राजनैतिक पार्टियाँ पवित्रता का नारा देकर सत्ता में आती हैं फिर स्वच्छता की बातें करती हैं के लिए केवल विज्ञापन करती हैं काम किसी के लिए कुछ नहीं !
     केवल 'स्वच्छ भारत अभियान' क्यों ? देश में सारा अपराध एवं भ्रष्टाचार पवित्रता के अभाव में है न कि स्वच्छता के !  
  
 राजनैतिक पार्टियाँ पवित्रता का नारा देकर सत्ता में आती हैं फिर स्वच्छता
 की बातें करने लगती हैं और अंत में न पवित्रता के लिए कुछ कर पाती हैं और न
 ही स्वच्छता के लिए !निराश होकर जनता किसी और पार्टी की ओर
 बड़ी आशा से मुड़ जाती है वहाँ से भी निराश होकर लौट आती है फिर कोई और 
विकल्प चुनती है कुल मिलाकर जनता वर्तमान राजनैतिक कार्यशैली से बुरी तरह निराश है इसलिए अब समय आ गया है जब सुशिक्षित ,ईमानदार एवं जनसेवक वर्ग को बिना किसी निजी महत्वाकाँक्षा के राजनैतिक क्षेत्र में कदम रखना चाहिए !
    
 राजनैतिक एवं सामाजिक पवित्रता के लिए भी कोई ठोस कार्य करना चाहिए न कि 
केवल स्वच्छता के लिए !क्योंकि  पवित्रता के अभाव में देश का सारा ताना बना
 बिगड़ रहा है परिवार टूट रहे हैं समाज छिन्न भिन्न हो रहा है उसके लिए क्या
 योजना है?क्या किया जा रहा है! पवित्रता की आज बहुत बड़ी आवश्यकता है ! 
 
बंधुओ ! पहले से 
फैली हुई गन्दगी को साफ करना स्वच्छता एवं गंदगी को फैलाने से ही बचने की 
भावना पवित्रता है गंदगी से अभिप्राय सभी प्रकार की गंदगी से है भले  वो 
भ्रष्टाचार की ही गन्दगी क्यों न हो !उसे भी पैदा ही न होने देना पवित्रता 
की भावना है !
       स्वच्छता अभियान के 
नाम पर जिस तरह से बड़े बड़े सेलिब्रेटी आज जगह जगह झाड़ू पकड़ कर खड़े हो जाते 
हैं और फोटो खिंचाने लगते हैं ये ऐसे अभियान को प्रारम्भ करने के लिए तो 
ठीक है किन्तु दायित्व उनका भी कुछ और अधिक ईमानदारी पूर्वक स्वच्छता 
पूर्वक प्रोत्साहित करना बनता है !
    यदि 
वास्तव में झाड़ू लगाने वालों ने भी इनकी नक़ल करनी प्रारम्भ कर दी तो कैसे 
हो पाएगी सफाई क्योंकि इन सैलिब्रेटियों को तो झाड़ू पकड़नी भी नहीं आ  रही 
है ये तो जिस तरह से झाड़ू पकड़कर खड़े होते हैं उससे ये नहीं लगता है कि 
स्वच्छता अभियान में सम्मिलित हैं अपितु ये लगता है कि ये झाड़ू लगाने वालों
 को चिढ़ा रहे हैं !
        भारत की पहचान पवित्रता से है केवल स्वच्छता  क्यों पवित्रता क्यों नहीं ?  भारत
 की प्यास  पवित्रता है आज पवित्रता को पाने की तड़फ में दहक रहा है देश उसे
 केवल स्वच्छता के कुछ  छींटे देकर संतुष्ट नहीं किया जा सकता !  
