Sunday, 3 November 2019

तकनीक -3 मानसून

  
मानसून
       यह वर्षा विज्ञान का दूसरा पक्ष है 
 मानसून -
      सरकारी मौसम भविष्यवक्ताओं के द्वारा मानसून के आने और जाने की जो तारीखें निश्चित की गई हैं वे काल्पनिक हैं इसीलिए उनका सच्चाई से कोई संबंध कभी सिद्ध हुआ ही नहीं उनके द्वारा निश्चित की गई तारीखों पर आज तक कितने बार मानसून आया और कितने बार गया ये शोध का विषय है आखिर क्यों बार बार ये तारीखें गलत होती रहती हैं और यदि इनका कोई आधार ही नहीं है तो इनके बताने या जान्ने से लाभ ही क्या है ?
    मानसून की विदाई और वर्षा समाप्त होने की भविष्यवाणियाँ सरकारी मौसम भविष्यवक्ताओं के द्वारा 2 सितंबर सन 2019 से की जाने लगी थीं बार बार तारीखें बदली जाती रहीं किंतु अक्टूबर समाप्त होने के बाद भी दक्षिणपूर्वी भारत में वर्षा और बाढ़ का क्रम चलता जा रहा है |



          भारत में सरकार के द्वारा जून से सितंबर तक वर्षा होने का समय माना जाता है इसके विषय में प्रतिवर्ष मौसम भविष्यवक्ताओं को दीर्घावधि पूर्वानुमान बताना होता है !इन चार पाँच महीने पहले का पूर्वानुमान एक साथ बताने का आजतक साहस नहीं किया जा सका !इसीलिए अप्रैल से लेकर अगस्त तक तीन बार में दीर्घावधि मौसम पूर्वानुमान बताया जाता है !फिर भी इनके सही होने का अनुपात इतना कम है कि इन्हें सिद्धांततः भविष्यवाणी नहीं माना जा सकता !
   
मानसून आने की तारीख -

     कोई दुकानदार बनियाँ अपनी दुकानपर जब खाली बैठा होता है तो उसे झेंप लगती है कि कोई क्या कहेगा कि इनके पास ग्राहक नहीं हैं इसलिए वो अपनी तराजू पर बाँट रखकर झूठे ही तौलता रहता है ताकि उसे कोई खाली न समझे! इसी प्रकार से मौसम भविष्यवक्ताओं के द्वारा की जाने वाली भविष्यवाणियाँ लगातार गलत होती जा रही हैं जिसके लिए वे अपनी झेंप मिटाने के लिए कुछ न कुछ बदलाव करके अपनी सक्रियता दर्ज करवाते रहते हैं !
     इसी प्रक्रिया के तहत अभी तक मानसून आने जाने की तारीखें बताते रहे कि किस तारीख को आएगा और किस तारीख को जाएगा !इस प्रकार से मानसून आने की तारीख हर वर्ष बताई जाती है यह बात और है कि उस तारीख में शायद ही कभी मानसून आता हो बाक़ी वो गलत होने के लिए ही बोली जाती है ऐसा होना बहुत कम वर्षों में ही संभव हो पाया है जब वो सही भी हुई हो !इसके बाद भी जितने विश्वास से  भविष्यवक्ताओं के द्वारा मानसून आने की तारीख़ बताई जा रही होती  है उसे सुनकर ऐसा लगता है जरूर मानसून तारीख देखकर ही आता होगा !वैसे तो इसकी तारीख मौसमी घटनाओं ने तो कभी किसी को बतायी नहीं थी ये लोग अपने आप से ही बताने लगे थे !
     इतने वर्ष लगातार तारीखें गलत होने के बाद अब  भविष्यवक्ताओं के द्वारा मानसून आने जाने की तारीखें बदलने की बातें की जा रही हैं यह दिखाने के प्रयास किए जा रहे हैं कि 78 वर्ष बीत जाने के कारण यह अंतर आने लगा है जबकि यह सच नहीं है क्योंकि कभी भी किसी एक निश्चित तारीख पर मानसून नहीं आया किन्हीं भी पाँच वर्षों को उदाहरण के लिए देखा जा सकता है !ऐसी परिस्थिति में ये कहने के बजाए कि हम मानसून आने की सही तारीख नहीं बता सके या जो बताते हैं वो गलत हो जाती हैं !इसके लिए आवश्यकता है प्रत्येकवर्ष के लिए मानसून आने के लिए अलग अलग सही सही तारीखें घोषित करने की क्योंकि ये प्रकृति है परिवर्तन तो इसमें  होते ही रहेंगे!हमेंशा से होते आए हैं उन परिवर्तनों को न समझ पाने के कारण कहा जा रहा है कि पिछले कई वर्षों से मानसून आने जाने की दोनों तारीखों को मॉनसून ने दगा दी है। ये कितना उचित है !    
     ऐसी परिस्थिति में
प्रत्येक वर्ष मानसून आने  और जाने की सही सही तारीखें बताने में जिन मौसम भविष्यवक्ताओं के फेफड़े फूलने लगते हैं फिर भी वे तारीखें लगभग प्रत्येक वर्ष गलत निकल जाती हैं ! ऐसी परिस्थिति में हमें यह कभी नहीं भूलना चाहिए कि जलवायुपरिवर्तन और ग्लोबलवार्मिंग जैसी परिकल्पनाएँ इन्हीं लोगों के द्वारा की गई हैं जिनके विषय में बताया जा रहा है कि ग्लोबलवार्मिंग और जलवायुपरिवर्तन के कारण भविष्य में ग्लेशियर पिघलने लगेंगे, सूखा, अकाल, वर्षा ,बाढ़ एवं आँधी तूफ़ान जैसी बिनाशकारी मौसम संबंधी घटनाओं के घटित होने की भविष्यवाणियाँ की जा रही हैं !

