Sunday, 3 November 2019

आँधी तूफ़ान तकनीक -1


                                    नई तकनीक के बिना अधूरा है विज्ञान 
    इस नई तकनीकी प्रक्रिया के द्वारा प्रकृति का परीक्षण समय समय पर करते रहना होता है इस प्रकृतिपरीक्षण प्रक्रिया में जिसमें पेड़ों पौधों नदियों तालाबों जीव जंतुओं समुद्र पृथ्वी आकाश वायु मंडल तथा सूर्य चंद्र आदि गृह नक्षत्रों की संचार प्रक्रिया को ध्यान से देखते रहना होता है | समय के साथ साथ इनमें छोटे छोटे बदलाव होते रहते हैं जिनसे प्रकृति में अनेकों प्रकार की परिस्थितियाँ बनती बिगड़ती रहती हैं वे अकारण नहीं होती हैं |   
भारतीय मौसम विभाग अपने लक्ष्य को हासिल करने में कितना सफल रहा ?
    भारतीय मौसम विभाग अपने उद्देश्यों की पूर्ति करने में अभी तक आशिंक तौर पर भी सफल नहीं हो पाया है ! बताया जाता है कि
5 अक्टूबर 1864 में कलकत्ता (अब कोलकाता) में आए चक्रवात से लगभग 60,000 लोगों की मौत हो गई थी इसके अतिरिक्त 1866 एवं 1871 में अकाल पड़ा था जिससे काफी जन धन की हानि हुई थी !ऐसी घटनाएँ अचानक घटित होने के कारण प्राकृतिक आपदाओं से बचाव के लिए पर्याप्त समय नहीं मिल पाया था !इसलिए ऐसी प्राकृतिक आपदाओं का पूर्वानुमान लगाने के लिए आवश्यक समझा गया और मौसम संबंधी विश्लेषण और संग्रह कार्य एक ढ़ांचे के अंतर्गत आयोजित करने का निर्णय लिया गया। नतीजतन, 1875 में भारतीय मौसम विज्ञान विभाग की स्थापना हुई थी इस समय सन  2019 चल रहा है।मौसम पूर्वानुमान के विषय में लगभग 144 वर्ष बीत जाने के बाद प्राकृतिक आपदाओं का पूर्वानुमान लगा लेने में भारत की क्षमता में कितना विकास हुआ है !
        इसकी समीक्षा इसलिए भी की जानी चाहिए क्योंकि ऐसे मंत्रालयों को संचालित करने के लिए एवं इससे संबंधित अनुसंधानों के लिए तथा इसके अधिकारियों कर्मचारियों आदि की सैलरी सुख सुविधाओं आदि के नाम पर जितना भी धन खर्च किया जाता है वो अपनी सरकारों को टैक्स रूप जनता  के द्वारा दी गई धन राशि का  ही अंश  होता है वही सरकारों के द्वारा ऐसे सभी विभागों से जुड़े काम काज पर खर्च किया जाता है इसलिए ऐसे मंत्रालयों विभागों अनुसंधानों के विषय में भी जनता को समय समय पर बताते रहा जाना चाहिए |इसकी जानकारी रखना जनता का अधिकार भी है |
       1864 में अचानक आए चक्रवात के कारण कलकत्ता में जनधन की भारी क्षति हुई  थी उस समय ऐसे चक्रवातों के विषय में पूर्वानुमान लगा पाना असंभव था इसलिए आवश्यकता महसूस की गई कि यदि पूर्वानुमान लगा पाना संभव हो पाता तो सतर्कता संयम आदि बरता जा सकता था सरकारों को भी आपदा प्रबंधन में मदद मिल सकती थी यही पता लगाने के लिए जिस विभाग की स्थापना की गई थी उस विभाग के तत्वावधान में वैज्ञानिकों के द्वारा इस विषय में अनुसंधान करने के लिए लगभग 144 वर्ष पर्याप्त समय होता है इसी बीच अनुसंधानों की दृष्टि से बहुत सारे प्रयोग वैज्ञानिकों के द्वारा किए गए होंगे उनमें कितने सफल हुए कितने असफल ये तो वैज्ञानिक ही समझ सकते हैं क्योंकि इस विषय में डेटा आदि संग्रह इससे संबंधित वैज्ञानिकों के पास ही होता है किंतु जब कभी आँधी तूफ़ान जैसी कोई बड़ी भयानक प्राकृतिक आपदा घटित होती है तब जनता का ध्यान इससे संबंधित अनुसंधानों की ओर जाता है वैज्ञानिकों के द्वारा लगाए गए पूर्वानुमान यदि उन विषयों में सही घटित होते हैं तब तो जनता ऐसे पूर्वानुमानों को सही मानती है अन्यथा संशय होना स्वाभाविक ही है | 
     वस्तुतः वैसे तो आँधी तूफ़ान जैसी घटनाएँ प्रत्येक वर्ष कई कई बार घटित होती हैं उनसे संबंधित पूर्वानुमान पता लग जाएँ तो अच्छा है और न लग जाएँ तो भी अच्छा ही है क्योंकि उनमें अधिक जन धन की हानि नहीं होती है किंतु जिन आँधी तूफानों में जन धन की हानि अधिक होती है ऐसे तूफानों की संख्या कम होने के बाद भी उनसे नुक्सान काफी अधिक होता है ऐसे आँधी तूफानों के पूर्वानुमान की आवश्यकता होती है | 
    समीक्षात्मिका दृष्टि  से  यदि देखा जाए तो -
    21अप्रैल 2015 की रात्रि में बिहार में काफी बड़ा तूफ़ान आया था जिससे भारत के बिहार आदि प्रांतों में जन धन की बहुत हानि हुई थी जिसके विषय में कोई भविष्यवाणी नहीं की गई थी !
