परोक्षविज्ञान की आवश्यकता ! 
                                  प्रत्यक्षविज्ञान परोक्षविज्ञान और जलवायु परिवर्तन !    
   वर्तमान समय तक प्रत्यक्ष विज्ञान ने तो बहुत उन्नति  कर 
ली 
है,किंतु अनुसंधानों के अभाव में परोक्ष विज्ञान पीछे छूट रहा है|वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान चक्रवात बज्रपात भूकंप एवं महामारी जैसी ऐसी घटनाएँ 
जिनका निर्माण मनुष्यों के द्वारा किया जाना संभव ही नहीं है|ऐसी 
प्राकृतिक घटनाएँ जिन  परोक्ष कारणों से निर्मित होती हैं | उन कारणों को 
केवल परोक्षविज्ञान के द्वारा ही खोजा  जा सकता है |इसके बिना परोक्षकारणों
 से निर्मित घटनाओं के रहस्यों को 
सुलझाना संभव नहीं  हो  पाता है |कई बार परोक्ष कारणों  से निर्मित  वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान चक्रवात बज्रपात भूकंप एवं महामारी जैसी घटनाओं को प्रत्यक्ष विज्ञान से समझने के प्रयत्न किए जाते हैं या उनके विषय में कुछ अनुमान पूर्वानुमान लगाए जाते हैं | उनके सही न निकलने पर असमंजसवश जलवायुपरिवर्तन जैसी कल्पनाएँ कर भले ही ली जाती हैं ,किंतु इसका वास्तविक कारण  परोक्षकारणों
 से निर्मित घटनाओं का अध्ययन परोक्ष विज्ञान के आधार पर अनुसंधान  न किया जाना होता है |
    कुछ कार्य या तो हम करते हैं या तुम करते हो या फिर किसी अन्य को करते देखा जाता है |ऐसी तीनों ही परिस्थितियों में कर्ता कौन है ये प्रत्यक्ष दिखाई पड़ता है| इसलिए ऐसे कार्यों के होने का कारण भी प्रत्यक्ष होता है | इसलिए ऐसे कार्यों या घटनाओं को प्रत्यक्षविज्ञान से समझा जा सकता है !कुछ कार्य या घटनाएँ ऐसी भी होती हैं जिन्हें न तो हम करते हैं और न तुम करते हो न किसी और को करते देखा जाता है|इसके बाद भी काई कार्यों को होते या कुछ घटनाओं को घटित होते देखा जाता है|ऐसे कार्य या घटनाएँ जिसके प्रयास से घटित हुई होती हैं वो कर्ता प्रत्यक्षरूप से  भले न दिखाई पड़ रहा हो,किंतु कार्य होने का मतलब ही है कि कर्ता भी होगा, अंतर इतना ही है कि इनके कर्ता का स्वरूप प्रत्यक्ष दिखाई नहीं पड़ रहा होता है |वह अप्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से विद्यमान होकर ऐसे कार्यों को कर रहा होता है | ऐसे कार्यों के कारण खोजने या अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाने के लिए परोक्ष विज्ञान की आवश्यकता होती है |जिसके द्वारा ऐसी घटनाओं के घटित होने के कारण को खोजा जा सके एवं उनके विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाया जा सके | 
    कई बार ऐसा देखा जाता है कि जिन कार्यों को करने के लिए मनुष्य पूरी ताकत लगा देता है, किंतु वे कार्य बन  नहीं पाते हैं,प्रत्युत बिगड़ते चले जाते हैं |ऐसे में कार्यों के न हो पाने या बिगड़ते चले जाने के लिए प्रयास करने वाला तो बिल्कुल जिम्मेदार इसलिए नहीं है !क्योंकि उसके प्रयास का प्रभाव पड़ता तो कार्य पूरा होना चाहिए था ,क्योंकि वो प्रयत्न तो कार्य बनाने के लिए ही कर रहे होते हैं | कार्य के न हो पाने या बिगड़ते चले जाने के लिए  वो कर्ता  जिम्मेसार नहीं है जो कार्य करते हुए दिखाई देता है | ऐसे कार्यों के लिए जो कर्ता जिम्मेदार होता है वो दिखाई नहीं पड़ता है | उस अदृश्य कर्ता के स्वभाव को समझने के लिए परोक्ष विज्ञान की आवश्यकता होती है |                          प्रकृति और जीवन में कई बार ऐसे अवसर देखने को मिलते हैं जब बहुत सारी ऐसी अप्रिय घटनाएँ घटित होती हैं | जिन्हें करना तो दूर मनुष्य सुनना भी नहीं चाहता लेकिन उन्हें भी घटित होते देखा जाता है | ऐसी घटनाएँ जिनमें किसी का प्रत्यक्ष प्रयास भले न दिख रहा हो ,किंतु परोक्ष शक्तियों का बल लगे बिना ऐसी घटनाओं का घटित होना संभव ही नहीं है |  
      जिन कार्यों को करने की न तो हम इच्छा रखते हैं और न ही उनके लिए प्रयास करते हैं फिर भी वैसी घटनाएँ घटित होती हैं |कुछ घटनाएँ तो ऐसी भी होती हैं जिन घटनाओं को हम चाहते हैं न घटित हों,उन्हें घटित होने से रोकने के लिए भी हम प्रयत्न करते हैं इसके बाद भी वे घटित होती हैं | उन्हें रोकने का प्रयत्न तो हम कर रहे होते हैं इसके बाद भी वे रुक नहीं रही होती हैं और घटित हो जाती हैं| कई बार तो कार्यों के परिणाम हमारे प्रयासों के विरुद्ध घटित होते देखे जाते हैं | 
    कई बार व्यवहार में देखा जाता है कि कोई स्वस्थ और बलिष्ठ व्यक्ति अचानक बिना किसी कारण के न चाहते हुए रोगी हो जाता है | वह स्वस्थ होने के लिए चिकित्सक के यहाँ जाता है|चिकित्सक स्वस्थ करने के लिए चिकित्सा करता है| रोगी और चिकित्सक के प्रयास के अनुसार यदि परिणाम हो तब तो उसे स्वस्थ हो जाना चाहिए किंतु कई बार ऐसा न होकर रोगी या तो अस्वस्थ बना रहता है या फिर उसकी मृत्यु हो जाती है|उसे स्वस्थ करने का प्रयत्न करने के बाद भी उसका अस्वस्थ बने रहने या फिर उसकी मृत्यु हो जाने की क्रिया जिस बल से संपन्न हो रही होती है | वह बल प्रत्यक्ष दिखाई नहीं पड़ता है किंतु अप्रत्यक्ष अर्थात परोक्ष में होता है | उसे परोक्ष विज्ञान से ही खोजा जाना संभव है |  प्रकृति और जीवन में ऐसी अनेकों घटनाएँ घटित हुआ करती हैं | जिनके घटित होने का कारण प्रत्यक्ष नहीं दिखाई पड़ता है,उसे परोक्ष विज्ञान के द्वारा अनुसंधान पूर्वक खोजना होता है|
     प्रत्यक्ष कारणों से घटित होने वाली घटनाओं को प्रत्यक्ष विज्ञान से समझा जा सकता है|उनके विषय में अनुमान पूर्वानुमान भी प्रत्यक्षविज्ञान से ही लगाया जाता  है,किंतु परोक्ष कारणों से निर्मित होने वाली वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान चक्रवात बज्रपात भूकंप एवं महामारी जैसी घटनाओं को समझने के लिए  परोक्षविज्ञान का ही सहारा लेना पड़ता है |  
    जिसप्रकार से सूर्य और चंद्र ग्रहण जैसी प्राकृतिक घटनाएँ परोक्ष कारणों से घटित होती हैं | उनके विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि भी परोक्ष विज्ञान के द्वारा लगाया जाता है | ऐसे ही वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान चक्रवात बज्रपात भूकंप एवं महामारी जैसी परोक्ष कारणों से घटित होने वाली प्राकृतिक घटनाओं को परोक्ष विज्ञान से ही समझना संभव हो पाता है | उपग्रहों रडारों आदि प्रत्यक्ष विज्ञान की मदद से न तो सूर्य चंद्र ग्रहण जैसी घटनाओं के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाया जा सकता है और न ही वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान चक्रवात बज्रपात भूकंप एवं महामारी जैसी घटनाओं के विषय में ही अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाया जा सकता है |
     कुछ प्रत्यक्ष वैज्ञानिक वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान चक्रवात बज्रपात भूकंप एवं महामारी जैसी घटनाओं के विषय में प्रत्यक्ष विज्ञान के द्वारा अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाते हैं | संयोगवश यदि सही निकल गया तो ठीक और यदि सही न निकला  गलत निकल गया या फिर अनुमान पूर्वानुमान आदि लगा ही नहीं पाए और घटनाएँ घटित हो गईं तो इसके लिए जलवायु परिवर्तन या महामारी का स्वरूप परिवर्तन हो जाने को जिम्मेदार बता देते हैं ,जबकि इसका वास्तविक कारण परोक्ष विज्ञान का न होना होता है |  
      वर्तमानसमय में
 परोक्षविज्ञान की या तो चर्चा 
नहीं की जाती है और यदि चर्चा हुई भी तो उसके विज्ञानपक्ष को गंभीरता से न लेकर उसकी उपेक्षा कर दी जाती है| कोरोनामहामारी के समय अधिक नुक्सान होने का एक कारण यह भी है कि महामारी जैसी प्राकृतिक घटनाएँ जो परोक्ष कारणों से निर्मित होती हैं उन्हें पहचानने के लिए परोक्षविज्ञान की ही आवश्यकता थी | परोक्षविज्ञान के अभाव में प्रत्यक्षविज्ञान के आधार पर महामारी के विषय में जितने भी अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाए जाते रहे वे सही नहीं निकले | इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि ऐसे अनुमानों पूर्वानुमानों  आदि के लगाने के लिए कोई वैज्ञानिक प्रक्रिया ही नहीं है | यदि होती तो वैज्ञानिकों ने उसका उपयोग करके महामारी  के विषय में सही जानकारी जुटाई होती ,सही अनुमान पूर्वानुमान  आदि लगाया होता !
   प्रत्यक्षविज्ञान और प्राकृतिक घटनाएँ 
      प्रत्यक्ष विज्ञान एक रूपता को स्वीकार करता है कि जहाँ जैसा अभी तक होता आया है,वहाँ वैसा ही आगे भी होता रहेगा !इसी आधार पर मौसमसंबंधी पूर्वानुमान लगाए जाते हैं | ये आधार ही न तो तर्कसंगत है और न ही वैज्ञानिक है|इसलिए ऐसे आधार विहीन पूर्वानुमान गलत निकलने पर जलवायुपरिवर्तन होने को दोषी ठहराया जाता है |यदि हमारे पास पूर्वानुमान लगाने का विज्ञान नहीं है इसलिए हमने गलत पूर्वानुमान लगा दिए या फिर जो पूर्वानुमान हमने लगाए वो गलत निकल गए तो इसमें जलवायुपरिवर्तन का क्या दोष !यहाँ उसकी भूमिका ही क्या है | 
     वस्तुतः अतीत के अनुसार भविष्य चलता नहीं है | यदि ऐसा होता तब तो पूर्वानुमान लगाने की आवश्यकता ही समाप्त हो 
जाती!जिस प्रकार से सुबह दोपहर शाम तथा सर्दी गर्मी वर्षा आदि ऋतुओं का क्रम 
जैसा पहले चलता था वैसा ही अभी भी चलता है ऐसा ही भविष्य में भी चलता रहेगा | यह प्रक्रिया वर्षा
 बाढ़ आँधी तूफ़ान चक्रवात बज्रपात भूकंप एवं महामारी जैसी घटनाओं के घटित 
होने के विषय में इसलिए लागू नहीं की जा सकती है,क्योंकि ऐसी घटनाओं का समय क्रम आदि  निश्चित नहीं होता है |इनके अचानक घटित होने से जनधन का भारी नुक्सान हो जाता है| इसीलिए ऐसी घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाने की आवश्यकता समझी जाती है ताकि संभावित  नुक्सान को घटाया जा सके |   
      विशेष बात यह है कि प्रकृति में 
सब कुछ एक जैसा घटित हो ही नहीं सकता,होता भी नहीं है कि पिछले वर्षों के इन महीनों के इन सप्ताहों में इन स्थानों पर  इतनी बारिश होती थी | इसलिए इस वर्ष भी ऐसा ही होगा !पिछले वर्षों में इतने आँधी तूफ़ान आते थे| इस वर्ष भी वैसा होगा |  पिछले वर्ष इतनी गर्मी या सर्दी हुई थी | इसलिए इस वर्ष भी ऐसा होगा | ऐसे अतीत के आधार पर भविष्य के विषय में जो अंदाजे लगाए जाते हैं वे न तो तर्कसंगत होते हैं और न ही सही होते हैं |
    ऐसी बातों 
में यह कहना कि पहले ऐसा नहीं होता था अब ऐसा होने लगा है |अब ग्लेशियर पिघल रहे हैं|  बाढ़ आने या सूखा पड़ने या
 आँधी
 तूफ़ान आने की घटनाएँ बहुत अधिक घटित हो रही हैं,पहले ऐसा नहीं होता था 
|यही  पहले कभी ऐसा होता है अब वैसा हो रहा है |इसका मतलब ग्लोबलवार्मिंग 
या 
जलवायु परिवर्तन हो रहा है |इसीलिए पूर्वानुमान गलत निकल जाते हैं | ऐसा कहा जाना अवैज्ञानिक एवं अतार्किक है | ऐसी कोरी कल्पनाओं से प्राकृतिक रहस्यों को नहीं सुलझाया जा सकता है | विशेष बात ये कि पहले ऐसा होता था या नहीं !ये कहने का अधिकार ही हम मनुष्यों को
 इसलिए नहीं है, क्योंकि पहले के विषय में हमें पता ही नहीं है|  हजारों लाखों वर्षों से चले आ रहे  प्राकृतिक क्रम को सौ पचास 
वर्षों के 
प्राकृतिक डेटा के आधार पर समझना संभव ही नहीं है |
   प्राकृतिकघटनाएँ
  स्वतंत्र एवं भिन्न भिन्न प्रकार की होती है | इनसे मनुष्यों द्वारा निर्मित मौसमी मॉडलों या निर्द्धारित तारीखों का अनुपालन करने  की अपेक्षा नहीं की जा सकती है | इसलिए इनके विषय में यह कहना उचित नहीं होगा कि मानसून समय से पहले या बाद में आया अथवा गया है | पहले इन तारीखों में मानसून आ जाता था या चला जाता था अब वैसा नहीं होता है !इसमें विशेष बात क्या है |  प्रकृति हमारी सोच के अनुसार आचरण नहीं कर सकती है |  प्रकृति में तो कभी भी कुछ भी घटित हो सकता है |  किसी
 वर्ष महीने सप्ताह आदि में वर्षा कम या अधिक हो सकती है|आँधी तूफ़ान आदि 
आने की घटनाएँ कम या अधिक घटित हो सकती हैं उनका वेग कम या अधिक हो सकता 
है|गर्मी या सर्दी  किसी वर्ष कम और किसी वर्ष अधिक पड़ सकती है|   प्राकृतिकघटनाएँ
 घटित होनी कभी भी शुरू हो सकती हैं |उनका वेग कितना भी कम या अधिक हो सकता
 है| किसी भी क्षेत्र में बाढ़ या सूखा जैसी घटनाएँ घटित हो सकती हैं ! भूकंप बहुत आवें या बिल्कुल न आवें! ऐसी बहुत सारी प्राकृतिक घटनाएँ किसी
 स्थान पर अधिक घटित हों या कम,इनका वेग बहुत अधिक हो या बहुत कम !वर्षा 
ऋतु में वर्षा निर्धारित समय से कुछ पहले होनी शुरू हो जाए या कुछ बाद में 
शुरू हो ! ऐसे ही प्रत्येक वर्ष वर्षाऋतु के समापन होने का कोई भी दिन हो 
सकता है| ऐसे प्रकरणों में प्रकृति को किसी बंधन में नहीं बाँधा जा सकता है |प्रकृति और
 जीवन में ऐसे अनिश्चित परिवर्तन तो हमेंशा से होते आए हैं और सदा होते रहेंगे | इस अनिश्चितता के कारण ही पूर्वानुमान लगाने के लिए वैज्ञानिक अनुसंधानों की आवश्यकता पड़ती है | 
       कुलमिलाकर प्रकृति और जीवन में अपने आप से घटित हुई घटनाओं के स्वभाव आवृत्तियों एवं वेग आदि के कारण को खोजे बिना उन पर प्रश्नचिन्ह खड़ा करना मनुष्यों के लिए उचित नहीं है| प्रकृति
 में जो कुछ जैसा हो रहा है | उसे बदला जाना मनुष्यों के बश की बात नहीं है
 | ऐसे सभी प्राकृतिक परिवर्तनों को स्वीकार करना समझना एवं इनके विषय में 
अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाना ही मनुष्यों का कर्तव्य है | ऐसा करने में 
मनुष्य जितना अधिक सफल होगा वही उसकी वैज्ञानिक उपलब्धि होगी |ऐसा न करके प्राकृतिक परिवर्तनों का कारण ग्लोबलवार्मिंग या 
जलवायु परिवर्तन या
 महामारी का स्वरूप परिवर्तन कह देने मात्र से अनुसंधानों का उद्देश्य पूरा नहीं हो जाता है कर बच निकलने का मतलब ही अपनी जिम्मेदारी से मुखमोड़ लेना होता है | जिस जानकारी को जुटाने के लिए इतने बड़े बड़े अनुसंधान किए जाते हैं | वही न कर पाने के लिए यदि ग्लोबलवार्मिंग या 
जलवायु परिवर्तन या महामारी के स्वरूप परिवर्तन को जिम्मेदार ठहरा दिया जाएगा तो अनुसंधानों के करने या करवाने का औचित्य ही क्या बचता है | 
     प्राकृतिक घटनाओं के विषय में अनुसंधान करते समय हमें याद रखकर चलना होगा कि प्रकृति बहुरूपता से युक्त एवं परिवर्तनशील है |प्रकृति में बार बार परिवर्तन होते रहते हैं |प्राकृतिक परिवर्तनों को समझने में असफल लोग उन्हें समझने का प्रयत्न करने के बजाए प्रकृति को ही दोष देने लगते हैं |अब जलवायुपरिवर्तन हो रहा है | अब महामारी का स्वरूप परिवर्तन हो रहा है | ऐसे परिवर्तनों को समझने के लिए ही तो अनुसंधान किए जाए हैं अन्यथा अनुसंधानों  की आवश्यकता ही क्या है | 
   कुलमिलाकर  प्रकृति में जो जैसा हो रहा है वो वैसा ही होता रहेगा | प्रकृति के परिवर्तनों को उसी रूप में स्वीकार करके उन्हें समझने के लिए  अनुसंधान करना होगा !क्योंकि प्रकृति कभी भी मनुष्यों के द्वारा नियंत्रित नहीं की जा सकती है | प्रत्यक्षविज्ञान से संबंधित लोगों को हमेंशा प्रकृति से ही शिकायत बनी रहती है |पहले जैसा होता था अब वैसा नहीं हो रहा है | इसलिए हम पूर्वानुमान नहीं लगा पाए या हमारे द्वारा लगाए  हुए पूर्वानुमान गलत निकलते  जा रहे हैं |इसका मतलब जलवायुपरिवर्तन या  महामारी का स्वरूप परिवर्तन हो रहा है  | बिचारणीय यह है कि यह समाज को क्यों बताया जाता है | इसके लिए समाज क्या करे !इसमें तो विशेषज्ञ लोगों को ही अपनी भूमिका सिद्ध करनी  चाहिए  !किसी देश की सीमापर शत्रु सैनिकों से जूझ रही उस देश की सेना देश वासियों को यह बताने नहीं आती है कि शत्रु सेनाएँ युद्ध का स्वरूप परिवर्तन कर रही हैं | रणनीति बदल बदलकर युद्ध कर रही हैं | वहाँ की सभी परिस्थितियों से वह स्वयं जूझकर विजय का संदेश देशवासियों को देती है |इसी विशेषगुण  के कारण उन्हें ऐसी जिम्मेदारी सौंपी जाती है |  प्राकृतिक अनुसंधानों के क्षेत्र में भी ऐसा ही होना चाहिए |   
                                     परोक्षविज्ञान का मतलब ही है समयविज्ञान ! 
 
