Saturday, 11 April 2015

यदि महिलाएँ मासिक अशुद्धि काल में पूजा पाठ नहीं करती हैं तो वो भागवत कैसे कह सकती हैं ?

    समाज से चंदा माँगने का बर्तमान समय में सर्वोत्तम साधन है भागवत नाम की भगदड़ !जिसे ठीक लगे सो करा ले अपने यहाँ भागवती हुल्लड़ !
     जिस भागवत को वक्ता लोग भी न जानते हैं और न ही मानते हैं उसे पैसे इकट्ठे करने के लालच में औरों को मनाते घूम रहे हैं कितना बड़ा आश्चर्य है ये ?जो महिलाएँ मासिक अशुद्धि होने की बात स्वयं ही नहीं मानती हैं उनकी बताई हुई भागवत कोई क्यों माने ?भागवत कथाओं के नाम पर भोगवत का बोलबाला इसी से मिट रहे हैं संस्कार और बढ़ रहे हैं बलात्कार !     
     भागवत कथाओं के नाम पर भगदड़ मचा रखी है नचैयों गवैयों ने ! लवलहे लड़के लड़कियाँ कूद रहे हैं भागवत के धंधे में !सत्संग के कारोबार में सेक्साचार की सुविधाओं से टूट रहे हैं परिवार ! अब जिसके पास जितना अधिक धन वो उतना बड़ा धार्मिक !इस लिए धन के पीछे पागल होता जा रहा है धार्मिक जगत !शास्त्र विरुद्ध आचरण ही क्यों न करना पड़े किंतु पैसा आना चाहिए वैसे धार्मिक लोगों से तो यथा संभव शास्त्रीय आचरण की अपेक्षा की ही जा सकती है ।
   महिलाएँ  हर महीने के अशुद्धि के दिनों में पूजा पाठ नहीं करती,मूर्तियाँ नहीं छूतीं हैं और धर्म ग्रंथों का स्पर्श भी नहीं करती हैं मंदिर नहीं जाती हैं ये धर्म शास्त्रों में तो लिखा है ही वैसे भी अनंत काल से हमारी परंपराओं के पालन में सम्मिलित है ऐसे दिनों में चार दिनों के लिए सभी धर्मकर्म बंद कर दिए जाते हैं । भागवत के कार्यक्रम महीनों   वर्षों पहले बुक हो जाते हैं ऐसी परिस्थिति में अशुद्धि काल का इतने पहले अनुमान लगा पाना तो संभव नहीं होता है और पूर्व निर्धारित भागवत का कार्यक्रम कैंसिल किया नहीं जा सकता है ऐसी परिस्थिति में संभव है कि आधुनिकता की होड़ में वो लोग ये शुद्धि अशुद्धि संबंधी शास्त्रीय बातें मानती ही न हों किंतु यदि ऐसा है तो जिन शास्त्रीय बातों को वो स्वयं नहीं मानती हैं उनका उपदेश वो कैसे कर सकती हैं और समाज उनकी बताई हुई शास्त्रीय बातों पर भरोसा कैसे करे !
        भागवत कथाओं या सत्संगों के आज बड़े आयोजन हो रहे हैं धर्म के नाम पर बड़ा धन खर्च हो रहा है कथा सत्संगों के नाम पर पैसे और भोजन देकर कराई  जा रही हैं बड़ी  बड़ी रैलियाँ किंतु उसके दुष्परिणाम स्वरूप  समाज में बढ़ रहे हैं बलात्कार अपराध हत्याएँ लूटपाट आखिर क्यों ? और यदि होना ही यही सबकुछ है तो भागवत कथाओं और सत्संगों की आवश्यकता ही क्या है फिर भागवत के नाम को बदनाम क्यों करना !
