किसी को अपने मुख में यदि गोबर लगा दिखाई दे दर्पण तोड़ने से अच्छा है कि अपना मुख धो डाले !महान जातिवैज्ञानिकमहर्षिमनु ने स्वभावों का अध्ययन आखिर कैसे किया था !अब ये कहना ठीक नहीं होगा कि सभी बराबर हैं और जातियों में कोई सच्चाई नहीं है यदि ऐसा होता तो सवर्णों की बराबरी के प्रयास में निरंतर लगे दलित लोगों के साथ साथ आजादी के बाद आज तक सरकार ने घोड़े छोड़ रखे हैं किंतु क्यों नहीं हो पा रही है बराबरी !और हो भी सकती है या नहीं सरकार अँधेरे में ही तीर चलाए जा रही है इस पर होनी चाहिए रिसर्च !
मनुस्मृति को जो समझ नहीं पाए वो जला रहे हैं जो समझे वो आनंद ले रहे हैं ! महर्षिमनु कितने बड़े जातिवैज्ञानिक थे उन्होंने लाखों वर्ष पहले मनुस्मृति के माध्यम से स्वभावों और जीवन शैली का अध्ययन करके जातियों का नाम देकर समाज का वर्गीकरण कर दिया था वो भी पूर्वजों का ! महर्षिमनु इतने बड़े जातिवैज्ञानिक थे !किस पैथी से उन्होंने स्वभावों का अध्ययन किया होगा उस पैथी पर रिसर्च होनी चाहिए और आरक्षण के स्थान पर स्वभाव परिवर्तन के प्रयास किए जाने चाहिए ताकि ये दारिद्र्य हमेंशा के लिए दूर हो सके !रही बात मनुस्मृति जलाने या मनुस्मृति से घृणा करने की तो ये तो उसी तरह की बात है कि किसी के मुख में गोबर लगा हो और वो शीशा देखने लगे तो मुख पर गोबर लगा देखकर शीशा फोड़ दे !अरे मनुस्मृति तो एक आइना है इससे ज्यादा कुछ नहीं उससे घृणा क्यों करनी !
अपने को शोषित पीड़ित उपेक्षित दलित आदि कहने वाली जातियों के कुछ लोग 'मनुस्मृति' को जलाने में भले सफल हो गए हों किंतु 'मनुस्मृति' जैसे महान ग्रंथ को आज तक झुठला नहीं पाए हैं ,अन्यथा इन जातियों के लोगों को महर्षि मनु की चुनौती स्वीकार करनी चाहिए थी और अपनी विद्या-बुद्धि,ज्ञान-विज्ञान, त्याग-तपस्या, आचार - व्यवहार आदि के द्वारा स्वाभिमान पूर्वक अपनी तरक्की ये सोचकर करनी चाहिए थी कि सवर्णों में भी तो गरीब लोग होते हैं वो भी तो अपना और अपने परिवारों का बोझ खुद ढोते हैं तो फिर हम सरकार की आरक्षण जैसी कृपा के बल पर जिन्दा क्यों रहें !किसी की कृपा पर जिन्दा रहने वाले लोगों को शर्मिंदा न होना पड़े ऐसा कैसे हो सकता है !स्वाभिमान विहीन जिंदगी भी कोई जिंदगी है !
सवर्ण यदि दलितों को अछूत मानते हैं तो मानते ही रहेंगे इसे कोई रोक कैसे सकता है मानना न मानना ये तो मन का विषय है कोई कुछ भी किसी को मान ले हर कोई स्वतंत्र है ।दलितों के पास भी तो विकल्प है वो भी सवर्णों को अछूत मान सकते हैं किंतु इसके लिए उन्हें अपनी विद्याबुद्धि गुण गौरव आदि ऐसे बढ़ाना पड़ेगा कि उसकी जरूरत सवर्णों को पड़े और वो चल कर जाएँ दलितों के दरवाजे ! मोल तोल तो तब हो सकता है अन्यथा दीन हीन स्वाभिमान विहीन अकिंञ्चनों की शर्तें कौन स्वीकार करता है ! सरकार के सामने कितना भी क्यों न गिड़गिड़ाया जाए कोई किसी के मन में कैसे घुस सकता है वो सरकार ही क्यों न हो !शिक्षा और नौकरियों में आरक्षण प्रत्यक्ष रूप से सवर्णों का नुक्सान करता है जबकि दलितों की क्वालिटी घटाने का सबसे बड़ा आत्मघाती कदम है आरक्षण !80 प्रतिशत नंबर लेने वाले सवर्ण छात्रों से आँख मिलकर बात करने का साहस कैसे कर सकते हैं 60 प्रतिशत मार्किंग लेकर नौकरी पाने वाले लोग !
