भाग्य से ज्यादा और समय से पहले किसी को न सफलता मिलती है और न ही सुख !
विवाह, विद्या ,मकान, दुकान ,व्यापार, परिवार, पद, प्रतिष्ठा,संतान आदि का सुख हर कोई अच्छा से अच्छा चाहता है किंतु मिलता उसे उतना ही है जितना उसके भाग्य में होता है और तभी मिलता है जब जो सुख मिलने का समय आता है अन्यथा कितना भी प्रयास करे सफलता नहीं मिलती है ! ऋतुएँ भी समय से ही फल देती हैं इसलिए अपने भाग्य और समय की सही जानकारी प्रत्येक व्यक्ति को रखनी चाहिए |एक बार अवश्य देखिए -http://www.drsnvajpayee.com/
मौसम पूर्वानुमान आज से दस हजार वर्ष पहले तक का जानने की विधि !
समयविज्ञान अत्यंत प्राचीन ऐसी वैज्ञानिकप्रक्रिया है जिसमें गणितीय सूत्रों के द्वारा लाखों वर्ष पहले का भी मौसम संबंधी पूर्वनुमान लगाया जा सकता है | बिल्कुल उसीतरह जैसे गणित के द्वारा सूर्य और चंद्र ग्रहणों के विषय में हजारों वर्ष पहले लगा लिया जाता है जो एक एक सेकेंड सही घटित होता है |
गणित के सूत्रों के द्वारा लगाए गए पूर्वानुमान की सबसे बड़ी विशेषता यह होती है कि इसमें किसी उपग्रह या राडार की मदद नहीं ली जाती है इसीलिए जब उपग्रहों राडारों आदि आधुनिक विज्ञान का जन्म ही नहीं हुआ था तब भी समय विज्ञान के द्वारा सफलता पूर्वक मौसम पूर्वानुमान लगा लिया जाया करता था और वह सही एवं सटीक घटित होते देखा जाता था | आज भी वो पद्धति उतनी ही प्रासंगिक बनी हुई है |
प्रकृति समय के द्वारा अनुशासित है | समय जब जैसा आता है ब्रह्मांड में तब तैसी घटनाएँ घटित होने लगती हैं सूर्य चंद्र समेत समस्त ग्रहनक्षत्र उसी समय के अनुशासन से अनुशासित हैं धरती की गहराई से लेकर आकाश की उँचाई तक सब कुछ समय से ही अनुशासित है |
समय के अनुशासन का पालन प्रकृति अत्यंत दृढ़ता से किया करती है यही कारण है कि सूर्य चंद्र आदि ग्रह अपने अपने निश्चित समय से उदित या अस्त हुआ करते हैं | सर्दी गर्मी वर्षा आदि प्रमुख ऋतुएँ प्रतिवर्ष अपने अपने समय से आती और और समय से जाती रहती हैं | उसी निर्धारित समय पर सर्दी गर्मी वर्षा आदि होते देखी जाती है |
कुलमिलाकर प्रकृति पर समय का ही अनुशासन चला करता है इसीलिए सबकुछ निश्चित समय पर एक ही प्रकार से घटित होता है | अमावस्या पूर्णिमा जैसी तिथियाँ निश्चित समय पर आती जाती हैं | सूर्यचंद्र ग्रहण जैसी घटनाएँ अमावस्या और पूर्णिमा में ही घटित होती हैं | यद्यपि अमावस्या और पूर्णिमा जैसी घटनाएँ तो प्रत्येक महीने में ही घटित होती हैं किंतु सूर्यचंद्र ग्रहण जैसी घटनाएँ प्रत्येक अमावस्या पूर्णिमा में नहीं घटित होती हैं अर्थात किसी में होती हैं और किसी में नहीं होती हैं |
ऐसी जटिल घटनाओं का भी गणितीय सूत्रों के द्वारा न केवल समझने में सफलता पा ली गई अपितु ऐसी घटनाओं के विषय में हजारों वर्ष पहले लगाया गया एक एक सेकेंड सही घटित होता है |
जिस प्रकार से अमावस्या और पूर्णिमा जैसी घटनाएँ प्रत्येक महीने में घटित होने के बाद भी सूर्यचंद्र ग्रहण जैसी घटनाएँ तो प्रत्येक अमावस्या पूर्णिमा में
नहीं घटित होती हैं उसी प्रकार से प्रकृति से संबंधित सभी प्रकार की घटनाओं में होते देखा जाता है | सर्दी गर्मी वर्षा आदि ऋतुएँ प्रत्येक वर्ष में आती है और अपने अपने समय तक रहकर चली जाती हैं किंतु अपनी अपनी ऋतुओं में भी इनका प्रभाव एक जैसा नहीं रहता | वर्षा ऋतु में किसी वर्ष बहुत अधिक वर्षा होती है किसी वर्ष बहुत कम होती है या सूखा पड़ जाता है | ऐसे ही वर्षा ऋतु के प्रत्येक दिन में एक जैसी वर्षा नहीं होती है किसी कम किसी दिन अधिक तो किसी दिन बिल्कुल नहीं होती है | ऐसी परिस्थिति प्रत्येक ऋतु को आधुनिक के प्रभाव में होने वाली न्यूनाधिकता के रूप में देखी जाती है |
ऐसी घटनाएँ आधुनिक वैज्ञानिकों के उपग्रहों रडारों पर नहीं दिखाई पड़तीं इसलिए इनके घटित होने का कारण जलवायु परिवर्तन बताकर इनके विषय में हाथ खड़ा कर देना उनकी मजबूरी हो सकती है किंतु गणितीय सूत्रों से यदि ग्रहण जैसी घटनाओं का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है तो ऋतुओं में देखे जाने वाले न्यूनाधिक प्रभाव के विषय नहीं लगाया जा सकता है | आखिर ग्रहण जैसी घटनाएँ भी तो प्रत्येक अमावस्या पूर्णिमा में
नहीं घटित होती हैं |
गणितीय सूत्रों की एक विशेषता और है गणित के जो सूत्र प्रकृति की जिन घटनाओं में एक बार सही सटीक बैठ जाते हैं उनसे संबंधित पूर्वानुमान उन्हीं गणितीय सूत्रों से यदि सात दिन पहले का सही निकल सकता है तो सात महीने पहले का भी सही निकलेगा और सात वर्ष सकता हजार वर्ष सात लाख वर्ष आदि पहले के विषय में लगाया गया पूर्वानुमान सही निकलेगा | एक बार सूत्र सही फिट होने की बात है |
विशेष बात यह है कि हमारे द्वारा प्रत्येक महीने प्रकाशित किए जाने वाले मौसम संबंधी पूर्वानुमानों का परीक्षण आप ध्यान से किया करें और यह विश्वास रखकर चलें कि महीने का मौसम पूर्वानुमान जितने प्रतिशत सच निकलेगा | उतने ही प्रतिशत सात करोड़ और सात अरब वर्ष पहले के विषय में हमारे द्वारा लगाया गया मौसम संबंधी पूर्वानुमान भी सच निकलेगा | गणितीय सूत्रों के आधार पर लगाए गए पूर्वानुमानों की यह विशेषता है |
आधुनिक वैज्ञानिकों की दृष्टि से ऐसी कभी होने और कभी न होने वाली प्राकृतिक घटनाओं के लिए जलवायु परिवर्तन को जिम्मेदार ठहरा दिया जाता है | जलवायु परिवर्तन कहने का मतलब होता हैइस घटना के विषय में हमें कुछ भी पता नहीं है | इसलिए इसके विषय में हमसे कुछ मत पूछना पूछोगे तो हम कोई काल्पनिक कहानी सुना देंगे जिसका लेना देना नहीं होगा |
आधुनिक वैज्ञानिक संभवतः प्रकृति से ऐसी अपेक्षा करते हैं कि जिस प्रकार से सूर्य निश्चित समय से आता है और निश्चित समय से चला जाता है एक मिनट सेकेंड भी आगे पीछे नहीं होता उसी प्रकार से मानसून अपनी निर्धारित तारीख पर आवे और अपनी तारीख पर चला जाए | जिस प्रकार से सूर्य की रोशनी सूर्य के उदित होने के बाद क्रमशः बढ़ती और क्रमशः घटते घटते समाप्त हो जाती है | वैसे ही मानसून अपनी तारीख पर आवे इसके बाद क्रमिक रूप से बढ़ता जाए और अपने शिखर पर पहुँचाने के बाद क्रमशः कम होना शुरू हो जाए और अपनी निश्चित तारीख पर समाप्त हो जाए |
इसी प्रकार जैसे सूर्य का प्रकाश गर्मी आदि बड़े भूभाग पर एक जैसी पड़ती है उसी प्रकार से बादल सभी जगह जा जाकर एक जैसी वर्षात नाप तौल कर करें | ऐसे ही भूकंप आँधी तूफ़ान जैसी घटनाओं के लिए भी कोई दिन निश्चित होना चाहिए उस दिन आवें और अपनी निर्धारित सीमा में आकर समाप्त हो जाएँ | इनका जिस किसी भी दिन जहाँ कहीं भी चले आना बंद हो | यदि ऐसा नहीं होता है तो हम ऐसी घटनाओं के घटित होने का कारण जलवायु परिवर्तन के नाम का हुल्लड़ मचा मचा कर प्रकृति को बदनाम करते रहेंगे |
इस प्रकार से आधुनिक वैज्ञानिकों की इन शर्तों का पालन जिस दिन प्रकृति
करने लगेगी उसी दिन इनके द्वारा लगाए गए मौसम संबंधी पूर्वानुमान सही निकल
सकते हैं | इसके अतिरिक्त इनसे मौसम का पूर्वानुमान लगाने के लिए कोई आशा
की ही नहीं जानी चाहिए | मौसम का पूर्वानुमान लगाने के लिए प्राकृतिक
घटनाओं से संबंधित जब तक कोई विज्ञान विकसित ही नहीं किया जा सका है तब तक
ऐसे लोगों बताएँगे भी किस आधार पर | अलनीनों लानिना जैसी मन गढ़ंत कहानियों
का संबंध घटनाओं के साथ कभी देखा ही नहीं गया | इसके आधार पर बताई गई हर
बात उलटी ही निकलती है |
कुल मिलाकर वैज्ञानिक अनुसंधानों के नाम पर केवल उपग्रहों रडारों पर ही सारा दारोमदार है इनके अतिरिक्त और क्या है जिसके आधार पर प्राकृतिक घटनाओं के विषय में अनुसंधान किया जाए | केवल वही उपग्रहों रडारों से जो जो प्राकृतिक घटनाएँ घटित होते दिखेंगी मौसम भविष्यवाणी के नाम पर वही बोल दी जाएँगी यही तो मौसम विज्ञान है | भूकंप और महामारी जैसी घटनाएँ उपग्रहों रडारों सेदिखाई ही नहीं पड़ती हैं इसलिए वैज्ञानिक लोग इस विषय में कुछ बता भी कैसे सकते हैं और जो तीर तुक्के लाए जाएँगे वे सही हो भी जाएँ तो उनसे लाभ क्या जब उनका कोई वैज्ञानिक आधार ही नहीं होता है |
मौसम संबंधी वातावरण बिगड़ने से महामारियाँ पैदा होती हैं यही कारण है मौसम संबंधी घटनाओं को न समझ पाने वाले आधुनिकवैज्ञानिकों को कोरोना महामारी समझ में ही नहीं आई ऐसा वे खुले तौर पर स्वीकार करते रहे !वे साफ साफ कह चुके कि जलवायु परिवर्तन को समझना हमारे बैश की बात नहीं है इसके बाद भी सरकारें उनसे ऐसे विषयों पर अनुसंधान करने की अपेक्षा रखती हैं ये सरकारों का दिखावा नहीं तो और क्या है ?
गाँवों में बूढ़े और कमजोर बैलों को बेचने के लिए किसान लोग बैल मंडी में ले जाते हैं किंतु वे बैल जोतने लायक रह नहीं जाते हैं शरीर कमजोर हो चुके होते हैं | इसलिए उनके ग्राहक नहीं होते हैं | ऐसे बैलों के ग्राहक खोजकर दलाल लोग लाते हैं | उन दलालों के हाथ में एक ऐसी छड़ होती है जिसके अगले भाग पर एक कील लगी होती है | ग्राहक बैलों को जब देख रहा होता है उस समय दलाल पीछे से वह कील बैल को चुभा देते हैं तो बैल उछल पड़ता है | इससे लगता है कि बैल अभी बूढ़ा और कमजोर नहीं हैं इसमें अभी भी करेंट है | इस प्रकार से धोखा देकर दलाल लोग बैल बेचवा देते हैं |
इसी प्रकार की भूमिका प्रकृति के विषय में वैज्ञानिक हमेंशा से निभाते रहे हैं यही कारण है कि157 वर्ष पहले कलकत्ते में आए जिस हिंसक चक्रवात को समझने के लिए 145 वर्ष पहले जिस भारतीय मौसम विज्ञान विभाग की स्थापना की गई थी लगभग डेढ़ सौ वर्ष बीत जाने के बाद सन 2018 के अप्रेल मई में बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश आदि में भीषण हिंसक आँधी तूफ़ान आए हमारे मौसम वैज्ञानिक न उनके विषय में कोई पूर्वानुमान बता पाए और न ही उनके घटित होने का कारण बता पाए | ये विज्ञान जगत के अनुसंधानों की डेढ़ सौ वर्षों की उपलब्धि है | इसके बाद भी सरकारें ऐसे लोगों से कोरोना जैसी महामारी के विषय में खोज करने का दबाव दाल रही हैं उन्हें क्या वे मौसम की तरह ही महामारी के विषय में भी एक और कहानी गढ़कर सुना देंगे |ऐसे अनुसंधानों और अनुसंधान कर्ताओं पर जनता के द्वारा टैक्स रूप में दिया गया पैसा सरकारें खर्च किया करती हैं उनसे निकलता क्या है ये महामारी के समय में दुनियां ने देखा है | अनुसंधानों के नाम पर जनता से कितना झूठ बोलै जाता है ये महामारी के समय जनता ने सुना है अनुभव किया है | उनके द्वारा महामारी के विषय में कही गई प्रत्येक बात झूठ निकली है प्रत्येक अनुमान गलत निकला है इसके बाद भी विज्ञान ने नाम पर सरकारों के दबाव से जनता उनका और उनके परिवारों का आर्थिक बोझ अपने कंधों पर ढोने के लिए मजबूर है |
संस्कृत प्रकृति भी समय की गति इतनी अधिक
गणितीय सूत्रों की स्थिति बिजली के तारों की तरह है
नव निर्मित किसी किसी घर में बिजली की वायरिंग करवाई जाती है सबसे बड़ी विशेषता यह होती है कि इसका जो फार्मूला प्रकृति की जिस घटना के साथ फिट बैठ जाता है जिस सूत्र का जो संबंध जिस विषय में एक बार सही फार्मूला जिस चीज में के
-गर्मी
की मदद से कोरोना वायरस को ख़त्म किया जा सकता है. कई दावों में पानी को
गर्म करके पीने की सलाह दी जा रही है. यहां तक कि नहाने के लिए गर्म पानी
के इस्तेमाल की बात कही जा रही है.गर्म पानी पीने और सूरज की रोशनी में
रहने से इस वायरस को मारा जा सकता है. इस दावे में आइसक्रीम को ना खाने की
सलाह भी दी गई |
4
अप्रैल 2020-अमेरिका की नेशनल एकेडमिक्स ऑफ साइंसेज ने अपनी स्टडी में कहा
हैकि गर्म मौसम कोरोना वायरस को रोकने में मदद नहीं करेगा !ऑस्ट्रेलिया और
ईरान में चीन और यूरोपीय देशों के मुकाबले फिलहाल गर्म मौसम है लेकिन वहां
वायरस का प्रसार अपने चरम पर है. ऐसे में ज्यादा टेंपरेचर और मौसम में
आर्द्रता की बढ़ोतरी से यह ना माना जाए कि मामलों में कमी आएगी |
24अप्रैल
2020-होमलैंड सुरक्षा सचिव के विज्ञान और तकनीकी विभाग के सलाहकार विलियम
ब्रायन ने व्हाइट हाउस में पत्रकारों कहा कि सरकारी वैज्ञानिकों ने एक
रिसर्च में पाया है कि सूरज की पराबैंगनी किरणें पैथोगेन यानी वायरस पर
प्रभावशाली असर डालती हैं। उम्मीद है कि गर्मियों में इसका प्रसार कम
होगा।सोलर लाइट सतह और हवा दोनों में इस वायरस को मारने की क्षमता रखता
है।नमी में वृद्धि अर्थात अधिक ठंडक भी वायरस के लिए फायदेमंद नहीं
है।बिलियन ब्रायन ने मैरीलैंड स्थित नेशनल बायोडिफेंस एनालिसिस एंड काउंटर
मेजर्स सेंटर की एक रिसर्च में पाया गया कि नमी को 80 फीसदी बढ़ाए जाने के
बाद आधा वायरस 6 घंटे में खत्म हो गया। जब इसी परीक्षण को सूरज की किरणों
के बीच किया गया तो इसे खत्म होने में दो मिनट लगे। 11 मई 2020 भारतीय
विषाणु वैज्ञानिक नगा सुरेश वीरापु का कहना है कि उच्च तापमान से कोरोना
वायरस के संक्रमण में कमी आएगी लेकिन गर्मी में वायरस के पूरी तरह के खत्म
होने की धारणा पूरी तरह से निराधार है.
