हिंदूराष्ट्र भारत में कहीं भी बनाया जा सकता है श्री राम मंदिर !उसके लिए
किया जाने वाला हर प्रयास राष्ट्रभक्ति के दायरे में आता है !और ऐसा हो भी
क्यों न श्री राम ने अपने भारत को बनाने के लिए क्या क्या नहीं किया उनके
सामने आक्रांता बाबर को खड़ा किया जाना ये हिंदूराष्ट्र भारत का दुर्भाग्य
है !
हजारों करोड़ के घोटाले करने वाले चारा चोर ,कोयलाचोर आदि नेताओं का कानून के नाम पर क्या बिगाड़ लिया गया और सौ प्रतिशत ईमानदार नेताओं की ईमानदारी पर अंगुली उठाना कहाँ तक न्यायोचित है !राजनीति में निरपराधिता पर प्रश्न चिन्ह है !वैसे भी देश के स्वाभिमान के साथ समझौता नहीं किया जा सकता !और किसी भी आक्रांता का नाम देश के किसी भी भाग में हो उसे मिटाना ही राष्ट्रधर्म है!
हजारों करोड़ के घोटाले करने वाले चारा चोर ,कोयलाचोर आदि नेताओं का कानून के नाम पर क्या बिगाड़ लिया गया और सौ प्रतिशत ईमानदार नेताओं की ईमानदारी पर अंगुली उठाना कहाँ तक न्यायोचित है !राजनीति में निरपराधिता पर प्रश्न चिन्ह है !वैसे भी देश के स्वाभिमान के साथ समझौता नहीं किया जा सकता !और किसी भी आक्रांता का नाम देश के किसी भी भाग में हो उसे मिटाना ही राष्ट्रधर्म है!
श्री राम के नगर से बाबर जैसे आक्रांताओं का नाम मिटाने का हर प्रयास परं पवित्रता की श्रेणी में गिना जाता है| उचित तो ये है कि श्री राम प्रभु के अपने भारत वर्ष में श्री राम मंदिर के विषय में न कोई विवाद होना चाहिए और न ही उस विवाद को कहीं महत्त्व मिलना चाहिए और बाबर जैसे आक्रांताओं का नाम जिन जिन स्थलों स्मारकों से जुड़ा हो उन सभी को कानून बनाकर भारत सरकार को स्वयं तोड़वा देना चाहिए !क्योंकि ऐसे कलंकित स्थल राष्ट्रवादियों के मनोबल को तोड़ते हैं अपमान की याद दिलाते हैं !
धर्म के नाम पर हुए भारत के विभाजन को स्वीकार कर लेने के बाद भी श्री राम मंदिर निर्माण में टाँग अड़ाना कतई स्वीकार नहीं किया जाना चाहिए !जैसे टैक्स दे देने के बाद बाकी संपत्ति शुद्ध मान ली जाती है निगमों के द्वारा अवध अतिक्रमणों को हटाने के बाद बाकी जमीनें शुद्ध मान ली जाती हैं तो धर्म के नाम पर पाकिस्तान दिए जाने के बाद भी श्रीराममंदिर निर्माण यदि उनसे आज्ञा लेकर ही करना था तो विभाजन स्वीकार ही क्यों किया गया कम से कम अखंड भारत तो बना रहता !
अयोध्या में श्री राम मंदिर निर्माण की आज्ञा उनसे माँगनी जिनकी श्री राम के प्रति आस्था ही नहीं है उन्होंने तो केवल टाँग अड़ा रखी है ऐसे तो कितने भी समय तक रोके रहेंगे श्री राम मंदिर !ये तो भारत वर्ष की न्याय व्यवस्था है कब तक भी खाँचे जा सकते हैं मुकदमे !आपसी सहमति बनने ही नहीं देंगे !ऐसी परिस्थिति में कानून बनाकर ही किया जा सकता है श्री राम मंदिर निर्माण ! और ऐसा किया भी जाना चाहिए
हिंदूराष्ट्र ही है भारत यह धर्मनिरपेक्ष हो ही नहीं सकता ! जानिए क्यों ?
