Thursday, 31 July 2014

सनातन धर्म शास्त्रों से बाहर जाकर साईं समझौता करने वाले सनातन धर्मी किस बात के ?

   आर्थिकपूजन से प्रभावित कुछ सनातनी साधुओं के द्वारा साईं लीला मंडली का समर्थन कितना विश्वसनीय हो सकता है ?

     हमारा किसी साईं से कोई विरोध नहीं है किन्तु जैसे किसी घर में किसी देश में या किसी प्रकार की संपत्ति में या किसी धर्म में घुस पैठ करना किसी सभ्य समाज में कभी भी स्वीकार्य नहीं हो सकता !चूँकि साईं सनातन धर्म के अंग हैं इसके बारे में चोंच लड़ाने के अलावा और अभी तक कोई मजबूत प्रमाण नहीं हैं साईं की मूर्तियाँ स्थापित करने से लेकर उनकी पूजा विधि तक में वेद मन्त्रों का प्रयोग धर्म शास्त्र के किस नियम से किया जा रहा है इसका भी कोई शास्त्रीय प्रमाण उपस्थित नहीं किया जा सका है ।

    ऐसी परिस्थिति में किसी अनाम फकीर को सनातन धर्म शास्त्रों के विरुद्ध सनातन धर्म के मंदिरों में कैसे पूजने दिया जाए कल को विश्व के सबसे प्राचीन सनातन धर्म की मान्यता,प्रामाणिकता और शास्त्रीय सैद्धांतिकता पर प्रश्न उठेंगे तो किन प्रमाणों का सहारा लेकर साईं को प्रमाणित किया जाएगा !साईं के अनुयायी जब साईं को आज प्रमाणित नहीं कर पा रहे हैं तो विश्व धर्म मंच की सभाओं में इनकी कौन सुनेगा ये तो खदेड़ दिए जाएँगे इनका क्या ये तो कोई नया भगवान खोज लेंगे और उसे पूजने लगेंगे किन्तु बात पढ़े लिखे विद्वान सनातन धर्मियों की है ,स्वाभिमानी सनातन धर्मियों की है वो अप्रमाणित साईं पूजा को अपने शास्त्रों से कैसे प्रमाणित कर देंगे ?वहाँ तो प्रमाण चलते हैं साईं चरित्र में लिखी गपोड़ बातों को प्रमाण नहीं माना जा सकता हाँ इनके विषय में समकालीन इतिहास में कुछ प्रमाणित तथ्य  मिल रहे होते तो इन्हें भी संत माना जा सकता था किन्तु अभी तक तो इनके सनातन धर्मी होने पर ही विद्वानों को शक है ऐसी परिस्थिति में आगे की बात करना ही आधारहीन  है एवं अप्रासंगिक है ।

    यदि साईं मूर्ति प्रतिष्ठा एवं पूजा को सनातनधर्मी अपने सनातन धर्म शास्त्रीय प्रमाणों से प्रमाणित नहीं कर सके तो क्या रह जाएगा सनातन धर्म का आस्तित्व !और किस मुख से वो किसी और को रोक सकेंगे  सनातन धर्म के मंदिरों  में घुसपैठ करने से ! कल लोग अपने अपने धर्मों की किताबें मूर्तियाँ आदि जो भी कुछ भी उनके यहाँ इफरात  होगा वो धर्म के नाम पर रख जाएँगे सनातन धर्म के मंदिरों में और अपने अपने धर्मों के हिसाब से आरती इबादत करेंगे  सनातन धर्म के मंदिरों में कैसे रोका जाएगा उन्हें ! और जो रोकेगा उससे वो पूछ सकते हैं कि साईं नाम के पत्थरों को किस नियम से रख रखा है और हमें किस नियम से बाहर कर रहे हो !यदि मैं तुम्हारे धर्म का नहीं हूँ तो साईं तुम्हारे धर्म के  कहाँ से हो गए !दूसरी बात कानून की आएगी कानून में तो जो परंपरा चली आ रही है वही मानी जाएगी वहाँ भी वही सवाल होगा कि यदि आपके धर्मशास्त्रों से बिना प्रमाणित हुए भी नियम विरुद्ध ढंग से साईं को पुजवा सकते हो तो ईसामसीह या किसी और को क्यों नहीं ? तो क्या जवाब देंगे सनातन धर्मी !क्या वास्तव में सनातन धर्म को नष्ट भ्रष्ट करने की साजिश की जा रही है !

        कुछ लोग कह रहे हैं कि यदि साईं का विरोध किया जाएगा तो सनातन धर्म बँट जाएगा ! इसे अजीब सी धमकी कहें या क्या ब्लैक मेल! हाँ ,यदि वो लोग भी अपने को सनातन धर्मी मानते हैं तो सनातन धर्म शास्त्रों से बाहर जाकर साईं समझौता वो कैसे कर सकते हैं उन्हें भी सनातन धर्म शास्त्रों की परिधि में ही रहकर बात करनी होगी और यदि वो सनातन धर्म शास्त्रों की सीमा से बाहर जाकर स्वच्छंदता पूर्वक अपने धार्मिक नियम  अपने हिसाब से बनाते हैं तो वो सनातन धर्मी किस बात  के और सनातन धर्मियों से उनका सम्बन्ध ही क्या रह जाता है जिसके बँट जाने की चिंता की जाए आखिर बँट तो वो पहले ही चुके हैं अर्थात उनका जो मन आ रहा है वो तो वो कर ही रहे हैं सनातन धर्मियों को हजार बार गर्ज हो तो वो सनातन धर्म की रक्षा के नाम पर स्वेच्छाचारी साईंयों से चिपक कर चलें !यह कौन सी बात है और  शर्तें मानने की मजबूरी भी क्या है ! 