    नवरात्रि की पवित्र 
अष्टमी जो कन्यापूजन पर्व के रूप में सारे विश्व में प्रसिद्ध  है कन्याओं 
का महत्त्व बढ़ाने के लिए इसे मनाने का सुअवसर वर्ष में दो बार ही मिल पाता 
 है  इसलिए वर्त्तमान समय में कन्याओं के ऊपर हो रहे बलात्कार आदि 
अत्याचारों को रोकने के लिए सम्पूर्ण समाज में कन्यापूजन पर्वों को बड़ी धूम
 धाम से मनाया जाना चाहिए ताकि कन्याओं के सम्मान को समाज में और अधिक 
महत्त्व मिले इस बात की इस समय बहुत अधिक आवश्यकता है । संयोगवश अबकी बार 
इसी  दिन २ अक्टूबर पड़ गया इसलिए अबकी सरकार ने दुर्गाष्टमी की जगह गांधी जयंती मना
 डाली ली  और कन्या पूजन पर्व की जगह धूम धाम से मनाया गया स्वच्छता दिवस 
और प्रधानमंत्री जी ने भी लगाई झाड़ू !यदि प्रधानमंत्री जी ने इस दिन मनाई 
होती दुर्गाष्टमी और पूरे देश में करवाया गया होता 
कन्यापूजन तथा इसी प्रकार से  कन्याओं की सुरक्षा पर कोई नैतिक सरकारी 
प्रोत्साहन किया गया होता और  इस वर्ष आज कन्याओं के पूजन, 
कन्याओं की सुरक्षा का कोई कार्यक्रम रखा जाता या बलात्कारों एवं भ्रूण 
हत्या के  विरुद्ध जन जागृति का कोई कार्यक्रम रखा जाता तो कन्याओं की सुरक्षा की दृष्टि से बहुत अधिक प्रभावी हो सकता था तो शायद इस दिन का और अधिक अच्छा उपयोग माना जाता !वैसे तो कन्याओं के हिस्से के इस दिन का सदुपयोग स्वच्छता के साथ साथ कन्याओं की सुरक्षा के प्रति होता तो और अधिक अच्छा होता !आज
 कन्याओं की सुरक्षा के लिए,भ्रूण हत्या रोकने के लिए,बलात्कार रोकने के 
लिए समाज प्रधानमंत्री जी के तत्वावधान में संकल्प लेता या समाज को इसके 
लिए प्रेरित किया गया होता या कन्या रक्षा सेना या कन्या रक्षा दल जैसे 
सक्रिय संगठनों का गठन किया गया होता तो स्वच्छ भारत के साथ साथ पवित्र भारत का संकल्प भी पूरा होता चलता ! 
    स्वच्छता
 बाहरी सफाई है किन्तु पवित्रता तो आतंरिक सफाई है इस युग में आतंरिक 
स्वच्छता की सबसे अधिक आवश्यकता है । यह देश  पवित्रता का उपासक है गोबर 
गन्दा होता है किन्तु गाय का गोबर न केवल घरों को पवित्र करता रहा है अपितु
 अपवित्र से पवित्र होने के लिए धार्मिक  समुदाय इसी गाय के गोबर और मूत्र 
का उपयोग पंचगव्य बनाने में भी करता है उसे पीकर लोग पवित्र होते हैं ऐसी न
 केवल शास्त्र मान्यता है अपितु व्यवहार में भी ऐसा देखा जाता है ! 
    बड़ा प्रश्न ये है कि देश में 
पवित्रता अर्थात सात्विक चिंतन का वातावरण कैसे बनाया जाए क्योंकि मानसिक 
स्वच्छता के लिए क्या कुछ उपाय किए जाने चाहिए इसका चिंतन होना चाहिए जो 
उपाय करने में सक्षम हैं उनका  विषय का गंभीर अध्ययन नहीं होता है और जिनका
 अध्ययन होता है उनके पास उपायों का प्रभावी प्रचार करने का माध्यम नहीं 
होता है ऐसी परिस्थिति में अल्पज्ञ प्रशासक अपने अनुशार जो कर पाते हैं वो 
करते हैं अन्यथा ऊलजुलूल निर्णय करते हैं उचित ये है कि इस विषय के 
विधिविशेषज्ञों से सलाह ली जानी चाहिए किन्तु अपनी समाज का दुर्भाग्य यह है
 कि ऐसे धर्म एवं आध्यात्मिक विषयों में बिना कुछ अध्ययन के भी हर कोई अपने
 को पूर्ण पंडित समझने लगता है,इसलिए जो इन विषयों के अधिकृत समझदार लोग 
हैं उन्हें वो मुख लगाना ही नहीं चाहते! 