कुछ लोगों के 'इंडिया' कहने लगने से हिंदूराष्ट्र भारत धर्मनिरपेक्ष हो जाएगा क्या ?
अनादि काल से इस देश को सनातन धर्मीराजाओं के नाम पर जाना जाता रहा है! आर्यावर्त, "जम्बूद्वीप" अजनाभवर्ष, भारतवर्ष आदि सनातन धर्मी संस्कृतनिष्ठ नाम हैं !प्रदेशों गाँवों शहरों के अधिकाँश नाम हिन्दू संस्कृति से संबंधित हैं !नदियों तालाबों पहाड़ों के नाम हिंदू संस्कृति से संबंधित हैं सनातन हिंदू धर्म ही सबसे प्राचीन है इसलिए भारत वर्ष हिंदूराष्ट्र ही है !भारत सनातनधर्मी हिंदूराष्ट्र है धर्मनिरपेक्षता के नाम पर हिंदुस्तान में हिंदुओ की आस्था को रौंदना असंभव !भारतवर्ष न धर्मनिरपेक्ष है और न कभी हो सकता है इसे धर्म निरपेक्ष कहकर केवल धोखा दे रहे हैं कुछ लोग ! सनातनधर्मिता इस देश के स्वभाव में है उसे कैसे भूल जाएगा भारत ! यह सनातन धर्मी हिंदू राष्ट्र है भारत ! गो पूजन इस देश के स्वभाव में है और स्वभाव किसी का बदलता नहीं है अनादि काल से इस देश के नाम आर्यावर्त, अजनाभ वर्ष,भारतवर्ष आदि पड़े हुए हैं ये सभी लोग सनातन धर्मी रहे हैं!
सनातनधर्मी हिंदूराष्ट्र भारतवर्ष का नाम अनादि काल से सनातनधर्मी हिंदुओं के नाम पर है आर्यावर्त ,अजनाभ वर्ष ,भारतवर्ष ,हिंदुस्तान आदि सारे नाम तो हिंदू संस्कृति से संबंधित हैं | भारत के हर प्रदेश के नाम हिन्दू संस्कृति से संबंधित हैं भारत वर्ष की हर नदी सरोवरों पहाड़ों के नाम हिंदू संस्कृति से संबंधित हैं देश प्रदेश नदियों पहाड़ों के नामों से संबंधित कथा कहानियाँ पुराणों में वर्णित हैं चूँकि सनातन हिंदू धर्म ही सबसे प्राचीन है इसलिए ये भी नहीं कहा जा सकता कि किसी अन्य धर्म के नाम मिटाकर अपने धर्म से सम्बंधित रख लिए गए हैं ।
ऐसे सभी प्रमाण इस बात की ओर इशारा करते हैं कि भारतवर्ष आदि काल से सनातनधर्मी हिंदुओं का देश है और यदि ऐसा ही है तो इसे धर्मनिरपेक्ष मान लिया जाए हिंदुओं पर ऐसा दबाव क्यों ?क्या ये उस तरह की बात नहीं है जैसे किसी के घर में कुछ लोग जबर्दस्ती घुस आएँ रहने लगें और कहने लगें कि ये घर तो अपना सबका है ये हिंदुओं को कमजोर दिखाने की कोशिश नहीं है क्या ?
सभी धर्मों के लोग इस देश में रहते हैं ये और बात है बहुत देशों में ऐसा होता है ये हिन्दुओं की सहिष्णुता का प्रतीक है किंतु ये सब कुछ आपसी सहिष्णुता से भी तो संभव है इसके लिए किसी देश की प्राचीन पहचान मिटाना जरूरी क्यों है भारत सनातनधर्मी हिंदूराष्ट्र है तो उसे हिंदुराष्ट्र ही क्यों न बना रहने दिया जाए !इसे धर्मनिरपेक्ष कहलाना जरूरी क्यों है ।
भारत की धर्म निरपेक्षता के साइड इफेक्ट इतने घातक होंगे किसी को पता था क्या ? गो रक्षा की बात हो ,अयोध्या काशी मथुरा के मंदिरों की बात हो या वंदे मातरं बोलने की बात हो या योग करने की बात हो या ॐ बोलने की बात हो धर्म निरपेक्षता की आड़ लेकर हर जगह टाँग फँसा कर खड़े हो जाना ये कहाँ का न्याय है इस हिसाब से तो सनातन हिंदू धर्मी भारत वर्ष अपनी सारी पहचान ही भूल जाए !या उन लोगों के मुख ताक ताक कर काम करे जो सनातन हिंदूधर्मी गतिविधियों से द्वेष करते हैं !