27 मई 2020 - मेडिकल कालेज
के मेडिसिन विभाग के प्रोफेसर डॉ.जे.एस.कुशवाहा और डॉ ब्रजेश कुमार का
कहना है कि गर्मी लगने पर मस्तिष्क में तापमान नियंत्रित करने वाला सिस्टम
ध्वस्त हो जाता है इसके साथ कोरोना संक्रमण और अधिक घातक हो सकता है | 3
जून 2020गर्म मौसम में कोरोना वायरस का संक्रमण थम जाएगा, इस उम्मीद में
इस बार सर्दी के मौसम में ही गर्मियों को बड़ी बेसब्री से इंतजार हो रहा
था। अब जबकि तेज गर्मी का एक महीना यानी मई बीत चुका है अभी तक ऐसा कुछ
दिखाई नहीं पड़ा है | 14 अगस्त 2020 :वैज्ञानिकों को आशंका है कि सर्दी
के मौसम में दुनिया को कोरोना वायरस की 'सेंकेंड वेव' का सामना करना पड़
सकता है, जो पहले से 'कहीं अधिक जानलेवा' होगी. ये पूर्वानुमानभले ही जटिल
और बेहद अनिश्चित लगे, लेकिन कई वजहें हैं जो चिंता को बढ़ा देती हैं |
12
जून 2020-भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), मुंबई के वैज्ञानिकों ने
एक अध्ययन में दावा किया है कि गर्म और शुष्क मौसम में सतह पर कोरोना वायरस
के सक्रिय रहने की गुंजाइश कम हो जाती है।
14 अगस्त 2020
:वैज्ञानिकों को आशंका है कि सर्दी के मौसम में दुनिया को कोरोना वायरस की
'सेंकेंड वेव' का सामना करना पड़ सकता है, जो पहले से 'कहीं अधिक जानलेवा'
होगी. ये पूर्वानुमानभले ही जटिल और बेहद अनिश्चित लगे, लेकिन कई वजहें हैं
जो चिंता को बढ़ा देती हैं |
11 अक्टूबर 2020 को एम्स निदेशक
डॉ.रणदीप गुलेरिया ने कहा कि सर्दियों में सांस लेने संबंधी वायरल संक्रमण
अधिक होने की उम्मीद रहती है.सर्दियों में तापमान कम रहने की वजह से वायरस
के लंबे वक्त रहने का खतरा रहता है. इस वजह से बड़ी संख्या में लोग
संक्रमित होते हैं |
विशेष :5 अप्रैल 2020कुछ लोगों का मानना है
कि जैसे-जैसे तापमान में वृद्धि होगी कोरोना वायरस का प्रकोप ख़त्म होता
जाएगा. लेकिन जानकार कहते हैं कि महामारियां, आमतौर पर मौसमी बीमारियों के
वायरस जैसी नहीं होतीं.ऐसी बहुत सी बीमारियां हैं जो मौसम बदलते समय सिर
उठाती हैं. जैसे ही मौसम स्थिर होता है, वो ख़त्म हो जाती हैं. मौसमी
बुख़ार इसकी सबसे आम मिसाल है.इसी तरह टायफ़ाइड या ख़सरा अक्सर गर्मी के
मौसम में सिर उठाती है. मैदानी इलाक़ों में ख़सरा अक्सर गर्मी के मौसम में
पैर फैलाता है. जबकि, उष्णकटिबंधीय इलाक़ों में ये बीमारी सूखे मौसम में
सबसे ज़्यादा फैलती हैकोविड-19 वायरस सबसे पहले चीन में दिसंबर महीने में
फैलना शुरू हुआ था. और तभी से ये वायरस लगातार फैल रहा है. अमरीका और यूरोप
के देशों में भी इसने क़हर बरपाया हुआ है. अभी तक देखा गया है कि ठंडे
इलाक़ों में ये काफ़ी तेज़ी से फैल रहा है| 3 मई 2021,जर्नल साइंटफिक
रिपोर्ट में प्रकाशित शोध पत्र में कहा गया है कि सर्दियों में ज्यादा
मामले आएंगे और गर्मियों के मौसम में कम मामले देखने को मिलेंगे। भूमध्य
रेखा के पास मौजूद देशों में कोरोना वायरस के कम मामले सामने आएंगे जबकि जो
देश धरती के उत्तरी और दक्षिणी हिस्से में स्थित हैं, उन्हें ज्यादा
कोरोना वायरस मामलों से जूझना पड़ेगा। शोधकर्ताओं ने 117 देशों के आंकड़े
के आधार पर यह शोध प्रकाशित किया है। शोध में खुलासा हुआ है कि कोरोना
वायरस महामारी पूरे साल कई बार चरम पर आएगी |
कोरोना महामारी और वायुप्रदूषण :8
अप्रैल 2020अधिक वायु प्रदूषण वाले क्षेत्रों में रहने से कोविड-19 के
कारणमौत होने का अधिक जोखिम है। ऐसा अमेरिका में किए गए एक अध्ययन में दावा
किया गया है।हार्वर्ड टी एच चान स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के शोधकर्ताओं ने
कहा कि शोध में सबसे पहले लंबी अवधि तक हवा में रहने वाले सूक्ष्म प्रदूषक
कण (पीएम2.5) और अमेरिका में कोविड-19 से मौत के खतरा के बीच के संबंध का
जिक्र किया गया है।
26 अप्रैल 2020 वायु प्रदूषण के कणों पर कोरोना वायरस का चला पता, ज्यादा
प्रदूषित इलाके में देखा गया उच्च संक्रमण !पिछले अध्ययनों से पता चला है
कि वायु प्रदूषण के कण रोगाणुओं को पनाह देते हैं और इसके जरिये बर्ड फ्लू,
खसरा और अन्य बीमारियों के संक्रमण की संभावना रहती है।
28
अक्टूबर 2020 -इंडियन काउंसिल ऑफ़ मेडिकल रिसर्च यानि आईसीएमआर का कहना है
कि लंबे समय तक प्रदूषण के प्रभाव में रहने से कोविड-19 से मौत का ख़तरा
बढ़ सकता है.आईसीएमआर के महानिदेशक डॉ बलराम भार्गव का कहना है, ''यूरोप और
अमरीका में प्रदूषित इलाक़ों में और लॉकडॉउन के दौरान होने वाली मौत का
तुलनात्मक अध्ययन किया गया और इसमें ये जानने की कोशिश की गई कि प्रदूषित
हवा का इससे क्या संबंध है. पता चला कि प्रदूषण, कोविड को और घातक बना रहा
है. प्रदूषण और कोविड से होने वाली मौत में संबंध है, ये बात अब शोध से
पूरी तरह स्पष्ट है."दरअसल कॉर्डियोवेसकूलर रिसर्च जर्नल ने एक शोध किया था
जिसमें ये पाया गया कि वायु प्रदूषण, कोविड-19 के दौरान मौत के ख़तरे को
बढ़ाने में एक महत्वपूर्ण कारण हो सकता है.
शोध
में कहा गया है कि जिन क्षेत्रों में वायु गुणवत्ता को लेकर कड़े मानक
अपनाए गए हैं और वायु प्रदूषण का स्तर कम है, वहां कोविड-19 से होने वाली
मौत का प्रतिशत कम है. जैसा कि ऑस्ट्रेलिया. वहीं शोध में पूर्वी एशिया,
सेंट्रल यूरोप, पश्चिमी अमरीका के इलाक़ों का ज़िक्र किया गया है जहां
प्रदूषण का स्तर अधिक होने के साथ-साथ मौत का प्रतिशत भी अधिक है.अध्ययन
में इस बात का भी ज़िक्र है कि चीन, पोलैंड और चेक रिपब्लिक सरीखे देशों
में प्रदूषण और कोविड-19 के मिले जुले असर की वजह से कहीं ज़्यादा लोगों ने
जान गंवाई है.नेशनल हार्ट इंस्टीच्यूट के डॉ ओपी यादव और दिल्ली के
इंस्टीच्यूट ऑफ़ लिवर एंड बिलियरी साइंस (आईएलबीएस) के डॉ. एसके सरीन दोनों
का ही मानना है कि कोविड के दौरान प्रदूषण से हो रही मौत का अप्रत्यक्ष
रुप से संबंध हो सकता है, लेकिन किसी भी अध्ययन में कॉज़ एंड इफ़ेक्ट नहीं
बताया गया है.डॉ एसके सरीन कहते हैं, ''बहुत लंबे समय तक प्रदूषण का प्रभाव
और कोविड के दौरान उससे ज़्यादा मौत हो रही है इसका कोई डायरेक्ट कॉज़ और
इफ़ेक्ट नहीं है| अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान यानि एम्स के पल्मनेरी
विभाग के प्रमुख डॉक्टर अनंत मोहन का कहना है कि ये पहली सर्दियां होगीं जब
लोग कोविड का भी सामना कर रहे हैं. जिन लोगों को सांस लेने में तक़लीफ
होती है उनकी प्रदूषण के दौरान दिक्क़तें और बढ़ जाती हैं और अगर ऐसे उन
मरीज़ों को कोविड हो जाता है तो उनके फेफड़ों पर और घातक असर हो सकता है और
उनको अस्पताल में भर्ती कराने की ज़रूरत पड़ती है और मौत की आशंका बढ़
जाती है.|
विशेष :यदि
वायु प्रदूषण बढ़ने के लिए जिस प्रकार से कुछस्थान जिम्मेदार हैं उसी
प्रकार से वायु प्रदूषण बढ़ने के लिए समय भी जिम्मेदार होता है | भारत में
अक्टूबर नवंबर आदि सर्दी के महीनों में वायु प्रदूषण बहुत अधिक बढ़ जाता है
किंतु सन 2020 के सर्दी के महीनों में वायु प्रदूषण तो बढ़ा किंतु कोरोना
संक्रमण तो दिनोंदिन समाप्त होता जा रहा था | इसलिए वायु प्रदूषण के कारण
कोरोना संक्रमण के बढ़ने की बात तर्क संगत नहीं है | वायुप्रदूषण बढ़ने से कोरोना संक्रमण बढ़ता है या नहीं ?
17 जून 2021 को कोरोना के मामले और मौत को लेकर पहले दो अध्ययन सामने आए
हैं !इस तथ्य को साबित करने के लिए पहली बार दो अलग अलग चिकित्सीय अध्ययन
सामने आए हैं। इनमें से एक मालवीय नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी जयपुर
के शोद्यार्थियों का है। जबकि दूसरा अध्ययन हिमाचल प्रदेश के हमीरपुर स्थित
नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी का है।
मेडिकल जर्नल मेडरेक्सिव में प्रकाशित दोनों अध्ययन में यह साबित हुआ है
-"वायु प्रदूषण के मामले में सबसे गंभीर राष्ट्रीय राजधानी में पीएम2.5,
पीएम10, एसओ2, एनओ2, ओ3 और कार्बन डाई ऑक्साइड महामारी के प्रसारित होने
में सहायक रहा है। जयपुर स्थित मालवीय नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के
कुलदीप सिंह और आर्यन अग्रवाल ने अध्ययन में बताया कि दिल्ली में कोरोना के
मामले, मौत और संक्रमण दर बढ़ाने में प्रदूषण और मौसम सहायक है।
दिल्ली
में अप्रैल से दिंसबर 2020 के बीच रोजाना औसतन दो हजार लोग कोरोना
संक्रमित हुए 39 की मौत हुई है |इसे देखकर लगता है कि वायुप्रदूषण भी
महामारी से संक्रमितों की संख्या बढ़ाने एवं मृतकों की संख्या बढ़ाने में
मददगार रहा है |
घनी
आबादी के अलावा उमस और वायु प्रदूषण ने भी दिल्ली में कोरोना महामारी को
बढ़ावा दिया। यही वजह है कि पिछले साल राजधानी ने संक्रमण की तीन-तीन बार
लहर का सामना किया।
दूसरी तरफ मामले कम होने की सूरत में प्रदूषण की भूमिका पर शोधार्थियों का
कहना है कि यह प्रक्रिया काफी जटिल और लंबी अवधि के अंतराल से समझी जा
सकती है। जब प्रदूषण पीक पर होता है तो संक्रमण को भी फैलने का मौका मिलता
है। इसके बाद स्थिति नियंत्रण में आती है लेकिन वापस फिर प्रदूषित कणों के
फैलने से नई लहर सामने आने लगती है। "
"हमीरपुर
स्थित नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी के अभिषेक सिंह ने अध्ययन में लिखा
है कि कोरोना संक्रमित और मौत दोनों को ही लेकर उमस एवंवायु प्रदूषण की
भूमिका रही है। अभी तक मौत के विशलेषण को लेकर ऐसा कोई अध्ययन नहीं हुआ
है।"
इसमें
विशेष बात यह है कि यदि वायु प्रदूषण बढ़ने को कोरोना संक्रमण बढ़ने में
सहायक मान लिया जाए तो जहाँ जहाँ जिस जिस समय में वायु प्रदूषण बढ़ता है
वहाँ वहाँ उस उस समय में कोरोना संक्रमण बढ़ना चाहिए किंतु सभी जगह ऐसा होते
नहीं देखा जाता है | दिल्ली और सूरत के मामलों में ही साम्यता नहीं देखी
गई है | इसके अतिरिक्त वायु प्रदूषण पिछले कई वर्षों से बढ़ता देखा जा रहा
है किंतु कोरोना संक्रमण हमेंशा तो नहीं रहता या बढ़ता है |
मौसम और महामारी-10
अगस्त 2020-डब्ल्यूएचओ ने कहा कि कोरोना वायरस में मौसमी प्रवृत्ति दिखाई
नहीं पड़ रही है। इसी वजह से इस खतरनाक वायरस पर अंकुश पाना कठिन होता जा
रहा है।
18
मार्च 2021 को संयुक्त राष्ट्र ने कोरोना संक्रमण पर मौसम संबंधी फैक्टर्स
और हवा की क्वालिटी से पड़ने वाले असर को जानने के लिए UN के विश्व मौसम
विज्ञान संगठन की तरफ से 16 सदस्यों वाली टीम बनाई गई है | इस टीम की पहली
रिपोर्ट में सामने आया है कि अगर यह महामारी लंबे समय तक जारी रहती है तो
कुछ सालों में यह मौसमी बीमारी बनकर रह जाएगी. संयुक्त राष्ट्र द्वारा बनाई
गई रिसर्च टीम ने बताया कि सांस संबंधी संक्रमण अक्सर मौसमी होते हैं.
