नई तकनीक के बिना अधूरा है विज्ञान
इस नई तकनीकी प्रक्रिया के द्वारा प्रकृति का परीक्षण समय समय पर करते रहना होता है इस प्रकृतिपरीक्षण प्रक्रिया में जिसमें पेड़ों पौधों नदियों तालाबों जीव जंतुओं समुद्र पृथ्वी आकाश वायु मंडल तथा सूर्य चंद्र आदि गृह नक्षत्रों की संचार प्रक्रिया को ध्यान से देखते रहना होता है | समय के साथ साथ इनमें छोटे छोटे बदलाव होते रहते हैं जिनसे प्रकृति में अनेकों प्रकार की परिस्थितियाँ बनती बिगड़ती रहती हैं वे अकारण नहीं होती हैं |
भारतीय मौसम विभाग अपने लक्ष्य को हासिल करने में कितना सफल रहा ?
भारतीय मौसम विभाग अपने उद्देश्यों की पूर्ति करने में अभी तक आशिंक तौर पर भी सफल नहीं हो पाया है ! बताया जाता है कि 5 अक्टूबर 1864 में कलकत्ता (अब कोलकाता) में आए चक्रवात से लगभग 60,000 लोगों की मौत हो गई थी इसके अतिरिक्त 1866 एवं 1871 में अकाल पड़ा था जिससे काफी जन धन की हानि हुई थी !ऐसी घटनाएँ अचानक घटित होने के कारण प्राकृतिक आपदाओं से बचाव के लिए पर्याप्त समय नहीं मिल पाया था !इसलिए ऐसी प्राकृतिक आपदाओं का पूर्वानुमान लगाने के लिए आवश्यक समझा गया और मौसम संबंधी विश्लेषण और संग्रह कार्य एक ढ़ांचे के अंतर्गत आयोजित करने का निर्णय लिया गया। नतीजतन, 1875 में भारतीय मौसम विज्ञान विभाग की स्थापना हुई थी इस समय सन 2019 चल रहा है।मौसम पूर्वानुमान के विषय में लगभग 144 वर्ष बीत जाने के बाद प्राकृतिक आपदाओं का पूर्वानुमान लगा लेने में भारत की क्षमता में कितना विकास हुआ है !
इसकी समीक्षा इसलिए भी की जानी चाहिए क्योंकि ऐसे मंत्रालयों को संचालित
करने के लिए एवं इससे संबंधित अनुसंधानों के लिए तथा इसके अधिकारियों
कर्मचारियों आदि की सैलरी सुख सुविधाओं आदि के नाम पर जितना भी धन खर्च
किया जाता है वो अपनी सरकारों को टैक्स रूप जनता के द्वारा दी
गई धन राशि का ही अंश होता है वही सरकारों के द्वारा ऐसे सभी विभागों से
जुड़े काम काज पर खर्च किया जाता है इसलिए ऐसे मंत्रालयों विभागों
अनुसंधानों के विषय में भी जनता को समय समय पर बताते रहा जाना चाहिए |इसकी
जानकारी रखना जनता का अधिकार भी है |
1864 में अचानक आए चक्रवात के कारण
कलकत्ता में जनधन की भारी
क्षति हुई थी उस समय ऐसे चक्रवातों
के विषय में पूर्वानुमान लगा पाना असंभव था इसलिए आवश्यकता महसूस की गई कि
यदि पूर्वानुमान लगा पाना संभव हो पाता तो सतर्कता संयम आदि बरता जा सकता
था सरकारों को भी आपदा प्रबंधन में मदद मिल सकती थी यही पता लगाने के लिए
जिस विभाग की स्थापना की गई थी उस विभाग के तत्वावधान में वैज्ञानिकों के
द्वारा इस विषय में अनुसंधान करने के लिए लगभग 144 वर्ष पर्याप्त समय होता