      2 मई 2018 को भारत में भीषण आँधी तूफान आया जिसमें भारी जनधन की हानि हुई किंतु उसके विषय में कभी कोई भविष्यवाणी नहीं की गई थी ! 
   17 अप्रैल 2019 को अचानक भीषण बारिश आँधी तूफ़ान आदि आया बिजली गिरने की घटनाएँ हुईं जिसमें लाखों बोरी गेहूँ भीग गया और लाखों एकड़ में खड़ी हुई तैयार फसल बर्बाद हो गई !इस घटना के विषय में भी पहले कभी कोई पूर्वानुमान नहीं बताया गया था ! 



    इसी प्रकार से सन 2018 की ग्रीष्म ऋतु में भारत में हिंसक तूफानों की और भी बार बार घटनाएँ घटित हुईं जिनकी कभी कोई भविष्यवाणी तो नहीं ही  की गई थी साथ ही ऐसा इसी वर्ष क्यों हुआ इसका कारण भी  बताया नहीं जा सका इसके विषय में कह दिया गया कि इसके लिए रिसर्च की आवश्यकता है
      इसी प्रकार से सन 2018 के मई माह में जितने भी आँधी तूफ़ान आए उनसे बिहार उत्तर प्रदेश आदि में भारी जनधन हानि  हुई किंतु उनके विषय में मौसम विभाग के द्वारा कोई भविष्यवाणी नहीं की जा सकी थी | इसके अतिरिक्त जब जब आँधी तूफ़ान आने की भविष्यवाणी की भी गई उस दिन कोई आँधी तूफ़ान नहीं आया !यहाँ तक कि इसी मई माह की 7 और 8 तारीख में किसी बड़े आँधीतूफ़ान आने के विषय में भविष्यवाणी की गई जिसे सुन कर दिल्ली के आसपास के स्कूल कालेज बंद कर दिए गए किंतु उस दिन कोई तूफ़ान नहीं आया बताया जाता है कि इसके विषय में सरकार ने उनसे जवाब भी माँगा था |इसके बाद मौसमविज्ञान के द्वारा की गई भविष्यवाणियाँ गलत होते रहने के कारण उस पर टिप्पणी करते हुए एक अखवार में हेडिंग छपी थी "चुपके चुपके से आते हैं चक्रवात !" अर्थात जिनके विषय में मौसम वैज्ञानिकों को भी पता नहीं होता है 
       ऐसी परिस्थिति में अभीतक किए गए मौसम संबंधी अनुसंधानों से बीते लगभग 144 वर्षों में देश एवं समाज को क्या मिला ?इतना अवश्य है कि पहले जो बड़े तूफ़ान आते थे चले जाते थे किंतु अब उनके नाम रखे जाने लगे हैं जिन नामों से उन तूफानों को पहचान लिया जाता है कि कब किस नाम का तूफ़ान आया था | 
        इस विषय में हमें याद रखना चाहिए कि ऐसे अनुसंधानों का उद्देश्य तूफानों का नाम रखना नहीं अपितु उनके विषय में पूर्वानुमान लगाना था | क्योंकि उनका नाम रखकर उनसे होने वाली जन धन की हानि को कम नहीं किया जा सकता है | 
         ऐसी भविष्यवाणियों के गलत हो जाने से चिंता होना स्वाभाविक है क्योंकि  आज विकसित विज्ञान की मदद से हम रडारों उपग्रहों आदि के द्वारा उन आँधी तूफानों को देख सकते हैं जो निर्मित होकर किसी दिशा की ओर बढ़ चुके होते हैं उनकी गति  दिशा के हिसाब से अंदाजा लगाकर हम इस बात को जान सकते  सकते हैं कि ये तूफ़ान कब किस देश प्रदेश या शहर आदि में पहुँच सकता है | इसके बाद भी "चुपके चुपके से आते हैं चक्रवात" जैसी बातों से ऐसे अनुसंधानों पर शंका होना स्वाभाविक है | 
         यहाँ एक और भी विशेष बात है कि रडारों उपग्रहों आदि के द्वारा उन्हीं आँधी तूफानों के विषय में अंदाजा लगा सकते हैं जो बनने के बाद दिखाई पड़ने लगते हैं किंतु जो नहीं दिखाई पड़ रहे होते हैं ऐसे आँधी तूफ़ान निकट भविष्य में कितने और आएँगे इसके विषय में जानकारी जुटाने के लिए कोई उपयुक्त आधार ही नहीं है यदि ऐसी कोई प्रक्रिया खोजी जा सकी होती तो उसे विज्ञान की श्रेणी में रखा जा सकता था उसके द्वारा भविष्य में निर्मित होने वाले आँधी तूफानों का भी पूर्वानुमान लगाया जा सकता था किंतु मेरी जानकारी के अनुशार ऐसी किसी वैज्ञानिक प्रक्रिया की अभी तक खोज की नहीं जा सकी है इसलिए वर्तमान समय में पूर्वानुमान लगाने वाली प्रक्रिया में विज्ञान जैसा कुछ है भी नहीं |रडारों उपग्रहों आदि से प्राप्त चिंत्रों को देखकर अंदाजा लगा लेने में विज्ञान कहाँ है | 