कोरोना वायरस भी मौसम और तापमान के मुताबिक अपना असर दिखाएगा.टीम ने अपने
रिसर्च में सिर्फ बाहर के मौसम और हवा की क्वालिटी को आधार बनाया है |
स्टडी में सामने आया है कि कोरोना वायरस ठंड में, सूखे मौसम के अलावा जहां
अल्ट्रावायलेट किरणें कम होती हैं, वहां ज्यादा दिनों तक सर्वाइव करता है.
लेकिन अभी तक यह साफ नहीं है कि मौसम संबंधी फैक्टर्स का ट्रांसमिशन रेट पर
क्या असर होता है. हालांकि कुछ ऐसे सबूत मिले हैं हवा की खराब क्वालिटी
इसके खतरे को बढ़ा सकती है |
30
अप्रैल 2021 को मौसम विज्ञानी प्रोफेसर एचएन मिश्रा ने बताया कि
वैज्ञानिकों के शोध में सामने आया है कि मौसम में बदलाव कोरोना संक्रमण की
कमी में प्रभावी भूमिका निभाएगा। शोध पत्र के मुताबिक कोरोना वायरस तीन तरह
से प्रभावी है। स्पर्श (कंटैजियस), विस्तार (एक्सपेंसिव) और मेढ़क की चाल
( लीप फ्रांगिंग) की स्थितियों में कोरोना वायरस हवा में तैर रहा है। तेज
गर्मी के बाद तेज बारिश होने से वायुमंडल से वायरस का प्रभाव कम होगा।
महामारी और जलवायु परिवर्तन :21अप्रैल
2020 - कोरोना ने बदला मौसम का मिजाज़! भारत में सबसे ठंडा अप्रैल,
ब्रिटेन में चल रही लू ! कोरोना महामारी के बीच ब्रिटेन में गर्मी ने पिछले
361 साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया है. वहां अप्रैल में भीषण गर्मी और लू चल
रही है.|
22
अप्रैल 2020 - कोरोना, सूखा और तूफान से अमेरिका खस्ताहाल ! ट्रंप पर बड़ी
आफत !अमेरिका ने हाल ही में 1200 साल का सबसे भयावह सूखा देखा है. ये सूखा
18 साल तक चला. यानी साल 2000 से 2018 तक. सूखे से सबसे ज्यादा प्रभावित
हुआ दक्षिण-पश्चिमी अमेरिका हुआ है
22
मई 2020 - कोरोना को लेकर अपने देश के वैज्ञानिकों पर भड़के ट्रंप, कही ये
बातडोनाल्ड ट्रंप ने इस हफ्ते दो बार कहा कि हमारे देश के वैज्ञानिकों की
बात बेसिर पैर की है. उनकी बातों में कोई सबूत नहीं है|देश के कई बड़े
वैज्ञानिकों और डॉक्टरों की सलाह को खारिज करते हुए ट्रंप लॉकडाउन हटाना
चाहते थे |
30
मई 2020- भारत में इस साल मई के महीने में भी गर्मी नहीं है मार्च और
अप्रैल के बाद मई के महीने में भी तेज़ हवाएं चलीं और रुक-रुक कर बारिश
होती रही !
12
जुलाई 2020 - बारिश-बाढ़ और भूकंप, प्रकृति के कहर से चीन का बुरा हाल
!चीन इन दिनों प्रकृति के कहर से जूझ रहा है। लगातार हो रही भारी बारिश के
बाद आई बाढ़ से 52 लाख से ज्यादा लोग प्रभावित हैं। जिसके बाद 4 लाख लोगों
को सुरक्षित स्थान पर ले जाया गया है। वहीं 12 जुलाई को उत्तर-पूर्वी शहर
तंगशान आए भूकंप ने लोगों को पिछले हादसे की याद दिलाकर और डरा दिया है।
रिक्टर स्केल पर इस भूकंप की तीव्रता 5.1 मापी गई। हालांकि, इस भूकंप में
किसी के हताहत होने की खबर नहीं है।
जलवायु परिवर्तन का मजाक : 29 दिसंबर 2017 ट्रंप ने ग्लोबल वार्मिंग का बनाया मजाक, कहा- बर्फीली हवाओं से दिलाएगा राहत दुनिया अमेरिका
का पूर्वी क्षेत्र इन दिनों कड़ाके की सर्दी से गुजर रहा है। सर्द हवाओं
ने आम जनजीवन को पूरी तरह अस्त-व्यस्त कर दिया है, पर अमेरिका के
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस मौके का इस्तेमाल ग्लोबल वार्मिंग पर
तंज कसने के लिए किया। उन्होंने मजाकिया लहजे में कहा कि धरती के बढ़ते
तापमान से शायद कड़ाके की सर्दी से निपटने में मदद मिल सके।
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जनवरी 2019 को शाम में भयानक ठंड का शिकार हुए मिडवेस्ट रीजनका हवाला देते
हुए ट्रंप ने ग्लोबल वार्मिंग को ताना मारते हुए उसे तेजी से वापस आने के
लिए कहा है। ट्रंप ने ट्वीट किया कि, 'खूबसूरत मिडवेस्ट में ठंडी हवाओं के
चलते तापमान माइनस 60 डिग्री तक पहुंच गया है। ठंड ने रिकॉर्ड तोड़ दिया
है। आने वाले दिनों में और भी ठंडा होने की उम्मीद है। लोग एक मिनट के लिए
भी बाहर नहीं आ पा रहे हैं। ग्लोबल वार्मिंग के साथ क्या हो रहा है? कृपया
तेजी से वापस आएं, हमें आपकी आवश्यकता है!'
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मई 2020 मानव निर्मित है जलवायु परिवर्तन : दुनिया के प्रमुख वैज्ञानिक
इस बात से सहमत हैं कि जलवायु परिवर्तन मानव-प्रेरित है और चेतावनी देता है
कि तापमान में प्राकृतिक उतार-चढ़ाव मानव गतिविधि द्वारा बढ़ाए जा रहे
हैं। इसे जलवायु परिवर्तन या ग्लोबल वार्मिंग के रूप में जाना जाता है।
मानव गतिविधियों ने कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन में वृद्धि की है, जिससे
तापमान बढ़ रहा है। चरम मौसम और पिघलने वाली ध्रुवीय बर्फ संभावित प्रभावों
में से हैं। पृथ्वी का औसत तापमान लगभग 15C है लेकिन अतीत में बहुत अधिक
और कम रहा है।जलवायु में प्राकृतिक उतार-चढ़ाव आते हैं लेकिन वैज्ञानिकों
का कहना है कि तापमान अब कई गुना अधिक तेजी से बढ़ रहा है। अक्टूबर 2020 -इस बात से सहमत नहीं थे कि पृथ्वी के बढ़ते तापमान के लिए मनुष्य जिम्मेदार थे।
इसी प्रकार से ऐसे मौसमविभागकी स्थापना हुए 144 वर्ष हो गए उस समय पश्चिम बंगाल में एक बड़ा हिंसक तूफ़ान आया था और अभी सन 2018 में पूर्वोत्तर भारत में जितने भी बड़े हिंसक तूफ़ान आए न तब पूर्वानुमान लगाया जा सका और न अब !उससे जनता तब भी अकेले जूझी होगी आज भी जनता ही जूझ रही है उसे ऐसे वैज्ञानिक अनुसंधानों से कोई मदद नहीं मिली जो पिछले एक सौ चवालीस वर्षों से चलाए जाते रहे हैं |मौसम से संबंधित संबंधित पूर्वानुमानों के अनुसंधान कितने कारगर हैं इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है |ये हमारे मौसम संबंधी वैज्ञानिक अनुसंधानों की 144 वर्षों की उपलब्धि है |
भारत सरकार की और से अब स्वास्थ्य सुरक्षा प्रणाली के तहत महामारियों के बिषय में पूर्वानुमान लगाए जाने पर बिचार किया जा रहा है इसमें IMDको भी सम्मिलित किया जा रहा है किन्तु जब उसकी अपनी हालत इतनी पतली है तब वह स्वास्थ्य सुरक्षा प्रणाली को सफल बनाने में कैसे मददगार सिद्ध होगा !
इन्हीं बिषयों में काफी पहले मेरे द्वारा की हुई भविष्यवाणियाँ सही होती जा रही थीं उसके प्रमाण आज भी इंटरनेट पर विद्यमान हैं इसी बिषय में चर्चा करने के लिए मैं मौसम विज्ञान विभाग में गया था वहाँ एक मौसम वैज्ञानिक महोदय से मिलाया गया वहाँ उनके पास एक पत्रकार महोदय बैठे इन्हीं बिषयों पर चर्चा कर रहे थे उसी क्रम में पत्रकार महोदय ने उन वैज्ञानिक महोदय से निजी चर्चा में पूछा कि यह कैसे पता लगे कि मौसम संबंधी कौन सी घटना जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग के कारण घटित हो रही है और कौन सी घटना अपने आप से घटित हो रही है जिसके बिषय में पूर्वानुमान के सही होने की आशा की जाए !इस पर हँसते हुए उन्होंने कहा कि सीधी सी बात है हमारे विभाग के द्वारा लगाया गया जो पूर्वानुमान सही निकले उसे मौसम संबंधी सामान्य घटना मान लीजिए और हमारे विभाग के द्वारा लगाया गया जो पूर्वानुमान सही न निकले उसे जलवायु परिवर्तन और ग्लोबल वार्मिंग के कारण घटित होने वाली घटना मान लेना चाहिए | दोनों लोग हँसने लगे चर्चा समाप्त हुई और मैं भी चला आया !
प्राकृतिक क्षेत्र में अक्सर यह अनुभव किया गया है कि केवल कोरोना जैसी भयंकर महामारी ही नहीं अपितु भूकंप वर्षा बाढ़ सूखा आँधी तूफान च्रकवात ,बज्रपात या फिर बढ़ता वायु प्रदूषण का बढ़ता स्तर आदि जितने भी प्रकार की प्राकृतिक आपदाओं ने जब जब विकराल स्वरूप धारण किया है तब तब भयभीत जनता बड़ी आशा से मदद पाने की इच्छा लेकर अपने वैज्ञानिक अनुसंधानकर्ताओं की ओर देखती है किंतु दुर्भाग्य से महामारी प्राकृतिक आपदाओं जैसे कठिन समय में जब जीवन के लिए विज्ञान की जब सबसे अधिक आवश्यकता होती है तब वही अनुसंधान धोखा दे जाते हैं |
ऐसे कठिन बिषयों का वैज्ञानिक अनुसंधान करने में सरकारों के द्वारा लगाए गए लोगों से जब उनकी असफलता का कारण पूछा जाता है तो वो इधर उधर की बातें करने लगते हैं या कुछ ऐसे ऊटपटाँग आंकड़े पेश करके मीडिया को भटका देते हैं जिनका सच्चाई से कोई लेना देना ही नहीं होता है मीडिया उन कल्पित बातों को विज्ञान बता बता कर जनता को भ्रमित किया करता है |
इसी शोर शराबे के बीच वैज्ञानिक एक बार धीरे से कह देते हैं कि मैंने तो सरकार को पहले ही बताया था किंतु सरकार ने सुना ही नहीं ! ऐसी बातें सुनते ही विपक्ष की बाछें खिल जाती हैं यहीं से राजनीति शुरू हो जाती है विपक्ष ऐसी वैज्ञानिक विफलताओं के लिए सरकारों को कटघरे में खड़ा करने लगता है सरकारें सफाई देने लगती हैं लोग मुख्य मुद्दे से भटक जाया करते हैं सत्तापक्ष और विपक्ष के वाद विवाद में मीडिया उलझ जाया करता है आम जनता मीडिया के मुद्दों में रूचि लेने लगती है | उधर महामारी या प्राकृतिक आपदा से जूझ रही जनता बिल्कुल अकेली पड़ चुकी होती है उसकी सुध लेने वाला कोई नहीं होता है |
विगत एक दो दशकों में जितनी भी प्राकृतिक आपदाएँ घटित हुईं उनमें से एक आध को छोड़कर अधिकाँश के बिषय में किसी भी प्रकार का कोई पूर्वानुमान वैज्ञानिकों के द्वारा नहीं बताया जा सका था और बाद में कह दिया जाता है कि मैंने तो पहले ही बता दिया था सरकार ने सुना ही नहीं | केदारनाथ ,चेन्नई ,केरल और कश्मीर आदि की बाढ़ में यही हुआ बाद में अपनी आलोचना से आहत होकर उन उन प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों ने मुख खोलने की हिम्मत की और सच्चाई जनता के सामने सच्चाई रखी कि इस घटना के बिषय में वैज्ञानिकों के द्वारा कोई पूर्वानुमान हमें पहले से नहीं बताया गया था |
कोरोना जैसी महामारी के बिषय में कोई पूर्वानुमान पहले से तो बताया ही नहीं जा सका और जब जब जो जो कुछ बताया जाता रहा वो सब कुछ गलत निकल जाता रहा उसे ढकने के लिए एक नया पूर्वानुमान बोल दिया जाता रहा वो भी गलत निकल जाता रहा था इन दोनों को ढकने के लिए कोई ऐसी डरावनी अफवाह फैलाई जाती रही कि महामारी से डरी सहमी जनता उन दोनों गलत पूर्वानुमानों को भूलकर अब नए उस डरावने पूर्वानुमान को सुन कर सहम गए जो बाद में बोला गया था |
मौसम के बिषय में कोई पूर्वानुमान गलत निकले तो हम सही पूर्वानुमान नहीं निकाल सके इसकी जगह मौसम धोखा दे गया बता दिया जाता है |
मानसून आने जाने के बिषय में कोई पूर्वानुमान कभी सही नहीं निकला तो यह स्वीकार करने के बजाय कि मानसून आने जाने की सही तारीखों का अनुमान लगाने में हम असफल रहे !कहा गया कि मानसून आने जाने का पैटर्न बदल रहा है इसलिए इसके आने जाने की तारीखों में बदलाव किया जा रहा है |
दीर्घावधि मौसम पूर्वानुमान कभी सही नहीं निकला !इसके लिए भी मौसम को धोखेबाज बताया गया अपनी गलती कभी नहीं स्वीकार की गई |
हिंसक आँधी तूफानों के बिषय में पूर्वानुमान न लगाए जाने पर कहा जाता है कि चुपके से चक्रवात आ जाते हैं पता ही नहीं लगता !
