Saturday, 2 January 2016

क्या कमी है अपने श्री राम कृष्ण विश्वनाथ काली दुर्गा हनुमान जी जैसे देवी देवताओं में !क्यों भजें शिर्डी साईं बाबा को ?

  अयोध्या में 'श्रीराम' काशी में बाबा'विश्वनाथ' और वृंदावन में कृष्णकन्हैया प्रतीक्षा कर रहे हैं हम लोगों की उन्हें भूलकर हम क्यों भजने लगें शिर्डी साईं बाबा को !आखिर वो किसकी ओर देखेंगे और कौन उन्हें कौन भजेगा फिर उन्हें !हो न हो हमारे जन्म के लिए हमारे पूर्वजों ने उन्हीं से मनौती मानी और आज हम उन्हीं को भूल गए क्या सोचते होंगे हमारे पूर्वज !
   जो हमारे माता  पिता को न मानते हों उनसे हम सगाई करते फिरें क्यों ?इतना स्वाभिमान तो ग़रीबों में भी होता है ? जो हमारे भगवानों को न मानते रहे हों उन साईंबाबा को हम अपना देवता कैसे मान लें !क्यों पूजने लगें उन्हें हम !हम उनके मंदिर क्यों बनाने लगें उन्हें  शास्त्र पढ़ते किसने देखा,तीर्थों में जाते किसने देखा ,कथा सत्संग यज्ञों में भाग लेते किसने देखा !उन्होंने अपने जीते जी चन्दन का टीका लगाया क्या सत्यनारायण भगवान की पूजा की क्या कोई यज्ञ किया क्या ?अयोध्या मथुरा काशी प्रयाग है क्या ?हवन करते किसी ने देखा क्या ?फिर हम क्यों मानने लगें उन्हें ?हमारी क्या मजबूरी है हमारे यहाँ देवी देवताओं की  वैकेंशियाँ खाली हैं क्या हम क्यों भर्ती करलें साईं बाबा को ?संतानें गोद ली जाती हैं पुरखे नहीं !
   हमें इतना स्वाभिमान तो होना चाहिए कि हम बड़े बड़े विद्वान तपस्वी चरित्रवान ऋषियों मुनियों की संतानें  हैं हम क्यों पूजें शिर्डी साईं बाबा को ?मनस्वी लोग अपना पिता नहीं बदल सकते तो हम अपने देवता कैसे बदल लें !
      अयोध्या में श्री राम लला हम लोगों की प्रतीक्षा कर रहे हैं जिन्होंने हमें शिखर तक पहुँचाया उनसे आस्था क्यों हटी ?काशी में बाबा विश्व नाथ जी को अनंत काल से अपने पूर्वज पूजते आ रहे हैं क्या उन पर अब भरोसा नहीं रहा ?ब्रज नंदन यशुदानंदन श्री बांके बिहारी लाल जी में क्या कमी दिखी ?अपने देवी देवता जिनका शास्त्र गुणगान करते हैं जिन्हें अपने पूर्वज पूजते रहे हैं जो शाश्वत सत्य हैं उनमें हमें ऐसी क्या कमी दिखी कि  उन्हें सस्पेंड करके उन साईं बाबा का वरण कर लिया गया जो केवल विज्ञापनों और धन के आधार पर ही देवता बन गए !आखिर क्या है सच्चाई किसे पता है ?  आज हर किसी के शिष्य अपने अपने गुरु को देवी देवताओं की बराबरी में खड़ा कर देते हैं किंतु इसका मतलब ये तो नहीं कि वे वास्तव  में देवता हो गए !           