    हम यदि सनातन धर्म की परम्पराओं एवं पूजास्थलों को साईं घुस पैठ से मुक्त रखने जैसे अपने कर्तव्य का पालन करना चाहते हैं तो किसी को आपत्ति क्यों है ? आखिर अन्यधर्मों के मत्थे क्यों नहीं मढ़े जाते हैं साईं ?सनातन धर्म पर ही इनकी नियत क्यों ख़राब है !आखिर क्यों थोपे जा रहे हैं साईं सनातन धर्मियों पर ?इसीलिए न कि सनातन धर्मी ढुलमुल हैं इन्हें मना लिया जाएगा या इनके पंडितों बाबाओं को समझा  समझू कर शिरड़ी ले जाया  जाएगा और उन लोगों  का आर्थिक पूजन करके उनसे करवा लिया जाएगा साईं समर्थन !किन्तु वो लोग हिन्दू धर्मशास्त्र तो नहीं है आखिर शास्त्र विरुद्ध बात उनकी भी क्यों मान ली जाएगी ?


Wednesday, 30 July 2014

साईं पर श्रद्धा कैसी !

साईं पर श्रद्धा कैसी !

दूर रहे इच्छा ऐसी !!

साईं कोई संत नहीं हैं !

मूर्खों के भगवंत वही हैं।

साईं के क्या कर्म महान !

क्यों उनको मानो भगवान !!

राम कृष्ण शिव की संतानें  !

किसी साईं को हम क्यों मानें !!

तैंतीस कोटि देवता मेरे !

ऋषि मुनि साधु सिद्ध बहुतेरे ॥

कवि अनंत संत सुर सज्जन ।

पितृ पूज्य ,गुरुदेव ,वृद्ध जन ॥

गो पूजन की विधि विस्तारी ।

माँगब मनोकामना सारी ॥

सर सरिता सागर की पूजा ।

 तीर्थ पुरी  सम ठाउँ न दूजा ॥

बट तुलसी पीपल पद लागउँ ।

इन्हतें सकल कामना मागउँ ॥

साँपों को भी दूध पिलाऊँ ।

कबहुँ न साईं सदन को जाऊँ ॥ 

          लेखक - डॉ.शेष नारायण वाजपेयी

Saturday, 26 July 2014

आदरणीय श्रीमान कुशाभाऊ ठाकरे जी को अपनी पुस्तक 'कारगिल विजय' भेंट करते हुए आचार्य डॉ.शेष नारायण वाजपेयी

  

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डॉ. शेष नारायण वाजपेयी द्वारा रचित काव्य - 




कारगिल के शहीदों को शत शत नमन


युद्ध के दृश्य अपनी कविता में -

देख द्वंद्व घोर शोर हुआ चहुँ ओर 
 भोर दुखद दिखाई दिया बिसरी अपान सी ।
सैनिक हमारे थे पचार रहे बार बार
 मानते थे पाक को तँबुइया मानो रान  की ॥ 
देख के कलाएँ  शत्रु रोता फिरा  चारों ओर
 प्राणों की पड़ी थी कहाँ चिंता स्वाभिमान की । 
पाक का वजीर पैर पकड़े अमेरिका के
 माँगता था भीख मानों सैनिकों के प्राण की ॥ 1 .॥ 

आए थे हमारे भूमि भाग को समेटने वो 
मेटना  पड़ा था वीरता के निज ताज को । 
भूल गईं बातें सब लातों की चोट झेल
 लगे थे टटोलने वो हिन्द के मिजाज को ॥ 
देख रण भावना हमारे वीर सैनिकों की 
भय हुआ भारी सारे शत्रु के समाज को । 
भगने लगे थे प्राण लोलुप बिहाय लाज
 छोड़ते हैं लोग जैसे डूबते जहाज को ॥ 2. ॥

गिरि चोटियों पे छिड़ा देख संग्राम यह 
लगता कि बादलों का वृन्द टकरा रहा । 
छाया अंधकार था धुएँ में दिन मान दुरे 
चन्द्रमा की चारुता न कोई देख पा रहा ॥ 
दामिनि  सी कौंध रही  बार व्योम बीच 
शौर्य सैनिकों का देख पाक भय पा रहा ।
 लगता था भूमि उठ अम्बर को जा रही है 
अम्बर भी टूट के धरा पे आज आ रहा ॥ 3.॥ 

एक ओर शत्रु सुव्यवस्थित खड़ा था वहाँ
 मोर्चा सँभाले हुए निकला लड़ाई पर । 
एक ओर थाल में परोसे निज जीवनी को 
देश भक्त जा रहे थे चढ़ते चढ़ाई पर ॥ 
घात में लगे थे वे घृणित पड़ोसी क्रूर 
दागते थे गोले जब हिन्द तरुणाई पर । 
फिर भी रुके नहीं थे रण बाँकुरों के झुंड
 चढ़ते गए थे वीर उतनी ऊँचाई पर ॥ 4.॥ 

बर्फ की पहाड़ियों पे चंद्रमा की चाँदनी की
 चारुता बनी थी क्लेश दायिनी सी ठंड में । 
घात में लगे थे शत्रु सैनिक सशस्त्र क्रूर
 खुद वे व्यवस्थित थे घोर गिरि  खंड में ॥
सामना किया था जब भारती सपूतों ने 
रौंद के चलाया शत्रु सैनिकों को कुण्ड में ।
 सोत्साह सैनिकों को देख लगता था जैसे
 सिंह के सलोने शिशु हाथियों के झुण्ड में ॥ 5. ॥


सैनिकों से निवेदन -

सैनिकों तुम्हारे चरणारविन्द हैं पवित्र
 धूल ले पदों की शिर कैसे चढ़ाऊँ मैं । 
यशोगान करते न जीह थकती है नेक 
त्याग है विशाल किसे कितना सुनाऊँ मैं ॥ 
चाहता है भेंटना तुम्हारे अंक से ये रंक
 देश के शहीदों मुख कैसे दिखाऊँ मैं । 
मन कोषता है दिन रात अपने को सोच
 भारती सपूतों के किस काम आऊँ मैं ॥ 1.॥ 

भूल गया माता का ममत्व भी अलभ्य आज
 पिता का सनेह भी जिसके स्वकीय हो । 
भूल गए सेज के मनोज राग रंग सभी 
हास वा विलाष मंजु सानुराग तीय को ॥ 
घर छोटा छौना छोड़ मन लगता न था 
पै तोड़ गए नाता आज शिशु कमनीय सों । 
संत हो विरक्त अनाशक्त हो स्वदेश भक्त
 सैनिकों हमारे लिए नित्य बंदनीय हो ॥ 2. ॥ 

