरकारीविभागों के आफिस काम करने के लिए हैं या कि सुख भोगने के लिए ! 
     सरकारी आफिसों के AC जितनी बिजली चबा जाते हैं उतने में पूरे देश को प्रकाशित किया जा सकता है और सबको पंखे की सुविधा उपलब्ध कराई  जा सकती है आखिर ग़रीबों को पंखा क्यों नहीं चाहिए वो भी अखवार पढ़ते होंगे उन्हें भी डेंगू का भय सताता होगा ! किंतु बेचारे क्या करें देश की बेशर्म मल्कियत भोग रही है आजादी !सरकारी विभागों के AC नहीं बंद किए जा सकते आम आदमी से कहा जाता है CFL जलाओ बिजली बचाओ !दूसरी रोड लाइट कहो दिन भर जलती रहे !आखिर वो सरकारी कर्मचारी होने के नाते देश के मालिक हैं सब कुछ कर सकते हैं ग़रीबों पर ऐसा अत्याचार आखिर कैसे सहा जाए !
   ACमें रहने वाले लोग आलसी हो जाते हैं काम करना उनके बश का नहीं रह जाता आयुर्वेद के अनुशार ठंडा खान पान रहन सहन आलस्य बढ़ाता है और निद्रा लाता है । AC वाले विभागों में कर्मचारियों से जनता गिड़गिड़ाया करती है लंबी लंबी लाइनें लगी रहती हैं अफसर कैमरे में सब कुछ देख रहे होते हैं किंतु अपने कमरे का दरवाजा खोलकर आम जनता से उसकी समस्याएँ पूछने में तौहीन समझते हैं ऐसे लोग फील्ड पर जाकर सरकारी कामों की क्वालिटी अच्छी करने का प्रयास करेंगे इसकी तो उम्मींद भी नहीं की जानी चाहिए !
     कुल मिलाकर सरकारी कर्मचारियों की पचासों हजार की सैलरी ऊपर से प्रमोशन उसके ऊपर महँगाई भत्ता आदि आदि और उसके बाद बुढ़ापा बिताने के लिए बीसों हजार की पेंसन ! इतने सबके बाबजूद सरकारी कर्मचारियों के एक वर्ग का पेट नहीं भरता है तो वो काम करने के बदले घूँस भी लेते हैं इतना सब होने के बाद भी सरकारी प्राथमिक स्कूलों में शिक्षक पढ़ाते  नहीं हैं अस्पतालों में डाक्टर सेवाएँ  नहीं देते हैं डाक विभाग कोरिअर से पराजित है दूर संचार विभाग मोबाईल आदि प्राइवेट विभागों से पराजित है जबकि प्राइवेट क्षेत्रों में सरकारी की अपेक्षा सैलरी बहुत कम है फिर भी वे सरकारी विभागों की अपेक्षा बहुत अच्छी सेवाएँ देते हैं। ऐसी परिस्थिति में सरकारी लोगों एवं सरकारी कर्मचारियों की सैलरी बढ़ाते रहना कहाँ तक न्यायोचित है !
   सरकारें जितने भी शक्त से शक्त कानून बनाती हैं उससे व्यवस्थाओं में सुधार तो होता नहीं दिखता हाँ सरकारी कर्मचारियों को कमाने के लिए एक नई खिड़की जरूर खुल जाती है !सरकारी लोग उस गलती के नाम पर भी पैसे माँगने लगते हैं गलती सुधारने पर ध्यान किसका होता है और हो भी क्यों यहाँ देश उनका अपना तो है नहीं  वो तो भाड़े पर सेवाएँ दे रहे हैं और किराए के टट्टू तो किराए  करेंगे काम !
       बंधुओ !देश हमारा अपना परिवार है हम सब लोग यहाँ मिलजुल कर रहते हैं हम सबका हमारे सबके प्रति आत्मीय व्यवहार करने का कर्तव्य है  इस भावना के बिना पुलिस के लट्ठ के बलपर या कानूनी शक्ति के आधार पर जबर्दश्ती किसी से काम तो लिया जा सकता है सेवा नहीं सेवा के लिए तो समर्पण चाहिए और समर्पण तन और मन से नहीं अपितु आत्मा से होता है जिनकी आत्मा पुण्यों से  प्रक्षालित होती है वे अपने से अधिक दूसरों के दुःख का एहसास स्वयं करते हैं वे किसी भी वर्ग के क्यों न हों ! सरकारी कर्मचारियों में भी आत्मवान लोग हैं किंतु उनकी संख्या कम है दूसरी बात वो विवश हैं वो स्वतंत्र होते तो हमारा देश भी वास्तव में आज लोकतंत्र होता !
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सरकारी आफिसों से AC हटाओ ,बिजली बचाओ ,गाँव गरीबों के यहाँ भी कम से कम एक बल्ब और एक पंखा तो चलाओ !seemore... http://samayvigyan.blogspot.in/2015/10/ac.html