बेचारी जनता इन सबको ढोने के लिए बनी है ये अच्छा करें या बुरा किन्तु इनकी सुख सुविधाओं या भोग विलास पर जो भी खर्च आएगा वो आम जनता को ही बहन करना होगा किन्तु इनसे ये पूछने वाला कोई नहीं है कि आप करते क्या हैं !क्योंकि ये लोग सभी प्रकार के कानूनों से ऊपर होते हैं अपने लिए कानून अपनी सुविधानुशार ये स्वयं बनाते हैं और पालन करें या न करें इसके लिए ये स्वतन्त्र होते हैं !जनता इनके आधीन होती है इसलिए ये जैसा नाच नचाते हैं जनता को वैसा ही नाचना होता है ! जो कानून ये बनाते हैं उनका पालन ये करें न करें किन्तु जनता को करना होता है ।
यहाँ एक बात और विशेष है कि ये तीनों एक दूसरे का हौसला बढ़ाया करते हैं ! नेता महात्मा एक साथ फोटो खिंचवाते हैं और मीडिया खींचता है और मीडिया ही समाज के सामने परोसता है इसका मतलब ये होता है कि यदि नेता लोग यदि भ्रष्टाचार में पकड़े जाएँ तो वो महात्माओं के साथ वाली अपनी फोटो मीडिया से दिखवाते हैं जिससे पता लगे कि वो कितने बड़े धार्मिक हैं इसी प्रकार से बाबा जी पकड़े जाएँ तो नेताओं के साथ वाली अपनी फोटो मीडिया से दिखवाते हैं ताकि लोग उन्हें सोर्सफुल समझें !ऐसी फोटो दिखाने के लिए मीडिया लेता होगा कुछ दान दक्षिणा जिसे पेडन्यूज या और कुछ कहते होंगे !किसी महात्मा को अपने कर्मों के आधार पर सोर्स की यदि बार बार जरूरत पड़े तो उसका काम केवल सोर्सफुल होने से नहीं चलता है अपितु उसे सीधे राजनीति में स्वयं उतरना होता है उस समय उसकी वो नदियों ,झरनों ,पहाड़ों के पास खड़े होकर खिंचवाई गई फोटो मीडिया को दिखाने के लिए दी जाती हैं ये छवि बनाने के बहुत काम आता है वैसे भी उस समय उनके साथ मीडिया तो होता नहीं है ये सब कुछ पूर्वनियोजित सा होता है ! अक्सर नेताओं को आपने कहते सुना होगा कि यदि हमारे ऊपर भ्रष्टाचार के आरोप सिद्ध हुए तो वो संन्यास ले लेंगे !चूँकि उन्हें पता होता है कि संन्यास लेकर भी स्वदेशी के नाम पर दवा दारू का उद्योग तो वो लगा ही सकते हैं इससे उन्हें कैसे रोक जा सकता है !इस प्रकार से इस युग में ऐसे लोगों के हिसाब से संन्यास और राजनीति एक दूसरे की पूरक होती जा रही है ! मीडिया का काम इनसे चिपक कर चलना होता है पूरे देश से इनका कहाँ बहुत मतलब होता है कोई बहुत बड़ी घटना घटित हो जाए तो बात और है अन्यथा जनता के बच्चे गायब कर दिए जाएँ तो वो खबर बने न बने किन्तु नेता जी की भैंसें गायब हों तो ये लोग उसमें खबर बना लेते हैं !आम जनता की उपेक्षा राजनेता ही नहीं मीडिया भी करता है !जहाँ धन मिलता है वहीँ मीडिया का मन लगता है पिछले कुछ महीने पहले निर्मल बाबा टाईप के किसी धर्म व्यवसायी में मीडिया को अचानक बहुत सारे दुर्गुण दिखाई देने लगे और सभी चैनलों ने उसका बहिष्कार कर दिया किन्तु इसी बीच मीडिया और निर्मल बाबा के बीच ऐसा कुछ पका कि वो आज फिर पवित्र हैं और चैनलों ने उन्हें शिर आँखों पर बैठा रखा है !
कुल मिलाकर वर्तमान लोकतंत्र में मीडिया इतना अधिक सक्षम है कि किसी को कुछ भी बना सकता है जैसे किसी की जेब में मीडिया को देने के लिए पैसे हों तो वो बिना कुछ पढ़े लिखे भी ज्योतिषाचार्य बना सकता है और वो राशिफल से लेकर कहीं भी कुछ भी कितना भी झूठ बोले किन्तु मीडिया की कृपा से वो निश्चिन्त बना रहता है !
बंधुओ ! आपको पता ही होगा कि सरकारी संस्कृत विश्वद्यालयों से ज्योतिष को विषय के रूप में लेकर एम.ए.करने पर उसे ज्योतिषाचार्य नामक डिग्री मिलती है किन्तु जिसने ऐसी कोई पढ़ाई नहीं की है उसके नाम के साथ ज्योतिषाचार्य की डिग्री लगाना या ज्योतिष की प्रेक्टिस कानूनन अनुचित होता होगा किन्तु मीडिया है कि जिसको जब जहाँ चाहे चढ़ा दे और जिसको जब जहाँ से चाहे गिरा दे !
