Wednesday, 8 April 2015

आम आदमी पार्टी में बवाल क्यों ?आप प्रमुख पर सवाल क्यों ?

धिक्कार है ऐसी सत्ता को जो इंसान को इंसान नहीं रहने देती ! जिसकी शब्दावली ऐसी हो उसके शिक्षित होने का समाज को क्या लाभ ! 
  आम आदमी पार्टी प्रमुख की लात उनके तो लगी या नहीं लगी जिन्हें लात मारकर बाहर निकालने के लिए बोला गया था किन्तु उस जनता के जरूर लगी है जिस जनता ने उन्हें  सीधा साधा शालीन सज्जन मृदुभाषी विनम्र आदि समझकर दिल्ली का ताज सौंपा है !क्या ये सारे सद्गुण अभिनय मात्र हैं और हकीकत वह है जो टेप में सुनाई पड़ी ? आम आदमी पार्टी से इतना गिर जाने की उम्मीद तो किसी को नहीं थी !सत्ता बहुत कुछ हो सकती है किंतु सबकुछ नहीं !
   गोस्वामी तुलसी दास जी ने लिखा है कि रावण ने एक से एक बड़े पाप किए किंतु इससे उसके उतने पुण्य समाप्त नहीं हुए थे कि उसका बध  किया जा सकता इसीलिए सीता हरण जैसा बड़ा अपराध करने के बाद भी श्री राम ने उसका बध नहीं किया था किंतु विभीषण को लात मारते ही रावण के पुण्य समाप्त हुए और पुण्य समाप्त होते ही श्री राम ने उसका बध कर दिया ।    " तौ लौं न दापु दल्यौ दसकंधर जौ लौं विभीषण लात न मारो ।"             पुराने लोग संभवतः इसीलिए किसी के धोखे में भी लात लगने पर पैर छूते या हाथ लगाते थे ! वैसे भी विभीषण को लात मार कर रावण कितने दिन सुरक्षित रह सका था और अब आम आदमी पार्टी लातमारने की बात करके कब तक चला पाएगी सरकार और बचा पाएगी अपना जन विश्वास !ऐसी गर्वोक्ति  ठीक नहीं है । 
    आम आदमी पार्टी के पास सरकार गिराने के हजार फार्मूले हो सकते हैं किंतु सरकार चलाने के लिए अभी तक ठोस कुछ सामने नहीं लाया जा सका है !वैसे भी वो दूसरों की सरकारें क्यों चलने देंगे ?जो अकारण अपनी सरकार स्वयं गिरा देने में न हिचकते रहे हों और अपनी चलाने में तो  मन ही नहीं लगेगा !क्रांति पसंद लोग शांति से कहाँ बैठ सकते हैं !
     वैसे भी प्रशांत जी  और योगेंद्र जी जैसे लोग यदि पार्टी को हराने के लिए काम कर रहे होते तो पार्टी इतने बड़े बहुमत से कभी न जीत पाती क्योंकि उनका वजूद भी इतना कम तो नहीं ही था कि 'आप' प्रमुख काँग्रेस और भाजपा वालों से तो लड़ते ही रहे साथ ही पार्टी के अंदर भी  प्रशांत जी  और योगेंद्र जी जैसे लोगों के विरोध का सामना भी करते रहे फिर भी इतने बड़े बहुमत से पार्टी जीती !क्या केवल 'आप' प्रमुख के चेहरे पर प्रभावित थे दिल्ली वाले !और यदि हाँ तो ऐसा किया या था उन्होंने दिल्ली वालों के लिए ? केवल कुछ सपने ही तो समाज को दिखाए थे उसमें पार्टी के सारे लोग साथ साथ सम्मिलित थे आखिर अंदर क्या चलता रहा आम लोगों को नहीं पता है और प्रेस में या खुली तौर पर प्रशांत  और योगेंद्र जी जैसे लोगों ने पार्टी विरोधी कोई वक्तव्य दिया नहीं यहाँ तक कि समाज में वो जब आए तब तो पार्टी एवं पार्टी पदाधिकारियों के विषय में शालीन बातचीत ही करते रहे आज तक उनकी तरफ से कोई अमर्यादित बयान  नहीं आया किन्तु गालियाँ देते तो इनकी आवाज सुनी गई फिर दोषी प्रशांत  और योगेंद्र जी जैसे लोग कैसे हो गए !
     दिल्ली की जनता ने जनादेश इसलिए किसी एक व्यक्ति को नहीं दिया है कि वो जैसा चाहे वैसा करे अपितु यह जनादेश भ्रष्टाचार विरोधी सभ्य शालीन जनहितकारी विचारधारा को सामूहिक रूप से आगे बढ़ाने के लिए मिला है फिर इसका मसीहा कोई एक व्यक्ति या उसके कुछ चाटुकार लोग ही कैसे हो गये !दूसरी  बात  कि थोड़ी थोड़ी बात में सामूहिक रूप से आम जनता की राय शुमारी के शौकीन लोगों नें प्रशांत  और योगेंद्र जी जैसे लोगों को बाहर करते समय आम जनता का मत लेना जरूरी आखिर क्यों नहीं समझा यदि मनमें कोई पाप नहीं था तो ?
