Wednesday, 4 October 2017

प्रधानमंत्रीजी ! अफसर योग्य नहीं हैं या ईमानदार नहीं हैं या फिर सरकार केअयोग्य नेताओं को अफसरों से काम लेने की समझ नहीं है ?

अधिकारी कर्मचारी  जितने पढ़े लिखे होते हैं नेता लोग उतना पढ़े लिखे तो प्रायः नहीं होते हैं !साइन करने तक की अकल तो अधिकारी कर्मचारी सिखाते हैं वो उनसे गुर्रा कर बात करेंगे तो वो उन्हें फँसा देंगे किसी उलटे सीधे केस  में साइन करना  तो उन्होंने ही सिखाया होता है उन्हें नेता जी की बौद्धिक औकात पता होती है !
     सरकारी या निगम के मुकदमे हारने के लिए जिम्मेदार अफसर या तो योग्य नहीं हैं या फिर ईमानदार नहीं हैं उनसे काम न ले पाने वाले पार्षद आदि जनप्रतिनिधियों  में उनसे काम लेने की या तो शैक्षणिक योग्यता नहीं होती या फिर उस घूस से कमाई के खेल में खुद भी सम्मिलित होते हैं !अन्यथा ईमानदार चरित्रवान कर्मठ पार्षदों अधिकारियों कर्मचारियों को अपने अपने पदों की यदि थोड़ी भी लज्जा होती तो वो कम से कम इतना तो करते कि जिन अधिकारियों कर्मचारियों के कार्यकाल में जहाँ कहीं जो भी अवैध निर्माण हुए हैं या अवैध काम करने दिए गए हैं सबसे पहले उन अधिकारियों कर्मचारियों को पकड़ा जाता ! उन्होंने घूस लिए बिना तो अवैध काम करने ही नहीं दिए होंगे और यदि करने दिए तो क्यों सरकार उन्हें इसीलिए सैलरी दे रही थी क्या ?कि वो अपने कर्तव्य का पालन ही न करें !सरकारों में यदि थोड़ी भी नैतिकता बची हो तो बेकार की बकवास करने की अपेक्षा काम से काम जरूरी काम तो कर ही लें !इसलिए ऐसे भ्रष्ट  अधिकारी कर्मचारी यदि रिटायर भी हो चुके हों तो भी उनकी संपत्तियों से उन्हें आज तक दी गई सैलरी वसूली जाए उससे जनहित के विकास कार्य किए जाएँ !
    जनता का एक एक पैसा खून पसीने की कमाई से आता है वो अपने बच्चों का पेट काट कर कितनी मुशीबत में टैक्स चुकाती है ईमानदार सेवाएँ देना यदि सरकार के बश का ही नहीं है तो सरकार टैक्स लेती ही क्यों है ?
    सरकार और सरकारों में सम्मिलित नेताओं को अपनी शैक्षणिक अयोग्यता के कारण अधिकारियों कर्मचारियों से काम लेना नहीं आता है तो इसमें जनता का क्या दोष !या जनप्रतिनिधि लोग भी यदि उन्हीं अधिकारियों कर्मचारियों के द्वारा ली जाने वाली घूस में अपना भी हिस्सा लगवा लेते हैं तो वो जनता का साथ कैसे दे देंगे !
    अवैध कब्जों एवं नियम विरुद्ध काम काज को संरक्षण देने वाले!अधिकारियों कर्मचारियों पर सबसे पहले कार्यवाही की जाए सरकार यदि ईमानदार है तो उचित है कि जिनके कार्यकाल में अवैध कब्जे हुए हैं उन्हें आज तक दी गई सैलरी उनसे वसूले सरकार और उससे देश का विकास करे !
    सरकारों में सम्मिलित नेता लोग और अधिकारी कर्मचारी उस पैसे से गुलछर्रे उड़ाते जहाजों पर चढ़कर दुनियाँ घूमते रहते हैं !जो देश में कुछ नहीं कर सके वे विदेश में क्या कर लेंगे !जो सरकारी विभागों का भ्रष्टाचार नहीं साफ कर सके उनके द्वारा स्वच्छता की बात करना ही बेमानी है !
    

निगम के अफसर मुकदमें हार क्यों जाते हैं ?हारने में कमाई होती है जीतने से क्या मिलेगा ?सरकारी विभागों में प्राइवेट काम ज्यादा ईमानदारी से होता है !

