नेतागिरी के प्रारंभिक काल में तो नेताओं को भी कानून के अनुशार ही चलना होता है किंतु जैसे जैसे उनकी पद प्रतिष्ठा बढ़ने लगती है लोग जुड़ने लगते हैं वैसे वैसे वो नेता शक्तिशाली होने लगते हैं इसप्रकार से नेताओं की शक्ति जैसे जैसे आगे बढ़ने लगती है कानून वैसे वैसे पीछे छूटने लगता है धीरे धीरे एक समय आता है जब कानून बहुत पीछे छूट जाता है और नेता तेजी से आगे निकल जाता है । यहाँ पहुँचकर उसे या तो कोई राजनैतिक पड़ाव मिल जाता है या फिर मजबूत मंजिल ही मिल जाती है जहाँ उसकी अपनी पहचान ऐसी हो जाती है कि जिसे अपने गुणों का सम्मान तो मिलता ही है दुर्गुणों का सम्मान भी मिलने लगता है जिसकी एक आवाज पर उसके समर्थन में लाखों लोग निकल पड़ते हैं ऐसी परिस्थिति में महाबली नेता अपने को कानून से ऊपर समझने लगता है लोग भी उसके विषय में ऐसा ही समझने लगते हैं ऐसी अवस्था में बड़े बड़े आरोपों में आरोपी नेता जिन्हें वर्षों की सजा सुनाई जा चुकी होती है वो बड़े धूम धाम से महोत्सव पूर्वक जेल जाते हैं जब तक मन आता है तब तक वहाँ अपने हिसाब से रहते हैं इसके बाद बाहर आकर संपूर्ण राजनीति करते हैं मंत्री मुख्यमंत्री आदि सबकुछ अपनी सुविधानुशार बन जाते हैं इस प्रकार से संविधान को ठेंगा दिखा दिया जाता है । ऐसे नेता जेल से बाहर निकलते हैं तो चहरे चमक रहे होते हैं कपड़े दमक रहे होते हैं बड़ी भीड़भाड़ आदि जुलूसों के साथ निकलते हैं जेल से नारे लगाते हुए लोग दौड़ रहे होते हैं । मीडिया वाले नेता जी से मिलने को बेताब होते हैं नेता जी को देखते ही घेर लेते हैं सबसे पहले नेता जी देश की कानून व्यवस्था पर प्रश्न उठाते हैं कि हमको गलत फँसाया गया था मेरे साथ षड्यंत्र हुआ था मुझे विश्वास था कि सत्य की विजय होगी सो हुई और मैं छूट गया !
आम आदमी जेल से निकलता है तो महीन लग जाते हैं रूटीन में आने में लोगों से आँखें मिलाने की हिम्मत नहीं कर पाता है ! चेहरा उदास शर्म के मारे पानी पानी होता है जनता उसे देखती है और नेता जी को देखती तो समझ जाती है कि ये सब ड्रामा है सजा कितने भी वर्ष की क्यों न हुई हो किंतु ये नेता लोग हैं अभी छूट आएँगे और जनता अनुमान लगभग ठीक होता है नेता जी छूट भी आते हैं ।ये नेताओं का महाबली अवतार होता है जब इन्हें सब डरने लगते हैं ये किसी को कुछ भी बोल सकते हैं किसी को गाली गलौच कर सकते हैं मारपीट भी कर सकते हैं कुछ भी करें वो सर्वसक्षम कैटेगरी में आ जाते हैं ! बिहार है तो मेरा समय क्यों बर्बाद कर रहे हैं आप
इन्हें किंतु जब नेता तब उस महाबली को इस बात की चिंता ही नहीं रहती है कि वो किसी से कैसे बात व्यवहार करे या उसकी कमाई लीगल है या अनलीगल इसके बाद तो वो किसी को कुछ भी बोले और किसी के साथ कैसा भी गंदा व्यवहार करे कैसे भी धन संग्रह करे किंतु उसके बातों और व्यवहारों को सही एवं संविधान सम्मत सिद्ध करने के लिए भाड़े के सलाह कार,वकीलादि लगे होते हैं जिन्हें फीस ही एक बात की मिल रही होती है कि नेता जी के हर गैरकानूनी काम को ,व्यवहार को ,बयान को कानून सम्मत सिद्ध करना है ने सही ही कहा है को कुछ भी समझावे जो करे उसके पास भ में
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