      कुल मिलाकर जिन मौसम भविष्यवक्ताओं के द्वारा दोचार महीने पहले के मौसमसंबंधी सही पूर्वानुमान बता पाना संभव नहीं हो  पाता है उन्हीं  मौसम भविष्यवक्ताओं के द्वारा आज के  सैकड़ों वर्ष बाद घटित होने वाली घटनाओं के विषय में जो भविष्यवाणियाँ की जा रही हैं जिनका कारण जलवायुपरिवर्तन को बताया जा रहा है ऐसी बातों पर कितना विश्वास किया जाना चाहिए !


     
       
   भविष्यवाणियों के नाम पर बादल देख देख कर भविष्यवाणियाँ की जाती हैं पहले कहा जाता है कि दो दिन वर्षा होगी दो दिन बरसने के बाद भी वर्षा होती रहती है तो कह दिया जाता है कि दो दिन और वर्षा होगी इसके बाद भी वर्षा नहीं रूकती है तो 72 घंटे और वर्षा होने की भविष्यवाणी कर दी जाती है ऐसे भविष्यवाणियों को आगे बढ़ने की समय सीमा को तब तक बढ़ाते रहा जाता है जब तक वर्षा होते रहती है 
अभी दो दिन और बरसेगा लोग समझते हैं दो दिन बाद बंद हो जाएगा फिर कह दिया जाता है अभी तीन दिन और बरसेगा लोग सोचते हैं कि चलो तीन दिन और बरसेगा काम चला लेते हैं तो घर में पानी भर जाने के बाद भी लोग छत पर काम चलाने के लिए रह जाते हैं उसके बाद भी पानी बरसते रहता है तो ये कहते हैं तीन दिन और बरसेगा तब तक पानी छत के करीब आ चुका होता है ऐसी परिस्थिति में तब लोग घर छोड़कर कहीं जाने लायक भी नहीं रह जाते हैं और न छत पर ही रहने की परिस्थिति रह पाती है ! लोगों का सामान भी सड़ जाता है और खुद भी हादसे के शिकार होते हैं ! ऐसे तीरतुक्कों को मौसम पूर्वानुमान कैसे कहा जा सकता है और इसमें विज्ञान कहाँ होता  है ! 2015 के 2015 नवंबर महीने में मद्रास में हुई भीषण बारिश और बाढ़ का कारण कुछ ऐसा ही होना था !
बिहार में बाढ़ -
        सन 2019 में सितंबर के आखिरी सप्ताह में बिहार में भीषण वर्षा और बाढ़ के कारण भारी जान धन की हानि उठानी पड़ी !इसके विषय में सरकारी मौसम भविष्यवक्ताओं के द्वारा पहले से कभी कोई भविष्यवाणी नहीं की गई जैसे जैसे वर्षा होती गई वैसे वैसे वर्षा होने की भविष्यवाणी की जाती रही !कई बार तो एक एक दिन में दो दो तीन तीन बार भविष्यवाणियाँ बदली जाती रहीं !जिससे परेशान होकर बिहार के मुख्यमंत्री ने कहा -"मौसम भविष्यवाणी करने वाले सुबह कुछ  दोपहर में कुछ और बोलते हैं फिर शाम को कुछ और बोलने लगते हैं " यद्यपि ये केवल इसी भविष्यवाणी की स्थिति नहीं है सरकारी मौसम भविष्यवक्ताओं की प्रायः प्रत्येक भविष्यवाणी ऐसी ही ढुलमुल होती है | इस सच्चाई को बिहार के मुख्यमंत्री ने स्वीकार किया भी सभी लोग सच बोलने का ऐसा साहस नहीं कर पाते हैं क्योंकि सच कडुआ होता है | 
      सरकारी मौसमभविष्यवाणियों के निरंतर गलत होते जाने से निराश हताश होकर बिहार के मुख्यमंत्री एवं केंद्रीय स्वास्थ्य राज्य मंत्री ने बिहार में होने वाली इस भीषण वारिस का कारण खुद ही खोजते हुए कहा कि यह भयंकर वर्षा और बाढ़ 'हथिया' नक्षत्र के कारण हुई है | 
     विशेष - वर्षा और बाढ़ का कारण एवं पूर्वानुमान खोजने में नक्षत्रों की पद्धति यदि इतनी अधिक प्रभाव पूर्ण है तो सरकारी मौसमभविष्यवाणियाँ उसी के आधार पर करने की व्यवस्था सरकार को करनी चाहिए |     
           बादलों की जासूसी करना मौसमविज्ञान नहीं है !  
        हमें याद रखना होगा कि जासूसी के बलपर हम किसी विषय को विज्ञान नहीं सिद्ध कर सकते हैं !जासूसी तो जासूसी है भले वह कैमरों उपग्रहों या राडारों से ही क्यों न की जाए !जासूसी करके हम किसी व्यक्ति की गतिविधियों पर निगरानी रख सकते हैं किंतु उस व्यक्ति का अगला कदम क्या होगा इसके विषय में कुछ नहीं कहा जा सकता है !किसी भी व्यक्ति के विषय में जासूसी करने वाले जासूस को उस व्यक्ति के भविष्य संबंधी कदम के बारे में कुछ भी नहीं पता होता है वो केवल तीर तुक्के भिड़ाया करता है जी कभी भी गलत हो सकते हैं !यही स्थिति मौसम भविष्यवक्ताओं की है !