    आप स्वयं सोच सकते हैं कि मन 
शोधन कोई आसान काम नहीं होता है ये हर कोई कैसे कर सकता है इसके लिए अच्छे 
अध्ययन अनुभव एवं अभ्यास की आवश्यकता होती है।देश में बलात्कार से लेकर हर 
प्रकार के अपराध दिनों दिन बढ़ते जा  रहे हैं,कठोर कानून बनने के बाद भी तो 
उनमें कमी नहीं आई क्या उसका और कोई उपाय नहीं खोजा जाना चाहिए! मन शोधन का
 कोई रास्ता तो होता होगा क्या उस पर अमल नहीं किया जाना चाहिए क्या झाड़ू 
लगाने के कार्यक्रम पहले दिमागों से नहीं प्रारम्भ किए जाने चाहिए मनोविकार
 समाप्त होते ही सबकुछ स्वतः शुद्ध और स्वच्छ हो जाएगा !  आज समाज में लूट 
हत्या  बलात्कार भ्रष्टाचार मिलावट खोरी ,धोखाधड़ी ,घूसखोरी आदि जितने 
प्रकार के भी अपराध हैं सारे  मानसिक अपवित्रता के कारण हैं ।इनके लिए भी 
कुछ तो किया  जाना चाहिए । 
      आज वृद्धजनों का अपमान हो 
रहा है पति पत्नी में सम्बन्ध विच्छेद हो रहे हैं तलाकशुदा लोगों के बच्चे 
तड़पते घूम रहे होते हैं कुछ माँ के बिना कुछ पिता के बिना !  तीन तीन वर्ष 
तक की बच्चियों के साथ हो रहे बलात्कारों और भ्रूण हत्या के 
जघन्यतम अपराधों ने समाज को हिलाकर रख दिया है सद्यः प्रसूत बच्चियाँ 
अस्पतालों में,मंदिरों में ,रेलवे स्टेशनों पर लोग छोड़कर भाग जाते हैं और 
तो क्या कहें कूड़े दानों में फ़ेंक कर चले जाते हैं शौचालय में फ़ेंक दी जाती
 हैं बच्चियाँ हम उस समाज के अंग हैं यह सब देख सुनकर समाज के लिए बहुत कुछ
 करने का मन करता है अपनी सीमाओं में रहकर बहुत कुछ करता भी  हूँ किन्तु 
जितने बड़े स्तर पर होना चाहिए उतना नहीं कर पाता हूँ संसाधनों का अभाव है 
ऐसी परिस्थिति में धीरे धीरे करने पर लम्बे समय में हो पाएगा किन्तु जरूरत 
तुरंत कुछ किए जाने की है । 
      इसलिए अब केवल स्वच्छता से 
काम नहीं चलेगा अब आवश्यकता पवित्रता की भी है पवित्रता को प्रदूषित करने 
के लिए सबसे अधिक दोषी सरकार एवं सरकारी कर्मचारी हैं । यह बात कोई एक 
आदमी नहीं कह रहा है 
अपितु पूरा देश न केवल कह रहा है अपितु  समझ भी रहा है  इतना ही  नहीं 
सरकार एवं सरकारी  कर्मचारियों से सारा देश निराश है और तो क्या कहें आज 
सरकारी कर्मचारियों का भरोसा सरकारी कर्मचारी भी  नहीं कर रहे हैं सरकारी 
डाक्टर; मास्टर,
 पोस्ट मास्टर और टेलीफोन विभाग के लोग भी अपना इलाज प्राइवेट अस्पतालों 
कराते हैं अपने बच्चे प्राइवेट स्कूलों में पढ़ाते हैं मोबाईल प्राइवेट 
कंपनियों के रखते हैं और अपना लेटर प्राइवेट कोरिअर को देते हैं !मजे की 
बात तो यह है कि प्राइवेट  विभागों में वही काम सरकारी 