               सगे सम्बन्धियों के लिए संवेदना -

शहीदों की माताओं  से निवेदन -
माते तुम्हारा ऋणी भारत रहेगा सदा 
पृष्ठ इतिहास के तुम्हारा गीत गाएँगे । 
नमन करेंगे नित्य भावी भारतीय सभी 
आपके बदौलत ही खुशियाँ मनाएँगे ॥ 
देश की वसुंधरा सुरक्षित रहेगी सदा 
बाप की बोई न शत्रु फिर से मझाएँगे । 
तुलना करेगा कौन आपकी पवित्रता से 
बड़े बड़े वीर शिर आपको झुकाएँगे ॥

शहीदों के भाइयों से निवेदन -

भाइयों तुम्हारा प्राण प्यारा बंधु वीरता में 
विश्व के समक्ष एक मानक बना गया ।
बड़े बड़े त्यागियों को लाँघ  गया लाघव से
 दुर्गम पहाड़ों पर शत्रु को छका गया ॥ 
सारी सन्नद्धता से बैठा था विरोधी वहाँ 
उसको खदेड़ निज ध्वज फहरा गया । 
गर्व करो प्यारे वह हाथ था तुम्हारा सव्य 
विपति सहारा बन आज काम आ गया ॥

शहीदों की बहनों से निवेदन -

 बहनों न रोना बंधु  सचमुच सलोना था 
विश्व की निगाहें गड़ीं आज उस भाई पर ।
देश गर्व करता है निधि इतिहास का जो 
वार रहे प्राण लोग ऐसी तरुणाई पर ॥ 
रो रहा है देश दुःख उनके वियोग का है 
यद्यपि धरा पे अपार कीर्ति छाई पर । 
देवियों तुम्हें भी गर्व होना यह चाहिए कि
 बाँधी है न राखी किसी कायर कलाई पर ॥ 

शहीदों की पत्नियों से निवेदन -

आपके समर्पण का विदित प्रभाव यह 
राष्ट्र के विशाल रण में भी नहीं हारा  है ।
 जन्म वा मृत्यु तो सृष्टि का विधान देवि
 प्राण रहे तब लौं न प्रण को विसारा है ॥ 
आप वीर रमणी हैं गर्व रखो भारी यह
 कायर के अंश को न गर्व हेतु धारा है । 
भूल मत जाना इतिहास है तुम्हारा यह
 हारा नहीं रण  में जो प्रीतम  तुम्हारा है ॥

शहीदों की संतानों से निवेदन -

पिता का तुम्हारे यश अमर हुआ है वत्स 
जीवन दिया न किसी कामिनी कि चाह में । 
चोरी लतखोरी द्यूत में न मदमत्त रहा 
प्राण नहीं गए हैं गरीब की कराह में ॥ 
याद रखो ऐसा स्वच्छ संस्कार वीर पुत्र 
हुआ अभिमन्यु था अर्जुन की छाँह में । 
भूल मत जाना वत्स सौंप के गए हैं तात 
देश की सुरक्षा का भार तव बाँह में ॥

आदरणीय डॉ. मुरली मनोहर जोशी जी को अपनी पुस्तक 'कारगिल विजय' भेंट करते हुए आचार्य डॉ.शेष नारायण वाजपेयी


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     कारगिल के शहीदों को शत शत नमन


युद्ध के दृश्य अपनी कविता में -

देख द्वंद्व घोर शोर हुआ चहुँ ओर 
 भोर दुखद दिखाई दिया बिसरी अपान सी ।
सैनिक हमारे थे पचार रहे बार बार
 मानते थे पाक को तँबुइया मानो रान  की ॥ 
देख के कलाएँ  शत्रु रोता फिरा  चारों ओर
 प्राणों की पड़ी थी कहाँ चिंता स्वाभिमान की । 
पाक का वजीर पैर पकड़े अमेरिका के
 माँगता था भीख मानों सैनिकों के प्राण की ॥ 1 .॥ 

आए थे हमारे भूमि भाग को समेटने वो 
मेटना  पड़ा था वीरता के निज ताज को । 
भूल गईं बातें सब लातों की चोट झेल
 लगे थे टटोलने वो हिन्द के मिजाज को ॥ 
देख रण भावना हमारे वीर सैनिकों की 
भय हुआ भारी सारे शत्रु के समाज को । 
भगने लगे थे प्राण लोलुप बिहाय लाज
 छोड़ते हैं लोग जैसे डूबते जहाज को ॥ 2. ॥

गिरि चोटियों पे छिड़ा देख संग्राम यह 
लगता कि बादलों का वृन्द टकरा रहा । 
छाया अंधकार था धुएँ में दिन मान दुरे 
चन्द्रमा की चारुता न कोई देख पा रहा ॥ 
दामिनि  सी कौंध रही  बार व्योम बीच 
शौर्य सैनिकों का देख पाक भय पा रहा ।
 लगता था भूमि उठ अम्बर को जा रही है 
अम्बर भी टूट के धरा पे आज आ रहा ॥ 3.॥ 

एक ओर शत्रु सुव्यवस्थित खड़ा था वहाँ
 मोर्चा सँभाले हुए निकला लड़ाई पर । 
एक ओर थाल में परोसे निज जीवनी को 
देश भक्त जा रहे थे चढ़ते चढ़ाई पर ॥ 
घात में लगे थे वे घृणित पड़ोसी क्रूर 
दागते थे गोले जब हिन्द तरुणाई पर । 
फिर भी रुके नहीं थे रण बाँकुरों के झुंड
 चढ़ते गए थे वीर उतनी ऊँचाई पर ॥ 4.॥ 

बर्फ की पहाड़ियों पे चंद्रमा की चाँदनी की
 चारुता बनी थी क्लेश दायिनी सी ठंड में । 
घात में लगे थे शत्रु सैनिक सशस्त्र क्रूर
 खुद वे व्यवस्थित थे घोर गिरि  खंड में ॥
सामना किया था जब भारती सपूतों ने 
रौंद के चलाया शत्रु सैनिकों को कुण्ड में ।
 सोत्साह सैनिकों को देख लगता था जैसे
 सिंह के सलोने शिशु हाथियों के झुण्ड में ॥ 5. ॥