है इसी बीच अनुसंधानों की दृष्टि से बहुत सारे प्रयोग वैज्ञानिकों के
द्वारा किए गए होंगे उनमें कितने सफल हुए कितने असफल ये तो वैज्ञानिक ही
समझ सकते हैं क्योंकि इस विषय में डेटा आदि संग्रह इससे संबंधित
वैज्ञानिकों के पास ही होता है किंतु जब कभी आँधी तूफ़ान जैसी कोई बड़ी भयानक
प्राकृतिक आपदा घटित होती है तब जनता का ध्यान इससे संबंधित अनुसंधानों की
ओर जाता है वैज्ञानिकों के द्वारा लगाए गए पूर्वानुमान यदि उन विषयों में
सही घटित होते हैं तब तो जनता ऐसे पूर्वानुमानों को सही मानती है अन्यथा
संशय होना स्वाभाविक ही है |
वस्तुतः वैसे तो आँधी तूफ़ान जैसी घटनाएँ प्रत्येक वर्ष कई कई बार घटित
होती हैं उनसे संबंधित पूर्वानुमान पता लग जाएँ तो अच्छा है और न लग जाएँ
तो भी अच्छा ही है क्योंकि उनमें अधिक जन धन की हानि नहीं होती है किंतु
जिन आँधी तूफानों में जन धन की हानि अधिक होती है ऐसे तूफानों की संख्या कम
होने के बाद भी उनसे नुक्सान काफी अधिक होता है ऐसे आँधी तूफानों के पूर्वानुमान की आवश्यकता होती है |
समीक्षात्मिका दृष्टि से यदि देखा जाए तो -
21अप्रैल 2015 की रात्रि में बिहार में काफी बड़ा तूफ़ान आया था जिससे भारत के बिहार आदि प्रांतों में जन धन की बहुत हानि हुई थी जिसके विषय में कोई भविष्यवाणी नहीं की गई थी !
2 मई 2018 को भारत में भीषण आँधी तूफान आया जिसमें भारी जनधन की हानि हुई किंतु उसके विषय में कभी कोई भविष्यवाणी नहीं की गई थी !
17 अप्रैल 2019 को अचानक भीषण बारिश आँधी तूफ़ान आदि आया बिजली गिरने की घटनाएँ हुईं जिसमें लाखों बोरी गेहूँ भीग गया और लाखों एकड़ में खड़ी हुई तैयार फसल बर्बाद हो गई !इस घटना के विषय में भी पहले कभी कोई पूर्वानुमान नहीं बताया गया था !
इसी प्रकार से सन 2018 की ग्रीष्म ऋतु में भारत में हिंसक तूफानों की और भी बार बार घटनाएँ घटित हुईं जिनकी कभी कोई भविष्यवाणी तो नहीं ही की गई थी साथ ही ऐसा इसी वर्ष क्यों हुआ इसका कारण भी बताया नहीं जा सका इसके विषय में कह दिया गया कि इसके लिए रिसर्च की आवश्यकता है
21अप्रैल 2015 की रात्रि में बिहार में काफी बड़ा तूफ़ान आया था जिससे भारत के बिहार आदि प्रांतों में जन धन की बहुत हानि हुई थी जिसके विषय में कोई भविष्यवाणी नहीं की गई थी !
2 मई 2018 को भारत में भीषण आँधी तूफान आया जिसमें भारी जनधन की हानि हुई किंतु उसके विषय में कभी कोई भविष्यवाणी नहीं की गई थी !
17 अप्रैल 2019 को अचानक भीषण बारिश आँधी तूफ़ान आदि आया बिजली गिरने की घटनाएँ हुईं जिसमें लाखों बोरी गेहूँ भीग गया और लाखों एकड़ में खड़ी हुई तैयार फसल बर्बाद हो गई !इस घटना के विषय में भी पहले कभी कोई पूर्वानुमान नहीं बताया गया था !