बड़े बड़े समाज सुधारकों ,नेताओं की प्रतिमाओं  और साईं प्रतिमा में क्या अंतर है इनमें प्राण प्रतिष्ठा नहीं हो सकती चूँकि वेदों में देवी देवताओं के अलावा किसी और की प्राण प्रतिष्ठा के मन्त्र ही नहीं लिखे हैं ऐसी परिस्थिति में अपने देवी देवताओं की जगह साईं पत्थरों को पूजना कहाँ तक उचित है आखिर श्री राम कृष्ण बाबा विश्वनाथ जी में क्या कमी ऐसी दिखी जो उनसे आस्था टूट गई हमारी और यदि नहीं तो और यदि नहीं तो साईं समर्पण क्यों ! कोई पति या पत्नी अपनी पत्नी या पति को छोड़कर या बिना छोड़े हुए भी किसी और के प्रति समर्पित होने लगे तो कोई स्त्री पुरुष सह जाएगा क्या है हिम्मत इतनी !आम लोग मरने मारने पर उतारू हो जाते हैं जो कमजोर होते हैं वे या तो सहते हैं या फिर घुट घुट कर जीते हैं या फिर आत्म हत्या करते हैं किंतु जो कमजोर नहीं होते हैं वे बदला लेते हैं तो अपने देवी देवता कमजोर हैं क्या और यदि नहीं तो केदारनाथ और पशुपतिनाथ बाबा के यहाँ जैसी घटती हैं घटनाएँ !जब साईं जैसे अन्य भूतों प्रेतों को पूजने वाले लोग के पास पहुँचते हैं तो उनका गुस्सा फूट पड़ता है और काँपने लगती है धरती फटने लगते हैं बादल घटने लगती हैं भीषण प्राकृतिक आपदाएँ !ये तो पक्का है कि भगवान ने दुनियाँ का निर्माण इसलिए नहीं किया था कि उनके भक्त ही उनका अपमान करने लगें !इसलिए बंधुओ !आप स्वयं सोचिए कि देवी देवताओं का सस्पेंशन कहाँ तक उचित है !
     धार्मिक सच्चाई का निर्णय तो शास्त्रों के आधार पर ही होगा वहाँ साईं वाद का तो कहीं अता पता नहीं है वैसे भी उसका निर्णय तो भावी पीढ़ियाँ करती रहेंगी हर युग में महा पुरुष आते रहते हैं हो सकता है कि हम लोगों के द्वारा की जा रही वर्तमान भूल को वे लोग सुधार भी लें किंतु वर्तमान कालखण्ड के प्रतिनिधि होने के नाते हम लोगों को जिम्मेदार शास्त्रीय सनातन धर्मियों की परिधि में सम्मिलित करने में हो सकता है कि उन्हें संकोच हो !
     कुछ लोगों का मत है कि आस्था अपनी अपनी ये तर्क सुनने में बहुत अच्छा लगता है किंतु कुछ चीजें ऐसी होती हैं जो अपनी अपनी हो ही नहीं सकतीं वो होती ही सामूहिक हैं जब मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री अपने अपने नहीं हो सकते वो तो समूचे देश और प्रदेश के होते हैं किंतु संवैधानिक इस सच्चाई को न स्वीकार करता हुआ यदि कोई किसी और को आस्थावश अपना मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री मानने लगे तो क्या वो संवैधानिकदृष्टि से उचित माना जाएगा और क्या वे अधिकार होंगे उसके पास !
