Sunday, 12 January 2014

आम आदमी पार्टीं एवं अरविन्द का आगे क्या होगा राजनैतिक भविष्य -ज्योतिष

आम आदमी पार्टी  क्या अपनी साख बचाने एवं बनाने में में सफल हो पाएगी ?

       आम आदमी पार्टीं में अभी तक के प्रकाश में आए नामों के अनुशार अरविंद केजरी वाल  के साथ मनीष सिसोदिया एवं योगेन्द्र यादव ये  दो लोग तो हर परिस्थिति में अरविंद केजरी वाल का सहयोग करते रहेंगे ये अपना मन दबाकर साथ नहीं दे पाएंगे जहाँ तक इनका सम्मान सुरक्षित रहता जाएगा वहाँ  तक ये किन्तु परन्तु  नहीं करेंगे इसलिए इनके साथ अरविन्द को लम्बी योजनाएँ बनानी चाहिए ।

      जहाँ तक बात प्रशांत भूषण  और  कुमार विश्वास की है इन दोनों लोगों की  राजनैतिक तथा  सामाजिक गम्भीरता के अभाव में ये अपनी  कही हुई बातों एवं अपने अलोक प्रिय  व्यवहारों के कारण  ये न तो अरविन्द जी के साथ चल पाएंगे और न ही आम आदमी पार्टी के लिए ही हितकर रहेंगे !अपितु अरविन्द केजरीवाल के लिए  समस्याएँ  ही पैदा करते रहेंगे!

   जहाँ तक बात संजय सिंह की है उनके साथ अरविन्द केजरीवाल जी का ताल मेल तभी तक चल पाएगा जब तक वो उनकी अच्छी बुरी हर बात में अपनी मोहर लगाते रहेंगे!वैसे भी ये अपना तो पूरा सम्मान चाहेंगे ही और अपनी हठवादिता का भी  पूरा सम्मान कराना चाहेंगे यही स्थिति गोपाल राय जैसे महत्वांकांक्षी लोगों की भी है इन लोगों के साथ किसी संगठन को सफलता पूर्वक चला पाना अरविन्द जी के लिए बहुत टेढ़ी खीर होगी इनके मन में असंतोष होते ही ये चुप नहीं बैठेंगे उससे जो लपटें निकलेंगी  उनसे अपने व्यक्तित्व को संवार सुधार कर सफलता पूर्वक आगे बढ़ते रहना अरविन्द जी के लिए काफी कठिन होगा विशेष संयम पूर्वक ही उस स्थिति से निपट पाना सम्भव हो पाएगा! 

    इसके बाद एक जो सबसे बड़ी समस्या आम आदमी पार्टी के लिए होगी वह है आम आदमी पार्टी एवं उसके सर्वे सर्वा श्री अरविन्द केजरीवाल जी के साथ का तालमेल  बनाना सबके साथ नहीं बन सकते हैं अरविन्द जी के ताल मेल।इसमें सबसे बड़ी कठिनाई उनसे होगी जिनका नाम अ - आ अक्षर पर है जैसे -अलका लाम्बा ,आदर्श शास्त्री ,आशुतोष  एवं और भी वे लोग जिनका नाम अ - आ  से प्रारम्भ   होता है  ये अरविन्द जी के लिए उस तरह की परेशानी पैदा करेंगे जैसी अरविन्द जी ने अन्ना हजारे जी के लिए खड़ी की थी ये भी एक एक सिद्धांत बघारते हुए कब अपनी अपनी ढपली बजाते हुए अपनी अपनी दूकान अलग अलग खोलने लगें कुछ कहा नहीं  सकता। 

      अन्ना आंदोलन के समय ही इंडियन पीस टाइम्स में मेरा एक लेख  छपा था कि इस अन्ना आंदोलन को तीन जगहों से खतरा है अर्थात इसके तीन जोड़ हैं एक तो अन्ना-अरविन्द का ,तो दूसरा  अन्ना - अग्निवेश  का, तीसरा अन्ना- अमित त्रिवेदी  का  आदि आदि! यदि देखा जाए तो अन्ना  के आंदोलन में ये तीन लोग ही विशेष चर्चित रहे और अलग हुए।अबकी बार अन्ना ने किसी अ अक्षर से प्रारम्भ नाम वाले को मुख नहीं लगाया इसीलिए वो जो लक्ष्य लेकर आगे बढे थे उसे पूरा कर पाने में कामयाब रहे !

