"आतंकवाद से 6 गुना ज्यादा जानें ले रहा है प्यार !"-एक खबर
किंतु इसे प्यार नहीं कहा जा सकता क्योंकि माता पिता से लुक छिप कर केवल मूत्रता के लालच में मित्रता करने को प्यार नहीं कहा जा सकता ! प्यार तो पवित्र होता है और पवित्र प्रेम ही परमात्मा का स्वरूप होता है अपवित्र नहीं !वैसे भी मूत्रता के लोभ से किए जाने वाले प्यार को पवित्र कैसे कहा जा सकता है ।
'प्यार' भी 'बलात्कार' ही है ये दोनों सेक्सुअल पागलपन की बिगड़ती हुई अवस्थाएँ हैं !सेक्सुअल बेचैनी जब सीमिति होती है तब सेक्स पीड़ा सहने की कुछ गुंजाइस होती है इसलिए छल कपट धूर्तता से झूठे सपने दिखाकर विश्वास में लेने की कोशिश में सफल हो जाए तो प्यार और सेक्स पीड़ा सहने की बिलकुल गुंजाइस ही न बची हो और सेक्सुअल पागलपन बढ़ता ही जा रहा हो तो मरता क्या न करता !यही सेक्स बेचैनी उसे बलात्कारी बना देती है !जिसके बाद घटने लगती हैं तरह तरह की दुर्घटनाएँ ! सेफ तो 'प्यार' नामक पागलपन भी नहीं है 'प्यार' प्रकरणों में भी छल कपट धूर्तता आदि से झूठे सपने दिखाकर विश्वास में लेकर सेक्स शुरू तो हो जाता है किंतु जब पोल खुलती है तब पागलपन में हत्या या आत्महत्या जैसी दुर्घटनाओं की गुंजाइस वहाँ भी बनी रहती है !जो लोग पहले कभी ऐसी धूर्तता कर चुके होते हैं वे दुष्चरित्र लोग ऐसी धोखाधड़ी का समर्थन करते हैं बाकी नहीं !इसलिए 'प्यार' हो या 'बलात्कार'उद्देश्य तो दोनों का ही धोखा देकर सेक्सुअल सुख पाना ही होता है !प्यार इससे ज्यादा कुछ नहीं !
चिकित्सा शास्त्र की दृष्टि से उम्र के साथ साथ शरीर की तीन बड़ी
आवश्यकताओं में भोजन निद्रा और बासना (सेक्स) होता है ये घटें तो हानिकर
बढ़ें तो हानिकर होती है !पहले विवाह समय से हो जाया करते थे किंतु आजकल दहेज़
के लोभ से पहले कैरियर बने ताकि वैवाहिक नीलामी अच्छी हो बोली अच्छी लगे इसलिए विवाह देर से
होते हैं अब सेक्स बेचैनी से जिन लड़के लड़कियों का शरीर जलने लगता है शरीरों में टूटन बढ़ने लगती
हैं आँखों में जलन घबड़ाहट तनाव आदि बढ़ते जाता है उसकी शांति के लिए उन्हें सेक्स की जरूरत होती है माता पिता से कह नहीं सकते ऐसे में सेक्स आपूर्ति के लिए वो अपने से विपरीतलिंगी कोई
सेक्स मित्र खोज लेते हैं जो विवाह तक साथ दे सके तब तक कैरिअर अच्छा बन
चुका होता है तब उस सेक्स मित्र को छोड़ने में कठिनाई होती है किंतु छोड़ना
तो होता ही है ऐसे में उसे अपने जीवन से हटाने के लिए आपराधिक वृत्तियों का
सहारा लेना होता है !और इसी परिस्थिति में होने लगती हैं दुर्घटनाएँ !
