चाटुकार कार्यकर्ता लोग तोड़ रहे हैं प्रतिभा सम्पन्न कर्मठ कार्यकर्ताओं का मनोबल !
भाजपा के जिन कार्यकर्ताओं में देश और समाज के प्रति विश्वास निर्माण करने की क्षमता भी है उन्हें चाटुकारिता करना नहीं आता इसलिए उनका ज्ञान प्रतिभा अनुभव कार्यक्षमता आदि पार्टी के काम नहीं आ पाती है !मैंने भी निवेदन किया था पार्टी नेतृत्व से किंतु वहाँ तो ये भी बताना जरूरी नहीं समझा जाता है कि आखिर आपमें कमी क्या है इसलिए आप भारतीय जनता पार्टी में काम करने के योग्य नहीं हैं आखिर क्यों किया जाता है ऐसा बर्ताव!see more... http://jyotishvigyananusandhan.blogspot.in/p/blog-page_7811.html
भाजपा प्रतिभाओं को पहचाने और सबको एक डंडे से हाँकने का प्रयास न किया जाए जो जिस लायक हो उसका संयोजन वहाँ किया जाए !योग्य लोगों का उपयोग उनकी योग्यता के हिसाब से करने पर विचार किया जाता तो बहुत अच्छा होता दूसरा चाटुकारिता के शौकीन लोगों पर लगाम लगाई जाए !
भाजपा के जिन कार्यकर्ताओं के लिए आवश्यक था कि
वो अपने वोटर से संपर्क करें उसके सुख दुःख सुनें उसका सहयोग भी करें
किन्तु दुर्भाग्य से उनमें से कुछ टिकट पाने के लिए और कुछ टिकट माँगने लायक बनने के लिए
प्रयास करते रहे वो जनता से मिलने नहीं गए ! कार्यकर्तागण हमेंशा जोड़ तोड़ में लगे रहते हैं कभी केंद्रीय
नेताओं के पास तो कभी प्रांतीय नेताओं के पास भाग दौड़ में लगे रहते हैं कौन
जाए जनता के पास या जनता के दुःख दर्द टटोलने का समय कहाँ होता है कभी कोई
क्षेत्रीय कार्यकर्ता मिल भी गया तो उसे बता दिया कि अबकी अपनी सरकार बनने
जा रही है। जिससे वोट माँगने हैं उसे चुनाव परिणाम बताने जाते हैं जबकि लालू नितीश
अपने कार्यकर्ताओं को जनता की समस्याएँ बताने के समाधान के लिए
जनता से जुड़ने के लिए प्रेरित करते हैं ऐसी परिस्थिति में भाजपा अपने
कार्यकर्ताओं उर उनके समाधान समझाने और आम जनता के दुःख दर्द टटोलने के लिए उन्हें प्रेरित
करते रहे !
कार्यकर्ता अपने अपने क्षेत्र में अपने अपने
समर्थकों सहित आम जनता के विश्वास को जीतने का प्रय़ास क्यों नहीं करते हैं
उनके साथ घुलमिलकर रहने में अपना अपमान क्यों समझते हैं पार्टी उनसे पूछे !
कुछ भाजपा के
कार्यकर्ताओं में मानवता का क्षरण इतनी तेजी से हो रहा है कि आम जनता से वे
स्वयं तो संपर्क करते ही नहीं हैं अपितु जो लोग स्वयं जुड़ने आते हैं उनसे
मिलते नहीं हैं यदि मिले तो उनकी बात नहीं सुनते हैं यदि बात सुनी तो उनकी
मदद तो नहीं ही करते हैं अपितु उसकी समस्याओं के समाधान के लिए काम न करना
पड़े इसलिए उस प्रकरण में उसी व्यक्ति की इतनी गलतियां निकाल देंगे कि
जिससे वह मदद माँगने लायक ही न रह जाए !
कुछ बड़े बड़े भाजपाइयों को शिष्टाचार का भी अपमान
करते देखा जाता है वो इतने नमस्ते चोर हो गए हैं कि अपने बराबर वालों को तो
छोड़िए अपने से बड़े बुजुर्गों के नमस्ते का भी जवाब नहीं देते हैं शिर तक
नहीं हिलाते हैं दिल्ली में ही भाजपा के जिन बड़े कार्यकर्ताओं को साफ सुथरी
छवि के नाम से पार्टी पर प्रोत्साहन मिलता है उन बड़ों में यह शिष्टाचार
नहीं होता है कि उनके पैर छूने वाले अपने कार्यकर्ताओं या आम लोगों के लिए
दो शब्द ही प्रेम से बोल दें लोगों से हंसकर बात करने में तो मानों अपनी
बेइज्जती ही समझते हैं ऐसे स्वच्छ पवित्र नेताओं को अबकी बार दिल्ली के
विधान सभा के चुनाओं के बाद केजरीवाल से लिपट चिपट कर मिलते एवं हंस हंसकर
बातें करते देखा गया तब उनके अपने विश्वसनीय कई लोगों के फोन भी मेरे पास
आए उन लोगों ने बड़ा आश्चर्य जताया कि यार अपने विधायक जी भी तो हंस बोल
भी लेते हैं हो सकता है कि हमें इस लायक ही न समझते हों !इसलिए क्या भाजपा को
अपनी दिल्ली पराजय से कुछ सीखने की जरूरत नहीं थी ? यद्यपि जिन प्रदेशों में
भाजपा की विजय हुई है वहाँ कार्यकर्ताओं की भावनाओं के सम्मान करने की
परंपरा भी होगी अन्यथा जनता का इतना अपार स्नेह उनको कैसे मिल पाता ?ऐसी
जगहों पर भाजपा के पैर हिला पाना बहुत कठिन होगा वो अरविन्द केजरीवाल ही
क्यों न हों !
