Tuesday, 28 March 2017

पशुओं के हत्यारों की पशुओं को मारने खाने की ऐसी जिद !

 पशु नहीं रहेंगे तो आदमी उपलब्ध कराए जाएँगे क्या ?हड़ताल तो तब भी करेंगे पशु हत्यारे एवं मांस भक्षी लोग ? 
अंधेर है बैध बूचड़ खाने हों या अवैध ! कटना तो पशुओं को ही होता है जिन पशुओं को काटा  खाया जाता है उनसे भी कोई सहमति ली जाती है क्या ?यदि नहीं तो काहे के वैध !किसी को मारने खाने की अनुमति कोई दूसरा कैसे दे सकता है ? 
   बूचड़खाने बैध या अवैध ?बैध बूचड़ खाने पशुओं से NOC लेकर बनाए जाते हैं क्या ?अपराधों और बलात्कारों को घटाने के लिए बूचड़खाने हटाने पड़ेंगे !जो कुछ खाएँगे वैसा मन बनेगा!पशुओं  को मारने खाने वालों से दया की उम्मींद नहीं की जानी चाहिए   
पशु बेचारे किसी को परेशान करते हों कोई नुक्सान न पहुँचाते हों अपितु मानवता की ऐसी सेवा करते हों जो मनुष्य भी न कर पाते हों !उनके मरने के बाद भी उनके शरीर की खाल मानवता की सेवा करती है किन्तु मनुष्य का चमड़ा किस काम आता है !
      पशुओं को चबाने वालों से क्यों न पूछा जाए कि यदि तुम गाय भैंसें ऐसे ही चबाते चले जाओगे तो कैसे मिल पाएगा  दूध दही मट्ठा मक्खन घी खोया पनीर रबड़ी आदि असंख्य व्यंजनों और मिठाइयों का स्वादों को उपलब्ध  ! दूध में मिलावट दूध के सभी उत्पादों में मिलावट तिथि त्योहारों में मिठाइयों में मिलावट के लिए जिम्मेदार केवल वो लोग हैं जो पशुओं को खाए जा रहे हैं !बीमारियों के बढ़ने का कारण है दूध और दूध के उत्पादों की कमी और उनकी  शुद्धता का अभाव !खाद्य पदार्थों की कमी का कारण है दूध और दूध के उत्पादों की कमी एवं उनमें भारी मिलावट !
     पुराने ज़माने में दूध और मट्ठे आदि से लोगों का सबेरा शुरू हो जाता था इसीलिए खाद्यवस्तुओं की खपत घट जाती थी जो भी जैसा भी खाले पच जाता था एवं खाने में प्रोटीन की कमी से भी उतनी बीमारियाँ नहीं होने पाती थीं क्योंकि दूध आदि से ताकत तो मिलती ही जाती थी इसलिए शरीरों में प्रतिरोधक क्षमता होती थी इसी लिए उतनी बीमारियाँ नहीं होने पाती थीं !लोगों के शरीरों में दम होती थी इसीलिए उत्साह होता था और लोग पहलवानी किया करते थे !

    गोबर की खाद से बनस्पत्तियों बनौषधियों को पोषण मिलता था जिससे प्रकृति अनुकूल वर्ताव करती थी किन्तु राक्षसों के राक्षसी भोजन के कारण प्रकृति से सब कुछ नष्ट होता जा रहा है !यही कारण है कभी बाढ़ कभी सूखा और बार बार भूकम्प जैसी आपदाएँ !
  इसी राक्षसी प्रवृत्ति के कारण राक्षसों जैसे दुर्गुण हावी होते जा रहे हैं हत्या बलात्कार लूट मार पीट जैसे बड़े से बड़े अपराध पशुओं को चबाने वालों के विवेक नष्ट होने के कारण होता चला जा रहा है !
   राक्षसों का भोजन करने से राक्षसी मन बनता है राक्षसी विचार आते हैं हत्या बलात्कार लूट धोखाधड़ी जैसे राक्षसी कार्यों में रूचि बढ़ती है बुरी से बुरी वारदातें करने का मन होने लगता है इसलिए यदि अपराध मुक्त समाज का निर्माण करना है तो हमें पशुओं की हत्या से और मांस भक्षण से बचना चाहिए क्योंकि मांस किसी को मारने से मिलता है और मरने वाला पशु अपना मांस खाने वाले को उसके बच्चों एवं परिवार के लोगों को मर जाने रोगी होने परेशान  होने जैसा शाप ही देकर जाएगा आशीर्वाद तो देगा नहीं !इसलिए हमें सुखी रहने के लिए ऐसे दुष्कर्मों से बचना चाहिए !ऐसे लोगों का बहिष्कार करना चाहिए !
  क्या उन लोगों से पूछ कर बनाए जाते हैं जो जीवों के जियो और जीने दो के सिद्धांत को  सुरक्षित रखना चाहते हैं !


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