Friday, 30 December 2016

सपा में संघर्ष है या नववर्ष ? 6 वर्ष जैसा लंबा समय सैफईलोक के कुछ दिनों के बराबर होता है !

    पृथ्वी लोक के 6 वर्षों जैसा लंबा समय सैफई लोक में 20-25 दिनों में ही बीत जाता है बस ! 23अक्टूबर को नेता जी के अनुज का 6 वर्षों के लिए निष्कासन हुआ था और 18 नवंबर को हो गई थी घर वापसी !
      लोग समझते हैं झगड़ा हो रहा है !अरे !बबुआ ने अपनी बुआ को आज पहलीबार खुश किया है नोटबंदी के बाद बुआ गंभीर तनाव में चल रहीं थीं ।बुआ की पार्टी भी सिमिटिती जा रही थी दिनोंदिन इसीलिए अब तो टिकटें भी नहीं बिकने लगी थीं बुआ की पार्टी की !टिकट खरीदने वाले ग्राहक ही नहीं मिल रहे थे मंडी में !बसपाई बाजारों में हो सकता है कल से लौटे रौनक !आज की रात चैन से सोएँगी बुआ और बुआ की पार्टी के लोग !
  सैफई का महोत्सव अबकी लखनऊ में तब जन्मदिन पर अब नववर्ष पर !
    कार्यकर्ता उछलकूद कर रहे हैं विरोधियों के मन में लड्डू फूट रहे हैं समाजवादी पार्टी समुद्र में बहता हुआ वो जादुई जहाज है जिससे उड़ा हुआ पंक्षी उड़ते उड़ाते जब थक जाता है तब फिर बैठ जाता है इसी जहाज पर !बहुत पंक्षी उड़े सब जगह भूल भटक कर आज सपा को ही  सफा करने में सादर सेवाएँ दे रहे हैं अपनी !अबकी बार लगे हुए हैं बिल्कुल क्लीन करने में !
  


Wednesday, 28 December 2016

"राहुलगाँधी जी के प्रधानमंत्री जी से किए गए सवालों पर राहुल जी से हमारे सवाल !!" क्या जवाब देंगे राहुल जी ?

  राहुल ने पीएम मोदी से कई सवाल किए हैं इस पर पढ़ें राहुल जी के उन उन सवालों पर राहुल जी से हमारे अपने सवाल-
  • 8 नवंबर को नोटबंदी लागू करने के फैसले के बाद अबतक कितना कालाधन देश में पकड़ा गया है ?
 हमारा प्रश्न :हे राहुल जी !कालाधन पकड़ा गया हो न पकड़ा गया हो किंतु कालाधन रोकने का प्रयास तो है
  वैसे भी राहुल जी ! कालाधन तो सारे देश के लिए हो सकता है किंतु काँग्रेस के लिए तो उसके द्वारा मुट्ठी भर लोगों को दिया गया कृपा प्रसाद है अन्यथा काँग्रेस ने सबसे लंबे समय तक शासन किया उसकी इच्छा के बिना ये कालाधन इकठ्ठा हो कैसे गया और यदि हो भी गया तो आपकी सरकारों ने इसे अपने शासनकाल में पकड़ा क्यों नहीं !काँग्रेस में शासन करने की क्षमता नहीं थी या काँग्रेस को कालाधन पकड़ना नहीं आता था या कालेधन वालों के विरुद्ध मुहिम चलाने में काँग्रेस डरती थी या काँग्रेस  कालाधन इसे मानती ही नहीं थी या काँग्रेस अपने लगे हुए कालेधन रूपी वृक्ष को काटना नहीं चाहती थी और आज मोदी जी काटने का प्रयास कर रहे हैं तो काँग्रेस को क्यों दर्द हो रहा है ?
  • पीएम मोदी को बताना चाहिए कि नोटबंदी की वजह से अभी तक कितने लोगों की जान गई है?
  हमारा प्रश्न :हे राहुल जी !नोटबंदी की वजह से किसी की जान नहीं गई है और न ही ये योजना बुरी थी और कैस की कमी भी नहीं  थी किंतु काँग्रेसी सरकारों के शासनकाल में नियुक्त हुए बैंक आदि के कुछ कर्मचारीगण अपना कर्तव्य भूलकर  काँग्रेसी सरकारों के समय कालेधन से धनवान हुए अपने लोगों की मदद करने लगे उनके गोदामों के करोड़ों रूपए बदल दिए और जनता को भूखा प्यासा लाइनों में खड़ा किए रहे उनके ऐसे अत्याचारों को लाइनों में खड़े कुछ गरीब लोग नहीं सह सके और दम तोड़ गए !ऐसे कर्तव्यभ्रष्ट कर्मचारियों की गद्दारी पर अचानक अंकुश लगाने के लिए काँग्रेस ही बता दे कि मोदी सरकार को क्या करने लगना चाहिए था ?क्या उन्हें तुरंत सस्पेंड कर दिया जाना चाहिए था क्या उनकी जगह इतनी जल्दी नई नियुक्तियाँ कर पाना संभव था ?क्या बैंक कर्मचारियों के बिना बैंक अच्छे लगते  ?आखिर जितना काम वो कर रहे थे उतना काम भी कौन करता ?
  • नोटबंदी के फैसले से देश की अर्थव्यवस्था को कितना नुकसान हुआ है?
हमारा प्रश्न :हे राहुल जी !नोटबंदी जब नहीं हुई थी तब ही देश की अर्थव्यवस्था में कौन चार चाँद लग गए थे और यदि काँग्रेसी सरकारों ने अर्थ व्यवस्था का ही अनर्थ न किया होता तो देश ने उन्हें सत्ता से बेदखल क्यों किया होता काँग्रेस ही बता दे कि उसकी अपनी समझ में लोकसभा चुनावों में हुई इतनी भयंकर पराजय का कारण क्या था ?
  • राहुल ने पूछा ये भी पूछा है कि पीएम मोदी ने किसकी सलाह पर नोटबंदी का फैसला लिया था?
हमारा प्रश्न :हे राहुल जी !काँग्रेसी सरकारों में ऐसा होता है वोट कोई माँगता है प्रधानमंत्री कोई बनता है ऐसे में प्रधानमंत्री जैसे बड़े पद पर बैठे हुए व्यक्ति को भी एक परिवार विशेष से पूछ पूछ कर निर्णय लेने होते हैं जो न पूछे तो उसके मंत्रिमंडल के द्वारा लिए गए निर्णयपत्र मीडिया के सामने फाड़कर फ़ेंक दिए जाते हैं !राहुल जी देश का प्रधानमंत्री कोई बँधुआ मजदूर तो नहीं होता कि हर काम दूसरों की सलाह पर ही करे क्या उसे इतनी भी आजादी नहीं होनी चाहिए कि वो कोई कामअपने मन से भी कर सकता हो! वैसे भी जनता ने जनादेश मोदी जी को दिया है जवाब भी उन्हीं से माँगेगी इसलिए निर्णय लेने का अधिकार भी उन्हीं को है वो उचित समझें तो किसी से सलाह लें न समझें न लें !यही स्वस्थ लोकतंत्र की पहचान है । देश के प्रधानमंत्री जैसे सम्मानित व्यक्ति को जिससे देश का स्वाभिमान जुड़ा होता है उसे बँधुआ मजदूर बनाकर कैसे रखा जा सकता  है ?आखिर फैसले लेने के लिए उसे स्वतंत्र क्यों नहीं होना चाहिए ? वैसे तो नोटबंदी का फैसला प्रधानमंत्री जी ने खुद लिया था उन्होंने किसी की सलाह लेने की जरूरत नहीं समझी होगी या ली भी हो तो आप को बताना जरूरी है क्या ?
 नोटबंदी की वजह से जान गंवाने वालों के परिजनों को मुआवजा दिया गया या नहीं?
हमारा प्रश्न :हे राहुल जी !नोटबंदी से नहीं अपितु काँग्रेसी सरकारों के समय से चले आ रहे भ्रष्टाचार की वजह से कुछ लोगों का देहावसान हुआ है जो सरकारी कर्मचारियों की कर्तव्यभ्रष्टता को दर्शाता है क्या सरकार को उन पर भरोसा नहीं करना चाहिए और न करे तो क्या करे !सरकारी सारी  मशीनरी काँग्रेसी सरकारों के समय की ही है उनके कामकाज की शैली भी वही है उनमें से जिन लोगों की निष्ठा भी काँग्रेस पार्टी की ओर ही है वे लोग सरकार के हर निर्णय पर काँग्रेस पार्टी के नेतृत्व का रुख भाप कर ही आचरण करते हैं चूँकि काँग्रेस शुरू से ही मोदी सरकार के नोटबंदी अभियान को फ्लाप करना चाहती थी इसलिए  उसके प्रति निष्ठा रखने वाले कर्मचारियों ने भी वैसा ही किया ?वैसे भी ऐसी दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएँ दोबारा न घटें सरकार ऐसे प्रयासों में लगी है मुआबजा बाँटकर अपने कर्तव्य की इति श्री कर लेने वालों को बताना चाहिए कि गरीब हो या अमीर किसी की मौत का मुआबजा हो सकता है क्या ? 
  • उन लोगों की लिस्ट बताएं, जिन्होंने 8 नवंबर से 2 महीने पहले 25 लाख रुपए से ज्यादा बैंक में जमा कराए थे?
 हमारा प्रश्न :हे राहुल जी !ऐसे लोगों के नाम तो  बैंकों के रिकार्ड में होगें ही इनकी लिस्ट आप खुद बना लीजिए ऐसा आप करना नहीं चाहते या ऐसी लिस्टों की आपको आवश्यकता नहीं है होती तो बना लेते !क्या यह सच नहीं है कि मुद्दा विहीन होने के कारण आप ऐसी  अप्रासंगिक बातें कर रहे हैं!हे नेता जी !देश के प्रधानमंत्री को ऐसी बातों के लिए आदेश नहीं दिया जा सकता !उसके पास जनता के लिए जरूरी कामों की बहुत लंबी लिस्ट होती है उसे क्यों नहीं मागते हैं आप !और टाँग खिंचाई की अपेक्षा सहयोग का रुख क्यों नहीं अपनाते हैं आप ?संसद क्यों नहीं चलने देते हैं आप वहीँ माँग लेते लिस्ट !
  • खातों से निकालने के लिए 24 हजार रुपए की लिमिट ही क्यों? इसे तुरंत बढ़ाया जाए.
हमारा प्रश्न :हे राहुल जी !जब लिमिट लगी थी तब तो कालेधन वालों ने गोदाम भर लिए और जब लिमिट नहीं होगी तब क्या होगा ?सरकार धीरे धीरे सबकुछ कर लेना चाहती है तो इसमें काँग्रेस को आपत्ति क्या है !
  • स्विस सरकार ने पीएम को को स्विस बैंकों में अकाउंट रखने वालों की जो लिस्ट सौंपी है उसे लोकसभा या राज्यसभा में कब पेश किया जाएगा?
हमारा प्रश्न :हे राहुल जी !इसके लिए  लोकसभा में प्रश्न उठाकर सरकार को जवाब देने के लिए मजबूर किया जा सकता था तब वहाँ तो हुल्लड़ मचाते रहे कार्यवाही नहीं चलने दी !ऐसे सवालों का जवाब मीडिया तो देगी नहीं जहाँ आप जवाब माँग रहे हैं किससे कौन सा प्रश्न कैसे और कहाँ किया जाना चाहिए इसी से तो प्रश्नकर्ता की योग्यता परिलक्षित होती है इसके लिए सरकार क्या करे ?वैसे भी ऐसे गंभीर प्रश्नों का उत्तर सरकार सार्वजनिक तौर पर मीडिया में कैसे दे दे ?देशके हर नागरिक की निजता का सम्मान क्यों नहीं किया जाना चाहिए ?