      आकाश से लेकर पाताल तक प्रतिपल असंख्य घटनाएँ घटित हुआ करती हैं |उनमें से बहुत थोड़ी सी घटनाएँ मनुष्यों के आस पास या उनके जीवन से संबंधित होती हैं| उनमें भी कुछ घटनाएँ अच्छी और कुछ घटनाएँ बुरी होती हैं |कोई नहीं चाहता है कि उसके जीवन में कुछ बुरा हो ! इसलिए  अच्छी घटनाओं के लिए ही हर कोई प्रयत्न करता है |
     ऐसी स्थिति में देखा जाए तो संसार में अपने आपसे घटित होने वाली समस्त घटनाओं के अनुपात में उन घटनाओं की संख्या बहुत कम होती है| जिन्हें मनुष्य अपने प्रयासों का परिणाम मानता है | ऐसी घटनाओं को  मनुष्यकृत यदि मान भी लिया जाए तो उन थोड़ी सी घटनाओं के अतिरिक्त और जो बहुत सारी घटनाएँ संपूर्ण ब्रह्मांड में घटित होती हैं |उनके लिए तो किसी मनुष्य ने कोई प्रयास नहीं किया होता है ,आखिर वे किसके द्वारा किए गए प्रयत्न का परिणाम हैं | 
      ऐसी परिस्थिति में मनुष्यकृत घटनाओं को भी या तो प्राकृतिकरूप से घटित हुई घटनाएँ मानना होगा या फिर बाढ़ आँधी तूफ़ान चक्रवात बज्रपात भूकंप एवं महामारी जैसी असंख्य घटनाओं का भी कर्ता खोजना होगा| आखिर वे किसके प्रयत्न का परिणाम हैं | किसके प्रयत्न से इतनी तेज आँधी चलने लगते हैं,भूकंपों के आने पर इतना भारी भरकम वजन अचानक कैसे हिलने लगता है !किससे प्रेरित होकर बादल आकाश में आकर सारा आकाशमंडल ढक लेते हैं और वर्षा होने लगती है |इतनी बड़ी बड़ी घटनाएँ अचानक कैसे घटित होने लगती हैं | उस कर्ता  को खोजे बिना प्राकृतिक घटनाओं को न तो समझा जा सकता है और न ही इनके विषय में पूर्वानुमान  लगाया  जा सकता है |   
    प्राचीनकाल में प्रकृति और जीवन में अचानक और अपने आपसे घटित होने वाली ऐसी सभी  घटनाओं के घटित होने का कारण समय को माना जाता रहा है |अच्छे समय में अच्छी घटनाएँ और बुरे समय में बुरी घटनाएँ समय के कारण ही घटित होती हैं |इसलिए ऐसी घटनाओं को समझने एवं इनके विषय में अनुमान  पूर्वानुमान आदि लगाने के लिए समय के संचार को समझना होता है|समयसंचार में होने वाले परिवर्तनों को समझकर उसी के आधार पर समय के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाना होता है| इससे घटनाओं के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि स्वयं लगते जाते हैं | 
     किसी नदी की धारा में कुछ लकड़ी के टुकड़े बहते जा रहे थे ! ये टुकड़े कब कहाँ पहुँच सकते हैं | इस बात का पूर्वानुमान लगाने के लिए लकड़ी के टुकड़ों की अपेक्षा उस जलधारा की गति को देखा जाना चाहिए | लकड़ी के टुकड़े जिसमें बहते हुए जा रहे थे|ऐसे ही हवा में उड़ रहे तिनके कब कहाँ पहुँच सकते हैं ये पता करना है तो तिनकों की अपेक्षा हवा की गति पर ध्यान दिया जाना चाहिए !क्योंकि हवा में उड़ रहे तिनके हवा के अनुसार ही कहीं जा सकते हैं |       किसी  नदी की धारा का प्रवाह कहीं तेज तो कहीं धीमा तो कहीं किसी कुंड में गोल गोल घूमने लगता है|उसमें बहने वाली चीजें भी उसी के अनुसार तेज धीमी तो कहीं किसी कुंड में गोल गोल घूमने लगती हैं| ऐसे ही समय की धारा है|उसमें तरह तरह के परिवर्तन होते रहते हैं| समय की उसी धारा में प्रकृति और जीवन बहता (बीतता) चला जा रहा है|समय की धारा में होने वाले अच्छे बुरे परिवर्तन प्रकृति और जीवन पर भी पड़ते हैं | ऐसे परिवर्तनों के  प्रभाव से प्रकृति और जीवन दोनों ही प्रभावित होते हैं |समयसंचार  में होने वाले परिवर्तनों के प्रभाव से प्रकृति में  वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान चक्रवात बज्रपात भूकंप महामारी एवं जलवायुपरिवर्तन जैसी न जाने कितनी घटनाएँ घटित हुआ करती हैं |ऐसे ही समयसंचार में होने वाले परिवर्तनों के प्रभाव से जीवन में सुख-दुःख, हानि-लाभ,यश- अपयश,मिलन-वियोग, स्वस्थ-अस्वस्थ,एवं महामारी के स्वरूप परिवर्तन जैसी न जाने कितने प्रकार की घटनाएँ घटित होते देखी जाती हैं | 
       समयपरिवर्तन के प्रभाव से घटित होने के कारण ही जलवायुपरिवर्तन या महामारी के स्वरूप परिवर्तन जैसी घटनाओं को समझना एवं इनके विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाना समय संचार को समझे बिना संभव नहीं हो पाता है| इसीलिए प्राचीन काल में  समय के संचार को समझने के लिए न केवल गंभीर प्रयत्न किए गए, प्रत्युत इसमें उन्हें सफलता भी मिली|उन्हीं के प्रयासों का परिणाम है कि सुदूर आकाश में घटित होने वाली सूर्य चंद्र ग्रहण जैसी घटनाओं के विषय में हजारों वर्ष पहले पूर्वानुमान लगा लिए जाते हैं | उसी युग में ऐसी घटनाओं के घटित होने का कारण भी खोज लिया गया था|वैसे भी जिस घटना के निर्मित होने का वास्तविक कारण नहीं पता लग पाता है ! उसके विषय में पूर्वानुमान लगाना भी संभव नहीं हो पाता है |
     प्रकृति और जीवन में घटित होने वाली प्रायः प्रत्येक घटना समयसंचार के अनुसार घटित होती है | ऐसा मानकर ऋषियों ने सर्व प्रथम समय संचार में होने वाले सभी प्रकार के परिवर्तनों के विषय में पता लगाया |उन परिवर्तनों के परिणामस्वरूप प्रकृति और जीवन में किस किस प्रकार की घटनाएँ घटित हो सकती हैं | उनका अनुमान लगाकर वैसी घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाने के प्रयत्न किए गए |  
    इसके लिए समय के संचार को समझना आवश्यक था| समय का ज्ञान ग्रहों के आधीन होता है - 'कालज्ञानंग्रहाधीनम्'! ग्रहों के संचार को समझने के लिए गणितविज्ञान की खोज की गई | गणित के आधार पर ग्रहों की गति युति आदि को समझा गया | समय के संचार में भविष्य में किस किस प्रकार के परिवर्तन होने वाले हैं | उनके प्रभाव से भविष्य में किस किस प्रकार की घटनाएँ घटित हो सकती हैं | ग्रहगणित  के आधार पर उनके विषय में सही अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाया जाने लगा | 
      विशेष बात यह है कि सूर्य का प्रभाव बढ़ने से तापमान बढ़ता है और घटने से तापमान घटता है| तापमान बढ़ने घटने के प्रभाव से ही वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान चक्रवात बज्रपात भूकंप महामारी एवं जलवायुपरिवर्तन जैसी सभी प्रकार की प्राकृतिक घटनाएँ घटित हुआ करती हैं | 
     ऐसी सभी प्राकृतिक घटनाओं का जन्म सूर्य संचार से होता है और सूर्य संचार के विषय में गणित के द्वारा हजारों वर्ष पहले सही सही पूर्वानुमान लगा लिए जाते हैं|सूर्य चंद्र ग्रहणों के विषय में हजारों 
वर्ष पहले लगाए गए पूर्वानुमान सही निकलते हैं| वे इस बात के प्रमाण हैं कि गणित के 
द्वारा ऐसा किया जाना संभव है |
    प्राचीनकाल में ऋषिमुनि लोग समय में होने वाले परिवर्तनों को पहले गणित के आधार पर समझते एवं अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाते थे|इसके बाद गणित से प्राप्त अनुमानों पूर्वानुमानों का प्राकृतिकवातावरण में होने वाले परिवर्तनों के साथ मिलान करते थे | 
                            प्रकृति के बीच रहकर ही समझे जा सकते हैं प्राकृतिक रहस्य !
      जल से दूर रहकर जैसे तैरना नहीं सीखा जा सकता है,वैसे ही प्राकृतिकवातावरण से दूर रहकर प्रकृतिसंबंधी परिवर्तनों के विषय में अनुभव किया जाना संभव ही नहीं है| यही कारण है कि महानगरों के वातानुकूलित भवनों में रहकर देखे गए प्राकृतिक दृश्यों के आधार पर मौसम एवं महामारी के विषय में जो अनुमान या पूर्वानुमान आदि लगाए जाते हैं|उनमें से अधिकाँश गलत निकल जाते हैं | जिसके लिए जलवायु परिवर्तन या महामारी के स्वरूप परिवर्तन को दोषी ठहरा दिया जाता है| प्राचीनविज्ञान की दृष्टि से बिचार किया जाए तो प्राकृतिक घटनाओं संबंधी पूर्वानुमानों के गलत निकलने के लिए ऐसे कल्पित कारणों को दोषी इसलिए नहीं ठहराया जा सकता है,क्योंकि प्रकृति के बीच बसे बिना प्रायः गलत वो अंदाजा मात्र होता है | जिसके गलत निकलने की पूरी  संभावना होती है |  
     प्राचीन समय में ऋषि मुनि पत्नी बच्चों के साथ जंगलों में रहकर अत्यंत तपोमय जीवन जीते थे | बनवासी जीवन बहुत कठिन होता है| यह जानते हुए भी ऋषि मुनि महात्मा योग साधक आदि जंगलों में रहकर प्राकृतिक रहस्यों को खोजते थे | प्रकृतिसंबंधी परिवर्तनों का अनुभव 
करने के लिए उन्हें ऐसा सबकुछ सहना पड़ता था| कहाँ  सुख सुविधापूर्ण महानगरीय जीवन और कहाँ संघर्षपूर्ण बनबासी जीवन|दोनों में कितना अंतर होता है |  
    राजा लोग समाजहित में लगे ऐसे तपस्वियों का बहुत आदर करते थे| ऋषि मुनि यदि चाहते तो  महानगरों में उन्हें ऐसी सुखद व्यवस्था राजा 
लोग स्वयं उपलब्ध करवा सकते थे | जहाँ ऋषि मुनि परिवारों 
के साथ रहकर सुख सुविधापूर्ण जीवन जी सकते थे | किंतु ऐसी इच्छा 
न तो ऋषि मुनियों ने राजाओं के आगे रखी और न ही  राजाओं  ने ऋषि मुनियों से कभी ऐसा आग्रह  किया |दोनों ही लोग इस सच्चाई को अच्छीप्रकार से समझते थे कि महानगरों के 
वातानुकूलित भवनों में रहकर प्रकृति एवं प्राकृतिक घटनाओं का अनुसंधान किया 
जाना संभव ही नहीं है |वैसे भी किसी भी देश समाज आदि की सुरक्षा के लिए आवश्यक है| प्राकृतिक परिवर्तनों का प्रतिपल बहुत सूक्ष्मता से अध्ययन किया जाए ! 
    महामारी तथा मौसम से संबंधित अधिकाँश प्राकृतिक घटनाएँ  मनुष्यों तक पहुँचने से पहले कम से कम  छै महीने प्रकृति के गर्भ में रहकर प्राकृतिकवातावरण को अपने अनुसार बदलने लगती हैं|ऐसे गर्भ लक्षणों को पहचानने के लिए प्रकृति विशेषज्ञों को निरंतर प्राकृतिक वातावरण में ही रहना होता है |कुछ बड़े भूकंप एक वर्ष पहले से प्रकृति को अपने अनुकूल बदलना शुरू कर देते हैं|कुछ घटनाएँ तो बारह वर्ष पहले से प्राकृतिक एवं वातावरण को अपने आधीन कर लिया करती हैं|ऐसे अस्वाभाविक परिवर्तनों को देखकर इसे जलवायुपरिवर्तन कहने के बजाए ऐसे प्राकृतिक संकेतों के विषय में गंभीर अनुसंधानों की आवश्यकता होती है | 
     जंगलों या खेतों खलिहानों से खाने के पीने के लिए फल फूल आनाज शाक सब्जी बनस्पतियाँ 
आदि तो मिलते ही हैं| इसके साथ ही साथ औषधीय द्रव्य 
भी तो प्रकृति से ही मिलते हैं|इनमें होने वाले अस्वाभाविक परिवर्तन इन्हें खाने पीने से जहाँ एक ओर शरीरों को रोगी होने लगते हैं|वहीं दूसरी ओर इन्हीं वृक्षों बनस्पतियों आदि में होने वाले 
प्राकृतिकपरिवर्तनों से स्वास्थ्य एवं मौसम संबंधी भावी घटनाओं के विषय में सूचनाएँ भी  मिला करती हैं |
     ऐसे ही पशु 
पक्षियों समेत समस्त जीवजंतुओं का एक निश्चित स्वभाव आहार व्यवहार आदि होता है |कई बार उनके  स्वभाव आहार व्यवहार आदि में अचानक कुछ अस्वाभाविक बदलाव होने लगते हैं |उनमें होने वाले ऐसे  प्राकृतिकपरिवर्तन भविष्य  को लेकर कुछ संकेत दे रहे होते हैं | जीवजंतुओं से मिलने वाले ऐसे संकेतों का अनुभव भी खेतों खलिहानों बनों उपवनों जंगलों आदि प्राकृतिक वातावरण में रहकर ही किया जा सकता है | वहाँ रहकर प्रतिपल समय संबंधी प्राकृतिक लहरों पर ही ध्यान रखना होता है| 
    ऐसे ही नदियों जलाशयों पहाड़ों हवाओं बादलों आकाशी दृश्यों एवं सूर्यचंद्र मंडलों में होने वाले प्राकृतिक 
परिवर्तनों का संग्रह करना होता है| इसके बाद उनका गणित के द्वारा प्राप्त अनुमानों पूर्वानुमानों 
 आदि से मिलान करना होता है|यदि ऐसे प्राकृतिक लक्षणों का गणितागत लक्षणों से मिलान हो जाता है ,तब तो इसके आधार पर तब तो इसके आधार 
पर मौसम एवं स्वास्थ्य संबंधी घटनाओं के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि 
लगा लिए जाते हैं | मिलान करने पर यदि उन दोनों में अंतर आता है तो उस अंतर को 
अनुसंधानपूर्वक मिटाना होता है|इसके बाद उसके आधार पर अनुमान पूर्वानुमान 
आदि लगाए जाते हैं| जो प्रायः सही निकलते हैं |    
     इसप्रकार से सभी प्राकृतिक
 घटनाओं,आपदाओं या महामारियों के 
संकेत सबसे पहले प्राकृतिक वातावरण में ही उभरते दिखाई देते हैं| उन्हीं सूक्ष्म संकेतों का अनुभव करके मौसम एवं महामारी से संबंधित प्राकृतिक घटनाओं के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगा लिए जाते हैं | प्रकृति से दूर 
महानगरों 
की चकाचौंध के वातानुकूलित वातावरण में बैठकर प्रकृति एवं प्राकृतिक घटनाओं को समझना संभव नहीं है |यही कारण है कि ऋषिमुनि जंगलों में रहकर प्राकृतिक वातावरण का अध्ययन किया करते थे |
                                           प्राकृतिक घटनाएँ और जलवायु परिवर्तन ! 
 
