मौसम पूर्वानुमान आज से दस हजार वर्ष पहले तक का जानने की विधि !
समयविज्ञान अत्यंत प्राचीन ऐसी वैज्ञानिकप्रक्रिया है जिसमें गणितीय सूत्रों के द्वारा लाखों वर्ष पहले का भी मौसम संबंधी पूर्वनुमान लगाया जा सकता है | बिल्कुल उसीतरह जैसे गणित के द्वारा सूर्य और चंद्र ग्रहणों के विषय में हजारों वर्ष पहले लगा लिया जाता है जो एक एक सेकेंड सही घटित होता है |
गणित के सूत्रों के द्वारा लगाए गए पूर्वानुमान की सबसे बड़ी विशेषता यह होती है कि इसमें किसी उपग्रह या राडार की मदद नहीं ली जाती है इसीलिए जब उपग्रहों राडारों आदि आधुनिक विज्ञान का जन्म ही नहीं हुआ था तब भी समय विज्ञान के द्वारा सफलता पूर्वक मौसम पूर्वानुमान लगा लिया जाया करता था और वह सही एवं सटीक घटित होते देखा जाता था | आज भी वो पद्धति उतनी ही प्रासंगिक बनी हुई है |
प्रकृति समय के द्वारा अनुशासित है | समय जब जैसा आता है ब्रह्मांड में तब तैसी घटनाएँ घटित होने लगती हैं सूर्य चंद्र समेत समस्त ग्रहनक्षत्र उसी समय के अनुशासन से अनुशासित हैं धरती की गहराई से लेकर आकाश की उँचाई तक सब कुछ समय से ही अनुशासित है |
समय के अनुशासन का पालन प्रकृति अत्यंत दृढ़ता से किया करती है यही कारण है कि सूर्य चंद्र आदि ग्रह अपने अपने निश्चित समय से उदित या अस्त हुआ करते हैं | सर्दी गर्मी वर्षा आदि प्रमुख ऋतुएँ प्रतिवर्ष अपने अपने समय से आती और और समय से जाती रहती हैं | उसी निर्धारित समय पर सर्दी गर्मी वर्षा आदि होते देखी जाती है |
कुलमिलाकर प्रकृति पर समय का ही अनुशासन चला करता है इसीलिए सबकुछ निश्चित समय पर एक ही प्रकार से घटित होता है | अमावस्या पूर्णिमा जैसी तिथियाँ निश्चित समय पर आती जाती हैं | सूर्यचंद्र ग्रहण जैसी घटनाएँ अमावस्या और पूर्णिमा में ही घटित होती हैं | यद्यपि अमावस्या और पूर्णिमा जैसी घटनाएँ तो प्रत्येक महीने में ही घटित होती हैं किंतु सूर्यचंद्र ग्रहण जैसी घटनाएँ प्रत्येक अमावस्या पूर्णिमा में नहीं घटित होती हैं अर्थात किसी में होती हैं और किसी में नहीं होती हैं |
ऐसी जटिल घटनाओं का भी गणितीय सूत्रों के द्वारा न केवल समझने में सफलता पा ली गई अपितु ऐसी घटनाओं के विषय में हजारों वर्ष पहले लगाया गया एक एक सेकेंड सही घटित होता है |
जिस प्रकार से अमावस्या और पूर्णिमा जैसी घटनाएँ प्रत्येक महीने में घटित होने के बाद भी सूर्यचंद्र ग्रहण जैसी घटनाएँ तो प्रत्येक अमावस्या पूर्णिमा में नहीं घटित होती हैं उसी प्रकार से प्रकृति से संबंधित सभी प्रकार की घटनाओं में होते देखा जाता है | सर्दी गर्मी वर्षा आदि ऋतुएँ प्रत्येक वर्ष में आती है और अपने अपने समय तक रहकर चली जाती हैं किंतु अपनी अपनी ऋतुओं में भी इनका प्रभाव एक जैसा नहीं रहता | वर्षा ऋतु में किसी वर्ष बहुत अधिक वर्षा होती है किसी वर्ष बहुत कम होती है या सूखा पड़ जाता है | ऐसे ही वर्षा ऋतु के प्रत्येक दिन में एक जैसी वर्षा नहीं होती है किसी कम किसी दिन अधिक तो किसी दिन बिल्कुल नहीं होती है | ऐसी परिस्थिति प्रत्येक ऋतु को आधुनिक के प्रभाव में होने वाली न्यूनाधिकता के रूप में देखी जाती है |
ऐसी घटनाएँ आधुनिक वैज्ञानिकों के उपग्रहों रडारों पर नहीं दिखाई पड़तीं इसलिए इनके घटित होने का कारण जलवायु परिवर्तन बताकर इनके विषय में हाथ खड़ा कर देना उनकी मजबूरी हो सकती है किंतु गणितीय सूत्रों से यदि ग्रहण जैसी घटनाओं का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है तो ऋतुओं में देखे जाने वाले न्यूनाधिक प्रभाव के विषय नहीं लगाया जा सकता है | आखिर ग्रहण जैसी घटनाएँ भी तो प्रत्येक अमावस्या पूर्णिमा में नहीं घटित होती हैं |