Monday, 26 December 2016

घूस की ताकत समझे सरकार !घूसखोर लोगों के लिए सरकार से ज्यादा महत्त्व रखता है भ्रष्टाचार !

    घूस खोर लोग घूस का पैसा देखते ही पागल हो उठते हैं !उन्हें लगता है कि सैलरी तो सरकार देगी ही जैसे देगी वैसे लेंगे नहीं तो केस करके जीत लेंगे उसकी क्या चिंता किंतु घूस जैसी घर वालों को आकस्मिक प्रसन्नता प्रदान करने वाली आमदनी को क्यों छोड़ा जाए !
    सरकार के भ्रष्टाचार विरोधी नोटबंदी जैसे महान अभियान को अँगूठा दिखाने वाले घूसखोर बैंककर्मी ही तो थे जिन्होंने गद्दारी न की होती तो कैसे पहुँचता कालेधन वालों के पास करोड़ों रूपए का कैस !वो कालेधन वाले तो लाइनों में लगे नहीं बैंकों में झाँकने नहीं आए !घूस के बलपर ही तो बैंक वालों से उन्होंने घर बैठे मँगाया करोड़ों का कैस और ये दे आए घूसखोर कर्मचारी !हर बैंक इसकी गवाही देंगे सरकार जाँच करे तो !सरकार जनता से 50 दिनों के लिए गिड़गिड़ाती रही जनता उन्हें प्रधानमंत्री मानकर उनकी बातों का भरोसा करके दो दो हजार के लिए तरसती दम तोड़ती रही उसकीआँखों के सामने सेकरोड़ों की गड्डियाँ जाती रहीं !उन सरकार भक्त देश वासियों की मौतों का बदला  भ्रष्ट  बैंक कर्मियों से कैसे लेगी सरकार !
     घूसखोर अधिकारी कर्मचारी सरकार के लिए इतने ज्यादा खतरनाक होते हैं जैसे कोई विवाहित स्त्री या पुरुष किसी आशिक की चाहत में अपने पति या पत्नी के प्राणों का प्यासा बन बैठे!ऐसे स्वार्थी सर्पों का साथ सबके लिए सबसे ज्यादा खतरनाक होता है भले वो सरकार ही क्यों न हो !
     घूसखोर लोगों को घूस मिलते दिखाई पड़ी तो वो सरकार की कहीं भी कभी भी कितनी भी बड़ी बेइज्जती  करवा सकते हैं वो इसलिए सरकार पहले उनसे निपटे बाद में दूर करे भ्रष्टाचार !क्योंकि भ्रष्टाचारी लोग सरकार की अपनी आस्तीन के साँप बने बैठे हैं । हर बैंक में कुछ न कुछ गड़बड़ तो हुआ है !
  घूसखोर ,कामचोर ,गैरजिम्मेदार एवं यूनियन बनाने वाले सरकारी कर्मचारियों को पहले सेवामुक्त करे सरकार !तब भ्रष्टाचार पर करे प्रहार तब होगा असरदार !ऐसे भ्रष्टाचार के विरोध का जनता में तो हाहाकार है किंतु सरकारी विभागों में रामराज्य का मंगलाचार है !
     सोर्स और घूस के बल पर नौकरी पाने वालों का मन कहाँ लगता है काम करने में उनमें से चतुर  लोग  यूनियन बना कर अपना समय पास करते और सरकारों को ब्लैकमेल किया करते हैं घूस खोर सरकारें डरकर उनकी माँगे मान लिया करती हैं उन्हें अपने पोल खुलने का भय भी तो होता है वो सारा माल  टाल इन कर्मचारियों की जानकारी में इन्हीं से कमवाया गया होता है ऐसी ही सरकारों की कमजोरी पकड़ कर तो हड़ताल पर जाया करते हैं सरकारी दुलारे !उन्हें पता होता है कि डरी सहमी सरकार अब दूध देगी इसीलिए तो हड़ताल करके दुह लेते हैं सरकार को !तभी तो अपने पाप का बोझ जनता पर डालती जाती है सरकार और सरकारी कर्मचारियों की सैलरी बढ़ाती और सुविधाएँ मुहैया करवाती जाती है सरकार !अन्यथा इनकी सैलरी बढ़ाते समय आम आदमी की आमदनी को ध्यान में क्यों नहीं रखा जाना चाहिए क्या उनके भरण पोषण की जिम्मेदारी सरकार की नहीं होनी चाहिए किंतु सरकार ईमानदार हो तब तो ऐसा सोचे !
   सरकारी कर्मचारियों की यूनियन बनाने वाले सबसे बड़े भ्रष्टाचारी कामचोर और मक्कार होते हैं उन्हें यह सब करने की जरूरत क्या है समझ में आवे तो नौकरी करें अन्यथा त्यागपत्र दें !बहुत बेरोजगार योग्य लोग नौकरी की तलाश में नाले साफ करते घूम रहे हैं और घूसखोर बैंककर्मी घूस से घर भर रहे हैं !यूनियन वाले कर्मचारी हड़ताल करके घूसखोर भ्रष्ट सरकारों को उनके भ्रष्टाचार की पोल खोलने की धमकी देकर मनवाया करते हैं अपनी माँगें और अँगुलियों पर नचाया करते हैं भ्रष्ट सरकारों को !किंतु ईमानदार सरकारें उनकी इस ब्लैकमेलिंग को क्यों सहें उन्हें ऐसे भ्रष्ट कर्मचारियों पर लगाम लगाकर सबसे पहले अपनी ईमानदारी का परिचय देना चाहिए !भ्रष्टाचार के माता पिता सरकारी कर्मचारी हैं या फिर सरकारों में सम्मिलित लोग !आम जनता तो इसे अपनों की अपने साथ गद्दारी मानती है मज़बूरी में सहती है !
   भ्रष्टाचार पकड़ने का फर्मूला अपनावे सरकार यदि ईमानदारी का परिचय देना हो तो !  
    नेता जब पहला चुनाव लड़े थे, बाबा जब पहली बार बाबा बने थे और सरकारी कर्मचारियों की जब पहली बार नौकरी में आए थे तब उनके पास कितनी संपत्ति थी और आज कितनी है साथ ही इस बीच हुई उनकी आय के ईमानदार स्रोतों की ईमानदारी पूर्वक जाँच कराई  जाए तो देश के सारे भ्रष्टाचार की पोल तो खुल ही जाएगी साथ ही सभी प्रकार के अपराधों का भी पर्दाफास हो जाएगा !बड़े से बड़े अपराधियों को नेताओं बाबाओं या बड़े बड़े आफीसरों की ही गोद में खेलते खाते ,पलते ,बढ़ते देखा जाता हैं !बिना हेलमेट के मोटरसाइकिल वालों को पल में पकड़ लेने वाली सरकार इतने बड़े बड़े अपराधियों को तैयार कैसे होने देती है !
    प्रधानमंत्री जी ! घूस लेने वाले सरकारी कुकर्मचारी तो एटीएम,पेटीएम मानेंगे नहीं वो तो कैस में ही माँगेंगे घूस !उनसे कैसे निपटा जाएगा !
   भारत सरकार से घूस मिलने की आशा नहीं थी इसीलिए घूस प्रिय बैंक कर्मियों ने दिया कालेधन वालों का साथ !और समय से पहले ही नए नोटों में बदल दिया उनका करोड़ों का कैस  जो सरकारी कर्मचारी घूस न मिलने के कारण देश के साक्षात प्रधानमंत्री जी की बातों को नहीं मानते हैं वो घूस न देने वाली जनता के साथ कैसा सलूक करते होंगे !