    प्राचीनविज्ञान की दृष्टि से देखा जाए तो प्राकृतिकघटनाओं में विज्ञान विशेष उपयोगी नहीं सिद्ध हो पा रहा है |इसीलिए जलवायुपरिवर्तन या
 महामारी का स्वरूप परिवर्तन जैसी कल्पनाएँ करनी पड़ जाती हैं| ऐसी घटनाओं का मौसम और
 महामारी पर कितना प्रभाव पड़ता है |ये पता ही नहीं लग पाता 
है |  एक बार प्राकृतिक घटनाएँ घटित हो जाने के बाद उनके घटित होने का न तो कारण पता लग पाता है और न ही उनका अनुमान पूर्वानुमान आदि ही पता लगाया जा पाता है | 
    जलवायुपरिवर्तन के विषय में कहा जाता है कि प्राकृतिक क्षेत्र में पहले जब जैसा जितना हो रहा था,अब वैसा उतना नहीं हो रहा है | इसका  कारण जलवायुपरिवर्तन है|इसविषय में प्राचीनविज्ञान की मान्यता है कि सजीव प्रकृति निर्जीव आचरण नहीं कर सकती है| इसलिए उसमें ऐसे परिवर्तन स्वाभाविक हैं और वे अचानक न घटित होकर प्रत्युत प्रकृति की चाल में हमेंशा से सम्मिलित हैं |    
     प्राकृतिक घटनाओं की विविधता को समझने के लिए हमें किसी तबला बजाने 
वाले की तबले पर पड़ती अँगुलियों अँगूठों हथेलियों को बहुत ध्यान से देखना 
होगा | तबला बादक का ध्यान तो गीत की लय पर होता है| उसी के अनुसार  तबले के जिस भाग में जब जैसी थाप (चोट) देनी है|वैसी वो दिया करता है | इस प्रक्रिया में अलग अलग जगहों पर अलग अलग प्रकार से थापें दे रहा होता है
 | कभी अँगुली कभी अँगूठे तो कभी  हथेली से कम या अधिक चोट किया करता है |
     विशेष बात यह है कि जिस प्रकार से कोई
 तबलावादक तबला बजाते समय तबले पर हमेंशा एक जैसी चोट नहीं करता है | कभी 
कम कभी अधिक तथा कहीं कम कहीं अधिक चोट(थाप)  देता है |तबलावादक के हाथों अँगुलियों आदि के चलने की प्रक्रिया में बार बार परिवर्तन होते दिखाई देते हैं |ऐसे स्वाभाविक परिवर्तनों को संगीत न जानने वाले लोग भले ही संगीत का जलवायु परिवर्तन मान लें,किंतु संगीत विशेषज्ञों को ये बात अच्छी प्रकार से पता होती है कि तबलावादन प्रक्रिया में यदि ऐसे परिवर्तन न किए जाएँ तो तबले से उस प्रकार का स्वर नहीं निकल सकता है |जिसकी गीत की लय के अनुसार आवश्यकता होती है |
    विशेषज्ञ लोग तो इस रहस्य को समझते हैं किंतु इस प्रक्रिया से अपरिचित लोग ऐसे
 परिवर्तनों को सह नहीं पाते हैं | वे अलग जगहों पर अलग अलग प्रकार से थापें
 देते देखते हैं कि इनमें एकरूपता नहीं है|थापों का वितरण बराबर नहीं हो पा रहा है |ऐसे ही कभी अँगुली कभी अँगूठे तो कभी  हथेली से कम या 
अधिक चोट करते देखकर भ्रमित  हो  जाते हैं |ऐसे भ्रमों को महामारी की भाषा में स्वरूपपरिवर्तन एवं मौसमविज्ञान की भाषा में  जलवायुपरिवर्तन जैसा नाम दिया जा सकता है |
      इसमें विशेष ध्यान देने वाली बात यह है कि तबलावादन
 प्रक्रिया में हो रहे ऐसे परिवर्तनों के औचित्य को समझने के लिए हमें थापों के साथ साथ 
उस गीत की लय को समझना होगा,जिसके अनुसार तबला बजाया जा रहा होता है | 
   