सैनिकों से निवेदन -

सैनिकों तुम्हारे चरणारविन्द हैं पवित्र
 धूल ले पदों की शिर कैसे चढ़ाऊँ मैं । 
यशोगान करते न जीह थकती है नेक 
त्याग है विशाल किसे कितना सुनाऊँ मैं ॥ 
चाहता है भेंटना तुम्हारे अंक से ये रंक
 देश के शहीदों मुख कैसे दिखाऊँ मैं । 
मन कोषता है दिन रात अपने को सोच
 भारती सपूतों के किस काम आऊँ मैं ॥ 1.॥ 

भूल गया माता का ममत्व भी अलभ्य आज
 पिता का सनेह भी जिसके स्वकीय हो । 
भूल गए सेज के मनोज राग रंग सभी 
हास वा विलाष मंजु सानुराग तीय को ॥ 
घर छोटा छौना छोड़ मन लगता न था 
पै तोड़ गए नाता आज शिशु कमनीय सों । 
संत हो विरक्त अनाशक्त हो स्वदेश भक्त
 सैनिकों हमारे लिए नित्य बंदनीय हो ॥ 2. ॥ 

               सगे सम्बन्धियों के लिए संवेदना -

शहीदों की माताओं  से निवेदन -
माते तुम्हारा ऋणी भारत रहेगा सदा 
पृष्ठ इतिहास के तुम्हारा गीत गाएँगे । 
नमन करेंगे नित्य भावी भारतीय सभी 
आपके बदौलत ही खुशियाँ मनाएँगे ॥ 
देश की वसुंधरा सुरक्षित रहेगी सदा 
बाप की बोई न शत्रु फिर से मझाएँगे । 
तुलना करेगा कौन आपकी पवित्रता से 
बड़े बड़े वीर शिर आपको झुकाएँगे ॥

शहीदों के भाइयों से निवेदन -

भाइयों तुम्हारा प्राण प्यारा बंधु वीरता में 
विश्व के समक्ष एक मानक बना गया ।
बड़े बड़े त्यागियों को लाँघ  गया लाघव से
 दुर्गम पहाड़ों पर शत्रु को छका गया ॥ 
सारी सन्नद्धता से बैठा था विरोधी वहाँ 
उसको खदेड़ निज ध्वज फहरा गया । 
गर्व करो प्यारे वह हाथ था तुम्हारा सव्य 
विपति सहारा बन आज काम आ गया ॥

शहीदों की बहनों से निवेदन -

 बहनों न रोना बंधु  सचमुच सलोना था 
विश्व की निगाहें गड़ीं आज उस भाई पर ।
देश गर्व करता है निधि इतिहास का जो 
वार रहे प्राण लोग ऐसी तरुणाई पर ॥ 
रो रहा है देश दुःख उनके वियोग का है 
यद्यपि धरा पे अपार कीर्ति छाई पर । 
देवियों तुम्हें भी गर्व होना यह चाहिए कि
 बाँधी है न राखी किसी कायर कलाई पर ॥ 

शहीदों की पत्नियों से निवेदन -

आपके समर्पण का विदित प्रभाव यह 
राष्ट्र के विशाल रण में भी नहीं हारा  है ।
 जन्म वा मृत्यु तो सृष्टि का विधान देवि
 प्राण रहे तब लौं न प्रण को विसारा है ॥ 
आप वीर रमणी हैं गर्व रखो भारी यह
 कायर के अंश को न गर्व हेतु धारा है । 
भूल मत जाना इतिहास है तुम्हारा यह
 हारा नहीं रण  में जो प्रीतम  तुम्हारा है ॥

शहीदों की संतानों से निवेदन -

पिता का तुम्हारे यश अमर हुआ है वत्स 
जीवन दिया न किसी कामिनी कि चाह में । 
चोरी लतखोरी द्यूत में न मदमत्त रहा 
प्राण नहीं गए हैं गरीब की कराह में ॥ 
याद रखो ऐसा स्वच्छ संस्कार वीर पुत्र 
हुआ अभिमन्यु था अर्जुन की छाँह में । 
भूल मत जाना वत्स सौंप के गए हैं तात 
देश की सुरक्षा का भार तव बाँह में ॥

श्रद्धेय श्री रज्जू भइया जी को अपनी पुस्तक 'कारगिल विजय' भेंट करते हुए आचार्य डॉ.शेष नारायण वाजपेयी



श्रद्धेय श्री रज्जू भइया जी

को अपनी पुस्तक 'कारगिल विजय' भेंट करते हुए

आचार्य डॉ.शेष नारायण वाजपेयी 


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कारगिल के शहीदों को शत शत नमन


युद्ध के दृश्य अपनी कविता में -

देख द्वंद्व घोर शोर हुआ चहुँ ओर 
 भोर दुखद दिखाई दिया बिसरी अपान सी ।
सैनिक हमारे थे पचार रहे बार बार
 मानते थे पाक को तँबुइया मानो रान  की ॥ 
देख के कलाएँ  शत्रु रोता फिरा  चारों ओर
 प्राणों की पड़ी थी कहाँ चिंता स्वाभिमान की । 
पाक का वजीर पैर पकड़े अमेरिका के
 माँगता था भीख मानों सैनिकों के प्राण की ॥ 1 .॥ 

आए थे हमारे भूमि भाग को समेटने वो 
मेटना  पड़ा था वीरता के निज ताज को । 
भूल गईं बातें सब लातों की चोट झेल
 लगे थे टटोलने वो हिन्द के मिजाज को ॥ 
देख रण भावना हमारे वीर सैनिकों की 
भय हुआ भारी सारे शत्रु के समाज को । 
भगने लगे थे प्राण लोलुप बिहाय लाज
 छोड़ते हैं लोग जैसे डूबते जहाज को ॥ 2. ॥

