Monday, 21 March 2016

"ब्राह्मणों सवर्णों को गरियाकर करोड़पति बने दलित नेता व चिंतक पर दलित आज भी जस के तस "

   आपके  इस आर्टिकल की विषयसामग्री जिस लेख से ली गई उस लेखक से अनुमति ली गई है क्या ?

 To - Revolt Press
  महोदय ,
       आपने  1 मार्च 2016 को हमारा एक आर्टिकलकिसी और के नाम से प्रकाशित किया है जबकि इस लेख की संपूर्ण विषय वस्तु हमारे इस लेख से उठाई हुई है आपका वो लेख है ये -
"ब्राह्मणों सवर्णों को गरियाकर करोड़पति बने दलित नेता व चिंतक पर दलित आज भी जस के तस "see more.... http://hindi.revoltpress.com/blog/the-fundamentalism-of-dalit-leaders-thinkers/ "

जिस लेख से विषय वस्तु उठाई गई है   हमारा वो लेख है ये -  
"Sunday, 6 December 2015

ब्राह्मणों को गालियाँ दे देकर लोग कितने बड़े बड़े पदों पर पहुँच गए किंतु ब्राह्मणों ने कभी किसी का बुरा नहीं किया !see more.... http://samayvigyan.blogspot.in/2015/12/blog-post_6.html"
   महोदय !आपकी दृष्टि से यदि ये उचित है तो आपके द्वारा प्रकाशित  की गई किसी भी विषय वस्तु को  हेडिंग और कुछ लाइनें बदलकर मूल विषय वस्तु को जैसा का तैसा किसी और के नाम से प्रकाशित करना उचित माना जाएगा क्या ? इसलिए उचित होगा कि इस आर्टिकल को अविलंब हटाया जाए साथ ही हमारे आर्टिकल को प्रकाशित करने का उचित पारिश्रमिक हम तक पहुँचाया जाए ! अन्यथा एक सप्ताह बाद किसी भी दिन कानूनी मदद लेने के लिए हम भी विवश होंगे !
                     निवेदक -   डॉ. शेष नारायण वाजपेयी 

Friday, 18 March 2016

भारत माता की जय नहीं तो पराजय बोलेंगे क्या ? ऐसे शब्द सुनकर भी क्यों सह जाएँ देश भक्त !

 भारत माता बाँझ नहीं है भारत माता की जय बोलने के लिए मातृभूमि के करोड़ों सपूत ज़िंदा हैं ! मातृभूमि के चरणों में समर्पित करोड़ों सपूत देश भक्त वो दिन देखने के लिए ज़िंदा नहीं रहना चाहेंगे जिस दिन भारत माता की पराजय हो !

      भारत माताकी विजय के लिए देशभक्त सैनिक हथेली पर जान लिए जूझ रहे हैं सीमा पर दुश्मनों से !कितनी कठिन और संघर्ष पूर्ण जिंदगी जी रहे हैं वे !अरे गद्दारो ! अपने सैनिकों का उत्साह बढ़ाने के लिए तुम भारत माता की जय भी नहीं बोल सकते !देश तुम्हें कैसे अपना समझे ! कैसे माने कि तुम देश की मुसीबत में देश की भावना के साथ खड़े होगे !
    भारत माता की जय कहने को इंकार करने वालों को गंभीरता से लिया जाना चाहिए !ऐसे पापियों को उस देश के लोकतंत्र का अंग कैसे माना जाए जिनका अपने देश की जय से लगाव ही न हो ! 
     जब देश स्वतंत्र है स्वस्थ है सक्षम है समृद्ध लोकतंत्र है तब इसी देश में रहकर तुम देश को विजय दिलाना तो दूर देश के प्रति विजय भावना रखना तो दूर देश की जय भी नहीं बोल सकते !अरे पापियो जिस देश का नमक खाते हो उसके साथ इतनी गद्दारी तो न करो कि देश भावना रो जाए ! 