" मनुस्मृति " 'मानवसभ्यता ' के विकास का महान ग्रंथ है इसीलिए 'मानवताविरोधियों' को घोर घृणा है इससे ! उनके इस जातिविज्ञान का आधार आखिर क्या था ?था लाखों वर्ष पहले मनु ने जिसके विषय में जैसा लिखा था
" मनुस्मृति "जलाने से जातियाँ मिट जाएँगी क्या ?घड़ी फोड़ देने से समय ठहर जाता है क्या ?आँख बंद कर लेने से दुनियाँ में अँधेरा छा जाता है क्या !
कोई चतुर्थ श्रेणी का कर्मचारी यदि संविधान से केवल इसलिए घृणा करने लगे कि उसे जज क्यों नहीं बनने दिया गया और यदि नहीं बनने दिया गया इसका मतलब कि उस कर्मचारी का शोषण हुआ है इसका मतलब वो दबा कुचला है इसका मतलब उसे जज बना दिया जाना चाहिए वो भी कब तक के लिए तो कहा कि लम्बे समय से चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी के रूप में काम करने के कारण चूँकि शोषण हुआ है इसका मतलब दबा कुचला है इसलिए आरक्षण का लाभ लेकर लम्बे समय तक जज बना रहेगा तब जज वाला स्वाभिमान जागेगा इसके अंदर ! इसलिए उसे जज बना रहने दिया जाए !और यदि बना भी रहे तो उसे जज का सम्मान न मिलने के लिए भी जजों को ही दोषी ठहराया जाए !किंतु बाकी कर्मचारी ये कैसे भूल जाएँगे कि ये तो आरक्षण से बना हुआ जज है हकीकत में तो चतुर्थ श्रेणी का कर्मचारी ही है !ऐसे ही सवर्णों पर लगाए जा रहे हैं दलितों के शोषण के काल्पनिक आरोप !
बंधुओ !सम्मान तो जातियों से नहीं गुणों से मिलता है रोजगार पीड़ित असंख्य सवर्ण आज मजदूरी करते घूम रहे हैं यदि जातियों को महत्त्व दिया जाता तो वो सवर्ण हैं उन्हें सम्मान मिलना चाहिए किंतु "गुणैर्हि सर्वत्र पदं निधीयते" ये सूक्ति उन कायरों को भी समझनी होगी जो अपनी अकर्मण्यता छिपाने के लिए मनुस्मृति फूँकते फिर रहे हैं !
"मनुस्मृति"जलाने की परंपरा जिन्होंने डाली सवर्णों के बिना गुजारा उनका भी नहीं हुआ ?सवर्ण विरोध की अलख जलाई थी तो कम से कम एक ही जन्म निभा लेते वही !ईमानदारी पूर्वक यदि चिंतन किया जाए तो उन्हें भी वो बनाने में सवर्णों की बड़ी भूमिका रही किंतु आज जो नहीं मानते उनकी परवाह भी नहीं है ये आखिर मान भी लेंगे तो कौन ताज दे देंगे !
सवर्णों के महत्त्व को विश्व का हर देश स्वीकार करता है कि ये परिश्रम पूर्वक काम करके खाने वाली स्वाभिमानी कौम हमारे यहाँ कभी तक भी बनी रहे हम पर कभी बोझ नहीं बनेगी अर्थात हमें कभी शोषण की झूठी कहानियाँ नहीं सुनाएगी और हमसे कभी आरक्षण नहीं माँगेगी !सवर्णों को हर देश या संस्थान अपने यहाँ ख़ुशी ख़ुशी रखना चाहता है अब सुना है कि प्राइवेट सेक्टर वालों पर भी थोपे जाएँगे मनुस्मृति जलाने वाले लोग !सब पर बोझ बनने की अपेक्षा अपने में ही क्यों न किया जाए जरूरी सुधार !
