आफिसों में अधिकारियों के लिए बना दिए गए हैं कोप भवन!जिनमें बैठे बेचारे अकेले कुढ़ रहे होते हैं वे !
सरकारी आफिसों
में अधिकारियों को हमेंशा निभाते रहनी पड़ती है एक क्रोधी पुरुष या स्त्री
की भूमिका !जूनियर लोग उन्हें क्रोधी और घूसखोर सिद्ध कर करके आम जनता से
किया करते हैं वसूली!जनता और अधिकारियों को सीधे एक दूसरे से मिलने ही
नहीं देते हैं !
इसीलिए जनता अधिकारियों से निराश हो चुकी है जनता के लिए यह समझ पाना कठिन ही नहीं अपितु बिलकुल असंभव सा लगने लगा है कि इस लोकतंत्र में जनता के सुख दुःख में सहभागिता की दृष्टि से अधिकारियों की कोई भूमिका है भी या नहीं !क्योंकि आम जनता किसी भी संबंधित संकट से कैसे भी जूझ रही हो किंतु उसे ढाढस बँधाने कोई अधिकारी नहीं आता है कहीं कोई घटना घट जाए और अपरिहार्य कारणों से संबंधित किसी अधिकारी को वहाँ यदि जाना पड़ भी जाए तो कैदियों की पेशी की तरह कुछ लोगों के घेरे में आते हैं अधिकारी महोदय !और उसी घेरे में सम्मिलित लोगों से बात करके लौट जाते हैं आम जनता तो उनकी गाड़ी के पहियों से उड़ी धूल ही देख पाती है जिसके लिए वहाँ वे आए होते हैं ।
शिक्षा से जुड़े अधिकारी स्कूलों में झाँकने आएँगे ही नहीं इसी सबसे बड़े भरोसे के बलपर तो शिक्षक शिक्षिकाएँ स्कूल टाइम में ही निपटाया करते हैं अपनी घर गृहस्थी नाते रिस्तेदारों के जरूरी काम काज !मोबाईल पर बातें करते रहना, गेम खेलना, मूवी देखना, स्वेटर बुनना ,कुछ खरीदकर खाने लगना आदि सारे दोषों का परिमार्जन करने के लिए उसे अपने से सीनियर के पास पेश होकर थोड़ी देर दुम हिलानी होती है बश !किंतु क्या इससे शिक्षा के उद्देश्यों की पूर्ति हो जाती है क्या ! किंतु जिन विभागों के अधिकारी इतने लापरवाह हों उनके कर्मचारी आखिर क्यों करें काम !अपने अधिकारियों से ही तो वो भी सीखेंगे !जिस स्त्री का पति ही अँधा हो वो किसे दिखाने के लिए श्रृंगार करे !ऐसे ही लापरवाह अधिकारियों के आधीन रहने वाले ईमानदार कर्मचारी भी अपनी योग्यता का परिचय किसे दें !
सरकारी स्कूलों अस्पतालों आदि की भद्द पिटने मतलब अधिकारियों की गैर जिम्मेदारी और अकर्मण्यता का आनंद ले रहे हैं शिक्षक चिकित्सक आदि !सरकार के प्रायः सभी विभागों में भूमिका विहीन लगने लगे हैं अधिकारी !जनता से सीधे तौर पर जुड़ी समस्याओं से संबंधित किसी अधिकारी को आफिस के किसी एक कमरे में सजाकर बैठा देने से जनता का भला आखिर कैसे हो जाता है !जो जनता के काम न आ सके उसका योगदान क्या है !
जलबोर्ड के अधिकारियों को पाइपलाइनों की जानकारी नहीं होती, टेलीफोन विभाग के अधिकारियों को केबल का पता नहीं होता, कृषि अधिकारी कृषि कार्यों से अपरिचित होते हैं ऐसे ही सभी विभागों का हाल है अपने अपने विभागों से जुड़े जूनियर कर्मचारियों से पूछ पूछ कर ज्ञानबर्द्धन करने वाले अधिकारियों से अच्छे काम काज की अपेक्षा कैसे की जाए !ऐसे अयोग्य डिग्री धारी लोग अपने से जूनियर कर्मचारियों को कैसे कुछ सिखा सकेंगे किस मुख से काम करने का दबाव डाल सकेंगे !पानी में घुस कर खुद तैरना सीखे बिना किसी और को तैरना कैसे सिखाया जा सकता है !
सफाई कर्मियों की नौकरी के लिए बड़े बड़े शिक्षित बच्चों ने फार्म भरे उनका टेस्ट लेने के लिए उन्हें एक नाले में उतार दिया गया सफाई करने के लिए वो तो बेरोजगारी के कारण अपनी जिंदगी की परवाह किए बगैर उतर गए नाले में और सफाई करने लगे किंतु यदि उनका टेस्ट लेने वाले अधिकारी को उसी प्रकार से नाले में उतार दिया जाता सफाई करने के लिए तो क्या वो पास कर लेते ऐसा टेस्ट !यदि नहीं तो वो अधिकारी किस बात के !जिस काम को वो स्वयं नहीं कर सकते उसकी परीक्षा लेने के लिए ऐसे लोगों को नियुक्त किया जाना कितना न्यायोचित माना जाना चाहिए ! ऐसे अधिकारियों को परीक्षा लेना ही यदि आता होता तो इतना तो वो भी समझ सकते थे कि सबों ने मिलकर नाला यदि साफ कर भी दिया तो फेल पास करने का पारदर्शी मानक क्या होगा और उन्हें सफल या असफल कैसे घोषित किया जाएगा !
