नंगों ने इस देश को इतना बर्बाद कर दिया है कि इंसानों को कुत्ते बिल्लियों के श्रेणी में लाना चाह रहे हैं ये लोग !
इन्हें इंसानों का भारत अच्छा नहीं लग रहा है ये
कुत्तों के देश के रूप में देश को प्रसिद्धि दिलवाना चाहते लगते हैं !ये टुच्चे पापी लोग जबसे बहन बेटियों को हॉट सेक्सी बोल्ड सुपरहॉट जैसे घिनौने शब्दों से संबोधित करने लगे हैं तबसे ही बढ़ी हैं बलात्कार की दुर्घटनाएँ !नंगेपन को प्रोत्साहित करने के लिए इनका बश चले तो ये पुरस्कार बाँटने लगें !
नंगों के कारण ही ये दुर्दशा हुई है देश की !नंगपन के समर्थक नेताओं अभिनेताओं खिलाड़ियों व्यापारियों शिक्षकों पत्रकारों बुद्धिजीवियों बाबाओं विद्वानों फैशनप्रणेताओं फ़िल्म निर्माताओं का चूँकि अपना चरित्र बिगड़ चुका होता है इसलिए वो चाहते हैं कि सारी दुनियाँ उन्हीं की तरह रहने बलात्कार प्रिय भावनाओं का अवगाहन करने लगे
ताकि वो अपनी आत्मा को ढाढस बँधा सकें कि बलात्कारों में केवल उनकी ही रूचि
नहीं है अपितु बहुत लोग उनके बलात्कारी जीवन से प्रेरणा ले रहे हैं और बलात्कारों से ही अपनी रोजी रोटी चला रहे हैं । इससे
ऐसे लोगों का अपना भी मनोबल बढ़ जाता है !ये बार बार नए नए शिकार करने लगते
हैं ।
प्रेम प्यार का खेल खेलने वाले प्रायः सारे लोग शुरू शुरू में तो बलात्कार भावना से ही ग्रसित होते हैं वो जिसे चाहते हैं किसी भी तरह उसे पा लेना चाहते हैं इसी भावना से उससे बलात्कार करते हैं वो चाहें शारीरिक हो या मानसिक किन्तु ये नंगई का कारोबार करने वालों के पास धन संपत्ति गाड़ी घोड़ा सामाजिक पद प्रतिष्ठा सोर्स सिफारिस आदि सब कुछ होने के कारण ये लोग तमाम प्रकार का लोभ लालच देकर अपने सामने वाले को पटा लेते हैं और अपने बलात्कारी कुकर्म रूपी काले धन को प्यार का नाम देकर सफेद कर लेते हैं इतने ही अपराध के लिए गरीबों के पास लोभ लालच दिखाकर पटाने के लिए कुछ होता नहीं है उन बेचारों को फाँसी पर लटकवा देते हैं ये बलात्कारी नंगपने के समर्थक रईस लोग !
कपड़े पहनने और न पहनने में क्या कोई फर्क ही नहीं पड़ता है और यदि वास्तव में नहीं पड़ता है तो फिल्मों विज्ञापनों एवं फैशन शो के नाम पर नंगापन परोसा क्यों जा रहा है !जिन पशुचित्रों अर्थात नंगे अधनंगे चित्रों को हॉटसीन सेक्सीसीन बोल्डसीन सुपरहॉटसीन आदि कहकर जिन्हें नंगा करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है क्या उनकी अपनी आँखें फूटी हैं क्या ?उन्हें ये समझ में क्यों नहीं आता कि नंगा होना यदि इतना ही अच्छा होता और इसमें कोई पुरस्कार मिलने लगता तो पहले पुरस्कार के हकदार तो कुत्ते बिल्ली जैसे पशु ही होते मनुष्य प्रजाति को ऐसा पुरस्कार पाने का सपना कभी पूरा नहीं होता !क्योंकि प्रायः फैशन के प्रणेताओं का लक्ष्य समाज को किस्तों में नंगा करना होता है किसी का ब्लाउज काटकर पीठ दिखवाते हैं और किसी की स्लीव !किसी किसी का पैंट फड़वा देते हैं किसी किसी को इतनी टाइट पैंटी पहना देते हैं ताकि वो शर्म से बीच चौराहे पर ही फट जाए !
किस्तों में नंगा न करके अगर वो एक साथ कर भी दें तो कुछ दिन बाद ऐसे शरीरों या नंगों की कीमत ही समाप्त हो जाएगी फिर कौन देखेगा ही इनकी कुकर्मी भावनाओं के प्रोडक्ट !फिर इन फैशनव्यापारियों के नंगापन बेचने की मार्केट ही बैठ जाएगी !