मंदिर बनना या न बनना उन लोगों की कृपा पर कब तक टिका रहेगा जिनकी मंदिर में भगवान् श्री राम में कोई आस्था ही नहीं है !वो ऐसी कोई आपसी सहमति क्यों बनने देंगे जिससे अयोध्या में श्री राम मंदिर बन जाए !क्योंकि उनका कोई नुक्सान ही नहीं है न ही उनका कोई काम ही रुका है |अन्यथा देश को यदि धर्म निरपेक्ष ही बनाना है तो सबके धर्म स्थलों में जगह दिलाई जाए श्री राम मंदिर बनाने की अन्यथा अयोध्या को भी निर्विवादित बनाया जाए !
आज सनातन हिंदूधर्मी भारत वर्ष की यह स्थिति हो गई है कि हिंदू लोग अपने तीर्थों में अपने सबसे बड़े भगवानों के मंदिर भी अपनी इच्छा से अपने अनुसार नहीं बना सकते हैं । इसका मतलब इस देश में हिन्दुओं का कुछ है ही नहीं हम ख़ाक आजादी की वर्ष गाँठ मनाते हैं ।
भारतवर्ष और उसके किसी प्रदेश का नाम धर्मनिरपेक्ष नहीं हैं भारतवर्ष यदि धर्मनिरपेक्ष होता ! तो अयोध्या मथुरा और काशी जैसे हिंदुओं के महान तीर्थ हिन्दुओं को सौंप दिए जाते ! सनातन धर्मी हिन्दुओं को उनके अपने धार्मिक तीर्थों मंदिरों नदियों तालाबों पहाड़ों को अपने अनुसार सजाने सँवारने बनाने एवं रख रखाव के निर्णय का स्वतंत्र अधिकार हिन्दुओं को दिए बिना धर्म निरपेक्षता की परिकल्पना ही नहीं की जा सकती !
इस बात का ध्यान देना चाहिए कि इस देश का स्वभाव ही सनातन धर्मी है गायों के हत्यारों से इस देश का कभी कोई संबंध ही नहीं रहा !इस देश के अभी तक जितने भी नाम पड़े वो सारे सनातनधर्मी हिन्दुओं के ना पर ही पड़े हैं क्योंकि ये देश सनातन धर्मी हिन्दुओं का है हम सनातन धर्मी लोग गाय को पूजते हैं यह जानते हुए भी जो लोग गायों का बध करते हैं वो गलत करते हैं !
इस विषय में प्राचीन पौराणिक साहित्य के शोध के अनुशार - हमारे देश का नाम 'भारत' कैसे पड़ा और यह देश अति प्राचीनकाल से आर्यराष्ट्र ही है इसके प्रमाण क्या हैं जानिए ?
इस देश का नाम 'भारत ' है जो एक प्राचीन हिन्दू सम्राट 'भरत' के नाम पर रखा गया था । जैसे 'कुरु' से 'कौरव' ,वसुदेव' से 'वासुदेव', 'तिल' से 'तैल'आदि शब्द संस्कृत व्याकरण के अनुशार आदि 'अच'की वृद्धि होकर बनाए जाते हैं इसीप्रकार से 'भरत'शब्द से 'भारत'शब्द का निर्माण हुआ है ।भारत (भा+रत) शब्द का मतलब है 'आंतरिक प्रकाश' ।
महाराज 'भरत' मनु के वंशज ऋषभदेव जी के ज्येष्ठ पुत्र थे इससे पहले 'भारतवर्ष' को वैदिक काल या आदिकाल से ही 'आर्यावर्त'अर्थात 'आर्य लोगों का आवास' कहा जाता रहा है"अजनाभदेश"और "जम्बूद्वीप" के नाम से भी जाना जाता रहा है यह देश । इस प्रमाण के अनुशार महाराज भरत 'आर्य' ही थे इसलिए भारत आर्यराष्ट्र ही था । आर्यावर्त'का मतलब ही 'आर्य लोगों का आवास' होता है ।
तीसरीबात ---
हमारे देश का एक नाम 'अजनाभदेश' भी था !