     जिस प्रकार से बड़े बड़े राजनैतिक पत्रकार राष्ट्रीय राजधानी में संसद भवन के आस पास डेरा डाले रहते हैं वहीँ जगह जगह अपने कैमरे फिट किए होते हैं वहीँ से नेताओं की गतिविधियों पर नजर रखा करते हैं नेता लोगों के हिलने डुलने,बोलने बताने हँसने मुस्कुराने आने जाने आदि की रिकार्डिंग किया करते हैं उन्हीं के आधार पर समाचार तैयार करते रहते हैं !इसी के आधार पर उनकी गतिविधियों को देख देखकर उनके विषय में नए नए अनुमान लगाया करते हैं !वो सही हों गलत हों इसकी उनकी कोई जिम्मेदारी नहीं होती है !राजनेताओं की गाड़ी जिस रोड की ओर जाते दिखती है उस रोड पर जो जो नेता रहते हैं उसका अंदाजा समझकर वो अनुमान लगाने लगते हैं कि संभवतः ये उनके यहाँ जाएँगे उनसे मिलेंगे आदि | कुछ पत्रकार कुछ नेताओं को या कुछ क्षेत्रों को चुन लेते हैं वे उन्हीं की गतिविधियों पर नजर रखते हैं और उनके विषय में अनुमान लगाया करते हैं!पत्रकार लोग अपनी इस प्रकार की संभावनाओं आशंकाओं को भविष्यवाणी कहकर नहीं प्रस्तुत  करते हैं इसलिए उनके अनुमानों के गलत होने को कोई गंभीरता से लेता भी नहीं है!वे समाचारों की दृष्टि से कोई ग्लोबलवार्मिंग और जलवायुपरिवर्तन जैसी अफवाहें भी नहीं फैला रहे होते हैं ! जो भविष्य में समाज के लिए बहुत दुखदायी सिद्ध होने वाला हो सकता हो !
       यही स्थिति मौसमी पत्रकारों की है !मेरे विचार से मौसम भविष्यवक्ताओं को भी मौसम वैज्ञानिक की जगह यदि मौसम पत्रकार कहा जाए तो अधिक उचित होगा क्योंकि राजनैतिक पत्रकारों की तरह ही मौसमी पत्रकारों की भी वही भूमिका दिखाई पड़ती है!
    मौसम संबंधी राजधानी समुद्र या विशेषकर प्रशांत महासागर है जहाँ  मौसम संबंधी अधिकाँश घटनाएँ प्रारंभ होती हैं यहीं अग्निवृत्त (फायर ऑफ़ रिंग) है और यहीं सबसे अधिक भूकंप और सुनामी आदि की घटनाएँ घटित होती हैं यही चक्रवातादिकों की निर्माणस्थली है !इसलिए मौसमी भविष्यवक्ताओं (पत्रकारों) ने यहाँ अपने रडार उपग्रह आदि लगाए हुए हैं जिनसे बादलों आँधीतूफानों आदि की गतिविधियों की निगरानी किया करते हैं |
      वहाँ से बादल आँधी तूफ़ान आदि जो कुछ भी निकलते दिखा तो उनकी दिशा और गति के हिसाब से ऐसे मौसमी पत्रकार लोग मौसम संबंधी आशंकाएँ संभावनाएँ व्यक्त किया करते हैं कि ये किस देश प्रदेश शहर आदि में कब कब पहुँच सकते हैं उसी हिसाब से मौसम संबंधी समाचार तैयार किया करते हैं और आशंकाएँ संभावनाएँ बताया करते हैं !इसे मौसमविज्ञान कैसे कहा जा सकता है!
    किसी नहर में जब पानी छोड़ा जाता है या किसी नदी में जब बाढ़ आती है उस पानी की गति के हिसाब से यह अनुमान लगा लिया जाता है कि यह पानी किस दिन किस शहर में पहुँचेगा !किंतु इसे नदी या नहर का विज्ञान नहीं नहीं माना जा सकता है !
    किसी गाँव का एक छोर जंगल की ओर पड़ता था उसी छोर से कभी कभी हाथियों का झुंड गाँव में घुस आता था और काफी तोड़फोड़ कर  जाता था इसके बाद गाँव के लोग लाठी डंडे ईंटों पत्थरों से खदेड़ बाहर करते थे लेकिन तब तक गाँव वालों का काफी नुक्सान हो चुका  होता था !इससे बचने के लिए गाँव वालों ने जंगल की दिशा में अपने गाँव के बाहर कैमरे लगा दिए जिससे हाथियों के गाँवों में प्रवेश करने से पहले ही वो देख लिया करते थे कि हाथी गाँव की ओर आ रहे हैं तभी से अपने बचाव के उपाय कर लिया करते थे इससे उनका बचाव हो भी जाता था किंतु इसे हाथी विज्ञान नहीं कहा जा सकता और उन गाँव वालों को हाथी वैज्ञानिक नहीं कहा जा सकता है !
     इसी प्रकार से मौसम के क्षेत्र में भी उपग्रहों रडारों के माध्यम से मौसम संबंधी कुछ घटनाओं को देखने और घटित होने में कई बार कुछ समय मिल जाता है जिससे उस घटना से संभावित जनधन की हानि को यथा संभव प्रयास पूर्वक कम कर लिया जाता है ! जिसे मदद की दृष्टि से अच्छा माना जाता है किंतु उसे विज्ञान नहीं माना जा सकता है !