कोरोना जैसी महामारियों के समय में भी यही खिलवाड़ होता रहा !कोरोना संक्रमण के बढ़ने घटने आदि के बिषय में कोई पूर्वानुमान बताया जाता रहा उसके गलत निकल जाने पर अपनी गलती स्वीकार करने के बजाय कभी महामारी का म्यूटेशन होने को कभी नया वैरियंट आने को कारण बताकर अपनी कमी को छिपा लिया जाता है |
वस्तुतः कोई सैनिक जब सीमा पर लड़ने जाता है तो वो शत्रु को पराजित करने के लिए जो भी निर्णय लेता है वो शत्रु के सभी संभावित म्युटेशनों एवं नए वैरियंटों को ध्यान में रखकर लेता है तभी वो शत्रु को पराजित कर पाता है | यदि वो ऐसा न करे तो उसकी अपनी थोड़ी भी चूक उसकी अपनी जान पर भारी पड़ सकती है|इसलिए अपनी भी जान का जोखिम सामने देखकर उसे संभावित सभी परिस्थितियों को ध्यान में रखकर निर्णय लेना पड़ता है | ये उसकी अपनी जिम्मेदारी होती है |
सैनिकों की उत्साहपूर्ण मजबूत देखकर शत्रु का आधा मनोबल युद्ध प्रारंभ होने से पहले ही टूट टूट जाता है इसलिए युद्ध में बिजय पाना आसान होता है दूसरी ओर प्राकृतिक आपदाओं और महामारियों के कारणों को खोजने की या पूर्वानुमान पता लगाने की जिम्मेदारी जो लोग सँभाल रहे होते हैं वे कुछ भी न करें तो भी उनके अपने लिए न कोई शारीरिक जोखिम होता है और न ही कोई आर्थिक !इसीलिए संबंधित बिषय में जब जो मन आता है बोल दिया जाता है उसके गलत हो जाने पर कुछ और बोल दिया जाता है | इतनी स्वछंदता जिस भी विभाग या क्षेत्र में होगी उससे अपक्षित परिणामों की आशा किसी को नहीं करनी चाहिए |
प्राकृतिक आपदाओं या महामारी से संबंधित अनुसंधानों के बिषय में जब जब आपदाएँ आई हैं तब तब उनका पूर्वानुमान लगाने में विज्ञान असफलहुआ है | ऐसे समय में आवश्यकता इस बात की थी कि इस संकल्प के साथ कमियों को खोजा जाता कि ऐसी परिस्थिति भविष्य में दोबारा पड़ने पर इस प्रकार की असफलता न मिले किंतु आज भूकंप संबंधी असफलता मिलने पर कुछ गहरे गड्ढे खोजकर उसमें कोई मशीन फिट कर के भूकंपों को खोजने का रिसर्च यह जानते हुए शुरू कर दिया जाता है कि इससे कोई परिणाम नहीं निकलेगा | मौसम के बिषय में ऐसी परिस्थिति आने पर कुछ उपग्रह रडार आदि और अधिक लगाने की बात कर दी जाती है | कुछ सुपर कंप्यूटर खरीदने आदि का संकल्प ले लिया जाता है | यह सब देख सुन कर उस समय तो लगता है कि अब भविष्य में हमारा विज्ञान कभी इस प्रकार से असफल नहीं होगा किंतु फिर वही होता है |हर बार संसाधनों की कमी और रिसर्च की आवश्यकता बता कर आगे बढ़ जाया जाता है |
सरकारों से लेकर महामारियों के बिषय में अनुसंधान करने वालों तक को यह सच्चाई स्वीकार करनी चाहिए कि महामारियों के बिषय में हमारे द्वारा कोई ऐसी तैयारी करके नहीं रखी जा सकी थी जिससे महामारियों को समझने में उनका पूर्वानुमान लगाने में संक्रमितों की संख्या घटने बढ़ने का कारण समझने में या इसका पूर्वानुमान लगाने मेंथोड़ी भी मदद मिल सकी होती जिससे महामारी से भयभीत जनता को थोड़ी भी मदद पहुँचाई जा सकी होती |ऐसी कोई भी तैयारी पहले से करके नहीं रखी जा सकी थी |
केवल भारत में ही नहीं अपितु इटली अमेरिका आदि उन्नत चिकित्सा पद्धतियों की दृष्टि से इतने सक्षम देश भी इस एक कमजोरी के कारण इतना नुक्सान उठाने पर विवश हुए | चिकित्सा की दृष्टि से भारत के चिकित्सकों ने भी अपनी जान जोखिम में डालकर अपने परिवारों का मोह त्यागकर जो समर्पण दिखाया है उनके परिजनों अभिभावकों ने ऐसी बिषम परिस्थिति में असहाय भयभीत जनता की मदद करने हेतु चिकित्सकों को उनके कर्तव्यपथ पर डटे रहने का संबल दिया है इस सबके आगे श्रद्धा से सिर झुक जाना स्वाभाविक है |मुझे विश्वास है कि चिकित्सा से संबंधित अनुसंधानों से भी समय रहते यदि कुछ भी मदद मिली होती तो संभव है उन चिकित्सकों का भी बहुमूल्य जीवन बचा लिया जाता जनता की जीवन रक्षा यज्ञ में जिन्होंने अपने प्राणों की आहुतियाँ दी हैं |
महामारी और जलवायु परिवर्तन -
महामारी के विषय में अध्ययन करने वाले वैज्ञानिकों के एकवर्ग का मानना रहा है कि महामारी के घटित होने पर या महामारी से संक्रमितों की संख्या घटने बढ़ने में जलवायु परिवर्तन की बड़ी भूमिका होती है |
तापमान बढ़ने घटने का महामारी पर पड़ता है प्रभाव !
19 सितंबर 2020-जिस सितंबर में मौसम करवट लेने लगता है और जाड़े की सुगबुगाहट होने लगती
है, इस बार दिल्ली वासी उमस भरी गर्मी झेलने को विवश हैं। तेज धूप की चुभन
और उमस पसीना पोंछने पर मजबूर कर रही है, अभी भी बिना एसी के गुजारा नहीं
हो पा रहा है। मौसम विशेषज्ञों ने इस स्थिति के पीछे जलवायु परिवर्तन के
साथ-साथ बादलों की बेरूखी को भी जिम्मेदार करार दिया है।
सन 2019 \2020 की सर्दियों के बिषय में मौसम विभाग की पुणे इकाई ने सामान्य से कम सर्दी का अनुमान व्यक्त किया था लेकिन सर्दी ने तो सौ साल के रिकार्ड तोड़ दिये। इस पर पत्रकारों ने मौसम विभाग की उत्तर क्षेत्रीय पूर्वानुमान इकाई के प्रमुख डॉ. कुलदीप श्रीवास्तव से पूछा कि सर्दी की दस्तक से पहले मौसम विभाग ने कहा था कि इस साल सर्दी सामान्य से कम रहेगी,लेकिन सर्दी ने तो सौ साल के रिकार्ड तोड़ दिये। पहले मानसून और अब सर्दी का पूर्वानुमान भी गलत साबित हुआ क्यों ?
इस प्रश्न का उत्तर देते हुए उन्होंने कहा कि कड़ाके की ठंड मौसम की चरम गतिविधि का नतीजा है जिसका सटीक पूर्वानुमान लगाना संभव ही नहीं है |भारत जैसे ऊष्ण कटिबंधीय जलवायु वाले क्षेत्र में मौसम के इस तरह के अनपेक्षित और अप्रत्याशित रुझान का सटीक पूर्वानुमान लगाने की तकनीक दुनिया में कहीं भी नहीं है।सर्दी ही नहीं, अतिवृष्टि और भीषण गर्मी जैसी मौसम की चरम गतिविधियों का दीर्घकालिक अनुमान संभव ही नहीं है।मौसम की चरम गतिविधियों के दौरान, मौसम का मिजाज तेजी से बदलने की प्रवृत्ति प्रभावी होने के कारण अल्पकालिक अनुमान भी मुश्किल से ही सटीक साबित होता है| मौसम के तेजी से बदलते मिजाज को देखते हुये चरम गतिविधियों का दौर भविष्य में और अधिक तेजी से देखने को मिल सकता है। इनकी आवृत्ति में भी तेजी देखी जा सकती है। ऐसे में बारिश के अनुकूल परिस्थिति बनने पर मूसलाधार बारिश होना या गर्मी का वातावरण तैयार होने पर अचानक तापमान में उछाल या गिरावट जैसी घटनायें भविष्य में बढ़ सकती हैं। मौसम संबंधी शोध और अनुभव से स्पष्ट है कि इस तरह की घटनाओं का समय रहते पूर्वानुमान लगाना भी मुश्किल है। ऐसे में पूर्वानुमान के गलत साबित होने की संभावना भी रहेगी।
इसके बाद एक बार फिर गलत हुई मौसम वैज्ञानिकों की भविष्यवाणी !2020-21 में लानीना का प्रभाव बताकर शीतऋतु में अधिक सर्दी होने की भविष्यवाणी की गई थी किंतु अबकी बार तो जनवरी से ही तापमान बढ़ने लग गया था ऐसा होने के पीछे का कारण जब उन भविष्यवक्ताओं से पूछा गया तब उन्होंने वही जलवायु परिवर्तन एवं ग्लोबल वार्मिंग को कारण बता दिया था |
जलवायु परिवर्तन
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जुलाई 21 -एक साथ 40 देशों में मौसम का प्रचंड रूप देखकर वैज्ञानिकों को
जलवायु परिवर्तन का डर सताने लगा है | कोरोना
वायरस महामारी के बीच मौसम की भी नाराजगी लोगों को झेलनी पड़ रही है.
महामारी तो शायद वैक्सीन की वजह से खत्म हो जाए लेकिन मौसम वैज्ञानिक अब
जलवायु परिवर्तन को लेकर परेशान हैं. एशिया, यूरोप, अफ्रीका, अमेरिका, चीन
और रूस तक मौसम का प्रचंड रूप देखा जा सकता है. जो लोग यह मान रहे थे कि जलवायु परिवर्तन भविष्य का खतरा है, वो अब दिन पर दिन बदलते मौसम को देखकर
हैरान हैं. आर्कटिक तक क्लाइमेट चेंज हावी हो चुका है. यहां पर पोलर बीयर
को बर्फ खत्म होने के बाद बाहर आते हुए देखा गया है
दुनिया के कई देशों में पिछले कुछ हफ्तों में मौसम के बदलते मिजाज को
देखा गया है. यूरोप से लेकर एशिया और नॉर्थ अमेरिका से लेकर रूस तक कहीं
बाढ़ है, कहीं गर्म हवाएँ हैं तो कहीं पर सूखे की स्थिति है. यूरोप के 40 देश,
नॉर्थ अमेरिका, एशिया और अफ्रीका में कहीं बाढ़, कहीं तूफान, कहीं हीट वेव,
कहीं जंगलों में लगी आग तो कहीं सूखे की स्थिति है. रूस, चीन, अमेरिका और न्यूजीलैंड में लोग गर्मी, बाढ़ और जंगलों में लगी
आग से परेशान हैं |पश्चिमी यूरोप में भारी बारिश हो रही है कहा जा रहा है कि एक सदी में पहली बार ऐसी बाढ़ आई है. बेल्जियम, जर्मनी,
लक्जमबर्ग और नीदरलैंड्स में 14और15जुलाई को इतनी अधिक बारिश हो गई है जितनी दो
माह में होती है. नॉर्थ यूरोप
में गर्मी से हालात बिगड़ते जा रहे हैं. फिनलैंड जहां गर्मी कभी नहीं
पड़ती, वहां पर लोग पसीना पोंछने को मजबूर हो रहे हैं. देश के कई हिस्सों
में तापमान 25 डिग्री सेल्सियस से भी ज्यादा हो गया है| रूस में साइबेरिया का तापमान इतना बढ़ गया है कि 216 ये ज्यादा
जंगलों में आग लगी हुई है | वहीं पश्चिमी-उत्तरी
अमेरिका में अत्यधिक गर्मी ने हालात खराब कर दिए हैं | कैलिफोर्निया, उटा
और पश्चिमी कनाडा में सर्वाधिक तापमान रिकॉर्ड किया गया
है. कैलिफोर्निया की डेथ वैली में पिछले दिनों ट्रेम्प्रेचर 54.4 डिग्री
सेंटीग्रेट तक पहुंच गया था. यह दूसरा मौका था जब इस हिस्से में इस कदर
तापमान रिकॉर्ड किया गया. इसी तरह से एशिया के कई देशों जैसे कि चीन, भारत
और इंडोनेशिया के कुछ हिस्सों में बाढ़ की स्थिति है तो कुछ हिस्सों को
अभी तक बारिश का इंतजार है |
24 मार्च 2020(बीबीसी) 24 मार्च 2020 |कोरोना वायरस क्या हवा से भी फैल सकता है?
26मार्च 2020प्राकृतिक है कोरोना वायरस, लैब में नहीं बनाया गया !अमेरिका समेत कई देशों की मदद से हुए एक वैज्ञानिक शोध में दावा किया गया
है कि यह वायरस प्राकृतिक है। स्क्रीप्स रिसर्च इंस्टीट्यूट के शोध को नेचर
मेडिसिन जर्नल के ताजा अंक में प्रकाशित किया गया है। शोध को अमेरिका के
नेशनल इंस्टीट्यूट आफ हेल्थ, ब्रिटेन के वेलकम ट्रस्ट, यूरोपीय रिसर्च
काउंसिल तथा आस्ट्रेलियन लौरेट काउंसिल ने वित्तीय मदद दी है तथा आधा दर्जन
संस्थानों के विशेषज्ञ शामिल हुए।
1 अप्रैल 2020-कोरोना वायरस की कोई दवा नहीं फिर भी देश में कैसे ठीक हो रहे हैं लोग?
2अप्रैल 2020 कोचीन के वैज्ञानिक का दावा- 4 हफ्तों में कम होंगे कोरोना वायरस के मामले ! चीन के सबसे बड़े कोरोना वायरस एक्सपर्ट ने दावा किया है कि अगले चार हफ्तों में पूरी दुनिया पहले जैसी हो जाएगी. कोरोना वायरस के नए मामलों में कमी आएगी. साथ ही ये भी भविष्यवाणी की है कि चीन में अब कोरोना वायरस का दूसरा हमला नहीं होगा. ये भविष्यवाणी की हैं डॉ. झॉन्ग नैनशैन ने. डॉ.झॉन्ग कोरोना वायरस को लेकर चीन की सरकार द्वार तैनात मुख्य टीम के प्रमुख भी हैं |
8 अप्रैल 2020-
अधिक
वायु प्रदूषण वाले क्षेत्रों में रहने से कोविड-19 के कारण मौत होने का
अधिक जोखिम है। ऐसा अमेरिका में किए गए एक अध्ययन में दावा किया गया है।हार्वर्ड
टी एच चान स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के शोधकर्ताओं ने कहा कि शोध में सबसे
पहले लंबी अवधि तक हवा में रहने वाले सूक्ष्म प्रदूषक कण (पीएम2.5) और
अमेरिका में कोविड-19 से मौत के खतरा के बीच के संबंध का जिक्र किया गया
है।
10 अप्रैल 2020-अमेरिकन स्टडी का दावा- गर्म मौसम नहीं करेगा कोरोना वायरस को रोकने में मदद!
