मकरसंक्रांति के नाम पर मनाई गई 14 जनवरी को धनुसंक्रांति !
मकर संक्रांति लग रही है 14 और 15 जनवरी 2015 की रात12 बजे के बाद उसके बाद अगली सुबह अर्थात 15 जनवरी को उदित होगा मकर संक्रांति का पुण्यकाल तब मनाई जानी चाहिए 15 तारीख़ को मकर संक्रांति!किन्तु मकर संक्रांति की जगह 14 जनवरी मनाने वाले लोग मकर संक्रांति के नाम पर नदियों तालाबों में धोते घूम रहे हैं शरीर !काश वे भी समझ पाते मकर संक्रांति की शास्त्रीय अवधारणा एवं उसके पुण्यकाल की महिमा !
आधुनिकता की चपेट में भारतीय संस्कृति फँस गई है इसको बचाने के लिए भी आगे आना होगा, संगठित होना होगा एवं धार्मिकता से सम्बंधित हर निर्णय धर्म शास्त्रीय विद्वानों से ही लेना उचित होगा और उसी को निष्ठा पूर्वक मानना उचित होगा अन्यथा आज हिंदुओं का हर त्यौहार दो दिन मनाया जाने लगा है जो उचित नहीं है अपितु ये तो त्योहारों की पवित्र परंपरा का उपहास है ।
हमारे यहाँ निर्णय सिंधु और धर्म सिंधु जैसे महान ग्रंथों में संगृहीत विभिन्न वेदों पुराणों स्मृतियों और ऋषियों के महान मंतव्यों के आधार पर तिथि त्योहारों व्रतों एवं विधि निषेधों की परिकल्पना की गई है जो अनंत काल से चली आ रही है ।
आज संस्कृत भाषा कठिनाई एवं इसकी सामाजिक उपेक्षा के कारण लोग संस्कृत भाषा के अध्ययन से विमुख होने लगे इससे संस्कृत ग्रंथों में छिपा ज्ञान विज्ञान तर्क संगत परंपराएँ लुप्त होने लगी हैं ।
हिंदुओं के तिथि त्योहारों व्रतों एवं षोडश संस्कारों की सच्चाई को भ्रमित करने के लिए विधर्मियों ने इतने अधिक कुचाल चला रखे हैं कि हिन्दू लोग आधुनिकता के नाम पर भूल जाएँ अपना गौरवशाली इतिहास और विधर्मियों के कल्पित तिथि त्यौहार व्रत संस्कार मंदिर और वैसे ही देवता बना कर अपने द्वारा रचित षडयंत्रों में फँसाते जा रहे हैं हिन्दुओं को ! ऐसे ही पापियों ने साईं बुड्ढे को न केवल देवता बता दिया अपितु मंदिरों में घुसा दिया !पूज रहा है बुड्ढा !ये सनातन धर्म का उपहास नहीं तो और क्या है ?
हर त्यौहार दो मनाए जाने लगे,जन्मदिन में केक काटने और अपनी संतानों से दीप जलने के अवसर पर दीप बुझवाने लगे ऐसे हमारे संस्कारों को रूढ़िवादिता कहकर उनकी निंदा करके अपने कल्पित कुसंस्कार हम पर थोपने लगे। मित्रता जैसे पवित्र शब्द का प्रयोग मूत्रता के लिए करने लगे अर्थात जिससे सेक्स किया जा सकता है वहीं मित्रता हो सकती है उसका दुष्परिणाम यह हुआ कि माता पिता के अनुशासन से त्रस्त अवारा कुत्तों की तरह बेशर्म जोड़े पार्क आदि सार्वजनिक स्थलों पर बुझा रहे होते हैं अपनी सेक्स प्यास !जब तक सेक्स तब तक सम्बन्ध अन्यथा दुश्मनी वो कितनी भी बढ़ जाए ! ऐसे क्षणभंगुर संबंधों के लालची लोगों ने सतत सम्माननीया नारी जाति का प्रयोग सेक्स पौशालाओं की तरह 'यूज एंड थ्रो' करना सिखा दिया है !ऊपर से कहते हैं पवित्र प्रेम परमात्मा का स्वरूप होता है !आधुनिकता के नाम पर कितनी गंध घोल रहे हैं ये लोग !
दीवाली के पटाखों में घातक बारूद एवं होली के रंगों में कीचड़ कालिख कैमिकल जैसे घातक प्रयोगों के द्वारा त्योहारों से घृणा पैदा करना सिखा रहे हैं ये लोग !त्योहारों की मस्ती के नाम पर नशा करना सिखा रहे हैं ये लोग !इस प्रकार से समाज की सनातन धर्मी शास्त्रीय मान्य मान्यताओं को मिटाकर विदेशी ज्ञान विज्ञान को थोपा जा रहा है !आज हर ज्ञान विज्ञान के खोजकर्ता के रूप में किसी विदेशी का नाम रटाया जा रहा है सबसे पहले जगदीश चंद बसु ने बेतार के तार अर्थात रेडियो की खोज की थी किन्तु मार्कोनी पढ़ाया जा रहा है !
अगर हिन्दू यों ही ढीला होता चला गया तो विधर्मी लोग तुम्हारे पास कुछ नहीं रहने देंगे सब कुछ छीन कर तुम्हें अपने आधीन कर लेंगे और जैसे नचाएंगे वैसे नाचेंगे हिन्दू !
आज धर्म के नाम पर आम पंडितों पुजारियों के पास विवाह पद्धति ,सत्य नारायण व्रत कथा ,गरुड़ पुराण और पञ्चांग जैसी केवल ये चार चीजें होती हैं इसी बल पर वो चारों वेदों पुराणों के विषय के बड़े बड़े निर्णय दे देते हैं यही स्थिति बाबा समाज की है जिस सुख भोग के महँगे महँगे संसाधन जुटाने के लिए भारी भरकम परिश्रम करना पड़ता फिर भी सुलभ होते या न होते किन्तु केवल वेष और बेशर्मी के आधार पर सैकड़ों के बाबा चूरन चटनी बेचकर करोड़ों अरबों के हो गए !ऐसे लोगों के अशास्त्रीय कर्मों से शास्त्रीय संत समाज शर्मिंदा है किन्तु करे क्या ?
ज्योतिष वास्तु के नाम पर कितनी धोखा धड़ी चल रही है भागवत कथाओं के नाम पर नाच गाना हो रहा है। रजस्वला अवस्था जैसी स्थिति में भी वो भागवत की पोथी पढ़ने का ड्रामा करती फिर रही हैं जिन्हें छूना भी शास्त्र ने निषेध किया है जिन्हें स्वतः शास्त्रीय बचनों पर भरोसा नहीं है वे किस मुख से औरों को समझा रहे या रही हैं भागवत !
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