 ऐसे ही प्रकृति का अपना गीत होता है जो निरंतर चला करता है|भिन्न भिन्न 
प्रकार की  प्राकृतिक घटनाएँ ही उसका साथ देने वाले वाद्ययंत्रों की भिन्न 
भिन्न प्रकार ध्वनियाँ होती हैं | यह प्रकृतिसंगीत हमेंशा चला करता है | इसे सुनने समझने के लिए ही  प्राचीनकाल में  ऋषि मुनि महात्मा योग साधक आदि जंगलों में ध्यान लगाया करते थे | उन्हें पता होता था कि  समय समय पर घटित होते रहने वाली विभिन्न प्रकार की प्राकृतिकघटनाएँ किसी तबले पर दी जाने वाली थापों की तरह ही होती हैं |इन थापों का रहस्य केवल तबला बजाने वाले अर्थात प्रकृति साधकों को ही पता होता है | 
                                            प्रत्यक्ष और पराविज्ञान का उदाहरण !
      प्राचीन काल में प्रत्यक्ष और पराविज्ञान दोनों ही प्रकार  के विज्ञान अत्यंत समृद्ध थे | इसीलिए उससमय प्रत्येक प्राकृतिक घटना के रहस्य को सुलझाने के लिए दोनोंप्रकार के विज्ञानों के आधार पर अनुसंधान किए जाते 
थे,तभी न  केवल घटनाओं की वास्तविकता तक पहुँचना संभव हो पाता था, प्रत्युत इनके विषय में लगाए गए अनुमान पूर्वानुमान भी प्रायः सही निकला  करते थे |
    किसी नदी की धारा में कुछ लकड़ी के टुकड़े बहते जा रहे थे ! ये टुकड़े कब कहाँ पहुँच सकते हैं इस विषय में दो प्रकार से पूर्वानुमान लगाया जा सकता है | एक तो प्रत्यक्ष विज्ञान के आधार पर दूसरे पराविज्ञान  के आधार पर !प्रत्यक्ष विज्ञान के अनुसार अनुमान लगाते समय नदी की धारा में बह रहे लकड़ी के टुकड़ों के  बहने  की  दिशा और गति  के आधार पर अंदाजा लगाया जाता है | लकड़ी के टुकड़े यदि एक घंटे में इतने किलोमीटर की
 गति से बह रहे हैं, तो इतने घंटों में बहकर इतने किलोमीटर तक आगे निकल 
जाएँगे|
    विशेष बात यह है कि  ऐसे अंदाजे ( पूर्वानुमान ) वहीं तक सही निकल पाते हैं,जहाँ तक नदी की धारा एक समान गति से बहती चली जा रही होती है| अक्सर देखा जाता है कि नदियों
 में कुछ स्थानों पर चौड़ाई बहुत अधिक बढ़कर नद (तालाब) जैसे जलकुंड बन जाते हैं | 
ऐसे स्थानों पर जलधारा की गति उतनी अधिक नहीं रह पाती है | वहाँ पानी बहुत 
देर तक घूमकर बाद में निकलता है|ऐसे स्थानों पर नदी की धारा 
में पड़े लकड़ी आदि के टुकड़े भी उसी जल में उतनी देर तक घूमते रहते हैं और जलधारा के साथ ही बाहर निकलते हैं |
 जिससे  दिशा और गति के आधार पर लगाए गए 
पूर्वानुमान गलत निकल जाते हैं|मौसम के क्षेत्र में ऐसे ही अनसुलझे 
रहस्यों को  जलवायु परिवर्तन मान 
लिया जाता है | 
     इसी घटना का यदि पराविज्ञान के आधार पर पूर्वानुमान लगाना हो कि नदी की धारा में बहते जा रहे लकड़ी के टुकड़े कब कहाँ पहुँच सकते हैं तो
इसमें टुकड़ों के आगे बढ़ने का कारण खोजा जाता है| ये जिस जलधारा पर तैर रहे हैं वो जल बह रहा है इसलिए लकड़ी के टुकड़ों को भी बहना पड़ रहा है |अतएव टुकड़ों के
 बहने के विषय में पूर्वानुमान लगाने के लिए लकड़ी के टुकड़ों को न देखकर 
प्रत्युत जलधारा को देखकर उसके आधार पर पूर्वानुमान लगाना होगा और जलधारा के प्रवाह में यदि कहीं कोई रुकावट या जलकुंड आदि है तो उसमें जो समय लग सकता है | उसे सम्मिलित करते हुए पूर्वानुमान लगाना होता है | यही पराविज्ञान है |
     विशेष बात यह है कि लकड़ी के टुकड़ों के बहने के विषय में अनुसंधान करते समय तो उन जलकुंडों को खोजा जा सकता है,क्योंकि ये प्रत्यक्ष दिखाई देते हैं | मौसम या महामारी जैसी प्राकृतिक घटनाएँ समय के जिस प्रवाह में बहती चली जा रही होती हैं |उसमें समय संबंधी अवरोध उत्पन्न होते हैं | जिन्हें प्रत्यक्ष नेत्रों से नहीं देखा जा सकता है | ऐसे स्थान पर गणित विज्ञान का सहयोग लेकर प्राकृतिक रहस्यों को सुलझाया जाता है | 
    प्राचीन विज्ञान संबंधी अनुसंधानों की निरंतर उपेक्षा होते रहने के कारण ऐसे 
अनुसंधानों की गुणवत्ता में कमी आना स्वाभाविक ही है |इसीलिए ऐसे अनुसंधानों से महामारी
के समय जनता को जितना लाभ पहुँचाया जाना चाहिए था उतना नहीं पहुँचाया जा सका |अच्छे परिणामों के लिए आधुनिकविज्ञान की तरह 
ही प्राचीनविज्ञान के क्षेत्र में भी गंभीर अनुसंधानों की आवश्यकता है 
|
                              