    जिस धरती की सुरक्षा के लिए शहीद हुए सैनिकों के शिर पाने के लिए अभी तक देश बाट जोह रहा है ?उस देश में बैठ कर कोई भारत माता की जय बोलने को इंकार करके देश भक्त भारतीयों को मुख चिढ़ाने और शत्रु राष्ट्र को प्रसन्न करने का प्रयास भारत में बैठ कर क्यों कर रहा है ।  देश की पीड़ा को हवा में उड़ा देना कहाँ तक उचित है? हम पड़ोसी देश के साथ भी  सगे भाइयों की तरह प्रेम पूर्वक रहना चाहते हैं आखिर यह क्यों नहीं संभव हो पा रहा है?उसके पीछे ऐसी ही राष्ट्र विरोधी विचार धाराएँ जिम्मेदार हैं 
      जिस देश के पास इतनी ताकत हो उसके सैनिकों के शिर काट लिए गए थे ।कायदा ये है कि हमें तो प्रतिज्ञा करनी चाहिए कि जिस दिन अपने सैनिकों के शिर वापस लाएँगे  हमारा गणतंत्र दिवस और दिवाली सब कुछ उसी दिन होगा ।
   26 जनवरी पर सब तरह की झाँकियाँ सारे विश्व ने जरूर  देखी होगी हमारे प्यारे भारत वर्ष की  समर सामर्थ्य !इसप्रकार वहाँ जो भी झाँकियाँ थीं उनमें कुछ सजीव तथा निर्जीव थीं, जो कुछ सजीव झाँकियाँ ऐसी थीं।जिनमें नेता, मंत्री मुन्त्री, प्रधान मंत्री टाईप की हँसती मुस्कुराती हुई थीं।उनके मुखमंडलों पर प्रणम्य भारतीय सैनिकों के शिर न ला पाने के लिए आत्मग्लानि का कोई भाव नहीं दिख रहा था।सबकुछ झाँकियों में समिट सा चुका था सब तरह की झाँकियाँ और  झाँकियाँ ही झाँकियाँ !बस केवल झाँकियाँ ?या कुछ और? 
      यह सब  देख देखकर लग रहा था -वाह रे हम और हमारा देश!हमारे वीर सैनिकों ,वैज्ञानिकों ने देश के लिए बहुत कुछ बना चुना कर सँवार सुधारकर रखा है।इसीबल पर हमारे शौर्य संपन्न वीर सैनिक  हमेशा दुश्मनों को ललकारा करते हैं और जब जब उन्हें अवसर मिला है तब तब उन्होंने अपने अदम्य साहस का न केवल परिचय भी दिया है अपितु दुश्मनों के सहस्रों फनों को एक नहीं कई बार कुचला है ।आज भी इन सबके बीच भीरु राजनेताओं के सुषुप्त शौर्य को ललकारते हुए वीर सैनिकों ने जो रणकौशल दिखाए वो भारतीय जनसंपदा को ढाढस बँधाने के लिए कम नहीं थे।
      तरुणाई की अरुणिमा से आह्लादित रणबांकुरों का आत्मसम्मान से  दमकता हुआ देदीप्यमान उन्नत मस्तक ,छलकता हुए  शौर्य संपन्न प्रणम्य सैन्य समुदाय को देखकर  उस दिव्यता से हमारा हृदय भी हर्ष की हिलोरें मारने लगा । देश की मिट्टी के कण कण की रक्षा के लिए आतुर स्व तनों को तृणवत समझने वाले भारतीय वीरपुंगव सशस्त्र शूरमाओं को किसी की नजर न लग जाए यह सोच सोच कर मैं मन ही मन ईश्वर से उनके दीर्घायुष्य एवं कुशलता की कामना करने लगा। 
        रह रहकर  हृदय में हूक सी उठती थी कि कहाँ गए उन पवित्र भारतीय सैनिकों के प्रणम्य शिर? जिन्हें कभी ललकारा करते थे उन शत्रु सनिकों के आधीन होंगे हमारे भारती कुमारों के  शिर! जिनकी आन बान शान  सुरक्षा के लिए वो लड़े आखिर उन देशवासियों का उनके प्रति कोई दायित्व बनता है क्या ?आखिर क्या कर सकते हैं देशबासी?एकबार बोट देकर जिन्हें सत्ता सौंप चुके हैं अब क्या कर लेगा कोई उन  सत्तालु लोगों का ?कुछ भी करें या न करें।आखिर अपनी कर्मकुंडली उन्हें भी पता है कि जो जो हमने किया है जनता हमें अबकी चुनावों में  क्यों चुनेगी ?अगले चुनावों तक भूल जाएगी !ऐसे में हम आखिर क्यों किसी से दुश्मनी लें ?दूसरी बात यह भी है कि किसी राज नेता या उसके नाते रिश्तेदार का शिर तो है नहीं जो लाने की कोई मजबूरी ही हो! ये तो आम  सैनिक का शिर है इसलिए बस  बातों बातों में समय पास करना है कभी धमकी देंगे कभी माफी माँग लेंगे कह देंगे ये तो सामाजिक मजबूरी है इतना तो कहना करना ही पड़ता है।इसी प्रकार  थोड़े दिनों में सब स्वयं भूल भाल जाएँगे । यदि ऐसा न होता तो आम जनता को पता लगना चाहिए कि आखिर अपने देश के स्वाभिमान सम्मान का प्रतीक अपने वीर सैनिक का सम्माननीय शिर  कहाँ है और  कब मिलेगा ?और यदि  उस समय सीमा के अन्दर नहीं मिलेगा तो अपना शिर लाने के लिए सरकार का अग्रिम कदम क्या होगा ?साथ ही अपने देश की जन भावना से सभी देशों को अवगत करा दिया जाना चाहिए कि हम किसी भी कीमत पर अपने शिर के साथ समझौता नहीं कर सकते।हाँ, यदि हम  ऐसा कहने करने का साहस नहीं कर पा रहे हैं तो स्पष्ट  है कि हम भयग्रस्त हैं और दुर्भाग्य से यदि ऐसा है तो गणतंत्र दिवस पर वीरता की कहानी कहने वाली ये झाँकियाँ इस देश के  किस काम की ?
        अब झाँकियाँ दिखाने के साथ साथ शत्रु सेना में  झंझावात मचाने का समय है आखिर जिस  शिर के साथ देश का सम्मान जुड़ा हो वह हमारे लिए सामान्य शिर नहीं है ।ये बात यदि हम एक बार नहीं समझा पाए तो शत्रु इसके बाद  कितनी भी बड़ी नीचता कर सकता है यह सोच कर मन सिहर उठता है कि सैनिकों का सम्मान स्वाभिमान एवं जीवन हमारे लिए  बहुमूल्य है।आखिर जिन देशवासियों की सुरक्षा के लिए वीर सैनिकों ने  अपना जीवन बलिदान किया है उस समर्पण का सम्मान करते हुए देशवासी यदि वह शिर भी न ला सके तो आखिर उन वीर सैनिकों के और किस काम आएँगे ?
   सैनिक अपनी युवती पत्नी छोटे छोटे बच्चे एवं वृद्ध माता पिता को घर में छोड़कर देशवासियों की रक्षा के लिए देश की सीमाओं की सुरक्षा में कठोर समर्पण की साधना करते करते प्राण न्योछावर कर देता है।ऐसे  सैनिकों के प्रति सरकार एवं समाज का रुख !उनके परिवारों के प्रति आर्थिक सहयोग देने वालों की सोच एवं सहयोग राशि में कितनी उपेक्षात्मक  असमानता है !
      आतंकवाद से सुरक्षा के लिए सैनिकों का उत्साह बर्धन बहुत आवश्यक है। मुझे लगता है कि जाने अनजाने एक बड़ी चूक हमसे हो रही है जिसका सुधार किया जाना चाहिए।
  यह गंभीर चिंता का विषय है ! आखिर देश में बैठकर कोई भारत माता की जय बोलने से इंकार करे ये दुस्साहस !हमारी सरकारों में बैठे जनप्रतिनिधि नेताओं का खून क्यों नहीं खौलता? 
   
      मित्रों! कारगिल विजय काव्य  लिखने  के बाद आज पहली बार गणतंत्र दिवस जैसे प्रसन्नता के अवसर पर भी शहीद सैनिकों की याद में  मैं कई बार रोया हूँ फिर भी यदि हमारे किसी वाक्य से किसी को विशेष ठेस लगी हो तो मैं सभी से क्षमा प्रार्थी हूँ क्योंकि मेरा उद्देश्य किसी को ठेस पहुँचाना न होकर अपितु देश भक्ति हेतु जन जागरण करना है। 
 

Monday, 14 March 2016

RSS के हॉफपैंट से परास्त काँग्रेस अब कैसे जूझेगी फुलपैंट से !उधर लालू जी पूँछ उठाए चिल्ला रहे हैं अलग से !

