ये लोग वास्तव में साक्षात सरकार स्वरूप ही होते हैं इनके स्वभाव और प्रभाव
को जो नहीं समझते वो भुगतते देखे जाते हैं अक्सर !
जनता को प्रदत्त व्यवहारिक अधिकारों में ये क्षमता नहीं होती है कि देशवासी इनके सामने इनकी इच्छा के विरुद्ध सम्मान स्वाभिमान पूर्वक जी सकें !ये लोग किसी को नहीं डरते बल्कि सबको डराया करते हैं। इनसे डर डर कर जीना पड़ता है पड़ोसियों को !
बंधुओ! सभी प्रकार के एक से एक खतरनाक अपराधियों से कभी कभी खतरा होता है किंतु लोकतंत्र के ऐसे स्वयंभू स्वामियों से हर कदम बचा बचा कर रखना पड़ता है हर क्षण सोचना पड़ता है कि इनको मेरा कहीं कुछ बुरा न लग जाए !
वकील पुलिस अफसर और नेता जैसे लोगों में भी यद्यपि कुछ ईमानदार लोग भी होते हैं !चूँकि भले और ईमानदार लोग बने ही शोषण सहने को होते हैं इसलिए वे बेचारे यहाँ भी शोषण ही सह रहे होते हैं उनकी चलती कहाँ हैं उन्हें पूछता कौन है !
इस लोकतंत्र में जनता के पास वोट देने के अलावा अपने कोई अधिकार नहीं होते ! बाक़ी वकील पुलिस अफसर और नेता जैसे लोगों को एक दूसरे की जरूरत पड़ा करती है एक नागनाथ तो दूसरा साँपनाथ !ऐसे में वो अपने जैसे किसी दूसरे पर अंकुश लगाकर अपने गले क्यों डालेंगे कोई आफत !आखिर उनकी भी तो एक टाँग वैसे ही मामलों में फँसी होती है !
जनता को प्रदत्त व्यवहारिक अधिकारों में ये क्षमता नहीं होती है कि देशवासी इनके सामने इनकी इच्छा के विरुद्ध सम्मान स्वाभिमान पूर्वक जी सकें !ये लोग किसी को नहीं डरते बल्कि सबको डराया करते हैं। इनसे डर डर कर जीना पड़ता है पड़ोसियों को !
बंधुओ! सभी प्रकार के एक से एक खतरनाक अपराधियों से कभी कभी खतरा होता है किंतु लोकतंत्र के ऐसे स्वयंभू स्वामियों से हर कदम बचा बचा कर रखना पड़ता है हर क्षण सोचना पड़ता है कि इनको मेरा कहीं कुछ बुरा न लग जाए !
वकील पुलिस अफसर और नेता जैसे लोगों में भी यद्यपि कुछ ईमानदार लोग भी होते हैं !चूँकि भले और ईमानदार लोग बने ही शोषण सहने को होते हैं इसलिए वे बेचारे यहाँ भी शोषण ही सह रहे होते हैं उनकी चलती कहाँ हैं उन्हें पूछता कौन है !
इस लोकतंत्र में जनता के पास वोट देने के अलावा अपने कोई अधिकार नहीं होते ! बाक़ी वकील पुलिस अफसर और नेता जैसे लोगों को एक दूसरे की जरूरत पड़ा करती है एक नागनाथ तो दूसरा साँपनाथ !ऐसे में वो अपने जैसे किसी दूसरे पर अंकुश लगाकर अपने गले क्यों डालेंगे कोई आफत !आखिर उनकी भी तो एक टाँग वैसे ही मामलों में फँसी होती है !
वस्तुतः भ्रष्टाचार के जनक वकील पुलिस अफसर और
नेता ही हैं इनकी कृपा पाए बिना कोई व्यक्ति कुछ भी कर ले किंतु सफल अपराधी
नहीं बन सकता !जिस दिन ये चारों लोग ईश्वर को साक्ष्य भावना से ईमानदारी
पूर्वक अपराध रोकना चाहेंगे उस दिन किसी अपराधी की मजाल क्या कि अपराध कर
ले किंतु ये अपराध रोकने का संकल्प लेंगे क्यों ?