    क्या इन सारी  सामाजिक बुराइयों को ही वर्तमान में प्रचलित सत्संगों का फल मान लिया जाए !माना कि पहले धार्मिक आयोजन इतनी अधिक संख्या में नहीं होते थे और न ही धर्म के नाम पर आयोजित की जाती थीं इतनी बड़ी बड़ी रैलियाँ किन्तु उनका इतना प्रभाव तो था ही कि समाज की इतनी दुर्दशा नहीं थी उसका कारण उन धार्मिक लोगों का अपना जीवन संयमित एवं शास्त्र सम्मत था उनका ध्यान चरित्र निर्माण पर था जिसका प्रभाव समाज पर भी पड़ना स्वाभाविक ही था !किंतु आज भागवत वक्ताओं की अयोग्यता एवं अर्थ व्याकुलता ने समाज को निराश किया है । छोटे छोटे बच्चे बच्चियों को लीप पोत कर बैठा दिया जाता है कथा मंचों पर !कुछ किस्से कहानियॉं वो सुना देते हैं बाकी सँभाल लेते हैं संगीत वाले!पूछो तो कह देंगे कि शुकदेव जी भी तो 16 वर्ष के थे !किंतु क्या इतना आसान है शुकदेव जी की बराबरी कर लेना!
     आज ईमानदार भागवत कथा विद्वानों ने भी इस भागवती भगदड़ से तंग आकर या तो संगीत ले लिया है और या फिर कथा बाचन से अपने को मुक्त कर लिया है ऐसी स्थिति पैदा हो गई है !आखिर उदर पोषण के लिए उनके पास और विकल्प भी क्या था जो सारे जीवन साधना ही श्री मद्भागवत की ही करते रहे हैं !   
 "बंधुओ!एक बड़ा प्रश्न है कि भागवत या भोगवत ! केवल धन जुटाने के लिए भागवत कथाओं के नाम पर नाचने गाने के उत्सव करना कराना कहाँ तक ठीक है ! -
    आज भागवत कथाएँ कहने वाली महिलाएँ हों या पुरुष वे स्वयं शास्त्रों की बातें मानते हैं क्या ? या केवल धनसंग्रह की भावना से कूद पड़े हैं भागवत के धंधे में तरह तरह के लंबे लंबे बालों वाले रँगे पोते लाल पीले लोग ! जानिए आप भी क्या हैं भागवत वक्ता के शास्त्रीय नियम धर्म !आखिर क्यों नहीं किया जाना चाहिए उस शास्त्रीय नियम संयम का पालन ?और यदि हम्हीं नहीं मानेंगे शास्त्रीय बचनों को तो दूसरों को उन पर चलाने के लिए किस मुख से प्रेरित कर सकेंगे हम !
    पुराने जवाने में महिलाएँ हर महीने होने वाली अशुद्धि के चार दिनों तक अशुद्धि मनाती थीं इसमें वे पूजा पाठ नहीं करती थीं धार्मिक ग्रन्थ नहीं छूती थीं कई परिवारों की महिलाएँ तो भोजन भी नहीं बनाती थीं जिसकी जैसी परंपरा किन्तु शास्त्र की मान्यता चार दिन के अशुद्धि मानने की तो है इस विषय में शास्त्रों का ऐसा ही स्पष्ट उद्घोष है किन्तु आज जो महिलाएँ भागवत आदि कथाएँ करती हैं उनके कार्यक्रम महीनों वर्षों पहले निश्चित कर दिए जाते हैं ऐसी परिस्थिति में वे अशुद्धि काल में शास्त्रीय मर्यादाओं का निर्वहन कैसे कर पा रही होंगी या फिर नहीं कर रही होंगी और जब  अशुद्धि काल सम्बन्धी शास्त्रों की बातों  का पालन वे स्वयं नहीं कर पा रही होंगी तो और किसी दूसरे को शास्त्रों का उपदेश किस आशा से करना ! जिन शास्त्र बचनों पर आपकी अपनी निष्ठा हो उन्हें ही आप उपदेश भी कर सकते हो अन्यथा नहीं ।
     भागवत कथाओं की दुर्दशा देख कर  नारद जी, व्यास जी ,शुकदेव जी, सूत जी,सूर्य भगवान और गोकर्ण पर क्या बीतती ये भगदड़ देखकर यदि वो लोग आज जीवित होते !ठीक रहा वो लोग समय से दुनियाँ छोड़कर चले गए वास्तव में वे धन्य थे-
              धन्या मृताः ते नराः !
