घूस खोर लोग घूस का पैसा देखते ही पागल हो उठते हैं !उन्हें लगता है कि सैलरी तो सरकार देगी ही जैसे देगी वैसे लेंगे नहीं तो केस करके जीत लेंगे उसकी क्या चिंता किंतु घूस जैसी घर वालों को आकस्मिक प्रसन्नता प्रदान करने वाली आमदनी को क्यों छोड़ा जाए !
सरकार के भ्रष्टाचार विरोधी नोटबंदी जैसे महान अभियान को अँगूठा दिखाने वाले घूसखोर बैंककर्मी ही तो थे जिन्होंने गद्दारी न की होती तो कैसे पहुँचता कालेधन वालों के पास करोड़ों रूपए का कैस !वो कालेधन वाले तो लाइनों में लगे नहीं बैंकों में झाँकने नहीं आए !घूस के बलपर ही तो बैंक वालों से उन्होंने घर बैठे मँगाया करोड़ों का कैस और ये दे आए घूसखोर कर्मचारी !हर बैंक इसकी गवाही देंगे सरकार जाँच करे तो !सरकार जनता से 50 दिनों के लिए गिड़गिड़ाती रही जनता उन्हें प्रधानमंत्री मानकर उनकी बातों का भरोसा करके दो दो हजार के लिए तरसती दम तोड़ती रही उसकीआँखों के सामने सेकरोड़ों की गड्डियाँ जाती रहीं !उन सरकार भक्त देश वासियों की मौतों का बदला भ्रष्ट बैंक कर्मियों से कैसे लेगी सरकार !
घूसखोर अधिकारी कर्मचारी सरकार के लिए इतने ज्यादा खतरनाक होते हैं जैसे कोई विवाहित स्त्री या पुरुष किसी आशिक की चाहत में अपने पति या पत्नी के प्राणों का प्यासा बन बैठे!ऐसे स्वार्थी सर्पों का साथ सबके लिए सबसे ज्यादा खतरनाक होता है भले वो सरकार ही क्यों न हो !
घूसखोर लोगों को घूस मिलते दिखाई पड़ी तो वो सरकार की कहीं भी कभी भी कितनी भी बड़ी बेइज्जती करवा सकते हैं वो इसलिए सरकार पहले उनसे निपटे बाद में दूर करे भ्रष्टाचार !क्योंकि भ्रष्टाचारी लोग सरकार की अपनी आस्तीन के साँप बने बैठे हैं । हर बैंक में कुछ न कुछ गड़बड़ तो हुआ है !
घूसखोर ,कामचोर ,गैरजिम्मेदार एवं यूनियन बनाने वाले सरकारी कर्मचारियों
को पहले सेवामुक्त करे सरकार !तब भ्रष्टाचार पर करे प्रहार तब होगा असरदार !ऐसे भ्रष्टाचार के विरोध का जनता में तो हाहाकार है किंतु सरकारी विभागों में रामराज्य का मंगलाचार है !सोर्स और घूस के बल पर नौकरी पाने वालों का मन कहाँ लगता है काम करने में उनमें से चतुर लोग यूनियन बना कर अपना समय पास करते और सरकारों को ब्लैकमेल किया करते हैं घूस खोर सरकारें डरकर उनकी माँगे मान लिया करती हैं उन्हें अपने पोल खुलने का भय भी तो होता है वो सारा माल टाल इन कर्मचारियों की जानकारी में इन्हीं से कमवाया गया होता है ऐसी ही सरकारों की कमजोरी पकड़ कर तो हड़ताल पर जाया करते हैं सरकारी दुलारे !उन्हें पता होता है कि डरी सहमी सरकार अब दूध देगी इसीलिए तो हड़ताल करके दुह लेते हैं सरकार को !तभी तो अपने पाप का बोझ जनता पर डालती जाती है सरकार और सरकारी कर्मचारियों की सैलरी बढ़ाती और सुविधाएँ मुहैया करवाती जाती है सरकार !अन्यथा इनकी सैलरी बढ़ाते समय आम आदमी की आमदनी को ध्यान में क्यों नहीं रखा जाना चाहिए क्या उनके भरण पोषण की जिम्मेदारी सरकार की नहीं होनी चाहिए किंतु सरकार ईमानदार हो तब तो ऐसा सोचे !