      किसी समय में महीने दो महीने में यदि कई बार हिंसक आँधी तूफानों की हिंसक घटनाएँ घटित होने लगें और हर चार छै दिन में हिंसक आँधी तूफान घटित होने लगें तो रडारों उपग्रहों के द्वारा देख देख कर या बताया जा सकता है कि एक तूफ़ान आ रहा है चार दिन बाद एक और तूफ़ान आ रहा है पाँच दिन बाद फिर एक और तूफ़ान आ रहा है ऐसे क्रम चलता रहेगा ! किंतु इस प्रक्रिया के आधार पर इस बात का पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता है कि आँधी तूफानों का यह क्रम कब तक चलता रहेगा !
       यदि यह जानने का प्रयत्न किया जाए कि ऐसा क्यों हो रहा है इस विषय में भी मेरी जानकारी के अनुशार किसी के पास ऐसा कोई मजबूत उत्तर नहीं होगा जिसे तर्कों की कसौटी पर विश्वास पूर्वक कैसा जा सके वो केवल वैज्ञानिकों ने  कहा है इसलिए भले मान लिया जाए किंतु मानने लायक उसमें कुछ होगा नहीं |
      अंत में हार थक कर इसके विषय में ग्लोबलवार्मिंग जैसी बातों का नाम ले लिया जाता है कि उसके कारण  रहा है !किंतु ऐसा हो तो हर वर्ष और हमेंशा होना चाहिए जबकि ऐसा होते तो नहीं देखा जाता है दूसरी बात कारण यदि ग्लोबलवार्मिंगको ही मान लिया जाए तो आँधी तूफानों से संबंधित पूर्वानुमान लगाने की अनुसंधान प्रक्रिया का "ग्लोबलवार्मिंग" को अभिन्न अंग मानकर उस अनुसंधान प्रक्रिया में सम्मिलित किया  चाहिए और ग्लोबल वार्मिंग समेत उन सभी घटकों का सम्मिलित अनुसंधान किया जाना चाहिए कि आखिर ऐसे आँधी तूफ़ान घटित कब कब होंगे !क्योंकि समाज के लिए उपयोगी केवल इतना ही है यदि पूर्वानुमान सही नहीं निकले तो जनता के लिए ऐसे अनुसंधानों के नाम पर जो कुछ भी किया जाता है वह उपयोगी एवं सार्थक कैसे माना जा सकता है | 
    नई तकनीक - 
        इस नई तकनीकी प्रक्रिया के द्वारा प्रकृतिपरीक्षण के आधार पर अनुसंधान पूर्वक इस बात का पता लगाया जा सकता है कि आज के इतने दिन महीने या वर्ष बाद आँधी तूफ़ान या चक्रवातादि घटनाओं का निर्माण होगा |ऐसे दिनों का पता लगा लिया जाता है | 
     जिन दिनों में इस प्रकार की आँधी तूफ़ान चक्रवातादि घटनाओं का निर्माण होता है निर्मित होते समय तो इनका स्वरूप इतना अधिक सूक्ष्म होता है कि रडारों उपग्रहों आदि के माध्यम से शुरू में दिखाई नहीं पड़ती हैं जब इनका स्वरूप विस्तार होकर वायु मंडल में एक आकार लेने लगता है रडारों उपग्रहों आदि के माध्यम से तब दिखाई पड़ने लगता है |इसके बाद जब वो किसी दिशा में लगता है तब उसके पूर्वानुमान लगाने की प्रक्रिया प्रारंभ हो पाती है कई बार या प्रक्रिया समुद्र के सुदूर क्षेत्र में प्रारंभ होती है तब तो किसी देश प्रदेश आदि तक पहुँचने में कुछ दिनों का समय लग जाता है ऐसे समय में इसके द्वारा लगाया जाने वाला अंदाजा बचाव कार्यों के लिए महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि उतना समय मिल जाता है जबकि कई बार ये प्रक्रिया समुद्र के सुदूर क्षेत्र में प्रारंभ न होकर अपितु नजदीक में ही प्रारंभ होती है उस समय बचाव कार्यों के विषय में प्रयास करने के लिए समय बहुत कम बच पाता  है | 