इसी प्रकार से सन 2018 की ग्रीष्म ऋतु में भारत में हिंसक तूफानों की और भी बार बार घटनाएँ घटित हुईं जिनकी कभी कोई भविष्यवाणी तो नहीं ही की गई थी साथ ही ऐसा इसी वर्ष क्यों हुआ इसका कारण भी बताया नहीं जा सका इसके विषय में कह दिया गया कि इसके लिए रिसर्च की आवश्यकता है
इसी प्रकार से सन 2018 के मई माह में जितने भी आँधी तूफ़ान आए उनसे बिहार उत्तर प्रदेश आदि में भारी जनधन हानि हुई किंतु उनके विषय में मौसम विभाग के द्वारा कोई भविष्यवाणी नहीं की जा सकी थी | इसके अतिरिक्त जब जब आँधी तूफ़ान आने की भविष्यवाणी की भी गई उस दिन कोई आँधी तूफ़ान नहीं आया !यहाँ तक कि इसी मई माह की 7 और 8 तारीख में किसी बड़े आँधीतूफ़ान आने के विषय में भविष्यवाणी
की गई जिसे सुन कर दिल्ली के आसपास के स्कूल कालेज बंद कर दिए गए किंतु उस
दिन कोई तूफ़ान नहीं आया बताया जाता है कि इसके विषय में सरकार ने उनसे
जवाब भी माँगा था |इसके बाद मौसमविज्ञान के द्वारा की गई भविष्यवाणियाँ गलत होते रहने के कारण उस
पर टिप्पणी करते हुए एक अखवार में हेडिंग छपी थी "चुपके चुपके से आते हैं
चक्रवात !" अर्थात जिनके विषय में मौसम वैज्ञानिकों को भी पता नहीं होता
है
ऐसी परिस्थिति में अभीतक किए गए मौसम संबंधी अनुसंधानों से बीते लगभग 144 वर्षों
में देश एवं समाज को क्या मिला ?इतना अवश्य है कि पहले जो बड़े तूफ़ान आते
थे चले जाते थे किंतु अब उनके नाम रखे जाने लगे हैं जिन नामों से उन
तूफानों को पहचान लिया जाता है कि कब किस नाम का तूफ़ान आया था |
इस विषय में हमें याद रखना चाहिए कि ऐसे अनुसंधानों का उद्देश्य
तूफानों का नाम रखना नहीं अपितु उनके विषय में पूर्वानुमान लगाना था |
क्योंकि उनका नाम रखकर उनसे होने वाली जन धन की हानि को कम नहीं किया जा
सकता है |
ऐसी भविष्यवाणियों के गलत हो जाने से चिंता होना स्वाभाविक है
क्योंकि आज विकसित विज्ञान की मदद से हम रडारों उपग्रहों आदि के द्वारा उन
आँधी तूफानों को देख सकते हैं जो निर्मित होकर किसी दिशा की ओर बढ़ चुके
होते हैं उनकी गति दिशा के हिसाब से अंदाजा लगाकर हम इस बात को जान सकते
सकते हैं कि ये तूफ़ान कब किस देश प्रदेश या शहर आदि में पहुँच सकता है |
इसके बाद भी "चुपके चुपके से आते हैं चक्रवात" जैसी बातों से ऐसे
अनुसंधानों पर शंका होना स्वाभाविक है |
यहाँ एक और भी विशेष बात है कि रडारों
उपग्रहों आदि के द्वारा उन्हीं आँधी तूफानों के विषय में अंदाजा लगा सकते
हैं जो बनने के बाद दिखाई पड़ने लगते हैं किंतु जो नहीं दिखाई पड़ रहे होते
हैं ऐसे आँधी तूफ़ान निकट भविष्य में कितने और आएँगे इसके विषय में जानकारी
जुटाने के लिए कोई उपयुक्त आधार ही नहीं है यदि ऐसी कोई प्रक्रिया खोजी जा
सकी होती तो उसे विज्ञान की श्रेणी में रखा जा सकता था उसके द्वारा भविष्य
में निर्मित होने वाले आँधी