सरकारी कर्मचारियों की यूनियन बनाने वाले सबसे बड़े भ्रष्टाचारी कामचोर और मक्कार होते हैं उन्हें यह सब करने की जरूरत क्या है समझ में आवे तो नौकरी करें अन्यथा त्यागपत्र दें !बहुत बेरोजगार योग्य लोग नौकरी की तलाश में नाले साफ करते घूम रहे हैं और घूसखोर बैंककर्मी घूस से घर भर रहे हैं !यूनियन वाले कर्मचारी हड़ताल करके घूसखोर भ्रष्ट सरकारों को उनके भ्रष्टाचार की पोल खोलने की धमकी देकर मनवाया करते हैं अपनी माँगें और अँगुलियों पर नचाया करते हैं भ्रष्ट सरकारों को !किंतु ईमानदार सरकारें उनकी इस ब्लैकमेलिंग को क्यों सहें उन्हें ऐसे भ्रष्ट कर्मचारियों पर लगाम लगाकर सबसे पहले अपनी ईमानदारी का परिचय देना चाहिए !भ्रष्टाचार के माता पिता सरकारी कर्मचारी हैं या फिर सरकारों में सम्मिलित लोग !आम जनता तो इसे अपनों की अपने साथ गद्दारी मानती है मज़बूरी में सहती है !
भ्रष्टाचार पकड़ने का फर्मूला अपनावे सरकार यदि ईमानदारी का परिचय देना हो तो !
नेता जब पहला चुनाव लड़े थे, बाबा जब पहली बार बाबा बने थे और सरकारी कर्मचारियों की जब पहली बार नौकरी में आए थे तब उनके पास कितनी संपत्ति थी और आज कितनी है साथ ही इस बीच हुई उनकी आय के ईमानदार स्रोतों की ईमानदारी पूर्वक जाँच कराई जाए तो देश के सारे भ्रष्टाचार की पोल तो खुल ही जाएगी साथ ही सभी प्रकार के अपराधों का भी पर्दाफास हो जाएगा !बड़े से बड़े अपराधियों को नेताओं बाबाओं या बड़े बड़े आफीसरों की ही गोद में खेलते खाते ,पलते ,बढ़ते देखा जाता हैं !बिना हेलमेट के मोटरसाइकिल वालों को पल में पकड़ लेने वाली सरकार इतने बड़े बड़े अपराधियों को तैयार कैसे होने देती है !
प्रधानमंत्री जी ! घूस लेने वाले सरकारी कुकर्मचारी तो एटीएम,पेटीएम मानेंगे नहीं वो तो कैस में ही माँगेंगे घूस !उनसे कैसे निपटा जाएगा !
भारत सरकार से घूस मिलने की आशा नहीं थी इसीलिए घूस प्रिय बैंक कर्मियों ने दिया कालेधन वालों का साथ !और समय से पहले ही नए नोटों में बदल दिया उनका करोड़ों का कैस जो सरकारी कर्मचारी घूस न मिलने के कारण देश के साक्षात प्रधानमंत्री जी की बातों को नहीं मानते हैं वो घूस न देने वाली जनता के साथ कैसा सलूक करते होंगे !
हे मोदी जी ! घूस तो कैस में ही चलती रही है इसके बिना सरकारी विभागों से
काम लेना केवल कठिन ही नहीं अपितु असंभव भी होता है । समय से काम लेना है
तब तो अत्यंत आवश्यक है घूस का आदान प्रदान !
महोदय ! सरकारी कर्मचारियों की दृष्टि से यदि सैलरी और घूस देने वालों की
यदि तुलना की जाए तो सैलरी देने वाली सरकार हार जाती है और घूस देकर काम
कराने वाले जीत जाते हैं !सरकार ने कालेधन वालों के विरुद्ध कठोर कदम उठाने
के प्रकट आदेश दिए दूसरी ओर कालेधन वालों ने सरकारी आदेश को ठेंगा दिखाने
का अघोषित आदेश जारी किया !सरकारी कर्मचारियों ने सुनी किसकी सरकार की या
कालेधन वालों की !सरकार के अपने कर्मचारियों ने सैलरी देने वाली अपनी सरकार
पर उतना भरोसा नहीं किया जितना घूस देकर काले धन को सफेद करवाने वालों पर
किया !कालेधन वाले लोगों के गोदामों में समय से पहुँचा दिए गए करोड़ों की
संख्या में बदल बदल कर नए नोट !कोई काले धन वाला नहीं देखा गया कहीं
लाइनों में लगते और सबसे पहले भरे गए उनके गोदाम !श्रीमान जी !ये है घूस का
कमाल !आधी आधी रात से लाइनों में भूखे प्यासे खड़े लोगों को दिखा दिखा कर लंच करते रहते हैं सरकारी कर्मचारी । लाइनों में लगी जनता यह देख देख कर दम तोड़ती रहती है !उसे लगता था कि ये तो दस बजे घर से खाकर चले होंगे इन्हें फिर भूख लग गई इनके लंच की चिंता सरकार को है और हमारी !