जिसे लोग प्यार कहते हैं वो वस्तुतः प्यार नहीं अपितु विवाह ब्रिज होता है विवाह तक के लिए समय पास सेक्ससाथी !किंतु ऐसे लोग माता पिता से छिपकर अपने लिए सेक्स समझौते किया करते हैं पार्कों पार्किंगों मेट्रो बसों आदि सार्वजनिक जगहों पर कहीं भी कुत्ते बिल्लियों की तरह चूमते चाटते दिख जाते हैं बिलकुल बेशर्म !
ये सेक्स लोभी माता पिता आदि स्वजनों को धोखा देने लगते हैं और जो माता पिता का न हुआ वो किसी और का क्या होगा !इसलिए इसे प्यार कहना कतई ठीक नहीं होगा !बलात्कार भी एकपक्षीय प्यार का पागलपन ही तो है !
प्रेम ,मोह और लोभ के अंतर !
बेलेन्टाइन
के नाम पर सार्वजनिक जगहों पर चूमना चाटना कुत्ते बिल्लियों की तरह नंगपन
और बेशर्मी ओढ़ लेना कहाँ तक ठीक !ऐसे संबंधों में सम्मिलित जोड़ों की
सुरक्षा कैसे करे पुलिस जो सम्बन्ध ही धोखाधड़ी पर आधारित होते हैं उन्हें
कैसे और कब तक रखावे पुलिस !
समाज बेलेन्टाइन डे मनावे और पुलिस लट्ठ लिए इन्हें रखाते घूमे ! अब देश
में पुलिस के लिए बस इतना ही काम रह गया है क्या ? ये लैला मजनूँ
ऐय्याशी करते घूमें पुलिस इनके पीछे पीछे फिरै !आतंकी उपद्रव करें तो करते
रहें !
जिस देश में कन्याओं का पूजन बड़ी श्रद्धा पूर्वक किया जाता रहा हो एवं
जिसकी परंपरा में महिलाओं के सम्मान प्रतिष्ठा मान मर्यादा की रक्षा के
लिए कई बड़े बड़े युद्ध लड़े गए हैं वही देश कन्याओं एवं महिलाओं की सुरक्षा
पुलिस के सहारे छोड़कर खुद बेलेंटाइन डे मनावे और पुलिस से कहे हमें रखाइए
और हमसे बचा लीजिए देश की बहू बेटियाँ बच्चियाँ एवं महिलाएँ !कितना
आश्चर्य है !!! उनसे कौन पूछे कि आखिर पुलिस ही क्यों बचा ले ?क्या आपका इन
बहू बेटियों बच्चियों एवं महिलाओं से अपना कोई सम्बन्ध नहीं है आखिर आप
क्यों मौन हैं आपकी इस कायरता का राज क्या है ?
क्या आपने पहले भी कभी सुना था कि श्रद्धा पूर्वक कन्याओं का पूजन करने
वाला अपना सैद्धांतिक समाज अपनी ही बच्चियों को कालगर्ल कहे और वो सुनें
सहें कुछ न कहें! समाज का बलात्कारी वर्ग जैसी वेष भूषा में उन्हें रखना
चाहता हो वैसे ही रहें ! इतना ही नहीं उन्हीं कन्याओं को और भी ऐसे ही
नामों से पुकारा जाए जैसे कालगर्ल, अकालगर्ल, मेट्रोगर्ल, पार्कगर्ल,
पार्किंगगर्ल, झाड़ीगर्ल, जंगलगर्ल आदि और भी जो गर्ल हो सकती हैं वे सब !ये
सब वही कन्याएँ हैं क्या जिन्हें भारत कभी पूजा करता था इन्हीं के पीछे
क्या ऐसे ही नामों वाले ब्वायज पड़े हुए हैं क्या ?उन्हें रोकने का हमारे
पास कोई उपाय नहीं है क्या ?