   काँग्रेस की जी हुजूरी में दुम हिलाकर जो आदमी केंद्र की सरकार में चौधराहट चमकाता रहा हो उसकी कर्मकुंडली इतनी अच्छी कि चुनाव लड़ने की अनुमति नहीं !उसे देश वासियों ने शक्त हिदायद पूर्वक खदेड़ कर घुसा दिया है केवल एक प्रदेश में !खबरदार जो दिल्ली की ओर देखा तो !यहीं बको जो कुछ बकना है ऐसी चीजें खुले में नहीं छोड़ी जातीं !दिल्ली की आवाज विश्व सुनता है ऐसे बड़बोले लोग संघ की हॉफपैंट तो झेल नहीं पाए उनके बश की है क्या कि वो फुल पैंट का सामना करेंगे ! 
     आरएसएस परिवार की हिन्दी हिन्दू हिंदुस्तान की निष्ठा पर  भरोसा करके लोगों ने हिंदुत्ववादी शक्तियों के हाथ में सत्ता सौंपकर हिंदुत्व पर भरोसा किया है! जनता के उस निर्णय को झुठलाना चाहता है विपक्ष !हिन्दी हिन्दू हिंदुस्तान की गरिमा के प्रति समर्पित NDA को जनता ने चुना है जब विरोधी UPA ने हिन्दी हिन्दू हिंदुस्तान का भरोसा तोड़ा है तो जनता क्या करे UPA को धक्का देना उसकी मजबूरी थी ! 
     अब देश की जनता जो चाहेगी वो होगा कुछ लोगों के शोर मचाने से कुछ नहीं होगा !संघ परिवार की हिन्दू राष्ट्रवादी भावना से विश्व सुपरिचित है देश सुपरिचित है देश के सभी राजनैतिक दल एवं उनके नेता सुपरिचित हैं देशवासी सुपरिचित हैं देश का मीडिया सुपरिचित है !इसीलिए भाजपा समेत समस्त आनुषांगिक  संगठनों के साथ सम्पूर्ण संघ परिवार  की  ही दशकों से आलोचना भी होती रही फिर भी अर्थात् वो सब कुछ सहते हुए भी संघ परिवार ने अपनी पहचान इसी रूप में बना रखी है।       दूसरी ओर देश के राजनैतिक वातावरण में दो प्रमुख गठबंधन हैं NDA और UPA, हिंदुत्व समर्थक लोग NDA से जुड़ते गए और जो विरोधी थे वो UPA से  जुड़ते चले गए ! इसी प्रकार से  भाजपा में मोदी जी की पहचान भी कट्टर हिन्दू के रूप में ही बनी हुई है ।मोदी जी को P.M. प्रत्याशी के रूप में जैसे ही आगे बढ़ाया गया वैसे ही एक तथाकथित धर्म निरपेक्ष दल NDA को छोड़कर चला गया था !इन सब बातों से ये प्रमाणित हो ही चुका था कि अबकी NDA हिंदुत्व के पथ पर आगे बढ़ेगा  इसी बात का प्रचार प्रसार UPA वालों ने खूब जोर शोर से किया भी था इसके बाद भी देश की जनता ने हिंदुत्व(NDA) को चुना और उस बनावटी धर्मनिरपेक्षता (UPA)को नकारा है ! इसलिए अब तथाकथित धर्मनिरपेक्ष लोगों एवं दलों को साम्प्रदायिकता का हो हल्ला करना बंद कर देना चाहिए !और उन्हें स्वीकार कर लेना चाहिए कि देश की जनता का विश्वास उनसे टूट चुका है !   
    संघ जैसे राष्ट्र प्रहरी संगठन एवं भाजपा को लेकर क्यों किया जाता है अक्सर दुष्प्रचार !? देश ,समाज और संस्कृति के प्रति समर्पित है आर .एस.एस. ! बंधुओ !विश्वास किया जाना चाहिए कि देश के प्रति स्वश्रृद्धा से समर्पित आर. एस. एस. के ये ऐसे पवित्र प्रचारक हैं जो अपने दुलारे देश के विरुद्ध कुछ करने और बोलने की बात तो दूर कुछ सोच भी नहीं सकते, कुछ सह नहीं सकते।राष्ट्रनिष्ठा के प्रति ये इतने कट्टर लोग हैं ये अत्यंत ऊँची राष्ट्रवादी सोच के धनी लोग हैं जो तुच्छ जिजीविषा कभी नहीं स्वीकार करेंगे।देश और समाज के लिए जिन्होंने अपना जीवन ही दाँव पर लगा रखा है अपने देश और समाज पर कोई हमला करे वो दुर्दिन देखने के लिए ये जीवित रहना भी पसंद नहीं करेंगे मैं इनकी राष्ट्र निष्ठा से निजी तौर पर भी सुपरिचित हूँ जहाँ तक मेरी समझ मेरा साथ देती है मैं विश्वास पूर्वक कह सकता हूँ कि ये अपने देश के विरुद्ध कुछ होते देखकर भी जीने के लिए पैदा ही नहीं हुए हैं ऐसे सज्जनों की आवश्यकता देश को है।जिस किसी को न हो तो न रहे बाक़ी देश को है । राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रचारकों की पवित्र एवं विरक्त जीवन शैली होती है उनका वाणी एवं आचरण पर अद्भुत संयम देखा जाता है भारतीय समाज एवं संस्कृति के प्रति समर्पित उनका आचार व्यवहार है देश ही उनका परिवार है।राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के साथ साथ उसके अतिरिक्त भी समाज के ऐसे सभी सज्जन एवं साधु चरित्र लोगों पर एवं देश की रक्षा में समर्पित बंदनीय सैनिकों के ऊपर कोई भी टिप्पणी सात्विक शब्दों में अत्यंत सावधानी पूर्वक की जानी चाहिए।मैं मानता हूँ कि संत वही है जिसका आचरण सदाचारी और विरक्त हो। जाति,क्षेत्र,समुदाय,संप्रदाय वाद से ऊपर उठकर ऐसे लोगों के प्रति सम्मान भावना का संस्कार नौजवानों में डालना ही चाहिए । 