ऐसे लोग जहाँ रहते हैं या जहाँ काम करते हैं वहाँ अपना रुतबा दिखाने के
लिए अपने चारों ओर अक्सर नरक फैलाकर रखते हैं ।अपने आसपास के लोगों के
सांवैधानिक अधिकारों को हड़पने के लिए उन्हें अक्सर बंदरघुड़की देकर रखते हैं
और समय समय पर छीन लिया करते हैं उनके कानूनी अधिकार !अन्यथा कभी कभी अपना
एवं अपने उस तरह के परिचितों से उनका परिचय करवा देते हैं फिर भले लोग तो
इनसे दूर ही रहने में भलाई समझते हैं !
वकील ,पुलिस, अफसर और नेता लोग अपने पड़ोसियों का अक्सर जीना मुश्किल कर देते हैं कहीं भी टाँग फँसा कर खड़े हो जाते हैं आखिर क्यों ? लोकतंत्र के निजी क्षेत्र में उन लोगों की शिकायत कहीं हो ही नहीं सकती
और यदि हो भी जाए तो कार्यवाही नहीं हो सकती अंत में माफी शिकायत करने वाले
को ही माँगनी पड़ती है समझौता उसी को करना पड़ता है !उसे तो बच्चे पालने
होते हैं बच्चों के काम काज कैरियर आदि की चिंता होती है !किंतु उन लोगों
का बोझ तो ढो रहा होता है समाज या सरकार !उन्हें किस बात की चिंता !बारे
लोकतंत्र !!
आय से अधिक संपत्ति लगभग हर नेता के पास होती है किंतु कानून की
कमजोरियों के बल पर अपने प्रभाव के बल पर आपसी व्यवहार के बल पर ठेंगा दिखा
रहे होते हैं कानून को !जनता बेचारी देख रही होती है !किंतु जनता के इन
प्रश्नों का जवाब देने को कोई नेता तैयार नहीं होता !जब उसके बचपन के साथी
उससे पूछते हैं कि
"यार हम तुम जब साथ साथ साथ पढ़ रहे थे तब मैं पढ़ने में ठीक था तुम फेल हो
जाते थे या कम नंबरों से पास हुआ करते थे फिर तुमने पढ़ाई छोड़ दी थी या
स्कूल से निकाल दिया गया था तुम्हारा मन घर का काम काज करने में भी नहीं
लगता था इस लिए तुम्हारे घर वाले दिन भर तुम्हें कोसा करते थे तुम्हें लेकर
दिनरात कलह रहा करती थी तुम्हारे घर , इसीलिए तुम्हारे शादी विवाह वाले भी
नहीं आते थे जो आते थे वो ऐसे जिनकी प्रायः कहीं नहीं होती थी । कुल
मिलाकर हर ओर जलालत का जीवन था किंतु आज तुम अरबोपति हो कैसे ?
रोजगार व्यापार तुम्हारा कुछ है नहीं काम करने का समय तुम्हारे पास नहीं
है शिक्षा तुम्हारे पास है नहीं मेहनत करने का तुम्हें अभ्यास नहीं है नाते
रिश्तेदार तुम्हारे कुछ देने लायक नहीं हैं फिर ये अरबों की संपत्ति का
अंबार कैसे लगा तुम्हारे पास !उस नेता के पास कोई जवाब ही नहीं होता है ऐसे
निरुत्तर नेताओं को ईमानदार समझा जाए क्या और क्यों ?
इसीलिए अधिकतर सरकारों में सम्मिलित नेता और सरकारी लोग मनाते हैं देश के
राष्ट्रीयपर्व फहराते हैं झंडे !जनता बेचारी तो देख रही होती है इस
लोकतंत्र ने जिसे सबकुछ दिया वो इसके गुण गा रहा है बाकी देशवासियों के
घरों पर क्यों नहीं फहराए जाते झंडे धूम धाम से क्यों नहीं मनाए जाते
राष्ट्रीय त्यौहार !
जो लोग अपने धार्मिक त्यौहार उत्साह पूर्वक मनाते हैं वो अपने राष्ट्रीय
त्यौहार भी उतने ही उत्साह से मना सकते थे किंतु राष्ट्रीय लोकतंत्र पर
जिन्होंने कब्ज़ा कर रखा है त्योहार भी वही मनाते हैं !
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