इस कन्या पूजन वाले देश में यह क्या हो रहा है?कईबार डांस बार,या और तरीके
की जगहों पर छापा पड़ते टी.वी.चैनलों पर देखा जाता है।जब इतनी छोटी छोटी
सँकरी,अँधेरी, गंदी जगहों से लड़कियाँ निकाली जाती हैं जहाँ कुत्ते बिल्ली
भी नहीं रह सकते।यह माना जा सकता है कि कुछ जगहों पर वो बलपूर्वक ले जाई गई
हों जहाँ उनका दोष न होता हो किन्तु उन जगहों की भी कमी नहीं है जहाँ इसे
धंधा मानकर व्यापारिक दृष्टि से आपसी सहमति पूर्वक चलाया जा रहा होता
है।उसमें सम्मिलित सभी को सैलरी मिलती है।ऐसे ब्यभिचारिक अड्डों को भी
फैक्ट्री और ऑफिस जैसे नामों से संबोधित किया जाता है।ऐसे अड्डों से या इसी
प्रकार के और भी घिनौने कार्यों से किसी भी रूप में किसी भी उम्र में
सम्मिलित रह चुके लोग हर उम्र में ऐसे ब्यभिचारों का समर्थन करते दिखते हैं
एवं इसमें सम्मिलित लोगों की बातों ब्यवहारों का समर्थन करते करते उसी में
सम्मिलित हो लेते हैं। बहुत ऐसे सफेदपोश लोग ऐसे ही कुकृत्यों से पोल
खुलने पर पूरे पूरे मटुक नाथ बनकर निकलते हैं।
ऐसे भटके हुए मटुक नाथ लोग बार बार विदेशों के उदाहरण देते हैं आखिर
क्यों?विदेश तो विदेश है और स्वदेश स्वदेश! वहाँ उनको वैसा अच्छा लगता है
वो उनकी संस्कृति है यहाँ वैसा नहीं अच्छा लगता है ये अपनी संस्कृति
है।यहाँ के सारे लोगों को विदेशों में घुमाया नहीं जा सकता है वहाँ के सारे
लोगों को यहाँ लाया नहीं जा सकता है।अगर वहाँ घूमकर आए लोग यहाँ वालों पर
अपना अनुभव ऐसे ही थोपेंगे तो ये सब्जी या नमक में चीनी मिलाना भारत के आम
आदमियों के साथ कहाँ का न्याय है?
कुछ लोगों को छोड़कर यहाँ का गरीब या रईस आम आदमी किसी भी जाति,समुदाय,
संप्रदाय से जुड़ा हो वह अपने प्राचीन संस्कारों पर आज भी गर्व करता
है।उन्हें ही उसने देखा है और उसी में वह जिया भी है। बात अलग है कि कुछ
लोग जैसे विदेशों की दुर्गन्ध स्वदेश में फैला रहे हैं उसी प्रकार से कुछ
शहरों में घूम चुके लोग अपनी दुर्गन्ध वहाँ गाँवों में भी फैला रहे
हैं।गाँवों में भी शहरों के ही कुछ लोगों की तरह ही ऐसे बिना पेंदी के लोटे
तैयार होने लगे हैं किन्तु गाँवों में लोगों के पास समय है वो आपसी बात
ब्यवहार से ऐसे बदबूदार लोगों का बहिष्कार कर लेते हैं और खुश हो जाते
हैं।वहाँ लोग बेशर्मी करके नहीं जी सकते क्योंकि उनके घर और खेत आदि इतनी
आसानी से बदले नहीं जा सकते।उन्हें कई कई पीढ़ियाँ एक एक जगह ही बितानी पड़ती
हैं जिसकी बेटी-बहन ने प्रेम या प्रेम विवाह कर लिया होता है उसके दूसरे
बेटा बेटियों के विवाह आदि काम काज होने मुश्किल हो जाते हैं।समाज के कितने
ताने सुनने सहने होते हैं उन्हें? कितनी सभा सोसायटियों से किया जा चुका
