भूकंपों का संपूर्ण प्रकृति से संबंध - (समय विज्ञान 4)
ब्रह्मांड हो या शरीर इन दोनों का ही निर्माण पाँच तत्वों से हुआ है पृथ्वी ,जल ,अग्नि,वायु और आकाश ये पाँच ही हैं जिनके द्वारा इस सारे चराचर जगत की उत्पत्ति हुई है !सृष्टि में हुए सभी प्रकार के निर्माण कार्यों में इन पाँच तत्वों की उपस्थिति एवं इनका अनुपात निश्चित होता है उससे घट बढ़ नहीं सकता है अनावश्यक रूप से घटने बढ़ने पर उस तत्व से संबंधित विकार जागृत होने लग जाते हैं जिससे शरीरों में रोग होने लगते हैं और प्रकृति में प्राकृतिक दुर्घटनाएँ घटने लग जाती हैं !
इन पाँच में से किसी एक में विकार आने का मतलब होता है पाँचों का विकारवान हो जाना !जैसे किसी चार पाई का एक पावा यदि गड्ढे में हो तो बाकी तीन पावे बराबर पर रखे हों तो भी वो तीनों चार पाई को सँभालकर नहीं रख सकते !ठीक इसी प्रकार से किसी कुर्सी का एक पावा यदि गड्ढे में पड़ जाए तो उन तीनों का भी संतुलन बिगड़ जाता है !इसी प्रकार से पञ्च तत्वों में से किसी एक में विकार आ जाएँ तो पाँचों विकारित हो जाते हैं !इसमें विष रूप से अग्नि वायु और जल में ये सक्रियता अधिक देखी जा सकती है|
प्रकृति का सिद्धांत है कि दो परस्पर विरोधी चीजों में से एक चीज बढ़ेगी तो दूसरी घटेगी ही इसलिए जो चीज जहाँ बढ़ या घट रही होती है उसका विरोधी गुण स्वभाव आकार प्रकार आदि वहीं उसके विरुद्ध बढ़ या घट रहा होता है | इसलिए किसी वस्तु की वृद्धि का ठीक ठीक अध्ययन करने के लिए उसकी विलोम वस्तु गुण स्वभाव आदि के ह्रास का भी मूल्यांकन करना उससे कम आवश्यक नहीं होता है |
इसी सिद्धांत से धरती पर आने वाली भूकंप आदि आपदाओं के लिए धरती का तो अध्ययन होना ही चाहिए इसके साथ ही धरती के विलोम आकाश की भी तलाशी ली जानी चाहिए !भूकंप आने के कुछ समय(महीने) पहले से धरती पर प्राकृतिक दृष्टि से क्या चल रहा था मनुष्यों पशुओं अन्य जीवों एवं वृक्षों और बनस्पतियों में लगभग 60 दिन पहले से कैसे कैसे बारीक बदलाव अचानक देखने को मिलने लगे थे!सामूहिक रूप से कैसी बीमारियाँ अचानक प्रकट होने लगी थीं विभिन्न वर्ग एवं व्यवसाय से संबंधित लोगों के स्वभावों में किस किस प्रकार के बदलाव देखे जाने लगे थे |विभिन्न प्रजाति के पशुओं पक्षियों एवं जीव जंतुओं में किस किस प्रकार के आचार व्यवहार एवं परिवर्तन दिखने लगे थे | भूकंप पीड़ित क्षेत्र में कोई अपशकुन दिखने लगे थे क्या ? हवाओं का रुख कैसा था आकाश की ओर देखने से कोई विशेष बदलाव दिखने लगे थे क्या ?