पुराणों के अनुशार -महाराज सगर के पुत्रों के पृथ्वी को खोदने से जम्बूद्वीप में आठ उपद्वीप बन गये थे जिनके नाम हैं-स्वर्णप्रस्थ, चन्द्रशुक्ल, आवर्तन, रमणक, मनदहरिण,पाञ्चजन्य,सिंहल तथा लंका।
जम्बूद्वीप के वर्ष-इलावृतवर्ष, भारतवर्ष, भद्राश्चवर्ष, हरिवर्ष, केतुमालवर्ष, रम्यकवर्ष , हिरण्यमयवर्ष, उत्तरकुरुवर्ष और किम्पुरुषवर्ष आदि आदि ! अब जानिए भारत देश का नाम 'अजनाभवर्ष' कैसे पड़ा ?
भारत को एक सनातन राष्ट्र माना जाता है क्योंकि यह मानव-सभ्यता का पहला राष्ट्र था। श्रीमद्भागवत के पञ्चम स्कन्ध में भारत राष्ट्र की स्थापना का वर्णन आता है। भारतीय दर्शन के अनुसार सृष्टि उत्पत्ति के पश्चात ब्रह्मा के मानस पुत्र स्वयंभू मनु ने व्यवस्था सँभाली। इनके दो पुत्र, प्रियव्रत और उत्तानपाद थे। उत्तानपाद भक्त ध्रुव के पिता थे। इन्हीं प्रियव्रत के दस पुत्र थे। तीन पुत्र बाल्यकाल से ही विरक्त थे। इस कारण प्रियव्रत ने पृथ्वी को सात भागों में विभक्त कर एक-एक भाग प्रत्येक पुत्र को सौंप दिया। इन्हीं में से एक थे आग्नीध्र जिन्हें जम्बूद्वीप(वर्तमान भारत) का शासन कार्य सौंपा गया। वृद्धावस्था में आग्नीध्र ने अपने नौ पुत्रों को जम्बूद्वीप के विभिन्न नौ स्थानों का शासन दायित्व सौंपा। इन नौ पुत्रों में सबसे बड़े थे नाभि जिन्हें हिमवर्ष का भू-भाग मिला। इन्होंने हिमवर्ष को स्वयं के नाम अजनाभ से जोड़ कर अजनाभवर्ष प्रचारित किया। यह हिमवर्ष या अजनाभवर्ष ही प्राचीन नाम भारतदेश था। राजा अजनाभ भी क्षत्रिय होने के नाते आर्य ही थे इस हिसाब से भी भारत प्राचीन काल से ही आर्यराष्ट्र रहा है ।
इस आर्यराष्ट्र का नाम भारत पड़ने का एक और कारण है इसी प्रकार से राजा नाभि के पुत्र थे ऋषभ। ऋषभदेव के सौ पुत्रों में भरत ज्येष्ठ एवं सबसे गुणवान थे। ऋषभदेव ने वानप्रस्थ लेने पर उन्हें राजपाट सौंप दिया। भारतवर्ष का नाम पहले ॠषभदेव के पिता नाभिराज के नाम पर अजनाभवर्ष प्रसिद्ध था। भरत के नाम से ही लोग अजनाभखण्ड को भारतवर्ष कहने लगे !
बंधुओ !जो लोग पुराणों की बातों को सच नहीं मानते हैं तो इन्हें गलत साबित करने का उनके पास आधार क्या है और यदि वो चाहें तो पुराणों को बातों को सच साबित करने के प्रमाण देने के लिए मैं तैयार हूँ मुझे अवसर दिया जाए !