अधिकारी अपने विभागों से जुड़े काम काज को अपनी आखों से देखना और अपने दिमाग से समझना कब का छोड़ चुके हैं जिन घूसखोर कर्मचारियों से प्रताड़ित होकर जनता अधिकारियों की शरण में सहायता के लिए मदद माँगने जाती है उन्हीं घूसखोरों को अधिकारी भेज देते हैं उस मामले की जाँच करने को !अंततः जनता को उन्हीं घूसखोरों से हाथ पैर जोड़ने पड़ते हैं और उन्हीं से माँगनी पड़ती है दया की भीख ! उन्हीं से समझौता करना पड़ता है !उनके कथानुसार पहले की अपेक्षा अब डबल घूस देनी पड़ती है क्योंकि अब अधिकारी का हिस्सा भी सम्मिलित हो चुका होता है !अधिकारी के यहाँ कम्प्लेन करने से पहले की अपेक्षा कम से कम डबल तो देनी ही पड़ती है घूस ! ऐसे में ईमानदार अधिकारियों को जनता कैसे पहचाने !
अपने जूनियर से अपने मन की बातें करने से स्तर न घट जाने का भय और अपने से सीनियर से संबंध सुधारने की बड़ी बीमारी से ग्रस्त ऐसे लोगों के पास आने वाले फोन भी सुख शांति प्रदान करने वाले कहाँ और कितने होते हैं !
कुल मिलाकर भारत के भ्रष्टाचार से कोई एक अकेला आदमी
कहाँ तक जूझेगा !इसलिए उचित होगा कि ईमानदार अधिकारी कर्मचारी खानापूर्ति छोड़कर अपनी ईमानदार
भूमिका निभाएँ और भ्रष्टाचार मुक्ति महा अभियान के सक्रिय सिपाही बनें !
देशवासी उन्हें देंगे अपार स्नेह ,सम्मान और आनंद देंगे !एक बार गरीबों ग्रामीणों
से अधिकारी बन कर नहीं अपनेपन से मिलें तो सही !उनकी समस्याएँ सुन सुन कर
जीना सीख जाएँगे अधिकार मूर्च्छित बड़े बड़े घमंडी लोग भी !
यह उनके लिए चिकित्सा की दृष्टि से भी काफी लाभ प्रिय होगा ! गरीबों ग्रामीणों से सहज बात ब्यवहार रखने वाले बड़े बड़े लोग अधिकारी कभी मानसिक तनाव के रोगी नहीं हो सकते !वैसे भी कोई काम करने के बोझ से कभी नहीं थकता अपितु काम न करने वाले या घूसखोर अधिकारियों की आत्माएँ छोड़ती जा रही हैं उनका साथ !जो एकांत में अपनी आत्मा का सामना नहीं कर सकते !वो बिना काम किए ही हमेंशा हैरान परेशान थके थके बोझिल से बने रहते हैं !सोने पर सोने का आनंद नहीं खाने पर भोजन का स्वाद नहीं !किसी से मिलने पर मन नहीं खोल पाते तो मिलने का मजा और मस्ती कहाँ है !
अधिकारी होने के कारण अपने से छोटों से बात करने में स्तर घटता हैं अपने से बड़ों से बात करना चाहते हैं किंतु वे घास नहीं डालते ! विधायक सांसद मंत्री आदि बनने वाले नेता लोग प्रायः अशिक्षित या अल्पशिक्षित होने के कारण उठने बैठने बोलने के शिष्टाचार से बंचित होते हैं उन्हें सुशिक्षित अधिकारियों का अपमान करने में आनंद आता है उनसे बात करके अधिकारी कभी खुश नहीं रह सकते !उनके काम करके उन्हें कभी संतुष्ट नहीं कर सकते !ऐसे लोगों के पास अधिकारियों को केवल तनाव ही मिलने की संभावना रहती है उनका विधायकपन,सांसदपन ,मंत्रीपन हमेंशा अधिकारियों के अधिकारीपन पर भारी ही पड़ता रहता है !
ऐसे असभ्य राजनैतिक वातावरण में सुशिक्षित अधिकारी कहाँ और कैसे खुश रह सकते हैं ऐसे में उन्हें चाहिए गरीबों ग्रामीणों के सहज सदाचरण से आत्मिक ऊर्जा और आध्यत्मिक आशीर्वाद जो हर परिस्थिति में मनोबल उठाए रखेगा !वैसे भी आध्यात्मिक ऊर्जावान मनोबल संपन्न लोग सरकारों से क्या यमराज से भी नहीं डरते तो उन्हें मानसिक तनाव से कभी नहीं जूझना पड़ता !
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