विभागों की अपेक्षा बहुत कम खर्च में हो जाता है  इसीलिए तो  प्राइवेट स्कूलों ने सरकारी स्कूलों को पीट रखा है, प्राइवेट अस्पतालों नें सरकारी अस्पतालों को पीट रखा है  प्राइवेट कोरिअर ने पोस्ट आफिसों को  पीट रखा है 
 प्राइवेट फोन व्यवस्था नें सरकारी फोन विभाग 
को पीट रखा है !कहने को भले ही सरकारी विभागों को प्राइवेट विभाग पीट रहे 
हों किन्तु उन्हीं पीटने वालों ने ही उन उन अकर्मण्य सरकारी विभागों की 
इज्जत भी बचा रखी है
अन्यथा सरकारी विभाग तो अपाहिज हैं आप स्वयं देखिए - चूँकि सरकारी पुलिस 
विभाग को पीटने के लिए कोई प्राइवेट विभाग बनने की 
व्यवस्था या विकल्प ही नहीं है इसलिए उसे न कोई पीटने वाला है और न ही उसकी
 कोई इज्जत
 ही बचाने वाला है सम्भवतः इसीलिए हर कोई पुलिस विभाग पर ही अंगुली उठता 
रहता है!हर प्रकार के अपराध नियंत्रण में पुलिस फेल नजर आती है लुटेरे लूट 
का धंधा बंद कर दें तब लूट रूकती है बलात्कारी बलात्कार बंद करें तब 
बलात्कार बंद हों !इसीप्रकार से सरकारी स्कूलों में जो बच्चे खुद पढ़ लें 
वही पढ़ पाते हैं 
 ये कैसी अंधेर है  दिल्ली जैसी देश की राजधानी में भाजपा केंद्र में है 
राज्यपाल भी उन्हीं के अनुशार चलते हैं MCD में भाजपा है इसके बाद भी MCD 
के स्कूलों में शिक्षक या तो आते नहीं या कक्षाओं में नहीं जाते हैं जाते 
भी हैं तो पढ़ाते नहीं हैं या जल्दी घर चले जाते हैं !आखिर कौन देखेगा इसे !
 सरकारी कर्मचारियों पर नकेल कसने का काम सरकार को करना है वो काम सरकार न 
करे और जो काम सरकार को औरों से करवाना है वो सरकार करती घूमे ये कहाँ का 
न्याय है ?यदि सरकार एकदिन झाड़ू उठा भी लेगी तो क्या इससे सफाई हो जाएगी 
इसीप्रकार एक दिन आप टीवी से प्रवचन कर देंगे तो इससे बच्चों का भविष्य 
सुधर जाएगा क्या !इसलिए पहले प्रत्येक काम के लिए जिम्मेदार लोगों को चुस्त
 करना पड़ेगा उसके बाद ये  कार्यक्रम करना उचित होगा !आज सफाई कर्मचारी समय 
से काम पर आकर भी काम इसलिए नहीं करते हैं कि उन्हें खत्ते के हिसाब से घूस
 देनी पड़ती है वो काम केन तो भी देनी है न करें तो भी देनी है फिर आखिर  
क्यों करें काम ! ऐसी परिस्थिति में स्वयं झाड़ू पकड़ने से पहले ये घूस का 
धंधा तो बंद किया जाना चाहिए ताकि जो सफाई करते हैं वो तो सुचारू रूप से कर
 सकें !
      एक दिन आप सफाई कर देंगे 
एकदिन आप किसी स्कूल में जाकर पढ़ा देंगे ?एक दिन किसी अस्पताल में दवाई 
बाँट देंगे इससे जनता की मुश्किलें कितनी आसान हो पाएँगी !हाँ खबर जरूर बन 
सकती है!