डॉ.शेष नारायण वाजपेयी
संस्थापक :राजेश्वरी प्राच्य विद्या शोध संस्थान
अनादि काल से इस देश को सनातन धर्मीराजाओं के नाम पर जाना जाता रहा है! आर्यावर्त, "जम्बूद्वीप" अजनाभवर्ष, भारतवर्ष आदि सनातन धर्मी संस्कृतनिष्ठ नाम हैं !प्रदेशों गाँवों शहरों के अधिकाँश नाम हिन्दू संस्कृति से संबंधित हैं !नदियों तालाबों पहाड़ों के नाम हिंदू संस्कृति से संबंधित हैं सनातन हिंदू धर्म ही सबसे प्राचीन है इसलिए भारत वर्ष हिंदूराष्ट्र ही है !भारत सनातनधर्मी हिंदूराष्ट्र है धर्मनिरपेक्षता के नाम पर हिंदुस्तान में हिंदुओ की आस्था को रौंदना असंभव !भारतवर्ष न धर्मनिरपेक्ष है और न कभी हो सकता है इसे धर्म निरपेक्ष कहकर केवल धोखा दे रहे हैं कुछ लोग ! सनातनधर्मिता इस देश के स्वभाव में है उसे कैसे भूल जाएगा भारत ! यह सनातन धर्मी हिंदू राष्ट्र है भारत ! गो पूजन इस देश के स्वभाव में है और स्वभाव किसी का बदलता नहीं है अनादि काल से इस देश के नाम आर्यावर्त, अजनाभ वर्ष,भारतवर्ष आदि पड़े हुए हैं ये सभी लोग सनातन धर्मी रहे हैं!
सनातनधर्मी हिंदूराष्ट्र भारतवर्ष का नाम अनादि काल से सनातनधर्मी हिंदुओं के नाम पर है आर्यावर्त ,अजनाभ वर्ष ,भारतवर्ष ,हिंदुस्तान आदि सारे नाम तो हिंदू संस्कृति से संबंधित हैं | भारत के हर प्रदेश के नाम हिन्दू संस्कृति से संबंधित हैं भारत वर्ष की हर नदी सरोवरों पहाड़ों के नाम हिंदू संस्कृति से संबंधित हैं देश प्रदेश नदियों पहाड़ों के नामों से संबंधित कथा कहानियाँ पुराणों में वर्णित हैं चूँकि सनातन हिंदू धर्म ही सबसे प्राचीन है इसलिए ये भी नहीं कहा जा सकता कि किसी अन्य धर्म के नाम मिटाकर अपने धर्म से सम्बंधित रख लिए गए हैं ।
ऐसे सभी प्रमाण इस बात की ओर इशारा करते हैं कि भारतवर्ष आदि काल से सनातनधर्मी हिंदुओं का देश है और यदि ऐसा ही है तो इसे धर्मनिरपेक्ष मान लिया जाए हिंदुओं पर ऐसा दबाव क्यों ?क्या ये उस तरह की बात नहीं है जैसे किसी के घर में कुछ लोग जबर्दस्ती घुस आएँ रहने लगें और कहने लगें कि ये घर तो अपना सबका है ये हिंदुओं को कमजोर दिखाने की कोशिश नहीं है क्या ?
सभी धर्मों के लोग इस देश में रहते हैं ये और बात है बहुत देशों में ऐसा होता है ये हिन्दुओं की सहिष्णुता का प्रतीक है किंतु ये सब कुछ आपसी सहिष्णुता से भी तो संभव है इसके लिए किसी देश की प्राचीन पहचान मिटाना जरूरी क्यों है भारत सनातनधर्मी हिंदूराष्ट्र है तो उसे हिंदुराष्ट्र ही क्यों न बना रहने दिया जाए !इसे धर्मनिरपेक्ष कहलाना जरूरी क्यों है ।
भारत की धर्म निरपेक्षता के साइड इफेक्ट इतने घातक होंगे किसी को पता था क्या ? गो रक्षा की बात हो ,अयोध्या काशी मथुरा के मंदिरों की बात हो या वंदे मातरं बोलने की बात हो या योग करने की बात हो या ॐ बोलने की बात हो धर्म निरपेक्षता की आड़ लेकर हर जगह टाँग फँसा कर खड़े हो जाना ये कहाँ का न्याय है इस हिसाब से तो सनातन हिंदू धर्मी भारत वर्ष अपनी सारी पहचान ही भूल जाए !या उन लोगों के मुख ताक ताक कर काम करे जो सनातन हिंदूधर्मी गतिविधियों से द्वेष करते हैं !