                                             बुरा समय भी होता है अस्वस्थ होने के कारण 
 
    
 आयुर्वेद में प्राकृतिक रूप से रोगों के पैदा होने की प्रक्रिया को समझाया
 गया है|इसीलिए ऋतुचर्या का वर्णन मिलता है |चरकसंहिता में कहा गया है -
                                     "वाताज्जलं जलाद्देशं देशात्कालं स्वभावतः" 
      इसका अर्थ है कि स्वास्थ्य में वायु से अधिक जल का महत्त्व है और जल से अधिक स्थान और स्थान से भी अधिक समय का महत्त्व है | 
 
   इसका अभिप्राय यह है कि जिस हवा में हम साँस ले रहे हैं वो हवा कैसी है |
 जिस जल को हम पी रहे हैं वो जल कैसा है !जिस स्थान पर हम रह रहे हैं वो 
स्थान कैसा है और जिस समय में हम जीवन जी रहे हैं वो समय कैसा है |जिस 
प्रकार से हवा प्रदूषित हवा में साँस लेने से ,प्रदूषित जल पीने से तथा 
प्रदूषित स्थान पर रहने से शरीर रोगी होता है | उसी प्रकार से प्राकृतिक रूप से प्रदूषित अर्थात बुरे समय में जीवन जीने से भी शरीर रोगी होते हैं |
     प्रदूषितवायु और प्रदूषित जल को जॉंचने के लिए तो यंत्र बना लिए गए हैं | प्रदूषित स्थान तो देखते ही पता लग जाता है किंतु प्रदूषित अर्थात बुरे
 समय को कैसे पहचाना जाए इसके लिए न तो कोई यंत्र है न कोई विज्ञान है और न
 ही ऐसी कोई अनुसंधान प्रक्रिया दिखाई पड़ती है |जिसके आधार पर अच्छे या बुरे समय के  संचार को समझा जा सके और उसके प्रभाव 
से पैदा होने वाली अच्छी या बुरी घटनाओं के विषय में कोई अनुमान या 
पूर्वानुमान लगाया जा सके |
   चरकसंहिता में  वायु से अधिक जल और  जल से अधिक स्थान एवं सबसे अधिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाला समय बताया गया है |इसलिए समय
 के संचार को समझना जब तक संभव नहीं होगा तब तक बुरे समय के प्रभाव से पैदा
 होने वाले रोगों महारोगों (महामारियों) को समझना संभव ही नहीं है | 
     समय
 को सबसे अधिक प्रभावकारी कहने का मतलब ये नहीं है कि वायु जल या स्थान का 
महत्त्व कम है | वायु के बिना तो साँस भी नहीं ली जा सकती है |समय को सबसे 
अधिक महत्त्व पूर्ण कहने का मतलब ये है कि समय के सुधरते ही वायु स्वतः स्वच्छ होकर बहने लगती है ,जल
 स्वतः शुद्ध हो जाता है |स्थान भी स्वास्थ्य के अनुकूल हो  जाता है|समय के 
सुधरते ही शरीर स्वतः रोगमुक्त होने लगते हैं और महामारियाँ अपने आपसे समाप्त होने 
लगती हैं | 
 