भूकंप बनने से प्रकृतिसात होने तक में सामान्यतौर पर एक वर्ष तो लग ही जाता है भूकंप घटित होने के 6 महीने पहले से लेकर 6 महीने बाद तक किंतु ये प्रकृति की अत्यंत सूक्ष्म प्रक्रिया होती है सामान्य रूप से इसके सूक्ष्म लक्षणों का संग्रह करके उनका अध्ययन करना अत्यंत कठिन होता है क्योंकि इसके अध्ययन के लिए अनेकों प्रकार के संसाधनों सहयोगियों की आवश्यकता होती है दूसरा ऐसे भूकंपों लक्षण तीव्र गति से आने वाले भूकंपों में विशेष अनुभव किए जा सकते हैं सामान्य भूकंपों में इनकी परख कर पाना अत्यंत कठिन होता है इसलिए भूकंप निर्माण की दूसरी समयावधि पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए जिसमें एक भूकंप लगभग 75 दिनों में बनकर तैयार होता है इसके बनने की प्रक्रिया आरोही क्रम में होती है इसके बाद वो विस्फोट करता है विस्फोटन के बाद उस भूकंपीय घटक द्रव्यों के भग्नावशेष उस भूकंप पीड़ित भूभाग को 45 से 50 दिन तक पीड़ित करते हैं ये उस भूकंप के अवरोही क्रम से पिघलने अर्थात प्रकृति में पुनः सहज सम्मिलित हो जाने की स्वाभाविक प्रक्रिया है इतना समय तो लग ही जाता है कुल मिलाकर एक भूकंप के बनने से लेकर प्रकृतिसात होने तक की संपूर्ण प्रक्रिया में लगभग 110 दिन से लेकर 120 दिन तक लग जाते हैं | भूकंप बनने से लेकर प्रकृतिसात होने तक की संपूर्ण प्रक्रिया चक्रवात की तरह होती है जो इसी वायु मंडल से गुप्त रूप से वायु संचय करके और इसी वायु मंडल में बिलीन हो जाता है |
जैसे नदी के बाढ़ के दिनों में जल में पड़ने वाली भँवर वहीँ से जल संग्रह करती है वहीँ घूमती है इसके बाद वहीँ उसी जल में मिल जाती है | यही भूकंप के निर्माण से लेकर प्रकृतिसात होने की प्रक्रिया है |
जैसे शरीर में एक ब्रण बनता है फिर बिना फूटे अंदर ही अंदर पिघल कर माँस में मिल फोड़ा जैसे इसी वायु
आकाशीय परिस्थितियाँ कैसी बनी या बिगड़ी थीं ग्रहों नक्षत्रों के आकार प्रकार रंग रूप में क्या कोई बदलाव हुए थे ! चाल युति आदि ज्योतिष प्रक्रियाओं का भी पूर्ण अध्ययन किया जाना चाहिए
बाक़ी दो तो कम सक्रिय होते हैं
इन पाँच में से किसी एक में विकार आने का मतलब होता है पाँचों का विकारवान हो जाना !जैसे किसी चार पाई का एक पावा यदि गड्ढे में हो तो बाकी तीन पावे बराबर पर रखे हों तो भी वो तीनों चार पाई को सँभालकर नहीं रख सकते !ठीक इसी प्रकार से किसी कुर्सी का एक पावा यदि गड्ढे में पड़ जाए तो उन तीनों का भी संतुलन बिगड़ जाता है !इसी प्रकार से पञ्च तत्वों में से किसी एक में विकार आ जाएँ तो पाँचों विकारित हो जाते हैं !इसमें विष रूप से अग्नि वायु और जल में ये सक्रियता अधिक देखी जा सकती है|
प्रकृति का सिद्धांत है कि दो परस्पर विरोधी चीजों में से एक चीज बढ़ेगी तो दूसरी घटेगी ही इसलिए जो चीज जहाँ बढ़ या घट रही होती है उसका विरोधी गुण स्वभाव आकार प्रकार आदि वहीं उसके विरुद्ध बढ़ या घट रहा होता है | इसलिए किसी वस्तु की वृद्धि का ठीक ठीक अध्ययन करने के लिए उसकी विलोम वस्तु गुण स्वभाव आदि के ह्रास का भी मूल्यांकन करना उससे कम आवश्यक नहीं होता है |
इसी सिद्धांत से धरती पर आने वाली भूकंप आदि आपदाओं के लिए धरती का तो अध्ययन होना ही चाहिए इसके साथ ही धरती के विलोम आकाश की भी तलाशी ली जानी चाहिए !भूकंप आने के कुछ समय(महीने) पहले से धरती पर प्राकृतिक दृष्टि से क्या चल रहा था मनुष्यों पशुओं अन्य जीवों एवं वृक्षों और बनस्पतियों में लगभग 60 दिन पहले से कैसे कैसे बारीक बदलाव अचानक देखने को मिलने लगे थे!सामूहिक रूप से कैसी बीमारियाँ अचानक प्रकट होने लगी थीं विभिन्न वर्ग एवं व्यवसाय से संबंधित लोगों के स्वभावों में किस किस प्रकार के बदलाव देखे जाने लगे थे |विभिन्न प्रजाति के पशुओं पक्षियों एवं जीव जंतुओं में किस किस प्रकार के आचार व्यवहार एवं परिवर्तन दिखने लगे थे | भूकंप पीड़ित क्षेत्र में कोई अपशकुन दिखने लगे थे क्या ? हवाओं का रुख कैसा था आकाश की ओर देखने से कोई विशेष बदलाव दिखने लगे थे क्या ?