अफसरों को ईमानदार और कर्मठ बनाना चाहती है सरकार या केवल ऐसा बोलकर दिखाना चाहती है ? 
    निगम के अफसर विरोधी पार्टी से घूस लेकर हार जाते हैं निगम के मुकदमें ! अफसर योग्य नहीं हैं तो उन्हें सैलरी क्यों देते हैं और ईमानदार नहीं हैं तो उन्हें रखे क्यों हैं ?
    अवैध कब्जे करने वालों से या नियम विरुद्ध काम करने वालों से पहले ही इतनी घूस ले कर कमिटमेंट कर चुके होते हैं कि ये मुकदमा हम हार जाएंगे तुम जीत जाओगे तो तुम्हारा बड़ा लाभ हो जाएगा और हमें तो सैलरी मिलती ही रहेगी मेरा कोई नुक्सान नहीं होगा ?मुक़दमा हारने के लिए पैसे पहले ही तय हो जाते हैं !
     अवैध कब्जे करने वालों या  नियम विरुद्ध काम करने वालों के खिलाफ जो शिकायत करता है दबंगों को उसकी सूचना देकर पहले तो इतनी कुटाई करवा दी जाती है ताकि वो शिकायत करने लायक बचे ही न !अगर कोई ज्यादा अड़ियल और जोरदार हुआ तो उसकी शिकायत पर नोटिश दे दी जाती है और दबंगों को कह दिया जाता है कि तुम कोर्ट से स्टे ले लो !इसके बाद निगम के घूस खोर या अयोग्य लोग ऐसे केसों में पैरवी ही नहीं करते हैं स्टे आगे बढ़ता  चला जाता  हैं बाद में मुकदमा हर जाते हैं निगम के अधिकारी कर्मचारी वकील आदि इससे उनका कोई नुक्सान नहीं होता है उन्हें तो सैलरी मिलती ही है और दबंगों का फायदा हो जाता है जब ज्यादा भद्द पिटने लगती है तब बड़े अधिकारियों को आता है होश और वो ईमानदार दिखने के लिए आनन फानन में कुछ मीटिंगें कर डालते हैं कुछ बयान जारी कर देते हैं किंतु प्रश्न ये उठता है कि ये होश उन बड़े अधिकारियों को पहले क्यों नहीं आता है जिस काम के लिए सरकार उन्हें सैलरी दे रही थी उन्होंने लापरवाही क्यों की ?PM साहब  !ऐसे लापरवाह अफसरों को दूध का धुला कैसे मान लिया जाए ?
       जब कोई जन प्रतिनिधि पार्षद जोन चेयरमैन मेयर आदि उनके भ्रष्टाचार पर शिकंजा कसने के लिए का दबाव देता है तो उसी की पार्टी या संगठन के लोगों की कमियाँ खोजने निकल पड़ते हैं किसी की फैक्ट्री सील करेंगे किसी का छज्जा तोड़ देंगे किसी को नोटिश पकड़ा आएँगे ऐसे ईमानदार का पराक्रम दिखते हैं वे सभी पदाधिकारी अपने जनप्रतिधि के पास पहुँचते अपना अपना रोना धोना लेकर !वो पार्षद चेयर मैन  मेयर आदि अपने अधिकारियों कर्मचारियों को तालाब करता है और उन्हें डराता धमकाता है तो वो साफ साफ कह देते हैं कि शक्ति करने के लिए आपने ही तो कहा था फिर वो जन प्रतिनिधि उन अधिकारियों कर्मचारियों के सामने गिड़गिड़ाता है !भैया मुझ पर रहम करो ये वो लोग हैं जिन्होंने मुझे चुनाव की टिकट दिलवाई थी पार्षद बनवाया है चेयरमैन बनवाया है मेयर बनवाया है इन पर कार्यवाही करोगे तो मैं कितने दिन रह पाऊँगा इस कुर्सी पर !मुझ पर दया करो !मैं कहो तुम्हारे पैर पकड़ लूँ ऐसा कहकर बेचारा रोने लगता है तब अधिकारी कर्मचारी  उसे गले लगाकर पूछते हैं मैं कोई न कोई रास्ता तो निकाल ही लूँगा !लेकिन तुम पहले बताओ ऐसी हरकतें दोबारा तो नहीं करोगे दोबारा की तो ऐसे ऐसे मामलों में फँसाऊँगा कि तेरे पुरखे भी याद रखेंगे !भूल जाएगा पार्षद जोनचेयरमैन मेयर आदि बनना !मैं चहुँ तो तेरी राजनैतिक जिंदगी बर्बाद कर सकता हूँ याद रखियो इसके बाद अपनी औकात भूलियो मत !
