Sunday, 1 March 2015

"वाराणसी की होली की मधुर स्मृतियाँ "

        दो. अनुपमेय काशीपुरी बाबा को दरवार ।
         कबहुँ न बिसरति जाह्नवी जिवनमूरि जलधार ॥

      दो.काशी की संस्कृति सुखद मधुर बात व्यवहार ।
            अजहुँ हृदय हुलसत सुमिरि काशी के त्योहार ॥

     दो.  होली अस्सी चौक की कबहुँ कि बिसुरन जोग ।
            रँग गुलाल गालन्ह लसे फिरहिं अनंदित लोग ॥

       दो. भाँग ठंडई छनति खुब हास्य व्यंग भरमार ।
             फगुआ गुझिया गजब है होली को त्योहार ॥

                        भवदीय  - डॉ.एस.एन.वाजपेयी

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