 मोहन भागवत जी एक सक्षम विचारक हैं उन्होंने अपना सारा जीवन देश और समाज के लिए समर्पित कर रखा है उनके सक्षम संगठन के विभिन्न आयाम देश के कोने कोने में जनहित में विभिन्न प्रकार के काम कर रहे हैं।गरीबों, बनबासियों, आदिवासियों, ग्रामों, नगरों, शहरों के साथ साथ स्वदेश से लेकर विदेशों तक का उनका अपना अनुभव है।वो ग्रामों, शहरों की संस्कृति से अपरिचित नहीं अपितु सुपरिचित हैं। इसके अलावा भी भाजपा समेत इसके समस्त संगठनों की आलोचना जितनी निर्ममता पूर्वक विभिन्न राजनैतिक दलों या नेताओं के द्वारा की जाती है किसी लज्जावान व्यक्ति या समूह के लिए ऐसा कर पाना सम्भव नहीं है ! आप स्वयं देखिए कि गुजरात की जनता मोदी जी के विषय में चिल्ला चिल्लाकर न केवल यह कहती रही कि मोदी जी अच्छी सरकार चला रहे हैं अपितु उनका समर्थन भी बार बार करती रही तभी तो उनकी सरकार हर बार बनती रही फिर भी गुजरात में चुनावों के समय दिल्ली से नेता लाद लाद कर गुजरात की जनता को यह समझाने के लिए भेजे जा रहे थे कि मोदी जी गलत हैं या मोदी जी धर्म विशेष के लोगों के लिए खतरा हैं आखिर इसे झगड़ा भड़काने की साजिश क्यों न समझा जाए ! जो गुजरात की जनता को नहीं पता था वो स्वप्न इन्होंने कैसे देख लिया होगा उसके आधार इनके पास क्या थे ! फिर भी इन्हें लग रहा था कि हम्हीं समझदार हैं किन्तु जनता इन्हें बार बार इस बात का एहसास करवाती रही कि वास्तव में समझदार कौन है !यही हाल अबकी पूरे देश की जनता ने किया फिर भी इन्हें समझ में नहीं आ रहा है !इन्हें इस बात का भी अनुमान नहीं है कि अब आर.एस.एस. या भाजपा को तालिबानी कहने का अर्थ सम्पूर्ण भारत वर्ष की जनता को चुनौती देना है क्योंकि सत्ता तो उन्हें देश की जनता ने सौंपी है एक राजनैतिक दल की हैसियत सुरक्षित रखने की दृष्टि से भी किसी दल के लिए आर. एस. एस. या भाजपा की निराधार आलोचना करना इसलिए भी ठीक नहीं है क्योंकि इस समय जनता उनके साथ उन्हें अच्छा समझ कर ही खड़ी हुई है और लोकतंत्र में जनता से बड़ा कोई होता नहीं है !
 किसी भी राजनैतिक सामाजिक संगठन को चाहिए कि वो आर. एस. एस.जैसे संगठनों में सम्मिलित होकर इनकी गतिविधियाँ देखे एवं इनकी सामाजिक सांस्कृतिक साधना की सराहना करें इन्हें प्रोत्साहित करें इनका सहयोग करें और कहीं शंका लगती है तो उस पर चर्चा करें या शंका समाधान करें ,किन्तु ऐसा बिना कुछ किए ही बिना किसी आधार प्रमाण के इनके विषय में कुछ अनर्गल बोलते रहना ठीक पद्धति नहीं है !            आज आर .एस.एस. की तुलना कोई तालिबान से कर रहा है तो कोई भगवा आतंकवाद बता रहा है कोई देश और समाज को तोड़ने वाला बता रहा है वो भी वो लोग जो देश की सरकार में अभी तक रह चुके हों फिर प्रश्न तो उठता है कि यदि ये गलत हैं तो ऐसे लोगों के विरुद्ध इन्होंने कोई जाँच क्यों नहीं करवाई !     एक बार एक राष्ट्रीय राजनैतिक दल  के मंथन शिविर में भाजपा को आर.एस.एस.की कठपुतली बताया गया और भाजपा का रिमोट आर.एस.एस. के हाथ में बताया गया आखिर क्यों ?और यदि ऐसा है भी तो संघ जैसे चरित्र प्रहरी संगठन के प्रति इतनी आशंकाएँ क्यों हैं आखिर क्या भूल हुई है उससे ! केवल यही न कि देश की गौरव रक्षा हेतु वो मर मिटने के लिए तैयार है! वो स्वदेशियों को स्वाभिमानी बनाना चाहता है आर. एस. एस.की सोच में ही नहीं है कि कोई राष्ट्रवादी भारतीय किसी विदेशी के सामने गिड़गिड़ाकर राजनैतिक या गैर राजनैतिक पद प्रतिष्ठा पाने के लिए दुम हिलाए या  भीख माँगे !       आर.एस.एस.एक स्वतंत्र संगठन है राष्ट्रभक्ति की भावना से कार्य करने की उनकी अपनी शैली है।सत्ता सुख की ईच्छा छोड़कर देश के लाखों लोग उनके साथ जुड़कर समाज सुधार के विभिन्न कार्यों में लगे रहते हैं ।वे मंत्री मुन्त्री पद के लोभ में किसी अभारतीय का चरण चुम्बन नहीं करना चाहते हैं तो इसमें उनका दोष क्या है?वो भारतीयता पर गर्व करते हैं इसमें किसी को बुरा क्यों लगे और लगे तो लगे।आखिर उन्हें अनावश्यक रूप से क्यों कोसा जाता है ?
