Monday, 13 October 2014

कहाँ श्री राम जी और कहाँ साईं !

साईं पत्थरों को देवता बनाने की साजिश एक बार फिर हुई नाकाम !


वहाँ से भी खदेड़े गए साईं जहाँ से आशा थी कि शायद उन्हीं के सहयोग से पुजवाने की शौक पूरी हो जाए !




    चमत्कारी साईं के कहाँ गए चमत्कार ! ये तो धीरे धीरे निर्मल बाबा बनते जा रहे हैं अब तो कोई चालाकी काम नहीं आ रही है !

                          साईं को जयंत  से सबक लेना चाहिए था !
        साईं की दुर्दशा रामचरित मानस के जयंत की तरह होती चली जा रही है जहाँ जाएँ वहीँ धक्के मिल रहे हैं श्री राम प्रभु के द्रोही की रक्षा कौन कर सकता है अर्थात कोई नहीं  -

काहू राखन कहा न ओही ।
राखि को सकहि राम कर द्रोही ॥
               -रामचरित मानस


साईंवादियों को रावण की दुर्दशा नहीं भूलनी चाहिए -
    राम विमुख अस हाल तुम्हारा ।
       रहा न कुल को रोवनि हारा ॥

श्री राम के सामने  बड़ों बड़ों की तो चली नहीं साईं किस खेत की मूली हैं -


                                       कहाँ  श्री राम  जी और कहाँ साईं !

        श्री राम जी जो करना चाहते हैं होता वही है जिस जीवन को श्री राम जी खाली खाली रखना चाहते हैं उसे भर कौन सकता है और जब श्री राम जी भरेंगे तो खाली कौन कर सकता है जिसे राम जी सामाजिक पद प्रतिष्ठा आदि समस्त सुख  सुविधाएँ प्रदान करना चाहेंगे उसकी छीन कौन सकता है और जिसकी छीनना चाहेंगे उसे दे कौन सकता  है ! कुल मिलाकर करना जब सबकुछ श्री राम जी को ही है साईं भी उन्हीं के आधीन है फिर साईं वाले ये क्यों नहीं सोचते हैं कि श्री राम जी में ऐसी क्या कमी है जो साईं बुढ़ऊ पूरी करेंगे ! गोस्वामी तुलसी दास जी महाराज जी कहते हैं कि -
को भरिहै है के रितए रितवै पुनि  को हरि जौं भरिहै ।
उथपै तेहि को जेहि राम थपै थपिहै तेहि को हरि  जौं टरिहै ।
                                                               -कवितावली


       जो समझ नहीं सकते  पढ़ नहीं सकते ऐसे गूँगे बहरे लोग कुछ भी कहें तो उसका जवाब कैसे दिया जा सकता है हाँ कोई प्रमाणित बात बोले उसका जवाब होता ही है किन्तु जब साईं प्रमाणित नहीं हैं तो उनके चेला चेलियों से शास्त्र प्रमाणों की आशा ही क्यों करनी !
    

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