गिरि चोटियों पे छिड़ा देख संग्राम यह 
लगता कि बादलों का वृन्द टकरा रहा । 
छाया अंधकार था धुएँ में दिन मान दुरे 
चन्द्रमा की चारुता न कोई देख पा रहा ॥ 
दामिनि  सी कौंध रही  बार व्योम बीच 
शौर्य सैनिकों का देख पाक भय पा रहा ।
 लगता था भूमि उठ अम्बर को जा रही है 
अम्बर भी टूट के धरा पे आज आ रहा ॥ 3.॥ 

एक ओर शत्रु सुव्यवस्थित खड़ा था वहाँ
 मोर्चा सँभाले हुए निकला लड़ाई पर । 
एक ओर थाल में परोसे निज जीवनी को 
देश भक्त जा रहे थे चढ़ते चढ़ाई पर ॥ 
घात में लगे थे वे घृणित पड़ोसी क्रूर 
दागते थे गोले जब हिन्द तरुणाई पर । 
फिर भी रुके नहीं थे रण बाँकुरों के झुंड
 चढ़ते गए थे वीर उतनी ऊँचाई पर ॥ 4.॥ 

बर्फ की पहाड़ियों पे चंद्रमा की चाँदनी की
 चारुता बनी थी क्लेश दायिनी सी ठंड में । 
घात में लगे थे शत्रु सैनिक सशस्त्र क्रूर
 खुद वे व्यवस्थित थे घोर गिरि  खंड में ॥
सामना किया था जब भारती सपूतों ने 
रौंद के चलाया शत्रु सैनिकों को कुण्ड में ।
 सोत्साह सैनिकों को देख लगता था जैसे
 सिंह के सलोने शिशु हाथियों के झुण्ड में ॥ 5. ॥


सैनिकों से निवेदन -

सैनिकों तुम्हारे चरणारविन्द हैं पवित्र
 धूल ले पदों की शिर कैसे चढ़ाऊँ मैं । 
यशोगान करते न जीह थकती है नेक 
त्याग है विशाल किसे कितना सुनाऊँ मैं ॥ 
चाहता है भेंटना तुम्हारे अंक से ये रंक
 देश के शहीदों मुख कैसे दिखाऊँ मैं । 
मन कोषता है दिन रात अपने को सोच
 भारती सपूतों के किस काम आऊँ मैं ॥ 1.॥ 

भूल गया माता का ममत्व भी अलभ्य आज
 पिता का सनेह भी जिसके स्वकीय हो । 
भूल गए सेज के मनोज राग रंग सभी 
हास वा विलाष मंजु सानुराग तीय को ॥ 
घर छोटा छौना छोड़ मन लगता न था 
पै तोड़ गए नाता आज शिशु कमनीय सों । 
संत हो विरक्त अनाशक्त हो स्वदेश भक्त
 सैनिकों हमारे लिए नित्य बंदनीय हो ॥ 2. ॥ 

               सगे सम्बन्धियों के लिए संवेदना -

शहीदों की माताओं  से निवेदन -
माते तुम्हारा ऋणी भारत रहेगा सदा 
पृष्ठ इतिहास के तुम्हारा गीत गाएँगे । 
नमन करेंगे नित्य भावी भारतीय सभी 
आपके बदौलत ही खुशियाँ मनाएँगे ॥ 
देश की वसुंधरा सुरक्षित रहेगी सदा 
बाप की बोई न शत्रु फिर से मझाएँगे । 
तुलना करेगा कौन आपकी पवित्रता से 
बड़े बड़े वीर शिर आपको झुकाएँगे ॥

शहीदों के भाइयों से निवेदन -

भाइयों तुम्हारा प्राण प्यारा बंधु वीरता में 
विश्व के समक्ष एक मानक बना गया ।
बड़े बड़े त्यागियों को लाँघ  गया लाघव से
 दुर्गम पहाड़ों पर शत्रु को छका गया ॥ 
सारी सन्नद्धता से बैठा था विरोधी वहाँ 
उसको खदेड़ निज ध्वज फहरा गया । 
गर्व करो प्यारे वह हाथ था तुम्हारा सव्य 
विपति सहारा बन आज काम आ गया ॥

शहीदों की बहनों से निवेदन -

 बहनों न रोना बंधु  सचमुच सलोना था 
विश्व की निगाहें गड़ीं आज उस भाई पर ।
देश गर्व करता है निधि इतिहास का जो 
वार रहे प्राण लोग ऐसी तरुणाई पर ॥ 
रो रहा है देश दुःख उनके वियोग का है 
यद्यपि धरा पे अपार कीर्ति छाई पर । 
देवियों तुम्हें भी गर्व होना यह चाहिए कि
 बाँधी है न राखी किसी कायर कलाई पर ॥ 

शहीदों की पत्नियों से निवेदन -

आपके समर्पण का विदित प्रभाव यह 
राष्ट्र के विशाल रण में भी नहीं हारा  है ।
 जन्म वा मृत्यु तो सृष्टि का विधान देवि
 प्राण रहे तब लौं न प्रण को विसारा है ॥ 
आप वीर रमणी हैं गर्व रखो भारी यह
 कायर के अंश को न गर्व हेतु धारा है । 
भूल मत जाना इतिहास है तुम्हारा यह
 हारा नहीं रण  में जो प्रीतम  तुम्हारा है ॥

शहीदों की संतानों से निवेदन -

पिता का तुम्हारे यश अमर हुआ है वत्स 
जीवन दिया न किसी कामिनी कि चाह में । 
चोरी लतखोरी द्यूत में न मदमत्त रहा 
प्राण नहीं गए हैं गरीब की कराह में ॥ 
याद रखो ऐसा स्वच्छ संस्कार वीर पुत्र 
हुआ अभिमन्यु था अर्जुन की छाँह में । 
भूल मत जाना वत्स सौंप के गए हैं तात 
देश की सुरक्षा का भार तव बाँह में ॥

आदरणीय श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी को अपनी पुस्तक 'कारगिल विजय' भेंट करते हुए, आचार्य डॉ.शेष नारायण वाजपेयी


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कारगिल के शहीदों को शत शत नमन