गणितीय सूत्रों की एक विशेषता और है गणित के जो सूत्र प्रकृति की जिन घटनाओं में एक बार सही सटीक बैठ जाते हैं उनसे संबंधित पूर्वानुमान उन्हीं गणितीय सूत्रों से यदि सात दिन पहले का सही निकल सकता है तो सात महीने पहले का भी सही निकलेगा और सात वर्ष सकता हजार वर्ष सात लाख वर्ष आदि पहले के विषय में लगाया गया पूर्वानुमान सही निकलेगा | एक बार सूत्र सही फिट होने की बात है |
विशेष बात यह है कि हमारे द्वारा प्रत्येक महीने प्रकाशित किए जाने वाले मौसम संबंधी पूर्वानुमानों का परीक्षण आप ध्यान से किया करें और यह विश्वास रखकर चलें कि महीने का मौसम पूर्वानुमान जितने प्रतिशत सच निकलेगा | उतने ही प्रतिशत सात करोड़ और सात अरब वर्ष पहले के विषय में हमारे द्वारा लगाया गया मौसम संबंधी पूर्वानुमान भी सच निकलेगा | गणितीय सूत्रों के आधार पर लगाए गए पूर्वानुमानों की यह विशेषता है |
आधुनिक वैज्ञानिकों की दृष्टि से ऐसी कभी होने और कभी न होने वाली प्राकृतिक घटनाओं के लिए जलवायु परिवर्तन को जिम्मेदार ठहरा दिया जाता है | जलवायु परिवर्तन कहने का मतलब होता हैइस घटना के विषय में हमें कुछ भी पता नहीं है | इसलिए इसके विषय में हमसे कुछ मत पूछना पूछोगे तो हम कोई काल्पनिक कहानी सुना देंगे जिसका लेना देना नहीं होगा |
आधुनिक वैज्ञानिक संभवतः प्रकृति से ऐसी अपेक्षा करते हैं कि जिस प्रकार से सूर्य निश्चित समय से आता है और निश्चित समय से चला जाता है एक मिनट सेकेंड भी आगे पीछे नहीं होता उसी प्रकार से मानसून अपनी निर्धारित तारीख पर आवे और अपनी तारीख पर चला जाए | जिस प्रकार से सूर्य की रोशनी सूर्य के उदित होने के बाद क्रमशः बढ़ती और क्रमशः घटते घटते समाप्त हो जाती है | वैसे ही मानसून अपनी तारीख पर आवे इसके बाद क्रमिक रूप से बढ़ता जाए और अपने शिखर पर पहुँचाने के बाद क्रमशः कम होना शुरू हो जाए और अपनी निश्चित तारीख पर समाप्त हो जाए |
इसी प्रकार जैसे सूर्य का प्रकाश गर्मी आदि बड़े भूभाग पर एक जैसी पड़ती है उसी प्रकार से बादल सभी जगह जा जाकर एक जैसी वर्षात नाप तौल कर करें | ऐसे ही भूकंप आँधी तूफ़ान जैसी घटनाओं के लिए भी कोई दिन निश्चित होना चाहिए उस दिन आवें और अपनी निर्धारित सीमा में आकर समाप्त हो जाएँ | इनका जिस किसी भी दिन जहाँ कहीं भी चले आना बंद हो | यदि ऐसा नहीं होता है तो हम ऐसी घटनाओं के घटित होने का कारण जलवायु परिवर्तन के नाम का हुल्लड़ मचा मचा कर प्रकृति को बदनाम करते रहेंगे |
इस प्रकार से आधुनिक वैज्ञानिकों की इन शर्तों का पालन जिस दिन प्रकृति करने लगेगी उसी दिन इनके द्वारा लगाए गए मौसम संबंधी पूर्वानुमान सही निकल सकते हैं | इसके अतिरिक्त इनसे मौसम का पूर्वानुमान लगाने के लिए कोई आशा की ही नहीं जानी चाहिए | मौसम का पूर्वानुमान लगाने के लिए प्राकृतिक घटनाओं से संबंधित जब तक कोई विज्ञान विकसित ही नहीं किया जा सका है तब तक ऐसे लोगों बताएँगे भी किस आधार पर | अलनीनों लानिना जैसी मन गढ़ंत कहानियों का संबंध घटनाओं के साथ कभी देखा ही नहीं गया | इसके आधार पर बताई गई हर बात उलटी ही निकलती है |