होता है उनका बहिष्कार ?उनकी पीड़ा वही जानते हैं और जितना वो जानते हैं उसी
में वो जी भी लेते हैं।
जिसकी बेटी-बहन ने प्रेम या प्रेम विवाह कर लिया होता है उनका गाँवों में
रह पाना बहुत कठिन हो जाता है वो मजबूरी में शहरों की ओर भाग खड़े होते हैं
शहर वाले बढ़ती जनसंख्या के लिए उन्हें दोषी ठहरावें तो ठहरावें।आखिर कहाँ
जाएँ वे?जिनके युवा होते बच्चों ने गाँवों में आधे अधूरे कपड़े पहन कर
लड़कियों या महिलाओं को रहते नहीं देखा है वो शहरों में ऐसा सब कुछ देख कर
पागल हो उठते हैं फिर वो डायरेक्ट बेलेंटाइन डे मनाने लगते हैं।बड़ी बड़ी
बसों ट्रेनों कारों में घुस घुस कर जबर्दश्ती बड़ी बुरी तरह से मनाते हैं
बेलेंटाइन डे।चोट जिसके लगे घावों का एहसास उसे हो उनकी गंभीरता उसे पता
हो जिसे इलाज करना हो।उनकी पीड़ा का अनुभव वह करेगा जिसके हृदय हो किन्तु
जो गया ही बेलेंटाइन डे मनाने हो उसे क्या लेना देना इन दकियानूसी बातों
से? कोई मरे तो मरे उसको तो अपने बेलेंटाइन डे से मतलब!क्या कहा जाए किसी
को? सबको अपनी अपनी पड़ी है।
जिनका विदेशों में जाना आना है वो वहाँ जो देखकर आते हैं उसे बताने की
उन्हें भी ऐसी खुजली उठती है कि वो यहाँ बताए या जताए बिना रहते नहीं आखिर
विदेश घूम कर जो आए हैं। केवल बेलेंटाइन डे मना लेने से यह देश अमेरिका की
तरह समृद्ध हो जाएगा क्या ?या आधे चौथाई कपड़े पहनकर क्या सम्पन्नता लौट
आएगी और लोग शिक्षित और आधुनिक समझे जाएँगे?क्या इससे महिला पुरुषों के
अधिकारों की रक्षा हो जाएगी? और यदि यही है तो सभी लोग पहले बिना कपड़े पहने
रहें फिर पुलिस उन्हें रखाती घूमे इतने पर भी पुलिस को दोषी ठहराया
जाए।ऐसे तो पुलिस बस यही कर पाएगी बाकी सारे अपराधियों से कौन निपटेगा
?हाँ,बेलेंटाइन डे जरूर ऐसा हो जाएगा कि लोग देखते रह जाएँगे।
यदि
विदेश घुमक्कणों को इतनी ही शौक थी कि हमारे देश में भी बेलेंटाइन डे
धूम धाम से मनाया जाए तो वहाँ से कोई ऐसा रास्ता खोज कर लाते ताकि भारत के
आम आदमी की आर्थिक स्थिति भी सुधरती उससे गरीबों के बच्चों का बौद्धिक,
शैक्षणिक,सामाजिक आदि स्तर भी सुधरता सोच उन्नत होती,महँगे कपड़ों में क्रीम
पाउडर आदि लगाकर ये भी महँगी कारों में दन दनाते घूमते तो बसों ट्रेनों पर
क्यों झपटते? इन्हें देखकर भी आधुनिक लड़के लड़कियाँ लव लवाते इनके साथ
भी बेलेंटाइन डे मनाते।ऐसा तो किया नहीं विदेश घुमक्कणों ने जो धन कमाकर
लाए वो तो अपने और अपने बच्चों के लिए और जो वहाँ के कुसंस्कारों की सड़ांध
लाए वो सारे देश में फैला दी।बिना शिर पैर की
फोकट
की बकवास तो कोई भी कर सकता है बिना पैसों के उसे हकीकत में बदल पाना
कितना कठिन होता है ये उन्हें ही पता होता है जिन पर बीतती है।जिन्हें दो
