भाजपा को आत्म मंथन करना चाहिए कि कि जीत के जोश में कहीं कुछ भूल तो नहीं हो रही है !
    क्या भाजपा का लक्ष्य भी केवल चुनाव जीतना ही तो नहीं है क्योंकि जनता तो भाजपा के दृढ़ सिद्धांतों की समर्थक है !
     भाजपा में इस समय अति उत्साह का वातावरण है और होना भी चाहिए क्योंकि काफी दिनों बाद राष्ट्रीय चुनावी चर्चा  के केंद्र में भाजपा पहुँच पाई है ये हम सब लोगों के लिए अत्यंत उत्साही अवसर है इसमें कोई संदेह की बात भी नहीं है,किन्तु मुझे आशंका है कि भाजपा हमेंशा से चुनावी उत्सवों (रैलियों)में भरोसा करती रही है उसका कारण है इतने अच्छे उत्सव किसी और पार्टी में होते भी नहीं हैं और इतिहास भूगोल से सम्मिश्रित इतने हृदयाकर्षक वीर रस से ओतप्रोत भाषण भी कहीं और नहीं होते हैं, हों भी कैसे ! भाषणों के नाम पर कुछ लोग गाली गलौच करते हैं और कुछ  नकलची लोग अपना भाषण लिखाकर ले जाते हैं और पढ़कर चले आते हैं किन्तु ऐसे लोग भी बिना कुछ किए धरे भी पिछले दस वर्षों से देश में शासन कर रहे हैं!केवल इतना ही नहीं देश में सबसे अधिक वर्षों तक शासन करने का गौरव भी उन्हें ही प्राप्त है आखिर ऐसा कौन सा गुण है उनमें जो भाजपा के पास नहीं है मंथन इस पर हो तो अच्छा है देखना यह है कि अपने सिद्धांतों की रक्षा करते हुए ऐसा क्या कुछ सुधार किया जा सकता है जिससे कि लोक सभा के चुनावों का परिणाम अपने पक्ष में किया जा सके । यद्यपि इस विषय में भाजपा की शालीनता सराहनीय है! 
      अभी तक यह देखा जाता रहा है कि जिन उत्सवों में जितनी अधिक संख्या में लोग बड़े धूम धाम से भाजपा के साथ  सम्मिलित होते रहे हैं उतने वोट नहीं मिलते रहे हैं यही कारण है कि चुनावों से पूर्व की भाजपा की रैलियों में उमड़ती भीड़ हमेंशा से भाजपा को भ्रमित करती रही है  आखिर क्या हस्र हुआ था सन 2004 के फीलगुड का ! 
     कुछ सिद्धांत हीन लोगों के साथ सैद्धांतिक जीवन जीने वाली भाजपा ने चुनावी गठबंधन किए हैं उन पार्टियों के मुखिया वो लोग हैं जो भाजपा के सैद्धांतिक समर्थकों की निंदा आलोचना किया करते हैं या उनसे जातिगत द्वेष रखते हैं उन्हें भाजपा की गोद में बैठा देखकर कैसे पचा पाएगा उसका सैद्धांतिक वोटर !इसलिए उसकी भावनाओं का ध्यान रखकर ही कोई समझौता करना ठीक रहेगा अन्यथा वो वोटर भी स्वतन्त्र है !वैसे भी ऐसे लोग कब दगा दे जाएँ  कैसे विश्वास किया जा सकता है ?मेरी चिंता बस यही है कि मुश्किल से मिला यह मौका कहीं भाजपा के हाथ से निकल न जाए !
    एक और बात है कि मोदी जी के व्यवहार में  गुजरात वाद का जिक्र सबसे अधिक होता है ऐसा क्यों ?जब बात प्रदेशों की करनी हो तब गुजरात की चर्चा में क्या बुराई है किन्तु समता बनाए रखने के लिए गुजरात के साथ साथ उन प्रदेशों की भी चर्चा वैसे ही खुले मन से की जानी चाहिए जैसे गुजरात  की चर्चा  की जाती  है !
      दूसरी बात मोदी जी जब प्रधान मंत्री हैं  तो अपने पूर्व पुरुष श्री अटल जी की सरकार की खूबियाँ भी गिनावें ! 
   वैसे भी  अपनी बारी की प्रतीक्षा करते 
करते पिछले कई चुनावों से जनता की अदालत में अनुपस्थित सी होती रही दिल्ली  भाजपा 
चुनाव लड़ने की  केवल खाना पूर्ति मात्र करती रही  है,इसीलिए पार्टी की छवि 
दिनोंदिन धूमिल होती चली गई किन्तु  अब जनता की अदालत में सेवा भावना से 
भाजपा को भी  अपनी  हाजिरी लगानी ही होगी!अब भाजपा को किसी की शर्त के 
सामने घुटने नहीं टेकने चाहिए!केवलअपने कार्यकर्ताओं के समर्पण बल पर चुनाव
 लड़ना चाहिए।बाबा बैरागी या फिल्मी अभिनेताओं की गुड़बिल के पीछे खड़े होकर  
चुनावों में जीत जाने पर भी पार्टी के स्वाभिमान या आत्म सम्मान  के तौर पर