      इसके अतिरिक्त कई बार ऐसी घटनाओं का निर्माण होने के बाद ये जिस किसी दिशा की ओर बढ़ने लगती हैं उसकी गति और दिशा के अनुशार अनुमान लगाकर यह तो अंदाजा लगा लिया जाता है कि ये किस दिशा की ओर जाकर कहाँ कब पहुँच पाएगा किंतु उतने भर से यह निश्चित नहीं हो जाता है कि ऐसा ही होगा उसके बाद भी कई बार हवाओं का रुख बदल जाने से ये अंदाजा गलत होते देखा जाता है |
     इसके बाद एक परिस्थिति और पैदा होती है जब मानव स्वभाव के कारण रडारों उपग्रहों आदि से प्राप्त चित्रों की ओर एक जैसी सतर्कता हमेंशा वरत पाना कठिन हो जाता है इसलिए कई बार उनसे प्राप्त चित्रों का परीक्षण करने में असावधानी या कुछ देर हो जाती है इसलिए घटनाएँ पहले घटित होने लगती हैं अंदाजा बाद में लग पाता है |    
     ऐसी परिस्थिति में इस नई तकनीकी प्रक्रिया के द्वारा प्रकृतिपरीक्षण पहले से करके उसके द्वारा किसी भी आँधी तूफ़ान आदि के घटित होने से वर्षों महीनों पहले भी उसके विषय में पूर्वानुमान लगाया जा सकता है कि भविष्य में किस वर्ष के किस महीने के किन दिनों में आँधी तूफ़ान जैसी घटनाएँ निर्मित होने का समय होगा | इसके साथ ही उस समय घटित होने वाली आँधी तूफ़ान जैसी घटनाएँ कितनी तक भयंकर हो सकती हैं | इस बात का पूर्वानुमान लगा लिया जाता है | ऐसी घटनाओं के घटित होने का जब समय आवे  उस समय उपग्रहों रडारों से प्राप्त दृश्यों पर अत्यंत सतर्कता पूर्वक दृष्टि रखी जानी चाहिए ऐसी सतर्कता वरत कर आँधी तूफ़ानों  को निर्माण के समय ही पहचाना जा सकता है और उसकी गतिविधियों पर नजर रखी जा सकती है इस प्रकार से यह नई तकनीक आँधी तूफ़ान और चक्रवात आदि का पूर्वानुमान लगाने की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण सहयोगी सिद्ध हो सकती है |
      कई बार ऐसी आँधी तूफ़ान जैसी घटनाएँ सन 2018 मई महीने की तरह किसी एक निश्चित अवधि में बार बार घटित होने लगती हैं जिससे समाज का विचलित होना स्वाभाविक है लोगों के मन में प्रश्न उठने लगता है कि ऐसा आखिर कब तक होगा ?
        ऐसे प्रश्नों का उत्तर भी इस नई तकनीक के द्वारा अनुसंधान पूर्वक खोजा जा सकता है और इस बात का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है कि किस वर्ष के किस महीने में आँधी तूफ़ान जैसी घटनाएँ कब से कब तक घटित होने की संभावना रहेगी | 
   
   वर्षा संबंधी पूर्वानुमान और नई तकनीक !
     
     सर्दी गर्मी वर्षात आदि तीन ऋतुएँ होती हैं उन ऋतुओं में सर्दी गर्मी वर्षात आदि होगी ही कभी कुछ कम तो कभी कुछ अधिक हो सकती है !इनका क्रम भी निश्चित है कि किस ऋतु के बाद कौन सी ऋतु आएगी ये सब बातें सभी को पता है !इसलिए इन विषयों में किसी प्रकार के अनुसंधान की कोई आवश्यकता है भी नहीं !
     कितने सेंटीमीटर कहाँ बारिश हुई या किस महीने में वर्षा ने कितने वर्षों का रिकार्ड तोड़ा या किस वर्ष में मानसून कितने कितने दिन आगे या पीछे आया !या किस वर्ष कितनी तारीख तक कहाँ मानसूनी बारिश होती रही तथा कहाँ किस वर्ष कम बारिश हुई या कहाँ अधिक !उत्तरी विक्षोभ से वर्षा हुई या पश्चिमी विक्षोभ से जनता को ऐसी सभी बीती बातों से कभी कोई लेना रहा नहीं और न ही जनता के जीवन में ऐसी काल्पनिक बातों की कोई उपयोगिता ही है !इसलिए जनता का ध्यान इधर जाता नहीं है लोग बकते हैं तो बकते रहें उनके पास समय है जनता ऐसे आँकड़ों का संग्रह करके भी क्या करे !