तूफानों का भी पूर्वानुमान लगाया जा सकता था किंतु मेरी जानकारी के अनुशार
ऐसी किसी वैज्ञानिक प्रक्रिया की अभी तक खोज की नहीं जा सकी है इसलिए
वर्तमान समय में पूर्वानुमान लगाने वाली प्रक्रिया में विज्ञान जैसा कुछ है भी नहीं |रडारों उपग्रहों आदि से प्राप्त चिंत्रों को देखकर अंदाजा लगा लेने में विज्ञान कहाँ है |
किसी समय में महीने दो महीने में यदि कई बार हिंसक आँधी तूफानों की हिंसक घटनाएँ घटित होने लगें और हर चार छै दिन में हिंसक आँधी तूफान घटित होने लगें तो रडारों
उपग्रहों के द्वारा देख देख कर या बताया जा सकता है कि एक तूफ़ान आ रहा है
चार दिन बाद एक और तूफ़ान आ रहा है पाँच दिन बाद फिर एक और तूफ़ान आ रहा है
ऐसे क्रम चलता रहेगा ! किंतु इस प्रक्रिया के आधार पर इस बात का
पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सकता है कि आँधी तूफानों का यह क्रम कब तक चलता रहेगा !
यदि यह जानने का प्रयत्न किया जाए कि ऐसा क्यों हो रहा है इस विषय
में भी मेरी जानकारी के अनुशार किसी के पास ऐसा कोई मजबूत उत्तर नहीं होगा
जिसे तर्कों की कसौटी पर विश्वास पूर्वक कैसा जा सके वो केवल वैज्ञानिकों
ने कहा है इसलिए भले मान लिया जाए किंतु मानने लायक उसमें कुछ होगा नहीं |
अंत में हार थक कर इसके विषय में ग्लोबलवार्मिंग जैसी बातों का नाम ले
लिया जाता है कि उसके कारण रहा है !किंतु ऐसा हो तो हर वर्ष और हमेंशा
होना चाहिए जबकि ऐसा होते तो नहीं देखा जाता है दूसरी बात कारण यदि ग्लोबलवार्मिंगको ही मान लिया जाए तो आँधी तूफानों से संबंधित पूर्वानुमान लगाने की अनुसंधान
प्रक्रिया का "ग्लोबलवार्मिंग" को अभिन्न अंग मानकर उस अनुसंधान प्रक्रिया
में सम्मिलित किया चाहिए और ग्लोबल वार्मिंग समेत उन सभी घटकों का
सम्मिलित अनुसंधान किया
जाना चाहिए कि आखिर ऐसे आँधी तूफ़ान घटित कब कब होंगे !क्योंकि समाज के लिए
उपयोगी केवल इतना ही है यदि पूर्वानुमान सही नहीं निकले तो जनता के लिए
ऐसे अनुसंधानों के नाम पर जो कुछ भी किया जाता है वह उपयोगी एवं सार्थक
कैसे माना जा सकता है |
नई तकनीक -
इस नई तकनीकी प्रक्रिया के द्वारा प्रकृतिपरीक्षण के आधार पर अनुसंधान पूर्वक इस बात का पता लगाया जा सकता है कि आज के इतने दिन महीने या वर्ष बाद आँधी तूफ़ान या चक्रवातादि घटनाओं का निर्माण होगा |ऐसे दिनों का पता लगा लिया जाता है |
जिन दिनों में इस प्रकार की आँधी तूफ़ान चक्रवातादि घटनाओं का निर्माण होता है निर्मित होते समय तो इनका स्वरूप इतना अधिक सूक्ष्म होता है कि रडारों उपग्रहों आदि के माध्यम से शुरू में दिखाई नहीं पड़ती हैं जब इनका स्वरूप विस्तार होकर वायु मंडल में एक आकार लेने लगता है रडारों उपग्रहों आदि के माध्यम से तब दिखाई पड़ने लगता है |इसके बाद जब वो किसी दिशा में लगता है तब उसके