    ऐसी शक्त हिदायत सुनकर वो बेचारा अशिक्षित या अल्पशिक्षित जनप्रतिनिधि अपने से अधिक पढ़े लिखे अधिकारियों कर्मचारियों की धमकी सुनकर इतना ज्यादा घबड़ा जाता है कि इसके बाद वो बेचारा जन प्रतिनिधि उन्हीं अधिकारियों कर्मचारियों की आज्ञा का पालन करने लगता है वो अपनी हर असफलता के लिए विरोधी पार्टी के नेताओं को ही कोसता रहता है इसके अलावा  बस वही कहने और करने लगता है जितना अधिकारी कर्मचारी उसे अनुमति देते हैं !घूस खोरी से हुई कमाई का हिस्सा उसके पास भी पहुँचने लगता है धीरे धीरे भ्रष्टाचार की सारी  सेटिंग में वो भी फिट बैठ जाता है  !
      इसके पहले भ्रष्टाचार के विरुद्ध खूब बोलते सुना जाता है बड़े बड़े भाषण बड़ी बड़ी ईमानदारी की बातें किंतु किंतु भ्रष्टाचार की कमाई के अन्न से बनी हुई रोटियाँ एक बार कहते ही वो इतना भ्रष्ट बेईमान निकम्मा नकारा आदि सब कुछ हो जाता है किंतु खुद तो भ्रष्टाचार पर कुछ बोलता ही नहीं है पत्रकार लोग भले ही माइक का टुकड़ा उसके मुख में घुसाकर लीवर तक फँसा दें किंतु वो कुछ बोलेगा ही नहीं कोई कैसी भी शिकायत करे उसका पहले तो जवाब नहीं देगा और यदि देगा तोकान में कहेगा ये सारा सिस्टम ही भ्रष्ट है यहाँ से तो कुछ होगा नहीं इसलिए तुम अपने हो तुम्हे अच्छी सलाह देना हमारा धर्म है तुम कोर्ट चले जाओ एक वकील कर लो फैसला हो जाएगा !ऐसे हमारे यहाँ के घूसखोर अधिकारी कर्मचारी तुम्हें लूटते रहेंगे तुम कब तक चक्कर काटोगे एक दिन थकहार कर चुप बैठ जाओगे !
      आपको पता ही है कि अपना कानून ईमानदार लोगों का साथ नहीं देता है इसीलिए ईमानदार और मेहनती लोगों को सरकारी व्यवस्था  आरक्षण आदि लगाकर या तो पढ़ने नहीं देती है और यदि पढ़ भी जाएं तो उन्हें नौकरी नहीं मिलने देती हैं क्योंकि वे न घूस दे सकते हैं न उनके पास सोर्स होता है ऐसे लोग ईमानदारी दिखने के लिए औरों को भी  नहीं लेने देते इस लिए ईमानदारों को नौकरी देकर सरकार पंगा ही क्यों ले बेकार औरों के भी पेट में लात मारते हैं ऐसे आत्मघाती लोग !