    इनके विषय में अनुसन्धान करने वाले बड़े विश्वास से कहते सुने जाते हैं कि सूखा वर्षा बाढ़ आँधी तूफान आदि की घटनाएँ घटित होने में इनकी बहुत प्रभावी भूमिका है !मौसम पर इनका असर पड़ता है या मौसम की लगाम इन्हीं के हाथों में है !वर्तमान समय में मौसम संबंधी छोटी बड़ी सभी घटनाओं के आगे पीछे  इनमें से किसी शब्द को लगा लेने से इसकी प्रमाणिकता बढ़ जाती है !ऐसी मान्यता है !
     जनता इस पचड़े में नहीं पड़ना चाहती है कि जलवायु परिवर्तन  ,ग्लोबलवार्मिंग ,अलनीनों और लानीना जैसी कोई चीज है भी या नहीं !दक्षिणी विक्षोभ या पश्चिमी विक्षोभ से जनता का क्या लेना देना ! ऐसी कल्पनाओं में सच्चाई कितनी है ?या कुछ लोगों ने अपना समय पास करने के लिए ऐसी कुछ कल्पनाएँ कर रखी हैं जनता इस विषय की जड़ में नहीं जाना चाहती है !ऐसी कल्पनाओं में सच क्या है उसे खोजने के लिए जनता के पास न साधन हैं न समय है न आवश्यकता है  और  न ही इसकी उनके जीवन में कोई उपयोगिता है ! इसलिए जनता का ध्यान भटकाने के लिए मौसम भविष्यवाणियाँ करने वालों को चाहिए कि वे जनता को ऐसी बातों में न उलझाएँ जिनसे जनता का कोई लेना देना ही नहीं है !वैसे भी ऐसे विषयों में माथा पच्ची करने के लिए सरकारों ने विभाग बना रखे हैं उसमें अनुसंधान करने के लिए लोग नियुक्त हैं जिनकी सैलरी से लेकर समस्त सुख सुविधाओं का खर्च सरकारें उठाती हैं !उनके मौसम संबंधी अनुसंधानों पर लगने वाला संपूर्ण खर्च भी सरकारें उठाती हैं !सारे संसाधन सरकारें देती हैं !इस पर खर्च होने वाला संपूर्ण धन जनता का होता है जो टैक्स रूप में सरकारों को जनता के द्वारा दिया जाता है !जनता के खून पसीने की गाढ़ी कमाई सरकारें मौसम संबंधी जिन विभागों या लोगों पर खर्च करती हैं इतनी जिम्मेदारी उनकी भी बनती है कि वे जलवायु परिवर्तन  ,ग्लोबलवार्मिंग ,अलनीनों और लानीना जैसी अनावश्यक बातें बोलकर जनता का समय बर्बाद न करें और न ही जनता को ऐसे आँकड़े उपलब्ध कराने की ही आवश्यकता है !
     कुलमिलाकर  आंकड़ों से जनता को कुछ लेना देना ही नहीं होता है और ये सब जनता के किसी काम आते भी नहीं हैं !जनता को तो भविष्य में कब कहाँ कैसी बारिश होगी ये जानना होता है और ये भी कुछ महीने पहले से क्योंकि कृषि कार्यों में फसल योजना बनाने के लिए किसानों को वर्षा संबंधी जानकारी काफी पहले से आवश्यक होती है !वर्षा संबंधी पूर्वानुमान की सर्वाधिक आवश्यकता ही कृषि कार्यों के लिए होती है ! दो तीन दिन पहले के लिए बताए जाने वाले पूर्वानुमान कृषि कार्यों के लिए विशेष लाभप्रद नहीं हो पाते हैं !वो भी सही कम ही निकल पाते हैं !
       मौसम के विषय में लगाए जाने वाले वर्षा संबंधी दीर्घकालिक पूर्वानुमान अभी तक प्रायः गलत होते हैं !24,48 और 72 घंटे पहले लगाए जाने वाले वर्षा संबंधी पूर्वानुमान सही और गलत दोनों होते हैं !इसलिए पूर्ण विश्वसनीय वे भी नहीं होते हैं  अपितु इनसे एक बड़ा नुक्सान होते देखा जाता है !जब वर्षा होने लगती है तब बताया जाता है अभी दो दिन और वर्षा होगी उसके दो दिन बाद बताया जाता है कि अभी दो दिन और वर्षा होगी ऐसे करते करते सप्ताह दो सप्ताह गुजार लिए जाते हैं !तब तक वो क्षेत्र भीषण बाढ़ का शिकार हो चुका होता है !