    मैं विश्वास पूर्वक कह सकता हूँ कि यदि किसी को इस बात की गलत फहमी है कि यह जनादेश एक विचार धारा  को नहीं अपितु केवल एक व्यक्ति को मिला है तो प्रशांत  और योगेंद्र जी जैसे अन्य भी सम्मानित लोगों को बाहर करने के बाद आज भी पार्टी चुनाव कराकर देख ले यदि बहुमत मिलने में लाले न पड़  जाएँ !
    आखिर भाजपा और काँग्रेस जैसी पार्टियों को जनता ने नाकारा तो इसीलिए था कि उनमें आपसी कलह बहुत थी और आम आदमी पार्टी मर्यादित लग रही थी किंतु आज इस पार्टी में जो कुछ हुआ है वो उनसे अधिक है जिनसे जनता ऊभ चुकी थी इसलिए अब किया जाए दोबारा चुनाव तो सच्चाई सामने आ जाएगी !
    जहाँ तक बात सांसदों और विधायकों के समर्थन की तो अधिकांश लोग चुनाव जीतने के बाद सत्ता के साथ ही चिपके रहेंगे हर जगह यही होता है इसलिए अपनी आत्मा की आवाज को दबाते जाना उनकी मजबूरी होती  है किंतु सत्ता यदि थोड़ी भी हिलती दिखाई दी तो ईंटे रोड़े नहीं अपितु पूरे के पूरे पहाड़ खिसकेंगे तब क्या करेंगे ईमानदार पार्टी के स्वयंभू मसीहा लोग !कैसे सिद्ध करेंगे कि ईमानदार केवल वही हैं । 
   वैसे भी जब उन्हें लगता था कि सत्ता हमारे पास है और बहुमत हमारे पास है तो बड़प्पन दिखाते हुए उन्हें भी साथ लेकर चलना ही चाहिए था जो असंतुष्ट थे जनता तो यही चाहती थी !
      विवाह के पहले जो लोग बासना (सेक्स)पीड़ा से परेशान होकर विवाह होने तक का समय पास करने के लिए किसी लड़के या लड़की के साथ प्रेम प्यार का नाटक करके अपना समय पास कर लेते हैं इसी बीच कुटिल लोग ऊपर से तो लिपटे चिपटे रहते हैं अंदर से एक दूसरे का स्टिंग करते रहते हैं और जब जिसका विवाह हो जाता है तब वो सामने वाले को गलत सिद्ध करने के लिए स्टिंग दिखाने लगता है कि देखो वो कितना गलत था या थी किंतु जिसका विवाह हो चुका होता है उसका अब कोई क्या बिगाड़ सकता है !बदनामी से भय तो सामने वाले को होगा !जो सत्ता और संगठन दोनों से मुक्त होता है। जनता को आखिर वो भरोसा कैसे दे कि वो भी ठीक था । 
   बंधुओ ! क्या आम आदमी पार्टी में इस समय जो कुछ चल रहा है वह ऐसे धोखा धड़ी पूर्ण प्रेम प्रसंग की तरह ही नहीं है !यदि ऐसा न होता तो जब वो गलती कर रहे थे तभी उन्हें निकाल बाहर क्यों नहीं किया गया किंतु तब उनकी जरूरत समझी गई इसका मतलब कि वो पार्टी का हिट साधन कर रहे थे !अन्यथा इन ईमानदारों के लिए सत्ता इतनी जरूरी क्यों थी यदि हाँ तो उसी समय बहार करना था क्या सत्ता के बिना जी नहीं सकते थे अन्ना हजारे जी की ईमानदारी के संवाहक शालीन सिपाही !आज हालात ये हैं कि ऐसी मजबूत सत्ता मिली है जो कभी भी हिलाई जा सकती है आखिर विभीषण को विरोधियों से मिलने के लिए मजबूर करने वाला रावण कब तक सुरक्षित रह सका !  