    इससे और कुछ हो या न हो किंतु एक बात तो स्पष्ट होती ही है कि ऐसा वही करेगा जिसे उस समय के इलेक्टेड मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री पर भरोसा नहीं होगा !इसी प्रकार देवी देवता किसी व्यक्ति के नहीं अपितु  धर्म के होते हैं और हर धर्म के अपने अपने शास्त्रीय  संविधान होते हैं !कौन किस धर्म का आस्था पुरुष हो सकता है या नहीं इसका निर्णय उस धर्म के शास्त्र करेंगे न कि कोई व्यक्ति !और वो भी करना चाहे तो शास्त्रीय स्तर पर ही तो करेगा अन्यथा जैसे किसी असंवैधानिक व्यक्ति को मुख्यमंत्री और प्रधानमंत्री नहीं माना जा सकता तो किसी अशास्त्रीय व्यक्ति को देवी देवता कैसे माना जा सकता है ! साईं बाबा की दिनचर्या का हमारे धर्मग्रंथों से कोई लेना देना नहीं है उन्होंने रखवा भले ली थीं कुछ हिन्दुओं की मूर्तियाँ भी ताकि हिन्दू भी उन्हें अपना मानने लगें वही हुआ किन्तु उनकी आस्था हिन्दू धर्म के देवी देवताओं में नहीं थी !      बताया जाता है कि उनका नाम 'साईं ' भी लोगों ने रखा था जिन्होंने रखा था वे वही लोग थे जो खिचड़ी बाँटने के लिए धन दिया करते थे दवा कम्बल कपड़े आदि बाँटने के लिए दे जाया करते थे वही वो बाँटा करते थे लोग पूछते थे बाबा आपके पास ये सब कुछ आता कहाँ से है तो वो अपनी पोल कभी नहीं खुलने देते थे सबका मालिक एक कह कर काम चला लिया करते थे !वो परतंत्रता का युग था देश की गरीब जनता परेशान तो थी ही उसे लगा कि हम दिन भर परिश्रम करते रहते हैं फिर भी हम परिवार का भरण पोषण नहीं कर पाते दूसरी ओर बाबा जी कहीं जाते आते भी नहीं हैं और सबको सब कुछ दिन भर बाँटा करते हैं आखिर इनके पास आता कहाँ से है जरूर ये तपस्या सिद्ध ही होंगे तभी तो जो चाहते हैं वो अपने आप से आ जाता है उनके पास !भारत वर्ष की धर्म भीरु लोभी लालची चमत्कार प्रिय जनता उनके पास जाने लगी और उनकी प्रशंसा में मन गढंत कहानियाँ गढ़ने लगी आज कल लोग लोभ लालच में आकर अपना पिता बदलने को तैयार बैठे हैं कोई देवता बदल ले तो कौन सी बड़ी बात !
     जिस धर्म का ये प्रचार प्रसार ये करते थे उन्हीं लोगों ने इनका वास्तविक नाम ग्राम माता पिता आदि सबकुछ छिपा कर एक कल्पित नाम रखा जिसे यदि पलट दिया जाए तो उनके अपने देवता का नाम बन जाता था तीन बार 'साईं' बोलो तो दो बार 'ईसा' निकलता है ! यथा - " सा'ईंसा''ईंसा'ईं "!अपने अपने धर्म का प्रचार करने के लिए मिशनिरियाँ आज भी ऐसे ही हथकंडे अपनाती हैं भोजन वस्त्र दवा सेवा आदि के बल पर बदलवा लेती हैं धर्म !उसमें उन्हें कठिनाई आने लगी क्योंकि धर्म परिवर्तन करने वालों में भी संस्कार तो बचपन के  ही बने रहते थे !वो संस्कार कैसे बदलें उसके लिए शिक्षा का प्रचार प्रसार करने लगे वे !फैशन और आधुनिकता के नाम पर उन्होंने वो चीजें सीखनी शुरू कर दीं जिससे लोग हिन्दू धर्म से धीरे धीरे दूर होने लगे ! सनातन धर्मियों के मंदिरों में पूजा पद्धतियों साईं को ऐसे घुसाकर आज धीरे धीरे उस तरह की परिस्थिति तो पैदा कर ही दी गई है कि साईंसंप्रदायी स्वेच्छाचार के प्रति समर्पित सनातन धर्मियों का एक बड़ा वर्ग आज कभी भी सनातन धर्म से 'राम' 'राम' करने को तैयार बैठा है । 
      बंधुओ !ये परतंत्रता का समय था जब गाय की चर्बी से बने कारतूसों का बहिष्कार किया जाने लगा था तब अपने धर्म को बचाने के लिए ही तो कलकत्ते से काली पूजा का प्रचार पसर प्रारंभ किया गया , महाराष्ट्र से गणेशपूजन ,बनारस से बाबा विश्वनाथ ऐसे ही समूचे देश में हिंदू महापुरुषों ने धर्म की ध्वज उठाकर धर्मोत्सवों के नाम पर आजादी की लड़ाई लड़ी थी उस समय अंग्रेजों ने भी उसी के जवाब में चला था ये साईंदाँव और इन्हें देवता बनवा कर करवाई थी सनातन धर्म में भारी घुस पैठ !
