Friday, 18 March 2016

भारत माता की जय नहीं तो पराजय बोलेंगे क्या ? ऐसे शब्द सुनकर भी क्यों सह जाएँ देश भक्त !

 भारत माता बाँझ नहीं है भारत माता की जय बोलने के लिए मातृभूमि के करोड़ों सपूत ज़िंदा हैं ! मातृभूमि के चरणों में समर्पित करोड़ों सपूत देश भक्त वो दिन देखने के लिए ज़िंदा नहीं रहना चाहेंगे जिस दिन भारत माता की पराजय हो !

      भारत माताकी विजय के लिए देशभक्त सैनिक हथेली पर जान लिए जूझ रहे हैं सीमा पर दुश्मनों से !कितनी कठिन और संघर्ष पूर्ण जिंदगी जी रहे हैं वे !अरे गद्दारो ! अपने सैनिकों का उत्साह बढ़ाने के लिए तुम भारत माता की जय भी नहीं बोल सकते !देश तुम्हें कैसे अपना समझे ! कैसे माने कि तुम देश की मुसीबत में देश की भावना के साथ खड़े होगे !
    भारत माता की जय कहने को इंकार करने वालों को गंभीरता से लिया जाना चाहिए !ऐसे पापियों को उस देश के लोकतंत्र का अंग कैसे माना जाए जिनका अपने देश की जय से लगाव ही न हो ! 
     जब देश स्वतंत्र है स्वस्थ है सक्षम है समृद्ध लोकतंत्र है तब इसी देश में रहकर तुम देश को विजय दिलाना तो दूर देश के प्रति विजय भावना रखना तो दूर देश की जय भी नहीं बोल सकते !अरे पापियो जिस देश का नमक खाते हो उसके साथ इतनी गद्दारी तो न करो कि देश भावना रो जाए ! 