टाइम का भोजन मुश्किल हो वो कैसे कहाँ और किससे मनाएँ बेलेंटाइन डे? ऐसे
जिन गरीबों को बेलेंटाइन डे की बहुत जल्दी है वो कहीं किसी पर भी झपट रहे
हैं और डायरेक्ट मना रहे हैं बेलेंटाइन डे।जिनको थोड़ी समाई है वो
चोरी,चकारी, चैनचोरी, अपहरण फिरौती आदि से धन इकट्ठा करके नियमानुशार
मनाते हैं बेलेंटाइन डे।आखिर गरीब आदमी मेहनत से तो दाल रोटी ही कमा ले वही
बहुत बड़ी बात है।बाकी बेलेंटाइन डे के लिए तो ऊपरी पैसा तो चाहिए ही ।
जहाँ तक प्रेम या प्रेम विवाहों की बात है शहरों की तरह उनके पास पैसे नहीं
होते कि वो किसी भी प्रकार की बदनामी होने पर अपना मकान दुकान बेंचकर किसी
नई या अपरिचित जगह चले जाएँ और हाथ में रिमोट लेकर टी.वी.चैनल बदल बदल कर
अंधे बहरों की तरह जीना शुरू कर दें सुबह शाम कथा कीर्तन में सहभागी बनकर
धार्मिकता का लबादा ओढ़े रहें।तथाकथित सत्संगों में बढ़ रही भीड़ इसी भावना से
इकट्ठी हो रही है अन्यथा यदि इतने लोग धार्मिक होते तो देश और समाज की दशा
ही कुछ और होती!जो माता पिता संघर्ष पूर्वक, समर्पण पूर्वक, स्नेह पूर्वक
पाल पोष कर अपने बच्चों को बड़ा करते हैं उनके हर उत्सव,उन्नति,सुख, दुःख
आदि में अपने को सीमित कर लेते हैं विवाह आदि के लिए के लिए भी तमाम तरह
के सपने सजाए होते हैं।ऐसे नित्य नमन करने योग्य उन समर्पित माता पिता को
अपने माता पिता पद से सस्पेंड करके जो नवजवान अपनी सेक्सी समझदारी के भरोसे
अपने को संतान पद से पदच्युत करके पुरुष या पति -पत्नी ,प्रेमी-प्रेमिका
आदि पद पर प्रतिष्ठित करते हैं।काश,उन्हें भी माता पिता की पीड़ा का हो
पाता अहसास !जिसकी घुटन में उन्हें बितानी होती है सारी जिंदगी।
अगर
किसी कूड़े दान के पास लड़के बुलाते हैं तो लड़कियाँ पहुँचती भी हैं वहाँ
आखिर क्यों? झाड़ी, जंगल, पार्क ,पार्किंग आदि किसी भी स्थल पर लड़के बुला
लेते हैं लड़कियाँ आसानी से चली जाती हैं।वो लिपटा रहे होते हैं वो लिपट रही
होती हैं।जिन लड़कों की ईच्छा का वे इतना सम्मान करती हैं यदि उन लड़कों की
शादी हो जाती है या उन दोनों में किसी एक को कोई और उससे अच्छा मिल जाता
है तो वो उसके हो जाते हैं किन्तु इनमें जिसके साथ छल हुआ होता है उसे
कितनी तकलीफ होती है ये उसी की आत्मा जानती है ।ऐसे लड़के लड़कियों को न जाने
क्या क्या सुनना सहना पड़ता है कितना अपमानित होना पड़ता है अपने आप से घृणा
होने लगती है।
प्रेम कभी भी इतना दुःखदाई नहीं हो सकता है यह तो बासना है जो हमेशा ही
दुःख देती है।विदेश का एक समाचार नेट पर पढ़ रहा था कि किसी ऐसे ही तथाकथित
प्रेमी ने अपनी प्रेमिका को बुलाया था किन्तु किसी कारण से वह नहीं आ सकी
तो उसने घोड़ी के साथ सेक्स किया।
जब गर्लफ्रेंड नहीं आई तो घोड़ी को बनाया हवस का शिकार