13 अप्रैल 2020 को हृदय रोगों से पीड़ित और स्ट्रोक झेल चुके मरीजों को अधिक है कोरोना वायरस का जोखिम!उच्च रक्तचाप, मधुमेह या हृदय रोगों से पीड़ित लोगों को संक्रमण होने का
अधिक खतरा होता है। इन लोगों में कोरोना वायरस से गंभीर लक्षणों का अनुभव
करने के ज्यादा जोखिम भी हैं।
16 अप्रैल 2020 - स्टडी ग्लोबल कंसल्टिंग फर्म प्रोटिविटी और टाइम्स नेटवर्क ने की है।यह मई के मध्य तक भारत को तेजी से अपनी चपेट में लेगी। फिर मई के तीसरे हफ्ते में मामले अपने टॉप लेवल पर पहुंच सकते हैं। उसके बाद अगर लॉकडाउन और बचाव के दूसरे तरीकों का सही तरीके से पालन किया गया तो मामलों में कमी आनी शुरू हो जाएगी।
17अप्रैल 2020 -गृहमंत्रालय की ओर से किए गए एक आंतरिक सर्वेक्षण में पता चला है कि मई के
पहले सप्ताह में कोरोना के मरीजों में काफी तेजी देखने को मिलेगी. हालांकि
इसके बाद कोरोना मरीजों की संख्या धीरे-धीरे कम होने लगेगी |
18 अप्रैल 2020- ग्लोबल
कंसल्टिंग फर्म प्रोटिविटी और टाइम्स नेटवर्क के अनुसंधान के अनुसार कोरोना महामारी भारत में मई के बाद कमजोर पड़ सकती है।यह मई के मध्य तक भारत को तेजी से अपनी चपेट में
लेगी। फिर मई के तीसरे हफ्ते में मामले अपने टॉप लेवल पर पहुँच सकते हैं।
21अप्रैल 2020कोरोना ने बदला मौसम का मिजाज़! भारत में सबसे ठंडा अप्रैल, ब्रिटेन में चल रही लू !कोरोना महामारी के बीच ब्रिटेन में
गर्मी ने पिछले 361 साल का रिकॉर्ड तोड़ दिया है. वहाँ अप्रैल में भीषण
गर्मी और लू चल रही है |
23 अप्रैल 2020 - न्यूयॉर्क सिटी के बेलेउवे हॉस्पिटल के डॉक्टर रिचर्ड लेवितान ने कहा किकोरोना
वायरस की वजह से मरीजों का दम घुट रहा है. वेंटिलेटर और लाइफ सपोर्ट
सिस्टम भी बेकार साबित हो रहे हैं. डॉक्टर मरीजों को मरते हुए देखते रह
जाते हैं |
24 अप्रैल 2020
सनलाइट से जल्दी खत्म हो जाता है कोरोना वायरस, अमेरिकी वैज्ञानिकों ने किया रिसर्च में दावा | होमलैंड सुरक्षा सचिव के विज्ञान और तकनीकी विभाग के सलाहकार विलियम ब्रायन
ने व्हाइट हाउस में पत्रकारों कहा कि सरकारी वैज्ञानिकों ने एक रिसर्च में
पाया है कि सूरज की पराबैंगनी किरणें पैथोगेन यानी वायरस पर प्रभावशाली
असर डालती हैं। उम्मीद है कि गर्मियों में इसका प्रसार कम होगा।
26 अप्रैल 2020 को वायु प्रदूषण के कणों पर कोरोना वायरस का चला पता, ज्यादा प्रदूषित इलाके में उच्च संक्रमण देखा गया है | इटली के वैज्ञानिकों ने बर्गामो प्रांत के एक शहरी और एक औद्योगिक स्थल पर
बाहरी वायु प्रदूषण के नमूने एकत्र करने के लिए मानक तकनीकों का इस्तेमाल
किया है ।
27 अप्रैल 2020 को सिंगापुर यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी एंड डिजाइन के शोधकर्ताओं ने ऑर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ड्रिवेन डाटा एनालिसिस के जरिए कोरोना समाप्त होने की भारत समेत 131 देशों के लिए एक अनुमानित तारीख तय की है उसके अनुशार भारत में कोरोनावायरस का असर 26 जुलाई तक पूरी तरह खत्म होने का अनुमान लगाया है. अनुमान के मुताबिक, भारत में 21 मई तक Covid-19 का संक्रमण करीब 97 फीसदी तक कम हो जाएगा और 1 जून तक 99 फीसदी केस कम हो जाएंगे. इसी तरह 26 जुलाई तक भारत कोरोना मुक्त हो जाएगा |
27 अप्रैल 2020 को इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च ने 21 मई से देश से कोरोना संकट खत्म होने की बात कही है ।
28 अप्रैल 2020
बीजिंग -वैज्ञानिकों ने हवा में कोरोना वायरस की आनुवंशिक सामग्री की
उपस्थिति पता लगाया है।
28 अप्रैल 2020 सिंगापुर यूनिवर्सिटी ऑफ टेक्नोलॉजी एंड डिजाइन के शोधकर्ताओं ने ऑर्टिफिशियल इंटेलिजेंस ड्रिवेन डाटा एनालिसिस के जरिए बाताया है भारत में 21 मई तक Covid-19 का संक्रमण करीब 97 फीसदी तक कम हो जाएगा और 1 जून तक 99 फीसदी केस कम हो जाएंगे. इसी तरह 26 जुलाई तक भारत कोरोना मुक्त हो जाएगा |
1 मई 2020 अमेरिका ने अब माना, 'मानवनिर्मित' नहीं है कोविड-19 वायरस, मगर लैब में जॉंच होती रहेगी |
2मई 2020 को विश्व स्वास्थ्य संगठन में आपात स्थितियों के प्रमुख डॉक्टर माइकल रायन ने कहा है कि WHO को भरोसा है कि कोरोना वायरस प्राकृतिक रूप से पैदाहुआ है। रायन ने कहा कि WHO की टीम ने बार-बार बहुत सारे वैज्ञानिकों से इस पर
चर्चा की है, जिन्होंने वायरस के जीन सीक्वेंस को देखा है और हमें इस बात
का पूरा भरोसा है कि ये वायरस प्राकृतिक रूप से पैदा हुआ है। उन्होंने ये
भी कहा कि कोरोना वायरस से प्राकृतिक होस्ट का पता लगाना जरूरी है, ताकि
इसके बारे में अधिक जानकारी मिल सके और भविष्य में ऐसे खतरे से बचा जा सके।
5 मई 2020 को इजरायल के रक्षा मंत्री नैफ्टली बेन्नेट ने दावा किया है कि इजरायल के डिफेंस बायोलॉजिकल इंस्टीट्यूट ने कोविड-19 का टीका बना
लिया है।
8 मई 2020 को अमेरिका के कैलीफोर्निया में स्थित बायोफार्मास्यूटिकल कंपनी गिलियड साइंसेस ने कोरोना वायरस को खत्म करने वाली एंटीवायरस मेडिसिन बना ली है। इसे वेकलरी नाम दिया गया है।अमेरिका के वरिष्ठ संक्रामक रोग विशेषज्ञ डॉक्टर एंथोनी फॉसी ने इस दवा को कोरोना वायरस को खत्म करने वाली एकमात्र दवा बताया है।इस दवा के इस्तेमाल को अमेरिका एक सप्ताह पहले ही मंजूरी दे चुका है।अमेरिका के बाद जापान ने भी गंभीर हालत वाले मरीजों पर इस दवा के इस्तेमाल मंजूरी दे दी है।
11 May 2020 भारतीय विषाणु वैज्ञानिक नगा सुरेश वीरापु का कहना है कि उच्च तापमान से कोरोना वायरस के संक्रमण में कमी आएगी लेकिन गर्मी में वायरस के पूरी तरह के खत्म होने की धारणा पूरी तरह से निराधार है.
15 मई 2020 को विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक ट्रेड्रोस ए गेब्रेयेसस ने वर्चुअल प्रेस ब्रीफिंग में चेतावनी दी कि संभव है कि कोरोना हमारे आस-पास लंबे समय तक बना रहे | यह भी हो सकता है कि यह कभी ना जाए.|
27 मई 2020 को विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार ज्यादा तापमान कोरोना वायरस के लिए अनुकूल नहीं है और निर्जीव वस्तुओं को देर तक धूप में रखने से उन पर हुआ वायरस का असर खत्म हो जाता है, यानि ज्यादा तापमान पर वायरस नष्ट हो जाता है।
3 जून 2020 -कैंब्रिज के माउंट ऑबर्न हॉस्पिटल के नए अध्ययन में पाया गया है कि पिछला 52 डिग्री फ़ारेनहाइट तक गर्म मौसम कोरोनो वायरस को बिल्कुल प्रभावित नहीं कर पाया।
3 जून 2020 -माउंट ऑबर्न हॉस्पिटल द्वारा की गई स्टडी में कहा गया है कि सूर्य की अल्ट्रा वॉयलट किरणें इस इंफेक्श को नए लोगों तक बढ़ने से रोकने में सहायक हैं।
6 जून 2020 -अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने दावा किया है कि उनके देश में कोरोना महामारी की वैक्सीन खोज ली गई है। अमेरिका ने 20 लाख वैक्सीन बना ली है |
6 जून 2020 -ऑनलाइन जर्नल एपीडेमीयोलॉजी इंटरनेशनल में प्रकाशित विश्लेषण के अनुशार कोविड-19 महामारी मध्य सितंबर के आसपास भारत में खत्म हो सकती है.यह रिसर्च स्वास्थ्य मंत्रालय में स्वास्थ्य सेवाएं महानिदेशालय (डीजएसएच) में उप निदेशक (जन स्वास्थ्य) डॉ अनिल कुमार और डीजीएचएस में उप सहायक निदेशक (कुष्ठ रोग) रूपाली रॉय के द्वारा किया गया है.|
6 जून 2020 को भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी), मुंबई के वैज्ञानिकों ने एक अध्ययन में दावा किया है कि गर्म और शुष्क मौसम में सतह पर कोरोना वायरस के सक्रिय रहने की गुंजाइश कम हो जाती है।
16- 6-2020 को चेन्नई के भारतीय वैज्ञानिकन्यूक्लियर और अर्थ साइंटिस्ट डॉ.
के एल सुंदर कृष्णाने दावा किया है कि कोविड-19 महामारी किसी तरह पिछले साल 26 दिसंबर 2019 को हुए एक सूर्य ग्रहण
से जुड़ी हुई है. डॉ. के एल सुंदर कृष्ण ने एएनआई को बताया
कि उनका मानना है कि 26 दिसंबर को हुए ग्रहण ने सौर मंडल में ग्रह विन्यास
को बदल दिया.है कृष्णा का कहना है कि कोरोना वायरस के प्रकोप और सूर्य
ग्रहण के बीच सीधा कनेक्शन है जो 26 दिसंबर 2019 को हुआ था. उनका दावा है
कि आने वाले 21 जून के सूर्यग्रहण के दिन कोरोना वायरस खत्म हो जाएगा.| डॉ. कृष्णा के मुताबिक, ग्रहों के बीच ऊर्जा में बदलाव
के कारण यह वायरस ऊपरी वायुमंडल से उत्पन्न हुआ है। इसी बदलाव के कारण धरती
पर उचित वातावरण बना। ये न्यूट्रॉन सूर्य की सबसे अधिक विखंडन ऊर्जा से
निकल रहे हैं। न्यूक्लियर फॉर्मेशन की यह प्रक्रिया बाहरी मटेरियल के कारण
शुरू हुई होगी, जो ऊपरी वायुमंडल में बायो मॉलिक्यूल और बायो न्यूक्लियर के
संपर्क में आने से हो सकता है। बायो मॉलिक्यूल संरचना (प्रोटीन) का
म्यूटेशन इस वायरस का एक संभावित स्रोत हो सकता है। सौर मंडल में ग्रहों की
स्थिति में बदलाव हुआ है।
विशेष बात:डॉ.
के एल सुंदर कृष्णाजी की बातों से यह सिद्ध होता है कि खगोलीय घटनाओं का
प्रभाव प्राकृतिक घटनाओं के साथसाथ महामारियों आदि पर भी पड़ता हैइसीलिए
उससे प्रकृति एवं जीवन दोनोंही प्रभावित होते हैं |
18 जुलाई 2020 को पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष प्रो. के. श्रीनाथ रेड्डी ने कहा कि कोविड-19 के मामले मध्य सितंबर में चरम पर पहुंच सकते हैं | अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान में हृदय रोग विभागाध्यक्ष रह चुके एवं हावर्ड में अभी अध्यापन कार्य से जुड़े हैं |
1 अगस्त 2020 को जेनेवा में विश्व स्वास्थ्य संगठन की आपातकालीन समिति की बैठक के बाद चेतावनी दी गई कि कोरोना वायरस महामारी के "लम्बे" वक्त रहने की संभावना है | (लंबे का मतलब क्या समझा जाए कि कुछ वर्षों महीनों या दिनों तक चलेगी .)
02-08-2020-कोरोना काल में 70 प्रतिशत कम हुए हार्ट अटैक !