पूर्वानुमान लगाने की प्रक्रिया प्रारंभ हो पाती है कई बार या प्रक्रिया समुद्र के सुदूर क्षेत्र में प्रारंभ होती है तब तो किसी देश प्रदेश आदि तक पहुँचने में कुछ दिनों का समय लग जाता है ऐसे समय में इसके द्वारा लगाया जाने वाला अंदाजा बचाव कार्यों के लिए महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि उतना समय मिल जाता है जबकि कई बार ये प्रक्रिया समुद्र के सुदूर क्षेत्र में प्रारंभ न होकर अपितु नजदीक में ही प्रारंभ होती है उस समय बचाव कार्यों के विषय में प्रयास करने के लिए समय बहुत कम बच पाता है |
इसके अतिरिक्त कई बार ऐसी घटनाओं का निर्माण होने के बाद ये जिस किसी दिशा की ओर बढ़ने लगती हैं उसकी गति और दिशा के अनुशार अनुमान लगाकर यह तो अंदाजा लगा लिया जाता है कि ये किस दिशा की ओर जाकर कहाँ कब पहुँच पाएगा किंतु उतने भर से यह निश्चित नहीं हो जाता है कि ऐसा ही होगा उसके बाद भी कई बार हवाओं का रुख बदल जाने से ये अंदाजा गलत होते देखा जाता है |
इसके बाद एक परिस्थिति और पैदा होती है जब मानव
इस नई तकनीकी प्रक्रिया के द्वारा प्रकृतिपरीक्षण के आधार पर अनुसंधान पूर्वक इस बात का पता लगाया जा सकता है कि आज के इतने दिन महीने या वर्ष बाद आँधी तूफ़ान या चक्रवातादि घटनाओं का निर्माण होगा |ऐसे दिनों का पता लगा लिया जाता है |
जिन दिनों में इस प्रकार की आँधी तूफ़ान चक्रवातादि घटनाओं का निर्माण होता है निर्मित होते समय तो इनका स्वरूप इतना अधिक सूक्ष्म होता है कि रडारों उपग्रहों आदि के माध्यम से शुरू में दिखाई नहीं पड़ती हैं जब इनका स्वरूप विस्तार होकर वायु मंडल में एक आकार लेने लगता है रडारों उपग्रहों आदि के माध्यम से तब दिखाई पड़ने लगता है |इसके बाद जब वो किसी दिशा में लगता है तब उसके पूर्वानुमान लगाने की प्रक्रिया प्रारंभ हो पाती है कई बार या प्रक्रिया समुद्र के सुदूर क्षेत्र में प्रारंभ होती है तब तो किसी देश प्रदेश आदि तक पहुँचने में कुछ दिनों का समय लग जाता है ऐसे समय में इसके द्वारा लगाया जाने वाला अंदाजा बचाव कार्यों के लिए महत्वपूर्ण हो जाता है क्योंकि उतना समय मिल जाता है जबकि कई बार ये प्रक्रिया समुद्र के सुदूर क्षेत्र में प्रारंभ न होकर अपितु नजदीक में ही प्रारंभ होती है उस समय बचाव कार्यों के विषय में प्रयास करने के लिए समय बहुत कम बच पाता है |
इसके अतिरिक्त कई बार ऐसी घटनाओं का निर्माण होने के बाद ये जिस किसी दिशा की ओर बढ़ने लगती हैं उसकी गति और दिशा के अनुशार अनुमान लगाकर यह तो अंदाजा लगा लिया जाता है कि ये किस दिशा की ओर जाकर कहाँ कब पहुँच पाएगा किंतु उतने भर से यह निश्चित नहीं हो जाता है कि ऐसा ही होगा उसके बाद भी कई बार हवाओं का रुख बदल जाने से ये अंदाजा गलत होते देखा जाता है |
इसके बाद एक परिस्थिति और पैदा होती है जब मानव