       हे मोदी जी !  घूस तो कैस में ही चलती रही है इसके बिना सरकारी विभागों से काम लेना केवल कठिन ही नहीं अपितु असंभव भी होता है । समय से काम लेना है तब तो अत्यंत आवश्यक है घूस का आदान प्रदान !
     महोदय ! सरकारी कर्मचारियों की दृष्टि से यदि  सैलरी और घूस देने वालों की यदि तुलना की जाए तो सैलरी देने वाली सरकार हार जाती है और घूस देकर काम कराने वाले जीत जाते हैं !सरकार ने कालेधन वालों के विरुद्ध कठोर कदम उठाने के प्रकट आदेश दिए दूसरी ओर कालेधन वालों ने सरकारी आदेश को ठेंगा दिखाने का अघोषित आदेश जारी किया !सरकारी कर्मचारियों ने सुनी किसकी सरकार की या कालेधन वालों की !सरकार के अपने कर्मचारियों ने सैलरी देने वाली अपनी सरकार पर उतना भरोसा नहीं किया जितना घूस देकर काले धन को सफेद करवाने वालों पर किया !कालेधन वाले लोगों के गोदामों में समय से पहुँचा दिए गए करोड़ों की संख्या में बदल बदल कर नए नोट !कोई काले धन वाला नहीं देखा गया कहीं लाइनों में लगते और सबसे पहले भरे गए उनके गोदाम !श्रीमान जी !ये है घूस का कमाल !
       आधी आधी रात से लाइनों में भूखे प्यासे खड़े लोगों को दिखा दिखा कर लंच करते रहते हैं सरकारी कर्मचारी । लाइनों में लगी जनता यह देख देख कर दम तोड़ती रहती है !उसे लगता था कि ये तो दस बजे घर से खाकर चले होंगे इन्हें फिर भूख लग गई इनके लंच की चिंता सरकार को है और हमारी ! 
         नोटबंदी अभियान में तो सरकार को भी भुगतना ही पड़ा है घूस न देने का दंड !जिन्होंने घूस दी उनका करोड़ों का कैस बदलकर उनके गोदामों में पहुँचाया और जो मोदी जी की बातों के भरोसे रहे घूस नहीं दी वो लाइनों में खड़े खड़े मर गए भूखे प्यासे !जिन्होंने घूस दी उनके रात बिरात भी काम हुए !  मोदी जी !घूस लिए बिना बैंक वालों ने जब आपका काम नहीं किया तो ये जनता का काम क्या करते होंगे वहाँ तो खाना पूर्ति ही होती है !        
      प्रधानमंत्री जी के द्वारा देश हित में लिए गए फैसले को सबसे अधिक सहयोग और सम्मान सरकारी जिन कर्मचारियों के द्वारा सरकारी विभागों से मिलना चाहिए था वहाँ वैसा नहीं हुआ !गैर क़ानूनी रूप से नए नोटों का जहाँ जितना जो भी भंडार  मिला है या भविष्य में कहीं मिलेगा वो किसी न किसी सरकारी कर्मचारी की सरकार और सरकार भक्त जनता के साथ की गई गद्दारी के ज्वलंत सबूत हैं !
          हे प्रधानमंत्री जी !कभी सरकारी विभागों में जाकर देखिए किंतु जाए कौन और देखे कौन !सरकारों में सम्मिलित नेता लोग तो केवल आदेश देने के लिए होते हैं वो तो सत्ता के नशे में इतना अधिक चूर होते हैं कि उन्हें लगता है जो मैंने कह दिया वो हो गया किंतु सरकारी आदेशों को कैसे ठेंगा दिखाते हैं सरकारी कर्मचारी ये जनता तो भोगती ही थी किंतु नोटबंदी अभियान में सरकार ने भी भोग ही लिया है फिर भी सरकार में सम्मिलित लोगों की आँखें न खुलें तो इसे उनके किसी पूर्व जन्म का कर्म भोग ही माना जाना चाहिए !
     महोदय !देश में जबतक घूस लेने वालों का वर्चस्व रहेगा तब तक प्रायः ईमानदार राजनेता यदि सत्ता में आ भी जाएँ और वो ईमानदारी पूर्वक भ्रष्टाचार मिटाना भी चाहें तो उन्हें कई प्रकार के भयों को सहने के लिए हमेंशा तैयार रहना पड़ता है सबसे पहली बात सरकारी कर्मचारियों की जो सरकार के सामने तो हाँ हाँ कितना भी करें किंतु सरकार का और सरकार की योजनाओं का साथ  वे प्रायः बहुत कम देते हैं । वो या तो घूस देने वालों का साथ देते हैं या फिर जिस सरकार के समय उनकी नौकरी लगी होती है उन नेताओं की इच्छा के अनुरूप बर्ताव कर रहे होते हैं । बाकी सरकारी आदेशों को ठेंगा दिखाया करते हैं ये ! जनता सरकारी आदेशों पर जरूर भरोसा करती है वो भूखी प्यासी डटी रहती है सरकारी आदेशों के साथ !
     महोदय !घूस दिए बिना सरकारी विभागों से काम करवाने का मतलब लोहे के चने चबाना होता है वो भी समय से !घूस न देने का मतलब या तो काम होगा नहीं या आधा अधूरा होगा या बहुत लेट होगा या बहुत अपमानित करके किया जाएगा वो काम !
         व्यापार करने वालों को समय से संपूर्ण काम सम्मान पूर्वक अपनी इच्छा के अनुसार करवाना होता है इसलिए उन्हें सरकार के उन सभी विभागों को घूस देनी पड़ती है जिनसे जिनसे उनका काम पड़ता रहता है इसलिए उन्हें रखना पड़ता है कालाधन !और तो और पोस्टमैन तक का महीना बँधा होता है अन्यथा चेक बुक दरवाजे पर फटी पड़ी मिलेगी अगले दिन !ऐसी ही हरकतों के कारण सरकारी विभागों को दलालों का अड्डा एवं सरकारी कर्मचारियों को भिखारी या अपना नौकर समझते हैं बड़े बड़े व्यापारी लोग !
          प्रधानमंत्री जी !आप अपने को प्रधानमंत्री समझें भले किंतु सरकारी कर्मचारियों के प्रधानमंत्री तो वही हैं जो उन्हें घूस देते हैं सैलरी देने वाले प्रधानमंत्री को कौन पूछता है सैलरी देना तो सरकार की मज़बूरी है वो तो कैसे भी ले लेंगे !कानून उनके साथ है । कुछ लोग तो मानते हैं कि नौकरी पाने के लिए हमने जो घूस दी थी सैलरी के रूप  वही वसूल रहे हैं हम !इसमें पाप क्या है ।
   प्रधानमंत्री जी ! भारत सरकार भी अपने सरकारी कर्मचारियों से काम लेने के लिए घूस देगी क्या ?यदि नहीं देगी तो उनसे काम करा लेगी क्या ?सरकारी कर्मचारियों को जो घूस देगा वो उसका तो काम करेंगे  सैलरी कितनी भी मिले वो देनी तो सरकार की मज़बूरी है किंतु घूस जरूरी है !