  वैसे भी जहाँ नचैयों गवैयों के द्वारा ऐसी भागवतें होंगी वहाँ क्यों नहीं होंगे बसों में बलात्कार !हर समाज को अपने धार्मिक लोगों से ही सहारा होता है कि वो समाज को संयम सिखाएगा किन्तु जब वो ही बासना बह्नि से विदग्ध होकर बहने लगेंगे संगीत के रूप में तो फिर परमहंसी संहिता के अभिप्राय को समाज में  समझाएगा आखिर कौन ?
      आज धार्मिक मंडियों के बड़े बड़े  व्यापारी अपने धन की रक्षा तथा मन की भूख शांत करने एवं अपनी सुरक्षा हेतु राजनैतिक गंगा में लगाना  चाह रहे हैं गोते !
आज नए नए लवलहे लड़के लड़कियाँ कूद रहे हैं भागवत के धंधे में आखिर  क्यों क्या उन्हें अचानक कोई ज्ञान प्राप्त हो गया है या वैराग्य हो गयाहै या उन्होंने श्री मदभागवतजी के लिए कोई गम्भीरतपस्या कर ली है !
     ऐसा कुछ नहीं होते हुए भी भागवत वक्ता के नाम पर समाज से मिलता सम्मान काटता किसे है !श्रोताओं में बैठे कुछ लड़के लड़कियों की कटीली चितवनें एवं दीर्घदीर्घायित दृग्कोरों से निहारती नेत्रस्वामिनियाँ  अच्छे अच्छों को नाचने गाने मुख मटकाने और कमर हिलाने के लिए मजबूर कर देती हैं इसी दृष्टिघात से घायल भागवती शेर व्यास गद्दी रूपी प्लेटफार्म पर  बैठकर जैसे दहाड़ते हैं भगदड़ उठाते हैं क्या ऐसे होती हैं  भागवतें ! क्या भागवत कथाएँ कहने के यही नियम शास्त्रों में बताए गए हैं !क्या नारद जी, व्यास जी ,शुकदेव जी, सूत जी,सूर्य भगवान और गोकर्ण जी ने भी अपने अपने ज़माने में ऐसे ही की थीं भागवत कथाएँ !या इन भागवती गन्धर्व किन्नरों को कहीं ये गलत फहमी तो नहीं है वो लोग नाच गा नहीं पाते रहे होंगे अन्यथा सात दिन अवशेष आयु रह गई थी जिनकी ऐसे मोह ग्रस्त परिक्षित जी को शुकदेव जी क्या तबला ढोलक लेकर नाच गाकर सुनाते भागवत !बंधुओ ! आध्यात्मिक उपदेशों के माध्यम से मन के आपरेशन किए जाते हैं ताकि मन पर चढ़ी काम क्रोध लोभ मोह की परत साफ की जा सके !वैसे भी आपरेशन कहीं गीत संगीत से होते हैं क्या ?किन्तु कलियुग है किसे क्या कहा जाए !