    समय पर ध्यान न देकर यदि घटनाओं पर ध्यान दिया जाएगा तो कभी 
वायुप्रदूषण बढ़ेगा तो कभी तापमान बढ़ेगा या फिर तेजी से घटने लगेगा | कभी वर्षा 
बहुत होगी तो कभी सूखा पड़ेगा कभी आँधी तूफ़ान बार बार आने लगेंगे | कभी 
भूकंप जैसी घटनाएँ घटित होने लगेंगी | चक्रवात बज्रपात जैसी जितनी भी 
घटनाएँ समय के बिगड़ने से घटित होती हैं | उन घटनाओं को कहाँ तक  खोजा जाएगा
और  खोजकर उनका किया भी क्या जाएगा | यदि महामारी आने के लिए वायुप्रदूषण बढ़ने जैसी
 घटनाएँ जिम्मेदार हों भी तो इन्हें रोका जाना संभव नहीं है | इनके विषय 
में अनुमान पूर्वानुमान लगाया नहीं जा सकता है तो ऐसी बातों को जानकर किया भी क्या
 जाएगा | वैसे भी ऐसा सभी प्राकृतिक असंतुलन यदि समय के कारण ही घटित हो 
रहा है तो ऐसी घटनाओं पर ध्यान देने से अच्छा है समय के संचार को ही समझने 
का प्रयत्न क्यों न किया जाए | 
                                  भविष्यविज्ञान का मतलब ज्योतिष !      भविष्य जानने के लिए ज्योतिष को जाना जाता है | ज्योतिष में रोगों का वर्णन
 है जिसे समझने के लिए किसी चिकित्सक को ज्योतिष पढ़ना आवश्यक होता है | चिकित्सक और ज्योतिषी दोनों
 को ही पराशक्तियों के स्वभाव प्रभाव आदि से अच्छी प्रकार से परिचित 
होना चाहिए क्योंकि घटनाओं के पैदा होने समाप्त होने में एवं किसी प्रयत्न 
का परिणाम प्रदान करने में पराशक्तियों की ही सर्वाधिक भूमिका होती है 
| 
     ज्योतिष के अलावा दूसरा ऐसा कोई विज्ञान
 नहीं है जिसके द्वारा भविष्य के अंदर झाँका जाना संभव हो | ज्योतिषशास्त्र की उपेक्षा के कारण इस विषय में गंभीर अनुसंधान नहीं हो पाते हैं | शोध के अभाव में ज्योतिषीय भविष्यवाणियाँ भी गलत निकल जाती हैं |इसके लिए विज्ञान की उपेक्षा न  करके प्रत्युत ज्योतिष से संबंधित अनुसंधानों को  सुधारे जाने की आवश्यकता है |आधुनिकविज्ञान से संबंधित अनुसंधानों में जितना धन खर्च किया जाता है | उसका शतांश भी यदि  ज्योतिष संबंधी अनुसंधानों पर खर्च करना प्रारंभ कर दिया जाए और ऐसा करने की जिम्मेदारी सुयोग्य लोगों को सौंपी जाए ,तो महामारी मौसम एवं प्राकृतिक आपदाओं के विषय में दीर्घावधि मौसम पूर्वानुमानों में काफी मदद मिल सकती है |  
                                                                  
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 परोक्ष घटनाओं के लिए चाहिए परोक्ष विज्ञान ! 
     प्रत्यक्ष विज्ञान पर विश्वास करने वाले लोगों को कई बार ऐसा कहते सुना जाता है कि विज्ञान केवल उतना ही है जितना वे जानते हैं |उसके अतिरिक्त तो वैज्ञानिक विधाएँ हैं उन्हें या तो विज्ञान की श्रेणी में नहीं रखा जाता है या फिर अंधविश्वास बता दिया जाता है|उनकी ही बातों को यदि सच मान लिया जाए तो उन्हें ही ऐसे अनसुलझे रहस्यों को स्वयं सुलझा देना चाहिए |ऐसा होते ही शंकाएँ स्वतः समाप्त हो जाएँगी | उस प्रकार के लोगों पर कोई भरोसा ही क्यों करेगा | 
    प्रकृति और जीवन में बहुत सारी ऐसी घटनाएँ घटित होती हैं!जिनके विषय में अनुमान पूर्वानुमान लगाना  तो बहुत दूर की बात है |उन्हें समझना संभव नहीं हो पाया है | ऐसी घटनाएँ घटित क्यों होती हैं उनके कारण नहीं खोजे जा सके हैं | मुझे नहीं पता है कि ऐसी घटनाओं को समझने के लिए कोई विज्ञान है या नहीं किंतु  इतना अवश्य पता है कि यदि ऐसा कोई विज्ञान होता तो अनुसंधानरत  परिश्रमी वैज्ञानिकों ने अब तक उस रहस्य को अवश्य सुलझा लिया होता !किंतु ऐसा हो नहीं पाया है | 
      कुछ लोग कहते हैं - "लक्ष्य कितना भी बड़ा हो यदि तुम उसे पाने के लिए परिश्रम करोगे तो एक दिन सफल  अवश्य होगे ! यदि सफल न हो तो समझो प्रयत्न में कहीं कमी रह गई है !"  
    इस बात पर भरोसा करके बहुत लोग बड़े बड़े लक्ष्य बना लेते हैं उसको पाने का हर संभव प्रयत्न करते हैं,लक्ष्य पर अपना सबकुछ लगाकर भी कुछ असफल हो जाते हैं |अब भी यदि माना जाए कि प्रयत्न में कमी रह गई है तो उनके पास ऐसा कुछ बचा ही नहीं होता है|जो लक्ष्य के लिए समर्पित करें | शिक्षा में असफल विद्यार्थी ,व्यापार में असफल व्यापारी और प्रेम में असफल प्रेमी जोड़े तरह तरह की दुर्घटनाओं के शिकार होते हैं |ऐसे लोग  प्रयत्न तो सफलता के लिए करते हैं  किंतु सफल होने के बजाए इन्हें जो असफलता मिलती है | वह असफलता किसके द्वारा किए गए  प्रयत्न का परिणाम होती है |इसे खोजने के लिए किस विज्ञान की शरण में जाया जाए ! 
    चिकित्सालय
 रोगियों को स्वस्थ करने के लिए होते हैं| यहाँ रोगी स्वस्थ होने के लिए ही
 लाए जाते हैं | चिकित्सकों के द्वारा प्रयत्न भी रोगियों को स्वस्थ करने 
के लिए ही किए जाते हैं!औषधियाँ भी स्वस्थ करने के उद्देश्य से 
ही दी जाती हैं| यदि सारे प्रयत्न स्वस्थ करने के लिए किए जा रहे होते हैं तो जो रोगी स्वस्थ नहीं होते हैं या जिनकी मृत्यु हो जाती है |चिकित्सा के बाद भी स्वस्थ न होने या मृत्यु होने जैसी घटनाएँ किसके द्वारा किए गए प्रयत्नों के परिणामस्वरूप घटित होती हैं |  
   चिकित्सालयों का उद्देश्य रोगियों को स्वस्थ करना होता है|इसी के लिए वहाँ चिकित्सक रखे जाते हैं |यहाँ रोगी भी स्वस्थ होने के लिए ही आते हैं|उनके द्वारा चिकित्सा संबंधी प्रयास भी स्वस्थ करने के लिए ही किए जाते हैं |जब सभी प्रयत्न रोगियों को स्वस्थ करने के लिए ही किए जाते हैं तो विश्वास किया जाना चाहिए कि रोगी स्वस्थ ही होंगे,किंतु इस पर भरोसा न होने का कारण क्या है और चिकित्सालयों में शवगृह(Mortuary) क्यों बनाने पड़ जाते हैं |उनके इस भरोसे को तोड़ने वाली शक्ति का नाम क्या है और उसे किस विज्ञान के द्वारा समझा जा सकता है | 
   भूकंप के आने के समय कोई घर गिरता है | उसके नीचे दबकर किसी राहगीर की मृत्यु हो जाती है|उस राहगीर की मृत्यु का कारण उसकी मृत्यु का समय आना है या मकान का उसके ऊपर गिरना है या भूकंप का आना है ?इसका वास्तविक कारण को खोजने के लिए विज्ञान कहाँ है ?  
     प्रकृति और जीवन में  बहुत सारी ऐसी घटनाएँ अचानक अपने आप से घटित होने लगती 
हैं| जिनके विषय में ये पता लगाया जाना संभव नहीं हो पाया है कि ऐसी घटनाएँ किसके द्वारा किए गए प्रयत्नों का परिणाम होती हैं |   शांत प्राकृतिक  वातावरण में बिना किसी मनुष्यकृत प्रयत्न के अचानक आँधी तूफानों बादलों भूकंपों या 
सुनामी आदि का आ जाना,वर्षा होने लगना,बाढ़ आ जाना, तापमान का बढ़ या घट 
जाना,ग्लेशियरों का पिघलने लगना,वृक्षों का फूलने फलने लगना,कोई रोग महारोग
 तैयार होने लगना तथा महामारी फैलने लगने जैसी अनेकों घटनाओं के निर्माण होने से लेकर घटित होने तक किसकी  योजना के अनुसार सबकुछ घटित हो रहा होता है |
    ऐसी घटनाएँ अचानक घटित होने लगती हैं जो जनधन का नुक्सान होना होता है वो तुरंत होने लग जाता है | इनके विषय में न तो पूर्वानुमान लगाया जा पाता है और न ही इनके घटित होने के कारण खोजे जा पाते हैं | कई बार ऐसी घटनाएँ कम समय में ही बार बार घटित होते देखी जाती हैं |ऐसा क्यों होता है |इसे जानने के लिए किस विज्ञान की शरण में जाया जाए !जिसके द्वारा इनसे होने वाले जनधन के नुक्सान को कम किया जा सके | ऐसी घटनाओं का जिन कारणों से निर्माण 
होना शुरू होता होगा | उन कारणों को खोजा जाना चाहिए | 
    ऐसे ही विमान या रेल दुर्घटना होना,समाज का 
अचानक आंदोलित या हिंसक होने लगना | विभिन्न देशों में युद्ध होने 
लगना,ऐसी सभी घटनाओं के घटित होने का कोई न कोई अदृश्य कारण अवश्य होता है |ऐसे परोक्ष कारणों को  प्रयत्न पूर्वक खोजा जाना चाहिए ,क्योंकि इनसे भी जनधन का बहुत नुक्सान होता है |  
    
 ऐसे ही किसी का जन्म या मृत्यु होना,लाभ या हानि होना,यश अथवा अपयश होना ,संबंधों का बनना या बिगड़ना,किसी स्वस्थ हृष्ट पुष्ट व्यक्ति का अचानक अस्वस्थ होने लगना या किसी असाध्य रोगी का चिकित्सा के बिना अचानक स्वस्थ होने लगना ,किसी सुखी  व्यक्ति का अचानक दुखी या तनावग्रस्त होने लगना या किसी दुखी व्यक्ति का सुखी होने लगना तथा किसी के अचानक सफल या असफल होने जैसी अनेकों घटनाएँ 
अचानक अपने आपसे घटित होने का कारण क्या होता है|किसी दुर्घटना में एक जैसे शिकार हुए बहुत लोगों में से कुछ के खरोंच भी न लगना कुछ का घायल होना कुछ की मृत्यु हो जाने जैसे एक घटना के तीन प्रकार के परिणाम निकलने का कारण क्या है !
     किसी रोगी का आपरेशन करने के बाद रोगी के होश में न आने का या लंबे समय तक चिकित्सा होने के बाद भी रोगी के स्वस्थ  न होने का अथवा सघन चिकित्सा काल में ही रोगी की मृत्यु हो जाने का वास्तविक कारण क्या हो सकता है | इसे  खोजने के लिए विज्ञान कहाँ है ?  
 