   अरे शासक शिरोमणि !यदि आपके 
पास शासन क्षमता है तो उसका परिचय दीजिए और जिस काम को करने के लिए जो पैसे
 लेता  है ईमानदारी पूर्वक आप उससे वो काम लीजिए ये आपका पवित्र दायित्व है
 इसका आप निर्वाह कीजिए ,चूँकि आप सरकार में हैं गैर सरकारी संगठनों की तरह
 आप व्यवहार मत कीजिए !आप जिम्मेदार लोगों से काम लीजिए।इसके अलावा ब्यर्थ 
की उछलकूद ठीक नहीं है।
      एक दिन अखवार में मैंने एक 
कहानी पढ़ी थी कि जंगल के राजा शेर से तंग आकर सभी पशु पक्षियों ने मीटिंग 
की तो बन्दर ने सबको सुरक्षा देने का भरोसा  दिया  यह देखकर सब लोगों ने 
बन्दर को अपना राजा बना लिया !एक दिन शेर आया बड़ी जोर से दहाड़ मारने लगा , 
दो चार पशु पक्षियों की हिंसा भी कर दी सारे पशु पक्षी अपने राजा बन्दर को 
पुकारने लगे यह सुनकर  बन्दर आया वो कभी इस पेड़ पर जाए कभी उस पेड़ पर ऐसे 
उछलकूद करता रहा किन्तु शेर को जो कुछ करना था करके चला गया बाद में लोगों 
ने बन्दर से कहा कि तुमने तो कुछ किया ही नहीं  कई पशु पक्षी मार भी दिए गए
 तो बन्दर कहने लगा कि हम चुप तो नहीं बैठे कुछ न कुछ तो करते रहे और 
प्रयास तो पूरे किए !अरे अजीब सी बात है कि सुरक्षा देने की बात आपने की वो
 तो कुछ नहीं कर सके आप !ऐसा सभी जगह  समझना चाहिए !
    वही आज स्थिति है  किसी स्तर 
पर अभी तक भ्रष्टाचार में कमी होती नहीं दिख रही है न ही शिक्षा में कोई 
सुधार हो रहा है सरकार और निगम के प्राथमिक स्कूल शिक्षा शून्य होते जा रहे
 हैं ऊपर से मैंने सुना है कि अब कर्तव्य भ्रष्ट उन्हीं शिक्षकों से नैतिक 
विषय भी पढ़वाया जाएगा अरे! जो स्वयं नैतिक नहीं होगा वो क्या पढ़ाएगा 
नैतिकता के सिद्धांत !
    एक ओर  निगम ने पैसे  ले लेकर
 दूसरों की छतों पर मोबाईल टावर लगवा रखे हैं दूसरी ओर न्यूज चैनल बताते 
हैं कि आसपास रहने वालों को कैंसर जैसी भयानक बीमारियाँ हो सकती हैं किन्तु
 वहाँ रहने वाले यदि टावर हटवाना चाहें तो कहें किससे कहीं सुनवाई नहीं है 
ये काम सरकार का है ये सरकार को पहले करना चाहिए !स्वच्छता के साथ साथ ये 
भी ज्यादा जरूरी है । 
      निगम वालों को पैसे देकर 5 
-5 इंच की चौड़ी दीवारों पर लोग 4 - 4  मंजिल के घर खड़े कर देते हैं और उठा 
देते हैं किराए पर जब वो गिरते हैं या भूकम्प आते हैं तब या तो पड़ोसी मरते 
हैं या फिर रहने वाले आखिर कौन है जिम्मेदार इसके लिए और कौन सुनेगा उन 
पड़ोसियों की क्या सरकार का कोई दायित्व नहीं है !स्वच्छता के साथ साथ ये भी
 आवश्यक है ।  
        किसी के झाड़ू लगाने में 
कोई दम नहीं थी कुछ लोगों के अलावा किसी को झाड़ू पकड़ने भी नहीं आ रहा था 
केवल झाड़ू स्पर्श करके फोटो खिंचवा रहे रहे थे जनता के मसीहा, बिलकुल उस 
तरह जैसे विवाह में रस्म अदायगी भर होती है क्या होगा इससे जन जागरण बल्कि 
लोगों को पता चल गया कि इन्हें तो झाड़ू लगाना छोड़ो पकड़ना भी नहीं  आता है ।
 टिकटार्थी छुट भैए नेता तो अपनी झाड़ू भी नहीं लाए थे वे तो सफाई कर्मियों 
की झाड़ू स्पर्श करके फोटो खिंचवा रहे थे !