    उसी योजना के तहत भारतीयों जैसी चमड़ी वाले एक व्यक्ति को इस देश की धर्म भीरु जनता के बीच लाकर छोड़ा गया था वो योजना इतनी गुपचुप  रखी गई थी कि उनके विषय में किसी को कुछ पता ही नहीं चलने दिया और न ही इन्हें कभी किसी धर्म स्थल पर ही  जाते देखा गया ,अपितु जहाँ रहते थे वहीँ पर सभी धर्मों के प्रतीक स्थापित कर रखे थे जिससे उन प्रतीकों पर आस्था रखने वाले लोग जाया करते थे वहाँ उनके पास और वहाँ खाने पीने कपड़े  लत्तों की अच्छी व्यवस्था कर रखी थी साईं मिशनिरियों ने ,वहीँ बैठे बैठे लोभ दे दे कर सभी धर्मों के लोगों को भ्रमित किया करते थे ये लोग !
   उस समय हिन्दू धर्म ही सबसे अधिक समृद्ध था इसलिए इन्होंने हिन्दुओं में ही घुस पैठ करनी प्रारम्भ की !और इसके लिए मिशनिरियों ने अनाप शनाप पैसा फूँका और वो हिन्दुओं के मंदिरों के साथ साथ शास्त्रीय आचारों व्यवहारों को भ्रष्ट करने में सफल हुए !इसीलिए आज तक इनका नाम गाँव माता पिता आदि किसी को पता नहीं चलने दिए गए !इस काम के लिए वो किसी अन्य धर्म से लाए गए होंगे !
     अब जानिए कि हिंदू लोग साईं भक्त बने कैसे ? 
      पहला कारण तो हिन्दू धर्म में शास्त्रीय शुद्धि अशुद्धि के कारण उपेक्षित और हैरान परेशान वर्ग को पहले खिचड़ी खिला खिला कर उन्होंने बड़ी चतुराई पूर्वक  पहले अपने साथ जोड़ लिया !दूसरा वर्ग वो था जिसके विषय में शास्त्रों में लिखा है कि चोरी ,हत्या,बलात्कार, निंदा चुगली घपले घोटाले जैसी पाप की कमाई न करें और जो करें वो सारे पाप छोड़कर पंचगव्य पिएँ प्रायश्चित्त करें तब धर्म कर्म करें ! 
    ये पाप की कमाई करने वाला वर्ग अत्यंत धनी होता ही है क्योंकि इसे पुण्य पाप का विचार तो करना नहीं होता है ये लुटेरे हत्यारे ब्यभिचारी अपहरण करके फिरौती वसूलने वाले रँगदारी माँगने वाले कुलमिलाकर अपने पापकर्मों के कारण जो वर्ग मंदिरों में जाने से डरता था अपनी पाप की कमाई समझ कर वहाँ धन देने में डरता था मंदिरों के या शास्त्रीय धार्मिक आचारों व्यवहारों से असंतुष्ट था !ऐसे सभी लोग साईं गिरोहों में सम्मिलित होने लगे !साईंमिशनिरियों से जुड़ने वाले उन साईंसदस्यों को लोग साईं भक्त कहने लगे उनके द्वारा दिए जाने वाले चंदे को लोग चढ़ावा कहने लगे !क्योंकि चढ़ावा कहने में टैक्स माफ था किंतु चंदे में ठीक नहीं लगता था । जहाँ धार्मिक न तो साईं थे और न ही उनके सदस्य तो उन्हें दिया जाने वाला धन चढ़ावा कैसे हो गया !साईं मिशनरी वालों ने जो श्लोगन दिया कि  'बाबा बड़े दयालू हैं' इसलिए पाप पुण्य कुछ भी करो उसमें से बाबा का हिस्सा बाबा को देते जाओ बाबा सारे पाप माफ कर देंगें !ये स्लोगन उन लोगों को शूट कर गया और उन्होंने अपने जीवन में सारे पाप करते हुए भी साईंबाबा को मालामाल कर दिया साईं ने उन पापप्रवृत्त  उपेक्षितों को धार्मिक बना दिया !