दिसंबर 2015 में मद्रास में आई भीषण बाढ़ हो या फिर अगस्त 2018 में केरल में आई भीषण बाढ़ हो !ऐसी परिस्थिति में इन तीर तुक्कों से नुक्सान अधिक हो जाता है लोगों को आशा बनी रहती है कि 2 दिन बाद वर्षा बंद हो जाएगी फिर दो दिन बाद वही आशा !ऐसी परिस्थिति में वहाँ रहने वालों से लेकर बचाव कार्यों तक की योजनाओं का उतना मौसम विभाग की अच्छा उपयोग नहीं हो पाता  है जितना अच्छा हो सकता था !
         जनता ऐसे मौसम भविष्यवक्ताओं के अनुसंधानों पर इतना सारा धन केवल इसलिए खर्च करती है कि ऐसी सारी मौसमी परिकल्पनाएँ आंकड़े आदि उनके शोध के अंग हैं इसलिए वे इन्हें अपने पास ही रखें !जनता को केवल इतना साफ साफ बता दें कि किस तारीख को पानी बरसेगा किस तारीख को आँधी तूफान आएगा कब सूखा पड़ेगा !या कब किस प्रकार की प्राकृतिक घटनाएँ कहाँ घटित होंगी !यदि इस प्रकार की भविष्यवाणियाँ जनता को उपलब्ध करा देंगे तो जनता अपने बचाव के विषय में अपने स्तर से उपाय तो करेगी सरकारें भी उनकी मदद कर सकेंगी !क्योंकि सरकारों को भी इसके लिए पर्याप्त समय मिल जाएगा !
     भारतीय मौसम विज्ञान विभाग की स्थापना हुए लगभग 144 वर्ष बीत चुके हैं ये आंकड़ों को जुटाने की दृष्टि से कम समय तो नहीं होता है !अनुसंधान के लिए आवश्यक अनुभव संचित करने के लिए भी ये कम समय तो नहीं है ! इतना सब होने के बाद भी क्या कारण है कि मौसम संबंधी पूर्वानुमानों में अभी तक वो सटीकता नहीं आ पाई है जिस अपेक्षा से सरकारें ऐसे विभागों वैज्ञानिकों की ओर ताकती रहती हैं !
     वस्तुतः मौसम भविष्यवक्ताओं के द्वारा मौसम के विषय में अक्सर कुछ न कुछ भविष्यवाणियाँ की जाती रहती हैं ये उनका काम है !किंतु वे सही होती हैं या गलत इसका परिक्षण करने का न जनता के पास समय है और न ही कोई आवश्यकता !ये छोटी मोटी  घटनाएँ होती हैं !किंतु जब कोई बड़ी प्राकृतिक घटना घटती है जिससे जनधन की हानि काफी मात्रा में हो जाती है तब जनता का ध्यान मौसम भविष्यवक्ताओं की ओर जाता है और जब पता लगता है कि उन्होंने इस घटना के विषय में कोई भविष्यवाणी नहीं की थी और घटना घटित होने के बाद अब जलवायु परिवर्तन  ,ग्लोबलवार्मिंग ,अलनीनों और लानीना जैसे दाँव खेले जा रहे हैं उस दिन जनता को बहुत कष्ट होता है !अभी हाल में ही घटित हुई प्राकृतिक घटनाओं के विषय में चिंतन करने से ऐसे अनेकों उदाहरण मिल जते हैं !
         सन 2016 के मई जून में आधे भारत में भीषण गर्मी हुई और आग लगने की हजारों घटनाएँ घटित हुईं यहाँ तक कि बिहार सरकार को जनता से अपील करनी पड़ी कि दिन में चूल्हा न जलाएँ और हवन  न करें !इसी समय कुएँ नदी तालाब आदि सभी तेजी से सूखे जा रहे थे !इतिहास में पहली बार ट्रेन से पानी की सप्लाई करनी पड़ी थी !     ऐसी परिस्थिति में गर्मी की ऋतु तो प्रतिवर्ष आती है किंतु ऐसी दुर्घटनाएँ तो हरवर्ष नहीं दिखाई सुनाई पड़ती हैं !जनता जानना चाहती है कि इसीवर्ष ऐसा क्यों हुआ मौसम भविष्यवक्ताओं के द्वारा इसका कोई संतोष जनक उत्तर नहीं दिया जा सका !इसीप्रकार से सन 2013 में केदारनाथ जी में सैलाव आया उसका न तो पूर्वानुमान दिया गया और न ही कारण बताए गए !2018 के मई जून में आए भीषण आँधी तूफान आए थे !अगस्त 2018 में ही दक्षिण भारत में भीषण वर्षा होने के कारण भयानक बाढ़ आई थी किंतु इनके विषय में भी न कोई पूर्व अनुमान दिए गए थे और न ही ऐसा होने के पीछे के वास्तविक एवं विश्वसनीय कारण ही बताए गए !
