युग पुरुष
माननीय श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी के उत्तम स्वास्थ्य के लिए अनंतानंत शुभ कामनाएँ
-ईश्वर उन्हें स्वस्थ प्रसन्न तथा दीर्घायुष्यवान करे
रखना सुरक्षित स्वस्थ जीवन प्रसन्न सदा
देश की धरोहर इस अमित निशानी को ।
त्याग के तागों से निर्मित कलेवर यह
अमर बना रहे ये सत्य कवि बानी हो ॥
ईश्वर अनंत यश देता रहे आपको
अटल! तुम्हारी अमितायु जिंदगानी हो ।
गरिमा मय जीवन सदैव रहे आपका
अंत में कलंक मुक्त मंजुल कहानी हो ॥ 1 ॥
कामना हमारी है ये कुशल रहो सदैव
ईश्वर कृपा करे जो सबका सहारा है।
देश ने प्रशासकों के घृणित घोटाले देख
आपसे व्रती को आर्त होकर पुकारा है ॥
भूल मत जाना तुम भूषण हो भारत के
मातृ भूमि के लिए ही जीवन सँवारा है।
अटल! अटल सदैव जीवन तुम्हारा रहे
भारती वसुंधरा पे सबका दुलारा है ॥2 ॥
त्याग के सभी का मोह राष्ट्र निर्माण हेतु
भारतीय क्षितिज में अटल सितारा था।
स्वार्थ पे न ध्यान सदा ध्येय परमार्थ रहा
देश के लिए ही निज जीवन उतारा था॥
लूटते स्वशासकों के घृणित घोटाले देख
राष्ट्र की सुरक्षा हेतु शासन सँवारा था।
रो चला था देश देख आपकी विनम्रता को
तेरह दिनों का ताज हँसके उतार था ॥3 ॥
जीवन का सारा भाग भारती की सेवा हेतु
सौंप दिया जिसने समस्त सुख विसार के।
धैर्य धर्म सत्यता समाज के हितों का ध्यान
रखते रहे सदैव त्याग के आधार पे ॥
साधना चरित्र वा पवित्र राष्ट्र सेवा की जो
आज लौं बचा रखी है चढ़ के भी धार पे ।
चाहते तो जाते सिद्धांत सरकार नहीं
बिकने के लिए लोग तब भी तैयार थे ॥4॥ - कारगिल विजय से
आदरणीय अटल जी जब प्रधानमंत्री थे तो एक दिन उनसे बात करने और अपनी काव्य पुस्तक कारगिल विजय
भेंट करने एवं कविताएँ सुनाने का सौभाग्य मुझे मिला इतने व्यस्त जीवन में
भी कितना तन्मय होकर वो सुन रहे थे हमारी रचनाएँ! उनकी टिप्पणियाँ मुझे
आज भी याद हैं देश एवं समाज के प्रति कितना अपनापन है उनमें !वास्तव में
वो राष्ट्र निष्ठा के समुद्र हैं साथ में भाजपा सांसद श्री श्याम बिहारी
मिश्र जी एवं एक और पंडित जी थे जब मैं कविताएँ सुनाने लगा तो वो न केवल
सुन रहे थे अपितु टिप्पणियाँ भी करते जा रहे थे । जब मैंने उनसे निवेदन
किया कि आपके आदर्श जीवन को कोई आम आदमी समझना चाहे तो क्या पढ़े कितना पढ़े
तो वो हँसने लगे और कहा -
न भीतो मरणादस्मि केवलं दूषितो यशः ।
अर्थात मैं मृत्यु से भयभीत नहीं हूँ केवल यश दूषित होने से डरता हूँ !
हमारे द्वारा लिखी गई कारगिल विजय पुस्तक की श्री अटल जी से सम्बंधित कुछ और रचनाएँ -
जेनेवा में भेजे जाने के लिए -
चाह के भी सत्ता पक्ष खोज न विकल्प सका
अटल को भेजना ही एक मात्र चारा था ।
सबकी निगाहें ढूँढ़ते न थकती थीं जिसे
बुद्धिजीवियों कि भावनाओं का सितारा था ॥
विज्ञ नरसिंह राव से प्रबुद्ध शासक ने
अपने ही मुख से कह गुरू पुकारा था ।
कैसे छिनाया गया ताज उस शासक से
जो सौ करोड़ हिंदुओं कि आस का सहारा था ॥1॥
आपस में बढ़ते विवादों से विषाक्त विश्व
चुने चुने नायकों का भारी अखारा था।
विश्व की विभूतियाँ न रौंद दें हमारा मान
ध्यान था सभी का देश चिंतित बिचारा था॥
सौ करोड़ हिंदुओं कि आश का सहारा था जो
अटल बिहारी वहाँ प्रतिनिधि हमारा था ।
उससे छिनाया था ताज पद लोलुपों ने
जाकर जेनेवा जो न हारा ललकारा था ॥ 2 ॥
भारत को शक्तिवान मान ले विशाल विश्व
करके परमाणु विस्फोट जो दहाड़ा था।
शोर सुन घोर चीत्कार उठे रौद्र राष्ट्र
जिनकी बहादुरी का बजता नगाड़ा था ॥
मान के कँगाल हमें कोटि प्रतिबन्ध किए
पहले के शासकों की भीरुता को ताड़ा था ।
किन्तु पाला पड़ा था आज अटल बिहारी जी से
डटे निःशंक और सबको लताड़ा था ॥ 3 ॥
- कारगिल विजय से
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