   भारत सरकार ने घूस नहीं दी  तो उन्होंने काम भी कितना और कैसे किया क्या  दुनियाँ जानती नहीं है !
     देश के प्रधानमंत्री जी नोटबंदी अभियान में देश वासियों से 50 दिन माँगते रहे !किन्तु सरकारी कर्मचारी गद्दारी करते रहे !प्रधानमंत्री जी के आदेशों की अवहेलना करने वाले अधिकारी कर्मचारियों से आजतक दी गई सैलरी वापस ली जाए ताकि दोबारा कोई कर्मचारी ऐसा करने की हिम्मत न जुटा सके इसके लिए कठोर दंड का विधान किया जाए !सरकार का हर विभाग कर्तव्यभ्रष्टता गैरजिम्मेदारी घूस खोरी का शिकार है जनता के काम के लिए सैलरी लेने वाले अधिकारी कर्मचारी जनता की तो सुनते ही नहीं हैं किंतु क्या सरकार की भी नहीं सुनते हैं !आश्चर्य !!
       घूसखोर सरकारीकर्मचारी जब प्रधानमंत्री के आदेशों को नहीं मानते और घूस देने वालों की आज्ञा का पालन करते रहते हैं ऐसे लोग आम जनता का काम कैसे करते होंगे !ऐसे भ्रष्टाचारियों को आज तक दी गई  सैलरी को सरकारी धन का दुरुपयोग समझते हुए वापस लिया जाना चाहिए और सरकार के साथ धोखाधड़ी करने के आरोप में उन्हें दण्डित किया जाना चाहिए !
      जो घूस देता है  काम उसी का होता है समय से होता है अच्छे ढंग से होता है अपनेपन से होता है और जो घूस नहीं देता है उसका काम न करने के लिए सरकारी कर्मचारियों के पास लाखों बहाने होते हैं सरकार के पुरखों को चुनौती होती है बिना घूस दिए उनसे काम लेकर दिखाए सरकार !
        पीएम साहब ! सरकार यदि बैंक कर्मियों को घूस देती तो न लगतीं लाइनें और न घटता कैस ! न ही किसी को मरने देते बैंक वाले !जिन्होंने जैसी घूस दी उनके वैसे काम हुए !घूस न देने वाले दो दो हजार के लिए तरसते रहे लाइनों में खड़े किंतु घूस देने वालों के करोड़ों रूपए बदलकर उनके गोदामों में समय से पहुँचाए गए जिनके कालेधन के विरुद्ध आप गरज रहे थे उनकी सेवा में लगे थे आपके अपने दुलारे पिआरे बैंक कर्मचारी !काले धन वालों ने जैसा चाहा वैसा करवाया आपके बैंक कर्मियों से और शुरू के 5-7 दिनों में निपटा दिया गया था अपनों का सारा काम !
     सरकारी नौकरी होने के कारण उन्हें सैलरी देना और बढ़ाना तो बेचारी सरकारों की मजबूरी है किंतु काम उन्हीं का होगा जो घूस देंगे !प्रधानमंत्री जी !आप अपने पद और अधिकारों की ठसक में थे कि हम जैसा चाहेंगे वैसा करा लेंगे बैंक कर्मियों से किंतु आप जनता से 50 दिनों के लिए गिड़गिड़ाते रहे किंतु उन्होंने अपने काले धन वालों का अधिकाँश काम तो शुरू के ही 5 -7 दिनों में निपटा दिया था कहीं कोई दिखा बैंकों के आगे लाइनें  लगाए हुए !
     हे मोदी जी !यदि आपने भी बैंक कर्मचारियों को घूस दी होती तो आपकी सरकार की भी वे इज्जत बचा सकते थे किंतु जब आपने उनको घूस नहीं दी तो उन्हें जिन्होंने दी उनके बड़े बड़े काम हिम्मत से उन्होंने किए !देश के प्रधानमंत्री की भ्रष्टाचार विरोधी बातें सुन सुन कर मजाक उड़ाते रहे वो लोग !और जिन्होंने उन्हें घूस दी उनके करोड़ों रूपए बदलकर उन काले धन वालों के गोदाम भरे गए !
      आम जनता तो काम न होने पर एक बार संतोष भी कर लेती है किंतु ब्यापारियों का गुजारा संतोष करने से तो होगा नहीं उन्हें तो काम करना ही पड़ेगा !बिना काम के वो  सैलरी कहाँ से देंगे कर्मचारियों को !उन्हें तो कई कई विभागों को पूजना पड़ता है !इसका अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि चिट्ठी देने आने वाला पोस्टमैन  देकर जाता है कि अबकी महीन नहीं दिया तो तुम्हारी चिट्ठियाँ चेक बुक आदि डाक खाने के बगल में बने नाले में मिलेंगी !आने जाने वालों की मोटर साइकिलें दरवाजे पर खड़ी हो जाती हैं उसके लिए बीट वाले को सप्ताह के हिसाब से देना होता है !बैंकों संबंधी कामों के लिए मैनेजरों को तो जो जाता है वो जाता ही है बाकी कर्मचारियों को भी समझना पड़ता है जैसा गुड़ डालो वैसा मीठा होता है ! सरकारी कर्मचारियों की कम्प्यूटर के की बोर्ड पर थिरकती अँगुलियों से पता लग जाता है कि ये काम सरकारी सैलरी से हो रहा है या घूस से ! सरकारी विभागों में देने के लिए तो में कैसे होगा जनता का जरूरी काम काज !व्यापारियों को इसके लिए तो रखना ही पड़ेगा कालाधन !घूस के चलन को रोका तो जा नहीं सकता ब्यापारियों की मज़बूरी होती है ।
       घूस दिए बिना कैसे कोई करवा लेगा सरकारी कर्मचारियों से अपना काम!उन्हें किसी और से घूस लेकर क्यों बदलने पड़ते उनके पुराने नोट !सरकारों में सम्मिलित लोग और सरकारी कर्मचारी ईमानदार हों तो अच्छी सरकार और भ्रष्ट हों तो भ्रष्टाचार !वस्तुतः भ्रष्टाचार तो सरकार के अपने परिवार का निजी मामला है इसके लिए जनता में क्यों मचा है हाहाकार !
             नोटबंदी अभियान में तो सरकार को भी भुगतना ही पड़ा है घूस न देने का दंड !जिन्होंने घूस दी उनका करोड़ों का कैस बदलकर उनके गोदामों में पहुँचाया और जो मोदी जी की बातों के भरोसे रहे घूस नहीं दी वो लाइनों में खड़े खड़े मर गए भूखे प्यासे !जिन्होंने घूस दी उनके रात बिरात भी काम हुए !  मोदी जी !घूस लिए बिना बैंक वालों ने जब आपका काम नहीं किया तो ये जनता का काम क्या करते होंगे वहाँ तो खाना पूर्ति ही होती है !

