तब काँग्रेस सरकार में के सरकार समेटे घूम रहे हैं
किसी भी पार्टी को सत्ता में लाने का श्रेय पार्टी के प्रत्येक कार्यकर्ता को जाता है यदि शीर्ष नेतृत्व की छवि होती है तो छोटे कार्यकर्ताओं का श्रम और समर्पण लगा होता है !सरकार बनने पर छोटे से छोटे कार्यकर्ता को भी ये लगना चाहिए कि अब उसकी सरकार है इसलिए उसके स्तर का अधिकार तो उसे भी चाहिए कि वो भी उन मतदाताओं के नैतिक कामों में तो मदद कर सके जिनसे कल वोट माँगे थे जिस दायरे में उसने चुनाव प्रचार किया है लोगों के कि तक हर कार्यकर्ता खुद को कुछ संगठन को कभी किसी कार्यकर्ता को खाली नहीं छोड़ा जाना चाहिए
संघ के कार्यकर्ता अपने एवं अपनों को भूलकर संगठन को मजबूत करते हैं समाज को संस्कारी बनाते हैं और देश के सम्मान स्वाभिमान की संप्रभुता के लिए समर्पित होते हैं । दूसरी ओर राजनैतिक कार्यकर्ता देश समाज और पार्टी हितों को ताख पर रखकर केवल अपने को मजबूत करता है अपनों के लिए काम करता है समाज एवं देश के प्रति उसका कोई चिंतन नहीं होता है।राजनीति का स्वरूप इतना ही नहीं बिगड़ा है परिस्थितियाँ तो इतनी अधिक खराब हो चुकी हैं कि संघ भावना से स्वयं काम न करने वाले नेता लोग संघ भावना से काम करने वालों के लिए सशक्त बैरियर का काम करने में लगे हुए हैं।ऐसे नेता संघ और उसके आनुषांगिक संगठनों के स्वयं सेवकों के समर्पित प्रयासों से सुसिंचित समाज में लहलहाती विश्वसनीयता की घास चरने के लिए पहन लिया करते हैं कभी कभी खाकी पैंट !
पहले गाँवों में घास को इकट्ठी करके रस्सियाँ बना लिया करते थे लोग उसी
से काम चलाया करते थे।इसी क्रम में एक जगह कुछ नेत्रहीन लोग बैठे घास की
रस्सियाँ बना रहे थे उन्हीं का अपना पालतू पड़वा (भैंस का बच्चा) घास की
होने के कारण उन रस्सियों को खाता जा रहा था किंतु वो बेचारे अपने कार्य
में समर्पित होने के कारण आहट समझ नहीं पाए !दिखाई पड़ता ही नहीं था ।
यहाँ जनविश्वास की घास उगाकर सत्ता रूपी रस्सियाँ तैयार करने वाले संघ
संगठनों को नेत्रहीन समझने की भूल करता जा रहा है उनका पालतू पड़वा ! वो
रस्सी तो खाता जा रहा है किंतु स्वयंसेवकों की विश्वसनीयता समाज में बरकरार
बनी रहे इसके लिए वो कुछ भी करने को तैयार नहीं दिखते !आगामी चुनावों में
अपने पालतू पड़वे की मदद करने के लिए कैसे निकलेंगे स्वयं सेवक उन लोगों से
आँख मिलाकर बात कैसे कर सकेंगे जिनसेचुनावों में जिताने के लिए वोटों की
मधुकरी (भिक्षा) माँग माँग कर इन पड़वों का पेट भरा था अर्थात सत्ता सौंपी
थी । वोट माँगते समय मतदाताओं को विश्वास में लेने के लिए स्वयं सेवकों ने
लोगों को कुछ तो आश्वासन दिए होंगे किसी तरह तो अपनापन जीता ही होगा तभी तो
इतना भारी बहुमत मिल पाया है जिसे अब वे पड़वे अपनी योग्यता और झूठे
भाषणों का प्रतिफल मानने लगे हैं जबकि नेताओं की बातों पर भरोसा करना
देशवासियों ने बहुत पहले छोड़ दिया था । ये तो स्वयं सेवकों के सदाचरणों पर
जनता का भरोसा है कि जो आज पूर्ण बहुमत में सरकार बनी है ।
सभी संगठनों के स्वयं सेवकों की आज ये स्थिति है कि जिस सरकार को
बनवाने के लिए वो सालों से दिन दिन रात रात परिश्रम करते रहे मतदाताओं से
वोट माँगने के लिए गिड़गिड़ाते रहे उन्हें झूठे साँचे आश्वासन देते रहे कायदा
तो ये कहता है कि अब उन्हें मतदाताओं के नैतिक कामों में तो साथ देना ही
चाहिए किंतु कैसे दें किससे कहें अब अधिकार प्राप्त सत्तासीन नेताओं के
लिए जब वे ही पराए हो गए तो कैसे आवें किसी के काम !उन्हें खुद कोई नहीं
पूछ रहा है ।
किंतु एक बार अल्पाहार ले रहे थे मुझे पास बैठे
राष्ट्रीय कार्यालय से लेकर
जब
से छोड़ा है तभी से तो मिली जुली सरकारें बननी शुरू हुईं इसके पहले
पूर्णबहुमत से बनने वाली सरकारें भी जनता का विश्वास जीतने से नहीं अपितु
बलिपृथा की प्रोडक्ट होती थीं किसी एक नेता के निधन से उपजी संवेदना कैस
करके सरकारें बना लिया करते थे चालाक नेता लोग ! अब संवेदनाओं के अभाव
में चालीस सीटों पर सिमिट गए हैं बेचारे ये चालीस सीटें उनके उन वास्तविक
कर्मों का फल हैं जो उन्होंने अभी तक जनता के साथ किए हैं । जिसके वो
हमेंशा से हकदार थे किंतु पार्टी के प्रिय परिवार के नेताओं के
दुर्भाग्यपूर्ण निधन को हमेंशा से कैस कर लेते रहे उनकी पार्टी के नेता लोग
।अपनी इसी काबिलियत के बलपर इतने लंबे समय तक सत्ता सुख भोगा उन लोगों ने
अब भटक रहे हैं बेचारे !
जिनकी नक़ल करने में वो लोग लगे हैं जिन्हें
सी छोड़ चूका है उन्हें सोचना
जन मन में संघ के प्रति उगी विश्वसनीयता की घास को चरने उस तरह से काम लेना चाहते हैं जैसे एक नेत्रहीन बूढ़ा
पहले राजनीति भी बिलकुल ऐसी नहीं थी जैसी आज है
से उसका कोई केवल को अत्यंत ऊँचाइयों तक ले जाने के लिए समर्पित हैं !
राष्ट्र का कार्य ही
भाजपा में भाजपा के लिए काम करने वाले कितने लोग हैं
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