राजनीति चलती भी चाटुकारों से है और नष्ट भी उन्हीं से होती है !इसलिए चटुकारिता से ऊपर उठकर ही कुछ किया जा सकता है !और कुछ भी हो किन्तु पार्टी विजय को पचा नहीं पा रही है !
किसी समाज संगठन या दल के जो लोग अपने विषय में सोच चुके होते हैं कि हम अपने बल पर कभी कुछ बन ही नहीं सकते हमारे अंदर वो क्वालिटी ही नहीं है ऐसे लोग अपने बनने में दिमाग लगाना ही छोड़ देते हैं और सोच लेते हैं कि जब तक जो बड़ा बनता दिखेगा तब तक हमें तो उसी के गुण गाने हैं और जब वो बिगड़ने लगेगा तो बिगड़े किन्तु तब जो बनता दिखेगा उस समय उसके गुण गाएँगे हमें तो दुम हिलानी है कोई हिलवा ले किंतु तभी तक जब तक उसका सिक्का चलेगा बाक़ी तो हम क्या करेंगे ये हम्हीं को पता है किंतु संघर्ष के दिनों के साथियों से ऐसी चाटुकारिता की अपेक्षा भी नहीं की जानी चाहिए और न ही उन्हें करनी चाहिए वो तो गलत को गलत कहेंगे ही किसी को बुरा लगे तो लगे वो अपनी प्रतिभा के बल पर जीना जानते हैं ऐसे लोग राजनीति में हों या कहीं और !प्रतिभा विहीन लोगों की तरह जीना उनके स्वभाव में ही नहीं होता है वो करें तो क्या करें !
जो लोग पहले काँग्रेसी राजकुमार को शिर पर धारण किेए घूम रहे थे आज वो उसी परिवार की राजकुमारी को लेकर काँग्रेस बचाने की बात करने लगे हैं इसी प्रकार से मोदी जी दिल्ली चुनावों में असफल क्या हुए लोग उनकी कमियाँ गिनाने लगे ऐसा हर पार्टी ,परिवार और संगठन में होता है किंतु ऐसे चाटुकारों से वही बच पाता है जो अपने बुरे दिनों के साथियों को सहेज कर रख पाता है अन्यथा चाटुकार लोग किसी भी संगठन के सफलतम व्यक्ति को उसके निकटतम सहयोगियों से अलग करके पहले अपने चंगुल में लेते हैं और जब पूरी तरह सफल हो जाते हैं तब शुरू करते हैं उस सफलतम व्यक्ति को मिटाना किन्तु वो यदि चाटुकारिता पसंद हुआ तो मिट जाता है अन्यथा झिटक देता है ऐसे लोगों को और मूल्यवान सहयोगियों के साथ ही जीना पसंद करता है न कि चाटुकारों के साथ !
जहाँ तक बात अरविन्द केजरीवाल की है वो आत्मसंयमी एवं धैर्यशील व्यक्ति हैं उन्हें अपनी आलोचनाएँ सुनने का संयम बनाए रखना चाहिए और लोगों को करते रहने देनी चाहिए आलोचनाएँ देशवासी सबकुछ समझते हैं वो इस सहनशीलता का मूल्य समझते रहेंगे और राजनीति चलनी उन्हीं के बलपर है अन्यथा प्याज के छिलकों की तरह ही पार्टी के एक एक व्यक्ति को अलग किया जाएगा तो अंत में बचेगा क्या सोचना तो ये भी पड़ेगा !ऐसे तो कई चले गए कई और चले जाएँगे जिसे काम ही करना होगा वो कहीं करेगा रही बात जीतने हारने की वो तो सब जगह और सबके साथ है !इसी भावना से सबके सम्मान को बनाए रखने का प्रयास किया जाना चाहिए !
जहाँ तक बात आम आदमी पार्टी की है पार्टी के कार्यकर्ताओं को सारे हथकंडे पहले औरों के लिए सिखाए गए थे वो सब अब अपने ऊपर भारी पड़ रहे हैं क्योंकि उन्हीं का प्रयोग लोग आपस में करने लगे हैं यदि पार्टी चलेगी या सरकार तो कुछ गलतियाँ तो होनी ही हैं तो उन्हें कैमरे में कैद किया जाएगा उनका स्टिंग होगा न जाने किसका किसका अभी तक हुआ हो या आगे किस किस का हो या अभी ही हो चुका हो किन्तु कुछ लोग छिपाए बैठे हों जब जिसको नीचा दिखाने का मन होगा तब उसके विरुद्ध अपनी सुविधानुशार कुछ निकालकर दिखा दिया जाएगा और बना दिया जाएगा उन्हें मुर्गा !किन्तु ये पार्टी और सरकार दोनों के लिए ही अत्यंत घातक होगा !ऐसे धारदार लोग कहीं भी शांतिभंग के पर्याय होते हैं इससे आपसी विश्वास समाप्त होता जाता है हर कोई हर किसी से बात करने में डरता रहता है जिससे स्वस्थ चर्चा की सम्भावनाएँ ही समाप्त होती जाती हैं !
