Saturday, 18 July 2015

जनता के पत्रों का या प्रश्नों का उत्तर न देने वाले नेताओं का बहिष्कार किया जाए !ऐसे घमंडी लोग फेसबुक पर करने क्या आए हैं !

 शिक्षा और सभ्यता की उमींद नेताओं से ठीक नहीं है क्योंकि ये दोनों उनके लिए अनिवार्य नहीं हैं !इसकी उन्हें जरूरत भी नहीं होती है । आजकल राजनीति धरना प्रदर्शनों से चलती है उसके लिए क्या जरूरत शिक्षा और सभ्यता की ?
     देश दुनियाँ को ठीक करने का ठेका लेने वाले कुछ नेता लोग तो इतने मक्कार होते हैं कि यदि कोई व्यक्ति बीमारी आरामी जैसी बड़ी से बड़ी कैसी भी समस्या से जूझ रहा हो या प्रशासन परेशान कर रहा हो या और कोई बड़ी परेशानी से जूझ रहा हो और वो नेता जी को पत्र लिखकर मदद माँगना चाहे तो नेता जी मदद तो दूर पत्र का उत्तर तक नहीं देते हैं ,और तो और फेस बुक में लिखे मैसेज का उत्तर नहीं देते हैं ऐसे मुखछिपाने वाले डरपोक नेता लोगों से क्या उम्मींद की जाए !
   कहने को तो ये लोग मंत्री मुख्यमंत्री होते हैं किंतु हिम्मत इतनी भी नहीं होती है कि फेसबुक पर जनता के सवालों का सामना कर सकें !धिक्कार है ऐसी पद प्रतिष्ठा को जिसके मन में जनता जनार्दन का सम्मान ही न हो !
      इनपर इसीलिए तो भरोसा नहीं होता है कि  राजनेता बनने के लिए न शिक्षा चाहिए और न सभ्यता । केवल झूठ बोलने  की कला होनी चाहिए ।  बंधुओ ! नेताओं को अपना  शरीर किसी न किसी  बहाने  से   मीडिया के लपलपाते कैमरों के सामने फेंकना होता है बस !और कोई दूसरी योग्यता इनमें ढूँढे नहीं मिलती है !इसलिए देश को सुधारने सँवारने की बातें राजनेताओं की सुननी तो चाहिए किंतु उन पर भरोसा करना  ठीक नहीं है क्योंकि नेताओं के बश का होता तो पहले ये खुद सुधर जाते !  जिनका अपनी वाणी पर नियंत्रण नहीं होता है कि कब गैर जिम्मेदारी के बयान देने लगें कब गाली गलौच करने लगें इनकी भाषा पत्रकार भी नहीं समझ पाते इन्हें सुधार सुधार कर बोलना होता है ये कब किसी को मारने लगें ! कब फर्जी डिग्रियों में फँसे मिलें !कब किस बलात्कार या घपले घोटाले में किसका नाम सम्मिलित मिले ! इसलिए इनके विषय में कुछ नहीं कहा जा सकता !
     बंधुओ ! पैसा और पावर जहाँ होता है अपराध होने की संभावनाएँ  वहाँ बढ़ ही जाती हैं चूँकि नेताओं के पास दोनों होते हैं इसलिए इनके विषय में कुछ भी विश्वास पूर्वक कह पाना कठिन होता है कब कहाँ मन और आत्मा डोल जाए इनकी ! जब ये खुद नहीं सुधर पाए तो देश कैसे सुधार  लेंगे ! ये खुद कितने सुधरे हैं ये संसद और विधान सभाओं के चलते सत्र में देखा जा सकता है !
       सभापति महोदय या अध्यक्ष जी एवं माननीय सदस्य जी जैसे कुछ सभ्यता के शब्द छोड़ दिए जाएँ तो सदनों में जो कुछ होता है वो दुनियाँ देखती है । इनकी भाषा में अज्ञान अहंकार आलस्य अयोग्यता अकर्मण्यता आदि सारे दोष दुर्गुण दिखते हैं !फिर भी लोग यदि इनसे कुछ आशा करें तो ये उनका अज्ञान है !


      

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