       ऐसी परिस्थिति में भारतीय मौसमविज्ञान विभाग बाईट 144 अपने लक्ष्य को हासिल करने में कितना सफल हो पाया एवं मौसम भविष्य वक्ताओं के द्वारा गढ़ी गई जलवायु परिवर्तन  ,ग्लोबलवार्मिंग ,अलनीनों और लानीना जैसी कहानियों में कितनी सच्चाई है ये स्वयं में एक बड़े अनुसंधान का विषय है !
  मौसमविज्ञान का विज्ञान सिद्ध होना  अभी बाकी है !
       जीवन में कोई भी व्यक्ति जब किसी काम को प्रारंभ करता है तो सबसे पहले लक्ष्य निर्धारित करता है कि उसे करना क्या है और इसके बाद प्रयास प्रारंभ कर देता है इसके बाद समय समय पर परीक्षण करता रहता है कि अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए जो प्रयास किए जा रहे हैं क्या वे सही दिशा में जा रहे हैं !यदि लक्ष्य प्रयास और परिणाम में संतोष जनक दिखाई पड़ते हैं तो उस काम को आगे बढ़ाया जाता है अन्यथा बीच में ही रुकने में बुद्धिमत्ता मानी जाती है !क्योंकि अनुसंधानात्मक प्रयासों में समय तो लगता ही है और धन भी लगता है !
     इसी प्रकार से कोई भी काम करवाने के लिए जो धन समाज खर्च करता है उसमें काम करने वाले की जवाबदेही भी धन खर्च करने वाले के प्रति होती है !जनता सरकारों को टैक्स रूप में जो धन देती है वो अपने विकास के लिए देती है सरकार वो धन जहाँ कहीं खर्च करती है उससे जनता को क्या मिल पा  रहा है इसका परीक्षण करने की जिम्मेदारी सरकारों की भी होनी चाहिए !
       किसी भी अनुसंधान के लिए अनुसंधान कर्ताओं को जब सही दिशा मिल जाती है तो वो अनुसंधान बोझ नहीं रह जाता है अपितु अनुसंधान का परिणाम प्रयास करने वाले को प्रसन्नता निर्भीकता सुख और संतोष प्रदान करने लगता है देखने सुनने वालों को भी ऐसे सफलता गर्भित प्रयासों की सुगंध आने लग जाती है !उन्हें भी अच्छा लगने लगता है !
      इसमें संदेह नहीं कि विज्ञान के वर्तमान स्वरूप से समाज बहुत लाभान्वित हुआ है विज्ञान के द्वारा कई क्षेत्रों में जीवन को बहुत आसान बना लिया गया है !चिकित्सा आदि क्षेत्रों में विज्ञान ने महत्वपूर्ण क्रांति पैदा कर दी है !असाध्य से असाध्य रोगों से मुक्ति दिलाने के लिए चिकित्सक दिन रात जी जान से लगे हुए हैं उनके प्रयासों के परिणाम दिखाई भी पड़ते हैं समाज उनसे लाभान्वित भी हो रहा है !इसलिए चिकित्सा विज्ञान जैसी पारदर्शिता सभी क्षेत्रों में होनी चाहिए !पूर्ण परिणाम देने वाली विधाओं पर गर्व होना स्वाभाविक ही है !इसलिए चिकित्सा को विज्ञान और चिकित्सकों को वैज्ञानिक मानने में किसी को कोई हिचक नहीं होती है !
    इसी कसौटी पर यदि भूकंपविज्ञान जैसे विषयों को कसा जाए तो इसमें अभी तक विज्ञान जैसा कुछ मिला नहीं इस पर अनुसंधान करने वालों के द्वारा अभी तक जो  गैसों के दबाव या प्लेटों के टकराने की कहानियाँ गढ़ी गई हैं उन पर विश्वास करना तभी संभव है जब उनके आधार पर भूकंपों के विषय में लगाए जाने वाले पूर्वानुमान सही एवं सटीक सिद्ध हों !ऐसा होने से पहले इन कहानियों को विज्ञान मान लेना स्वयं विज्ञान के साथ भी न्याय नहीं होगा !ऐसी संदिग्ध परिस्थिति में भूकंप के विषय में अनुसंधान करने वालों को वैज्ञानिक मान लेना उन वैज्ञानिकों के साथ अन्याय है जिन्होंने  अपने  अपने क्षेत्र में अनुसंधानात्मक प्रयास पूर्वक लक्ष्य को प्राप्त करने में सफलता पाई है !उनकी बातों विचारों प्रयासों परिणामों में कोई काल्पनिक कथा कहानियाँ नहीं हैं अपितु वहाँ तो सच्चाई समर्पित अनेकों प्रमाण मिल जाते हैं !