    बुद्धिमान अनुभवी लोग भी गलतियाँ करते हैं जिससे नुक्सान होता है|ऐसे समय कोई अच्छी सलाह दे तो मानते भी नहीं हैं|स्वभाव में अचानक होने वाले ऐसे परिवर्तनों का क्या कारण होता है ?
   ऐसी सभी घटनाओं के घटित होने का क्या कारण होता है| उसे अवश्य खोजा जाना चाहिए और उससे संबंधित शंकाओं का समाधान किया जाना चाहिए | 
  
 
                                                               
 
        प्रायः देखा जाता है कि सभी धर्मों के लोग अपने को एवं अपने धर्मों को 
श्रेष्ठ सिद्ध करने में लगे रहते हैं |इसके लिए बड़े बड़े वाद विवाद आदि होते
 देखे जाते हैं | ऐसे सभी महत्वाकाँक्षी लोगों के लिए महामारी ने 
सर्वश्रेष्ठ अवसर उपलब्ध करवाया था |उनमें क्षमता थी तो वे अपने ज्ञान 
ध्यान तप तेज उपासनापद्धति आदि अपनी अपनी क्षमता के अनुशार महामारी से समाज को सुरक्षित बचा सकते थे | महामारी काल में समाज
 को सुरक्षित बचाकर या संक्रमण से मुक्ति दिलाकर न केवल मनुष्य समाज पर 
बहुत बड़ा उपकार कर सकते थेप्रत्युत अपने धर्म एवं धार्मिक मान्यताओं की 
क्षमता को वैश्विक महामंच पर प्रस्तुत कर सकते थे |जिसका यश उन्हें तो 
मिलता ही उनकी उपासना पद्धति को सर्वश्रेष्ठ होने की स्वीकार्यता भी मिल 
जाती !किंतु ऐसा पवित्र एवं प्रभावी प्रयत्न प्रामाणिक रूप से  किसी के 
द्वारा भी नहीं किया गया |  
     अपने
 अपने धर्माचार्यों पर उस धर्म के अनुयायियों का भरोसा होना स्वाभाविक है | 
उन धार्मिकों के द्वारा कभी कभी ऐसे चमत्कार दिखाए जाते हैं या किसी के मन 
की गुप्त बात जानकर बता दी जाती है किसी की समस्या  का समाधान कर दिया जाता
 है| 
  
 
 इसीलिए किसी रोगी का आपरेशन करने के बाद भी रोगी के स्वस्थ  न होने पर या 
उसके होश में न आने पर चिकित्सक भी उन्हीं परोक्ष शक्तियों से प्रार्थना 
करने की सलाह देते हैं |कोरोना के समय देखा गया कि जो साधन संपन्न लोग जो 
चिकित्सकों की गोद में पैदा होकर चिकित्सकों के अनुशार खानपान रहन सहन आदि 
अपनाते रहे | उन्ही की सलाह पर कोविड नियमों का पूरी तरह पालन करते रहे | 
उन्हें संक्रमित होते देखा गया जबकि ऐसे संसाधनों से विहीन भोजन के लिए दर 
दर की ठोकरें खाते घूमने वाले गरीब और उनके बच्चे कोविड नियमों का पालन न 
करने के बाद भी स्वस्थ घूमते रहे | उसका कारण उन्हें परोक्ष शक्तियों का 
साथ मिलता गया उसी बल से वे स्वस्थ बने रहे | दूसरे जिन्होंने प्रत्यक्ष 
प्रतिरोधक क्षमता बढ़ने के लिए वो सब कुछ खाया पिया जिससे
 प्रतिरोधक क्षमताबढ़ती थी | इसके बाद भी परोक्ष शक्तियों के सहयोग के अभाव 
में संक्रमित होते रहे | उनमें भी जिन्हें परोक्ष शक्तियों का सहयोग मिला 
वे स्वस्थ बने रहे | 
 
    
 ऐसे सभी परोक्ष कारणों को प्रत्यक्ष विज्ञान से समझना संभव नहीं है 
!इन्हें देखने या खोजने के लिए परोक्षविज्ञान संबंधित अनुसंधानों की 
आवश्यकता होती है |ऐसे अनुसंधानों के अभाव में घटनाओं के परोक्षकारणों को 
खोजना संभव नहीं हो पाता है | इसीलिए ऐसे अभाव को स्वीकार करके परोक्ष 
विज्ञान संबंधी अनुसंधान शुरू करने के बजाए ऐसे अनुसंधानों से ही मुख मोड़कर
 उनके घटित होने का काल्पनिक कारण कुछ भी चुन लिया जाता है | 
 
      मौसम के क्षेत्र में वैज्ञानिकों के द्वारा लगाए जा रहे अनुमान 
पूर्वानुमान आदि जब निरंतर गलत निकलते जाते हैं तब उन घटनाओं के रहस्यों को
 सुलझाना आवश्यक समझा जाता है |परोक्ष विज्ञान के बिना उन्हें सुलझाया जाना
 संभव नहीं होता है | अंततः  ऐसी अनसुलझी घटनाओं के घटित होने के लिए 
जलवायुपरिवर्तन को जिम्मेदार बता दिया जाता है | इसमें विशेष बात यह है कि चिकित्सक या उसकी ऑपरेशन प्रक्रिया की चूक से किसी रोगी का आपरेशन 
बिगड़ जाए तो इस असफलता के लिए उस रोगी के रोग को ही दोषी ठहरा दिया जाना तर्कसंगत नहीं है |ऐसे ही मौसम 
पूर्वानुमान न लगा पाना व वैज्ञानिकों  के द्वारा लगाए हुए मौसम 
पूर्वानुमानों के गलत निकल जाने का कारण पूर्वानुमान लगाने की प्रक्रिया
की गड़बड़ी हो 
सकती है !ऐसे विज्ञान का अभाव हो सकता है| इसके लिए जलवायुपरिवर्तन को दोषी बताया जाना कितना तर्क संगत है | 
    ऐसे ही परोक्षविज्ञान के अभाव में महामारी के विषय में वैज्ञानिकों के द्वारा लगाए गए अनुमानों पूर्वानुमानों के निरंतर गलत निकलते जाने पर इसका कारण महामारी का स्वरूप परिवर्तन बताया जाने लगा,जबकि ऐसी घटनाओं का कारण प्रत्यक्ष न होकर प्रत्युत परोक्ष होता है | 
   
 इसी प्रकार से किसी रोगी की सघन चिकित्सा कक्ष में रखकर अच्छी से अच्छी 
चिकित्सा किए जाने पर भी जब वह स्वस्थ नहीं हो पाता है या उसकी मृत्यु हो 
जाती है तो इसके लिए डेस्टिनी कुदरत  आदि को जिम्मेदार बता दिया जाता है 
|जिसका कोई तर्कसंगत आधार नहीं होता है| वस्तुतः ऐसे रहस्यों को सुलझाने की प्रक्रिया में  परोक्षविज्ञान की बहुत 
बड़ी भूमिका हो सकती है |
   मानसून आने और जाने की तारीखों को उपग्रहों रडारों
 से प्रत्यक्ष देखकर कोई अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है,क्योंकि महीनों पहले के बादलों एवं वर्षा होने संबंधी संभावित घटनाओं को  उपग्रहों
 रडारों
 से देखा जाना संभव ही नहीं है | इसलिए उनके विषय में लगाए गए 
पूर्वानुमानों का गलत निकलना स्वाभाविक है | पूर्व में निर्धारित संभावित 
तिथियों को यदि बदल भी दिया जाए तो भी उनके सच होने की संभावना बिल्कुल न 
के बराबर ही रहती ,क्योंकि उन तारीखों के निर्धारण या परिवर्तन का 
आधार वैज्ञानिक नहीं होता है | 
  