नोटबंदी अभियान में तो सरकार को भी भुगतना ही पड़ा है घूस न देने का दंड !जिन्होंने घूस दी उनका करोड़ों का कैस बदलकर उनके गोदामों में पहुँचाया और जो मोदी जी की बातों के भरोसे रहे घूस नहीं दी वो लाइनों में खड़े खड़े मर गए भूखे प्यासे !जिन्होंने घूस दी उनके रात बिरात भी काम हुए ! मोदी जी !घूस लिए बिना बैंक वालों ने जब आपका काम नहीं किया तो ये जनता का काम क्या करते होंगे वहाँ तो खाना पूर्ति ही होती है !
प्रधानमंत्री जी के द्वारा देश हित में लिए गए फैसले को सबसे अधिक सहयोग और सम्मान सरकारी जिन कर्मचारियों के द्वारा सरकारी विभागों से मिलना चाहिए था वहाँ वैसा नहीं हुआ !गैर क़ानूनी रूप से नए नोटों का जहाँ जितना जो भी भंडार मिला है या भविष्य में कहीं मिलेगा वो किसी न किसी सरकारी कर्मचारी की सरकार और सरकार भक्त जनता के साथ की गई गद्दारी के ज्वलंत सबूत हैं !
हे प्रधानमंत्री जी !कभी सरकारी विभागों में जाकर देखिए किंतु जाए कौन और देखे कौन !सरकारों में सम्मिलित नेता लोग तो केवल आदेश देने के लिए होते हैं वो तो सत्ता के नशे में इतना अधिक चूर होते हैं कि उन्हें लगता है जो मैंने कह दिया वो हो गया किंतु सरकारी आदेशों को कैसे ठेंगा दिखाते हैं सरकारी कर्मचारी ये जनता तो भोगती ही थी किंतु नोटबंदी अभियान में सरकार ने भी भोग ही लिया है फिर भी सरकार में सम्मिलित लोगों की आँखें न खुलें तो इसे उनके किसी पूर्व जन्म का कर्म भोग ही माना जाना चाहिए !
महोदय !देश में जबतक घूस लेने वालों का वर्चस्व रहेगा तब तक प्रायः ईमानदार राजनेता यदि सत्ता में आ भी जाएँ और वो ईमानदारी पूर्वक भ्रष्टाचार मिटाना भी चाहें तो उन्हें कई प्रकार के भयों को सहने के लिए हमेंशा तैयार रहना पड़ता है सबसे पहली बात सरकारी कर्मचारियों की जो सरकार के सामने तो हाँ हाँ कितना भी करें किंतु सरकार का और सरकार की योजनाओं का साथ वे प्रायः बहुत कम देते हैं । वो या तो घूस देने वालों का साथ देते हैं या फिर जिस सरकार के समय उनकी नौकरी लगी होती है उन नेताओं की इच्छा के अनुरूप बर्ताव कर रहे होते हैं । बाकी सरकारी आदेशों को ठेंगा दिखाया करते हैं ये ! जनता सरकारी आदेशों पर जरूर भरोसा करती है वो भूखी प्यासी डटी रहती है सरकारी आदेशों के साथ !
महोदय !घूस दिए बिना सरकारी विभागों से काम करवाने का मतलब लोहे के चने चबाना होता है वो भी समय से !घूस न देने का मतलब या तो काम होगा नहीं या आधा अधूरा होगा या बहुत लेट होगा या बहुत अपमानित करके किया जाएगा वो काम !
