Monday, 24 July 2017

'बलात्कार' रोकना सरकार के बस का है क्या ?कानून और पुलिस क्या रोक सकती है बलात्कार !यदि ऐसा होता तो रोक न लेती !

    महिलाएँ और लड़कियाँ कैसे भी कपड़े पहनें और कैसे भी रहें कुछ भी करें वे स्वतंत्र है किन्तु क्या पुरुषों को भी है ऐसी स्वतंत्रता !seemore....htt://navbharattimes.indiatimes.com/metro/delhi/crime/man-arrested-for-allegedly-masturbating-in-front-of-german-woman/articleshow/59715184.cms 
      पुरुष भी अपने शरीर के विषय में स्वतंत्र होने चाहिए !वे क्या करें क्या न करें ये उनकी स्वतंत्रता है उन्हें ही क्यों तमीज सिखाई जाए !
    अत्याधुनिक समाज में ऐसी ही प्रदूषण पैदा कर रही है जिसके लिए ओवरफैशनेबल स्त्री पुरुष दोनों दोषी हैं |   स्वतंत्रता की ऐसी परिभाषा और ये कुतर्क समाज में ऐसे जहर घोलते हैं ! जिनका तर्क होता है कि यदि वे स्वतंत्र हो सकते हैं तो मैं क्यों नहीं ?मैं भी कुछ भी करूँ       कुलमिलाकर हमारा कोई भी आचरण रहन सहन पहनावा श्रृंगार आदि दर्शकों के मन को सेक्स के लिए उत्तेजित करता है तो ऐसे स्त्री पुरुषों को बलात्कारों को बढ़ाने वाला माना जाना चाहिए और कार्यवाही भी समान रूप से की जानी चाहिए ! 
     समाज के किसी भी वर्ग को दूसरे से ऐसी अपेक्षा नहीं करनी चाहिए कि हम कुछ भी करते रहेंगे और सामने वाले की ओर से कोई प्रतिक्रिया ही नहीं आएगी ऐसा कैसे हो सकता है !
      आधे चौथाई कपड़े पहनने की विकृति हो या शरीर को जगह जगह से नंगा दिखाने की कोशिश ये न कोई फैशन हो सकता है न कोई शौक और न पहनावा ये केवल दर्शकों के मन के सेक्स भाव को जगाने या उत्तेजित करने के लिए किया जाता है अधिक से अधिक लोगों की सेक्स भावनाओं को अपनी ओर आमंत्रित करने का ये कुश्चित प्रयास मात्र है !
      किसी भी मनोवैज्ञानिक से इस बात की जाँच करवा ली जाए कि ऐसे नंगे शरीरों को देखकर दर्शकों पर उत्तेजक प्रभाव पड़ता है या नहीं ?बात अलग है कि कुछ लोग अपने संयम या अन्य साधनों से उत्तेजना शांत कर लेते हैं किंतु कुछ साधनविहीन उत्तेजित लोग हमलावर हो जाते हैं ऐसे हमलों का शिकार वो नंगे शरीर संपन्न लोगों को बना पाए तो ठीक और यदि न सफल हुए तो वे सेक्सविक्षिप्त लोग पागलों की तरह मौका  तलाशते भटकने लगते हैं !फिर उन्हें न भीड़ का लिहाज रहता है न उम्र का और न स्त्री पुरुष का  न रिश्तों का ऐसे विषयों में तो वो सोचें जो होश में हों किन्तु उन्हें इतना होश कहाँ होता है सेक्सालुओं में इतना धैर्य कहाँ होता है !
