सरकारी कर्मचारियों पर प्राइवेट वाले भारी पड़ते हैं आखिर क्यों ?
सरकारी स्कूलों में पढ़ाई नहीं सरकारी अस्पतालों में दवाई नहीं, डाककर्मियों में सुनवाई नहीं ,सरकारी फोन या इंटरनेट की स्थिति डामाडोल है ! सरकारी अधिकारी एवं कर्मचारियों में काम करने के प्रति न तो निष्ठा होती है और न ही उत्साह ! न ही वो जनता की समस्याएँ सुनते हैं और यदि सुन लेते हैं तो बस सुन ही लेते हैं उस पर कार्यवाही भगवान भरोसे ही होती है !ऐसे लोग बस केवल जिए जा रहे हैं और जीने के कारण आफिस चले आ रहे हैं घर चले जा रहे हैं आफिस वाले कोई काम करवा पाते हैं तो करवा लेते हैं और न करवा पावें तो न सही आखिर उनका कोई कर क्या लेगा ! सरकारी नौकरी का मतलब एक जिंदगी के लिए सरकार के मत्थे मढ़ जाना !
सरकारी वालों का काम तो सैलरी लेना होता है !काम से उनका कोई ख़ास मतलब नहीं होता है इसलिए उनका नाम भी उतना नहीं होता है जितना प्राइवेट का होता है ,प्राइवेट स्कूल, अस्पताल आदि सेवाओं से अपना विश्वास जनता में जागते हैं अगर विश्वास टूटने लगता है तो जी जान लगा देते हैं पर विश्वास बचाकर रखते हैं किन्तु सरकारी वालों को इस बात का संकोच ही कहाँ होता है अपितु सरकारी शिक्षक भी अपने बच्चों को पढ़ने के लिए प्राइवेट स्कूलों में ही भेजने लगते हैं इतने स्वाभिमान विहीन होते हैं ये लोग !ये किस मुख से देंगे औरों को शिक्षा और जिसको देंगे उसके जीवन में क्या भर पाएँगे ईमानदारी के बहुमूल्य संस्कार !
यही स्थिति सरकार के अन्य विभागों की है !
पुलिस वाले सरकारी होते हैं और अपराधी प्राइवेट , नाम तो प्राइवेट का ही होता है !क्योंकि काम तो प्राइवेट वाले ही करते हैं ! नाम भी उन्हीं का होता है अपराध की खबरों से अखवार भरे पड़े होते हैं जबकि पुलिस का पराक्रम कहीं झलक जाता है किन्तु जिस दिन पुलिस का पराक्रम खबरों में छा जाएगा उसदिन अपराधों पर नकेल लग जाएगी !
जैसे वो लोग एक दिन किसी काम को करने के विषय में सोचते हैं विचार बनाते हैं कि कल से काम शुरू करेंगे किंतु कल काम करना चाहते हैं तब उन्हें एक नई बात समझ में आती है कि इस काम से पहले तो वो काम होना चाहिए चलो कल पहले वो काम करेंगे फिर ये करेंगे ये करते करते वो कभी कुछ कर ही नहीं पाते हैं और कुछ ट्राँसफर होते हैं और रिटायर्ड हो जाते हैं उनका काम प्राइवेट वाले लोग किया करते हैं सैलरी केवल वो लिया करते हैं जैसे -सरकारी स्कूल वाले सैलरी लेते हैं और प्राइवेट स्कूल वाले पढ़ाते हैं ! सरकारी डाक्टर सैलरी लेते हैं प्राइवेट वाले चिकित्सा करते हैं डाक वाले सैलरी लेते हैं कोरियर वाले काम करते हैं दूरसंचार वाले सैलरी लेते हैं प्राइवेट कम्पनियाँ काम सँभालती हैं !
पुलिस जैसे विभागों में जहाँ काम सँभालने वाले प्राइवेट लोगों की सुविधा नहीं होती है वहाँ सैलरी पुलिस वाले लेते हैं अपराधी लोग काम सँभालते हैं यही कारण है कि पुलिस का काम तो दिखाई पड़ता नहीं है किन्तु अपराधियों का काम दिखाई पड़ता है चूँकि वो प्राइवेट होते हैं और पुलिस के लोग सरकारी होते हैं और जो सरकारी कर्मचारी है वो काम क्यों करेगा ! पुलिस वाले सरकारी कर्मचारी होते हैं और सरकारी तो केवल सैलरी लेने के लिए होते हैं काम तो प्राइवेट लोग ही करते हैं जैसे अपराधी लोग प्राइवेट होते हैं ! जिसे इस बात पर भरोसा न हो वो किसी दिन अखवार उठाकर देख ले या टीवी समाचार ध्यान से सुन ले अपने आप पता लग जाएगा कि काम कर कौन रहा है पुलिस या अपराधी !जो काम करता है उसी का नाम होता है !
इसलिए सब कुछ होना चाहिए किन्तु शुरुअात कहीं से तो करनी पड़ेगी ! सरकारी
कर्मचारियों को हर काम के लिए हर जगह टाँग फँसा कर खड़ा होना तो ठीक नहीं है !न कुछ काम की जाँच सालों साल चला करती है !सरकारी आफिसों में अक्सर लंच ,नास्ता ,चाय पानी विदाई पार्टी स्वागत पार्टी और फिर इन सबका एकाउण्ट कैसे मेनटेन किया जाएगा इसके लिए मीटिंग बस इतने से काम के लिए बड़े बड़े पद लेकर बैठे हैं लोग !काम केवल उसी का होता है जिसका तगड़ा सोर्स फिर मुख माँगी घूँस देने की ताकत !बाकी को तो इस आफिस से उस आफिस,इस बाबू से उस बाबू के पास केवल दौड़ाया जाता है कोई स्वीकार ही नहीं करता है कि ये काम हमारा है क्योंकि स्वीकार कर ले तो करना पड़ेगा !
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