कुल मिलाकर वैज्ञानिक अनुसंधानों के नाम पर केवल उपग्रहों रडारों पर ही सारा दारोमदार है इनके अतिरिक्त और क्या है जिसके आधार पर प्राकृतिक घटनाओं के विषय में अनुसंधान किया जाए | केवल वही उपग्रहों रडारों से जो जो प्राकृतिक घटनाएँ घटित होते दिखेंगी मौसम भविष्यवाणी के नाम पर वही बोल दी जाएँगी यही तो मौसम विज्ञान है | भूकंप और महामारी जैसी घटनाएँ उपग्रहों रडारों सेदिखाई ही नहीं पड़ती हैं इसलिए वैज्ञानिक लोग इस विषय में कुछ बता भी कैसे सकते हैं और जो तीर तुक्के लाए जाएँगे वे सही हो भी जाएँ तो उनसे लाभ क्या जब उनका कोई वैज्ञानिक आधार ही नहीं होता है |
मौसम संबंधी वातावरण बिगड़ने से महामारियाँ पैदा होती हैं यही कारण है मौसम संबंधी घटनाओं को न समझ पाने वाले आधुनिकवैज्ञानिकों को कोरोना महामारी समझ में ही नहीं आई ऐसा वे खुले तौर पर स्वीकार करते रहे !वे साफ साफ कह चुके कि जलवायु परिवर्तन को समझना हमारे बैश की बात नहीं है इसके बाद भी सरकारें उनसे ऐसे विषयों पर अनुसंधान करने की अपेक्षा रखती हैं ये सरकारों का दिखावा नहीं तो और क्या है ?
गाँवों में बूढ़े और कमजोर बैलों को बेचने के लिए किसान लोग बैल मंडी में ले जाते हैं किंतु वे बैल जोतने लायक रह नहीं जाते हैं शरीर कमजोर हो चुके होते हैं | इसलिए उनके ग्राहक नहीं होते हैं | ऐसे बैलों के ग्राहक खोजकर दलाल लोग लाते हैं | उन दलालों के हाथ में एक ऐसी छड़ होती है जिसके अगले भाग पर एक कील लगी होती है | ग्राहक बैलों को जब देख रहा होता है उस समय दलाल पीछे से वह कील बैल को चुभा देते हैं तो बैल उछल पड़ता है | इससे लगता है कि बैल अभी बूढ़ा और कमजोर नहीं हैं इसमें अभी भी करेंट है | इस प्रकार से धोखा देकर दलाल लोग बैल बेचवा देते हैं |
इसी प्रकार की भूमिका प्रकृति के विषय में वैज्ञानिक हमेंशा से निभाते रहे हैं यही कारण है कि157 वर्ष पहले कलकत्ते में आए जिस हिंसक चक्रवात को समझने के लिए 145 वर्ष पहले जिस भारतीय मौसम विज्ञान विभाग की स्थापना की गई थी लगभग डेढ़ सौ वर्ष बीत जाने के बाद सन 2018 के अप्रेल मई में बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश आदि में भीषण हिंसक आँधी तूफ़ान आए हमारे मौसम वैज्ञानिक न उनके विषय में कोई पूर्वानुमान बता पाए और न ही उनके घटित होने का कारण बता पाए | ये विज्ञान जगत के अनुसंधानों की डेढ़ सौ वर्षों की उपलब्धि है | इसके बाद भी सरकारें ऐसे लोगों से कोरोना जैसी महामारी के विषय में खोज करने का दबाव दाल रही हैं उन्हें क्या वे मौसम की तरह ही महामारी के विषय में भी एक और कहानी गढ़कर सुना देंगे |ऐसे अनुसंधानों और अनुसंधान कर्ताओं पर जनता के द्वारा टैक्स रूप में दिया गया पैसा सरकारें खर्च किया करती हैं उनसे निकलता क्या है ये महामारी के समय में दुनियां ने देखा है | अनुसंधानों के नाम पर जनता से कितना झूठ बोलै जाता है ये महामारी के समय जनता ने सुना है अनुभव किया है | उनके द्वारा महामारी के विषय में कही गई प्रत्येक बात झूठ निकली है प्रत्येक अनुमान गलत निकला है इसके बाद भी विज्ञान ने नाम पर सरकारों के दबाव से जनता उनका और उनके परिवारों का आर्थिक बोझ अपने कंधों पर ढोने के लिए मजबूर है |
संस्कृत प्रकृति भी समय की गति इतनी अधिक
गणितीय सूत्रों की स्थिति बिजली के तारों की तरह है
नव निर्मित किसी किसी घर में बिजली की वायरिंग करवाई जाती है सबसे बड़ी विशेषता यह होती है कि इसका जो फार्मूला प्रकृति की जिस घटना के साथ फिट बैठ जाता है जिस सूत्र का जो संबंध जिस विषय में एक बार सही फार्मूला जिस चीज में के
भविष्य के दस हजार वर्षों तक
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