युद्ध के दृश्य अपनी कविता में -

देख द्वंद्व घोर शोर हुआ चहुँ ओर 
 भोर दुखद दिखाई दिया बिसरी अपान सी ।
सैनिक हमारे थे पचार रहे बार बार
 मानते थे पाक को तँबुइया मानो रान  की ॥ 
देख के कलाएँ  शत्रु रोता फिरा  चारों ओर
 प्राणों की पड़ी थी कहाँ चिंता स्वाभिमान की । 
पाक का वजीर पैर पकड़े अमेरिका के
 माँगता था भीख मानों सैनिकों के प्राण की ॥ 1 .॥ 

आए थे हमारे भूमि भाग को समेटने वो 
मेटना  पड़ा था वीरता के निज ताज को । 
भूल गईं बातें सब लातों की चोट झेल
 लगे थे टटोलने वो हिन्द के मिजाज को ॥ 
देख रण भावना हमारे वीर सैनिकों की 
भय हुआ भारी सारे शत्रु के समाज को । 
भगने लगे थे प्राण लोलुप बिहाय लाज
 छोड़ते हैं लोग जैसे डूबते जहाज को ॥ 2. ॥

गिरि चोटियों पे छिड़ा देख संग्राम यह 
लगता कि बादलों का वृन्द टकरा रहा । 
छाया अंधकार था धुएँ में दिन मान दुरे 
चन्द्रमा की चारुता न कोई देख पा रहा ॥ 
दामिनि  सी कौंध रही  बार व्योम बीच 
शौर्य सैनिकों का देख पाक भय पा रहा ।
 लगता था भूमि उठ अम्बर को जा रही है 
अम्बर भी टूट के धरा पे आज आ रहा ॥ 3.॥ 

एक ओर शत्रु सुव्यवस्थित खड़ा था वहाँ
 मोर्चा सँभाले हुए निकला लड़ाई पर । 
एक ओर थाल में परोसे निज जीवनी को 
देश भक्त जा रहे थे चढ़ते चढ़ाई पर ॥ 
घात में लगे थे वे घृणित पड़ोसी क्रूर 
दागते थे गोले जब हिन्द तरुणाई पर । 
फिर भी रुके नहीं थे रण बाँकुरों के झुंड
 चढ़ते गए थे वीर उतनी ऊँचाई पर ॥ 4.॥ 

बर्फ की पहाड़ियों पे चंद्रमा की चाँदनी की
 चारुता बनी थी क्लेश दायिनी सी ठंड में । 
घात में लगे थे शत्रु सैनिक सशस्त्र क्रूर
 खुद वे व्यवस्थित थे घोर गिरि  खंड में ॥
सामना किया था जब भारती सपूतों ने 
रौंद के चलाया शत्रु सैनिकों को कुण्ड में ।
 सोत्साह सैनिकों को देख लगता था जैसे
 सिंह के सलोने शिशु हाथियों के झुण्ड में ॥ 5. ॥


सैनिकों से निवेदन -

सैनिकों तुम्हारे चरणारविन्द हैं पवित्र
 धूल ले पदों की शिर कैसे चढ़ाऊँ मैं । 
यशोगान करते न जीह थकती है नेक 
त्याग है विशाल किसे कितना सुनाऊँ मैं ॥ 
चाहता है भेंटना तुम्हारे अंक से ये रंक
 देश के शहीदों मुख कैसे दिखाऊँ मैं । 
मन कोषता है दिन रात अपने को सोच
 भारती सपूतों के किस काम आऊँ मैं ॥ 1.॥ 

भूल गया माता का ममत्व भी अलभ्य आज
 पिता का सनेह भी जिसके स्वकीय हो । 
भूल गए सेज के मनोज राग रंग सभी 
हास वा विलाष मंजु सानुराग तीय को ॥ 
घर छोटा छौना छोड़ मन लगता न था 
पै तोड़ गए नाता आज शिशु कमनीय सों । 
संत हो विरक्त अनाशक्त हो स्वदेश भक्त
 सैनिकों हमारे लिए नित्य बंदनीय हो ॥ 2. ॥ 

               सगे सम्बन्धियों के लिए संवेदना -

शहीदों की माताओं  से निवेदन -
माते तुम्हारा ऋणी भारत रहेगा सदा 
पृष्ठ इतिहास के तुम्हारा गीत गाएँगे । 
नमन करेंगे नित्य भावी भारतीय सभी 
आपके बदौलत ही खुशियाँ मनाएँगे ॥ 
देश की वसुंधरा सुरक्षित रहेगी सदा 
बाप की बोई न शत्रु फिर से मझाएँगे । 
तुलना करेगा कौन आपकी पवित्रता से 
बड़े बड़े वीर शिर आपको झुकाएँगे ॥

शहीदों के भाइयों से निवेदन -

भाइयों तुम्हारा प्राण प्यारा बंधु वीरता में 
विश्व के समक्ष एक मानक बना गया ।
बड़े बड़े त्यागियों को लाँघ  गया लाघव से
 दुर्गम पहाड़ों पर शत्रु को छका गया ॥ 
सारी सन्नद्धता से बैठा था विरोधी वहाँ 
उसको खदेड़ निज ध्वज फहरा गया । 
गर्व करो प्यारे वह हाथ था तुम्हारा सव्य 
विपति सहारा बन आज काम आ गया ॥

शहीदों की बहनों से निवेदन -

 बहनों न रोना बंधु  सचमुच सलोना था 
विश्व की निगाहें गड़ीं आज उस भाई पर ।
देश गर्व करता है निधि इतिहास का जो 
वार रहे प्राण लोग ऐसी तरुणाई पर ॥ 
रो रहा है देश दुःख उनके वियोग का है 
यद्यपि धरा पे अपार कीर्ति छाई पर । 
देवियों तुम्हें भी गर्व होना यह चाहिए कि
 बाँधी है न राखी किसी कायर कलाई पर ॥ 