        ये बातें चल ही रही थीं कि अचानक एक आदमी आया और बोला हमारी गली में झाड़ू नहीं लगती न नालियाँ साफ होती हैं कोई सफाई वाला आता ही नहीं है !तो उस बरिष्ठ पदाधिकारी ने कहा ये बात अपने परधानमंत्री से जाकर कहो जिन्होंने सफाई कर्मियों को छुट्टी दिलवाई है मैंने कहा वे  सफाई की बात करते हैं वो क्यों छुट्टी करवाएँगे !इस पर उस  जनप्रतिनिधि ने कहा कि जबसे स्वच्छता अभियान की शुरुआत हुई तब से नेता लोग झाड़ू ले लेकर निकलने लगे इससे मार्किट में झाड़ू की शार्टेज हो गई !वो तो झाड़ू पकड़ कर फोटो खिंचवाकर अपने घर में झाड़ू रख देते हैं और सफाई कर्मी बेचारे साफ किया करते थे नाम नेताओं का होता था !इसलिए सफाई कर्मी स्वच्छताअभियान के स्लोगन सुन सुन कर तंग हो गए थे अब वो हिल स्टेशनों में चले गए हैं वो वहां से केवल सैलरी लेने आते हैं एक दो दिन धरना प्रदर्शन करते हैं फिर चले जाते हैं नेता लोग झाड़ू लगाते हैं किन्तु नेताओं को झाड़ू लगाना भी कहाँ आता है वो झाड़ू भी अगर लगा लेते होते तो घर वाले उन्हें नेता नहीं बनने देते थे किंतु वे घरों से निकले ही इसीलिए गए कि वे कुछ करने लायक नहीं थे या यूँ कहलिया जाए कि वे घरवालों के मतलब  के रहे ही नहीं थे और ऐसे अकर्मण्य लोगों को बाहर वाला कोई रखकर अपनी बेइज्जती क्यों करवावे !जब ये घर के रहे न घाट  के तो मजबूरी में नेता बन गए भ्रष्टाचार की कमाई और सुख सुविधाओं ने उनके धंधे को भी लोकप्रिय बना दिया !देश को आजादी मिल ही चुकी हैं अब वो लोग जैसे चाहें जहाँ से चाहें जितना चाहें इस देश को चर सकते हैं !
     नेताओं की कमाई में प्रायः ईमानदार आमदनी बहुत कम होती है साडी गलत और गंदे धंधों से जोड़ी गई अनाप शनाप संपत्ति होती है !इसके प्रमाण ये हैं कि नेता लोग प्रायः सामान्य परिवारों से आते हैं और प्रायः कम पढ़े लिखे होते हैं कम मेहनती होते हैं फूल टाइम राजनीति करते हैं व्यापार धंधा करने का समय नहीं होता नौकरी कोई देगा क्यों कुछ कर सकने की योग्यता नहीं होती !व्यापार करने के लिए पूँजी नहीं होती प्रायः झूठ बोलते रहने वाले इस वर्ग पर कोई भरोसा करता नहीं है !इसलिए कोई उधार भी नहीं डरता है ऐसे में इनके पास पूँजी जुटाने के दो ही विकल्प होते हैं या तो बाबा बनकर पतंजलि पीठ बनावें और कुछ वर्ष भीख माँगकर पूँजी जुटावें फिर व्यापार करना  शुरू करें !या फिर डाइरेक्ट नेता बन जाएँ और भ्रष्टाचार से खुली कमाई करें !
      इसीलिए प्रायः नेता लोग अपनी आमदनी एवं अकूत सम्पत्तियों के ईमानदार स्रोतों के विषय में बता नहीं पाते हैं और उनके रहस्य खोलने की कोई प्रधानमन्त्री भी कोशिश नहीं करता है वो कितना भी ईमानदार क्यों न हो !उसे भी लगता है कि ऐसे तो हमारी पार्टी ही अधिया जाएगी !खैर सरकारी नेताओं और अधिकारियों कर्मचारियों से ईश्वर रक्षा करे !ऐसे बवाली लोग यदि आपका काम न भी करें तो परेशान नहीं होना चाहिए !हमें तंग न करें इतना बहुत है वही इनकी सेवा समझ ली जानी चाहिए !ऐसे लोगों के विषय में ये सोचकर संतोष कर लेना चाहिए कि इतना बवाली वर्ग किसी न किसी धंधे से तो लगा है अन्यथा राजनीति न होती तो ये खुला अन्ना छूटा घूम रहे होते न जाने कहाँ किसको किस प्रकार से सता रहे होते !जहाँ कहीं होते वहां से अच्छी खबरों की उम्मींद तो नहीं ही करने चाहिए !दूरदर्शी पूर्वजों ने शायद इसीलिए सरकार और सरकारी अधिकारियों कर्मचारियों की परिकल्पना की हो !आखिर उन्हें तो सबके विषय में सोचना था कामचोर निठल्ले अकर्मण्य घूसखोर भ्रष्टाचारी लोगों के लिए भी तो कोई रोजी रोजगार खोजना ही था आखिर वो भी तो इसी देश के नागरिक हैं वो देश की आजादी भोग लें बाकी सारा देश परिश्रम करके ईमानदारी पूर्वक कमा खा लेगा !खूसटों का और उनके परिवारों का भी बोझ ढोता रहेगा ये देश !
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