कलियुगी स्वयंभू दलित देवी पहले तो आंदोलन करने जा रही थीं किंतु स्वातीसिंह की गर्जना के आगे सारा जोश ठंडा पड़ गया !
कलियुग की स्वयंभूदलित देवीको विगत चुनावों में प्रदेश के मतदाताओं ने लोकसभा में घुसने लायक नहीं रखा था !वो आज अपनी तुलना देवी देवताओं से करते नहीं थकती हैं यदि दलित लोग उन्हें इतना ही सम्मान देते होते तो लोकसभा चुनावों में वोट न देते !आजकल अखवार पढ़कर पता लगते हैं लोकसभा के समाचार फिर भी देवी बनने का नशा लगा हुआ है ऐसी दुर्दशा की है प्रदेश वासियों ने और समझा दिया है कि ऐसे किया जाता है कलियुगी दलित देवी का सम्मान !
क्षत्राणी का गर्जन सुनते ही दलितोंदेवी ठंडी पड़ गई जाने कहाँ चला गया वो जोश !वो तो आंदोलन करने वाली थीं !! क्षत्राणी अपनी आन बान शान की रक्षा के लिए न केवल निकल आई रोडों पर अपितु उस कलियुगी देवी को भागने पर विवश कर दिया !जातिगत आरक्षण के अनुदान पर जिंदा रहने वालों में इतनी हिम्मत कहाँ होती है कि अपनी मेहनत से कमाने खाने वालों का सामना कर सकें !उतनी आत्मसम्मान की भावना भी नहीं होती है ।
एक अपनी बेटी की इज्जत के लिए मर मिटने को तैयार है और दूसरा अपना घोषित आंदोलन छोड़कर भाग खड़ा हुआ ! भविष्य में जब कभी कोई बात होगी तो कहेंगे कि हमें तो जाति के कारण या महिला होने के कारण दयाशंकर सिंह ने अपशब्द कहे थे! कोई नेता केवल नेता होता है बस उसकी न कोई जाति होती है न लिंग और न क्षेत्र !वैसे भी दयाशंकर सिंह जी ने अपशब्द तो कहे भी नहीं थे किंतु आरक्षण की वैशाखी के बलपर शिक्षित लोग कहाँ और कैसे समझ सकते हैं साहित्य और अलंकारों के भेद !नहीं समझ पाए उस तुलना का अर्थ !धन लोभ की तुलना की गई थी वे अपनी तुलना समझ बैठे !
जातिगत आरक्षण के पक्षधर लोग नहीं समझ पाए तुलना के सिद्धांत !जो तुलना मायावती जी की कार्यशैली से की गई थी उसे बुद्धू लोग मायावती जी की तुलना समझ बैठे और मचाने लगे शोर !
दयाशंकर सिंह जी ने अपने बयान में मायावती जी के व्यक्तिगत सम्मान का सम्पूर्ण रूप से
ध्यान रखा है !इसी बात का प्रमाण है कि उस बयान में मायावती जी का नाम
जितनी बार भी लिया गया है हर बार 'जी' लगाने का ध्यान रखा गया है इसके साथ
ही उनके बयान का ही अंश यह भी है कि "प्रदेश की 'हमारी' 'इतनी बड़ी नेता'
तीन तीन बार की मुख्यमंत्री मायावती जी" आदि शब्दों से दयाशंकर सिंह जी ने
मायावती जी को एवं उनके बड़प्पन को भी महत्त्व दिया है । कुल मिलाकर इस
दृष्टि से भी मायावती जी के अपमान की भावना कहीं नहीं झलकती है !
इसलिए दयाशंकर सिंह जी के विवादित बयान की व्याख्या विद्वान्
भाषाविदों से कराई जाए और पता किया जाए कि दयाशंकर सिंह जी ने
मायावती जी का अपमान किया भी है या नहीं !सच्चाई ये है कि उन्होंने मायावती
जी की कार्यशैली की और राजनैतिक चुनावी भ्रष्टाचार की तुलना के लिए
उपमान(वेश्या) शब्द का चयन किया है न कि मायावती जी की व्यक्तिगत तुलना के
लिए ।इसलिए सरकार से मेरा निवेदन है कि उन पर कोई भी कार्यवाही
करने से पूर्व उनके बयान की जाँच अवश्य करवाई जाए !