02-08-2020 -विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने सोमवार (2 अगस्त) को आगाह किया कि
कोविड-19 की सटीक दवा कभी संभव नहीं है। उसने कहा कि हालात सामान्य होने
में अभी वक्त लगेगा।
7 अगस्त 2020 कोAIIMS स्टडी का दावा- प्लाज्मा थेरेपी कोरोना मृत्यु दर को कम करने में कारगर नहीं है| डॉक्टर रणदीप गुलेरिया ने गुरुवार को बताया कि एम्स के 30 मरीजों पर यह स्टडी की गई. लेकिन परीक्षण के दौरान प्लाज्मा थेरेपी का कोई फायदा नज़र नहीं आया
11 अगस्त 2020 को विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा कि कोरोना वायरसमें मौसमी प्रवृत्ति दिखाई नहीं पड़ रही है। इसके चलते इस खतरनाक वायरस पर अंकुश पाना कठिन होता जा रहा है।डब्ल्यूएचओ के आपात मामलों के प्रमुख डॉ. माइकल रेयान ने एक प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि श्वसन तंत्र पर हमला करने वाले इंफ्लुएंजा जैसे वायरसों की तरह कोरोना नहीं है। इंफ्लुएंजा का खासतौर पर सर्दी के मौसम में प्रसार होता है। जबकि कोरोना महामारी गर्मी में भी बढ़ती जा रही है।
14 अगस्त 2020 (बीबीसी)-वैज्ञानिकों को आशंका है कि सर्दी के मौसम में दुनिया को कोरोना वायरस की 'सेंकेंड वेव' का सामना करना पड़ सकता है | डर इस बात का है कि ठंडी हवाओं के साथ बदलते मौसम की वजह से, कोरोना वायरस अपनी अधिक ताक़त के साथ तेज़ी से फैल सकता है |
2सितंबर 2020-खुद को बार-बार बदल रहा है कोरोना वायरस, ऐसे में कैसे बन पाएगी वैक्सीन, टेंशन में एक्सपर्ट !इस अध्यनन में कई रिसर्च इंसीट्यूट ने भाग लिया था जिसमें संक्रामक रोगों और वैश्विक स्वास्थ्य कार्यक्रम में प्रतिरक्षा, मैकगिल विश्वविद्यालय स्वास्थ्य केंद्र के अनुसंधान संस्थान और मैकगिल इंटरनेशनल टीबी सेंटर, कनाडा के विशेषज्ञ शामिल थे।
8 सितंबर 2020- डब्ल्यूएचओ प्रमुख की चेतावनी, दुनिया को अगली महामारी के लिए रहना होगा तैयार !डब्ल्यूएचओ ने एक बयान में कहा कि समिति ने कोविड-19 महामारी की लंबी अवधि के पूर्वानुमान को बताया है।
10 अक्टूबर 2020 को नीति आयोग के सदस्य डॉ. वीके पॉल ने दिल्ली सरकारको इस स्तर पर तैयारी करने की सलाह दी है।डॉक्टर पॉल ने कहा कि सर्दियों में कोरोना के मामले बढ़ सकते हैं। इस वजह से उन्होंने दिल्ली सरकार को रोज 15 हजार नए मरीजों के अनुसार तैयारी करने की सलाह दी थी ।
19 अक्टूबर 2020 को सरकार द्वारा लॉकडाउन के प्रभाव और पूर्वानुमान के अध्ययन के लिए हैदराबाद IIT के प्रोफेसर एम. विद्यासागर की अध्यक्षता में बनाई गई समिति ने कहा कि कोरोना का पीक सितंबर 2020 में आ चुका है फरवरी 2021 तक इससे मुक्ति मिल सकती है |प्रोफेसर विद्यासागर ने कहा, 'हमारी तैयारियों में कमी के कारण स्वास्थ्य व्यवस्था चरमरा गई होती, जिससे कई अतिरिक्त मौतें होतीं.'मास्क, डिसइंफेक्टिंग, टेस्टिंग और क्वारनटीन के अभ्यास को लगातार जारी रखें. | अगर सभी प्रोटोकॉल्स को अच्छी तरह से लागू किया जाए अगले साल फरवरी के अंत तक इसे काफी हद तक कंट्रोल किया जा सकता है|
19 अक्टूबर 2020-विश्व स्वास्थ्य संगठन) की चीफ साइंटिस्ट सौम्या विश्वनाथन दक्षिणी भारत वाणिज्य और उद्योग मंडल द्वारा आयोजित एक परिचर्चा में स्वामीनाथन ने कहा, 'हमें अनुशासित व्यवहार के लिए दो साल तक खुद को मानसिक रूप से तैयार कर लेना चाहिए|
20 मार्च 2020 कोरोना वायरस क्या गर्मी से मर जाता है?गर्मी की मदद से कोरोना वायरस को ख़त्म किया जा सकता है. कई दावों में पानी को गर्म करके पीने की सलाह दी जा रही है. यहां तक कि नहाने के लिए गर्म पानी के इस्तेमाल की बात कही जा रही है.गर्म पानी पीने और सूरज की रोशनी में रहने से इस वायरस को मारा जा सकता है.|
6 फरवरी 21:इस समय अमेरिका व ब्रिटेन समेत कई विकसित देशों में टीकाकरण अभियान जोरों पर है, तब भी वहां कोरोना संक्रमण रफ्तार में है। भारत में कोरोना वायरस के मामलों में क्यों आ रही तेजी से गिरावट हो रही है | यह भी साफ हो चुका है कि कोरोना के मामलों में गिरावट जांच कम होने के कारण नहीं है। अब विशेषज्ञ यह पता लगाने में जुटे हैं कि क्या भारत में कोरोना महामारी समाप्ति की ओर है? क्या हर्ड इम्युनिटी विकसित हो चुकी है? लोगों में जागरूकता या मौसम है वजह? यहाँ तक कि त्योहार के सीजन यानी कि अक्टूबर और नवंबर में भी भारत में कोरोना के मामले गिरते नजर आए. वहीं, राजधानी दिल्ली से लगी सीमाओं पर भारी संख्या में किसान दो महीने से अधिक समय से प्रदर्शन कर रहे हैं, बावजूद इसके कोरोना संक्रमण में तेजी नहीं पाई गई है. ऐसे में इसकी एक वजह बता पाना मुश्किल हो रहा है फिर भी कुछ वैज्ञानिकों ने इसे लोगों की जागरूकताका परिणाम तो कुछ ने भारत की गर्म और आर्द्र जलवायु को एवं कुछ ने माना कि आम लोगों में कोरोना वायरस से लड़ने की क्षमता ( इम्युनिटी) विकसित हो चुकी है |
7 फरवरी 2021-ब्लूमबर्ग के वैक्सीन कैलकुलेटर के मुताबिक, उसकी गणना बताती है कि कोरोना वायरस के खात्मे में अभी सात साल का समय और लग सकता है।
25 मार्च 2021 को -एसबीआई ने रिपोर्ट जारी कर कहा कि देश में दूसरी लहर अप्रैल महीने के आखिर में अपने चरम पर होगी और यह लहर 100 दिन लंबी चलेगी, जो कि 15 फरवरी से शुरू हो चुकी है।
1अप्रैल 2021-दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल के डायरेक्टर डॉ. राणा अनिल कुमार सिंह ने कहा है कि लोगों की लापरवाही और उदासीनता के चलते देशभर में कोरोना वायरस संक्रमण के मामलों में तेजी से इजाफा हुआ है। दिल्ली में भी इसीलिए ऐसे हालात बने हैं।
3अप्रैल 2021आईआईटी कानपुर के वैज्ञानिकों की इस टीम में शामिल मनिंद्र अग्रवाल ने बताया कि बहुत आशंका है कि देश में मामले 15 से 20 अप्रैल के बीच बहुत बढ़ जाएंगे।
6अप्रैल 2021-केंद्रीय स्वास्थ्य सचिव राजेश भूषण ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि अगले चार हफ्ते हमारे लिए बहुत क्रिटिकल हैं. अभी देश के कई हिस्सों में खतरनाक स्थिति बनी हुई है|
9 अप्रैल 2021-प्रो. मणींद्र अग्रवाल ने कहा कि यूपी में संक्रमितों की संख्या काफी कम है। मॉडल के अनुसार यहां संक्रमण बढ़ने की संभावना भी काफी कम है। महाराष्ट्र में 10 अप्रैल से केस कम होने शुरू होंगे। उन्होंने कहा कि केस शून्य तो नहीं होंगे, लेकिन संख्या काफी कम हो जाएगी।
9 अप्रैल 2021- प्रो. मणींद्र ने तीसरी लहर आने से भी इंकार किया है। तीसरी वेव जब तक शुरू होगी, उस समय तक 70 फीसदी लोगों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ चुकी होगी।
15अप्रैल 2021-केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने कहा कि कोरोना वायरस और कितना खतरनाक होगा और कब तक चलेगा, इसकी कोई गारंटी नहीं है। घर के घर कोविड ग्रस्त हैं और आने वाले 15 दिन या 1 महीने में क्या होगा यह कहना मुश्किल है। उन्होंने कहा कि लोगों को सर्वश्रेष्ठ के लिए सोचना चाहिए, लेकिन सबसे खराब के लिए तैयार रहना चाहिए। इस महामारी से निपटने के लिए दीर्घकालिक प्रबंधों की जरूरत है।
17अप्रैल2021- 12 रिसर्चर्स की टीम में डॉ संदीप शुक्ला भी हैं जिनका कहना है कि ड्राइ सरफेस की तुलना में वायरस पानी में ज्यादा समय तक सक्रिय रह सकता है इसलिए हवा या जमीन से ज्यादा गंगा के बहते पानी से कोरोना संक्रमण फैलने का खतरा है |
17अप्रैल2021-लांसेंट जर्नल में प्रकाशित हुए एक शोध में भारत सरकार की कोरोना टास्क फोर्स के सदस्य वैज्ञानिक भी सम्मिलित रहे हैं इस अध्ययन में भारत को लेकर यह दावा किया गया है | ‘भारत की दूसरी कोरोना लहर के प्रबंधन के लिए जरूरी कदम’शीर्षक वाली इस रिपोर्ट में बताया गया है कि जल्द ही देश में हर दिन औसतन 1750 मरीजों की मौत हो सकती है. रोजाना मौतों की यह संख्या बहुत तेजी से बढ़ते हुए जून के पहले सप्ताह में 2320 तक पहुंच सकती है |
22 अप्रैल 2021 -कानपुर जीएसवीएम मेडिकल कालेज के विशेषज्ञों की रिपोर्ट में पाया गया कि बीते साल जिन गंभीर रोगियों को प्लाज्मा थेरेपी दी गई उन्हें तो नहीं बचाया जा सका। लेकिन जिन्हें निमोनिया की शुरुआत में प्लाज्मा चढ़ाया गया, उनकी हालत गंभीर नहीं हुई और बच गए।
24 अप्रैल 2021 वॉशिंगटन विश्वविद्यालय में इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ मेट्रिक्स एंड इवैल्यूएशन (आईएचएमई) की ओर से कोविड-19 की आगामी स्थिति पर अध्ययन किया गया है। 15 अप्रैल को प्रकाशित इस अध्ययन में कोविड टीकाकरण अभियान के बावजूद दूसरी लहर के लंबे समय तक कहर बरपाने की आशंका जताई गई है। आईएचएमई के विशेषज्ञों ने अध्ययन में चेतावनी दी है कि भारत में आने वाले समय में कोरोना महामारी और विकराल रूप धारण कर सकती है। इस अध्ययन में विशेषज्ञों ने भारत में कोरोना मरीजों की संख्या और कोविड से होने वाली मौतों का आकलन किया है। अध्ययन में दावा किया गया है कि भारत में मई में कोरोना महामारी से प्रतिदिन 5,600 से ज्यादा लोगों की मौत होगी। एक अनुमान के मुताबिक, 12 अप्रैल से 1 अगस्त के बीच 3,29,000 लोगों की कोरोना से मौत हो सकती है। कोरोना से मरने वालों की यह संख्या जुलाई के अंत तक 6,65,000 तक पहुंच सकती है।
24 अप्रैल 2021 - वाशिंगटन यूनिवर्सिटी की रिसर्च में कहा गया है कि भारत में मध्य मई तक कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर शीर्ष पर पहुंच सकती है और रोजाना 5,000 से ज्यादा मौत के आंकड़ों को देखना पड़ सकता है
26 अप्रैल 2021 :आईआईटी के वैज्ञानिकों ने अपने गणितीय मॉडल के आधार पर अनुमान लगाया है कि भारत में महामारी की दूसरी लहर 14 से 18 मई के बीच चरम यानी पीक पर होगी. उस दौरान देश में सक्रिय मरीजों का आंकड़ा बढ़कर 38 से 48 लाख तक पहुंच सकती है. उसके बाद मई के अंत तक मामलों में तेजी से कमी आएगी.नए पूर्वानुमान में समयसीमा और मामलों की संख्या में सुधार किया गया हैआईआईटी कानपुर के वैज्ञानिकों और हैदराबाद के वैज्ञानिकों ने एप्लाइड दस ससेक्टिबल, अनडिटेक्ड, टेस्टड (पॉजिटिव) ऐंड रिमूव एप्रोच (फॉर्मूला) मॉडल के आधार पर ये अनुमान लगाया है कि कोरोना के मामलों में कमी आने से पहले मध्य मई तक उपचाराधीन मरीजों की तादाद में 10 लाख की बढ़ोतरी हो सकती है.पिछले हफ्ते, वैज्ञानिकों ने पूर्वानुमान लगाया था कि महामारी 11 से 15 मई के बीच चरम पर पहुंच सकती है और उपचाराधीन मामलों की संख्या 33-35 लाख तक हो सकती है. वहीं मई के अंत तक इसमें तेजी से कमी आएगी.इस महीने के शुरू में, वैज्ञानिकों ने पूर्वानुमान लगाया था कि देश में 15 अप्रैल तक उपचाराधीन मामलों की संख्या चरम पर होगी, लेकिन यह बात सच साबित नहीं हुई. IIT-कानपुर में कंप्यूटर साइंस एंड टेक्नालजी डिपार्टमेंट के प्रोफेसर मनिंदर अग्रवाल ने कहा, ‘इस बार, मैंने पूर्वानुमान आंकड़े के लिए न्यूनतम और अधिकतम संगणना भी की है
2 मई 2021-को एक समाचारपत्र में प्रकाशित "भारत के वैज्ञानिकों के एक समूह ने कहा है कि भारत में आई कोरोना वायरस की दूसरी लहर की प्रकृति कैसी है, इसको लेकर कोई सटीक भविष्यवाणी नहीं की जा सकती। कोरोना वायरस मामलों की वृद्धि का पूर्वानुमान लगाने के लिए गणितीय मॉडल पर काम कर रहे वैज्ञानिकों के एक समूह ने कहा कि है वे देश में आई विनाशकारी दूसरी लहर के सटीक प्रक्षेपवक्र (ट्रेजेक्ट्री) का अनुमान नहीं लगा सकते है क्योंकि समय के साथ वायरस की गतिशीलता और इसकी संक्रामकता में काफी बदलाव आया है।विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा जारी और आइआइटी कानपुर के प्रोफेसर मणींद्र अग्रवाल, एकीकृत रक्षा कर्मचारी उप प्रमुख माधुरी कानिटकर और आइआइटी हैदराबाद के प्रोफेसर एम. विद्यासागर द्वारा हस्ताक्षरित एक बयान में कहा गया है कि गणितीय मॉडल ने कोरोना वायरस की दूसरी लहर और अप्रैल के तीसरे हफ्ते में इसकी पीक की भविष्यवाणी की थी जिस दौरान लगभग एक लाख मामले रोज सामने आ रहे थे। उन्होंने उन रिपोर्टो को भी खारिज कर दिया है कि सूत्र मॉडल पर काम करने वाले वैज्ञानिकों ने मार्च में दूसरी लहर के बारे में चेतावनी दी थी, लेकिन उनकी चेतावनी को नजरअंदाज कर दिया गया था।"
5-5-2021 को कोरोना की तीसरी लहर के बिषय में सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार के. विजय राघवन ने कहा कि कोरोना की तीसरी लहर भी आएगी। इसे कोई नहीं रोक सकता है। हालांकि, यह कब आएगी और यह कैसे इफेक्ट करेगी, अभी कहना मुश्किल है।
6 मई 2021को प्रकाशित- बेंगलुरु स्थित इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस ने आशंका जताई है कि अगर देश में कोरोना से मरने वालों रफ्तार मौजूदा की ही तरह रही तो 11 जून तक देश में मौतों का आंकड़ा 4,04,000 से अधिक हो सकता है. वहीं यूनिवर्सिटी ऑफ वॉशिंगटन स्थित इंस्टीट्यूट फॉर हेल्थ मीट्रिक्स एंड इवैल्युएशन के मुताबिक जुलाई के आखिर तक कोरोना संक्रमण से मरने वालों की संख्या 10 लाख के पार पहुंच सकती है.वहीं ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत जैसे घनी आबादी वाले देशों में कोरोना संक्रमण के मामलों को लेकर भविष्यवाणी करना आसान नहीं है. भारत में कोरोना टेस्टिंग और सोशल डिस्टेंसिंग को बढ़ाने की जरूरत है. अगले कुछ महीनों में भारत कोरोना संक्रमण से मरने वाले लोगों की संख्या के मामले में दुनिया का नंबर एक देश बन सकता है. ब्राउन यूनिवर्सिटी स्कूल ऑफ हेल्थ के डीन आशीष झा के अनुसार भारत के लिए अगले 4 से 6 हफ्ते बेहद कठिन रहने वाले हैं. उन्होंने कहा कि हमारे सामने चुनौती यह है कि कैसे भी इस लहर को सीमित किया जाए.