का कोई विज्ञान ही नहीं है | इनसे
 मनुष्य जीवन अत्यधिक प्रभावित होता है किंतु विज्ञान अभी तक न तो ऐसी 
घटनाओं को समझने में सक्षम हुआ है और न ही उनके घटित होने का कारण खोजने 
में ! ऐसे विषयों में जो कल्पनाएँ की जाती हैं|उनकी सच्चाई इसलिए सिद्ध 
नहीं हो पाती है, क्योंकि उन्हीं कल्पनाओं के आधार पर जो  अनुमान 
पूर्वानुमान आदि लगाए जाते हैं वे गलत निकल जाते हैं | यदि ये सही निकल 
जाते तो उनके द्वारा कल्पित प्रतीक विश्वसनीय मान लिए जाते !  
        संसार में घटित होने वाली प्रत्येक घटना के घटित होने के लिए जिम्मेदार 
कोई न कोई कारण अवश्य होता है|वो कारण प्रत्यक्ष दिखाई दे या न दिखाई दे 
परोक्ष में ही विद्यमान हो किंतु कारण होता अवश्य है |इस प्रकार से 
 प्रकृति
 और जीवन में प्रत्यक्ष और परोक्ष  कारणों से विभिन्न प्रकार की घटनाएँ 
घटित हुआ करती हैं | घटनाओं के घटित होने के प्रत्यक्ष कारण तो दिखाई पड़ 
जाते हैं |परोक्ष कारण दिखाई नहीं पड़ते उनका अनुभव किया जा सकता है |  वैसे भी   प्रत्यक्ष  कारणों को देखने और पहचानने के लिए तो अनेकों प्रकार के 
यंत्रों का आविष्कार हो चुका है किंतु परोक्ष कारणों को खोजने तथा उनसे 
संबंधित अनुमानपूर्वानुमान लगाने के लिए विज्ञान कहाँ है |       
       परोक्षकारणों को न समझपाने के कारण इनसे संबंधित घटनाओं के विषय में किए गए अनुसंधानों को बार बार असफल
 होते देखा जाता है |जीवन में बहुत सारी घटनाएँ ऐसी घटित
 होते देखी जाती हैं |जिनमें बहुत प्रयत्न करने के बाद भी लोगों को असफल 
होना पड़ता है | ऐसी असफलताओं से आहत लोगों के जीवन में कई बार अत्यंत दुखद 
दुर्घटनाएँ घटित होती देखी जाती हैं | ऐसे बहुत लोग प्रयत्न करते कुछ हैं 
लेकिन परिणाम कुछ  और  होता है | उन्हें 
यह खुद समझ में नहीं आ रहा होता है कि जो कुछ दूसरा हो रहा है | वो किस
प्रयत्न का परिणाम है | 
 
 ___________________
 
 
                                                                  भूमिका 
    
 परतंत्रता के समय जिस ज्योतिषशास्त्रीय ज्ञान विज्ञान को आक्रांताओं ने 
नष्ट करने में कमी नहीं छोड़ी थी !स्वतंत्रता के बाद स्वसरकारें भी इस विज्ञान की निरंतर उपेक्षा करती रही हैं | लोग अपने बच्चों को ज्योतिष पढ़ाना नहीं चाहते | संस्कृत विश्वविद्यालयों में ज्योतिष जैसे विषयों के योग्य शिक्षकों का अभाव बना 
रहता है| इसीलिए महामारी मौसम एवं प्राकृतिक आपदाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाना
उन ज्योतिष शिक्षकों के बश का भी नहीं होता है |यदि ऐसा होता तो उन्हें प्राकृतिक घटनाओं के विषय में पूर्वानुमान लगाने से किसने रोका था | 
    महामारी
 से सुरक्षित रखने के लिए या महारोग से मुक्ति दिलाने के लिए वैज्ञानिकों 
के द्वारा जिन जिन औषधियों को प्रभावी रूप से लाभकारी बताया जाता रहा है 
,किंतु प्रयोग किए जाने पर उनका उस प्रकार का प्रभाव नहीं दिखा | कुछ के तो
 दुष्प्रभावों का आकलन  करके उनके प्रयोग को बाद में रोक दिया गया | 
वैक्सीन जैसे महाप्रयोग के प्रभाव पर भी संशय उत्पन्न  होने लगा | उसके 
तरह तरह के दुष्प्रभाव सामने लाए जाने लगे | ऐसे अनेकों प्रयोग वैज्ञानिक 
अनुसंधानों के नाम पर जो जो कुछ किया जा रहा था उस पर संशय उत्पन्न करने 
लगे |
   
 ऐसे बहुत अनुमानों पूर्वानुमानों के गलत निकलने पर उन्हें बार बार बदलते 
रहा गया | ये सब उस समय होता रहा जब उस जनता का जीवन महामारी के कारण भयंकर
 संकट में पड़ा हुआ था |
     जिस जनता के द्वारा कर रूप में सरकारों को दिया गया धन 
ऐसे अनुसंधानों पर इसीलिए खर्च किया जाता है कि संकट पड़ने पर ये अनुसंधान 
हमारे काम आएँगे !किंतु महामारी जैसे इतने बड़े संकट में उन वैज्ञानिकों के 
द्वारा उन अनुसंधानों से ऐसी क्या मदद पहुँचाई जा सकी जो न पहुँचाई गई होती
 तो इससे भी अधिक नुक्सान हो सकता था | इस पर गंभीर चिंतन की आवश्यकता है |
 
 
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      प्रायः संसार
 की सभी घटनाएँ प्रत्यक्ष और परोक्ष कारणों के संयोग से घटित होती 
हैं | इसीलिए बहुत लोगों के द्वारा एक प्रकार से एक ही साथ सफलता के लिए 
किए गए प्रयासों में कुछ लोग सफल होते हैं | प्रत्यक्षविज्ञान
 विज्ञान की दृष्टि से तो सभी एक जैसे प्रयत्न कर रहे होते हैं किंतु 
परोक्ष शक्तियाँ सभी का साथ अलग अलग स्तर से दे रही होती हैं | एक जैसा 
प्रयास करने के बाद भी परोक्ष शक्तियों का साथ जिसको जैसा मिलता है वो वैसा सफल होता है |  
   
 चिकित्सा आदि सभी क्षेत्रों में ऐसा होते देखा जाता है | यहाँ तक कि भूकंप
 जैसी सभीप्रकार की दुर्घटनाओं में भी गिरने वाले मकानों के मलबे में बहुत
 लोग दब जाते हैं|प्रत्यक्ष दृष्टि से तो सभी एक ही प्रकार से एक जैसी 
परिस्थिति में दबे हुए दिखाई देते हैं !किंतु परोक्ष
 शक्तियाँ प्रत्येक व्यक्ति का बचाव उसके अपने अनुशार करती हैं | इसीलिए 
कुछ लोग उस दुर्घटना  से पूरी तरह सुरक्षित निकलते हैं | कुछ लोग घायल होकर
 निकलते हैं जबकि कुछ लोग मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं | परोक्ष शक्तियों का जिसे जैसा सहयोग मिलता है उसका वैसा बचाव होता है | 
      
     ऐसे ही संसार में चिकित्सा से लेकर सभी प्रकार के प्रयास प्रत्यक्ष और  परोक्षशक्तियों 
 के संयोग से ही सफल और असफल होते हैं |संसार में जितने भी कार्य किए जा 
रहे हैं या अपने आप से हो रहे हैं | उनमें परोक्ष शक्तियों की बहुत बड़ी 
भूमिका होती है |  
   
 जिस
 प्रकार से किसी भवन का निर्माण राजमिस्त्री 
मजदूर आदि कर्मचारी करते दिख रहे होते हैं किंतु वह निर्माण कार्य करवाने 
वाला गृहस्वामी वहाँ प्रत्यक्ष रूप से दिख भले न रहा हो ,वह निर्माण कार्य 
तभी तक चलेगा जब तक वह चाहेगा |यदि
 बने हुए भवन को तोड़वाना चाहेगा तो वो तोड़वा देगा |वहाँ उपस्थित न होकर भी 
भवन स्वामी यह सब कुछ कर सकता है जबकि वहाँ उपस्थिति होकर कार्य कर रहे राजमिस्त्री 
मजदूर आदि कर्मचारी
 ऐसा नहीं कर सकते हैं |इसी प्रकार से इस संसार में प्रत्येक मनुष्य केवल 
श्रमिक की भूमिका में है | जो कार्य करते हुए लोग दिख भी रहे होते हैं | 
उनके होने न होने में भी संसार स्वामी अर्थात परोक्ष शक्तियों की ही चलती 
है | इस संसार में जो कुछ होता है वो उन्हीं परोक्ष शक्तियों की पटकथा के 
अनुशार ही हो रहा होता है ,तभी हो पाता है | कुछ कार्यों में तो कर्ता 
दिखाई पड़ भी रहा होता है | बहुत सारे कार्य ऐसे हैं जो कर्ता के बिना भी 
होते दिख रहे होते हैं ,कर्ता के बिना कार्य होना संभव नहीं होता है इसलिए 
परोक्षकर्ता उनका भी होता है | समस्त संसार में
 घटित हो रही असंख्य घटनाओं का कर्ता कौन है यह दिखाई ही नहीं पड़ता है 
किंतु घटना घटित हो रही होती है | ऋतुओं के आने जाने का क्रम प्रभाव आदि 
मनुष्य की कोई भूमिका नहीं है | वर्षा बाढ़ आँधी तूफ़ान चक्रवात बज्रपात 
भूकंप महामारी जैसी सभी प्रकार की प्राकृतिक घटनाओं के घटित होने के लिए 
जिम्मेदार कोई प्रत्यक्ष कर्ता भले न दिखाई पड़ रहा हो किंतु उनके घटित होने
 का कारण भी वही परोक्ष शक्तियाँ होती हैं | जिनकी लिखी हुई पटकथा के 
अनुशार ही उस प्रकार की घटनाएँ घटित हो रही होती हैं | उनका
 कर्ता वही परोक्ष शक्तियाँ होती हैं | जिनकी कार्यप्रणाली को समझे बिना 
उसप्रकार के कार्यों के विषय में अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाना संभव नहीं 
होता है |उन परोक्ष शक्तियों की कार्यप्रणाली परोक्ष अनुसंधानों से ही समझी
 जा सकती है | उन्ही के अनुशार अनुमान पूर्वानुमान आदि लगाए जा सकते हैं | 
परोक्ष विज्ञान की उपेक्षा करके प्राकृतिक घटनाओं के विषय में अनुमान 
पूर्वानुमान लगाया जाना संभव ही नहीं है | यह कार्य साधना पूर्वक सिद्ध 
किया जा सकता है जिसे करने के लिए शास्त्रीय विद्वानों साधकों को अपनी 
भूमिका अदा करनी चाहिए |