शहीदों की पत्नियों से निवेदन -

आपके समर्पण का विदित प्रभाव यह 
राष्ट्र के विशाल रण में भी नहीं हारा  है ।
 जन्म वा मृत्यु तो सृष्टि का विधान देवि
 प्राण रहे तब लौं न प्रण को विसारा है ॥ 
आप वीर रमणी हैं गर्व रखो भारी यह
 कायर के अंश को न गर्व हेतु धारा है । 
भूल मत जाना इतिहास है तुम्हारा यह
 हारा नहीं रण  में जो प्रीतम  तुम्हारा है ॥

शहीदों की संतानों से निवेदन -

पिता का तुम्हारे यश अमर हुआ है वत्स 
जीवन दिया न किसी कामिनी कि चाह में । 
चोरी लतखोरी द्यूत में न मदमत्त रहा 
प्राण नहीं गए हैं गरीब की कराह में ॥ 
याद रखो ऐसा स्वच्छ संस्कार वीर पुत्र 
हुआ अभिमन्यु था अर्जुन की छाँह में । 
भूल मत जाना वत्स सौंप के गए हैं तात 
देश की सुरक्षा का भार तव बाँह में ॥

कारगिल विजय दिवस पर कारगिल के शहीदों को शत शत नमन !

                                                

            डॉ. शेष नारायण वाजपेयी द्वारा रचित काव्य - 





युद्ध के दृश्य अपनी कविता में -

देख द्वंद्व घोर शोर हुआ चहुँ ओर 
 भोर दुखद दिखाई दिया बिसरी अपान सी ।
सैनिक हमारे थे पचार रहे बार बार
 मानते थे पाक को तँबुइया मानो रान  की ॥ 
देख के कलाएँ  शत्रु रोता फिरा  चारों ओर
 प्राणों की पड़ी थी कहाँ चिंता स्वाभिमान की । 
पाक का वजीर पैर पकड़े अमेरिका के
 माँगता था भीख मानों सैनिकों के प्राण की ॥ 1 .॥ 

आए थे हमारे भूमि भाग को समेटने वो 
मेटना  पड़ा था वीरता के निज ताज को । 
भूल गईं बातें सब लातों की चोट झेल
 लगे थे टटोलने वो हिन्द के मिजाज को ॥ 
देख रण भावना हमारे वीर सैनिकों की 
भय हुआ भारी सारे शत्रु के समाज को । 
भगने लगे थे प्राण लोलुप बिहाय लाज
 छोड़ते हैं लोग जैसे डूबते जहाज को ॥ 2. ॥

गिरि चोटियों पे छिड़ा देख संग्राम यह 
लगता कि बादलों का वृन्द टकरा रहा । 
छाया अंधकार था धुएँ में दिन मान दुरे 
चन्द्रमा की चारुता न कोई देख पा रहा ॥ 
दामिनि  सी कौंध रही  बार व्योम बीच 
शौर्य सैनिकों का देख पाक भय पा रहा ।
 लगता था भूमि उठ अम्बर को जा रही है 
अम्बर भी टूट के धरा पे आज आ रहा ॥ 3.॥ 

एक ओर शत्रु सुव्यवस्थित खड़ा था वहाँ
 मोर्चा सँभाले हुए निकला लड़ाई पर । 
एक ओर थाल में परोसे निज जीवनी को 
देश भक्त जा रहे थे चढ़ते चढ़ाई पर ॥ 
घात में लगे थे वे घृणित पड़ोसी क्रूर 
दागते थे गोले जब हिन्द तरुणाई पर । 
फिर भी रुके नहीं थे रण बाँकुरों के झुंड
 चढ़ते गए थे वीर उतनी ऊँचाई पर ॥ 4.॥ 

बर्फ की पहाड़ियों पे चंद्रमा की चाँदनी की
 चारुता बनी थी क्लेश दायिनी सी ठंड में । 
घात में लगे थे शत्रु सैनिक सशस्त्र क्रूर
 खुद वे व्यवस्थित थे घोर गिरि  खंड में ॥
सामना किया था जब भारती सपूतों ने 
रौंद के चलाया शत्रु सैनिकों को कुण्ड में ।
 सोत्साह सैनिकों को देख लगता था जैसे
 सिंह के सलोने शिशु हाथियों के झुण्ड में ॥ 5. ॥


सैनिकों से निवेदन -

सैनिकों तुम्हारे चरणारविन्द हैं पवित्र
 धूल ले पदों की शिर कैसे चढ़ाऊँ मैं । 
यशोगान करते न जीह थकती है नेक 
त्याग है विशाल किसे कितना सुनाऊँ मैं ॥ 
चाहता है भेंटना तुम्हारे अंक से ये रंक
 देश के शहीदों मुख कैसे दिखाऊँ मैं । 
मन कोषता है दिन रात अपने को सोच
 भारती सपूतों के किस काम आऊँ मैं ॥ 1.॥ 

भूल गया माता का ममत्व भी अलभ्य आज
 पिता का सनेह भी जिसके स्वकीय हो । 
भूल गए सेज के मनोज राग रंग सभी 
हास वा विलाष मंजु सानुराग तीय को ॥ 
घर छोटा छौना छोड़ मन लगता न था 
पै तोड़ गए नाता आज शिशु कमनीय सों । 
संत हो विरक्त अनाशक्त हो स्वदेश भक्त
 सैनिकों हमारे लिए नित्य बंदनीय हो ॥ 2. ॥ 

               सगे सम्बन्धियों के लिए संवेदना -

शहीदों की माताओं  से निवेदन -
माते तुम्हारा ऋणी भारत रहेगा सदा 
पृष्ठ इतिहास के तुम्हारा गीत गाएँगे । 
नमन करेंगे नित्य भावी भारतीय सभी 
आपके बदौलत ही खुशियाँ मनाएँगे ॥ 
देश की वसुंधरा सुरक्षित रहेगी सदा 
बाप की बोई न शत्रु फिर से मझाएँगे । 
तुलना करेगा कौन आपकी पवित्रता से 
बड़े बड़े वीर शिर आपको झुकाएँगे ॥