आम आदमी पार्टी की एक समस्या और है जो सबको सत्ता के सपने दिखाए गए थे किन्तु सत्ता मिली कुछ लोगों को तो बाकी सत्ता के लिए कहाँ जाएँ आखिर कुछ तो करेंगे वही वो लोग कर भी रहे हैं !
बंधुओ ! इसीप्रकार से हिंदुस्तान से पाकिस्तान को विभाजित करके अलग करने के लिए कुछ सत्ता लोलुप लोग समाज को संघर्ष के लिए उकसाते रहते थे सबको समझाया जा रहा था कि विभाजन होने के बाद देश की सत्ता अपने हाथ में होगी फिर हम लोग जो चाहेंगे वो निर्णय ले सकेंगे इस निर्णायक भूमिका में पहुँचने के लालच में लोग आपस में भयंकर संग्राम करने पर आमादा थे जिसमें समाज ने बहुत कुछ खोया !किंतु देश की सत्ता आखिर सारे लड़ाकों को कैसे सौंपी जा सकती थी ये तो स्वाभाविक ही था किन्तु तब विभाजन के उन्माद में ये किसी को कुछ समझ में आया नहीं लोग लड़ते मरते मारते रहे किन्तु वास्तविक लड़ाई तब शुरू हुई जब विभाजन होने के बाद भी सत्ता कुछ लोगों के ही हाथ में रह गई अपने हाथ में नहीं आई ! अब हिंदुस्तान और पाकिस्तान का विभाजन तो हो ही चुका था इसलिए गुस्सा अब किस पर उतरता तो वो पाकिस्तानी लोग सत्ता में आपस में ही मरने मारने लगे और धीरे धीरे आक्रोश बढ़ता ही जा रहा था तब जिन्ना को सामने आकर समाज को समझाना पड़ा कि अब क्यों लड़ रहे हो अब तो सब अपने ही हो इसलिए हिन्दू मुस्लिम सिक्ख ईसाई आदि सभी लोग मिल जुलकर रहो किन्तु वो आक्रोश कम तो पड़ा किन्तु समाप्त नहीं हुआ आज भी बात बात में लोग आपस में ही एक दूसरे को मरने मारने पर उतारू हो जाते हैं सत्ता की छीना झपटी का आलम ये है कि कभी कोई किसी का तख्ता पलट देता है ये सब कुछ अभी भी चल रहा है !इसका मुख्य कारण केवल एक है कि इस विभाजन का नेतृत्व करने वालों ने सत्ता के सपने सबको दिखाए थे और सत्ता कुछ लोगों को मिली तो बाकी लोगों में आक्रोश पनपना ही था !उसी स्थिति से आम आदमी पार्टी आज जूझ रही है ।
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आमआदमीपार्टी का विखराव यदि हुआ तो उसका प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष
सूत्रधार कोई 'अ' या 'स' अक्षर से प्रारंभ नाम वाला सदस्य होगा !-ज्योतिष
पद और प्रतिष्ठा के लिए हर कोई राजनीति में आता है यदि कोई इसे पाने का
प्रयास करता है यही तो राजनीति है रही बात केजरीवाल जी की शैली पर प्रश्न
उठाने की तो इसमें गलत क्या है यही तो लोकतंत्र है किंतु पार्टी की वर्तमान
कलह की पटकथा का वास्तविक लेखक आखिर है कौन ? इसे खोजे बिना पार्टी में
किसी भी सदस्य के विरुद्ध किसी भी प्रकार का निर्णय पार्टी के लिए आत्मघाती
हो सकता है इसलिए आत्मसंयम पूर्वक इस प्रकरण की तह तक जाना चाहिए !बंधुओ
!आमआदमी पार्टी हो या अरविन्द केजरीवाल इन दोनों का सहयोग 'अ' और 'स' अक्षर
वाले लोगों से संभव नहीं है इसलिए ये सच है कि पार्टी में बगावत कोई भी
करे किन्तु उसकी जड़ में 'अ' और 'स' अक्षर वाले लोग होंगे इसमें उनकी कोई
गलती या साजिश नहीं कही जा सकती किन्तु ग्रह दोष के कारण ये लोग पार्टी की
सेवा कर ही इसी प्रकार से सकेंगे इन्हें वही रास्ता पसंद आएगा जो
पार्टीहित में नहीं होगा see
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