नेता जनहित की बड़ी बड़ी बातें करते हैं किंतु चुनाव जीतने के बाद केवल अपनों से और अपनी ससुराल वालों से मिलते हैं जनता पराई है उसकी क्यों सुनें !चुनावों के समय फिर आएँगे गिना देंगे कोई मजबूरी !
अधिकारी बड़े बड़े किंतु उनके बश का काम धेले का नहीं होता है घर में कभी काम किया नहीं केवल पढने लिखने में समय बिता दिया तो नौकरी पाने के बाद भी वो आफिसों में बैठे केवल पढ़ा लिखा ही करते हैं और कुछ उनके बस का है भी नहीं जिम्मेदारियाँ निभाने लायक साहस तो होता है मन भी होता है निभाना भी चाहते हैं उनके हृदय में दबी छिपी नैतिकता उन्हें धिक्कारती भी है कि वो अपने अधिकारों का जनहित में उपयोग करें किंतु इसके लिए उन्हें आफिसों से निकलना पड़ेगा उस जनता के उन लोगों से बात करनी पड़ेगी जिनके रहन सहन मैले कुचैलेपन से आज तक घृणा करते रहे हैं आज उससे अचानक कैसे घुल मिल जाएँ !जिस आम जनता की छाया उनके बच्चों पर न पड़ जाए इसलिए तो उन्होंने अपने विद्यालय तक अलग बना रखे हैं अपना उठना बैठना रहन सहन बात व्यवहार नातेरिश्तेदारी आदि सब कुछ जिस आयाम जनता से अलग कर लिया है वो आम
क्या इसीलिए सिविल सर्विसेस की तैयारी की थी और यदि उन्हीं से घुलना मिलना है तो अपनी हैसियत का रौब किसको दिखाएँ !नेता हों या अधिकारी सबके रौब तो जनता ही देखती है ।
और नैतिकता से वे विमुख बने रहते सिविल सर्विसेज की तैयारियाँ बहुत कठिन होती हैं वो करते करते उनका मन मर जाता है अर्थात जीवन का उत्साह समाप्त हो जाता है
अधिकारी बड़े बड़े किंतु उनके बश का काम धेले का नहीं होता है घर में कभी काम किया नहीं केवल पढने लिखने में समय बिता दिया तो नौकरी पाने के बाद भी वो आफिसों में बैठे केवल पढ़ा लिखा ही करते हैं और कुछ उनके बस का है भी नहीं जिम्मेदारियाँ निभाने लायक साहस तो होता है मन भी होता है निभाना भी चाहते हैं उनके हृदय में दबी छिपी नैतिकता उन्हें धिक्कारती भी है कि वो अपने अधिकारों का जनहित में उपयोग करें किंतु इसके लिए उन्हें आफिसों से निकलना पड़ेगा उस जनता के उन लोगों से बात करनी पड़ेगी जिनके रहन सहन मैले कुचैलेपन से आज तक घृणा करते रहे हैं आज उससे अचानक कैसे घुल मिल जाएँ !जिस आम जनता की छाया उनके बच्चों पर न पड़ जाए इसलिए तो उन्होंने अपने विद्यालय तक अलग बना रखे हैं अपना उठना बैठना रहन सहन बात व्यवहार नातेरिश्तेदारी आदि सब कुछ जिस आयाम जनता से अलग कर लिया है वो आम
क्या इसीलिए सिविल सर्विसेस की तैयारी की थी और यदि उन्हीं से घुलना मिलना है तो अपनी हैसियत का रौब किसको दिखाएँ !नेता हों या अधिकारी सबके रौब तो जनता ही देखती है ।
और नैतिकता से वे विमुख बने रहते सिविल सर्विसेज की तैयारियाँ बहुत कठिन होती हैं वो करते करते उनका मन मर जाता है अर्थात जीवन का उत्साह समाप्त हो जाता है
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