कोई चतुर्थ श्रेणी का कर्मचारी यदि संविधान से केवल इसलिए घृणा करने लगे कि उसे जज क्यों नहीं बनने दिया गया और यदि नहीं बनने दिया गया इसका मतलब कि उस कर्मचारी का शोषण हुआ है इसका मतलब वो दबा कुचला है इसका मतलब उसे जज बना दिया जाना चाहिए वो भी कब तक के लिए तो कहा कि लम्बे समय से चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी के रूप में काम करने के कारण चूँकि शोषण हुआ है इसका मतलब दबा कुचला है इसलिए आरक्षण का लाभ लेकर लम्बे समय तक जज बना रहेगा तब जज वाला स्वाभिमान जागेगा इसके अंदर ! इसलिए उसे जज बना रहने दिया जाए !और यदि बना भी रहे तो उसे जज का सम्मान न मिलने के लिए भी जजों को ही दोषी ठहराया जाए !किंतु बाकी कर्मचारी ये कैसे भूल जाएँगे कि ये तो आरक्षण से बना हुआ जज है हकीकत में तो चतुर्थ श्रेणी का कर्मचारी ही है !ऐसे ही सवर्णों पर लगाए जा रहे हैं दलितों के शोषण के काल्पनिक आरोप !
बंधुओ !सम्मान तो जातियों से नहीं गुणों से मिलता है रोजगार पीड़ित असंख्य सवर्ण आज मजदूरी करते घूम रहे हैं यदि जातियों को महत्त्व दिया जाता तो वो सवर्ण हैं उन्हें सम्मान मिलना चाहिए किंतु "गुणैर्हि सर्वत्र पदं निधीयते" ये सूक्ति उन कायरों को भी समझनी होगी जो अपनी अकर्मण्यता छिपाने के लिए मनुस्मृति फूँकते फिर रहे हैं !
"मनुस्मृति"जलाने की परंपरा जिन्होंने डाली सवर्णों के बिना गुजारा उनका भी नहीं हुआ ?सवर्ण विरोध की अलख जलाई थी तो कम से कम एक ही जन्म निभा लेते वही !ईमानदारी पूर्वक यदि चिंतन किया जाए तो उन्हें भी वो बनाने में सवर्णों की बड़ी भूमिका रही किंतु आज जो नहीं मानते उनकी परवाह भी नहीं है ये आखिर मान भी लेंगे तो कौन ताज दे देंगे !
सवर्णों के महत्त्व को विश्व का हर देश स्वीकार करता है कि ये परिश्रम पूर्वक काम करके खाने वाली स्वाभिमानी कौम हमारे यहाँ कभी तक भी बनी रहे हम पर कभी बोझ नहीं बनेगी अर्थात हमें कभी शोषण की झूठी कहानियाँ नहीं सुनाएगी और हमसे कभी आरक्षण नहीं माँगेगी !सवर्णों को हर देश या संस्थान अपने यहाँ ख़ुशी ख़ुशी रखना चाहता है अब सुना है कि प्राइवेट सेक्टर वालों पर भी थोपे जाएँगे मनुस्मृति जलाने वाले लोग !सब पर बोझ बनने की अपेक्षा अपने में ही क्यों न किया जाए जरूरी सुधार !
बंधुओ ! हर व्यक्ति अपने भाग्य
का निर्माता स्वयं होता है और भाग्य का निर्माण अपने कर्मों से होता है जो
कर्म करने की क्षमता के अभाव में आरक्षण माँगते हों ऐसे लोग अपने भाग्य का निर्माण कैसे कर सकेंगे !
इसीलिए जो लोग अपने कर्तव्य पालन अर्थात काम करने से कतराते हों
डरते हों ,हर किसी क्षेत्र में परिश्रमी लोगों से भय खाते हों दूसरों को
पढ़ते या काम करते देख कर आत्मा जवाब दे जाती हो कि हम तो ऐसा कर ही नहीं सकते !पढ़ें न पढ़ें पास करने की जिम्मेदारी सरकार की !नंबर अच्छे आए हों न आए हों किंतु नौकरी देने की जिम्मेदारी सरकार की !
जिस देश में इतना बड़ा वर्ग बीमारों की तरह जीवन जीने की आदत डाल चुका हो अभी भी स्वयं में सुधार लेन को तैयार न हो और अपने शोषण की झूठी कहानियाँ गढ़ गढ़ कर सुना रहा हो ! ऐसे लोगों को नुक्सान मनुस्मृति से न हुआ है और न ही हो सकता है अपितु आत्म सम्मान की भावना के अभाव में हुआ है ऐसा !
सम्मान कभी अनुदान में नहीं मिलता और न ही सरकार आरक्षण के बलपर सम्मान दे सकती है । जो लोग सोचते हैं कि जातियों के नाम पर सरकारों से अनुदान माँग माँगकर धन जुटा लेंगे और धन से सम्मान मिलेगा !उन्हें समझना होगा कि धन से सम्मान-स्वाभिमान नहीं मिलता अन्यथा भीख माँगकर कई भिखारी धन तो इकठ्ठा कर लेते हैं किंतु सम्मान नहीं !सम्मान के लिए खुद को जूझना पड़ता है और देना पड़ता है अपना बलिदान !अपने हाथों से अच्छे कर्म करके लिखना होता है भाग्य !किंतु जो लोग कहते हैं कि आरक्षण के बिना हम तरक्की ही नहीं कर सकते उनका कैसा होगा भाग्य !क्योंकि भाग्य तो कर्मों से बनता है और कर्म करने की क्षमता ही होती तो क्यों माँगते आरक्षण !