7-5-2021 को कोरोना की तीसरी लहर के बिषय में सरकार के प्रधान वैज्ञानिक सलाहकार के. विजय राघवन ने अपना बयान बदला और कहा -" अगर हम मजबूत उपाय करते हैं तो ऐसा संभव है कि देश में अगली लहर कहीं ना आए !"
08 May 2021भारत में कोरोना कहर के बीच में एक राहत की भी खबर है कि इस महीने कोरोना अपने पीक पर तो होगा, मगर जून में बड़ी गिरावट देखने को मिल सकती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सलाह देने वाली एक्सपर्ट्स की एक टीम ने सुझाव दिया है कि आने वाले कुछ दिनों में भारत में कोरोना वायरस अपने पीक पर होगा। मगर पिछले महीने इसी टीम का अनुमान गलत साबित हुआ था और कोरोना का कहर और बढ़ गया। हालांकि, इस टीम का हाल का अनुमान उन वैज्ञानिकों के सुझाव के करीब है, जिनका मानना है कि मई के मध्य तक भारत में कोरोना अपने पीक पर होगा।
13 मई 2021 डॉ. वीके पॉल ने कहा कि ये आरोप गलत है कि सरकार को कोरोना की दूसरी लहर की जानकारी नहीं थी. हम लगातार लोगों को विभिन्न प्लेटफॉर्म्स से चेतावनी दे रहे थे !हम ये भी बता रहे थे कि कोरोना वायरस की दूसरी लहर आएगी. देश में अभी सीरो पॉजिटिविटी 20 फीसदी है. 80 फीसदी आबादी अब भी संक्रमण का शिकार हो सकती है |
13 मई 2021 को हुई एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान डॉ. वीके पॉल से पूछा गया कि क्या वायरस अपने उच्चतम स्तर यानी पीक पर पहुंच गया है. तब उन्होंने कहा कि ऐसा कोई मॉडलिंग सिस्टम नहीं है, जिससे ये अंदाजा लगाया जा सके !कोरोना वायरस के अबूझ व्यवहार की वजह से ये बहुत मुश्किल है. ये बात पूरी दुनिया जानती है.| डॉ. पॉल ने बताया कि कोरोना वायरस का उच्चतम स्तर आना बाकी है. क्योंकि ये वायरस कभी भी अपना रौद्र रूप ले सकता है. बस इतनी सी बात हमें पता है |
14 मई 2021को नीतिआयोग के सदस्य डॉ. वी.के. पॉल से पूछा गया "क्या सरकार दूसरी लहर की तीव्रता से अंजान थी?" इस सवाल के जवाब में डॉ वी.के. पॉल ने कहा कि ऐसा कुछ भी नहीं है. हम इस मंच से बार-बार चेतावनी देते रहे हैं कि कोरोना की दूसरी लहर आएगी |
14 मई 2021को नीतिआयोग के सदस्य डॉ. वी.के. पॉल से पूछा गया कि क्या कोरोना का पीक समाप्त हो गया है ?इसके जवाब में डॉ. वी.के. पॉल ने कहा -महामारी से जल्द निजात मिलने की कोई संभावना नहीं है. सरकार ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि वायरस कहीं नहीं गया है और पीक के आगे भी आने की आशंका है. नीति आयोग के सदस्य डॉ. वी.के. पॉल ने कहा कि कोरोना फिर से खतरनाक रूप में सामने आ सकता है, इसलिए तैयारियों को तेज किया जाना चाहिए.
14 May 2021-विश्व स्वास्थ संगठन के डायरेक्टर जनरल टेड्रोस अधानोम घेब्रेयेसस ने कहा, 'महामारी का दूसरा साल पहले साल के मुकाबले बहुत ही जानलेवा होने की ओर बढ़ रहा है।'इसलिए अमीर देशों से गुजारिश है कि वे फिलहाल बच्चों को वैक्सीन देने के बजाय कोवैक्स के लिए डोज दान करें। इसकी वजह बताते हुए डब्लूएचओ चीफ टेड्रोस अधानोम ने 14 मई को कहा कि कोरोना महामारी का दूसरा साल पहले के मुकाबले बहुत ज्यादा जानलेवा होगा ।
4-6-2021 स्वास्थ्य मंत्रालय की प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान नीति आयोग के सदस्य वीके सारस्वत ने कहा कि भारत के महामारी विशेषज्ञों ने बहुत स्पष्ट संकेत दिए हैं कि कोविड-19 की तीसरी लहर अपरिहार्य है और इसके सितम्बर-अक्टूबर से शुरू होने की आशंका है |
8 -6-2021 को स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से हुए प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान दिल्ली के एम्स अस्पताल के निदेशक डॉ रणदीप गुलेरिया नेकहा -"ऐसा कोई सबूत नहीं है कि भविष्य में COVID-19 की लहर में बच्चे गंभीररूप से संक्रमित होंगे।"(पहले तो कहा गया था कि तीसरी लहर में बच्चों को अधिक खतराहै )
9-6-2021 को भारतीय प्रौद्यौगिकी संस्थान (आईआईटी) के विशेषज्ञों ने कहा - "भारत में भी तीसरी लहर ज्यादा बड़ी नहीं होगी। यह पहली और दूसरी लहर की तुलना में बहुत कमजोर हो सकती है।"
9-6-2021 को चिकित्सा विज्ञान क्षेत्र की प्रतिष्ठित पत्रिका लैनसेट की रिपोर्ट में कहा गया है कि इस बात के अब तक कोई ठोस प्रमाण नहीं मिले हैं, जिसके आधार पर यह कहा जा सके कि कोविड-19 महामारी की तीसरी संभावित लहर में बच्चों के गंभीर रूप से संक्रमित होने की आशंका है। लैंसेट कोविड-19 कमीशन इंडिया टास्क फोर्स ने भारत में 'बाल रोग कोविड-19' के विषय के अध्ययन के लिए देश के प्रमुख बाल रोग विशेषज्ञों के एक विशेषज्ञ समूह के साथ चर्चा करने के बाद यह रिपोर्ट तैयार की है। इसके लिए तमिलनाडु, केरल, महाराष्ट्र और दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र के 10 अस्पतालों में इस दौरान भर्ती हुए 10 साल से कम उम्र के करीब 2600 बच्चों के क्लीनिकल आंकड़ों को एकत्र कर उसका विश्लेषण करने के बाद ही यह रिपोर्ट तैयार की गई है।इस में कहा गया है कि भारत में कोरोना वायरस से संक्रमित बच्चों में उसी प्रकार के लक्षण पाए गए हैं, जैसा कि दुनिया के अन्य देशों में देखने को मिले हैं।
18 जून 2021-न्यूज एजेंसी रॉयटर्स की ओर से कराए गए सर्वे में विशेषज्ञों ने यह भी कहा है कि भारत तीसरी लहर का मुकाबला दूसरी लहर से बेहतर तरीके से करेगा। उन्होंने कहा है कि कोरोना महामारी कम से कम एक साल और जन स्वास्थ्य के लिए चिंता की वजह बना रहेगा। दुनियाभर के 40 हेल्थकेयर स्पेशलिस्ट, डॉक्टर, साइंटिस्ट, वायरोलॉजिस्ट और महामारी विशेषज्ञों को इस सर्वे में शामिल किया गया था। 3-17 जून के बीच कराए गए इस सर्वे में जिन विशेषज्ञों ने माना कि तीसरी लहर आएगी, 85 फीसदी या 24 में से 21 ने कहा कि तीसरी लहर अक्टूबर तक आएगी। तीन अन्य ने इसके अगस्त में आने की भविष्यवाणी की तो 12 ने सितंबरमें शुरुआत की बात कही है। अन्य ने कहा कि तीसरी लहर नवंबर से फरवरी के बीच आ सकती है।
19 जून 2021-अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) के निदेशक रणदीपगुलेरिया ने चेतावनी दी कि यदि कोविड-उपयुक्त व्यवहार का पालन नहीं किया गया और भीड़-भाड़ नहीं रोकी गई तो अगले छह से आठ सप्ताह में वायरल संक्रमण की अगली लहर देश में दस्तक दे सकती है।
23 जून 2021- कोरोना संक्रमण की तीसरी लहर को लेकर आईआईटी कानपुर के दो वैज्ञानिकों के दावे अलग-अलग हैं। सर गणितीय मॉडल के आधार पर प्रो. राकेश रंजन दावा कर रहे हैं कि सितंबर-अक्तूबर में तीसरी लहर का पीक होगा और वह काफी खतरनाक साबित होगी, जबकि संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक पद्मश्री प्रो. मणींद्र अग्रवाल सूत्र गणितीय मॉडल के आधार पर तीसरी लहर को दूसरी लहर की अपेक्षा कमजोर मान रहे हैं।
27जून 2021-केंद्र सरकार के कोविड-19 वर्किंग ग्रुप के प्रमुख एनके अरोड़ा ने रविवार को कहा कि देश में कोरोना की तीसरी लहर दिसंबर तक टल सकती है। डॉ. अरोड़ा ने कहा कि ICMR की स्टडी से पता चला है कि तीसरी लहर देश में देरी से आएगी।
28 जून 2021- कोरोना टास्क फोर्स के सदस्य डॉ. वीके पॉल ने कहा है कि महामारी की अगली लहर का निश्चित समय नहीं बताया जा सकता. उन्होंने कहा कि किसी भी अगली लहर का कोई भी समय निश्चित करना तर्कसंगत नहीं होगा क्योंकि कोरोना का व्यवहार अनिश्चित है |
2 जुलाई 2021 -एसबीआई रिसर्च द्वारा प्रकाशित 'कोविड -19: द रेस टू फिनिशिंग लाइन' शीर्षक वाली रिपोर्ट में कहा गया है कि कोरोना की तीसरी लहर अगस्त में आ सकती है और सितंबर में पीक होगा |
3 जुलाई 2021को IIT कानपुर की स्टडी में दावा- कोरोना की तीसरी लहर कमजोर रहेगी बशर्ते कोई नया म्यूटेंट न आए !दूसरी बात अगस्त का महीना काफी अहम है | सूत्र ऐनालिसिस करने वाले वैज्ञानिकों की टीम में शामिल आईआईटी कानपुर के प्रफेसर मनिंदर अग्रवाल ने बताया कि उन्होंने कोरोना की तीसरी लहर को लेकर तीन संभावित स्थितियों की भविष्यवाणी की है। 1. तीसरी लहर छोटी हो सकती है 2.तीसरी लहर कमजोर हो सकती है।3.वायरस का कोई तेजी से फैलने वाला म्यूटेंट आ जाता है तो तीसरी लहर पहली वाली लहर के जैसे ही होगी। प्रफेसर अग्रवाल ने कहा, 'जो सबसे आशावादी अनुमान है, उसके मुताबिक अगस्त तक जीवन सामान्य ढर्रे पर आ जाएगा बशर्ते कि कोई नया म्यूटेंट न आए। दूसरा अनुमान यह है कि टीकाकरण 20 प्रतिशत कम प्रभावी होगा। तीसरी स्थिति निराशाजनक है जिसके मुताबिक अगस्त में एक नया म्यूटेंट सामने आ सकता है जो 25 प्रतिशत ज्यादा संक्रामक होगा। 'सूत्र मॉडल के मुताबिक, अगर कोरोना वायरस का कोई ऐसा म्यूटेंट आ जाए जो बड़े पैमाने पर वैक्सीन को भी चकमा दे दे या जो ठीक हो चुके लोगों की इम्युनिटी को भी भेद सके तो ऊपर की तीनों संभावित परिस्थितियों का अनुमान अमान्य हो जाएगा।अग्रवाल द्वारा साझा किए गए ग्राफ के अनुसार तीसरी लहर अक्टूबर और नवंबर के बीच अपने चरम पर पहुँच सकती है।
विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग ने पिछले साल गणितीय मॉडल का उपयोग कर कोरोना वायरस संक्रमण के मामलों में वृद्धि का पूर्वानुमान लगाने के लिए समिति का गठन किया था। समिति में आईआईटी कानपुर के वैज्ञानिक अग्रवाल के अलावा आईआईटी हैदराबाद के वैज्ञानिक एम विद्यासागर और एकीकृत रक्षा स्टाफ उप प्रमुख (मेडिकल) लेफ्टिनेंट जनरल माधुरी कानितकर भी हैं। इस समिति को कोविड की दूसरी लहर की सटीक प्रकृति का अनुमान नहीं लगाने के लिए भी आलोचना का सामना करना पड़ा था।ये वही वैज्ञानिक मनींद्र अग्रवाल हैं जिन्होंने अप्रैल की शुरुआत में गणितीय मॉडल के माध्यम से अनुमान लगाया गया था कि देश में 15 अप्रैल तक संक्रमण की दर अपने चरम पर पहुंच जाएगी, लेकिन यह सत्य साबित नहीं हुई। अग्रवाल ने कहा कि मौजूदा चरण के लिए हमारे मॉडल के मापदंड लगातार बदल रहे हैं, इसलिए एकदम सटीक आकलन मुश्किल है।आईआईटी के विशेषज्ञों का मानना है कि तीसरी लहर दूसरी लहर से कमजोर होगी. एक्सपर्ट्स ने कहा कि तीसरी लहर कब आएगी इसको लेकर ठोस भविष्यवाणी नहीं की जा सकती.
