दलितों की संख्या बढ़ाने को अखिलेश सरकार की उपलब्धि माना जाए या उसका निकम्मापन ?दलितों का विकास करके दलितों की संख्या घटाने की जरूरत है तब दलितों की संख्या बढ़ाते जा रहे हैं अखिलेश !
किसी
का विकास करने के लिए उस वर्ग को सरकारी भिखारी घोषित करना जरूरी है क्या
?दलित कहे बिना किसी की तरक्की क्यों नहीं की जा सकती है ?जिस दलित शब्द
के अर्थ टुकड़े -टुकड़े, छिन्न -भिन्न, नष्ट- भ्रष्ट, विदीर्ण, कटा हुआ चिरा हुआ आदि होते हैं मनुष्यों के किसी भी वर्ग को ऐसे अशुभ सूचक 'दलित' शब्द से संबोधित करना उनका अपमान नहीं है क्या ?
मनुस्मृति के आधार पर चुनाव लड़ने वाले ये पाखंडी नेता लोग जाति विहीन
समाज बनाने के नारे लगाते हैं किंतु जातियों का सहारा लिए बिना एक कदम आगे
नहीं बढ़ते हैं!इसमें महर्षि मनु का दोष क्या है ?
ये पाखंडी नेता लोग जातियाँ बनाने के लिए महान जातिवैज्ञानिक उन महर्षि
मनु की निंदा करते नहीं थकते हैं जिन्होंने करोड़ों बर्ष पहले हमारे पुरखों
के चेहरे पढ़कर सारे समाज को जातिश्रेणियों में बाँट दिया था जिन श्रेणियों
को हम लोग आरक्षण जैसे क्षुद्र प्रयासों से भी आज तक झुठला नहीं सके हैं !
महर्षि के द्वारा लाखों वर्ष पहले जातियों के आधार पर किया गया
पूर्वानुमान आज भी उसी प्रकार से सही घटित होता दिखाई दे रहा है जातियों के
उस वर्गीकरण को आज तक झुठलाया नहीं जा सका है ।महर्षि मनु ने मुख्य रूप से
दो वर्ग बनाए थे एक सवर्ण दूसरा असवर्ण !जो स्वाभिमानी संघर्षप्रिय
अपनेबल पर अपनी उन्नति करने वाला वर्ग है उसे सवर्ण एवं शासकों के आश्वासनों पर जिंदगी ढोने वाला स्वाभिमान विहीन वर्ग असवर्ण मान लिया गया था !
महान जातिवैज्ञानिक उन महर्षि मनु का मानना था कि कुछ जातियाँ अपना एवं
अपने परिवारों का स्वाभिमान बनाने और बढ़ाने के लिए संघर्ष
स्वयं करेंगी ,खुद जूझ कर अपने अंदर वो योग्यता पैदा करेंगी जिसके बलपर
तरक्की के
शिखरों को वे स्वयं चूम लेंगी अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए ये सवर्ण
लोग केवल अपने पुरुषार्थ का सहारा लेंगे ।शासकों की कृपा के बल पर पशुओं
की तरह पेट भरने से पहले ऐसी जातियों के स्वाभिमानी लोग मरना पसंद करेंगे
!इन सवर्ण जातियों के लोगों में शासकों से काम लेने की योग्यता होगी ये
शासकों के सामने भिखारी बनकर गिड़गिड़ा नहीं सकते और न ही लालच देने वाले
निकम्मे शासकों को पसंद ही करेंगे ऐसे पापीशिखंडियों को तो अपने दरवाजों से
दुदकार कर दूर भगा देने का इनमें साहस होगा !
वैसे भी मक्कारशासकों में इतना शौर्य कहाँ पाया जाता है जो ऐसी स्वाभिमानी जातियों के सामने आरक्षण जैसा कोई प्रस्ताव लेकर फटकने भी पाएँ !ऐसी जीवंत जातियों के लोगों को आरक्षण जैसी भीख देने की बात तो छोड़िए पाखंडी पापी शासक इनसे कभी आँख मिलाकर बात करने का साहस नहीं कर सकेंगे !ऐसे स्वाभिमानी पौरुष पसंद लोगों को सवर्ण जातियों में रखा गया !
उन्हीं महान जातिवैज्ञानिक महर्षि मनु का ये भी मानना था कि कुछ
जातियों के लोग अपने जीवन को जीवन्त बनाने के लिए स्वयं कोई प्रयास नहीं
करेंगे और न ही इनका कोई अपना लक्ष्य ही होगा !लक्ष्य तो हमेंशा वो लोग
बनाते हैं जिन्हें कुछ करना होता है जिन्हें कुछ करना ही न हो वो लक्ष्य
बनाने में ही दिमाग क्यों खपाएँगे !जिन्हें खुद कुछ करना ही न हो ऐसे लोगों
का स्वाभिमान कैसा ! क्योंकि किसी की कृपा से सब कुछ मिल सकता है किंतु
स्वाभिमान नहीं !
ऐसी जातियों के लोग केवल पेट भरने के लिए अपना अच्छा खासा जीवन ढोते रहते
हैं ! इनकी इस मनोवृत्ति को समझने वाले चतुर शासकों को ऐसे स्वाभिमान विहीन
लोग बहुत पसंद हैं ऐसे लोगों की संख्या जितनी अधिक बढ़ेगी हमसे जवाब माँगने
वालों की संख्या उतनी ही अधिक घटती चली जाएगी !इसलिए बदमाश शासक समय समय
पर इनकी संख्या में वृद्धि किया करते हैं वे इन लोगों से कुछ न कुछ देने की
बातें किया करते हैं जिससे हमेंशा लेने के लिए मुख फैलाए हाथ पसारे लोगों
को अपने चंगुल में अपने बुने जाल में ही हमेंशा फँसाए रहते हैं अपने बनाए
दायरे से बाहर न वे निकलने देते हैं और न ही ये निकलना ही चाहते हैं ऐसे
स्वाभिमान विहीन लोगों को असवर्ण जातियों में सम्मिलित किया गया है ।
उन्हीं असवर्णों की बेइज्जती करने के लिए ही इन चालाक नेता लोगों ने उनका नाम अपनी सुविधानुसार 'दलित' रख लिया और उन्हें 'दलित' 'दलित'' कहने लगे ! ये बदमाश नेता लोग अच्छे खासे हँसते खेलते स्वस्थ सुखी
लोगों को दलितों में सम्मिलित करके ऐसा लगता है कि जैसे उन्हें कोई
पुरस्कार दे दिया हो किंतु इतनी गन्दी संज्ञा से मनुष्यों के किसी वर्ग को
संबोधित करने से बड़ी उनकी और दूसरी बेइज्जती और क्या की जा सकती है आप स्वयं देखिए क्या होता है दलित शब्द का अर्थ !पढ़िए हमारा ये लेख -
दलित शब्द का अर्थ क्या होता है ? फिर पहचानो दलितों को !seemore....http://snvajpayee.blogspot.in/2013/01/blog-post_9467.html
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