       आर .एस.एस. की विचार धारा में स्वदेश के प्राचीन पवित्र संस्कारों के आधार पर जीना सिखाया जाता है। जिसमें न तो आधुनिक लव है और न ही लव मैरिज।ऐसे लव लबाते लोग किसी पवित्र संगठन में सड़ांध पैदा करें इससे अच्छा है कि ऐसे लोग दूर ही रहें और उन्हें उनकी शैली में काम करने दें। आखिर बलात्कार, भ्रष्टाचार,महँगाई से लुटे पिटे बचे खुचे देश का पुनर्निमाण करने के लिए जिन देश भक्त स्वयं सेवकों की जरूरत देश को है उनके निर्माण कार्य में ऐसे संगठन निरंतर प्रशंसनीय कार्य करते चले आ रहे हैं।अपने आकाओं को प्रसन्न करने एवं सत्ता पाने के लालच में आर .एस.एस. की आलोचना कितनी न्यायोचित है ?ये अकारण निंदा करने की परंपरा ठीक नहीं है । अब बात यहाँ संस्कारों की है लव मैरिज के लालच में लोग पहले लव करते हैं फिर लव मैरिज ।लव में असफल होने पर बलात्कार करते हैं उसके बाद हत्या करते हैं जो आज देश की सबसे बड़ी समस्या बनती जा रही है!ऐसा होने पर बलात्कारी नवजवानों को फाँसी की सजा की माँग उठती है ।यदि फाँसी की सजा हो जाए तो फाँसी के फंदे पर लटकने वाला भारतीय नवजवान ही होगा।जिसकी ऊर्जा कभी देश हित में काम आ सकती थी उसे प्रेम प्यार के चक्कर में पड़कर मनोरंजन के लिए जिंदगी गँवानी पड़ी।
     इस प्रेम प्यार के चक्कर में पड़कर मरने और मारने वाले दोनों युवक युवतियाँ भारतीय ही तो हैं इसलिए संस्कारों के अभाव में यह नुकसान देश को उठाना पड़ता है इसलिए यह चिंतन भी होना चाहिए कि ऐसा क्या किया जाए जिससे भारतीय युवा वर्ग लव वब के चक्कर में न पड़े और अपने प्राचीन संस्कारों पर न केवल गर्व करें अपितु उन्हें अपने आचरण में भी उतारें । इससे जब लव मैरिज का लालच ही नहीं होगा तो लोग  लव  वब के चक्कर में  पड़ेंगे ही क्यों ?और जब इस चक्कर में ही नहीं  पड़ेंगे तो उन्हें प्रेम पंथ में असफल होने का दुःख ही क्यों होगा ?इसलिए वो  बलात्कार जैसा जघन्य अपराध नहीं करेंगे तो किसी की हत्या करने की आवश्यकता ही क्यों पड़ेगी ? जब बलात्कार  ही नहीं होगा तो नवजवानों को फाँसी की सजा नहीं होगी यदि फाँसी की सजा न हुई तो बलात्कार से पीड़ित एवं बलात्कारी दोनों युवा सुसंस्कारित हो कर देश के काम आ सकेंगे ये ही भारत के प्राचीन संस्कार हैं इन्हें हर भारतीय प्रचारित करे तो इससे किसी को आपत्ति नहीं होनी चाहिए, और आर.एस.एस. की विचारधारा में स्वदेश के प्राचीन पवित्र संस्कारों के आधार पर ही यदि  जीना सिखाया जाता है तो और अच्छी बात है यदि इससे देश की एक बड़ी पार्टी भाजपा भी जुड़ी है तो यह  सबसे अच्छी बात है।इससे किसी को तकलीफ क्यों होनी चाहिए?हाँ जिन पार्टियों में भारतीय संस्कारों की कमी के कारण उनके वरिष्ठ लोग ही लव और लव मैरिज में जब रूचि ले रहे हों  तो वो किसी और को कैसे रोक  सकेंगे ?और उन्हें  आर.एस.एस. बुरा तो लगेगा ही जहाँ तक आर.एस.एस. की विचार धारा की कठपुतली जैसी शब्दावली भाजपा के लिए यदि कोई प्रयोग करता है तो वह हीन भावना से ग्रस्त ही माना जाएगा । 
     आर.एस.एस. राष्ट्रवाद की बात करता है भारतीयों के प्राचीन संस्कारों एवं प्राचीन विद्याओं की बात करता है।अपने दुलारे भारतवर्ष को सबल सक्षम समृद्ध एवं संस्कारी बनाने का सपना लिए ऋषि तुल्य हजारों विरक्त, तपस्वी, पवित्र, प्रचारकों ने अविवाहित रहकर अपना जीवन देश लिए समर्पित कर रखा है।वे लोग देश के कोने कोने के गाँव गाँव में जन जन से मिलकर प्राचीन राष्ट्र भक्तों का बताया हुआ सन्देश प्रचारित करते हैं।उनका सादा जीवन एवं सहज रहन सहन होता है। इसलिए जो लोग आर.एस.एस.की कठपुतली कहकर भाजपा की निंदा करना चाहते हैं उन्हें यह भी जानना चाहिए कि उनसे निंदा नहीं अपितु भाजपा के संस्कारों की प्रशंसा हो रही है ।
 