इस हेडिंग को अभी भी नेट पर देखा जा सकता है।
यह
लिखने का हमारा उद्देश्य मात्र इतना है कि प्रेमिका न आने का कोई अफसोस
नहीं हुआ उसका काम घोड़ी से चल गया।यह कैसा प्रेम ?प्रेम तो वह होता है कि
उसकी प्रेमिका से कितनी भी अधिक सुंदरी स्त्री के समर्पण को भी वो स्वीकार
न करता तो कुछ प्रेम कहा जा सकता था । आप स्वयं सोचिए कि किसी का अपना
लड़का कम सुन्दर भी तो वह प्रेम उसी से करता है किसी और के लड़के से नहीं ।
जिस प्रेमी के मन में प्रेमिका और घोड़ी की आवश्यकता लगभग एक समान हो
धिक्कार है ऐसे प्रेमी प्रेमिकाओं को जो केवल सेक्स के लिए जुड़ते हैं और
उसे प्रेम या प्यार कहते हैं।
लड़कियों के समर्पण का यह कितना बड़ा अपमान है फिर भी बेलेंटाइन डे !यह घोर
आश्चर्य का विषय है।यह तो विशुद्ध रूप से बासना अर्थात सेक्स ही है उसे
अपने संतोष के लिए कह कुछ भी लिया जाए!
शास्त्रों में वर्णन मिलता है कि एक कुत्ते के शिर में चोट लगने से घाव हो
गया है जिसमें कीड़े पड़ने से खुजली होती थी जिसे एक छोटे घड़े में शिर रगड़ कर
खुजलाते समय अचानक उसका शिर उस छोटे घड़े में जाकर फँस जाता है जो निकलता
नहीं है इतनी पीड़ा सहकर भी वह कुत्ता इस गलत फहमी में कुतिया का पीछा करना
नहीं छोड़ता है कि वह अपनी प्रेमिका के प्रेम में समर्पित है।जबकि सच यही
है कि वह प्रेम नहीं अपितु सेक्स की भूख मिटाने के लिए पागल है । घोड़ी और
प्रेमिका की समानता भी इस युग का उसी तरह का उदहारण है।
जो
पटने पटाने में सफल हो गए उनका तो बेलेंटाइन डे, जो नहीं सफल हुए उनका
बैलेंटाइन डे वही घोड़ी वाली परंपरा अर्थात बैलों की तरह जोड़े की तलाश में
जोर जबर्जस्ती करते घूमना फिर चाहे वह बस का कुकृत्य ही क्यों न हो ? आखिर
कहाँ है पवित्र प्रेम !
जब
से इस तथाकथित बेलेंटाइन डे प्रेम या प्रेम विवाह का प्रचलन बढ़ा तब से
महिलाओं का सम्मान भाषणों चर्चाओं में बढ़ रहा है किन्तु वास्तविकता में
घटता जा रहा है उन्हें पटने पटाने का प्रचार चल रहा है।भारतवर्ष में हमेंशा
से सम्मानित रही नारी का वजूद अब इतना रह गया है मात्र ?क्या उनका अपना
कोई सम्मान जनक स्थान नहीं होना चाहिए? उनकी सुरक्षा की तैयारियाँ चल रही
हैं।आखिर क्या दिक्कत है उन्हें?जब देश में सुरक्षा का वातावरण बनेगा तो
महिलाएँ भी सुरक्षित हो जाएँगी आखिर उन्हें समाज से अलग क्यों समझा जा रहा
है? आज प्रेम और प्रेम विवाहों के नाम पर सारी वर्जनाएँ टूटती जा रही
हैं।अब किसी भी रिश्ते की लड़की को पटाने के प्रयास होने लगते हैं जब मटुक
नाथ ने अपनी शिष्या को पटा लिया तब किस पर भरोसा किया जाए?कोई किसी को पटा
ले!एक विवाहिता स्त्री किसी के प्रेम जाल में फँसकर अपने पति एवं बच्चों को
छोड़ देती है।इसीप्रकार कोई विवाहित व्यक्ति किसी अन्य लड़की के चक्कर में