शहीदों के भाइयों से निवेदन -

भाइयों तुम्हारा प्राण प्यारा बंधु वीरता में 
विश्व के समक्ष एक मानक बना गया ।
बड़े बड़े त्यागियों को लाँघ  गया लाघव से
 दुर्गम पहाड़ों पर शत्रु को छका गया ॥ 
सारी सन्नद्धता से बैठा था विरोधी वहाँ 
उसको खदेड़ निज ध्वज फहरा गया । 
गर्व करो प्यारे वह हाथ था तुम्हारा सव्य 
विपति सहारा बन आज काम आ गया ॥

शहीदों की बहनों से निवेदन -

 बहनों न रोना बंधु  सचमुच सलोना था 
विश्व की निगाहें गड़ीं आज उस भाई पर ।
देश गर्व करता है निधि इतिहास का जो 
वार रहे प्राण लोग ऐसी तरुणाई पर ॥ 
रो रहा है देश दुःख उनके वियोग का है 
यद्यपि धरा पे अपार कीर्ति छाई पर । 
देवियों तुम्हें भी गर्व होना यह चाहिए कि
 बाँधी है न राखी किसी कायर कलाई पर ॥ 

शहीदों की पत्नियों से निवेदन -

आपके समर्पण का विदित प्रभाव यह 
राष्ट्र के विशाल रण में भी नहीं हारा  है ।
 जन्म वा मृत्यु तो सृष्टि का विधान देवि
 प्राण रहे तब लौं न प्रण को विसारा है ॥ 
आप वीर रमणी हैं गर्व रखो भारी यह
 कायर के अंश को न गर्व हेतु धारा है । 
भूल मत जाना इतिहास है तुम्हारा यह
 हारा नहीं रण  में जो प्रीतम  तुम्हारा है ॥

शहीदों की संतानों से निवेदन -

पिता का तुम्हारे यश अमर हुआ है वत्स 
जीवन दिया न किसी कामिनी कि चाह में । 
चोरी लतखोरी द्यूत में न मदमत्त रहा 
प्राण नहीं गए हैं गरीब की कराह में ॥ 
याद रखो ऐसा स्वच्छ संस्कार वीर पुत्र 
हुआ अभिमन्यु था अर्जुन की छाँह में । 
भूल मत जाना वत्स सौंप के गए हैं तात 
देश की सुरक्षा का भार तव बाँह में ॥


आदरणीय श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी को अपनी पुस्तक 'कारगिल विजय' भेंट करते हुए

आचार्य डॉ.शेष नारायण  वाजपेयी 

साथ में हैं आदरणीय श्री श्याम बिहारी मिश्र जी


श्रद्धेय श्री रज्जू भइया जी

को अपनी पुस्तक 'कारगिल विजय' भेंट करते हुए

आचार्य डॉ.शेष नारायण वाजपेयी 


आदरणीय  डॉ. मुरली मनोहर जोशी जी

को अपनी पुस्तक 'कारगिल विजय' भेंट करते हुए

आचार्य डॉ.शेष नारायण वाजपेयी 


           

 आदरणीय   श्रीमान कुशाभाऊ ठाकरे जी

   को अपनी पुस्तक 'कारगिल विजय' भेंट करते हुए

      आचार्य डॉ.शेष नारायण वाजपेयी 

    

आदरणीया श्रीमती सुषमा स्वराज जी

को अपनी पुस्तक 'कारगिल विजय' भेंट करते हुए

आचार्य डॉ.शेष नारायण वाजपेयी 

    

       आदरणीय  श्रीमान मदन लाल खुराना जी

को अपनी पुस्तक 'कारगिल विजय' भेंट करते हुए 

आचार्य डॉ.शेष नारायण वाजपेयी

'कारगिल विजय'

पाञ्चजन्य में  



आचार्य डॉ.शेष नारायण वाजपेयी


संस्थापकः  राजेश्वरी प्राच्य विद्या शोध संस्थान
तथा

संस्थापकः दुर्गा पूजा प्रचार परिवार एवं ज्योतिष जनजागरण मंच

व्याकरणाचार्य (एम.ए.)
संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी ज्योतिषाचार्य (एम.ए.ज्योतिष)
संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय वाराणसी
एम.ए. हिन्दी
कानपुर विश्व विद्यालय पी.जी.डिप्लोमा पत्रकारिता
उदय प्रताप कॉलेज वाराणसी
पी.एच.डी. हिन्दी (ज्योतिष)
बनारस हिन्दू यूनिवर्सिटी बी. एच. यू. वाराणसी
विशेष योग्यताः- वेद, पुराण, ज्योतिष, रामायणों तथा समस्त प्राचीन वाङ्मय एवं राष्ट्र भावना से जुड़े साहित्य का लेखन और स्वाध्याय
प्रकाशितः- पाठ्यक्रम की अत्यंत प्रचारित प्रारंभिक कक्षाओं की हिन्दी की किताबें
कारगिल विजय (काव्य )
श्री राम रावण संवाद (काव्य )
श्री दुर्गा सप्तशती (काव्य अनुवाद )
श्री नवदुर्गा पाठ (काव्य)
श्री नव दुर्गा स्तुति (काव्य )
श्री परशुराम (एक झलक)
श्री राम एवं रामसेतु
(21 लाख 15 हजार 108 वर्षप्राचीन
कुछ मैग्जीनों में संपादन, सह-संपादन, स्तंभ लेखन आदि।
अप्रकाशित साहित्यः- श्री शिव सुंदरकांड, श्री हनुमत सुंदरकांड,
संक्षिप्त निर्णय सिंधु, ज्योतिषायुर्वेद, श्री रुद्राष्टाध्यायी, वीरांगना द्रोपदी, दुलारी राधिका, ऊधौ-गोपी संवाद, श्रीमद्भगवद् गीताकाव्यानुवाद
रुचिकर विषयः- प्रवचन, भाषण, मंचसंचालन, काव्य लेखन, काव्य पाठ एवं शास्त्रीय विषयों पर नित्य नवीन खोजपूर्ण लेखन तथा राष्ट्रीय भावना के विभिन्न संगठनों से जुड़कर कार्य करना।
जन्मतिथिः 9.10.1965
जन्म स्थानः- पैतृक गाँव - इंदलपुर, पो.- संभलपुर, जि.- कानपुर,
उत्तर प्रदेश

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दूरभाष : 01122002689, 01122096548,
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