Friday, 11 March 2016

बाबाओं और नेताओं का संकट कब आखिर तक सहेगा देश !

    बाबा धार्मिक  भ्रष्टाचार फैला रहे हैं और नेता संवैधानिक भ्रष्टाचार फैला रहे हैं । नेता इस लोक के सपने दिखाते हैं बाबा उस लोक के !   
   शास्त्रों को मानने वाले बाबा और संविधान को मानने वाले नेता अब कहाँ बचे हैं देश में !बाबाओं में ईश्वर भक्ति एवं नेताओं में देश भक्ति के संस्कार ही मरते जा रहे हैं !   दोनों यहाँ वहाँ का भय देकर डराते  धमकाते  हैं जबकि लक्ष्य दोनों का अपने लिए सुख सुविधाएँ इकठ्ठा करना होता है जनता कैसे किस पर करे भरोस !  नेताओं और बाबाओं की आपसी साँठगाँठ ने बढ़ाया सभीप्रकार का भ्रष्टाचार और शुरू किया गुप्त एवं बड़े अपराधों का अंत हीन सिलसिला !
     बाबा हों या नेता बाबा इन्हें जो करना हो वही करते हैं किन्तु वो शास्त्रों की दुहाई दिया करते हैं वो संविधान की दुहाई दिया करते हैं !जनता बेवकूफ बनी सुना और सहा करती है ये उसकी मजबूरी है !शास्त्रसम्मत  बाबाओं  एवं संविधान सम्मत नेताओं की पवित्र प्रजाति अब समाप्त होने की कगार पर है  नेता पिटने लगते हैं तो नेता  लोग बड़ी बड़ी रैलियाँ करने लगते हैं और बाबा पिटते हैं तो बाबा लोग करने लगते हैं रैलियाँ !बाबा लोग  सत्संग शिविर  लगाते हैं तो दूसरे एक मंथन शिविर ।बाबा हों या नेता देश का सम्मान स्वाभिमान संपति समेटे फिर रहे हैं दोनों लोग जनता बेचारी विवश      
      एक महिला अपने परिवार और पति से परेशान होकर आश्रम जाने लगी आश्रम में बाबा जी उस पर मोहित हो गए जब उसने एतराज किया तो बाबा जी ने समझाया कि स्त्रियों का मुख देखकर विश्वामित्र पराशर जैसे पानी वा हवा पीकर रहने वाले ऋषि जब अपने को नहीं सँभाल सके तो हम लोग तो तुच्छ जीव हैं हमें स्त्री पुरुष के भेदभाव से ऊपर उठकर गले लग जाना चाहिए यही विश्वबंधुत्व है हमें अपनी सुन्दरता का अहंकार नहीं करना चाहिए !अंततः उससे बाबाजी के तीन बच्चे हुए !
      इसी प्रकार से एक नेता जी के लड़के ने एक गरीब की लड़की से रेप कर दिया बड़ा शोर शराबा मचा पुलिस बोले गई पत्रकार आए नेता जी भी आए जब पत्रकारों ने नेता जी से कहा कि आपके बेटे ने रेप कर दिया है तो नेता जी कहने लगे हमने अपने बेटे से कह रखा है कभी गरीब अमीर में भेद भाव नहीं करना सभी जाति  संप्रदाय के लोग समान होते हैं आदि आदि !
     कुल मिलाकर अपने अपने मतलब के वाक्य बाबा लोग शास्त्रों से छाँट लेते हैं और नेता लोग संविधान से और आराम से मौज मस्ती की जिंदगी जीते हैं ये बहादुर लोग !ऐसे संपत्ति बली बाबाओं एवं संपत्ति बली नेताओं से निपटा आखिर कैसे जाए ! बाबाओं और नेताओं की आरामगाह बन चुका है देश ! ये दोनों लोग जनता  से  धन माँग माँग कर धनी हुए और धनवान होने के बाद माँगते हैं सिक्योरिटी ! किंतु इनकी सिक्योरिटी का खर्च देश क्यों उठावे ?ये देश के लिए करते आखिर क्या हैं !जब जनता दो दो पैसे के लिए मर रही होती है तब बाबाओं नेताओं को करोड़ों अरबों फजूल खर्चों में पानी की तरह बहाते देखा जाता है !ये उस देश की हालत है जहाँ किसान कर्ज के कारण आत्म हत्या कर रहे हैं !किंतु ऐसे परिवारों की दुर्दशा देखकर भी इन निष्ठुर कठोरहृदयी संवेदनाशून्य बाबाओं और नेताओं की आत्मा नहीं पिघलती है !ये चले हैं विश्वबंधुत्व का पाठ सिखाने !बारे वसुधैव कुटुम्बकं !जो देश को एक सूत्र में नहीं बाँध सके !जो ग़रीबों अमीरों की समता के लिए कुछ नहीं कर सके !वे हमें समझा रहे हैं कि हम विश्व में देश का सम्मान बढ़ा  रहे हैं !लज्जा शून्यता का ये कितना सशक्त उदाहरण है !किंतु इससे देश का सम्मान कैसे बढ़ जाएगा जहाँ परिश्रमी किसान मजदूर दिनरात मेहनत करके भी कर्ज के बोझ तले दबे जा रहे हों और कामचोर मक्कार धोखेबाज छल छद्म से धन समेटने वाला वर्ग बाँसुरी बजा रहा हो !
         जिस पार्टी की सरकार हो उससे जुड़े नेता हों या बाबा सभी निर्दोष और सभी को सिक्योरिटी और जो विरोधी पार्टी के नेता हों या बाबा उनको जेल या फिर इसी प्रकार का कुछ और !जिनकी सरकार न हो उन्हें जेल या फिर उनकी पिटाई ! जो न नेता हों और न बाबा वो बेचारे कहाँ जाएँ !उनकी कौन सुने वो किसे बताएँ अपना दुःखदर्द! नेता और बाबा !

     

बाबाओं के संपर्क से नेता ईमानदार दिखने लगते हैं और नेताओं के संपर्क से बाबा सोर्सफुल दिखने लगते हैं !
     इस सोर्स के  बल पर बाबा लोग वो सारे दुष्कर्म करते हैं जिनकी शास्त्रीय संत संविधान में निंदा की गई है बड़े बड़े अपराधों को अंजाम देने के बाद भी उन पर पुलिस प्रशासन जल्दी जल्दी हाथ नहीं डालता है उन नेताओं की इसके बाद भी
        बाबा जिस नेता से संपर्क रखते हैं जिसके साथ उठते बैठते हैं जिस नेता के यहाँ आते जाते हैं जिस नेता की प्रशंसा करते हैं ऐसे नेता कितना भी भ्रष्टाचार करते रहें उन पर एक सीमा तक कोई संदेह नहीं करता कि ये भी भ्रष्टाचारी होंगें अर्थात उन पर ईमानदारी का ठप्पा सा लग जाता है इसके बाद जनता का ध्यान उधर से हट जाता है इसी ईमानदारी की आड़ में फिर ऐसे नेता लोग वो सबकुछ कर लेते हैं जिसे संविधान सम्मत नहीं कहा जा सकता !
   आज  बाबा लोग स्वयं  धर्म शास्त्रों के विरुद्ध आचरण  अर्थात पाप कर रहे हैं वो किसी और को क्या शिक्षा देंगे !
आजकल जहाँ जो बाबा लोग पकड़े जा रहे हैं वहाँ वहाँ सेक्स सामग्री जरूर मिल रही है एवं उनके धनसंग्रह के स्रोत छल फरेब धोखाधड़ी अादि के समुद्र हैं !  आज  नेता लोग स्वयं संविधान के विरुद्ध आचरण  अर्थात अपराध कर रहे हैं वो किसी और को क्या सुरक्षा देंगे !    जो नेता भ्रष्टाचार के किसी भी केस में पकड़े जा रहे हैं वो केवल अपराधी ही नहीं अपितु बड़े बड़े अपराधियों को अभय दान देने वाले निकलते हैं        
   इन का कोई भी आचरण धर्म शास्त्रों  से मेल नहीं खाता है ये  अपने अपने पुजवाने के लिए अपनी अपनी सुविधानुशार  अपने धर्म कर्मों का निर्माण करते हैं दोनों कबीर पंथी अर्थात हिन्दू मुस्लिम एकता का ढिंढोरा पीटते हैं ।
  बाबाओं और नेताओं के चेले पाखण्ड में इस  कदर समर्पित होते हैं कि मिनटों में गाली गलौच मारपीट आदि पर  उतर जाते हैं । दोनों के अनुयायी दोनों को भगवान बनाकर प्रचारित करते हैं !नेता लोग इसलोक का भय दिखा कर लूटते हैं जबकि बाबा लोग  उसलोक का भय दिखा कर लूटते हैं!
   यहाँ झूठ फरेब के द्वारा इकट्ठा की गई संपत्ति का ही बल है उसी के बल पर भंडारा चलता है और जो जो इन बाबाओं का बशीकरणी खीर प्रसाद खाता है वो कहने लगता है कि वास्तव में बाबा बड़े दयालू हैं !बंधुओ !अब समय आ गया है जब ऐसे सभी पाखंडों पर विराम लगाना चाहिए और शास्त्रीय धर्म को ही महत्त्व मिलना चाहिए !
   पूज्य संतों एवं शास्त्रों से न जाने किस जन्म की शत्रुता निभा रहे हैं वर्तमान  बाबा !   श्रद्धेय देशभक्त नेताओं एवं संविधानभक्त लोगों की कहाँ सुन रही हैं राजनैतिक हस्तियाँ !
 बाबा संस्कृति का संकट समाप्त करने के लिए विरक्तों के लिए बनी प्राचीन शास्त्रीय परंपराओं को आगे करना होगा कैसे हो ?  बाबाओं  और नेताओं ने मिलजुलकर बर्बाद किया है समाज !अभी भी समय है समाज के सावधान होने का !!!