ऐसे नंगपने की कमाई खाने वालों ने ही समाज का बेड़ा गर्क किया है कन्या पूजन करने वाला देश जो कभी कन्याओं को बहन बेटी दीदी माता जी जैसे संबोधनों से सम्मान दिया करता था !वो आज उन्हें मैडम बुलाता है जिस देश में शरीरों के बासनात्मक उभारों को देखने दिखाने से बचना सिखाया जाता था आत्मसंयम सिखाया जाता था तब लोग श्रद्धापूर्वक बहन जी कहा करते थे उनके शरीरों की प्रकृति ही बिकाऊपन की नहीं हुआ करती थी वो महान महिलाएँ मलमूत्रांगों एवं मांसल सौन्दर्य की जगह अपने सदाचरण,संस्कारों एवं गुणों के गौरव के बलपर समाज का माथा झुका लिया करती थीं अपने चरणों पर !
चूँकि अपने चरित्र की रक्षा करना उन्हें स्वयं पसंद होता था इसलिए इस देश के गिद्ध भी प्राण न्योछावर कर दिया करते थे उनके लिए ! रामायण और महाभारत जैसे महान संग्राम देश की इस पवित्र भावना के गवाह हैं !जिनके हाव भाव वेषभूषा आदि से ये लगेगा ही नहीं कि चरित्र बचाकर रखने का उनके मन में कोई महत्त्व भी है ऐसे लोगों की दिखावटी रक्षा के लिए कोई अपने प्राण न्योछावर क्यों करे !क्योंकि ऐसे लोगों को एक जगह यदि बचा भी लिया जाए तो वो दूसरी जगह वही करेंगे !ऐसी परिस्थिति में ऐसे लोगों के लिए अपना बलिदान देने से पुण्य लाभ की आशा भी तो नहीं होती है !इसलिए राहों चौराहों पर भी हो रही हैं छेड़ छाड़ की घटनाएँ !
ब्यूटी पार्लर कौन कितना अच्छा है इसका मूल्यांकन जब इस दृष्टि से किया जाने लगे कि जिसके यहाँ पेंट पोताई करवाने से जितने ज्यादा लोग छेड़ते हैं वो उतना अच्छा ब्यूटी पार्लर और ऐसे ब्यूटीपार्लरों में खर्च होने वाला पैसा सार्थक ही तभी माना जाता है जब कोई छेड़े !ऐसे लोगों के साथ होने वाली छेड़ छड़ की घटनाओं में अक्सर देखा जाता है कि छेड़ने वाले से ज्यादा योगदान छेड़वाने वाले का होता है !
अपने शरीरों की नुमाइस लगाकर औरों की आँखों में पट्टियाँ नहीं बाँधी जा सकतीं !जिसे लगता है कि हमें कोई देखे नहीं तके नहीं छुए नहीं उन्हें भी अपने शरीरों को देखने तकने के लिए परोसना बंद करना होगा !यदि वो अपने को छूने नहीं देना चाहते तो उन्हें भी अपने को छुआने की भावना पर लगाम लगानी होगी !दूसरों को दिखा दिखाकर रसगुल्ले खाने खिलाने की आदत उन्हें भी छोड़नी होगी !अक्सर मेट्रो पार्कों पार्किंगों कूड़ादानों के पास कुत्तों बिल्लियों की तरह श्वानमुद्रा में खड़े लोगों की छेड़ छाड़ का विरोध समाज इसलिए नहीं करता हैं क्योंकि श्वानसंस्कारों में छेड़ छाड़ के विरोध करने की परम्परा ही नहीं है सामूहिक जगहों पर शर्मशार कर देने वाली हरकतें करने की परंपरा मानव जाति में कभी रही ही नहीं है आज तो मेट्रों में कई कांड होते रहते हैं ऐसे सार्वजनिक स्थलों में चूमने चाटने चिपकने की अधिकांश दुर्घटनाएँ होती ही उन्हीं की ओर से हैं जिन्हें लोगों को देखने ताकने छूने से आपत्ति है । आचार इतने गंदे और आशा सीता अनसूया जैसा सम्मान पाने की !
ऐसे नंगों ने आम समाज का जीना दूभर कर दिया है महिलाओं बच्चियों का घरों से निकलना दिनों दिन मुश्किल होता जा रहा है उनका पढ़ना लिखना काम काज करना सब कुछ मुश्किल होता जा रहा है जो बच्चियां अपने पौरुष और पराक्रम के बलपर अपनी प्रतिभाओं का विस्तार कर सकती हैं देश की यश पताका वैश्विक व्योम में फैला सकती हैं जो अपने परिवारों का सहारा बन सकती हैं जो व्यवसायिक काम काज में सशक्त सहभागिता निभा सकती हैं ऐसे पवित्र संस्कारों वाली बहनों बेटियों माताओं को भी उसी दृष्टि से देखने लगे हैं पापी लोग ! अब तो लोगों की पहचान ही मिटती जा रही है और मुट्ठी भर पापी जोड़ों या लोगों के कारण बहुत बड़े महिलासमाज को अपनी सभी प्रकार की इच्छाओं का दमन करके घुट घुट कर जिंदगी ढोनी पड़ रही है !सदाचारी पुरुषों को अपमानित होना पड़ रहा हैं जब होता है तब महिला सुरक्षा का प्रश्न उठने लगता है किंतु इस वाक्य का मतलब ही पुरुषों को संदेह के घेरे में ला खड़ा करना होता है ऐसी परिस्थिति में भले लोग कहाँ किसे और क्यों सफाई देते घूमें कि वे वैसे नहीं हैं जैसा उन्हें समझा जा रहा है ।
महिला शरीरों के महान महत्त्व को समझने वाली महिलाएँ पुरुषों की बराबरी कर ही नहीं सकतीं !
