Monday, 9 November 2015

बिहार चुनावों में भाजपा अंत तक मुद्दों की तलाश में भटकती रही !लालू जैसे लोग ऊटपटाँग बयानों में उलझाए रहे भाजपा को !!

     कई बार रैलियाँ देख सुनकर तो ऐसा लगता रहा कि बड़ी बड़ी रैलियों का आयोजन ही केवल लालू नितीश का उपहास उड़ाने एवं उनकी निंदा करने और अपनी प्रशंसा करने के लिए ही किया जाता रहा है ! दालों की महँगाई जैसे जरूरी मुद्दों का सामना करने की अपेक्षा हमेंशा इनसे बचने का प्रयास किया गया !ऐसे जन जीवन से जुड़े मुद्दों पर जनता को विश्वास में लेना जरूरी नहीं समझा गया !

      श्रद्धेय अटल जी के कार्यक्रमों में झलकती थी लोक पीड़ा! उनकी बोली भाषा भाषणों  आचरणों में झलका करती थी लोक सेवा की भावना !आखिर आज भी उनसे सम्बंधित खबरें कितनी श्रद्धा से सुनते हैं लोग !आखिर क्या सुगंध है उस महापुरुष के व्यवहार में कि गैर राजनैतिक लोग भी उनकी उन से हुई मुलाकातों बातों भाषणों की याद कर कर के अभी भी आँखे भर लेते हैं!  मैं विश्वास से कह सकता हूँ कि हर किसी को अटल जी के जीवनादर्शों में कुछ न कुछ मिला जरूर है उसी याद को सँजोए हुए राजनीति में या विशेषकर भाजपा में आदर्श ढूँढ रहे हैं लोग!संघ और भाजपा में और भी ऐसे अनेक महामनीषी हुए हैं जिनकी आवाज में सुनाई पड़ती थी जन पीड़ा ! । एक और बड़ी बात कि जिसके पास अटल जी जैसे जनता से जुड़े नेताओं के आचरण शैली की  विराट सम्पदा हो उन्हें उसी कुछ जरूर सीखना चाहिए !जनहित के रूप में कभी कोई गंभीर चिंतन सामने नहीं आया !

    भाजपा अभी तक  जनता से जुड़े कोई मुद्दे नहीं उठा पाई है ऐसी कोई बात जनता के सामने नहीं रख पा रही थी जो जनता के हृदय से जुड़ी  हो जिसे जनता सीधे स्वीकार कर सके अर्थात जो सीधे जनता के हृदयों तक उतर जाए, जैसे भाजपा के बयोवृद्ध नेताओं की बातें उतरती रही हैं उसी प्रकार से वही शैली आज केजरी वाल जैसों ने अपना रखी है । 

     भाजपा ने राष्ट्रीय स्तर पर आज जिसे अपनी नैया का खेवन हर बना रखा है भाजपा के उस  महान मनीषी के भाषणों को सुनकर जनता के हृदयों में उतरने की कोशिश तो दिखाई दे रही है किंतु उनके भाषणों में भारी भ्रम है कि वो प्रधानमंत्री हैं या बिहार में मुख्य मंत्री का चुनाव लड़ रहे हैं !

   हमारे प्रधानमंत्री जी को हम और हमारे से ऊपर उठकर  अपनी पार्टी के  आदर्श  प्रधानमंत्री अटल जी के आदर्शों योजनाओं कार्यक्रमों की चर्चा भी करनी चाहिए थी जो अत्यंत कम हुई !जबकि उनसे न केवल समाज सुपरिचित है अपितु उन्हें वह जानता भी है मानता भी है उनसे  वह प्रभावित भी रहा है वही वो आज सुनना   भी चाह रहा है जिसकी पर्याप्त आपूर्ति नहीं की जा पा रही है भाजपा के द्वारा !वो  भाजपा के विकास के लिए  अत्यंत  आवश्यक है !जिसे भाजपा भी अपने प्रारंभिक काल में अपनाती रही है वह सादगी चाहिए जनता को !उसमें दिखता है देशवासियों को अपनापन। 