वैज्ञानिक मनींद्र अग्रवाल ने बताया कि महामारी का पूर्वानुमान लगाने के लिए मॉडल में तीन मापदंडों का इस्तेमाल किया गया है। पहला बीटा या संपर्क, जिसकी गणना इस आधार पर की जाती है कि एक व्यक्ति ने कितने अन्य को संक्त्रमित किया। उन्होंने बताया कि दूसरा मापदंड है कि महामारी के प्रभाव क्षेत्र में कितनी आबादी आई, तीसरा मापदंड पुष्टि हुए और गैर पुष्टि हुए मामलों का संभावित अनुपात है।
विशेषबात : आईआईटी कानपुर के द्वारा की गई इस रिसर्च का मतलब वह जनता क्या समझे जिसे मदद पहुँचाने के लिए ऐसे रिसर्च किए जाते हैं और यदि उस जनता को कुछ समझ में ही नहीं आया तो ऐसे रिसर्च का मतलब क्या है और इस संपूर्ण वक्तव्य में कुछ निराधार तीर तुक्के जरूर दिखाई पड़ रहे हैं किंतु भविष्यवाणी जैसी कोई बात तो दूर दूर तक नहीं है |
16 जुलाई 2021-दुनिया कोरोना महामारी की तीसरी लहर को लेकर सहमी हुई है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूूएचओ) के प्रमुख टेड्रॉस ए. गेब्रेयेसिस ने कहा है कि कोरोना की तीसरी लहर अभी शुरुआती दौर में हैं। दुनियाभर में डेल्टा वैरिएंट से संक्रमित मरीजों की संख्या अभी गिनती में हैं। अभी इसे बेकाबू होनेसे रोकना संभव है, हमेशा की तरह इस बार भी अगर लापरवाही हुई तो पहले से भी भयावह नतीजे सामने होंगे।
2 अगस्त 2021-हैदराबाद और कानपुर में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) मेंमथुकुमल्ली विद्यासागर और मनिंद्र अग्रवाल के नेतृत्व में किए गए शोध में यह दावा किया गया है कि अक्टूबर में तीसरी लहर का पीक देखने को मिल सकता है. ब्लूमबर्ग के अनुसार विद्यासागर ने एक ईमेल में बताया कि केरल और महाराष्ट्र जैसे राज्यों के चलते स्थिति फिर गंभीर हो सकती है
30-8-2021 - आईआईटी-कानपुर के वैज्ञानिक मणिंद्रअग्रवाल हैंजोउस तीन सदस्यीय विशेषज्ञ दल का हिस्सा हैं जिसे संक्रमण में बढ़ोतरी का अनुमान लगाने का कार्य दिया गया है।उन्होंने कहा -"भारत में कोविड-19 की तीसरी लहर अक्टूबर और नवंबर के बीच चरम पर हो सकती है। हालांकि इसकी तीव्रता दूसरी लहर की तुलना में काफी कम होगी।अगर तीसरी लहर आती है तो देश में प्रतिदिन एक लाख मामले सामने आएंगे। " ज्ञात रहे कि पिछले महीने, मॉडल के मुताबिक बताया गया था कि तीसरी लहर अक्टूबर और नवंबर के बीच में चरम पर होगी और रोजाना मामले प्रति दिन डेढ़ लाख से दो लाख के बीच होंगे !"
विशेष बात :विद्यासागर की टीम के अनुमान गलत साबित हुए. उनका अनुमान था कि जून महीने के मध्य तक कोविड वेव पीक पर होगी उन्होंने तब ट्विटर पर लिखा था कि ऐसा गलत पैरामीटर्स के चलते हुआ | इसी साल मई में IIT हैदराबाद के एक प्रोफेसर विद्यासागर ने कहा था कि भारत के कोरोनावायरस का प्रकोप मैथेमेटिकल मॉडल के आधार पर कुछ दिनों में पीक पर हो सकता है. ब्लूमबर्ग के मुताबिक, उस वक्त विद्यासागर ने बताया था ‘हमारा मानना है कि कुछ दिनों के भीतर पीक आ जाएगा. मौजूदा अनुमानों के अनुसार जून के अंत तक प्रतिदिन 20,000 मामले दर्ज किए जा सकते हैं.’उन्होंने ने ही फिर भविष्यवाणी की है -
14 सितंबर 2021 -कोरोना की महामारी फिलहाल अभी खत्म होने नहीं जा रही है। यह कम से कम 6 और महीने रहेगी। पूरा दारोमदार वैक्सीनेशन पर है। महामारी से तभी मुक्ति मिलेगी जब 90 से 95 फीसदी लोगों का वैक्सीनेशन हो जाएगा। अभी यह दूर की कौड़ी है। ब्लूमबर्ग ने अपनी रिपोर्ट में एक्सपर्ट्स के हवाले से कोरोना महामारी के 6 महीने के आउटलुक पर यह बात कही है। उधर, बीएचयू के एक साइंटिस्ट ने दावा किया है कि अगले तीन महीने में कोरोना की तीसरी लहर देश में दस्तक दे देगी।
23 सितंबर 2021 -कैसी हो सकती हैं भविष्य में कोरोना की लहरें?विश्व स्वास्थ्य संगठन और वैक्सीन एलायंस GAVI का आकलन है कि आने वाले कई वर्षों तक कोरोना वायरस कहींजाने वाला नहीं है. कम या ज्यादा प्रभावी रूप में ये अलग-अलग देशों और उनके अलग-अलग इलाकों में उभरता रहेगा. इससे निपटने के उपायों के साथ-साथ लोगों को इसके साथ जीने की आदत डालनी होगी. WHO की चीफ साइंटिस्ट डॉ. सौम्या स्वामीनाथन कहती हैं- 'हम ऐसे फेज की ओर बढ़ रहे हैं जिसे endemicity कहा जा सकता हैटॉप भारतीय वायरालॉजिस्ट डॉ. गगनदीप कांग कहती हैं कि तीसरी लहर अगर आती है तो दूसरी लहर जितनी मजबूत होगी ये अभी कहना उचित नहीं है. उनका कहना है कि तीसरीलहर अगर आती है तो दूसरी लहर जितनी मजबूत होगी ये अभी कहना उचित नहीं है.
4अक्टूबर2021 - आईसीएमआर के बलराम भार्गव, समीरन पांडा और संदीप मंडल और इंपीरियल कॉलेज लंदन से निलहर अगर आती है तो दूसरी लहर जितनी मजबूत होगी ये अभी कहना उचित नहीं है. मालन अरिनामिनपथी द्वारा गणितीय मॉडल ‘कोविड-19 महामारी के दौरान और भारत के अंदर जिम्मेदार यात्रा’ पर आधारित यह ‘ओपिनियन पीस’ (परामर्श) ‘जर्नल ऑफ ट्रैवल मेडिसिन’ में प्रकाशित किया गया है.-"कोरोना वायरस संक्रमण और कोरोना की तीसरी लहर का खतरा मंडरा रहा है. यदि किसी कारण से भीड़ होती है तो कुछ राज्यों में कोरोना की तीसरी लहर की स्थिति भयावह हो सकती है. विशेषज्ञों ने कहा है कि छुट्टियों की एक अवधि संभावित तीसरी लहर की आशंका को 103 प्रतिशत तक बढ़ा सकती है और उस लहर में संक्रमण के मामले 43 प्रतिशत तक बढ़ सकते हैं
20 अप्रैल 2020,फ्रांस में गैर पीने योग्य पानी में कोरोना वायरस मिला है|
नए कोरोना वायरस के 'माइनसक्यूल' सूक्ष्म निशान पाए गए !अमेरिका में एक
बाघ में कोरोना पाया गया. वहीं कई जगहों में कुत्तों में भी कोरोना के
निशान मिले|
को तंजानिया
में बकरी और पपीता फल भी कोरोना पॉजिटिव, राष्ट्रपति ने कहा-टेस्ट किट सही
नहींकोरोना वायरस के ये सैंपल बकरी, पॉपॉ फल और भेड़ से लिए गए थे। सैंपल
को
जांच के लिए तंजानिया की लैब में भेजा गया, जहां बकरी और पॉपॉ फल कोरोना
पॉजिटिव निकले।
7 मई 2020 को कुत्तों और बल्लियों के बाद, अब ये जानवर भी पाया गया कोरोना वायरस पॉज़ीटिव
कुत्ते, बिल्ली, बाघ और शेर के कोरोना वायरस से शिकार होने के बाद अब
ऊदबिलाव भी इस बीमारी से संक्रमित होने वाले जानवरों की लिस्ट में
शामिल हो गया है। बीबीसी की रिपोर्ट के अनुसार, नीदरलैंड्स के एक फर फार्म
में दो ऊदबिलाव नए कोरोना वायरस यानी कोविड-19 से संक्रमित पाए गए।
20 जून 2020 को कोरोना की दूसरी लहर की चेतावनी, इंसानों में काबू के बावजूद जानवर संक्रमण फैला सकते हैं|
20-4-2020 को - नदी के पानी में कोरोना के लक्षण !पेरिस की सीन नदी और
अवर्क नहर के पानी में कोरोना कोरोना वायरस का संक्रमण पाया गया है
!
17-7-2020 कोरोना वायरस: स्पेन में एक लाख ऊदबिलाव को मारने का आदेश !
उत्तर-पूर्वी स्पेन के एक फ़ार्म में कई ऊदबिलाव कोरोना वायरस संक्रमित पाए गए हैं जिसके बाद यह फ़ैसला किया गया है |
कोरोना के स्वरूप बदलने के बिषय में -
26 अप्रैल 2020 -यदि बदला कोरोना वायरस का स्वरूप तो बढ़ सकती है समस्या, 6 माह तक रखनी
होगी नजर !भविष्य में यदि कोरोना वायरस का
स्वरूप बदला तो ये पूरी दुनिया के लिए बड़ी समस्या बन सकता है। यदि ऐसा
नहीं हुआ तो इसकी वैक्सीन को बनाने में कम समय लगेगा।
मरीजों पर ढीली पड़ रही है कोरोना की पकड़?
कोरोना
को लेकर इटली के एक सायंटिस्ट ने दावा किया था कि ताजा म्यूटेशन के बाद
कोरोना पहले जैसा खतरनाक नहीं रह गया है और इसकी पकड़ और गहनता में कमजोरी
देखने को मिल रही है।
7 मई 2020 को कोरोना स्वरूप बदल रहा है | रूप बदलने पर अगर वायरस खतरनाक हो जाए तो नई बनाई गई वैक्सीन उस पर असर
नहीं करेगी.म्यूटेशन (बदलाव) होना वैक्सीन की प्रक्रिया पर असर डाल सकता है.
भारत में रूप बदल रहा है कोरोना, वैक्सीन की खोज को लग सकता है पलीता!
16 अप्रैल 2020 ताइवान के नेशनल चेंग्गुआ यूनिवर्सिटी ऑफ एजुकेशन के वी-लुंग वांग और
ऑस्ट्रेलिया में मर्डोक विश्वविद्यालय के सहयोगियों ने किया है. शोधकर्ताओं
का कहना है कि कोरोना वायरस के रूप बदलने पर यह पहली रिपोर्ट है जिससे
वैक्सीन की खोज पर खतरा मंडरा सकता है. . स्वरूप बदलने के
कारण संभव है कि इस वायरस की वर्तमान में बन रही वैक्सीन बेकार हो जाए |
11अगस्त
2020 रूस के राष्ट्रपति पुतिन की घोषणा- हमने वैक्सीन बनाकर रजिस्टर्ड
कराई, पहला डोज अपनी बेटी को लगवाया; नाम दिया 'स्पुतनिक वी'
वैक्सीन :14 अगस्त 2020 चीन का दावा, कहा- पहले हमने बनाई कोविड-19 की वैक्सीन, अप्रैल में ही हुआ था ट्रायल
कोरोना अध्ययन
22 अप्रैल 2020 कोरोना, सूखा और तूफान से अमेरिका खस्ताहाल, ट्रंप पर बड़ी आफत
14 मई 2020- कोरोना वायरस: इस बार मई के महीने में भी गर्मी नहीं, क्या हैं कारण
क्या
ये जलवायु परिवर्तन है?सेंटर ऑफ़ साइंस ऐंड एनवायर्नमेन्ट में जलवायु
मामलों पर नज़र रखने वाले तरुण गोपालकृष्णण ने बीबीसी को बताया कि केवल
उत्तर भारत या पूर्वी भारत में ही नहीं बल्कि दक्षिण भारत में मौसम बीते
सालों की अपेक्षा इस साल अलग ही है.
बारिश-बाढ़ और भूकंप, प्रकृति के कहर से चीन का बुरा हाल !चीन में भारी बारिश के बाद आई बाढ़ से लाखों लोग प्रभावित
हैं। वहीं, रविवार को तंगशान में आए भूकंप ने लोगों को पिछले हादसे की याद
दिलाकर और डरा दिया। रिक्टर स्केल पर इस भूकंप की तीव्रता 5.1 मापी गई है।
22
जुलाई 21 -एक साथ 40 देशों में मौसम का प्रचंड रूप देखकर वैज्ञानिकों को
जलवायु परिवर्तन का डर सताने लगा है | कोरोना
वायरस महामारी के बीच मौसम की भी नाराजगी लोगों को झेलनी पड़ रही है.
महामारी तो शायद वैक्सीन की वजह से खत्म हो जाए लेकिन मौसम वैज्ञानिक अब
जलवायु परिवर्तन को लेकर परेशान हैं. एशिया, यूरोप, अफ्रीका, अमेरिका, चीन
और रूस तक मौसम का प्रचंड रूप देखा जा सकता है. जो लोग यह मान रहे थे कि जलवायु परिवर्तन भविष्य का खतरा है, वो अब दिन पर दिन बदलते मौसम को देखकर
हैरान हैं. आर्कटिक तक क्लाइमेट चेंज हावी हो चुका है. यहां पर पोलर बीयर
को बर्फ खत्म होने के बाद बाहर आते हुए देखा गया है
दुनिया के कई देशों में पिछले कुछ हफ्तों में मौसम के बदलते मिजाज को
देखा गया है. यूरोप से लेकर एशिया और नॉर्थ अमेरिका से लेकर रूस तक कहीं
बाढ़ है, कहीं गर्म हवाएँ हैं तो कहीं पर सूखे की स्थिति है. यूरोप के 40 देश,
नॉर्थ अमेरिका, एशिया और अफ्रीका में कहीं बाढ़, कहीं तूफान, कहीं हीट वेव,
कहीं जंगलों में लगी आग तो कहीं सूखे की स्थिति है. रूस, चीन, अमेरिका और न्यूजीलैंड में लोग गर्मी, बाढ़ और जंगलों में लगी
आग से परेशान हैं |पश्चिमी यूरोप में भारी बारिश हो रही है कहा जा रहा है कि एक सदी में पहली बार ऐसी बाढ़ आई है. बेल्जियम, जर्मनी,
लक्जमबर्ग और नीदरलैंड्स में 14और15जुलाई को इतनी अधिक बारिश हो गई है जितनी दो
माह में होती है. नॉर्थ यूरोप
में गर्मी से हालात बिगड़ते जा रहे हैं. फिनलैंड जहां गर्मी कभी नहीं
पड़ती, वहां पर लोग पसीना पोंछने को मजबूर हो रहे हैं. देश के कई हिस्सों
में तापमान 25 डिग्री सेल्सियस से भी ज्यादा हो गया है| रूस में साइबेरिया का तापमान इतना बढ़ गया है कि 216 ये ज्यादा
जंगलों में आग लगी हुई है | वहीं पश्चिमी-उत्तरी
अमेरिका में अत्यधिक गर्मी ने हालात खराब कर दिए हैं | कैलिफोर्निया, उटा
और पश्चिमी कनाडा में सर्वाधिक तापमान रिकॉर्ड किया गया
है. कैलिफोर्निया की डेथ वैली में पिछले दिनों ट्रेम्प्रेचर 54.4 डिग्री
सेंटीग्रेट तक पहुंच गया था. यह दूसरा मौका था जब इस हिस्से में इस कदर
तापमान रिकॉर्ड किया गया. इसी तरह से एशिया के कई देशों जैसे कि चीन, भारत
और इंडोनेशिया के कुछ हिस्सों में बाढ़ की स्थिति है तो कुछ हिस्सों को
अभी तक बारिश का इंतजार है |