व्यापार करने वालों को समय से संपूर्ण काम सम्मान पूर्वक अपनी इच्छा के अनुसार करवाना होता है इसलिए उन्हें सरकार के उन सभी विभागों को घूस देनी पड़ती है जिनसे जिनसे उनका काम पड़ता रहता है इसलिए उन्हें रखना पड़ता है कालाधन !और तो और पोस्टमैन तक का महीना बँधा होता है अन्यथा चेक बुक दरवाजे पर फटी पड़ी मिलेगी अगले दिन !ऐसी ही हरकतों के कारण सरकारी विभागों को दलालों का अड्डा एवं सरकारी कर्मचारियों को भिखारी या अपना नौकर समझते हैं बड़े बड़े व्यापारी लोग !
प्रधानमंत्री जी !आप अपने को प्रधानमंत्री समझें भले किंतु सरकारी कर्मचारियों के प्रधानमंत्री तो वही हैं जो उन्हें घूस देते हैं सैलरी देने वाले प्रधानमंत्री को कौन पूछता है सैलरी देना तो सरकार की मज़बूरी है वो तो कैसे भी ले लेंगे !कानून उनके साथ है । कुछ लोग तो मानते हैं कि नौकरी पाने के लिए हमने जो घूस दी थी सैलरी के रूप वही वसूल रहे हैं हम !इसमें पाप क्या है ।
प्रधानमंत्री जी ! भारत सरकार भी अपने सरकारी कर्मचारियों से काम लेने के लिए घूस देगी क्या ?यदि नहीं देगी तो उनसे काम करा लेगी क्या ?सरकारी कर्मचारियों को जो घूस देगा वो उसका तो काम करेंगे सैलरी कितनी भी मिले वो देनी तो सरकार की मज़बूरी है किंतु घूस जरूरी है !
भारत सरकार ने घूस नहीं दी तो उन्होंने काम भी कितना और कैसे किया क्या दुनियाँ जानती नहीं है !
देश के प्रधानमंत्री जी नोटबंदी अभियान में देश वासियों से 50 दिन
माँगते रहे !किन्तु सरकारी कर्मचारी गद्दारी करते रहे !प्रधानमंत्री जी के
आदेशों की अवहेलना करने वाले अधिकारी कर्मचारियों से आजतक दी गई सैलरी वापस
ली जाए ताकि दोबारा कोई कर्मचारी ऐसा करने की हिम्मत न जुटा सके इसके लिए
कठोर दंड का विधान किया जाए !सरकार का हर विभाग कर्तव्यभ्रष्टता
गैरजिम्मेदारी घूस खोरी का शिकार है जनता के काम के लिए सैलरी लेने वाले
अधिकारी कर्मचारी जनता की तो सुनते ही नहीं हैं किंतु क्या सरकार की भी
नहीं सुनते हैं !आश्चर्य !!
घूसखोर सरकारीकर्मचारी जब प्रधानमंत्री के आदेशों को नहीं मानते और घूस
देने वालों की आज्ञा का पालन करते रहते हैं ऐसे लोग आम जनता का काम कैसे
करते होंगे !ऐसे भ्रष्टाचारियों को आज तक दी गई सैलरी को सरकारी धन का
दुरुपयोग समझते हुए वापस लिया जाना चाहिए और सरकार के साथ धोखाधड़ी करने के
आरोप में उन्हें दण्डित किया जाना चाहिए !
जो घूस देता है काम उसी का होता है समय से होता है अच्छे ढंग से होता है
अपनेपन से होता है और जो घूस नहीं देता है उसका काम न करने के लिए सरकारी
कर्मचारियों के पास लाखों बहाने होते हैं सरकार के पुरखों को चुनौती होती
है बिना घूस दिए उनसे काम लेकर दिखाए सरकार !
पीएम साहब ! सरकार यदि बैंक कर्मियों को घूस देती तो न लगतीं लाइनें
और न घटता कैस ! न ही किसी को मरने देते बैंक वाले !जिन्होंने जैसी घूस दी
उनके वैसे काम हुए !घूस न देने वाले दो दो हजार के लिए तरसते रहे लाइनों
में खड़े किंतु घूस देने वालों के करोड़ों रूपए बदलकर उनके गोदामों में समय
से पहुँचाए गए जिनके कालेधन के विरुद्ध आप गरज रहे थे उनकी सेवा में लगे थे
आपके अपने दुलारे पिआरे बैंक कर्मचारी !काले धन वालों ने जैसा चाहा वैसा
करवाया आपके बैंक कर्मियों से और शुरू के 5-7 दिनों में निपटा दिया गया था
अपनों का सारा काम !