     जिस प्रकार से पत्रकार लोग उन्हीं समाचारों को दिखाया बताया करते हैं जो घटनाएँ घट चुकी होती हैं उन्हीं के आधार पर कुछ भविष्य संबंधी आशंकाएँ व्यक्त कर दिया करते हैं वैसे ही मौसम भविष्यवक्ता लोग मौसम का भविष्य बताने की जगह मौसम का भूत बताने में अधिकाँश समय बिता रहे होते हैं !इतने सेंटीमीटर वर्षा हुई !इतने वर्षों का रिकार्ड सर्दी गर्मी वर्षा आदि ने तोड़ा इसके साथ ही कुछ सामान्य भविष्य संबंधी आशंकाएँ व्यक्त कर दिया करते हैं जिनके सही या गलत होने की किसी की कोई जिम्मेदारी या जवाबदेही नहीं होती है !वस्तुतः ये मौसम विज्ञान कम और मौसम पत्रकारिता अधिक है |
     ऐसी परिस्थिति में उपग्रहों और रडारों से चित्र देख देख कर उनके आधार पर वर्षा आँधी तूफानों आदि के विषय में संभावनाएँ आशंकाएँ व्यक्त करते रहने वाले मौसम भविष्यवक्ताओं को आज से उन सूखा, अकाल, वर्षा ,बाढ़ एवं आँधी तूफ़ान जैसी मौसम संबंधी घटनाओं का पूर्वानुमान  कैसे पता चल गया जो ग्लोबलवार्मिंग जलवायुपरिवर्तन जैसी काल्पनिक घटनाओं के फलस्वरूप अभी से सैकड़ों वर्षों बाद में घटित होने वाली अत्यंत दीर्घावधि घटनाओं के विषय में अभी से बताए जा रहे हैं !उसके लिए ग्लोबलवार्मिंग जलवायुपरिवर्तन  संबंधी चित्र किन उपग्रहों और रडारों में देखे गए हैं जिसके आधार पर इतनी बड़ी बड़ी अफवाहें फैलाई जा रही हैं !