Sunday, 25 December 2016

अधिकारी कोपभवनों से बाहर निकलें और सरकार को सहारा दें ! गरीबों ग्रामीणों को भी दें अपनेपन का एहसास !

  आफिसों में अधिकारियों के लिए बना दिए गए हैं कोप भवन!जिनमें बैठे बेचारे अकेले कुढ़ रहे होते हैं वे !
  सरकारी आफिसों में अधिकारियों को हमेंशा निभाते रहनी पड़ती है एक क्रोधी पुरुष या स्त्री की भूमिका !जूनियर लोग उन्हें क्रोधी और घूसखोर सिद्ध कर करके आम जनता से किया करते हैं वसूली!जनता और अधिकारियों को सीधे एक दूसरे से मिलने ही नहीं देते हैं ! 
  इसीलिए जनता अधिकारियों से निराश हो चुकी है जनता के लिए यह समझ पाना कठिन ही नहीं अपितु बिलकुल असंभव सा लगने लगा है कि इस लोकतंत्र में जनता के सुख दुःख में सहभागिता की दृष्टि से अधिकारियों की कोई भूमिका है भी या नहीं !क्योंकि आम जनता किसी भी  संबंधित  संकट से कैसे भी जूझ रही हो किंतु उसे ढाढस बँधाने कोई अधिकारी नहीं आता है कहीं कोई घटना घट जाए और अपरिहार्य कारणों से संबंधित किसी अधिकारी को वहाँ यदि जाना पड़ भी जाए तो कैदियों की पेशी की तरह कुछ लोगों के घेरे में आते हैं अधिकारी महोदय !और उसी घेरे में सम्मिलित लोगों से बात करके लौट जाते हैं आम जनता तो उनकी गाड़ी के पहियों से उड़ी धूल ही देख पाती है जिसके लिए वहाँ वे आए होते हैं ।
        शिक्षा से जुड़े अधिकारी स्कूलों में झाँकने आएँगे ही नहीं इसी सबसे बड़े भरोसे के बलपर तो शिक्षक  शिक्षिकाएँ स्कूल टाइम में ही निपटाया करते हैं अपनी घर गृहस्थी नाते रिस्तेदारों के जरूरी काम काज !मोबाईल पर बातें करते रहना, गेम  खेलना, मूवी देखना, स्वेटर बुनना ,कुछ खरीदकर खाने लगना आदि सारे दोषों का परिमार्जन करने के लिए उसे अपने से सीनियर के पास पेश होकर थोड़ी देर दुम हिलानी होती है बश !किंतु क्या इससे शिक्षा के उद्देश्यों की पूर्ति हो जाती है क्या ! किंतु जिन विभागों के अधिकारी इतने लापरवाह हों उनके कर्मचारी आखिर क्यों करें काम !अपने अधिकारियों से ही तो वो भी सीखेंगे !जिस स्त्री का पति ही अँधा हो वो किसे दिखाने के लिए श्रृंगार करे !ऐसे ही लापरवाह अधिकारियों के आधीन रहने वाले ईमानदार कर्मचारी भी अपनी योग्यता का परिचय किसे दें !
   सरकारी स्कूलों अस्पतालों आदि की भद्द पिटने  मतलब अधिकारियों की गैर जिम्मेदारी और अकर्मण्यता का आनंद ले रहे हैं शिक्षक चिकित्सक आदि !सरकार के प्रायः सभी विभागों में भूमिका विहीन लगने लगे हैं अधिकारी !जनता से सीधे तौर पर जुड़ी  समस्याओं से संबंधित किसी अधिकारी को आफिस के किसी एक कमरे में सजाकर बैठा देने से जनता का भला आखिर कैसे हो जाता है !जो जनता के काम न आ सके उसका योगदान क्या है !
    जलबोर्ड के अधिकारियों को पाइपलाइनों की जानकारी नहीं होती, टेलीफोन विभाग के अधिकारियों को केबल का पता नहीं होता, कृषि अधिकारी कृषि कार्यों से अपरिचित होते हैं ऐसे ही सभी विभागों का हाल है अपने अपने विभागों से जुड़े जूनियर कर्मचारियों से पूछ पूछ कर ज्ञानबर्द्धन करने वाले अधिकारियों से अच्छे काम काज की अपेक्षा कैसे की जाए !ऐसे अयोग्य डिग्री धारी लोग अपने से जूनियर कर्मचारियों को कैसे कुछ सिखा  सकेंगे किस मुख से काम करने का दबाव डाल सकेंगे !पानी में घुस कर खुद तैरना सीखे बिना किसी और को तैरना कैसे सिखाया जा सकता है !
        सफाई  कर्मियों की नौकरी के लिए बड़े बड़े शिक्षित बच्चों ने फार्म भरे उनका टेस्ट लेने के लिए उन्हें एक नाले में उतार दिया गया सफाई करने के लिए वो तो बेरोजगारी के कारण अपनी जिंदगी की परवाह किए बगैर उतर गए नाले में और सफाई करने लगे किंतु यदि उनका टेस्ट लेने वाले अधिकारी को उसी प्रकार से नाले में उतार दिया जाता सफाई करने के लिए तो क्या वो पास कर लेते ऐसा टेस्ट !यदि नहीं तो वो अधिकारी किस बात के !जिस काम को वो स्वयं नहीं कर सकते उसकी परीक्षा लेने के लिए ऐसे लोगों को नियुक्त किया जाना कितना न्यायोचित माना जाना चाहिए ! ऐसे अधिकारियों को परीक्षा लेना ही यदि आता होता तो इतना तो वो भी समझ सकते थे कि सबों ने मिलकर नाला यदि साफ कर भी दिया तो फेल पास करने का पारदर्शी मानक क्या होगा और उन्हें सफल या असफल कैसे घोषित किया जाएगा !
      अधिकारी अपने विभागों से जुड़े काम काज को अपनी आखों से देखना और अपने दिमाग से समझना कब का छोड़ चुके हैं जिन घूसखोर कर्मचारियों से प्रताड़ित होकर जनता अधिकारियों की शरण में सहायता के लिए मदद माँगने जाती है उन्हीं घूसखोरों को अधिकारी  भेज देते हैं उस मामले की जाँच करने को !अंततः जनता को  उन्हीं घूसखोरों से हाथ पैर जोड़ने पड़ते हैं और उन्हीं से माँगनी पड़ती है दया की भीख ! उन्हीं से समझौता करना पड़ता है !उनके कथानुसार पहले की अपेक्षा अब डबल घूस देनी पड़ती है क्योंकि अब अधिकारी का हिस्सा भी सम्मिलित हो चुका होता है !अधिकारी के यहाँ कम्प्लेन करने से पहले की अपेक्षा कम से कम डबल तो देनी ही पड़ती है घूस ! ऐसे में ईमानदार अधिकारियों को जनता कैसे पहचाने !
     अपने जूनियर से अपने मन की बातें करने से स्तर न घट जाने का भय और अपने से सीनियर से संबंध सुधारने की बड़ी बीमारी से ग्रस्त ऐसे लोगों के पास आने वाले फोन भी सुख शांति प्रदान करने वाले कहाँ और कितने होते हैं !
     कुल मिलाकर भारत के  भ्रष्टाचार से कोई एक अकेला आदमी कहाँ तक जूझेगा !इसलिए उचित होगा कि ईमानदार अधिकारी कर्मचारी खानापूर्ति  छोड़कर अपनी ईमानदार भूमिका निभाएँ और भ्रष्टाचार मुक्ति महा अभियान के सक्रिय सिपाही बनें ! देशवासी उन्हें देंगे अपार स्नेह ,सम्मान और आनंद देंगे !एक बार गरीबों ग्रामीणों से अधिकारी बन कर नहीं अपनेपन से मिलें तो सही !उनकी समस्याएँ सुन सुन कर जीना सीख जाएँगे अधिकार मूर्च्छित बड़े बड़े घमंडी लोग भी !
      यह उनके लिए चिकित्सा की दृष्टि से भी काफी लाभ प्रिय होगा ! गरीबों ग्रामीणों से सहज बात ब्यवहार रखने वाले बड़े बड़े लोग अधिकारी कभी मानसिक तनाव के रोगी नहीं हो सकते !वैसे भी कोई काम करने के बोझ से कभी नहीं थकता अपितु काम न करने वाले या घूसखोर अधिकारियों की आत्माएँ छोड़ती जा रही  हैं उनका साथ !जो एकांत में अपनी आत्मा का सामना नहीं कर सकते !वो बिना काम किए ही हमेंशा हैरान परेशान थके थके बोझिल से बने रहते हैं !सोने पर सोने का आनंद नहीं खाने पर भोजन का स्वाद नहीं !किसी से मिलने पर मन नहीं खोल पाते तो मिलने का मजा और मस्ती कहाँ है !
    अधिकारी होने के कारण अपने से छोटों से बात करने में स्तर घटता हैं अपने से बड़ों से बात करना  चाहते हैं किंतु वे घास नहीं डालते ! विधायक सांसद मंत्री आदि बनने वाले नेता लोग प्रायः अशिक्षित या अल्पशिक्षित होने के कारण उठने बैठने बोलने के  शिष्टाचार से बंचित होते हैं उन्हें सुशिक्षित अधिकारियों का अपमान करने में आनंद आता है उनसे बात करके अधिकारी कभी खुश नहीं रह सकते !उनके काम करके उन्हें कभी संतुष्ट नहीं कर सकते !ऐसे लोगों के पास अधिकारियों को केवल तनाव ही मिलने की संभावना रहती है उनका विधायकपन,सांसदपन ,मंत्रीपन हमेंशा अधिकारियों के अधिकारीपन पर भारी ही पड़ता  रहता है ! 
     ऐसे असभ्य राजनैतिक वातावरण में सुशिक्षित अधिकारी कहाँ और कैसे खुश रह सकते हैं ऐसे में उन्हें चाहिए गरीबों ग्रामीणों के सहज सदाचरण से आत्मिक ऊर्जा और आध्यत्मिक आशीर्वाद जो हर परिस्थिति में मनोबल उठाए रखेगा !वैसे भी आध्यात्मिक ऊर्जावान मनोबल संपन्न लोग सरकारों से क्या यमराज से भी नहीं डरते तो उन्हें मानसिक तनाव से कभी नहीं जूझना पड़ता !
 


