Tuesday, 7 June 2016

अफसरों और नेताओं की मिली भगत से होता है मथुरा जैसा महाभारत और बिहार जैसा टॉपरकांड !!

    भ्रष्ट अफसरों को कोई ईमानदार व्यक्ति घूस क्यों देगा और भ्रष्ट नेताओं को ईमानदार लोगों की आवश्यकता क्या है ?ईमानदार आदमी बातें तो बना सकता है किंतु ऊपरी कमाई नहीं करवा सकता !ईमानदार लोग तो बोझ हैं लोकतंत्र पर !
     सभी प्रकार के अपराध नेताओं और अफसरों की साँठ गाँठ से ही होते हैं ! दुर्भाग्य ये है कि जब उन अपराधों की जाँच की बारी आती है तो सरकारों में सम्मिलित वही नेता जाँच करवाते हैं और वही अफसर जाँच करते हैं वही पूर्व परिचित अपराधी होते हैं !इस प्रकार से जहाँ सभी अपने होते हैं वहाँ दूध का दूध और पानी का पानी की तो कहावत है बाक़ी यहाँ होना तो पानी का भी दूध ही दूध होता है ।अपराधियों के निडर होने का यही तो रहस्य है ।सरकारी अधिकारी हों या कर्मचारी आम जनता से नहीं मिलते और न ही आम जनता ही उनसे मिलना चाहती है क्योंकि सच पूछो तो अफसर लोग जनता के किसी काम के होते ही नहीं हैं ! अफसरों  पर अंकुश लगावे सरकार और सरकारों पर अंकुश लगावें अफसर तब तो हो सकता समाज में कुछ सुधार !क्योंकि अफसरों की असफलता के प्रमाण हैं अपराध ! अफसर सतर्क हों तो बंद हो जाएँ अपराध ! नेताओं को चुनाव जीतने के लिए चाहिए होती है अपराधियों की मदद ! उसका एहसान पाँच साल तक चुकाया करते हैं नेता !उन्हीं नेताओं के बल पर अपराधी ठाठ से करते हैं अपराध !
    जितने कानून बनते हैं उनमें से पालन कितने का होता है बाकी सारे कानून तोड़ना जनता की अपनी मजबूरियाँ हैं सरकारी मशीनरी उन मजबूरियों की कीमत वसूलती है यही तो उनकी कमाई का साधन है इसे कैसे कोई रोक सकता है !ईमानदारी का पालन ईमानदारी से होता हो न होता हो किंतु बेईमानों के बीच ईमानदारी का पालन बड़ी ईमानदारी से होता है ।अपराधियों में आपसी विश्वास बहुत मजबूत होता है किंतु अपराधियों के ऐसे मकड़जाल का भेदन कौन करे !इसलिए अपराध सहने का अभ्यास जनता को ही कर लेना चाहिए !लाचार लोकतंत्र में अपराधियों से बचने का यही एक मात्र उपाय है । 

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