Thursday, 10 March 2016

lettt


      बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी जैसे विश्व विद्यालय से पीएचडी करने के बाद सुरक्षित पारिवारिक जीवन पर ज्योतिष की दृष्टि से मैंने बहुत लोगों के जीवन पर अध्ययन किया उससे संभावित विवाह या चल रहे विवाहों में या तलाक ले चुके स्त्रीपुरुषों के जीवन के बिषय में अध्ययन करते समय कई महत्त्वपूर्ण बातें सामने आईं !
   ज्योतिष विज्ञान के वैज्ञानिकपक्ष का रिसर्च करने पर हम इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि बच्चों के बचपन में ही यदि उनके जन्म समय पर भविष्य विज्ञान की दृष्टि से गंभीरता पूर्वक अध्ययन किया जाए तो उन बच्चों के सारे जीवन के विषय में एक परिणाम पूर्ण अनुमान लगाया जा सकता है बच्चे की शिक्षा से लेकर उसके सम्पूर्ण जीवन के विकास की दृष्टि से यहाँ तक कहा जा सकता है कि इसे स्तर को विषय में 


इस भविष्य विज्ञान को यदि पंडित पुजारियों की दृष्टि से न देखकर इसके वैज्ञानिकपक्ष का रिसर्च करने पर विषय के वास्तव में शिक्षित डिग्री होल्डर पर यदि के से 
  
            
      
       जिसके भाग्य में विवाह का सुख सौ प्रतिशत न होकर 60 प्रतिशत ही बदा हो खोजते वो भी सौ प्रतिशत अच्छा जीवन साथी हैं किंतु जब उनके 




     

 समाज में बढ़ती असहनशीलता 
भाग्य में विवाह सुख लिखा ही 60 प्रतिशत है तो वो सभी प्रकार से सुन्दर लड़के या लड़की से यदि विवाह भी कर लें तो भी उन्हें उस विवाह का सुख 60 प्रतिशत ही मिलेगा बाकी बचा खुचा चालीस प्रतिशत विवाह सुख जीवन साथी के पास होते हुए भी आपको नहीं मिलेगा !उतने के लिए वो  किसी दूसरे के साथ प्यार नाम का ब्याभिचार करता या करती है जिसे पचा पाना हर किसी के लिए कठिन होता है यह कोई नहीं चाहता है कि उसका पति या पत्नी उसे छोड़कर किसी और से प्यार करे और यदि करे तो मारे या मरे अन्यथा तलाक करे !इसलिए हमारे यहाँ अपनी कुंडली पहले ही दिखाकर यह पता कर ले कि उसके भाग्य में विवाह सुख है कितने प्रतिशत उसी हिसाब से जीवन साथी की तलाश करे जिससे दोनों का आपसी स्नेह आजीवन उत्तम बना रहता है ।

पुलिस एवं सैनिकों की तरह ही हर विभाग के कर्मचारियों की होनी चाहिए बर्दी !

सरकारी डॉक्टर ,शिक्षक हों ,बैंककर्मी,डाककर्मी   या अन्य विभागों के कर्मचारी ड्यूटी टाईम में शॉपिंग करने निकलते हैं !
     जिसदिन स्कूलों अस्पतालों या सभी विभागों की आफिसों में छुट्टी न पास हो उस दिन उनके शरीर से ड्यूटी टाईम में नहीं उतरनी चाहिए बर्दी ताकि कामचोर लोगों को न केवल समाज पहचाने अपितु समाज उनसे जवाब तलब करे कि ड्यूटी टाईम में कहाँ घूम रहे हैं महाशय आप !इसके साथ ही सरकारी आफिसों से अधिकारियों के स्पेशल कमरों की परंपराएँ बंद हों और बंद किए जाएँ AC ताकि कार्यक्षेत्रों का उपयोग कार्य क्षेत्रों की तरह ही हो अन्यथा ये तो आरामगाह बनते जा रहे हैं अधिकारियों का मन ही नहीं होता है आफिसी  आरामगाह छोड़कर बाहर जाने का इन्हें पता ही नहीं होता है कि आज दिन भर हमारे लोगों ने कोई काम किया भी है या नहीं !और जब

" मनुस्मृति " 'मानवसभ्यता ' के विकास का महान ग्रंथ है इसीलिए 'मानवताविरोधियों' को घोर घृणा है इससे !