मुझे भाषा के विषय में जितना पता है उसके आधार पर मैं विश्वासपूर्वक कह
सकता हूँ कि दयाशंकर सिंह जी के उस बयान से कहीं और कैसे भी ये सिद्ध नहीं
होता है कि दयाशंकर सिंह जी ने मायावती जी का अपमान किया है हाँ उनकी
कार्यशैली की तुलना करने के लिए चुने गए उपमान में गलती जरूर हुई है जिससे
बचा जाना चाहिए था !
दयाशंकर सिंह जी के बयान में हिंदी साहित्य के अनुसार 'प्रतीपअलंकार' है । जिसमें उपमान (वेश्या) और उपमेय (मायावतीजी) की तुलना का आधार मायावती जी का ‘चरित्र’ नहीं है शरीर नहीं है व्यक्तित्व नहीं है सामाजिक बात व्यवहार नहीं है स्वरूप नहीं है मान सम्मान नहीं है !केवल टिकटों का सौदा करते समय "अपने दिए हुए बचन पर कायम न रहने "का आरोप लगाया गया है और इसी 'बचन पर कायम न रहने' के व्यवहार की तुलना के लिए उपमान 'वेश्या' शब्द चुना गया है।
किसी भी प्रकरण में उपमान और उपमेय शब्दों के बीच जो उभयनिष्ठ गुण होता है तुलना उसी की होती सबकी नहीं । किसी स्त्री के लिए यदि कह दिया जाए कि इसकी नाक तोते जैसी है या इसके बाल भ्रमरों की तरह हैं आँखें मछली की तरह हैं मुख चंद्रमा की तरह है तो उसके सारे शरीर की तुलना नहीं मानी जा सकती ! जैसे तोते की तरह की नाक का मतलब ये तो नहीं कि उस स्त्री की तुलना तोते से कर दी गई हो !ऐसा ही अन्यत्र भी देखा जाना चाहिए कि तुलना में समानता किस चीज की दिखाई गई है उसके आधार पर ही निर्णय भी होना चाहिए !यहाँ पर भी तुलना मायावती जी से न होकर अपितु उनकी एक आदत से की गई है ।इसलिए इसे आदत तक ही सीमित रखा जाना चाहिए !इसे मायावती जी के चरित्र और व्यक्तित्व से जोड़ना ठीक नहीं है । क्योंकि मायावती जी के आम बात व्यवहार या उनके निजी जीवन से संबंधित इस बयान में कोई चर्चा नहीं की गई है ।इसमें चरित्र की चर्चा के तो कोई संकेत नहीं मिलते हैं !कुल मिलाकर दयाशंकर सिंह जी के बयान की कैसी भी व्याख्या क्यों न कर ली जाए उसमें मायावती जी के चरित्र की तुलना कहीं नहीं सिद्ध की जा सकती है !
इसलिए इस विषय में मेरा निवेदन मात्र इतना है कि दयाशंकर सिंह जी जैसे किसी भी व्यक्ति से मायावती जी की राजनैतिक कार्यशैली की आलोचना करते समय मानवीय भूल के तहत गलती से गलत उपमान चुन लिया गया है जिसकी गलती का एहसास होते ही उन्होंने माफी भी माँग ली है । मायावती जी ने भी सदन में उनके परिवार के लिए अपशब्द कहे इसके बाद उन्हें पार्टी से निकालने की माँग रखी भाजपा ने वो भी मान ली !इसके बाद मायावती जी की प्रेरणा से खुले समाज में दयाशंकर सिंह जी की बहन बेटी माँ और पत्नी के विषय में खुले आम जितनी गंदी गालियाँ दिलवाई गई हैं उसके लिए एक एक बदजुबान बसपाई पर कानूनी कार्यवाही की जानी चाहिए !