खैर, अब बारी सरकारी कर्मचारियों की इनकी सैलरी से लेकर सुख सुविधाओं के लिए सभी चिंतित रहते हैं । सरकारी स्कूलों में शिक्षक की कुर्सी यदि पुरानी हो जाए और देखने में अच्छी न लगे तो मीडिया का कैमरा उस कुर्सी को बार बार दिखाएगा किन्तु उस कुर्सी पर बैठकर वो करते क्या हैं इसपर मीडिया का ध्यान ही कहाँ जाता है ! इसीप्रकार से जिस विभाग में दसों लाख रूपए की सैलरी वहाँ के कर्मचारी ले जाते हैं किन्तु पाँच दस हजार का प्रिंटर ठीक न होने से महीनों तक वहाँ काम नहीं होता है जनता बिचारी पूछ पूछ कर लौट जाती है किन्तु मीडिया में कहाँ आती हैं ऐसी खबरें !
अर्थात चरित्रवान संतों को अपने समुदाय पर उठने
वाली अँगुलियों के इशारों को यूँ ही नजरंदाज नहीं कर देना चाहिए ।
भिक्षावृत्ति के पवित्रव्रतियों जैसी वेषभूषा बनाकर रहने वाले कुछ साधूसंत
यदि सांसारिक प्रपंचों में फँसने लगें न केवल चूरन चटनी मिर्च मशाले बेचते
फिरते हों अपितु अरबों रुपयों के उद्योग चलने लगें इसी प्रकार से अन्य भी
विविध प्रकार के प्रपंच फाँसते फिरते हों फिर भी अपने को संन्यासी सिद्ध
करने पर तुले हों तो ये संन्यास का मजाक नहीं तो क्या है !
इसीप्रकार से आधुनिक राजनेता
लोग राजनीति में घुसते तो देश और देशवासियों की सेवा करने के लिए हैं
किन्तु वहाँ निकलते मेवा लेकर हैं वो भी अपने एवं अपनों के लिए राजनीति में
घुसते वक्त जिनकी औकात हजारों लाखों की होती है वो बिना कोई ख़ास व्यापार
किए जीवन में बिना कोई कंजूसी किए सारी सुख सुविधाएँ भोगते हुए भी खरबों
में खेलने लगते हैं अपने को दलित राजनेता कहने वाले भी करोड़ों के घाँघरे
पहनने लगते हैं !
मजे की बात ये है कि एक से एक ईमानदार राजनेताओं के हाथों में सत्ता
पहुँचती है किन्तु ऐसे नेताओं का वह भ्रष्टाचारार्जित धन और उन नेताओं को
कटघरे में खड़ा करके उनसे जनता की गाढ़ीकमाई उन नेताओं से छीन कर जनता को
सौंपने की जेहमत कोई उस तरह से नहीं उठाता है जैसा उठाया जाना चाहिए ।
आखिर क्यों ?क्या वो नेता भी ईमानदार नहीं होते हैं ईमानदारी का केवल
दिखावा करते रहते हैं अथवा वो इस बात से डरते हैं कि कल इनकी पार्टी सत्ता
में आई तो मेरे साथ भी ऐसा ही होगा !यदि ये बात ऐसी ही सच है तो देश
वासियों को ईमानदार एवं कर्मठ प्रशासक खोजने की यात्रा अपनी जारी रखनी
चाहिए क्योंकि यह सपना अभी तक अधूरा है ।
तीसरा पक्ष है मीडिया का मीडिया आज नैतिक नहीं रहा है उस अपने काम पर उस तरह की निष्ठा भी नहीं दिखती जैसी होनी चाहिए इधर कुछ वर्षों से मीडिया सत्ता एवं संपत्ति के सामने केवल दुम हिलाते दिखते रहना चाहता है कई प्रकरणों में देखा जाता है कि सत्ता के शीर्ष पुरुषों की चाटुकारिता में अपनी कलम का इस्तेमाल झाड़ू की तरह करता है वो सत्ता शीर्ष पर छाई हुई पार्टी और राजनेताओं की उनके कपड़ों की उनकी चाल ढाल रहन सहन वेष भूषा आदि की केवल प्रशंसा ही किया करता है यह चाटुकारिता यहाँ तक बढ़ चुकी है कि कई बड़े वैश्विक मंचों पर अपने नेताओं के प्रवचनों को सारगर्भित भाषणों की तरह महिमामंडित करती रहती है वैश्विक मंचों पर दिए गए हमारे भाषणों का मूल्यांकन हर देश अपने अपने व्यक्तिगत लाभ हानि की दृष्टि से करता है इसलिए हमारा भी दायित्व बन जाता है कि हम अपने भाषणों में अधिक से अधिक देशों के हृदय छूने होंगे तब वो देश भी हमारी भावनाओं से भावित
होकर हमारे एवं हमारे पड़ोसियों के साथ हमारे बनाते बिगड़ते संबंधों में
हमारे साथ खड़े होंगे किन्तु ऐसी उमींद कैसे की जा सकती है कि विश्व के कुछ
देश या समूह या स्त्री पुरुष किन्हीं लोगों के अत्याचार के शिकार हो रहे
हों वो भी हमसे अपेक्षा करते हैं कि हम उनके लिए भी कुछ सोचें किन्तु हम
अपनी अपनी बातें एवं मधुरिम कल्पनाएँ परोसकर यह सोचकर चले आएँ कि अब विश्व हमारी ओर लालायित होगा किन्तु आखिर किसलिए !यदि हमारी उन बातों में उनका कोई स्वार्थ नहीं होगा, ऐसे प्रवचनों को भी मीडिया महिमा मंडित करे यह बात समझ से परे है !कई बार ऐसा होते देखा जाता है ।
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