     


Saturday, 24 December 2016

प्रधानमंत्री जी ! घूस लेने वाले सरकारी कुकर्मचारी तो एटीएम,पेटीएम मानेंगे नहीं वो तो कैस में ही माँगेंगे घूस !उनसे कैसे निपटा जाएगा !

 जो सरकारी कर्मचारी घूस न मिलने के कारण देश के साक्षात प्रधानमंत्री जी की बातों को नहीं मानते हैं वो घूस न देने वाली जनता के साथ कैसा सलूक करते होंगे !
       हे मोदी जी !  घूस तो कैस में ही चलती रही है इसके बिना सरकारी विभागों से काम लेना केवल कठिन ही नहीं अपितु असंभव भी होता है । समय से काम लेना है तब तो अत्यंत आवश्यक है घूस का आदान प्रदान !
     महोदय ! सरकारी कर्मचारियों की दृष्टि से यदि  सैलरी और घूस देने वालों की यदि तुलना की जाए तो सैलरी देने वाली सरकार हार जाती है और घूस देकर काम कराने वाले जीत जाते हैं !सरकार ने कालेधन वालों के विरुद्ध कठोर कदम उठाने के प्रकट आदेश दिए दूसरी ओर कालेधन वालों ने सरकारी आदेश को ठेंगा दिखाने का अघोषित आदेश जारी किया !सरकारी कर्मचारियों ने सुनी किसकी सरकार की या कालेधन वालों की !सरकार के अपने कर्मचारियों ने सैलरी देने वाली अपनी सरकार पर उतना भरोसा नहीं किया जितना घूस देकर काले धन को सफेद करवाने वालों पर किया !कालेधन वाले लोगों के गोदामों में समय से पहुँचा दिए गए करोड़ों की संख्या में बदल बदल कर नए नोट !कोई काले धन वाला नहीं देखा गया कहीं लाइनों में लगते और सबसे पहले भरे गए उनके गोदाम !श्रीमान जी !ये है घूस का कमाल !
       आधी आधी रात से लाइनों में भूखे प्यासे खड़े लोगों को दिखा दिखा कर लंच करते रहते हैं सरकारी कर्मचारी । लाइनों में लगी जनता यह देख देख कर दम तोड़ती रहती है !उसे लगता था कि ये तो दस बजे घर से खाकर चले होंगे इन्हें फिर भूख लग गई इनके लंच की चिंता सरकार को है और हमारी ! 
         नोटबंदी अभियान में तो सरकार को भी भुगतना ही पड़ा है घूस न देने का दंड !जिन्होंने घूस दी उनका करोड़ों का कैस बदलकर उनके गोदामों में पहुँचाया और जो मोदी जी की बातों के भरोसे रहे घूस नहीं दी वो लाइनों में खड़े खड़े मर गए भूखे प्यासे !जिन्होंने घूस दी उनके रात बिरात भी काम हुए !  मोदी जी !घूस लिए बिना बैंक वालों ने जब आपका काम नहीं किया तो ये जनता का काम क्या करते होंगे वहाँ तो खाना पूर्ति ही होती है !        
      प्रधानमंत्री जी के द्वारा देश हित में लिए गए फैसले को सबसे अधिक सहयोग और सम्मान सरकारी जिन कर्मचारियों के द्वारा सरकारी विभागों से मिलना चाहिए था वहाँ वैसा नहीं हुआ !गैर क़ानूनी रूप से नए नोटों का जहाँ जितना जो भी भंडार  मिला है या भविष्य में कहीं मिलेगा वो किसी न किसी सरकारी कर्मचारी की सरकार और सरकार भक्त जनता के साथ की गई गद्दारी के ज्वलंत सबूत हैं !
          हे प्रधानमंत्री जी !कभी सरकारी विभागों में जाकर देखिए किंतु जाए कौन और देखे कौन !सरकारों में सम्मिलित नेता लोग तो केवल आदेश देने के लिए होते हैं वो तो सत्ता के नशे में इतना अधिक चूर होते हैं कि उन्हें लगता है जो मैंने कह दिया वो हो गया किंतु सरकारी आदेशों को कैसे ठेंगा दिखाते हैं सरकारी कर्मचारी ये जनता तो भोगती ही थी किंतु नोटबंदी अभियान में सरकार ने भी भोग ही लिया है फिर भी सरकार में सम्मिलित लोगों की आँखें न खुलें तो इसे उनके किसी पूर्व जन्म का कर्म भोग ही माना जाना चाहिए !
     महोदय !देश में जबतक घूस लेने वालों का वर्चस्व रहेगा तब तक प्रायः ईमानदार राजनेता यदि सत्ता में आ भी जाएँ और वो ईमानदारी पूर्वक भ्रष्टाचार मिटाना भी चाहें तो उन्हें कई प्रकार के भयों को सहने के लिए हमेंशा तैयार रहना पड़ता है सबसे पहली बात सरकारी कर्मचारियों की जो सरकार के सामने तो हाँ हाँ कितना भी करें किंतु सरकार का और सरकार की योजनाओं का साथ  वे प्रायः बहुत कम देते हैं । वो या तो घूस देने वालों का साथ देते हैं या फिर जिस सरकार के समय उनकी नौकरी लगी होती है उन नेताओं की इच्छा के अनुरूप बर्ताव कर रहे होते हैं । बाकी सरकारी आदेशों को ठेंगा दिखाया करते हैं ये ! जनता सरकारी आदेशों पर जरूर भरोसा करती है वो भूखी प्यासी डटी रहती है सरकारी आदेशों के साथ !
     महोदय !घूस दिए बिना सरकारी विभागों से काम करवाने का मतलब लोहे के चने चबाना होता है वो भी समय से !घूस न देने का मतलब या तो काम होगा नहीं या आधा अधूरा होगा या बहुत लेट होगा या बहुत अपमानित करके किया जाएगा वो काम !
         व्यापार करने वालों को समय से संपूर्ण काम सम्मान पूर्वक अपनी इच्छा के अनुसार करवाना होता है इसलिए उन्हें सरकार के उन सभी विभागों को घूस देनी पड़ती है जिनसे जिनसे उनका काम पड़ता रहता है इसलिए उन्हें रखना पड़ता है कालाधन !और तो और पोस्टमैन तक का महीना बँधा होता है अन्यथा चेक बुक दरवाजे पर फटी पड़ी मिलेगी अगले दिन !ऐसी ही हरकतों के कारण सरकारी विभागों को दलालों का अड्डा एवं सरकारी कर्मचारियों को भिखारी या अपना नौकर समझते हैं बड़े बड़े व्यापारी लोग !
          प्रधानमंत्री जी !आप अपने को प्रधानमंत्री समझें भले किंतु सरकारी कर्मचारियों के प्रधानमंत्री तो वही हैं जो उन्हें घूस देते हैं सैलरी देने वाले प्रधानमंत्री को कौन पूछता है सैलरी देना तो सरकार की मज़बूरी है वो तो कैसे भी ले लेंगे !कानून उनके साथ है । कुछ लोग तो मानते हैं कि नौकरी पाने के लिए हमने जो घूस दी थी सैलरी के रूप  वही वसूल रहे हैं हम !इसमें पाप क्या है ।