    खैर, शिक्षा और तपस्या न करने का दोष तो इन लवलहे लोकगायक बेचारों को ही क्यों दिया जाए ये तो जब ये भी नहीं जानते थे कि भागवत कहते किसे हैं तभी इन्हें भागवत वक्ता घोषित कर दिया गया था -ये वही भागवत है जिसके विषय में कहावत है -
             'विद्यावतां भागवते परीक्षा'
      अर्थात विद्वानों की परीक्षा भागवत में होती है ! किन्तु आजकल तो बिलकुल ऐसा नहीं है अब तो भागवत केवल दिखाने के लिए चाहिए होती है गद्दी पर रखनी होती है उससे शोभा बनती है और बाकी वास्तविक भागवत न हो तो भी भागवत जैसा चमकीले कपड़े में लिपेटकर कुछ गद्दी पर रखना होता है वह चाहें लकड़ी का पाटा ही क्यों न हो कपड़ा लिपेट देने के बाद कहाँ पता लगता है कि पोथी है या लकड़ी का पाटा !उसे तो शोभा यात्रा में शिर पर रखकर घूमना होता है या फिर पोथी पूजन होता है तीसरी बात उसे रखकर आरती करनी होती है ।
    बाकी सारी कथा तो डायरी भागवत से ही करनी होती है जिसमें लिखी लोक कथाओं को सात  दिनों तक नंदी गण गा बजा रहे होते हैं जबकि इन सभी गणों का नेतृत्व करने वाले भोगवत वक्ता कर कर के बालों में डाई और मार मार के दाढ़ी मूछों का एक एक बाल लगा लगा के महँगी महँगी क्रीमें ,पहनकर लड़कियों की पसंद के कलर वाले कुर्ते और बस डाल के उन्हीं के दुपट्टे ,और थोड़ा सा नाक के बल पर बोलते हुए कथा के नाम पर इन्हें जान छोड़कर नाचना गाना मुख मटकाना और खुद भी मटकना होता है बीच खूच में जब होश आता है तो बोल देते हैं आज कृष्ण जन्म या रुक्मिणी विवाह होगा बस लोक कथाओं और लोक गीतों एवं कान फोड़ संगीतों के बीच हो जाती है श्री कृष्ण जन्म की घोषणा तबले की थाप पर नाचना गाना बजाना होता रहता है !इसके बाद शर्म छोड़कर माँगनी होती है बधाई या रुक्मिणी विवाह के नाम पर भीख !ऐसी भागवतों में केवल छोटे छोटे लड़के लड़कियाँ ही सम्मिलित नहीं होते बल्कि बड़े बड़े जिगोलो रेड़ मार रहे होते हैं भागवत भावना की !
       बंधुओ !ऐसे लोग केवल कुछ उस तरह के लोगों को पसंद आने लगे हैं जिन्हें भागवत की जगह भोगवत पसंद है तो बस वो उनके तथा उनके नाच गाने को देखकर खुश हो जाते हैं ! धर्म का क्षेत्र आज इतनी बड़ी व्यापार मंडी  है कि आप धार्मिक चोला ओढ़कर धार्मिक बातें करने लगें भजन गाने लगें तो कथा बाचक ! लोगों की समस्याएँ जो रट ले अर्थात लोग किस किस बात के लिए परेशान हो सकते  हैं या होते हैं यदि आपको ये याद हो जाए तो आप ज्योतिषी हो गए !इसीप्रकार से यदि बीमारियों के प्रकार याद हो गए तो आप योगी हो गए !आपने कुछ दिन पहले तक जिन्हें बीमारियों की लिस्ट रटकर टी. वी. पर सुनाते हुए सुना था आज वो अर्थशास्त्र और राजनीति के आँकड़े सुनाते घूम रहे हैं !
       भागवत  कथा का शास्त्रों में बहुत बड़ा महत्व है    इससे न केवल प्रेतांशिक दोष छूट जाते हैं अपितु संतान सुखयोग बनता है।भगवान की भक्ति मिलती है मुक्ति तो मिलती ही है।ये सब भागवत  सुनने पढ़ने एवं भक्तिभाव से चिंतन करने से होता है।इसे कहने सुनने के भी इसके कुछ शास्त्रीय नियम होते हैं।
कथा कहने वाले के नियमः- 
 विरक्तो वैष्णवो  विप्रो वेदशास्त्रविशुद्धिकृत ।