भूकंप बनने से प्रकृतिसात होने तक में सामान्यतौर पर एक वर्ष तो लग ही जाता है भूकंप घटित होने के 6 महीने पहले से लेकर 6 महीने बाद तक किंतु ये प्रकृति की अत्यंत सूक्ष्म प्रक्रिया होती है सामान्य रूप से इसके सूक्ष्म लक्षणों का संग्रह करके उनका अध्ययन करना अत्यंत कठिन होता है क्योंकि इसके अध्ययन के लिए अनेकों प्रकार के संसाधनों सहयोगियों की आवश्यकता होती है दूसरा ऐसे भूकंपों लक्षण तीव्र गति से आने वाले भूकंपों में विशेष अनुभव किए जा सकते हैं सामान्य भूकंपों में इनकी परख कर पाना अत्यंत कठिन होता है इसलिए भूकंप निर्माण की दूसरी समयावधि पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए जिसमें एक भूकंप लगभग 75 दिनों में बनकर तैयार होता है इसके बनने की प्रक्रिया आरोही क्रम में होती है इसके बाद वो विस्फोट करता है विस्फोटन के बाद उस भूकंपीय घटक द्रव्यों के भग्नावशेष उस भूकंप पीड़ित भूभाग को 45 से 50 दिन तक पीड़ित करते हैं ये उस भूकंप के अवरोही क्रम से पिघलने अर्थात प्रकृति में पुनः सहज सम्मिलित हो जाने की स्वाभाविक प्रक्रिया है इतना समय तो लग ही जाता है कुल मिलाकर एक भूकंप के बनने से लेकर प्रकृतिसात होने तक की संपूर्ण प्रक्रिया में लगभग 110 दिन से लेकर 120 दिन तक लग जाते हैं | भूकंप बनने से लेकर प्रकृतिसात होने तक की संपूर्ण प्रक्रिया चक्रवात की तरह होती है जो इसी वायु मंडल से गुप्त रूप से वायु संचय करके और इसी वायु मंडल में बिलीन हो जाता है |
जैसे नदी के बाढ़ के दिनों में जल में पड़ने वाली भँवर वहीँ से जल संग्रह करती है वहीँ घूमती है इसके बाद वहीँ उसी जल में मिल जाती है | यही भूकंप के निर्माण से लेकर प्रकृतिसात होने की प्रक्रिया है |
जैसे शरीर में एक ब्रण बनता है फिर बिना फूटे अंदर ही अंदर पिघल कर माँस में मिल फोड़ा जैसे इसी वायु
आकाशीय परिस्थितियाँ कैसी बनी या बिगड़ी थीं ग्रहों नक्षत्रों के आकार प्रकार रंग रूप में क्या कोई बदलाव हुए थे ! चाल युति आदि ज्योतिष प्रक्रियाओं का भी पूर्ण अध्ययन किया जाना चाहिए
बाक़ी दो तो कम सक्रिय होते हैं
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