       आश्चर्य की बात यह है कि तीन दिन पहले का मौसम पूर्वानुमान बताने में जिन मौसम भविष्यवक्ताओं को कई कई बार हिचकोले खाने पड़ते हैं अपनी भविष्यवाणियों में बार बार संशोधन करने पड़ते हैं !इसके बाद भी जिन मौसमभविष्यवक्ताओं को अत्यंत झिझक पूर्वक बोलते देखा जाता है ऐसा होने की आशंका है या वैसा होने की संभावना है !वही लोग ग्लोबलवार्मिंग और जलवायुपरिवर्तन के असर पर कितने बेधड़क ढंग से बताते देखा जा रहा है कि आज के सौ या पचास या दो सौ वर्ष बाद क्या क्या नफा नुक्सान हो जाएगा !देखिए -
    "ग्लोबलवार्मिंग और जलवायुपरिवर्तन  के कारण भारत, चीन, अमेरिका, पश्चिमी अफ्रीका, वियतनाम, बांग्लादेश, म्यांमार, थाईलैंड, फिलीपींस और मिडिल ईस्ट के कई देशों को नुकसान होगा। सबसे अधिक नुकसान भारत को होगा। मुंबई और कोलकाता के अधिकांश हिस्से डूब जाएंगे। अत्यधिक गर्मी के कारण खेत सूख जाएंगे, जिससे देश की 22.8 करोड़ और आबादी बेरोजगार हो जाएगी।"इसमें कुछ सच्चाई भी होगी क्या ये सोचकर  आश्चर्य अवश्य होता है !"

     ये केवल एक प्राकृतिक घटना की बात नहीं है ऐसा लगभग प्रत्येक बड़ी प्राकृतिक घटना के बाद होता ही रहता है हर घटना के पीछे ग्लोबलवार्मिंग जलवायुपरिवर्तन आदि का प्रभाव बता देना रीति रिवाज सा बन गया है !जिस प्रकार की घटनाएँ मौसम में घटित होती देख लेते हैं वैसी ही बार बार दोहराते  रहते हैं !अभी ऐसा और होगा अभी और होगा वर्षा हुई तो वर्षा और होगी सर्दी हुई तो सर्दी और होगी गर्मी हुई गर्मी और पड़ेगी इनकी भविष्यवाणी के विपरीत जो कुछ होता है उसके लिए  "जलवायु परिवर्तन"  या "ग्लोबल वार्मिंग" जैसे पालतू शब्द हैं  जिनकी मदद ले ली जाती है ! 
      
   