   प्रधानमंत्री जी ! भारत सरकार भी अपने सरकारी कर्मचारियों से काम लेने के लिए घूस देगी क्या ?यदि नहीं देगी तो उनसे काम करा लेगी क्या ?सरकारी कर्मचारियों को जो घूस देगा वो उसका तो काम करेंगे  सैलरी कितनी भी मिले वो देनी तो सरकार की मज़बूरी है किंतु घूस जरूरी है !
   भारत सरकार ने घूस नहीं दी  तो उन्होंने काम भी कितना और कैसे किया क्या  दुनियाँ जानती नहीं है !
     देश के प्रधानमंत्री जी नोटबंदी अभियान में देश वासियों से 50 दिन माँगते रहे !किन्तु सरकारी कर्मचारी गद्दारी करते रहे !प्रधानमंत्री जी के आदेशों की अवहेलना करने वाले अधिकारी कर्मचारियों से आजतक दी गई सैलरी वापस ली जाए ताकि दोबारा कोई कर्मचारी ऐसा करने की हिम्मत न जुटा सके इसके लिए कठोर दंड का विधान किया जाए !सरकार का हर विभाग कर्तव्यभ्रष्टता गैरजिम्मेदारी घूस खोरी का शिकार है जनता के काम के लिए सैलरी लेने वाले अधिकारी कर्मचारी जनता की तो सुनते ही नहीं हैं किंतु क्या सरकार की भी नहीं सुनते हैं !आश्चर्य !!
       घूसखोर सरकारीकर्मचारी जब प्रधानमंत्री के आदेशों को नहीं मानते और घूस देने वालों की आज्ञा का पालन करते रहते हैं ऐसे लोग आम जनता का काम कैसे करते होंगे !ऐसे भ्रष्टाचारियों को आज तक दी गई  सैलरी को सरकारी धन का दुरुपयोग समझते हुए वापस लिया जाना चाहिए और सरकार के साथ धोखाधड़ी करने के आरोप में उन्हें दण्डित किया जाना चाहिए !
      जो घूस देता है  काम उसी का होता है समय से होता है अच्छे ढंग से होता है अपनेपन से होता है और जो घूस नहीं देता है उसका काम न करने के लिए सरकारी कर्मचारियों के पास लाखों बहाने होते हैं सरकार के पुरखों को चुनौती होती है बिना घूस दिए उनसे काम लेकर दिखाए सरकार !
        पीएम साहब ! सरकार यदि बैंक कर्मियों को घूस देती तो न लगतीं लाइनें और न घटता कैस ! न ही किसी को मरने देते बैंक वाले !जिन्होंने जैसी घूस दी उनके वैसे काम हुए !घूस न देने वाले दो दो हजार के लिए तरसते रहे लाइनों में खड़े किंतु घूस देने वालों के करोड़ों रूपए बदलकर उनके गोदामों में समय से पहुँचाए गए जिनके कालेधन के विरुद्ध आप गरज रहे थे उनकी सेवा में लगे थे आपके अपने दुलारे पिआरे बैंक कर्मचारी !काले धन वालों ने जैसा चाहा वैसा करवाया आपके बैंक कर्मियों से और शुरू के 5-7 दिनों में निपटा दिया गया था अपनों का सारा काम !
     सरकारी नौकरी होने के कारण उन्हें सैलरी देना और बढ़ाना तो बेचारी सरकारों की मजबूरी है किंतु काम उन्हीं का होगा जो घूस देंगे !प्रधानमंत्री जी !आप अपने पद और अधिकारों की ठसक में थे कि हम जैसा चाहेंगे वैसा करा लेंगे बैंक कर्मियों से किंतु आप जनता से 50 दिनों के लिए गिड़गिड़ाते रहे किंतु उन्होंने अपने काले धन वालों का अधिकाँश काम तो शुरू के ही 5 -7 दिनों में निपटा दिया था कहीं कोई दिखा बैंकों के आगे लाइनें  लगाए हुए !
     हे मोदी जी !यदि आपने भी बैंक कर्मचारियों को घूस दी होती तो आपकी सरकार की भी वे इज्जत बचा सकते थे किंतु जब आपने उनको घूस नहीं दी तो उन्हें जिन्होंने दी उनके बड़े बड़े काम हिम्मत से उन्होंने किए !देश के प्रधानमंत्री की भ्रष्टाचार विरोधी बातें सुन सुन कर मजाक उड़ाते रहे वो लोग !और जिन्होंने उन्हें घूस दी उनके करोड़ों रूपए बदलकर उन काले धन वालों के गोदाम भरे गए !
      आम जनता तो काम न होने पर एक बार संतोष भी कर लेती है किंतु ब्यापारियों का गुजारा संतोष करने से तो होगा नहीं उन्हें तो काम करना ही पड़ेगा !बिना काम के वो  सैलरी कहाँ से देंगे कर्मचारियों को !उन्हें तो कई कई विभागों को पूजना पड़ता है !इसका अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि चिट्ठी देने आने वाला पोस्टमैन  देकर जाता है कि अबकी महीन नहीं दिया तो तुम्हारी चिट्ठियाँ चेक बुक आदि डाक खाने के बगल में बने नाले में मिलेंगी !आने जाने वालों की मोटर साइकिलें दरवाजे पर खड़ी हो जाती हैं उसके लिए बीट वाले को सप्ताह के हिसाब से देना होता है !बैंकों संबंधी कामों के लिए मैनेजरों को तो जो जाता है वो जाता ही है बाकी कर्मचारियों को भी समझना पड़ता है जैसा गुड़ डालो वैसा मीठा होता है ! सरकारी कर्मचारियों की कम्प्यूटर के की बोर्ड पर थिरकती अँगुलियों से पता लग जाता है कि ये काम सरकारी सैलरी से हो रहा है या घूस से ! सरकारी विभागों में देने के लिए तो में कैसे होगा जनता का जरूरी काम काज !व्यापारियों को इसके लिए तो रखना ही पड़ेगा कालाधन !घूस के चलन को रोका तो जा नहीं सकता ब्यापारियों की मज़बूरी होती है ।
       घूस दिए बिना कैसे कोई करवा लेगा सरकारी कर्मचारियों से अपना काम!उन्हें किसी और से घूस लेकर क्यों बदलने पड़ते उनके पुराने नोट !सरकारों में सम्मिलित लोग और सरकारी कर्मचारी ईमानदार हों तो अच्छी सरकार और भ्रष्ट हों तो भ्रष्टाचार !वस्तुतः भ्रष्टाचार तो सरकार के अपने परिवार का निजी मामला है इसके लिए जनता में क्यों मचा है हाहाकार !
             नोटबंदी अभियान में तो सरकार को भी भुगतना ही पड़ा है घूस न देने का दंड !जिन्होंने घूस दी उनका करोड़ों का कैस बदलकर उनके गोदामों में पहुँचाया और जो मोदी जी की बातों के भरोसे रहे घूस नहीं दी वो लाइनों में खड़े खड़े मर गए भूखे प्यासे !जिन्होंने घूस दी उनके रात बिरात भी काम हुए !  मोदी जी !घूस लिए बिना बैंक वालों ने जब आपका काम नहीं किया तो ये जनता का काम क्या करते होंगे वहाँ तो खाना पूर्ति ही होती है !