"पुरुष अकेले घूम सकते हैं तो 'मैं क्यों अकेले नहीं घूम सकती ?-एक महिला कार्यकर्त्री"
देवी ! आपको अकेले घूमने से रोकता कौन है वो आपकी शारीरिक ,सामाजिक एवं
सरकारी परिस्थितियाँ ही हैं जो आपको अकेले आने जाने से रोकती हैं !
सब्जी वाले रेड़ी पर सब्जी लादे गली गली भटकते बेचते दिन भर देखे जाते हैं
किंतु किसी हीरा बेचने वाले जौहरी को कभी रेड़ी पर हीरा लादकर बेचते देखा
है क्या ?दूसरी बात क्या हीरा बेचने वाला कोई व्यक्ति कभी सब्जी बेचने वाले
से अपनी तुलना करते देखा जाता है क्या ?
जो
ऐसा करेगा वो मरेगा !क्योंकि जो वस्तु जितनी अलभ्य होती है उसे पाने के लिए
लोग उतना ही बड़ा बलिदान देने को तैयार रहते हैं अपनी बासनास्पद को पाने
के लिए जो लोग जीवन का मोह छोड़कर आत्म हत्या करने लगते हैं अर्थात मारने से
नहीं डरते हैं वे पुलिस से क्या डरेंगे !
कामी अर्थात सेक्सालु पुरुषों के लिए महिला शरीर कितने अलभ्य होते हैं इसका
अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि सेक्स की इच्छापूर्ति के जतन में लगे
कामांध लोग महिलाशरीरों के शवों से भी दुष्कर्म करते देखे जाते हैं दो दो
महीने की बच्चियों को भी नहीं छोड़ते !स्त्रीलिंग पशुओं तक को नहीं छोड़ते
!ऐसे कामांध लोग महिलाओं के सजे धजे युवा शरीरों को बक्स देंगे क्या !वो
भी उट पटांग आधे चौथाई कपड़े पहनकर तरह तरह से शरीर दिखाने की शौकीन महिलाओं
के तो इरादों पर ही कभी कभी शक होने लगता है कि क्या वे वास्तव में अपनी
सुरक्षा चाहती हैं ! वो भी सरकारी कानून के भरोसे !सरकारी कामकाज की
जिम्मेदारियों को निभाने का सच जानते हुए भी ।
जिस देश में हर प्रकार के अपराधों को करने के लिए सरकारी विभागों से काम
करवाने वाले दलालों ने अघोषित रेटलिस्ट बना रखी हो कि किस अपराध को करने के
लिए किसको कितने पैसे देकर बचा जा सकता है !जिसमें जितने पैसे खर्च कर
सकने की क्षमता हो वो उतना बड़ा अपराध कर सकता है !देश में ईमानदारी के बड़े
बड़े दम्भ भरने वाली सरकारें आईं किन्तु सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों के
प्रति आम अपराधी की इस मानसिकता को तोड़ने में वो अभी तक असफल रही हैं उस
देश में कानून के भरोसे जो महिलाएँ अपनी सुरक्षा करवाना चाहती हैं वे
अंधेले में हैं ।
नोट बंदी अभियान को ही ले लें प्रधानमंत्री जी जनता से 50 दिन माँगने के
लिए गिड़गिड़ाते रहे और सरकार के अपने कर्मचारियों ने सबसे पहले उन्हीं
कालेधन वालों के गोदामों के बोरे सफेद किए जिनके विरुद्ध प्रधानमंत्री जी
ने युद्ध छेड़ रखा था !जिनसे 50 दिन की मोहलत माँगी जा रही थी वे दो दो हजार
के लिए दम तोड़ रहे थे !
इसे सरकारी भ्रष्ट तंत्र की कार्यशैली का छोटा सा सैंपल माना जाए या फिर
सरकार के अपने कर्मचारियों की सरकार को सीधी चुनौती माना जाए !कि हे प्रधान
मंत्री जी तुम हमें घूस लेकर भ्रष्टाचार करने से नहीं रोक सकते !अब इसे PM
साहब चुनौती न मानें तो और बात है ।
जिस देश में कानून के रखवाले प्रधानमंत्री की योजनाओं की ऐसे धज्जियाँ उड़ा
देते हों उस देश में सरकारी सुरक्षा के बलपर आधुनिकता और फैशन परस्त
महिलाओं को अपनी सुरक्षा की बागडोर स्वयं अपने हाथ में सँभालनी चाहिए और
यदि सुरक्षित रहने का इरादा वास्तव में हो तो जैसे रहन सहन आचार व्यवहार
में अपनी सुरक्षा संभव हो वैसा ही रहन सहन स्वयं बनाकर चलने का व्रत लें !
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