    जिस धरती की सुरक्षा के लिए शहीद हुए सैनिकों के शिर पाने के लिए अभी तक देश बाट जोह रहा है ?उस देश में बैठ कर कोई भारत माता की जय बोलने को इंकार करके देश भक्त भारतीयों को मुख चिढ़ाने और शत्रु राष्ट्र को प्रसन्न करने का प्रयास भारत में बैठ कर क्यों कर रहा है ।  देश की पीड़ा को हवा में उड़ा देना कहाँ तक उचित है? हम पड़ोसी देश के साथ भी  सगे भाइयों की तरह प्रेम पूर्वक रहना चाहते हैं आखिर यह क्यों नहीं संभव हो पा रहा है?उसके पीछे ऐसी ही राष्ट्र विरोधी विचार धाराएँ जिम्मेदार हैं 
      जिस देश के पास इतनी ताकत हो उसके सैनिकों के शिर काट लिए गए थे ।कायदा ये है कि हमें तो प्रतिज्ञा करनी चाहिए कि जिस दिन अपने सैनिकों के शिर वापस लाएँगे  हमारा गणतंत्र दिवस और दिवाली सब कुछ उसी दिन होगा ।
   26 जनवरी पर सब तरह की झाँकियाँ सारे विश्व ने जरूर  देखी होगी हमारे प्यारे भारत वर्ष की  समर सामर्थ्य !इसप्रकार वहाँ जो भी झाँकियाँ थीं उनमें कुछ सजीव तथा निर्जीव थीं, जो कुछ सजीव झाँकियाँ ऐसी थीं।जिनमें नेता, मंत्री मुन्त्री, प्रधान मंत्री टाईप की हँसती मुस्कुराती हुई थीं।उनके मुखमंडलों पर प्रणम्य भारतीय सैनिकों के शिर न ला पाने के लिए आत्मग्लानि का कोई भाव नहीं दिख रहा था।सबकुछ झाँकियों में समिट सा चुका था सब तरह की झाँकियाँ और  झाँकियाँ ही झाँकियाँ !बस केवल झाँकियाँ ?या कुछ और? 
      यह सब  देख देखकर लग रहा था -वाह रे हम और हमारा देश!हमारे वीर सैनिकों ,वैज्ञानिकों ने देश के लिए बहुत कुछ बना चुना कर सँवार सुधारकर रखा है।इसीबल पर हमारे शौर्य संपन्न वीर सैनिक  हमेशा दुश्मनों को ललकारा करते हैं और जब जब उन्हें अवसर मिला है तब तब उन्होंने अपने अदम्य साहस का न केवल परिचय भी दिया है अपितु दुश्मनों के सहस्रों फनों को एक नहीं कई बार कुचला है ।आज भी इन सबके बीच भीरु राजनेताओं के सुषुप्त शौर्य को ललकारते हुए वीर सैनिकों ने जो रणकौशल दिखाए वो भारतीय जनसंपदा को ढाढस बँधाने के लिए कम नहीं थे।
      तरुणाई की अरुणिमा से आह्लादित रणबांकुरों का आत्मसम्मान से  दमकता हुआ देदीप्यमान उन्नत मस्तक ,छलकता हुए  शौर्य संपन्न प्रणम्य सैन्य समुदाय को देखकर  उस दिव्यता से हमारा हृदय भी हर्ष की हिलोरें मारने लगा । देश की मिट्टी के कण कण की रक्षा के लिए आतुर स्व तनों को तृणवत समझने वाले भारतीय वीरपुंगव सशस्त्र शूरमाओं को किसी की नजर न लग जाए यह सोच सोच कर मैं मन ही मन ईश्वर से उनके दीर्घायुष्य एवं कुशलता की कामना करने लगा। 
        रह रहकर  हृदय में हूक सी उठती थी कि कहाँ गए उन पवित्र भारतीय सैनिकों के प्रणम्य शिर? जिन्हें कभी ललकारा करते थे उन शत्रु सनिकों के आधीन होंगे हमारे भारती कुमारों के  शिर! जिनकी आन बान शान  सुरक्षा के लिए वो लड़े आखिर उन देशवासियों का उनके प्रति कोई दायित्व बनता है क्या ?आखिर क्या कर सकते हैं देशबासी?एकबार बोट देकर जिन्हें सत्ता सौंप चुके हैं अब क्या कर लेगा कोई उन  सत्तालु लोगों का ?कुछ भी करें या न करें।आखिर अपनी कर्मकुंडली उन्हें भी पता है कि जो जो हमने किया है जनता हमें अबकी चुनावों में  क्यों चुनेगी ?अगले चुनावों तक भूल जाएगी !ऐसे में हम आखिर क्यों किसी से दुश्मनी लें ?दूसरी बात यह भी है कि किसी राज नेता या उसके नाते रिश्तेदार का शिर तो है नहीं जो लाने की कोई मजबूरी ही हो! ये तो आम  सैनिक का शिर है इसलिए बस  बातों बातों में समय पास करना है कभी धमकी देंगे कभी माफी माँग लेंगे कह देंगे ये तो सामाजिक मजबूरी है इतना तो कहना करना ही पड़ता है।इसी प्रकार  थोड़े दिनों में सब स्वयं भूल भाल जाएँगे । यदि ऐसा न होता तो आम जनता को पता लगना चाहिए कि आखिर अपने देश के स्वाभिमान सम्मान का प्रतीक अपने वीर सैनिक का सम्माननीय शिर  कहाँ है और  कब मिलेगा ?और यदि  उस समय सीमा के अन्दर नहीं मिलेगा तो अपना शिर लाने के लिए सरकार का अग्रिम कदम क्या होगा ?साथ ही अपने देश की जन भावना से सभी देशों को अवगत करा दिया जाना चाहिए कि हम किसी भी कीमत पर अपने शिर के साथ समझौता नहीं कर सकते।हाँ, यदि हम  ऐसा कहने करने का साहस नहीं कर पा रहे हैं तो स्पष्ट  है कि हम भयग्रस्त हैं और दुर्भाग्य से यदि ऐसा है तो गणतंत्र दिवस पर वीरता की कहानी कहने वाली ये झाँकियाँ इस देश के  किस काम की ?
        अब झाँकियाँ दिखाने के साथ साथ शत्रु सेना में  झंझावात मचाने का समय है आखिर जिस  शिर के साथ देश का सम्मान जुड़ा हो वह हमारे लिए सामान्य शिर नहीं है ।ये बात यदि हम एक बार नहीं समझा पाए तो शत्रु इसके बाद  कितनी भी बड़ी नीचता कर सकता है यह सोच कर मन सिहर उठता है कि सैनिकों का सम्मान स्वाभिमान एवं जीवन हमारे लिए  बहुमूल्य है।आखिर जिन देशवासियों की सुरक्षा के लिए वीर सैनिकों ने  अपना जीवन बलिदान किया है उस समर्पण का सम्मान करते हुए देशवासी यदि वह शिर भी न ला सके तो आखिर उन वीर सैनिकों के और किस काम आएँगे ?
   सैनिक अपनी युवती पत्नी छोटे छोटे बच्चे एवं वृद्ध माता पिता को घर में छोड़कर देशवासियों की रक्षा के लिए देश की सीमाओं की सुरक्षा में कठोर समर्पण की साधना करते करते प्राण न्योछावर कर देता है।ऐसे  सैनिकों के प्रति सरकार एवं समाज का रुख !उनके परिवारों के प्रति आर्थिक सहयोग देने वालों की सोच एवं सहयोग राशि में कितनी उपेक्षात्मक  असमानता है !
      आतंकवाद से सुरक्षा के लिए सैनिकों का उत्साह बर्धन बहुत आवश्यक है। मुझे लगता है कि जाने अनजाने एक बड़ी चूक हमसे हो रही है जिसका सुधार किया जाना चाहिए।
  यह गंभीर चिंता का विषय है ! आखिर देश में बैठकर कोई भारत माता की जय बोलने से इंकार करे ये दुस्साहस !हमारी सरकारों में बैठे जनप्रतिनिधि नेताओं का खून क्यों नहीं खौलता? 
   
      मित्रों! कारगिल विजय काव्य  लिखने  के बाद आज पहली बार गणतंत्र दिवस जैसे प्रसन्नता के अवसर पर भी शहीद सैनिकों की याद में  मैं कई बार रोया हूँ फिर भी यदि हमारे किसी वाक्य से किसी को विशेष ठेस लगी हो तो मैं सभी से क्षमा प्रार्थी हूँ क्योंकि मेरा उद्देश्य किसी को ठेस पहुँचाना न होकर अपितु देश भक्ति हेतु जन जागरण करना है। 
 

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