     इसी प्रकार से मौसमविज्ञान  में  यदि विज्ञान की खोज की जाए तो अभी तक विज्ञान जैसा कुछ भी नहीं मिला है !ग्लोबलवार्मिंग,जलवायु परिवर्तन ,अलनीनों ,लानीना, उत्तरी विक्षोभ, पश्चिमी विक्षोभ जैसे काल्पनिक दो चार शब्दों के अतिरिक्त और कुछ भी तो नहीं मिला है ऐसे शब्दों का भी कोई आस्तित्व नहीं है !जब तक इनके आधार पर लगाए जाने वाले मौसमसंबंधी पूर्वानुमान सही एवं सटीक सिद्ध नहीं होते तब तक ऐसे काल्पनिक विचारों को विज्ञान सम्मत कैसे माना जा सकता है !इसलिए इससे सम्बंधित लोगों का भी वैज्ञानिक सिद्ध होना अभी तक बाकी है !
     विशेष बात ये है कि समाज में विज्ञान की बहुत बड़ी साख है विज्ञान शब्द सुनते ही लोगों को भरोसा हो जाता है कि इसमें वही कहा या माना जाता है जो प्रत्यक्ष करके देखा जा चुका होता है या जिसे समाज के सामने प्रत्यक्ष सिद्ध किया जा सकता है !इसीलिए विज्ञान का सम्मान अभी तक बना हुआ है !
     मौसमविज्ञान और भूकंपविज्ञान आदि को भी विज्ञान की श्रेणी में मानकर ही ऐसे लोगों से भी इसी प्रकार की बातों की अपेक्षा है!इसलिए इनके द्वारा कही गई मौसम एवं भूकंप से संबंधित प्रत्येक बात को सरकार ,मीडिया एवं जनता प्रमाणित मानती है !अतएव जो मौसम संबंधी भविष्यवाणियाँ वैज्ञानिकों के द्वारा की जाएँ वो प्रमाणित निकलनी भी चाहिए यदि कुछ भविष्यवाणियाँ गलत निकलें भी तो उनके द्वारा जो कारण बताए जाएँ वे विश्वसनीय होने चाहिए !मंदिरों के पुजारियों की तरह मौसमी  भविष्यवाणियाँ  ढुलमुल और दो अर्थों वाली नहीं होनी चाहिए !ऐसी बातें धर्म के क्षेत्र में अक्सर बोली और सुनी जाती हैं इसीलिए शिक्षित वर्ग में कुछ लोग उसे अंधविश्वास मानने लगे हैं !इसलिए कम से कम विज्ञान के क्षेत्र में ऐसे प्रयोग नहीं किए जाने चाहिए !न जाने क्यों मौसमी  भविष्यवाणियों में विज्ञान जैसी दृढ़ता नहीं दिखाई देती है !
      सरकारों में सम्मिलित राजनैतिक लोग हों या सरकारी विभागों में जिम्मेदारी निभा रहे लोग ये बात उन्हें  भी याद रखनी चाहिए कि उन्हें मिलने वाली सैलरी से लेकर संपूर्ण सुख सुविधाओं का खर्च देश की जनता उठाती है इसके पीछे जनता का कुछ स्वार्थ होता है जिसकी पूर्ति करना उन लोगों  का दायित्व होता है जो जनता के खून पसीने की गाढ़ी कमाई से सैलरी आदि रूप में प्राप्त धन का उपभोग करते हैं !विशेष कर वैज्ञानिक अनुसंधानों में तो अनुसंधानों के संसाधनों में लगने वाला खर्च भी जनता उठाती है !इसलिए आवश्यक है कि ऐसे अनुसंधानों से भी जनता को भी कुछ तो मिलना चाहिए और किन्हीं परिस्थितियों में यदि अनुसंधानकर्ता  अपने प्रयासों में असफल होता है तो भी जनता को सच्चाई तो बताई जानी चाहिए!
               प्राकृतिक आपदाओं का पूर्वानुमान पता न लगने से  हुआ है अधिक नुकसान !
      वर्षा बाढ़ सूखा आँधी तूफ़ान आदि के लिए भविष्यवाणी करने वाले लोगों के द्वारा की गई मौसम संबंधी अधिकाँश भविष्यवाणियाँ गलत होते देखी जाती हैं जिसके कारण मौसमी भविष्यवक्ताओं को समाज की आलोचनाएँ उपहास आदि सहने  पड़ते रहे हैं !इसलिए जलवायुपरिवर्तन ग्लोबलवार्मिंग जैसे शब्दों की परिकल्पना की गई है जिनका समय समय पर उपयोग किया जाता है !मौसम संबंधी भविष्यवाणियों के नाम पर जो भी तीर तुक्के लगाए जाते हैं उनमें से जितने सही निकल जाते हैं उन्हें भविष्यवाणी मान लिया जाता है और जो गलत निकल जाते हैं उनके लिए जलवायु परिवर्तन या ग्लोबल वार्मिंग  घटनाओं  को जिम्मेदार ठहरा दिया जाता है !

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