   नीचे से ऊपर तक के लोगों ने 
झाड़ू पकड़ पकड़ कर फोटो खिंचवाने के अलावा आखिर और किया क्या ?छोटे लोगों के 
यहाँ ग्रामीणों के यहाँ किसानों के यहाँ,पशुपालकों के यहाँ माध्यम वर्ग के 
लोगों के यहाँ एवं  अन्य सभी प्रकार के परिश्रमी वर्ग के यहाँ, वैसे भी खुद
 ही झाड़ू लगाई जाती है और दिन में कई कई बार लगानी पड़ती है झाड़ू ! दूसरी ओर
  जिनके पास फ्री का पैसा आता है वही धनवान लोग तथा सरकार में सम्मिलित लोग
  एवं सरकारी कर्मचारियों की ही यह प्रवृत्ति विशेष होती है कि कूड़ा वो खुद
 फैलाएँ साफ कोई और करे बाकी जो लोग अपने घर अपने हाथों से साफ करते हैं 
उन्हें सफाई का महत्त्व पता होता है इसलिए उनसे ऐसी गलतियाँ दूसरों को 
देखकर ही होती हैं बाक़ी उन्हें जीना  आता है वो इंसान को इनसान समझते हैं 
!वो घर से बाहर तक रोज झाड़ू बुहारू करते ही हैं फिर प्रेरित आखिर किसको 
किया जा रहा है शहरों कस्बों में पेनाल्टी की व्यवस्था की जाए ! बाकी मुख्य
 ध्यान भ्रष्टाचार को समाप्त करने के लिए एवं कन्याओं की सुरक्षा के लिए 
लगाया जाना चाहिए जिसकी आज सबसे अधिक आवश्यकता है । 
    नवरात्र की नवमी में कन्या 
पूजन का पवित्र दिन केवल झाड़ू की भेंट चढ़ गया और हुआ क्या कुछ बड़े बड़े 
लोगों ने झाड़ू पकड़ पकड़ कर खूब खिंचवाए फोटो ! 
     स्वच्छ भारत 
की जगह पवित्र भारत की अभिलाषा लेकर मैं कई बार कई लोगों से मिला किन्तु 
कहाँ कोई करता है सहयोग! अंततः  मैं यही  सोचकर सरकारों से सहयोग की लालषा 
लेकर सरकाराधिपतियों से मिलने के लिए प्रयास करता रहा कि ये लोग भारत को 
पवित्र बनाने में हमारा सहयोग कर देंगे किन्तु उन लोगों के पास पवित्रता पर
 बात करने के लिए समय ही कहाँ है फिर बड़े लोगों को हमने पत्र लिखे किन्तु 
कोई उत्तर नहीं आया तो पत्र पत्रिकाओं में लिखता रहा सात ब्लॉग बनाए उन पर 
लिखता रहता हूँ इसी जन जागरण के लिए फेस बुक पर तो सम्पूर्ण समय देता हूँ  
!जब मोदी जी को प्रधान मंत्री बनाने के लिए प्रस्तुत किया गया तब से तो 
उनके समर्थन में जागरण में पूरा पूरा दिन सोसल नेटवर्किंग साइट पर समय दिया
 है जो आज  भी प्रमाण हैं आशा थी कि यदि वो लोग हमें मिलने लायक नहीं समझते
 हैं तो मोदी जी आएँगे इनसे कही जाएगी अपनी बात और लिया जाएगा सहयोग किन्तु
 मोदी जी के यहाँ संपर्क करने पर वहाँ भी मिलने का समय देना ठीक नहीं समझा 
गया खैर वो प्रशासक हैं होंगी उनकी अपनी कुछ मजबूरियाँ किन्तु हम अपनों के 
बीच तो अपनी बात रख ही सकते हैं इसलिए मैंने यह विकल्प चुना है । 
इसी विषय में हमारा ये लेख भी पढ़ा जा सकता है 
अब भ्रष्ट  सरकारों  और सरकारी कर्मचारियों के विरुद्ध जनता को लड़ना होगा एक बड़ा युद्ध ! 
 सरकार एवं सरकारी कर्मचारियों के व्यवहार से बहुत निराश हैं देशवासी !"हर चेहरे पर दाम लिखे हैं हर कुर्सी उपजाऊ है" see more... http://bharatjagrana.blogspot.in/2014/02/blog-post_8.html
        
 
 
 
 
          
      
 
  
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
 
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