    उस धन और सदस्यों को सम्मानित बना बताकर सनातन धर्म के मंदिरों में धन बल पर न केवल कमेटियों में घुसाया गया अपितु पैसे झोंक कर ही उनसे मंदिरों की संपूर्ण व्यवस्था ही हाईजेक करा ली गई अनाप शनाप पैसे फूँककर ही उन्हें कमेटियों की निर्णायक भूमिकाओं में लाया गया !साईं के पूजन भजन आरतियों उत्सवों श्रृंगारों पर इतना अनाप शनाप धन खर्च किया जाने लगा कि उन सनातन  धर्म के अपने मंदिरों में अपने देवी देवताओं की उपेक्षा होने लगी !साईं खिचड़ी हलुआ लड्डुओं का चमत्कार बढ़ने लगा खिचड़ी खाने या खाना माँगने वाले इकट्ठे होने लगे भीड़ तो बढ़नी ही थी !जैसे जैसे भीड़ बढ़ती गई वैसे वैसे साईंमंदिर स्वतंत्र रूप से बनाए जाने लगे !
   अतएव सभी सनातन धर्मियों से निवेदन है कि आप अपने शास्त्रीय अाचारों व्यवहारों देवी देवताओं परंपराओं आदि को बचाते चलो क्यों सबसे पुराना और नैसर्गिक अपना धर्म ही है बाकी  सारे धर्म बनाए और माने  हुए हैं !ये गौरव केवल सनातन धर्मियों को ही मिला है इसे सुरक्षित रखना हमारा कर्तव्य है ।  
    
    साईंबाबा (जन्म: अज्ञात, मृत्यु: १५ अक्टूबर १९१८) जिन्हें शिरडी साईंबाबा भी कहा जाता है एक भारतीय गुरु, योगी और फकीर थे जिन्हें उनके भक्तों द्वारा संत कहा जाता है। उनके सत्य नाम, जन्म, पता और माता पिता के सन्दर्भ में कोई सूचना उपलब्द्ध नहीं है। जब उन्हें उनके पूर्व जीवन के सन्दर्भ में पुछा जाता था तो टाल-मटोल उत्तर दिया करते थे। साईं शब्द उन्हें भारत के पश्चिमी भाग में स्थित प्रांत महाराष्ट्र के शिरडी नामक कस्बे में पहुंचने के बाद मिला।

पूर्व जीवन

भक्तों और ऐतिहासकार इस बात से सहमत हैं कि जन्म स्थान और तिथि के सन्दर्भ में कोई भी विश्वनीय स्रोत उपलब्द्ध नहीं है। यह ज्ञात है कि उन्होंने काफ़ी समय मुस्लिम फकीरों संग व्यतित किया लेकिन माना जाता है कि उन्होंने किसी के साथ कोई भी व्यवहार धर्म के आधार पर नहीं किया। उनके एक शिष्य दास गनु द्वारा पथरी गांव पर तत्कालीन काल पर शोध किया जिसके चार पृष्ठों में साईं के बाल्यकाल का पुनःनिर्मित किया है जिसे श्री साईं गुरुचरित्र भी कहा जाता है। दास गनु के अनुसार उनका बाल्यकाल पथरी ग्राम में एक फकीर और उनकी पत्नी के साथ गुजरा।[1] लगभग सोलह वर्ष की आयु में वो अहमदनगर, महाराष्ट्र के शिरडी ग्राम में पहुंचे और मृत्यु पर्यंत वहीं रहे।[