Saturday, 27 January 2018

'शादी की सालगिरा' ही क्यों ? वैवाहिक जीवन में तनाव यदि इसीतरह बढ़ता रह तो मासगिरा साप्ताहगिरा दिनगिरा और घंटामिनट सेकेंड गिरा भी मनाई जाने लगें तो क्या आश्चर्य !

शादी की सालगिरा बिना मनाए ही मर गए होंगे कितने पुराने लोग !क्या उनके वैवाहिक जीवन में इतनी घुटन रहती थी ?या उन बेचारे पूर्वजों को इतना ज्ञान ही नहीं रहा होगा क्योंकि पुरानीसभ्यता में जीनेवाले हड़प्पा की खुदाई से निकले हुए वे लोग रहे होंगे शायद !!आखिर हम अपने को कितना ज्ञानवान और उन्हें कितना मूर्ख समझने की भूल निरंतर करते जा रहे हैं हम लोग !जिन्होंने हमें बंदरों की संतान बतायाउन अधेड़ों को विद्वान मानने की भूल !वारे हम वाह !!
     भारतीय संस्कृति में पहले पति पत्नी में इतना अधिक स्नेह होता था कि उसी ख़ुशी में पता ही नहीं चल पाता  था कि जिंदगी बीत कब गई इसलिए सारा जीवन ही एक साल से कम लगा करता था इसलिए वे लोग बेचारे सालगिरा मना ही नहीं पाए किंतु जबसे वैवाहिक जीवन में तनाव अविश्वास आदि बढ़ने लगा तबसे स्नेह दिखाना जरूरी समझा जाने लगा !
     अब तो जो जितने दिन साथ बिता लेता है वो उतने ही दिनों का उत्सव मना लेना चाहता उसे लगता है कि भविष्य का क्या भरोसा !काम से काम इस साल की फोटो तो साथ साथ बन ही जाए !
    वैसे भी  वैवाहिक जीवन में तनाव और अविश्वास के कारण  वैवाहिक जीवन में जबसे एक एक दिन और रात गिनगिन कर काटने पड़ने लगे तब से ऐसे हैरान परेशान लोग एक दूसरे को साथ साथ रहने का भरोसा दिलाने के लिए मनाने लगे शादी की सालगिरा !यह तो एक तरह की वैवाहिक बहुमत सिद्ध करने जैसी प्रक्रिया है शादी की सालगिरा  तो अभी तो सालगिरा ही मन रही है तनाव की तरक्की यदि इसी प्रकार से होती रही तो मासगिरा  साप्ताहगिरा  दिनगिरा और घंटा मिनट  सेकेंड गिरा भी मनाई जाने लगें तो कोई बड़ी बात नहीं होगी !वस्तुतः ये शादी से हैरान परेशान लोगों ने शुरू की थी किंतु बाद में लोग इसे वैवाहिक बहुमत सिद्ध करने का सरल फैशन मानने लगे !
    सच्चाई तो ये है कि 'सालगिरा' शब्द  'सालग्रह' का तद्भवशब्द माना जा सकता है ! 'सालग्रह' अर्थात जन्म समय के आधार पर वर्ष भर बाद आने वाली जन्म की तिथि को तिथि के स्वामीदेवता का पूजन करके वर्ष भरके ग्रहों और उनकी दशाओं का ज्योतिषीय आधार पर पता लगाकर ग्रहों का पूजन करना ही इस 'आयुपर्व' को मनाने का उद्देश्य होता है इसे 'वर्षगाँठ' भी कहते  हैं अर्थात जीवन के दोवर्षों के मिलन का पर्व !इसमें दीपक को जलाकर उसकी गवाही में देवपूजन करके मंगलगीत  हुए वेदमंत्रों के उद्घोष के साथ अगले वर्ष में प्रवेशमंत्र  अगले वर्ष में प्रवेश करने की पवित्र परंपरा रही है इससे वर्ष भर आने वाले संकटों को टाला जाता रहा है और लंबी आयु की कामना की जाती रही है !किंतु वर्तमान समय में इस आयुपर्व का सत्यानाश करने के लिए कितने तरीके अपनाए गए  -
. तिथियों की जगह तारीखों के आधार पर होने लगी सालगिरा जिसमें 'गिरा' अर्थात 'ग्रहों' को तो बिल्कुल भुला ही  दिया गया फिर कैसी सालगिरा केवल तोहफे देकर ! ये तो आयु का आशीर्वाद पाने का पर्व हो तुच्छ तोहफे आयु से  अधिक महत्त्व रखते हैं क्या ?दूसरी बात तिथियों का तो देवता होता है यह  तिथि देवता के पूजन करने का पर्व होता है!तारीख़ का स्वामी कोई देवता होता ही नहीं है !जिस सालगिरा से तिथिस्वामी  और ग्रहों का पूजन दोनों गायब हों वो कैसी साल गिरा !
       इसके बाद वर्षगाँठ  तो दो वर्षों को जोड़ने का आयुपर्व  है फिर इसमें काटने पीटने की बात कहाँ से आ गई !नकलची लोग 'केक ' तो काटते जा रहे हैं किंतु ये केक था कौन है कौन किसका बेटा बाप भाई शत्रु या मित्र था इसका इतिहास क्या है आखिर इसने ऐसे कौन से पाप किए थे इसे काटा क्यों जाता है !यदि ये किसी राक्षस या बुरी आत्मा का ही प्रतीक है तो इसके माँस को खाया क्यों जाता है !किसी को पता नहीं केवल काटे खाए जा रहे हैं जीवन के इतने शुभ अवसर पर इतना अशुभ प्रतीक !इसके बाद मोमबत्ती बुझाने का क्या औचित्य ?मतलब पिछले वर्ष में जो थोड़ा बहुत प्रकाश था उसे भी बुझा कर अब अंधकारमय बनाने की इच्छा !आश्चर्य !!ये कैसी परंपरा और इसके उद्देश्य क्या हो सकते हैं ये दिमागी दिवालियापन नहीं तो क्या है !
     भारतीय संस्कृति का मानना है कि पिछले वर्ष का जो थोड़ा बहुत अन्धकार रह भी गया हो उसे भी समाप्त करने की कामना करने के लिए दीपक जलाए जाते थे किंतु मोम बत्तियाँ बुझाने का उद्देश्य आखिर क्या हो सकता है !
         नीरस वैवाहिक जीवनों में एक एक दिन गिन गिन कर काटना पड़ता है जबकि प्रसन्नता पूर्ण वैवाहिक जीवन में साल निकल कब जाता है पता ही नहीं लग पाता है !पुराने लोगों के वैवाहिक जीवनों में इतनी खुशियाँ थीं कि साल कब पूरा हुआ उन्हें पता ही नहीं लग पाया होगा इसीलिए उस समय शादी की साल गिरा नहीं होती थी अब होती है !उनका मानना था कि जहाँ खुशियाँ हैं वहाँ हिसाब किताब ही क्यों ?जहाँ तनाव है वहाँ हर सेकेंड पर सालगिरा ! फिर भी टूटते हैं विवाह !आपसी विश्वास की कमी को तोहफे पूरी कर देंगे क्या ?धन के घमंडी लोग बात बात में तोहफे लेकर खड़े हो जाते हैं अरे बिना तोहफे के प्रेम हो तब तो प्रेम तोहफे दिखाकर प्रेम तो तोहफों तक ही रहता तोहफे टूटे तो तलाक !ये सालगिरा होती  है या वैवाहिक जीवन में भरोसा दिखाने के लिए बहुमत सिद्ध करने की प्रक्रिया !



      
      
      

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