मंदिर बनना या न बनना उन लोगों की कृपा पर कब तक टिका रहेगा जिनकी मंदिर में भगवान् श्री राम में कोई आस्था ही नहीं है !वो ऐसी कोई आपसी सहमति क्यों बनने देंगे जिससे अयोध्या में श्री राम मंदिर बन जाए !क्योंकि उनका कोई नुक्सान ही नहीं है न ही उनका कोई काम ही रुका है |अन्यथा देश को यदि धर्म निरपेक्ष ही बनाना है तो सबके धर्म स्थलों में जगह दिलाई जाए श्री राम मंदिर बनाने की अन्यथा अयोध्या को भी निर्विवादित बनाया जाए !
आज सनातन हिंदूधर्मी भारत वर्ष की यह स्थिति हो गई है कि हिंदू लोग अपने तीर्थों में अपने सबसे बड़े भगवानों के मंदिर भी अपनी इच्छा से अपने अनुसार नहीं बना सकते हैं । इसका मतलब इस देश में हिन्दुओं का कुछ है ही नहीं हम ख़ाक आजादी की वर्ष गाँठ मनाते हैं ।
भारतवर्ष और उसके किसी प्रदेश का नाम धर्मनिरपेक्ष नहीं हैं भारतवर्ष यदि धर्मनिरपेक्ष होता ! तो अयोध्या मथुरा और काशी जैसे हिंदुओं के महान तीर्थ हिन्दुओं को सौंप दिए जाते ! सनातन धर्मी हिन्दुओं को उनके अपने धार्मिक तीर्थों मंदिरों नदियों तालाबों पहाड़ों को अपने अनुसार सजाने सँवारने बनाने एवं रख रखाव के निर्णय का स्वतंत्र अधिकार हिन्दुओं को दिए बिना धर्म निरपेक्षता की परिकल्पना ही नहीं की जा सकती !
इस बात का ध्यान देना चाहिए कि इस देश का स्वभाव ही सनातन धर्मी है गायों के हत्यारों से इस देश का कभी कोई संबंध ही नहीं रहा !इस देश के अभी तक जितने भी नाम पड़े वो सारे सनातनधर्मी हिन्दुओं के ना पर ही पड़े हैं क्योंकि ये देश सनातन धर्मी हिन्दुओं का है हम सनातन धर्मी लोग गाय को पूजते हैं यह जानते हुए भी जो लोग गायों का बध करते हैं वो गलत करते हैं !
इस विषय में प्राचीन पौराणिक साहित्य के शोध के अनुशार - हमारे देश का नाम 'भारत' कैसे पड़ा और यह देश अति प्राचीनकाल से आर्यराष्ट्र ही है इसके प्रमाण क्या हैं जानिए ?
इस देश का नाम 'भारत ' है जो एक प्राचीन हिन्दू सम्राट 'भरत' के नाम पर रखा गया था । जैसे 'कुरु' से 'कौरव' ,वसुदेव' से 'वासुदेव', 'तिल' से 'तैल'आदि शब्द संस्कृत व्याकरण के अनुशार आदि 'अच'की वृद्धि होकर बनाए जाते हैं इसीप्रकार से 'भरत'शब्द से 'भारत'शब्द का निर्माण हुआ है ।भारत (भा+रत) शब्द का मतलब है 'आंतरिक प्रकाश' ।
महाराज 'भरत' मनु के वंशज ऋषभदेव जी के ज्येष्ठ पुत्र थे इससे पहले 'भारतवर्ष' को वैदिक काल या आदिकाल से ही 'आर्यावर्त'अर्थात 'आर्य लोगों का आवास' कहा जाता रहा है"अजनाभदेश"और "जम्बूद्वीप" के नाम से भी जाना जाता रहा है यह देश । इस प्रमाण के अनुशार महाराज भरत 'आर्य' ही थे इसलिए भारत आर्यराष्ट्र ही था । आर्यावर्त'का मतलब ही 'आर्य लोगों का आवास' होता है ।
तीसरीबात ---
हमारे देश का एक नाम 'अजनाभदेश' भी था !