    इसीलिए वे न कानून व्यवस्था की परवाह करते हैं और न ही पुलिस का भय ! वे मन की ऐसी विक्षिप्त अवस्था में पहुँच चुके होने के कारण अपने सेक्स लक्ष्य को पा लेने के लिए हत्या आत्महत्या आदि बड़े से बड़े अपराधों को बहुत छोटा मानने लगते हैं सरकार और कानून के द्वारा दिया जाने वाली फाँसी जैसी भयंकर सजा के फंदे को तो वे झुनझुना मानने लगते हैं जिससे कभी भी खेलते देखे जाते हैं ऐसे लोग !सरकार और कानून जिस दारुण सजा के लिए इतना बड़ा हउआ खड़ा करती है महीनों  सालों लग जाते हैं इसके बाद सजा होती है बड़े इंतजाम होते हैं कोई जल्लाद होता है फाँसी का फन्दा होता है ऐसे भारी भरकम इंतजामों के साथ दी जाती है ये सजा किंतु ये सेक्सपथिक तो हत्या आत्महत्या को कुछ गिनते ही नहीं हैं घर के पंखे में दुपट्टे में ही खुद लटक जाते हैं या सामने वाले को लटका देते हैं !एक दिन पहले तक उनके चेहरों पर ऐसे कोई भाव भी नहीं होते यहाँ तक कि दिन रात साथ रहने वाले उनके घर के लोग भी उनकी भावनाएँ भाँप ही नहीं पाते हैं कि वे कोई ऐसा बड़ा कदम उठाने जा रहे हैं ऐसी परिस्थिति में बलात्कारों या ऐसे अपराधों को न रोक पाने के लिए पुलिस और सरकार को जिम्मेदार कैसे ठहराया जा सकता है !कानून व्यवस्था को कैसे कटघरे में खड़ा किया जा सकता है !
     मैं इस विषय में किसी से भी किसी भी खुले मंच पर बहस करने को तैयार हूँ कि वो सुझाव दें कि इन बढ़ते बलात्कारों को रोकने के लिए सरकार कानून और पुलिस को करना क्या चाहिए ?फिर सरकार न करे तब तो सरकार दोषी !किंतु ये बात महिलाओं को भी सोचनी पड़ेगी कि जीवन जीने की ऐसी कोई सरल तकनीक नहीं हो सकती कि हम आग लगाते घूमें कोई दूसरा आग बुझाते घूमे !वो एक दो बार बुझा देगा फिर कहाँ तक पीछे पीछे घूमता रहेगा !अंत में यही तो कहना पड़ेगा कि जैसा करो वैसा भरो !और इसी विकृति की ओर बढ़ता जा रहा है समाज !लाचार कानून व्यवस्था कुछ न करने की अपेक्षा कुछ करती दिखती रहती है किंतु मजबूरी में बेमन !
      सरकार के किसी व्यक्ति से बात कर ली जाए विपक्ष के किसी नेता नेत्री से पूछ लिया जाए पुलिस के किसी अधिकारी कर्मचारी से पूछ लिया जाए मनोचिकित्सकों और चिकित्सकों से पूछ लिया जाए वैज्ञानिकों को बलात्कार रोक कर दिखाने की चुनौती दे दी जाए वो मीडिया के सामने बैठकर कुछ भले बोल बता कर चले जाएँ किंतु इस बहस में सार्थक तर्कों के साथ उनका अधिक देर तक टिका रह पाना संभव ही नहीं है वो मौसम विभाग और भूकंपविभाग की तरह बिल्कुल खाली हाथ हैं !जिन विषयों में जिसकी जो जानकारी ही नहीं होती है सरकारी की गैरजिम्मेदार चयन पद्धति के हिसाब से प्रायः वे उसके ही विशेषज्ञ जाते हैं !इसीलिए वे भटकाते रहते हैं !समाज को सुधारने में जो कोई भूमिका ही न निभा पा रहे हों वे अधिकारी ,जनता का कोई काम करना जिनके बश का ही न हो वे कर्मचारी !शिक्षा और सदाचरण से जिनका कोई सम्बन्ध ही  न हो उनकी बनाई हुई शिक्षा सम्बन्धी सारी फाइलें झूठ का पुलिंदा मात्र हों वो शिक्षक और उनकी कोई  है सरकार क्या सुधार कर सकती है !
     वस्तुतः ऐसे प्रकरणों में  अपनी भूमिका का  करना पड़ेगा !केवल  सरकार  के भरोसे बैठा रहना ठीक नहीं होगा !
      

No comments:

Post a Comment