बाल ब्रह्मचारियों

बाल ब्रह्मचारियों के बच्चे ,संन्यासियों की संपत्तियाँ ,नेताओं की अनैतिकता एवं सरकारी कर्मचारियों के भ्रष्टाचार से देश में मचा है हाहाकार !इसे ठीक करने के लिए नोट बंद कर रही है सरकार !समस्या कहीं है मलहम कहीं लगाया जा रहा है किंतु ख़ुशी इस बात की है कि भ्रष्टाचार की ओर मोदी जी का ध्यान तो गया बाकी भ्रष्टाचार के विरोध के बड़े बड़े नारे लगाते राजनीति में लोग आए भ्रष्टाचारी नेताओं की बड़ी बड़ी फाइलें जनता को दिखाते रहे बड़े बड़े नेताओं को जेल भेजने की कहानियाँ गढ़ते रहे किंतु सरकारों में आते ही ऐसे बदतमीजों के चेहरे चमक गए गाल लाल होगे खाँसी ठीक हो गई गले की गोली निकलवा ली अब दाँत ठीक करवाने का बजट पास हो रहा है किंतु न किसी नेता की फाइलें खुलीं और न ही कोई जेल ही भेजा गया !अब ऐसे राजनैतिक लुटेरे कई राज्यों के चुनावों में हाथ पैर मारने लगे हैं

Friday, 23 December 2016

अखिलेश सरकार ने छीने 17 जातियों के स्वाभिमान पूर्वक जीने के अधिकार !

दलितों की संख्या बढ़ाने को अखिलेश सरकार की उपलब्धि माना जाए या उसका निकम्मापन ?दलितों का विकास करके दलितों की संख्या घटाने की जरूरत है तब दलितों की संख्या बढ़ाते जा रहे हैं अखिलेश !
    किसी का विकास करने के लिए उस वर्ग को सरकारी भिखारी घोषित करना जरूरी है क्या ?दलित कहे बिना किसी की तरक्की क्यों नहीं की जा सकती है ?जिस दलित शब्द के अर्थ टुकड़े -टुकड़े, छिन्न -भिन्न, नष्ट- भ्रष्ट, विदीर्ण, कटा हुआ चिरा हुआ आदि होते हैं मनुष्यों के किसी भी वर्ग को ऐसे अशुभ सूचक 'दलित' शब्द से संबोधित करना उनका अपमान नहीं है क्या ?
    मनुस्मृति के आधार पर चुनाव लड़ने वाले ये पाखंडी नेता लोग जाति विहीन समाज बनाने के नारे लगाते हैं किंतु जातियों का सहारा लिए बिना एक कदम आगे नहीं बढ़ते हैं!इसमें महर्षि मनु का दोष क्या है ?
   ये पाखंडी नेता लोग जातियाँ बनाने के लिए महान जातिवैज्ञानिक उन महर्षि मनु की निंदा करते नहीं थकते हैं जिन्होंने करोड़ों बर्ष पहले हमारे पुरखों के चेहरे पढ़कर सारे समाज को जातिश्रेणियों में बाँट दिया था जिन श्रेणियों को हम लोग आरक्षण जैसे क्षुद्र प्रयासों से भी आज तक झुठला नहीं सके हैं !
    महर्षि के द्वारा लाखों वर्ष पहले जातियों के आधार पर किया गया पूर्वानुमान आज भी उसी प्रकार से सही घटित होता दिखाई दे रहा है जातियों के उस वर्गीकरण को आज तक झुठलाया नहीं जा सका है ।महर्षि मनु ने मुख्य रूप से दो वर्ग बनाए थे एक सवर्ण दूसरा  असवर्ण !जो स्वाभिमानी संघर्षप्रिय अपनेबल पर अपनी उन्नति करने वाला वर्ग है उसे सवर्ण एवं शासकों के आश्वासनों पर जिंदगी ढोने वाला स्वाभिमान विहीन वर्ग असवर्ण मान लिया गया था !
     महान जातिवैज्ञानिक उन महर्षि मनु का मानना था कि कुछ जातियाँ अपना एवं अपने परिवारों  का स्वाभिमान बनाने और बढ़ाने के लिए संघर्ष स्वयं करेंगी ,खुद जूझ कर अपने अंदर वो योग्यता पैदा करेंगी जिसके बलपर तरक्की के शिखरों को वे स्वयं चूम लेंगी अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए ये सवर्ण लोग  केवल अपने पुरुषार्थ का सहारा लेंगे ।शासकों की कृपा के बल पर पशुओं की तरह पेट भरने से पहले ऐसी जातियों के स्वाभिमानी लोग मरना पसंद करेंगे !इन सवर्ण जातियों के लोगों में शासकों से काम लेने की योग्यता होगी ये शासकों के सामने भिखारी बनकर गिड़गिड़ा नहीं सकते और न ही लालच देने वाले निकम्मे शासकों को पसंद ही करेंगे ऐसे पापीशिखंडियों को तो अपने दरवाजों से दुदकार कर दूर भगा देने का इनमें साहस होगा !
    वैसे भी मक्कारशासकों में इतना शौर्य कहाँ पाया जाता है जो ऐसी स्वाभिमानी जातियों के सामने आरक्षण जैसा कोई प्रस्ताव लेकर फटकने भी पाएँ !ऐसी जीवंत जातियों के लोगों को आरक्षण जैसी भीख देने की बात तो छोड़िए पाखंडी पापी शासक इनसे कभी आँख मिलाकर बात करने का साहस नहीं कर सकेंगे !ऐसे स्वाभिमानी पौरुष पसंद  लोगों को सवर्ण जातियों में रखा गया !
      उन्हीं महान जातिवैज्ञानिक महर्षि मनु का  ये भी मानना था कि कुछ जातियों के लोग अपने जीवन को जीवन्त बनाने के लिए स्वयं कोई प्रयास नहीं करेंगे और न ही इनका कोई अपना लक्ष्य ही होगा !लक्ष्य तो हमेंशा वो लोग बनाते हैं जिन्हें कुछ करना होता है जिन्हें कुछ करना ही न हो वो लक्ष्य बनाने में ही दिमाग क्यों खपाएँगे !जिन्हें खुद कुछ करना ही न हो ऐसे लोगों का स्वाभिमान कैसा ! क्योंकि किसी की कृपा से सब कुछ मिल सकता है किंतु स्वाभिमान नहीं ! 
    ऐसी जातियों के लोग केवल पेट भरने के लिए अपना अच्छा खासा जीवन ढोते रहते हैं ! इनकी इस मनोवृत्ति को समझने वाले चतुर शासकों को ऐसे स्वाभिमान विहीन लोग बहुत पसंद हैं ऐसे लोगों की संख्या जितनी अधिक बढ़ेगी हमसे जवाब माँगने वालों की संख्या उतनी ही अधिक घटती चली जाएगी !इसलिए बदमाश शासक समय समय पर इनकी संख्या में वृद्धि किया करते हैं वे इन लोगों से कुछ न कुछ देने की बातें किया करते हैं जिससे हमेंशा लेने के लिए मुख फैलाए हाथ पसारे लोगों को अपने चंगुल में अपने बुने जाल में ही हमेंशा फँसाए रहते हैं अपने बनाए दायरे से बाहर न वे निकलने देते हैं और न ही ये निकलना ही चाहते हैं ऐसे स्वाभिमान विहीन लोगों को असवर्ण जातियों में सम्मिलित किया गया है ।
      उन्हीं असवर्णों की बेइज्जती करने के लिए ही इन चालाक नेता लोगों ने उनका नाम अपनी सुविधानुसार 'दलित' रख लिया और उन्हें 'दलित' 'दलित'' कहने लगे ! ये बदमाश नेता लोग अच्छे खासे हँसते खेलते स्वस्थ सुखी लोगों को दलितों में सम्मिलित करके ऐसा लगता है कि जैसे उन्हें कोई पुरस्कार दे दिया हो किंतु इतनी गन्दी संज्ञा से मनुष्यों के किसी वर्ग को संबोधित करने से बड़ी उनकी और दूसरी बेइज्जती और क्या की जा सकती है आप स्वयं देखिए क्या होता है दलित शब्द का अर्थ !पढ़िए हमारा ये लेख -
        दलित शब्द का अर्थ क्या होता है ? फिर पहचानो दलितों को !seemore....http://snvajpayee.blogspot.in/2013/01/blog-post_9467.html