      सम्भवतः यही कारण है कि अबकी बार अरविन्द केजरी वाल दिल्ली के चुनावों में अपने मिशन में कामयाब रहे क्योंकि उनके पास अभी तक कोई प्रभावी साथी अ अक्षर से प्रारम्भ नाम वाला नहीं था !

  अब अरविन्द केजरी वाल के लिए आवश्यक है कि यदि वो चाहते हैं कि उनके आमआदमी पार्टी आंदोलन को शाश्वत रूप से चलाया जा सके तो उन्हें भी अपने यहाँ बर्चस्व की लड़ाई नहीं पनपने देनी चाहिए साथ ही याद रखकर अपने अंदर की बातों को कम से कम चालीस प्रतिशत तक रहसय मय बनाकर रखना चाहिए जिस गैप को अपनी आध्यात्मिकता से भरने का प्रयास करते रहना चाहिए!

   वैसे भी आम आदमी पार्टी में  स्वयं अरविन्द केजरी वाल ही संतुष्ट नहीं रहेंगे कोई बड़ी बात  नहीं है कि उन्हें ही कोई और विकल्प चुनना पड़े !अभी तो यहाँ उनका मन इस कारण से भी लगा हुआ है कि  दिल्ली के चुनावों में उन्हें  सीटें अधिक मिल गईं हैं जिससे देश विदेश में  आम आदमी पार्टी एवं अरविन्द केजरी वाल  का प्रचार प्रसार हो गया है इससे आम आदमी पार्टी वालों को लगने लगा है कि हमारी साख विशेष बढ़ गई है इससे हम लोक सभा चुनावों भी बहुत कुछ करने में सफल हो जाएंगे किन्तु ये आसान नहीं होगा क्योंकि  दिल्ली में आम आदमी पार्टी अपनी योग्यता के परिणाम स्वरूप नहीं जीती है इसमें प्रमुख दो कारण हैं एक तो भ्रष्टाचार के विरुद्ध आप का अन्ना के साथ चलाया गया आंदोलन से हुआ जन जागरण दूसरा लम्बे समय से सत्ता में रही कांग्रेस से लोगों का मोह भंग होना और विपक्षी दल भाजपा का आपसी कलह में जूझने के कारण सक्षम विकल्प न बन पाना इससे नाराज होकर जनता ने अपने वोट को किसी को न देने की अपेक्षा आम आदमी पार्टी को देना अच्छा समझा है। यहाँ तक तो आम आदमी पार्टी की कोई अच्छाई दिखाई नहीं पड़ती है यदि इसके बाद भी आम आदमी पार्टी अपनी गुड़बिल बनाने एवं बचाने में सफल हो जाती है तो यह उसकी अपनी उपलब्धि होगी और उस पर खड़ा हो पाएगा उसका अपना मजबूत भविष्य !

   दिल्ली के चुनावों में जो सकारात्मक परिस्थिति आम आदमी पार्टी को मिली वो अन्य जगह मिलना सम्भव नहीं हो पाएगा इसलिए वहाँ सफलता की आशा इतनी त्वरित नहीं की जानी  चाहिए   फिर भी शुरुआत बहुत अच्छी नहीं तो अच्छी जरूर है !  लोक सभा चुनावों के बाद आम आदमी पार्टी अपनी शाख उतनी तेजी से बढ़ा एवं बचा पाएगी ऐसा मुझे नहीं लगता है । अन्य पार्टियों से आए हुए नेता लोग आम आदमी पार्टी के लिए विशेष विश्वसनीय नहीं होंगे क्योंकि उनके मन में यदि त्याग की ही भावना होती तो वहीँ जमे रहते किन्तु वहाँ उनका कोई न कोई स्वार्थ बाधित जरूर हुआ है जिस लिए उन्होंने आप से संपर्क साधा है !

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