दृष्टटान्तकुशलोधीरोवक्ताकार्योतिनिःस्पृहः।। भागवते

अर्थः-वेद शास्त्र की स्पष्ट  व्याख्या करने वाला,अच्छे उदाहरणदेकर भागवत समझाने वाला, विवेकवान, निस्पृह, विरक्त, एवं विष्णुभक्त ब्राह्मण को बक्ता बनावे।
कथा वक्ता के दाढ़ी आदि के बाल बना लेने के नियमः-     
  वक्त्राक्षौरं प्रकर्तव्यं दिनादर्वाग्व्रताप्तये । भागवते
  अर्थः- कथा प्रारंभ करने के एक दिन पहले वक्ता को दाढ़ी आदि के बाल बना लेने चाहिए क्योंकि कथा प्रारंभ के बाद फिर सात दिन तक क्षौर नहीं करना होता है।  ऐसे कथा कहने वाले से कथा न सुनेः-

  अनेकधर्म        भ्रान्ताः   स्त्रैणाः  पाखंडवादिनः। 
शुकशास्त्र कथोच्चारेत्याज्यास्ते यदि पंडिताः।। भागवते
   अनेकधर्म को मानने वाले ,एवं स्त्रियों को रिझाने के लिए तरह तरह की वेषभूषा  धारण करनेवाले,नाचने गाने वाले पाखंडी वक्ता से कथा न सुने।

 कथा कहने वाला धन का लोभी न होः-
   लोक वित्त धनागार पुत्र चिंतां व्युदस्य च।। भागवते
अर्थः-संसार संपत्ति धन घर पुत्रादि की चिंता छोड़कर केवल कथा में ध्यान दे।
कथा का समयः-
                             आसूर्योदयमारभ्य   सार्धत्रिप्रहरान्तकम्।
                             वाचनीया कथा सम्यग्धीरकंठं सुधीमता।।

   सूर्योदय से कथा आरंभ करके साढ़े तीन प्रहर अर्थात साढ़ेदस घंटे तक मध्यम स्वर से अच्छी तरह कथा बॉंचे।दोपहर में दो घटी अर्थात 48मिनट कथा बंद रखे उस समय लोगों को कथा के अनुशार ही संकीर्तन करना चाहिए।
   इसका अर्थ यह हुआ कि प्रतिदिन 9घंटे42मिनट कथा बॉंचने पर सात दिन में विद्वान वक्ता कथा पूरी कर सकता है किंतु आजकल तो न इतने घंटे कथा होती है और न ही कथा बॉंची जाती है आजकल तो कथा कहने का रिवाज है। यहॉं ध्यान देने की बात है कि कथा कहने में जो मन आएगा वो बोला जाएगा किंतु कथा बॉंचने में तो जो लिखा है उसी की सीमा में रह कर बोलना होता है।उदाहरण भी उसी सीमा में रहकर देने होते हैं यहॉंतक कि दोपहर का संकीर्तन भी कथा के अनुरूप ही करना होता है ताकि अवकाश  के उस समय में भी कोई इधरउधर की चर्चा न करे अर्थात कथा परिषर में व्यर्थ का संगीत नाचना,गाना,या अभागवत चर्चा न हो।
    आज कल पहली बात तो यह है कि लोग भागवत कथा बॉंचते ही नहीं हैं।सब जो मन आता है सो कहते हैं उसका भागवत की पोथी से कोई लेनादेना ही नहीं होता है। दूसरा प्रतिदिन 9घंटे42मिनट जैसा कोई नियम नहीं होता है।तीसरा सारा समय नाचने गाने में ही चला जाता है कथा कब होती है पता नहीं सारी कथाएँ  रगड़ कर केवल उन्हीं में समय दिया जाता है जिनमें झॉंकियॉं बना सजा कर समाज के सामने भीख मॉगने के लिए रोना धोना कर सकें।सब के सब कथा गायक एक ही झूठ बोलते हैं कि पाठशाला के नाम पर दे दो।कन्याओं के विवाह के नाम पर दे दो।चिकित्सालय के नाम पर दे दो।वृद्धाश्रम के नाम पर दे दो।रूक्मिणी विवाह के नाम पर दे दो।सुदामा की भीख के नाम पर दे दो। अरे भाई! भागवत कथा में इन भिखारियों का क्या काम?यहॉं नाचने गाने का क्या काम?पहले तो कभी भागवत कथाओं में संगीत का सहारा लिया नहीं गया।कहीं ये बिना पढ़े लिखे लोग ऐसा तो नहीं समझते हैं कि व्यास जी और शुकदेव जी के बश  का संगीत था ही नहीं। धर्मसम्राट स्वामी करपात्री जी महाराज,अखंडानंदजी महाराज,डोंगरेजी महाराज जैसे महापुरूषों  के द्वारा निभाई गईं प्राचीन परंपराओं का पालन भी हम नहीं कर सके हमें धिक्कार है।