    वैसे भी  जिसे नकारात्मक राजनीति फली हो और उसे उसी का अभ्यास रहा हो जिसमें औरों को अपमानित करने का दुष्प्रचार किया गया हो उनकी सकारात्मक राजनीति में रूचि कहाँ और कैसे हो सकती है ! दूसरों को चोर भ्रष्टाचारी आदि कहते रहना वी आई पी कल्चर की निंदा करते रहना विनम्रता की बड़ी बड़ी भावनाएँ प्रदर्शित करना और परदे के पीछे विरोधियों को इतनी गन्दी गालियाँ देना ,लातें मार कर बाहर निकाल देने की बात करना ये किसी भी सभ्य शालीन गंभीर एवं चरित्र शील नेता को शोभा नहीं देता है।
    अगर आप सुशिक्षित हैं बड़े बड़े पदों पर रह चुके हैं त्याग बलिदान सदाचरण ईमानदारी सात्विकता शालीनता की बातें अन्ना जी के आंदोलन के समय आप मंच से करते रहे हैं जनता आपके उसी आचार व्यवहार पर प्रभावित थी गाली देने और लात मारने पर नहीं ! आखिर क्या अंतर रह गया अन्य लोगों और आपमें !माना कि कुछ लोग पार्टी के साथ अनुकूल व्यवहार नहीं कर रहे थे किंतु उसके लिए वो तब दोषी माने जा सकते थे जब आप केवल उन्हीं से रूठे होते किंतु आपसे रूठकर जाने वालों की तो बड़ी लम्बी लिस्ट है और उन सभी लोगों को गलत सिद्ध करके आपके मुट्ठी भर लोग सही सिद्ध हो ही नहीं सकते !वैसे भी आपने आज तक जो बातें बोलीं या आरोप लगाए या निंदा करते रहे उसी दिशा  में आप स्वयं चलते देखे जा रहे हैं । अपने विरोधियों को लात मारने की बात करना बड़ी गलती है । 
   सरकारों को गिराने में काँग्रेस तो बदनाम थी ही किंतु सरकार गिरवाने में आम आदमी पार्टी भी पीछे नहीं है  पिछली बार काँग्रेस का साथ लेकर इन्होंने सरकार बनाई और जब सरकार चलाने की कला समझ में नहीं आई तो घबड़ा गए और काँग्रेस का नाम ले लेकर इन्होंने स्वयं अपनी ही 49 दिनों की सरकार अपने आप ही गिरा दी ।
           जस जस सुरसा बदन बढ़ावा । 
            तासु  दून कपि रूप दिखावा ॥ 
            शत जोजन तेहि आनन कीन्हा।
           अति लघु रूप पवनसुत लीन्हा॥ 
    सम्भवतः इसीलिए आम आदमी पार्टी को उस काँग्रेस जैसे जैसे समर्थन, सुविधाएँ एवं समाधान देती जा रही थी वैसे वैसे ही 'आप' प्रमुख  न केवल अपनी शर्तें एवं शंकाएँ बढ़ाते जा रहे थे अपितु पैर एवं दायरा भी फैलाते जा रहे थे ।
      रामायण में एक प्रसंग आता है कि जब हनुमान जी लंका की ओर बढ़ रहे थे  उसी समय सर्पों की माता सुरसा आती है और हनुमान जी को अपने मुख में रखना चाहती है हनुमान जी जैसे जैसे अपना शरीर बढ़ाते हैं वैसे वैसे सुरसा अपना मुख बढ़ाते जाती है ।
   वही हालात दिल्ली की राजनीति में पहले काँग्रेस का बहाना लेकर किए गए थे और आज पार्टी की अपने कार्यकर्ताओं का बहाना लेकर अति आत्मविश्वास के कारण किए जा रहे हैं आखिर ये तो कल्पना भी नहीं की जानी चाहिए कि विरोधी चुप बैठेंगे किंतु यदि वो कुछ कर सके तो दोष उन्हीं पर मढ़ा जाएगा जबकि शुरुआत इधर से हुई है !उस समय जैसे जैसे केजरीवाल का साथ देने और शर्तें मानने की घोषणा काँग्रेस करती चली जा रही थी  अरविन्द  केजरीवाल जी वैसे वैसे अपनी शर्तों का पिटारा खोलते  चले जा रहे थे वही अब हुआ ।जिन बातों का खंडन सार्वजनिक रूप से विरोधियों की ओर से किया जा रहा था उन्हीं बातों को उनके मस्तक पर चिपका कर उन्हें बाहर कर दिया गया !आखिर क्यों ?
     अरे आम आदमी पार्टी के कर्णधारों आप तो शर्तों और स्टिंगों के साक्षात समुद्र हैं इसलिए आप तो कभी भी कोई भी कहीं भी कैसी भी नई से नई शर्त और स्टिंग का नया पिटारा खोल सकते हैं किन्तु सामने वाले अभी तक सत्ता और संगठन दोनों ही दृष्टियों से खाली हाथ हैं वो पार्टी के विरुद्ध कोई साजिश आखिर क्यों करेंगे और क्या जनता इस पर विश्वास कर पाएगी !क्या जनता इसे ठीक मानेगी कि सत्ता के लोभ में जब तक सत्ता नहीं मिली तक तक तो उनसे चिपके रहे और सत्ता मिलते ही पहले लात मार कर बाहर करने की बात कही और बाद में कुछ वैसा ही कर भी दिया !क्या इसे दिल्ली की जनता पचा पाएगी !       

   


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