  " मनुस्मृति "जलाने से जातियाँ मिट जाएँगी क्या ?घड़ी फोड़ देने से समय  ठहर जाता है क्या ?आँख बंद कर लेने से दुनियाँ में अँधेरा छा जाता है क्या !
   कोई चतुर्थ श्रेणी का कर्मचारी यदि संविधान से केवल इसलिए घृणा करने लगे कि उसे जज क्यों नहीं बनने दिया गया और यदि नहीं बनने दिया गया इसका मतलब कि उस कर्मचारी  का शोषण हुआ है इसका मतलब वो दबा कुचला है इसका मतलब उसे जज बना दिया जाना चाहिए वो भी कब तक के लिए तो कहा कि लम्बे समय से चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी के रूप में काम करने के कारण चूँकि शोषण हुआ है इसका मतलब दबा कुचला है इसलिए आरक्षण का लाभ लेकर लम्बे समय तक जज बना रहेगा तब जज वाला स्वाभिमान जागेगा इसके अंदर ! इसलिए उसे जज बना रहने दिया जाए !और यदि बना भी रहे तो उसे जज का सम्मान न मिलने के लिए भी जजों को ही दोषी ठहराया जाए !किंतु बाकी कर्मचारी ये कैसे भूल जाएँगे कि ये तो आरक्षण से बना हुआ जज है हकीकत में तो चतुर्थ श्रेणी का कर्मचारी ही है !ऐसे ही सवर्णों पर लगाए जा रहे हैं दलितों के शोषण के काल्पनिक आरोप ! 
   बंधुओ !सम्मान तो जातियों से नहीं गुणों से मिलता है रोजगार पीड़ित असंख्य सवर्ण आज मजदूरी करते घूम रहे हैं यदि जातियों को महत्त्व दिया जाता तो वो सवर्ण हैं उन्हें सम्मान मिलना चाहिए किंतु "गुणैर्हि सर्वत्र पदं निधीयते" ये सूक्ति उन कायरों को भी समझनी होगी जो अपनी अकर्मण्यता छिपाने के लिए मनुस्मृति फूँकते फिर रहे हैं !
    "मनुस्मृति"जलाने की परंपरा जिन्होंने डाली सवर्णों के बिना गुजारा उनका भी नहीं हुआ ?सवर्ण विरोध की अलख जलाई थी तो कम से कम एक ही जन्म निभा लेते वही !ईमानदारी पूर्वक यदि चिंतन किया जाए तो उन्हें भी वो बनाने में सवर्णों की बड़ी भूमिका रही किंतु आज जो नहीं मानते उनकी परवाह भी नहीं है ये आखिर मान भी लेंगे तो कौन ताज दे देंगे !
      सवर्णों के महत्त्व को विश्व का हर देश स्वीकार करता है कि ये परिश्रम पूर्वक काम करके  खाने वाली स्वाभिमानी कौम हमारे यहाँ कभी तक भी बनी रहे हम पर कभी बोझ नहीं बनेगी अर्थात हमें कभी शोषण की झूठी कहानियाँ नहीं सुनाएगी और हमसे कभी आरक्षण नहीं माँगेगी !सवर्णों को हर देश या संस्थान अपने यहाँ ख़ुशी ख़ुशी रखना चाहता है अब सुना है कि प्राइवेट सेक्टर वालों पर भी थोपे जाएँगे मनुस्मृति जलाने वाले लोग !सब पर बोझ बनने की अपेक्षा अपने में ही क्यों न किया जाए जरूरी सुधार !
     बंधुओ ! हर व्यक्ति अपने भाग्य का निर्माता स्वयं होता है और भाग्य का निर्माण अपने कर्मों से होता है जो कर्म करने की क्षमता के अभाव में आरक्षण माँगते हों ऐसे लोग अपने भाग्य का निर्माण कैसे कर सकेंगे !         इसीलिए जो लोग अपने कर्तव्य पालन अर्थात काम करने से कतराते हों डरते हों ,हर किसी क्षेत्र में परिश्रमी लोगों से भय खाते हों दूसरों को पढ़ते या काम करते देख कर आत्मा जवाब दे जाती हो कि हम तो ऐसा कर ही नहीं सकते !पढ़ें न पढ़ें पास करने की जिम्मेदारी सरकार की !नंबर अच्छे आए हों न आए हों किंतु नौकरी देने की जिम्मेदारी सरकार की !
    जिस देश में इतना बड़ा वर्ग बीमारों की तरह जीवन जीने की आदत डाल चुका हो अभी भी स्वयं में सुधार लेन को तैयार न हो और  अपने शोषण की झूठी कहानियाँ गढ़ गढ़ कर सुना रहा हो ! ऐसे लोगों को नुक्सान मनुस्मृति से न हुआ है और न ही हो सकता है  अपितु आत्म सम्मान की भावना के अभाव में हुआ है ऐसा !
   सम्मान कभी अनुदान में नहीं मिलता और न ही सरकार आरक्षण के बलपर सम्मान दे सकती है । जो लोग सोचते  हैं कि जातियों के नाम पर सरकारों से अनुदान माँग माँगकर धन जुटा लेंगे और धन से सम्मान मिलेगा !उन्हें समझना होगा कि धन से सम्मान-स्वाभिमान नहीं मिलता अन्यथा भीख माँगकर कई भिखारी धन तो इकठ्ठा कर लेते हैं किंतु सम्मान नहीं !सम्मान के लिए खुद को जूझना पड़ता है और देना पड़ता है अपना बलिदान !अपने हाथों से अच्छे कर्म करके लिखना होता है भाग्य !किंतु जो लोग कहते हैं कि आरक्षण के बिना हम तरक्की ही नहीं कर सकते उनका कैसा होगा भाग्य !क्योंकि भाग्य तो कर्मों से बनता है और कर्म करने की क्षमता ही होती तो क्यों माँगते आरक्षण !
    जिन सवर्णों के सामने एक बार यह कहते हुए हथियार डाल दिए गए कि भैया तुम तो पढ़ लिख कर पास हो सकते हो या अपनी  योग्यता के बलपर नौकरी पा सकते हो किंतु हम तो आरक्षण के बिना कुछ भी नहीं कर सकते !ऐसी पराजित मानसिकता वाले लोग बराबर बैठने का साहस स्वयं नहीं कर पाते हैं इसमें सवर्णों का दोष क्या है और "मनुस्मृति' से दुश्मनी क्यों है समझ से परे  है ये बात !

  जिन्होंने चलनी में गाय का दूध दुहा हो और दूध जब नीचे बह गया हो तो दोष दूसरों तीसरों का दे रहे हों !जिन  पर दोष लगाया जाएगा वो यदि सफाई देने में पड़ जाएँगे तो कमाएगा कौन !और बिना कमाए माँग माँग कर खाएँगे तो स्वाभिमान बचेगा क्या ?और बिना स्वाभिमान का जीवन कैसा !यदि वो स्वाभिमान पूर्वक जीना चाहते हैं तो उन्हें तो खाने के लिए कमाना पड़ेगा उनके पास इतना समय कहाँ कि वो सफाई देते फिरें !स्वाभिमानी लोग मरना पसंद करेंगे किंतु अपने मुख से ये कभी नहीं कह सकते कि हम दबे कुचले हैं हमारा शोषण किया गया है हम अपने बलपर तरक्की नहीं कर सकते !हे राजा महाराजाओ !हम पर दया करो !जिनके हाथपैर सुरक्षित हों, शरीर स्वस्थ हो,लोकतांत्रिक देश के सम्मानित नागरिक हों कानून का राज हो !अदालतें पक्षपात विहीन निर्णय करती हों !ऐसे देश में रहकर यदि कोई तरक्की नहीं कर सका तो लानत है उसे ,इसके लिए वो किसी और को दोषी नहीं ठहरा सकता ! 
इसी विषय में पढ़िए हमारा ये लेख भी -
मनुस्मृति में जो लिखा है वो तो जला कर मिटा दोगे किंतु भाग्य में जो लिखा है उसका क्या करोगे !see more....http://sahjchintan.blogspot.in/2016/03/blog-post_9.html