दयाशंकर सिंह जी के बयान में हिंदी साहित्य के अनुसार 'प्रतीपअलंकार' है । जिसमें उपमान (वेश्या) और उपमेय (मायावतीजी) की तुलना का आधार मायावती जी का ‘चरित्र’ नहीं है शरीर नहीं है व्यक्तित्व नहीं है सामाजिक बात व्यवहार नहीं है स्वरूप नहीं है मान सम्मान नहीं है !केवल टिकटों का सौदा करते समय "अपने दिए हुए बचन पर कायम न रहने "का आरोप लगाया गया है और इसी 'बचन पर कायम न रहने' के व्यवहार की तुलना के लिए उपमान 'वेश्या' शब्द चुना गया है।
किसी भी प्रकरण में उपमान और उपमेय शब्दों के बीच जो उभयनिष्ठ गुण होता है तुलना उसी की होती सबकी नहीं । किसी स्त्री के लिए यदि कह दिया जाए कि इसकी नाक तोते जैसी है या इसके बाल भ्रमरों की तरह हैं आँखें मछली की तरह हैं मुख चंद्रमा की तरह है तो उसके सारे शरीर की तुलना नहीं मानी जा सकती ! जैसे तोते की तरह की नाक का मतलब ये तो नहीं कि उस स्त्री की तुलना तोते से कर दी गई हो !ऐसा ही अन्यत्र भी देखा जाना चाहिए कि तुलना में समानता किस चीज की दिखाई गई है उसके आधार पर ही निर्णय भी होना चाहिए !यहाँ पर भी तुलना मायावती जी से न होकर अपितु उनकी एक आदत से की गई है ।इसलिए इसे आदत तक ही सीमित रखा जाना चाहिए !इसे मायावती जी के चरित्र और व्यक्तित्व से जोड़ना ठीक नहीं है । क्योंकि मायावती जी के आम बात व्यवहार या उनके निजी जीवन से संबंधित इस बयान में कोई चर्चा नहीं की गई है ।इसमें चरित्र की चर्चा के तो कोई संकेत नहीं मिलते हैं !कुल मिलाकर दयाशंकर सिंह जी के बयान की कैसी भी व्याख्या क्यों न कर ली जाए उसमें मायावती जी के चरित्र की तुलना कहीं नहीं सिद्ध की जा सकती है !
इसलिए इस विषय में मेरा निवेदन मात्र इतना है कि दयाशंकर सिंह जी जैसे किसी भी व्यक्ति से मायावती जी की राजनैतिक कार्यशैली की आलोचना करते समय मानवीय भूल के तहत गलती से गलत उपमान चुन लिया गया है जिसकी गलती का एहसास होते ही उन्होंने माफी भी माँग ली है । मायावती जी ने भी सदन में उनके परिवार के लिए अपशब्द कहे इसके बाद उन्हें पार्टी से निकालने की माँग रखी भाजपा ने वो भी मान ली !इसके बाद मायावती जी की प्रेरणा से खुले समाज में दयाशंकर सिंह जी की बहन बेटी माँ और पत्नी के विषय में खुले आम जितनी गंदी गालियाँ दिलवाई गई हैं उसके लिए एक एक बदजुबान बसपाई पर कानूनी कार्यवाही की जानी चाहिए !
ये है दया शंकर सिंह जी का वो विवादित बताया जाने वाला बयान -
"आज मायावती जी आज टिकटों की इस तरह विक्री कर रही हैं कि "एक वेश्या भी यदि किसी पुरुष के साथ कांटेक्ट करती है तो जब तक पूरा नहीं करती है तो उसको नहीं तोड़ती है "प्रदेश की हमारी इतनी बड़ी नेता तीन तीन बार की मुख्यमंत्री मायावती जी किसी को 1 करोड़ में टिकट देती हैं दोइए घंटे बाद 2 करोड़ देने वाला मिलता है तो उसे दे देती हैं और शाम को कोई 3 करोड़ देने वाला मिलता है तो उसे दे देती हैं । "
see more.... इस बयान को आप सुन भी सकते हैं -ये ही वो लिंक -see more... https://www.youtube.com/watch?v=lIT54SBJn4U
No comments:
Post a Comment