सरकारी नौकरी होने के कारण उन्हें सैलरी देना और बढ़ाना तो बेचारी सरकारों
की मजबूरी है किंतु काम उन्हीं का होगा जो घूस देंगे !प्रधानमंत्री जी !आप
अपने पद और अधिकारों की ठसक में थे कि हम जैसा चाहेंगे वैसा करा लेंगे बैंक
कर्मियों से किंतु आप जनता से 50 दिनों के लिए गिड़गिड़ाते रहे किंतु
उन्होंने अपने काले धन वालों का अधिकाँश काम तो शुरू के ही 5 -7 दिनों में
निपटा दिया था कहीं कोई दिखा बैंकों के आगे लाइनें लगाए हुए !
हे मोदी जी !यदि आपने भी बैंक कर्मचारियों को घूस दी होती तो आपकी
सरकार की भी वे इज्जत बचा सकते थे किंतु जब आपने उनको घूस नहीं दी तो
उन्हें जिन्होंने दी उनके बड़े बड़े काम हिम्मत से उन्होंने किए !देश के
प्रधानमंत्री की भ्रष्टाचार विरोधी बातें सुन सुन कर मजाक उड़ाते रहे वो लोग
!और जिन्होंने उन्हें घूस दी उनके करोड़ों रूपए बदलकर उन काले धन वालों के
गोदाम भरे गए !
आम जनता तो काम न होने पर एक बार संतोष भी कर लेती है किंतु
ब्यापारियों का गुजारा संतोष करने से तो होगा नहीं उन्हें तो काम करना ही
पड़ेगा !बिना काम के वो सैलरी कहाँ से देंगे कर्मचारियों को !उन्हें तो कई
कई विभागों को पूजना पड़ता है !इसका अंदाज इसी से लगाया जा सकता है कि
चिट्ठी देने आने वाला पोस्टमैन देकर जाता है कि अबकी महीन नहीं दिया तो
तुम्हारी चिट्ठियाँ चेक बुक आदि डाक खाने के बगल में बने नाले में मिलेंगी
!आने जाने वालों की मोटर साइकिलें दरवाजे पर खड़ी हो जाती हैं उसके लिए बीट
वाले को सप्ताह के हिसाब से देना होता है !बैंकों संबंधी कामों के लिए
मैनेजरों को तो जो जाता है वो जाता ही है बाकी कर्मचारियों को भी समझना
पड़ता है जैसा गुड़ डालो वैसा मीठा होता है ! सरकारी कर्मचारियों की
कम्प्यूटर के की बोर्ड पर थिरकती अँगुलियों से पता लग जाता है कि ये काम
सरकारी सैलरी से हो रहा है या घूस से ! सरकारी विभागों में देने के लिए तो
में कैसे होगा जनता का जरूरी काम काज !व्यापारियों को इसके लिए तो रखना ही
पड़ेगा कालाधन !घूस के चलन को रोका तो जा नहीं सकता ब्यापारियों की मज़बूरी
होती है ।
घूस दिए बिना कैसे कोई करवा लेगा सरकारी कर्मचारियों से अपना
काम!उन्हें किसी और से घूस लेकर क्यों बदलने पड़ते उनके पुराने नोट !सरकारों
में सम्मिलित लोग और सरकारी कर्मचारी ईमानदार हों तो अच्छी सरकार और
भ्रष्ट हों तो भ्रष्टाचार !वस्तुतः भ्रष्टाचार तो सरकार के अपने परिवार का
निजी मामला है इसके लिए जनता में क्यों मचा है हाहाकार !
नोटबंदी
अभियान में तो सरकार को भी भुगतना ही पड़ा है घूस न देने का दंड !जिन्होंने
घूस दी उनका करोड़ों का कैस बदलकर उनके गोदामों में पहुँचाया और जो मोदी जी
की बातों के भरोसे रहे घूस नहीं दी वो लाइनों में खड़े खड़े मर गए भूखे
प्यासे !जिन्होंने घूस दी उनके रात बिरात भी काम हुए ! मोदी जी !घूस लिए
बिना बैंक वालों ने जब आपका काम नहीं किया तो ये जनता का काम क्या करते
होंगे वहाँ तो खाना पूर्ति ही होती है !
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