 न जाने क्यों भाजपा हार ही जाती है इसीलिए उसकी अपनी छवि में निखार नहीं आ
 पाता है। इससे पार्टी पर वो लोग हमेंशा अपनी धौंस चलाना चाहते हैं 
जिन्होंने भाजपा को जिताने का मिथ्या बहम पाल रखा होता है।वैसे भी पार्टी 
अपने कार्यकर्ताओं के कठोर परिश्रम से ही जीतती है किन्तु जब पार्टी से 
असम्बद्ध लोग भाजपा की नीतियों को  हाइजेक करके भाजपा के ही माथे पर उसी की
 नीतियाँ अपने नाम से मढ़ने लगते हैं जिसे  सुन कर भी मौन रह जाता है पार्टी
 का शीर्ष नेतृत्व !
    ऐसी गतिविधियों से पार्टी के 
प्रति दशकों से समर्पित  कार्यकर्ता अपने को अपमानित महसूस करने लगते हैं 
इसलिए किसी आगन्तुक सैलिब्रेटी का सहयोग लेने में कोई बुराई नहीं है किन्तु
 उसके समर्थक थोड़े से वोटों के लालच में उसी के हवाले पार्टी करने की 
अपेक्षा उचित होगा कि बड़े मुद्दों पर भाजपा के अपने कार्यकर्ताओं की भी 
रायसुमारी हो !इस प्रकार की विनम्र भाजपा यदि समाज में जाएगी तो आम आदमी पार्टी का औचित्य ही क्या रह जाएगा !
      कुछ हो न हो किन्तु भाजपा 
को एक बात तो समाज के सामने स्पष्ट कर ही देनी  चाहिए कि उसे आम समाज के 
सहारे चलना है या साधू या सैलिब्रेटी समाज के ? जो चरित्रवान विरक्त तपस्वी एवं 
शास्त्रीय स्वाध्यायी संत हैं उनके  धर्म एवं वैदुष्य में सेवा भावना से  
सहायक होकर विनम्रता से साधुओं का आशीर्वाद लेना एवं उनकी समाज सुधार की 
शास्त्रीय बातों विचारों के समर्थन में सहयोग देना ये और बात है! सच्चे 
साधू संत भी अपने धर्म कर्म में सहयोगी दलों नेताओं व्यक्तियों  
कार्यक्रमों में साथ देते ही  हैं किन्तु उसके लिए कोई शर्त रखे और वो मानी
 जाए ये परंपरा किसी भी राजनैतिक दल के लिए  ठीक नहीं है !  
        विदेश से कालाधन लाने 
जैसी भ्रष्टाचार निरोधक लोकप्रिय योजनाओं के लिए भाजपा को स्वयं अपने 
कार्यक्रम न केवल बनाने अपितु घोषित भी करने चाहिए ताकि ऐसी योजनाओं का 
श्रेय केवल भाजपा और उसके लिए दिन रात कार्य करने वाले उसके परिश्रमी 
कार्यकर्ताओं को मिले।वो भाजपा की पहचान में सम्मिलित हो जिन्हें लेकर 
दुबारा समाज में जाने लायक  कार्यकर्ता बनें उनका मनोबल बढ़े !अन्यथा कुछ 
योजनाओं का श्रेय नाम देव ले जाएँगे कुछ का कामदेव और कुछ का वामदेव! भाजपा के पास अपने 
लिए एवं अपने कार्यकर्ताओं के लिए बचेगा क्या ? ऐसे तो दस लोग और मिल 
जाएँगे वो भी अपने अपने दो दो मुद्दे भाजपा को पकड़ा कर चले जाएँगे भाजपा उन्हें 
ढोती फिरे श्रेय वो लोग लेते रहें ।
      इसलिए भाजपा को मुद्दे अपने
 बनाने चाहिए उनके आधार पर समर्थन माँगना चाहिए । अब यह समाज ढुलममुल  
भाजपा का साथ छोड़कर अपितु सशक्त भाजपा का  ही साथ देना चाहता है। 
        इसके अलावा जो ऐसी शर्तें रखते हैं 
ऐसे लोगों के अपने समर्थक कितने हैं और वो उनका कितना साथ देते हैं यह उनके
 आन्दोलनों  में देखा जा चुका  है किसी ने पुलिस के विरोध में  एक दिन धरना
 प्रदर्शन भी नहीं किया था सब भाग गए थे । 
        दूसरी बात संदिग्ध साधुओं
 की विरक्तता पर अब सवाल उठने लगे हैं   अब  लोग किसी बाबा की अविरक्तता  
सहने को तैयार नहीं हैं किसी भी  व्यापारी या ब्याभिचारी बाबा से अधिक 
संपर्क इस समय लोग नहीं बना  रहे  हैं सम्भवतः इसीलिए कथा कीर्तन भी दिनोदिन घटते 
जा रहे हैं ।
       इसलिए भाजपा समर्थकों का भाजपा  से निवेदन है कि वो अपने मुद्दों पर ही समाज से समर्थन माँगे तो बेहतर होगा !
       
 
 
 
 
          
      
 
  
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
No comments:
Post a Comment