पड़कर अपनी शादी शुदा जिंदगी को तवाह कर लेता है बच्चे भटकते फिरने लगते हैं
।इसीप्रकार रास्तों में पार्कों, होटलों, आफिसों,स्कूलों आदि में प्यार
का खेल केवल इसी बल पर चल रहा होता है कि यदि बात आगे बढ़ जाएगी तो कोर्ट
में विवाह कर लेगें। बेशक वे लोग एक दूसरे को लव मैरिज के नाम पर धोखा ही
दे रहे हों किन्तु उस समय उन युवक युवतियों को एक दूसरे पर विश्वास करने के
अलावा कोई चारा नहीं होता है।लव और लव मैरिजों के नाम पर सबसे अपमान उन
दोनों के माता पिता का होता है जिन्होंने संस्कार सुधारने के नाम पर कि
कहीं बच्चे भटक न जाएँ इस लिए उन्हें प्यार व्यार के चक्कर में न पड़ने की
सलाह दी थी, जब वही लड़की बहू और दामाद बनकर उसी माता पिता के अपने ही घर
में खातिरदारी करा रहे होते हैं,और उन बूढ़ों का अपमान कर रहे होते हैं तो
क्या बीतती है उन पर ?
उस समय यदि युवकों को रोका न गया होता तो बस के बलात्कार कांड जैसे किसी
अपराध में फँसते तो वही सामाजिक खुले पन का समर्थक समाज उनके लिए फाँसी की
सजा माँगता! ऐसे युवकों के माता पिता आखिर क्या करें, उनका दोष आखिर क्या
है?जिन्हें आधुनिकता के नाम पर ये जलालत झेलने पर मजबूर होना पड़ता है ?
कई बार ऐसा भी देखा गया है कि किसी एक व्यक्ति के प्रेम जाल में फँसे
किसी युवती या युवक का सम्बन्ध किसी अन्य युवक या युवती से होने पर
सम्बंधित सभी युवक युवतियों का जीवन धार पर लगा होता है। अर्थात इसमें कौन
किसकी कब हत्या कर दे या किस पर तेजाब फेंक दे कहना बड़ा कठिन होता है। कई
बार ऐसे युवक युवतियों के परिवारजन भी ऐसे संबंधों के पक्ष या विरोध में
हिंसक रूप से उतर जाते हैं जिसमें वो संबधित लड़के के साथ साथ अपनी लड़की के
भी जीवन से खेल जाते हैं अर्थात उसे भी मार देते हैं।
महिलाओं की सुरक्षा के नाम पर अब बड़ी बड़ी बातें की जाने लगी हैं किन्तु
सुरक्षा किससे करनी है?जब इस बात पर विचार करना होता है तो सोचना पड़ता है
कि जो नपुंसक नहीं है ऐसे किसी भी व्यक्ति के हृदय समुद्र में कब किस लड़की
या स्त्री को देख कर तरंगे उठने लगें कब किस सुंदरी को देखकर संयम के तट
बंध टूट जाएँ और तरंगें ज्वार भाटा का रूप ले लें किसी को क्या पता ?इन
विषयों में किसी और पर कैसे विश्वास किया जाए?जब अपने मन का ही विश्वास
नहीं है।इसीलिए ऋषियों के द्वारा हजारों वर्ष तक ब्रह्मचर्य का अभ्यास करने
के बाद भी थोड़ी सी चूक में कब किसका मन किस पर आकृष्ट हो जाए कहना बहुत
कठिन है।कई बार किसी महिला का शील भंग करने वाले व्यक्ति को निजी तौर बहुत
आत्म ग्लानि होती है किन्तु अब वह अपने हृदय का भरोसा किसी को कैसे कराए ?
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