इस लिए मेरा निवेदन है कि भाजपा को घबड़ाहट में अपना उपहास कराने की जरूरत नहीं है अपितु आवश्यकता इस बात की है कि
भाजपा अपने कार्यकर्ताओं को भी प्रेरित करे कि वे लोग सभी वर्गों के मान
सम्मान की सुरक्षा के लिए सेवा पूरी भावना के साथ उनसे जुड़ें ।
आज बिहार पराजय से भाजपा
के अपने कार्यकर्ता निराश हैं असंतुष्ट हैं उदास हैं !
जनता को विश्वास में लेकर चुनावी समय में भाजपा को जनता से जुड़े मुद्दे उठाकर जनता में फैलाने चाहिए थे किंतु जनता को विश्वास में बिना लिए ही अपने कार्यक्रम परोसे जाते रहे साथ ही यह वह समय था जिसमें भाजपा को अपने कार्यक्रम जन जन तक पहुँचाने चाहिए थे यदि वह सत्ता में आई तो दूसरी पार्टियों की अपेक्षा क्या और अधिक उत्तम कार्यक्रम जनता को देगी अर्थात भाजपा जनता को वह सेवा सुख देगी जो अन्य दल नहीं दे सकते! किन्तु यह इसलिए आसान नहीं था क्योंकि उस सेवा सुख की पुष्टि उसे अपने तत्कालीन केंद्रीय शासन काल से करनी थी किंतु ऐसा किया ही नहीं जा सका !दाल तेल आदि खाद्य पदार्थ ही महँगे होते चले गए जिनकी जरूरत रोज लगती है ये जनता के असंतोष का प्रमुख कारण बना । भाजपा वालों ने जनता की ओर दिमाग लगाना ही वर्षों पहले छोड़ दिया था । किसी वार्षिक मेले की धार्मिक मूर्तियों की तरह ही चुनावों के समय अपनी पार्टी को धो पोछकर चुनावों में उतार देती है भाजपा जनता के बीच । जनता को जो समझ में आता है वह भी कुछ वोट भाजपा की झोली में भी अपनी श्रद्धानुशार डाल देती है उसी में संतोष कर के शांत होकर अगले चुनावों की आशा में बैठ जाती है भाजपा । इसके अलावा जनता से सीधे जुड़ने का कोई कार्यक्रम नहीं दिखाई पड़ा है। भाजपा के द्वारा बिगत कुछ वर्षों से कभी कोई जनांदोलन प्रभावी रूप से नहीं चलाया जा सका है ।भाजपा की रणनीति इतनी कमजोर होती है कि जनता के बीच जाने से पहले ही हर मुद्दे की पोल खुल जाती है और समाज यह समझ कर करने लगता है उपहास कि भाजपा का यह चुनावी हथकंडा है क्योंकि दुर्भाग्य से भाजपा जनता के दुखते घावों को सहलाने का कोई विश्वसनीय कार्यक्रम बना ही नहीं पा रही है !
जनता को विश्वास में लेकर चुनावी समय में भाजपा को जनता से जुड़े मुद्दे उठाकर जनता में फैलाने चाहिए थे किंतु जनता को विश्वास में बिना लिए ही अपने कार्यक्रम परोसे जाते रहे साथ ही यह वह समय था जिसमें भाजपा को अपने कार्यक्रम जन जन तक पहुँचाने चाहिए थे यदि वह सत्ता में आई तो दूसरी पार्टियों की अपेक्षा क्या और अधिक उत्तम कार्यक्रम जनता को देगी अर्थात भाजपा जनता को वह सेवा सुख देगी जो अन्य दल नहीं दे सकते! किन्तु यह इसलिए आसान नहीं था क्योंकि उस सेवा सुख की पुष्टि उसे अपने तत्कालीन केंद्रीय शासन काल से करनी थी किंतु ऐसा किया ही नहीं जा सका !दाल तेल आदि खाद्य पदार्थ ही महँगे होते चले गए जिनकी जरूरत रोज लगती है ये जनता के असंतोष का प्रमुख कारण बना । भाजपा वालों ने जनता की ओर दिमाग लगाना ही वर्षों पहले छोड़ दिया था । किसी वार्षिक मेले की धार्मिक मूर्तियों की तरह ही चुनावों के समय अपनी पार्टी को धो पोछकर चुनावों में उतार देती है भाजपा जनता के बीच । जनता को जो समझ में आता है वह भी कुछ वोट भाजपा की झोली में भी अपनी श्रद्धानुशार डाल देती है उसी में संतोष कर के शांत होकर अगले चुनावों की आशा में बैठ जाती है भाजपा । इसके अलावा जनता से सीधे जुड़ने का कोई कार्यक्रम नहीं दिखाई पड़ा है। भाजपा के द्वारा बिगत कुछ वर्षों से कभी कोई जनांदोलन प्रभावी रूप से नहीं चलाया जा सका है ।भाजपा की रणनीति इतनी कमजोर होती है कि जनता के बीच जाने से पहले ही हर मुद्दे की पोल खुल जाती है और समाज यह समझ कर करने लगता है उपहास कि भाजपा का यह चुनावी हथकंडा है क्योंकि दुर्भाग्य से भाजपा जनता के दुखते घावों को सहलाने का कोई विश्वसनीय कार्यक्रम बना ही नहीं पा रही है !
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