    दूसरी बात आपके  भाषणों में प्रहार भ्रष्टाचार पर होना चाहिए थे और जनता के हृदयों तक उतरने वाले मुद्दे उठाए जाने चाहिए थे किन्तु प्रहार लालू नितीश राहुलगाँधी पर किए जाते रहे?जबकि इनकी निजी क्षमता से प्रधानमंत्री जी की क्या तुलना !संपूर्ण देश ने आपकी क्षमता देखकर ही आपके त्याग और परिश्रम के कारण ही आपको चुना है !इसलिए आपके सामने उनका व्यक्तित्व कहीं ठहरता भी नहीं है फिर आप अपनी वाणी का विषय लालू जी जैसे लोगों को क्यों बनाते रहे ?निजी तौर पर जिनके कोई आदर्श ही नहीं हैं । 

     जहाँ तक बात राहुल की है यदि वो अपने पैतृक व्यवसाय को आगे बढ़ा रहे हैं तो इसमें गलत क्या है उन्हें जनता का समर्थन मिल रहा है जब नहीं मिलेगा तो कुछ और धंधा सोचेंगे इसी प्रकार सोनियां गांधी जी को क्यों केंद्रित करना? वो जिनकी पत्नी हैं  उनका जो व्यापार होता उसे संभालतीं चूँकि उनका व्यवसाय ही राजनीति है तो वो उसे न संभालें तो करें क्या ?लोक तंत्र में जनता ही मालिक होती है उसने उन्हें लगाम जब तक सौंपी तब तक सँभालती रहीं जनता ने मुक्त कर दिया तो मुक्त हैं । इसलिए उनकी आलोचना करने का मतलब जनता के निर्णय को चुनौती देना है इसलिए उनकी व्यक्तिगत आलोचना न करके उनके किए गए भ्रष्टाचारी कार्यों की ही आलोचना की जानी चाहिए और अपने भावी कार्यक्रम प्रस्तुत किए जाने चाहिए आगे का निर्णय जनता का था !

      एक और बात है कि अपनी विनम्र शैली से जनता के सामने अपनी योजनाएं प्रस्तुत की जानी चाहिए  थीं किन्तु ऐसा नहीं हो पा रहा है, कैसे कैसे वीर रस के नाम रखे जाते हैं रैलियों के !हुंकार रैली, ललकार रैली, दुदकार रैली फुंकार रैली,शंख नाद रैली आदि आदि बारे नाम! कितने कर्णप्रिय हैं ये शब्द कितना सुन्दर है इनमें सन्देश ? क्या यही हैं संघ के संस्कार! किन्तु ये सारी चुनौतियाँ किसको दी जा रहीं हैं जनता को या विरोधी पार्टियों को? अजीब सी बात है कि केजरीवाल जहाँ विनम्रता का प्रयोग कर रहे हैं भाजपा वहाँ वीर रस का प्रयोग करे और टोपी पहनकर बराबरी करने से भाजपा का कुछ लाभ हो पाएगा क्या ?लालू नीतीश हाथ जोड़े घूम रहे थे जनता पर असर उनका अधिक होना स्वाभाविक है ।

  समाज में काल्पनिक चुनावी परिणाम बताते घूमने की जल्द बाजी क्यों थी ?दूसरी ओर लालू नितीश अपने कार्यक्रमों को परोस रहे थे और हाथजोड़ कर जनता से सहयोग  मांग रहे थे जनता उनकी इस शैली को पसंद कर रही थी वोट जनता से ही मिलना था । पैसे के बल पर भाड़े के प्रशंसा कर्मी कितने भी रख लिए जाएं और कराइ जाए अपनी जय जय कार किन्तु वो वोट तो नहीं पैदा कर देंगे !वोट तो जनता ही देगी । 

    यही दिल्ली में केजरीवाल ने किया था अपनी हालत ऐसी बना रखी थी कि "रावण रथी विरथ रघुवीरा " अर्थात रणस्थल में रावण के पास रथ है किन्तु राम जी के पास नहीं है जनता का स्नेह श्री राम जी को उनकी सादगी के कारण मिला रावण पराजित हुआ इसी आर्थिक अहंकार से केजरीवाल अपने को अलग रखते दिखाई पडने का प्रयास कर रहे थे जबकि भाजपा आर्थिक अहंकार की ओर बढ़ती  हुई दिख रही थी । 

      



















































































































































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