पुराणों के अनुशार -महाराज सगर के पुत्रों के पृथ्वी को खोदने से जम्बूद्वीप में आठ उपद्वीप बन गये थे जिनके नाम हैं-स्वर्णप्रस्थ, चन्द्रशुक्ल, आवर्तन, रमणक, मनदहरिण,पाञ्चजन्य,सिंहल तथा लंका।
जम्बूद्वीप के वर्ष-इलावृतवर्ष, भारतवर्ष, भद्राश्चवर्ष, हरिवर्ष, केतुमालवर्ष, रम्यकवर्ष , हिरण्यमयवर्ष, उत्तरकुरुवर्ष और किम्पुरुषवर्ष आदि आदि ! अब जानिए भारत देश का नाम 'अजनाभवर्ष' कैसे पड़ा ?
भारत को एक सनातन राष्ट्र माना जाता है क्योंकि यह मानव-सभ्यता का पहला राष्ट्र था। श्रीमद्भागवत के पञ्चम स्कन्ध में भारत राष्ट्र की स्थापना का वर्णन आता है। भारतीय दर्शन के अनुसार सृष्टि उत्पत्ति के पश्चात ब्रह्मा के मानस पुत्र स्वयंभू मनु ने व्यवस्था सँभाली। इनके दो पुत्र, प्रियव्रत और उत्तानपाद थे। उत्तानपाद भक्त ध्रुव के पिता थे। इन्हीं प्रियव्रत के दस पुत्र थे। तीन पुत्र बाल्यकाल से ही विरक्त थे। इस कारण प्रियव्रत ने पृथ्वी को सात भागों में विभक्त कर एक-एक भाग प्रत्येक पुत्र को सौंप दिया। इन्हीं में से एक थे आग्नीध्र जिन्हें जम्बूद्वीप(वर्तमान भारत) का शासन कार्य सौंपा गया। वृद्धावस्था में आग्नीध्र ने अपने नौ पुत्रों को जम्बूद्वीप के विभिन्न नौ स्थानों का शासन दायित्व सौंपा। इन नौ पुत्रों में सबसे बड़े थे नाभि जिन्हें हिमवर्ष का भू-भाग मिला। इन्होंने हिमवर्ष को स्वयं के नाम अजनाभ से जोड़ कर अजनाभवर्ष प्रचारित किया। यह हिमवर्ष या अजनाभवर्ष ही प्राचीन नाम भारतदेश था। राजा अजनाभ भी क्षत्रिय होने के नाते आर्य ही थे इस हिसाब से भी भारत प्राचीन काल से ही आर्यराष्ट्र रहा है ।
इस आर्यराष्ट्र का नाम भारत पड़ने का एक और कारण है इसी प्रकार से राजा नाभि के पुत्र थे ऋषभ। ऋषभदेव के सौ पुत्रों में भरत ज्येष्ठ एवं सबसे गुणवान थे। ऋषभदेव ने वानप्रस्थ लेने पर उन्हें राजपाट सौंप दिया। भारतवर्ष का नाम पहले ॠषभदेव के पिता नाभिराज के नाम पर अजनाभवर्ष प्रसिद्ध था। भरत के नाम से ही लोग अजनाभखण्ड को भारतवर्ष कहने लगे !
बंधुओ !जो लोग पुराणों की बातों को सच नहीं मानते हैं तो इन्हें गलत साबित करने का उनके पास आधार क्या है और यदि वो चाहें तो पुराणों को बातों को सच साबित करने के प्रमाण देने के लिए मैं तैयार हूँ मुझे अवसर दिया जाए !
डॉ.शेष नारायण वाजपेयी
संस्थापक :राजेश्वरी प्राच्य विद्या शोध संस्थान
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