   जिनके पैदा होने पर ख़रीदे गए सोठौरे का ऋण अभी देना बाकी है जिन्हें अपने माँ बाप नाते रिशतेदारों के नाम ठीक से नहीं याद हैं वो अपने को भागवत व्यास कहते हैं
" विद्यावतां भागवते परीक्षा " कोई हँसी खेल है भागवत जैसी परमहंसी संहिता के मर्म को समझना और फिर किसी को समझाना तब उसका समाज पर असर पड़ेगा अन्यथा चोरी छिनारा बलात्कार सब कुछ बढ़ता ही रहेगा आखिर समाज की आध्यात्मिक खुराक कौन पूरी करेगा क्या ये धार्मिक लोगों के लिए शर्म की बात नहीं होनी चाहिए कि विश्वगुरु भारत के युवा बलात्कार के आरोपों में फाँसी की सजा भोगें किसने दिए हैं उन्हें ये कुसंस्कार ये धर्म और अध्यात्म के क्षेत्र में बढ़ते भ्रष्टाचार के साइड इफेक्ट्स हैं!   किसी फैक्टरी में चोरी हो जाती तो चौकीदार पकड़ लिए जाते किन्तु हमारे धार्मिक आध्यात्मिक प्रहरियों से क्यों नहीं पूछा  जाता है कि आप अपने काले धन की भूख में राजनैतिक क्षुधा पूर्ति में लगे हैं किन्तु तुम्हारे उस दायित्व का क्या होगा उसे कौन पूरा करेगा जिसके लिए दाढ़ा झोटा रखाया था !जब मजनूँ बने फिरते नचैया गवैया जिगोले टाईप के भागवत वक्ताओं ने  इस परमहंसी संहिता को भिखारियों की भीख मॉंगने वाली किताब बना दिया।इस आत्म रंजन की संहिता को मनोरंजन तक सीमित कर दिया।कैसे कर सकेगी यह लोगों का कल्यान?कैसे ज्ञान वैराग्य बढ़ेगा? कैसे घटेगा देश  का भ्रष्टचार?
    नचैया गवैया इन भागवती भिखारियों ने न केवल सनातनी संस्कृति की अपूरणीय क्षति की है अपितु चरित्रवान भागवत विद्वानों को खड़े होने लायक नहीं रखा है इतनी फिसलन पैदा की है।
राजेश्वरी प्राच्यविद्या शोध  संस्थान की अपील 
   यदि किसी को केवल रामायण ही नहीं अपितु  ज्योतिष वास्तु धर्मशास्त्र आदि समस्त भारतीय  प्राचीन विद्याओं सहित  शास्त्र के किसी भी नीतिगत  पक्ष पर संदेह या शंका हो या कोई जानकारी  लेना चाह रहे हों।शास्त्रीय विषय में यदि किसी प्रकार के सामाजिक भ्रम के शिकार हों तो हमारा संस्थान आपके प्रश्नों का स्वागत करता है ।
     यदि ऐसे किसी भी प्रश्न का आप शास्त्र प्रमाणित उत्तर जानना चाहते हों या हमारे विचारों से सहमत हों या धार्मिक जगत से अंध विश्वास हटाना चाहते हों या राजनैतिक जगत से धार्मिक अंध विश्वास हटाना चाहते हों तथा धार्मिक अपराधों से मुक्त भारत बनाने एवं स्वस्थ समाज बनाने के लिए  हमारे राजेश्वरीप्राच्यविद्याशोध संस्थान के कार्यक्रमों में सहभागी बनना चाहते हों तो हमारा संस्थान आपके सभी शास्त्रीय प्रश्नोंका स्वागत करता है एवं आपका  तन , मन, धन आदि सभी प्रकार से संस्थान के साथ जुड़ने का आह्वान करता है। 
       सामान्य रूप से जिसके लिए हमारे संस्थान की सदस्यता लेने का प्रावधान  है।

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