  मद्रास में भीषण बाढ़ -
    सन2015 के नवंबर महीने में मद्रास में हुई भीषण बारिश और बाढ़ के कारण त्राहि त्राहि मची हुई थी किंतु इसका भी पूर्वानुमान नहीं बताया गया था !मौसम भविष्यवक्ताओं ने वर्षा होने की संभावनाओं को दो दो दिन आगे बढ़ाते बढ़ाते मद्रास को बाढ़ तक पहुँचा दिया था इसके विषय में कभी कोई स्पष्ट भविष्य वाणी नहीं की गई कि वर्षा वर्षा वर्षा आखिर होगी किस तारीख तक !
  केरल की भीषण बाढ़ - 
      3 अगस्त 2018 को सरकारी मौसम विभाग ने अगस्त सितंबर में सामान्य बारिश होने की भविष्यवाणी की थी किंतु उनकी भविष्यवाणी के विपरीत 7 अगस्त से ही केरल में भीषण बरसात शुरू हुई जिससे केरल वासियों को भारी नुक्सान उठाना पड़ा !जिसकी कभी कोई भविष्यवाणी नहीं की गई थी यह बात केरल के तत्कालीन मुख्यमंत्री ने भी स्वीकार की थी !बाद में  सरकारी मौसम भविष्यवक्ता ने एक टेलीवीजन चैनल के इंटरव्यू में कहा कि "केरल की बारिश अप्रत्याशित थी इसीलिए इसका पूर्वानुमान नहीं लगाया जा सका  वस्तुतः इसका कारण जलवायु परिवर्तन था !" 
 अधिक वर्षा के विषय में - इसी प्रकार से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी को 28 जून 2015 को बनारस पहुँचकर बीएचयू के ट्रॉमा सेंटर के साथ इंट्रीगेटेड पॉवर डेवलपमेंट स्कीम और बनारस के रिंग रोड का शिलान्यास करना था। इसके लिए काफी बढ़ा आयोजन किया गया था किंतु उस दिन अधिक वर्षा होती रही इसलिए कार्यक्रम रद्द करना पड़ा !इसके बाद इसी कार्यक्रम के लिए 16 जुलाई 2015 को प्रधानमंत्री जी का कार्यक्रम तय किया गया !उसमें भी लगातार बारिश होती रही उस दिन भी मौसम के कारण प्रधानमंत्री जी की सभा रद्द करनी पड़ी !रधानमंत्री जी का कार्यक्रम सामान्य नहीं होता है उसके लिए सरकार की सभी संस्थाएँ सक्रिय होकर अपनी अपनी भूमिका अदा करने लगती हैं कोई किसी के कहने सुनने की प्रतीक्षा नहीं करता है !ऐसी परिस्थिति में प्रश्न उठता है कि सरकार के मौसमभविष्यवक्ताओं  ने अपनी भूमिका का निर्वाह क्यों नहीं किया ?प्रधानमंत्री जी की इन दोनों सभाओं के आयोजन पर भारी भरकम धन खर्च करना पड़ा था ! उस सभा में 25 हज़ार आदमियों को बैठने के लिए एल्युमिनियम का वॉटर प्रूफ टेंट तैयार किया गया था ! जिसकी फर्श प्लाई से बनाई गई थी जिसे बनाने के लिए दिल्ली से लाई गई 250 लोगों की एक टीम दिन-रात काम कर रही थी ।वाटर प्रूफ पंडाल, खुले जगहों पर ईंटों की सोलिंग और बालू का इस्तेमाल कर मैदान को तैयार किया गया था ! ये सारी कवायद इसलिए थी कि मौसम खराब होने पर भी कार्यक्रम किया जा सके किंतु मौसम इतना अधिक ख़राब होगा इसका किसीको अंदाजा ही नहीं था !मौसम भविष्यवक्ताओं के द्वारा इस विषय में कोई पूर्वानुमान नहीं दिया गया था !
     वर्षा संबंधी गलतभविष्य वाणियों से होने वाली हानियाँ -
        कई बार कहीं वर्षा होना जब शुरू हो जाता है उसके साथ मौसम भविष्य वक्ता लोग भी शुरू हो जाते हैं जैसे जैसे वर्षा होती चली जाती है वैसे वैसे  वे भी दो दो दिन बढ़ाते चले जाते हैं अभी दो दिन और बरसेगा लोग समझते हैं दो दिन बाद बंद हो जाएगा फिर कह दिया जाता है अभी तीन दिन और बरसेगा लोग सोचते हैं कि चलो तीन दिन और बरसेगा काम चला लेते हैं तो घर में पानी भर जाने के बाद भी लोग छत पर काम चलाने के लिए रह जाते हैं उसके बाद भी पानी बरसते रहता है तो ये कहते हैं तीन दिन और बरसेगा तब तक पानी छत के करीब आ चुका होता है ऐसी परिस्थिति में तब लोग घर छोड़कर कहीं जाने लायक भी नहीं रह जाते हैं और न छत पर ही रहने की परिस्थिति रह पाती है ! लोगों का सामान भी सड़ जाता है और खुद भी हादसे के शिकार होते हैं ! ऐसे तीरतुक्कों को मौसम पूर्वानुमान कैसे कहा जा सकता है और इसमें विज्ञान कहाँ होता  है ! 2015 के 2015 नवंबर महीने में मद्रास में हुई भीषण बारिश और बाढ़ का कारण कुछ ऐसा ही होना था !






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