जिन सवर्णों के सामने एक बार यह कहते हुए हथियार डाल दिए गए कि भैया तुम तो पढ़ लिख कर पास हो सकते हो या अपनी योग्यता के बलपर नौकरी पा सकते हो किंतु हम तो आरक्षण के बिना कुछ भी नहीं कर सकते !ऐसी पराजित मानसिकता वाले लोग बराबर बैठने का साहस स्वयं नहीं कर पाते हैं इसमें सवर्णों का दोष क्या है और "मनुस्मृति' से दुश्मनी क्यों है समझ से परे है ये बात !
जिस देश में इतना बड़ा वर्ग बीमारों की तरह जीवन जीने की आदत डाल चुका हो अभी भी स्वयं में सुधार लेन को तैयार न हो और अपने शोषण की झूठी कहानियाँ गढ़ गढ़ कर सुना रहा हो ! ऐसे लोगों को नुक्सान मनुस्मृति से न हुआ है और न ही हो सकता है अपितु आत्म सम्मान की भावना के अभाव में हुआ है ऐसा !
सम्मान कभी अनुदान में नहीं मिलता और न ही सरकार आरक्षण के बलपर सम्मान दे सकती है । जो लोग सोचते हैं कि जातियों के नाम पर सरकारों से अनुदान माँग माँगकर धन जुटा लेंगे और धन से सम्मान मिलेगा !उन्हें समझना होगा कि धन से सम्मान-स्वाभिमान नहीं मिलता अन्यथा भीख माँगकर कई भिखारी धन तो इकठ्ठा कर लेते हैं किंतु सम्मान नहीं !सम्मान के लिए खुद को जूझना पड़ता है और देना पड़ता है अपना बलिदान !अपने हाथों से अच्छे कर्म करके लिखना होता है भाग्य !किंतु जो लोग कहते हैं कि आरक्षण के बिना हम तरक्की ही नहीं कर सकते उनका कैसा होगा भाग्य !क्योंकि भाग्य तो कर्मों से बनता है और कर्म करने की क्षमता ही होती तो क्यों माँगते आरक्षण !
जिन सवर्णों के सामने एक बार यह कहते हुए हथियार डाल दिए गए कि भैया तुम तो पढ़ लिख कर पास हो सकते हो या अपनी योग्यता के बलपर नौकरी पा सकते हो किंतु हम तो आरक्षण के बिना कुछ भी नहीं कर सकते !ऐसी पराजित मानसिकता वाले लोग बराबर बैठने का साहस स्वयं नहीं कर पाते हैं इसमें सवर्णों का दोष क्या है और "मनुस्मृति' से दुश्मनी क्यों है समझ से परे है ये बात !
जिन्होंने चलनी में गाय का दूध
दुहा हो और दूध जब नीचे बह गया हो तो दोष दूसरों तीसरों का दे रहे हों
!जिन पर दोष लगाया जाएगा वो यदि सफाई देने में पड़ जाएँगे तो कमाएगा कौन
!और बिना कमाए माँग माँग कर खाएँगे तो स्वाभिमान बचेगा क्या ?और बिना
स्वाभिमान का जीवन कैसा !यदि वो स्वाभिमान पूर्वक जीना चाहते हैं तो उन्हें
तो खाने के लिए कमाना पड़ेगा उनके पास इतना समय कहाँ कि वो सफाई देते
फिरें !स्वाभिमानी लोग मरना पसंद करेंगे किंतु अपने मुख से ये कभी नहीं कह
सकते कि हम दबे कुचले हैं हमारा शोषण किया गया है हम अपने बलपर तरक्की नहीं
कर सकते !हे राजा महाराजाओ !हम पर दया करो !जिनके हाथपैर सुरक्षित हों,
शरीर स्वस्थ हो,लोकतांत्रिक देश के सम्मानित नागरिक हों कानून का राज हो
!अदालतें पक्षपात विहीन निर्णय करती हों !ऐसे देश में रहकर यदि कोई तरक्की
नहीं कर सका तो लानत है उसे ,इसके लिए वो किसी और को दोषी नहीं ठहरा सकता
!
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